Ek yatra khajane ki khoje
जय सीताराम
जय जय श्री गुरूदेव भगवान
नीरा आर्य
स्वाधीनता संग्राम की मार्मिक गाथा। एक बार अवश्य पढ़ें|
नीरा आर्य (१९०२ - १९९८) की संघर्ष पूर्ण जीवनी:
नीरा आर्य का विवाह ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था | नीरा ने नेताजी #सुभाष_चंद्र_बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी |
नीरा ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी है | इस आत्म कथा का एक ह्रदयद्रावक अंश प्रस्तुत है -
5 मार्च 1902 को तत्कालीन संयुक्त प्रांत के खेकड़ा नगर में एक प्रतिष्ठित व्यापारी सेठ छज्जूमल के घर जन्मी नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज में रानी झांसी रेजिमेंट की सिपाही थीं, जिन पर अंग्रेजी सरकार ने गुप्तचर होने का आरोप भी लगाया था।
इन्हें नीरा नागिनी के नाम से भी जाना जाता है। इनके भाई बसंत कुमार भी आजाद हिन्द फौज में थे। इनके पिता सेठ छज्जूमल अपने समय के एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे, जिनका व्यापार देशभर में फैला हुआ था। खासकर कलकत्ता में इनके पिताजी के व्यापार का मुख्य केंद्र था, इसलिए इनकी शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता में ही हुई।
नीरा नागिन और इनके भाई बसंत कुमार के जीवन पर कई लोक गायकों ने काव्य संग्रह एवं भजन भी लिखे | 1998 में इनका निधन हैदराबाद में हुआ।
नीरा आर्य का विवाह ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था |
नीरा ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी।
आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब लाल किले में मुकदमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया, लेकिन इन्हें पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा हुई थी, जहां इन्हें घोर यातनाएं दी गई।
आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।
नीरा ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी है | इस आत्म कथा का एक ह्रदयद्रावक अंश प्रस्तुत है -
‘‘मैं जब कोलकाता जेल से अंडमान पहुंची, तो हमारे रहने का स्थान वे ही कोठरियाँ थीं, जिनमें अन्य महिला राजनैतिक अपराधी रही थी अथवा रहती थी।
हमें रात के 10 बजे कोठरियों में बंद कर दिया गया और चटाई, कंबल आदि का नाम भी नहीं सुनाई पड़ा। मन में चिंता होती थी कि इस गहरे समुद्र में अज्ञात द्वीप में रहते स्वतंत्रता कैसे मिलेगी, जहाँ अभी तो ओढ़ने बिछाने का ध्यान छोड़ने की आवश्यकता आ पड़ी है?
जैसे-तैसे जमीन पर ही लोट लगाई और नींद भी आ गई। लगभग 12 बजे एक पहरेदार दो कम्बल लेकर आया और बिना बोले-चाले ही ऊपर फेंककर चला गया। कंबलों का गिरना और नींद का टूटना भी एक साथ ही हुआ। बुरा तो लगा, परंतु कंबलों को पाकर संतोष भी आ ही गया।
अब केवल वही एक लोहे के बंधन का कष्ट और रह-रहकर भारत माता से जुदा होने का ध्यान साथ में था।
‘‘सूर्य निकलते ही मुझको खिचड़ी मिली और लुहार भी आ गया। हाथ की सांकल काटते समय थोड़ा-सा चमड़ा भी काटा, परंतु पैरों में से आड़ी बेड़ी काटते समय, केवल दो-तीन बार हथौड़ी से पैरों की हड्डी को जाँचा कि कितनी पुष्ट है।
मैंने एक बार दुःखी होकर कहा, ‘‘क्याअंधा है, जो पैर में मारता है?’’‘‘पैर क्या हम तो दिल में भी मार देंगे, क्या कर लोगी?’’
उसने मुझे कहा था।‘‘बंधन में हूँ तुम्हारे कर भी क्या सकती हूँ...’’ फिर मैंने उनके ऊपर थूक दिया था, ‘‘औरतों की इज्जत करना सीखो?’’
जेलर भी साथ थे, तो उसने कड़क आवाज में कहा, ‘‘तुम्हें छोड़ दिया जाएगा,यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेताजी सुभाष कहाँ हैं?’’
‘‘वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे,’’ मैंने जवाब दिया, ‘‘सारी दुनिया जानती है।’’
‘‘नेताजी जिंदा हैं....झूठ बोलती हो तुम कि वे हवाई दुर्घटना में मर गए?’’ जेलर ने कहा।
‘‘हाँ नेताजी जिंदा हैं।’’
‘तो कहाँ हैं...।’’
‘‘मेरे दिल में जिंदा हैं वे।’’
जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और बोले, ‘‘तो तुम्हारे दिल से हम नेताजी को निकाल देंगे।’’ और फिर उन्होंने मेरे आँचल पर ही हाथ डाल दिया और मेरी आँगी को फाड़ते हुए फिर लुहार की ओर संकेत किया...लुहार ने एक बड़ा सा जंबूड़ औजार जैसा फुलवारी में इधर-उधर बढ़ी हुई पत्तियाँ काटने के काम आता है, उस ब्रेस्ट रिपर को उठा लिया और मेरे दाएँ स्तन को उसमें दबाकर काटने चला था...लेकिन उसमें धार नहीं थी, ठूँठा था और उरोजों (स्तनों) को दबाकर असहनीय पीड़ा देते हुए दूसरी तरफ से जेलर ने मेरी गर्दन पकड़ते हुए कहा, ‘‘अगर फिर जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये दोनों गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जाएँगे...’’
उसने फिर चिमटानुमा हथियार मेरी नाक पर मारते हुए कहा, ‘‘शुक्र मानो महारानी विक्टोरिया का कि इसे आग से नहीं तपाया, आग से तपाया होता तो तुम्हारे दोनों स्तन पूरी तरह उखड़ जाते।’’ सलाम हैं ऐसे देश भक्त को। आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।
🇮🇳जय हिन्द, जय माँ भारती, वन्देमातरम !!!✌🙏
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Jai Sitaram
Jai Jai Shri Gurudev Bhagwan
Neera Arya
The touching story of the freedom struggle. Must read once.
Struggle Biography of Neera Arya (1902 - 1979):
Neera Arya was married to CID Inspector Srikanth Jairanjan Das in British India. Neera killed her officer husband Srikant Jairanjan Das in the English Army to save the life of Netaji # Subhash_Chandra_Bose.
Neera has also written an autobiography. A heartwarming part of this Atma Katha is presented -
Born on 5 March 1902 in the then United Provinces' Khekra Nagar to Seth Chhajumal, a distinguished businessman, Neera Arya Azad was a soldier of the Rani Jhansi Regiment in the Hind Fauj, who was also accused by the English government of being an undercover.
They are also known as Neera Nagini. His brother Basant Kumar was also in the Azad Hind Army. His father Seth Chhajumal was a distinguished businessman of his time, whose business was spread across the country. Especially in Calcutta, his father was the main center of his business, so his education was initiated in Calcutta.
Many folk singers also wrote poems and bhajans on the life of Neera Nagin and his brother Basant Kumar. He died in 1998 in Hyderabad.
Neera Arya was married to CID Inspector Srikanth Jairanjan Das in British India.
Neera killed her officer husband Srikant Jairanjan Das in the British Army to save the life of Netaji Subhash Chandra Bose.
After the surrender of Azad Hind Fauj, when the trial took place in the Red Fort, all the prisoners were released, but they were sentenced to black water on the murder of their husband, where they were tortured.
After independence, he lived by selling flowers, but did not accept any government assistance or pension.
Neera has also written an autobiography. A heartwarming part of this Atma Katha is presented -
"When I arrived in Andaman from Kolkata Jail, our place of stay was the cells in which other women were political criminals or lived.
We were locked in the cells at 10 o'clock in the night and the names of the mat, blanket etc. were not even heard. There was a worry in my mind that how would we get freedom while living in an unknown island in this deep sea, where there is a need to leave the attention of laying the veil.
As soon as he hit the ground and sleep too. At around 12 o'clock a guard came with two blankets and threw them up without even speaking. The fall of the blankets and the breakdown of sleep also occurred simultaneously. It felt bad, but satisfaction came after getting the blankets.
Now only he was with the pain of an iron bond and the care to stay apart from Mother India.
"As soon as the sun came out, I got khichdi and the blacksmith also came. A little leather was also cut while cutting the handwring, but when cutting the shackles from the feet, check the foot bone with a hammer only two or three times to see how strong it is.
I once grieved and said, "Is there a blind that kills in the foot?" "Shall we even kill in the heart, will we do?"
He told me. "I am in bondage, what can I do with you ..." Then I spit on them, "Learn to respect women?"
The jailer was also with him, he said in a loud voice, "You will be abandoned, if you will tell where your Netaji Subhash is?"
"He died in an air crash," I replied, "the whole world knows."
"Netaji is alive .... you lie that he died in an air crash?" Said the jailer.
"Yes Netaji is alive."
"So where are you?"
"They are alive in my heart."
As soon as I said the jailer got angry and said, "Then we will remove Netaji from your heart". ... The blacksmith used a big jamb like tool to cut the leaves growing here and there in Phulwari, lifted the breast
ripper and pressed my right breast into it and went to bite ... but it had no edge, Stumped and giving unbearable pain by pressing the uros (breasts), the jailer from the other side held my neck and said, "If you fight again, these two balloons will be separated from your chest."
He then licked the spiked weapon on my nose and said, "Venus as if Queen Victoria had not heated it with fire, if it had been heated by fire, your two breasts would have been completely uprooted." Salute to such a devotee. After independence, he lived by selling flowers, but did not accept any government assistance or pension.
Ajay Hind, Jai Maa Bharati, Vande Mataram !!!
धन्यवाद दोस्तों