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Thursday, September 2, 2021

एक यात्रा तेजोमहालय की अद्भुत शिव धाम की जिसे आज हम सभी ताजमहल के से जानते हैं। जो कभी भारत के सबसे विशालतम और ख़ुबसूरत शिव धाम हुआ करती थी।जिसे सदियों पहले अपवित्र कर कब्र में परिवर्तित कर दिया गया था, दोस्तों आज समय आ गया है कि हम अपने इस शिव धाम को अत्याचारियों से मुक्त करा कर व पवित्र कर भगवान शिव को पुनः उनके घर में प्राण प्रतिष्ठा कर उनके गौरवमई इतिहास को पुनः स्थापित करे।- प्राचीन शिवालय पवित्र तेजोमहालय , आगरा भारतA visit to the wonderful Shiva Dham of Tejo Mahalaya, which we all know today from the Taj Mahal. Which was once the largest and most beautiful Shiva Dham of India. Which was defiled and converted into a grave centuries ago, friends, today the time has come that we should free our Shiva Dham from tyrants and make Lord Shiva holy. Re-establish their glorious history by consecrating life in their home. - Ancient Pagoda Holy Tejomahalaya, Agra India.

Ek yatra khajane ki khoje















      प्राचीन तेजोमहालय शिव धाम
             (  आज का ताजमहल  )

                    आगरा शहर

                      भारतवर्ष


















        प्राचीनता व ऐतिहासिकता
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 दोस्तों जैसा कि हमें इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य सन 1632 में शुरू हुआ और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ था। 
                                     दोस्तों अब सोचने वाली बात यह है कि जब मुमताज़ की मौत 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 ईस्वी में ही ताजमहल में दफना दिया गया था। जबकि ताजमहल तो 1632 ईस्वी में बनना शुरू हुआ था।दोस्तों यह सब मनगढ़ंत बातें हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखी थी।

                     दरअसल दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सन 1632 ईस्वी में भगवान शिव के इस पवित्र मंदिर को अपवित्र कर इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ था।दोस्तों इसी दरमियान 1649 ईस्वी में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गई थी। दोस्तों ध्यान से देखने पर आपको आश्चर्य होगा कि इसके मुख्य द्वार के ऊपर हिंदू शैली के छोटे गुंबद के आकार का मंडप मौजूद है जो देखने में अत्यंत भव्य प्रतीत होता है।
                     दोस्तों ताजमहल की जो चार मीनारें  आपको नजर आती है वह सभी मुगल काल में खड़ी की गई थी और सामने स्थित फव्वारों को फिर से बनाया गया था।









          दोस्तों एक प्रसिद्ध पर्यटक जे. ए. मांडेलस्लो ने मुमताज की मौत के 7 वर्षों पश्चात voyages and travels into the east Indies . नाम से अपने निजी पर्यटन के संस्मरणों में आगरा शहर का तो उल्लेख किया है किंतु दोस्तों कथित ताजमहल के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं किया है।

         दोस्तों इतिहासकार  "टाम्हरनिए" के कथन के अनुसार 20000 मजदूर यदि 22 वर्षों तक ताजमहल का निर्माण करते रहते तो उस काल में मौजूद विदेशी पर्यटक "मांडलेस्लो" भी उस विशाल निर्माण कार्य का उल्लेख जरूर करता। 






                 दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ताजमहल के यमुना नदी के तरफ के दरवाजे की लकड़ी के एक टुकड़े को एक अमेरिकन प्रयोगशाला में की गई कार्बन डेटिंग जांच से पता चलता है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहजहां के काल से लगभग 300 से 400 वर्ष पहले का है क्योंकि दोस्तों प्राचीन शिवालय के दरवाजों को 11 वीं सदी से ही अत्याचारी क्रूर मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा तोड़कर खोला गया एवं से लूटा गया था। और ना जाने कितनी ही बार दोस्तों इन दरवाजों को पुनः लगाया गया था। यानी दोस्तों फिर से बंद करने के लिए दूसरे दरवाजे भी लगाए गए थे।

                 दोस्तों इस से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह प्राचीन शिवालय वर्तमान में ताजमहल कितना प्राचीन होगा।दोस्तों कुछ प्राचीन ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि इस प्राचीन शिवालय का पुनः निर्माण सन 1115 ईस्वी में अर्थात् शाहजहां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व किय गया था।







☀️ आइए दोस्तों ताजमहल के कुछ और रहस्यो को उजागर करते हैं जो यह सिद्ध करती है कि यह एक प्राचीन शिवालय या शिवधाम था।☀️

          दोस्तों ध्यान से देखने पर ताजमहल के गुंबद पर जो अष्टधातु का कलश खड़ा है। पता चलता है कि वह त्रिशूल आकार का पूर्ण कुंभ है ।  दोस्तों उसके मध्य दंड के शिखर पर पवित्र नारियल की आकृति बनी हुई है। दोस्तों ध्यान से  देखिएगा नारियल के तल पर दो झुके हुए आम के पत्ते बने हुए हैं और उसके नीचे कलश को दर्शाया गया है।

             दोस्तों आश्चर्यजनक ढंग से देखने से पता चलता है कि उस चंद्राकार के दो नोक और उनके बीचो-बीच नारियल का शिखर मिलाकर त्रिशूल का आकार बनाता है।दोस्तों आप सभी को मालूम ही होगा कि हिंदू और बौद्ध मंदिरों पर इसी प्रकार के कलश बने होते हैं।




           दोस्तों आप लोगों ने देखा ही होगा कि ताजमहल के अंदर मौजूद कब्र के ऊपर गुंबद के मध्य अष्टधातु की एक जंजीर लटक रही है।दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पवित्र शिवलिंग के ऊपर जल अर्पित या सिंचन करने वाला स्वर्ण कलश इसी जंजीर पर टंगा रहता था।लेकिन दोस्तों मुगल काल में उस पवित्र स्वर्ण कलश को निकालकर शाहजहां के खजाने में जमा करा दिया गया था ।लेकिन दोस्त वह जंजीर आज भी लटक रही है। स्वर्ण कलश के इंतजार में।

          दोस्तों यह भी एक संयोग है कि अंग्रेजों के शासनकाल में उस जंजीर पर लॉर्ड कर्जन ने एक दीप लटकवा दिया ,था जो आज भी मौजूद हैं। 






          दोस्तों क्या आपको पता है?
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 दोस्तों कब्रगाह को महल क्यों कहा गया? यानी मकबरे को महल क्यों कहा गया? क्या किसी ने इस पर कभी सोचा नहीं क्योंकि पहले से ही निर्मित एक पवित्र महल को कब्रगाह में बदल दिया गया था। दोस्तों खास बात यह है कि इस पवित्र मंदिर को कब्रगाह में बदलते वक्त उसका नाम नहीं बदला गया और यहीं पर शाहजहां से गलती हो गई।अन्यथा हम भारतवासी कभी समझ ही नहीं पाते कि यहां पर कभी भगवान शिव का पवित्र शिवालय हुआ करता था।

                  दोस्तों आश्चर्यजनक ढंग से उस कालखंड के किसी भी सरकारी या शाही दस्तावेजो में एवं अखबारों आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है यानी दोस्तों ताजमहल को ताज -ए-महल समझना हास्यास्पद है।





              दोस्तों आप संसार के इतिहास को उठाकर देख ले "महल" शब्द मुस्लिम शब्द है ही नहीं ।दोस्तों अरब , ईरान ,अफगानिस्तान आदि जगहों पर एक भी ऐसी मस्जिद या कब्र नहीं है जिसके बाद "महल" लगाया गया हो।






       दोस्तों आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दूं कि यह भी गलत है कि मुमताज के कारण इसका नाम मुमताज महल पड़ा क्योंकि शाहजहां की बेगम का नाम था "मुमता-उल-जमानी "।यानी दोस्तों मुमताज के नाम पर इसका नाम रखा होता तो ताजमहल के आगे से "मुम" को हटा देने का कोई औचित्य नजर नहीं आता है।




                         दोस्तों इतिहासकार "विंसेंट स्मिथ" ने अपने पुस्तक "Akbar the great Mughal"   मैं लिखते हैं कि बाबर ने सन् 1530 में आगरा के वाटिका वाले महल में अपने उपद्रवी जीवन से मुक्ति पाई। दोस्तों वाटिका वाला वह महल ही आज का ताजमहल था।दोस्तों वह इतना विशाल और भव्य था कि इसके जितना दूसरा कोई भारतवर्ष में महल नहीं था।

          दोस्तों बाबर की पुत्री गुलबदन "हुमायूंनामा" नामक अपने ऐतिहासिक वृत्तांत में "ताज" का संदर्भ "रहस्य महल" के नाम से देती है।






           ☀️ दोस्तों प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार☀️

 दोस्तों प्राचीन पवित्र शिवालय और आज का कथित ताजमहल का निर्माण राजा परिमर्दिदेव  के शासनकाल में सन 1155 ईसवी में अश्विन शुक्ल पंचमी रविवार को हुआ था। लेकिन बाद में मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी सहित कई मुस्लिम आक्रांताओं ने ताजमहल के द्वारा आदि को तोड़कर उसको बुरी तरह से लूटा और अपवित्र कर दिया था।






        दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह प्राचीन महल आज के ताजमहल से कई गुना ज्यादा बड़ा था ।और इसके तीन गुंबद हुआ करते थे।दोस्तों मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा तोड़े जाने के बाद हिंदुओं ने इसे फिर से मरम्मत करके बनवाया लेकिन वे ज्यादा समय तक इस पवित्र शिवालय की रक्षा नहीं कर सके ।










              ☀️  सांस्कृतिक साक्ष्य ☀️

 दोस्तों वास्तुकला के "विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र" नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में तेज - लिंग का वर्णन आता है।यानी दोस्तों इसी प्राचीन मंदिर में यानी आज के ताजमहल में तेज-लिंग प्रतिष्ठित था ।इसलिए इसका नाम "तेजोमहालय" पड़ा था।





          दोस्तों मुगल काल में यानी शाहजहां के समय में यूरोपीय देशों से आने वाले कई यात्रियों ने भवन का उल्लेख ताज-ए-महल के नाम से किया है।जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम "तेजोमहालय" से मिल मेल खाता है।दोस्तों इसके विरुद्ध शाहजहां और औरंगजेब ने बड़ी चालाकी और सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग ना करते हुए उसके स्थान पर "मकबरा" शब्द का ही प्रयोग किया है।

               दोस्तों एक और प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक श्री "पुरुषोत्तम नागेश ओक" के अनुसार हुमायूं ,अकबर, मुमताज, एत्मातुद्दौल , सफदरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिंदू महलो या उनके पवित्र मंदिरों में दफनाया गया है।

          दोस्तों आज का ताजमहल प्राचीन काल का "तेजो महल" यानी भगवान शिव का पवित्र मंदिर है। दोस्तों इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने गर्भ गृह के अंदर मुमताज की लाश को दफनाए गई थी। ना कि लाश दफनाने के बाद उसके ऊपर ताजमहल का निर्माण किया गया था।





      दोस्तों ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द "तेजोमहालय"  शब्द का अपभ्रंश है ।दोस्तों इस पवित्र "तेजोमहालय" शिवालय मंदिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे।

 



        दोस्तों देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व  कब्रों  वाले कमरों में पुष्पलता आदि से चित्रित चित्रकारी भी की गई है।
      दोस्तों इस से साफ जाहिर होता है कि मुमताज के मकबरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है क्योंकि दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित है एवं उसके ऊपर 108 कलश अरुढ़ है। दोस्तों आपको तो पता ही है कि सनातन धर्म के हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को सर्वाधिक पवित्र माना गया है।
                                        दोस्तों "तेजोमहालय" यानी आज के ताजमहल को "नागनाथेश्वर"  महादेव के नाम से भी जाना जाता था।दोस्तों क्योंकि उसके "जलहरी" को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। दोस्तों यह विशालकाय मंदिर महल काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ था।






                
 दोस्तों प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अध्ययन से पता चलता है कि आगरा शहर को प्राचीन काल में "अंगिरा" कहते थे। क्योंकि यह क्षेत्र महान तपस्वी ऋषि "अंगिरा" की तपोभूमि थी।दोस्तों अंगिरा ऋषि भगवान शिव के बहुत बड़े उपासक थे। और उन्होंने ही इस विशाल शिवालय मंदिर की आधारशिला रखी थी और तेज- लिंग की स्थापना की थी।

                दोस्तों बहुत ही प्राचीन काल से आगरा शहर में भगवान शिव के 5 प्रसिद्ध शिव मंदिर मौजूद थे ।दोस्तों पूरे भारतवर्ष के निवासी प्राचीन काल से ही इन पांचो शिव मंदिर में जाकर दर्शन व पूजा-पाठ करते थे।लेकिन दोस्तों कुछ सदियों से आगरा शहर में केवल चार प्रसिद्ध शिव मंदिर मौजूद हैं ।उनमें से केवल बालकेश्वर महादेव ,पृथ्वीनाथ महादेव ,कैलाश महादेव और राज राजेश्वर महादेव मंदिर मौजूद या बचे हुए हैं।

             दोस्तों जानकर बहुत दुख पहुंचता है कि पांचवे शिव मंदिर जिसे हम सभी आज ताजमहल के नाम से जानते हैं को मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा अपवित्र कर सदियों पूर्व कब्र में बदल दिया गया था।
                                            दोस्तों स्पष्टत: यह पांचवा शिव मंदिर आगरा शहर के इष्ट देव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर  ही हैं जो कि "तेजोमहालय"  मंदिर आज के ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।
 
    दोस्तों आज भी ताज महल के अंदर वह शिवलिंग जिसे हम सभी तेज - लिंग के नाम से जानते हैं मौजूद है जिसे ढूंढा जाना बाकी है।





      दोस्तों इस प्राचीन शिवालय यानी भगवान शिव के मंदिर को किस तरह से अपवित्र किया गया था जिसकी व्याख्या करने में मैं असमर्थ हूं दोस्तों क्योंकि बचपन से ही हम सभी भारतीयों को गलत जानकारियां दी गई है या पढ़ाई गई है।





                  धन्यवाद दोस्तों

           माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗

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            English translate
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 Hello friends, I am Mountain Leopard Mahendra, warm greetings to all of you, friends, I am taking you all on today's journey, on the journey of the world famous Tejo Mahalaya Shiv Dham, which we all know today as Taj Mahal. Which was impure centuries ago.  The tax was turned into a grave.  So friends, let's try to uncover the ancient secrets of Shiv Dham.




 Ancient Tejomahalaya Shiv Dham

 (Today's Taj Mahal)


 Agra city


 Bharatvarsh














 Antiquity and Historicity

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 Friends, as we are taught in history that the construction work of Taj Mahal started in the year 1632 and its construction work was completed in about 1653.

 Friends, now the thing to think about is that when Mumtaz died in 1631, then how he was buried in the Taj Mahal in 1631 AD itself.  Whereas the Taj Mahal started to be built in 1632 AD. Friends, these are all concoctions which were written by English and Muslim historians in the 18th century.


 Actually friends, you will be surprised to know that in the year 1632 AD, the work of desecrating this holy temple of Lord Shiva started giving Islamic look. Friends, in the meantime, in 1649 AD, its main gate was made on which the verses of Quran were carved.  Friends, if you look carefully, you will be surprised that there is a small Hindu-style dome-shaped pavilion above its main entrance, which looks very grand.

 Friends, the four minarets of the Taj Mahal that you see were all erected in the Mughal period and the fountains located in front were rebuilt.










 Friends a famous tourist J.  a.  Mandelslow voyages and travels into the east Indies 7 years after Mumtaz's death.  The city of Agra has been mentioned in the memoirs of his personal tourism by name, but friends have not made any mention of the construction of the so-called Taj Mahal.


 According to the statement of friends historian "Tamharniye", if 20000 laborers kept on building the Taj Mahal for 22 years, then the foreign tourist "Mandleslow" present in that period would also have mentioned that huge construction work.


 Friends, you will be surprised to know that a piece of wood on the side of the Yamuna river side of the Taj Mahal, a carbon dating test done in an American laboratory shows that that piece of wood is about 300 to 400 years before the time of Shah Jahan.  Because the doors of the ancient pagoda were broken open and looted from the 11th century by tyrannical cruel Muslim invaders.  And not knowing how many times these doors were reinstalled.  That is, other doors were also installed to close friends again.







 Friends, it can be estimated from this that how ancient this ancient pagoda will be at present Taj Mahal. Friends, some ancient historical documents show that this ancient pagoda was rebuilt in 1115 AD i.e. about 500 years before the time of Shah Jahan.  Was.


 Friends, let us uncover some more secrets of Taj Mahal which proves that it was an ancient pagoda or Shivdham.


 Friends, if you look carefully, the Ashtadhatu Kalash is standing on the dome of the Taj Mahal.  It turns out that he is a full-fledged Kumbh of trident shape.  Friends, there is a shape of a holy coconut on the top of the dand in the middle of it.  Friends, you will see that there are two bent mango leaves on the bottom of the coconut and the Kalash is depicted below it.








 Friends, looking astonishingly, it is known that the two ends of that moon shape and the coconut spire in the middle of them together form the shape of a trident. Friends, all of you must know that similar urns are made on Hindu and Buddhist temples.  .


 Friends, you must have seen that a chain of Ashtadhatu is hanging in the middle of the dome above the tomb present inside the Taj Mahal.  But friends, during the Mughal period, that sacred golden urn was taken out and deposited in the treasury of Shah Jahan. But friend that chain is still hanging today.  Waiting for the golden vase.


 Friends, it is also a coincidence that during the reign of the British, Lord Curzon had hung a lamp on that chain, which is still present today.









 Do you know guys?

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 Friends, why was the graveyard called a palace?  That is, why was the tomb called a palace?  Has anyone ever thought about this because a holy palace already built was converted into a graveyard.  Friends, the special thing is that while converting this holy temple into a graveyard, its name was not changed and it was here that Shah Jahan made a mistake. Otherwise we Indians can never understand that there used to be a holy pagoda of Lord Shiva here.


 Friends, surprisingly, the word Taj Mahal has not been mentioned in any official or royal documents of that period and in newspapers etc. That is, it is ridiculous to think of Taj Mahal as Taj-e-Mahal.


 Friends, if you look at the history of the world, the word "palace" is not a Muslim word at all. Friends, there is not a single mosque or tomb in places like Arabia, Iran, Afghanistan etc. After which "mahal" has been installed.











 Friends, for your information, let me also tell you that it is also wrong that it was named Mumtaz Mahal because of Mumtaz, because the name of the Begum of Shah Jahan was "Mumta-ul-Zamani". That is, if friends would have named it after Mumtaz, then Taj Mahal  There doesn't seem to be any justification for omitting "Mum" from the front.


 Friends historian "Vincent Smith" writes in his book "Akbar the great Mughal" that Babur got freedom from his troubled life in the palace of Agra in 1530.  Friends, that palace with Vatika was today's Taj Mahal. Friends, it was so huge and grand that there was no other palace in India like it.


 Friends, Babur's daughter Gulbadan in her historical account named "Humayunma" refers to "Taj" as "Rahasya Mahal".










 ️  ☀️Friends according to ancient historical facts☀️


 Friends, the ancient holy pagoda and today's so-called Taj Mahal were built during the reign of King Parimardideva in 1155 AD on Ashwin Shukla Panchami Sunday.  But later many Muslim invaders, including the Muslim invader Muhammad Ghori, broke the Taj Mahal through Adi and looted it badly and defiled it.



 Friends, you will be surprised to know that this ancient palace was many times bigger than today's Taj Mahal. And it used to have three domes. Friends, after being demolished by the Muslim invaders, the Hindus repaired it again and built it but they remained this holy for a long time.  Could not protect the pagoda.











 ️  ☀️Cultural Evidence ️☀️


 Friends, there is a description of Tej-Linga in Shivlings in the famous book called "Vishwakarma Vastu Shastra" of architecture. That is, friends, in this ancient temple i.e. in today's Taj Mahal, Tej-Linga was revered. Hence its name was "Tejo Mahalaya".



 Friends, during the Mughal period, i.e. during the time of Shah Jahan, many travelers from European countries have mentioned the building as Taj-e-Mahal. Which matches the traditional Sanskrit name of its Shiva temple "Tejo Mahalaya".  Against this, Shah Jahan and Aurangzeb with great cunning and caution have used the word "tomb" instead of using this word matching Sanskrit anywhere.


 Friends, according to another famous historian and writer Shri "Purushottam Nagesh Oak", all the royal and court people like Humayun, Akbar, Mumtaz, Etmatuddaul, Safdarjung are buried in Hindu palaces or their holy temples.


 Friends, today's Taj Mahal is the "Tejo Mahal" of ancient times, that is, the holy temple of Lord Shiva.  Friends, it has to be accepted that Mumtaz's body was buried inside the already built sanctum sanctorum of the Taj Mahal.  Not after the burial of the dead body, the Taj Mahal was built on it.


 Friends Tajmahal is a derivation of the word "Tejomahalaya" indicating the Shiva temple. Friends, in this holy "Tejomahalaya" Shivalaya  temple, Agreswar Mahadev was revered.











 Friends, the viewers must have observed that only white marble stones have been installed in the tomb room inside the basement, while the attic and the tomb rooms have been painted with flowers etc.

 Friends, it is clear from this that the room containing Mumtaz's tomb is the sanctum sanctorum of the Shiva temple because friends surprisingly have 108 Kalash painted in marble mesh and 108 Kalash Arud on it.  Friends, you know that the number 108 is considered the most sacred in the Hindu temple tradition of Sanatan Dharma.

 Friends "Tejomahalaya" i.e. today's Taj Mahal was also known as "Nagnatheshwar".  Friends, this huge temple palace was spread over a very large area.












 Friends, the study of ancient Indian texts shows that the city of Agra was called "Angira" in ancient times.  Because this area was the tapobhoomi of the great ascetic sage "Angira". Friends Angira Rishi was a great worshiper of Lord Shiva.  And it was he who had laid the foundation stone of this huge pagoda temple and established Tej-Linga.


 Friends, there were 5 famous Shiva temples of Lord Shiva in Agra city since ancient times. Friends, residents of all over India used to visit and worship these five Shiva temples since ancient times. But friends in Agra city for few centuries.  Only four famous Shiva temples exist. Out of them only Balkeshwar Mahadev, Prithvinath Mahadev, Kailash Mahadev and Raj Rajeshwar Mahadev temples exist or survive.


 Friends, it is very sad to know that the fifth Shiva temple, which we all know today as Taj Mahal, was desecrated by Muslim invaders and turned into a tomb centuries ago.

 Friends, apparently this fifth Shiva temple is the presiding deity of the city of Agra, Nagraj Agraeshwar Mahadev Nagnatheshwar, who was revered in the "Tejo Mahalaya" temple today's Taj Mahal.



 Friends, even today the Shivling which we all know by the name of Tej-Ling is present inside the Taj Mahal which is yet to be found.



 Friends, how was this ancient pagoda ie the temple of Lord Shiva desecrated, which I am unable to explain, friends, because since childhood, all of us Indians have been given wrong information or have been taught.









 thanks guys


 Mountain Leopard Mahendra🧗🧗











   Mountain Leopard Mahendra.                         🧗🧗


























                   
           

Saturday, November 21, 2020

आत्मनिर्भर भारत: कोसा की साड़ी के बुनकरों की की खत्म होगी आयात पर निर्भरता अब छत्तीसगढ़ में मे महिलाएं मशीनों के जरिए करेंगी तैयारी Self-reliant India: Weavers of Kosa saree will end dependence on imports, now women in Chhattisgarh will prepare through machines

Ek yatra khajane ki khoje

             
कोरबा में धागों से ताना तैयार करतीं महिलाएं
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Women preparing warp threads in Korba
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नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्त  एक यात्रा खजाने की खोज के दरमियान मैं पहुंच चुका हूं छत्तीसगढ़ की यात्रा पर।

 

आत्मनिर्भर भारत: कोसा की साड़ी के बुनकरों कि खत्म होगी आयत पर निर्भरता ,अब छत्तीसगढ़ में महिलाएं मशीनों के जरिए करेंगी तैयार।
▶️ दोस्तों हथकरघे पर कोसा के कपड़े की बुनाई के लिए अब छत्तीसगढ़ के बुनकर चीन और दक्षिण कोरिया के बजाय स्वदेशी ताना (लंबवत या वर्टिकल धागा) का उपयोग करेंगे। केंद्रीय रेशम बोर्ड अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र बेंगलुरु में इसके लिए मशीनें तैयार की गई है। दोस्तों छत्तीसगढ़ के कोरबा में भेजी गई इन मशीनों के संचालन का महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके बाद महिलाएं स्वदेशी ताना तैयार करेगी।

दोस्तों छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में करीब 12 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र में प्रतिवर्ष दो करोड़ 50 लाख नग (लच्छे ) कोसा (यह एक विशेष प्रकार का धागा होता है) का उत्पादन होता है। इससे बुने जाने वाले कपड़े को ही कोसा सिल्क कहते हैं। दोस्तों यहां तैयार होने वाले कोसे की साड़ी वह कुर्ते की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मांग है। इस कपड़े की बुनाई के लिए ताना का मजबूत होना जरूरी है।। दोस्तों दुख की बात यह है कि स्वदेशी तकनीक विकसित नहीं होने के कारण बुनकर ताना के लिए चीन और दक्षिण कोरिया पर निर्भर थे। बाना (चौड़ा या होरिजेंटल धागा) से ताना पर बुनाई होती है।
दोस्तों इस समय कोरोना काल में चीन से तल्खी के बीच ताना का आयत बंद हो गया। इसी दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान का सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। इसी दरमियान जिला रेशम एवं तसर केंद्र के सहायक उप संचालक बीपी विश्वास ने बताया कि केंद्रीय रेशम बोर्ड अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र बेंगलुरु के सहयोग से प्रदेश में पहली वेट रीलिंग यूनिट की स्थापना कोसा बाड़ी में की गई है । यहां 20 रीलींग 12 बुनियादी और 10 स्पिनिंग मशीनें लगाई गई है। इन पर 12 समूह की 40 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही हैं।।

यह सभी महिलाएं एक माह के अंदर ताना बनाने में दक्ष हो जाएंगे। इसके बाद सब्सिडी दर पर इन महिला समूहों को रेशम बोर्ड मशीनें उपलब्ध कराया जाएगा। इससे होने वाली कमाई से आसान किस्तों में मशीन की कीमत चुकाने की स्व- सहायता समूह की महिलाओं को सुविधा दी जाएगी ।

▶️ प्रतिवर्ष 8000 किलो की खबर: दोस्तों जिले की छुरी व  उमरेली में करीब 400 बुनकर हैं। इन्हें कोसा के कपड़े की बुनाई के लिए प्रतिवर्ष 8000 किलोग्राम ताना की जरूरत होती है। दोस्तों बताया जाता है कि वेट रीलिंग इकाई कोसा बाड़ी में प्रतिवर्ष 3 हजार किलोग्राम रेशम के धागे का उत्पादन होगा। एवं धीरे-धीरे इसकी क्षमता बढ़ाई जाएगी। 

▶️ प्रति किलो पंद्रह सौ रुपए की बचत : दोस्तों बुनकर आयातित ताना ₹7000 रुपए प्रति किलो के भाव से खरीदते हैं। लेकिन अब 1 किलो स्वदेशी ताना के उत्पादन में 5 हजार 5सौ रुपए की लागत आएगी। इस तरह प्रति किलो 1500 रुपए की बचत होगी। दोस्तों छत्तीसगढ़ में ज्यादातर बुनकर परिवार की महिलाएं   ही इसका प्रशिक्षण ले रही है , ताकि घर पर ही इसे तैयार कर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सके। 

▶️ कोसा ऐसे तैयार होता है- कोसा रेशम किट अर्जुन , साजा , साल , सेन्हा के पेड़ों पर पाया जाता है। यह किट  पत्तेेे खाकर 45 से 55 दिनों में  कोसा फल तैयार करता है । दोस्तों वर्ष भर में इसके तीन जीवन चक्र होते हैं।कोरवा आदिवासी जनजातीय परिवार इन कीड़ों का पालन करते हैं।  जनजातीय समुदाय कोसा फल को एक निश्चित ताप पर उबालते हैं ताकि  यह मुलायम हो जाय । इन मुुुलायम कोस सेे  नम रहते ही  धागा तैयार कर लिया जाता है।  

           धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।

              माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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                  English translate
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कोरबा में कोसा के फल से धागा तैयार करती महिलाएं
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Women preparing thread in Korba with the fruit of Kosa
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 Hello friends I heartily congratulate all of you mountain leopard Mahendra, friend, I have reached Chhattisgarh on the journey of a treasure hunt.





 Self-reliant India: Weavers of Kosa saree will end dependence on rectangles, now women in Chhattisgarh will be ready through machines.

 ️ ️ Friends, the weavers of Chhattisgarh will now use indigenous warp (vertical or vertical thread) instead of China and South Korea to weave kosa cloth on handlooms.  Machines have been prepared for this at the Central Silk Board Research and Training Center, Bangalore.  Friends, women are being trained to operate these machines sent to Korba in Chhattisgarh.  After this, women will prepare indigenous warp.


 Friends: In the Korba district of Chhattisgarh, about 12 thousand hectares of forest area is produced in two crore 50 lakh pieces of kosha (it is a special type of thread).  The fabric woven from it is called kosa silk.  Friends, this kurti sari, which is prepared here, is also internationally demanded.  The weft of this fabric is necessary to be strong.  Friends, the sad fact is that weavers depended on China and South Korea for warp due to indigenous technology not being developed.  Bana (wide or horizontal thread) is woven on the warp.

 Friends, at this time during the Corona era, the rectangle of taunting between China and China was closed.  During this time, the positive impact of the self-reliant India campaign of Prime Minister of India Narendra Modi was seen.  Meanwhile, Assistant Director of the District Silk and Tasar Center BP Vishwas told that the first weight reeling unit in the state has been established in Kosa Bari in collaboration with the Central Silk Board Research and Training Center, Bangalore.  There are 20 releasing 12 basic and 10 spinning machines.  40 women of 12 groups are undergoing training on these.


 All these women will become proficient in making taunts within a month.  After this, silk board machines will be made available to these women groups at a subsidized rate.  The women of the self-help group will be given the facility to pay the cost of the machine in easy installments from the income generated from it.


  News of 8000 kg per annum: Friends, there are about 400 weavers in Churi and Umreli of the district.  They require 8000 kg of warp every year to weave the fabric of Kosa.  Friends are told that 3 thousand kg silk thread will be produced every year in the weight reeling unit at Kosa Bari.  And gradually its capacity will be increased.


  Savings of fifteen hundred rupees per kilogram: Friends weavers buy imported warp for ₹ 7000 per kg.  But now the production of 1 kg of indigenous warp will cost 5 thousand 5 hundred rupees.  In this way, there will be a savings of 1500 rupees per kg.  Friends, in Chhattisgarh, mostly women of weaver family are taking training so that it can be prepared at home to earn extra profit.


 ▶ ️ Kosa is prepared like this - Kosa silk kit is found on Arjuna, Saja, Sal, Senha trees.  This kit prepares whipped fruit in 45 to 55 days after eating leaves.  Friends, it has three life cycles throughout the year. Korwa tribal tribal families follow these insects.  Tribal communities boil the whipped fruit at a certain temperature so that it becomes soft.  The thread is prepared as soon as these muulayam are kept moist.


 Thanks guys, that's all for today.


 Mountain Leopard Mahendra

        
         कोसा रेशम कीट
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          Whipped silkworm
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Ek yatra khajane ki khoje me

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