Saturday, November 21, 2020

आत्मनिर्भर भारत: कोसा की साड़ी के बुनकरों की की खत्म होगी आयात पर निर्भरता अब छत्तीसगढ़ में मे महिलाएं मशीनों के जरिए करेंगी तैयारी Self-reliant India: Weavers of Kosa saree will end dependence on imports, now women in Chhattisgarh will prepare through machines

Ek yatra khajane ki khoje

             
कोरबा में धागों से ताना तैयार करतीं महिलाएं
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Women preparing warp threads in Korba
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नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्त  एक यात्रा खजाने की खोज के दरमियान मैं पहुंच चुका हूं छत्तीसगढ़ की यात्रा पर।

 

आत्मनिर्भर भारत: कोसा की साड़ी के बुनकरों कि खत्म होगी आयत पर निर्भरता ,अब छत्तीसगढ़ में महिलाएं मशीनों के जरिए करेंगी तैयार।
▶️ दोस्तों हथकरघे पर कोसा के कपड़े की बुनाई के लिए अब छत्तीसगढ़ के बुनकर चीन और दक्षिण कोरिया के बजाय स्वदेशी ताना (लंबवत या वर्टिकल धागा) का उपयोग करेंगे। केंद्रीय रेशम बोर्ड अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र बेंगलुरु में इसके लिए मशीनें तैयार की गई है। दोस्तों छत्तीसगढ़ के कोरबा में भेजी गई इन मशीनों के संचालन का महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके बाद महिलाएं स्वदेशी ताना तैयार करेगी।

दोस्तों छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में करीब 12 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र में प्रतिवर्ष दो करोड़ 50 लाख नग (लच्छे ) कोसा (यह एक विशेष प्रकार का धागा होता है) का उत्पादन होता है। इससे बुने जाने वाले कपड़े को ही कोसा सिल्क कहते हैं। दोस्तों यहां तैयार होने वाले कोसे की साड़ी वह कुर्ते की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मांग है। इस कपड़े की बुनाई के लिए ताना का मजबूत होना जरूरी है।। दोस्तों दुख की बात यह है कि स्वदेशी तकनीक विकसित नहीं होने के कारण बुनकर ताना के लिए चीन और दक्षिण कोरिया पर निर्भर थे। बाना (चौड़ा या होरिजेंटल धागा) से ताना पर बुनाई होती है।
दोस्तों इस समय कोरोना काल में चीन से तल्खी के बीच ताना का आयत बंद हो गया। इसी दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान का सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। इसी दरमियान जिला रेशम एवं तसर केंद्र के सहायक उप संचालक बीपी विश्वास ने बताया कि केंद्रीय रेशम बोर्ड अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र बेंगलुरु के सहयोग से प्रदेश में पहली वेट रीलिंग यूनिट की स्थापना कोसा बाड़ी में की गई है । यहां 20 रीलींग 12 बुनियादी और 10 स्पिनिंग मशीनें लगाई गई है। इन पर 12 समूह की 40 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही हैं।।

यह सभी महिलाएं एक माह के अंदर ताना बनाने में दक्ष हो जाएंगे। इसके बाद सब्सिडी दर पर इन महिला समूहों को रेशम बोर्ड मशीनें उपलब्ध कराया जाएगा। इससे होने वाली कमाई से आसान किस्तों में मशीन की कीमत चुकाने की स्व- सहायता समूह की महिलाओं को सुविधा दी जाएगी ।

▶️ प्रतिवर्ष 8000 किलो की खबर: दोस्तों जिले की छुरी व  उमरेली में करीब 400 बुनकर हैं। इन्हें कोसा के कपड़े की बुनाई के लिए प्रतिवर्ष 8000 किलोग्राम ताना की जरूरत होती है। दोस्तों बताया जाता है कि वेट रीलिंग इकाई कोसा बाड़ी में प्रतिवर्ष 3 हजार किलोग्राम रेशम के धागे का उत्पादन होगा। एवं धीरे-धीरे इसकी क्षमता बढ़ाई जाएगी। 

▶️ प्रति किलो पंद्रह सौ रुपए की बचत : दोस्तों बुनकर आयातित ताना ₹7000 रुपए प्रति किलो के भाव से खरीदते हैं। लेकिन अब 1 किलो स्वदेशी ताना के उत्पादन में 5 हजार 5सौ रुपए की लागत आएगी। इस तरह प्रति किलो 1500 रुपए की बचत होगी। दोस्तों छत्तीसगढ़ में ज्यादातर बुनकर परिवार की महिलाएं   ही इसका प्रशिक्षण ले रही है , ताकि घर पर ही इसे तैयार कर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सके। 

▶️ कोसा ऐसे तैयार होता है- कोसा रेशम किट अर्जुन , साजा , साल , सेन्हा के पेड़ों पर पाया जाता है। यह किट  पत्तेेे खाकर 45 से 55 दिनों में  कोसा फल तैयार करता है । दोस्तों वर्ष भर में इसके तीन जीवन चक्र होते हैं।कोरवा आदिवासी जनजातीय परिवार इन कीड़ों का पालन करते हैं।  जनजातीय समुदाय कोसा फल को एक निश्चित ताप पर उबालते हैं ताकि  यह मुलायम हो जाय । इन मुुुलायम कोस सेे  नम रहते ही  धागा तैयार कर लिया जाता है।  

           धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।

              माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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                  English translate
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कोरबा में कोसा के फल से धागा तैयार करती महिलाएं
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Women preparing thread in Korba with the fruit of Kosa
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 Hello friends I heartily congratulate all of you mountain leopard Mahendra, friend, I have reached Chhattisgarh on the journey of a treasure hunt.





 Self-reliant India: Weavers of Kosa saree will end dependence on rectangles, now women in Chhattisgarh will be ready through machines.

 ️ ️ Friends, the weavers of Chhattisgarh will now use indigenous warp (vertical or vertical thread) instead of China and South Korea to weave kosa cloth on handlooms.  Machines have been prepared for this at the Central Silk Board Research and Training Center, Bangalore.  Friends, women are being trained to operate these machines sent to Korba in Chhattisgarh.  After this, women will prepare indigenous warp.


 Friends: In the Korba district of Chhattisgarh, about 12 thousand hectares of forest area is produced in two crore 50 lakh pieces of kosha (it is a special type of thread).  The fabric woven from it is called kosa silk.  Friends, this kurti sari, which is prepared here, is also internationally demanded.  The weft of this fabric is necessary to be strong.  Friends, the sad fact is that weavers depended on China and South Korea for warp due to indigenous technology not being developed.  Bana (wide or horizontal thread) is woven on the warp.

 Friends, at this time during the Corona era, the rectangle of taunting between China and China was closed.  During this time, the positive impact of the self-reliant India campaign of Prime Minister of India Narendra Modi was seen.  Meanwhile, Assistant Director of the District Silk and Tasar Center BP Vishwas told that the first weight reeling unit in the state has been established in Kosa Bari in collaboration with the Central Silk Board Research and Training Center, Bangalore.  There are 20 releasing 12 basic and 10 spinning machines.  40 women of 12 groups are undergoing training on these.


 All these women will become proficient in making taunts within a month.  After this, silk board machines will be made available to these women groups at a subsidized rate.  The women of the self-help group will be given the facility to pay the cost of the machine in easy installments from the income generated from it.


  News of 8000 kg per annum: Friends, there are about 400 weavers in Churi and Umreli of the district.  They require 8000 kg of warp every year to weave the fabric of Kosa.  Friends are told that 3 thousand kg silk thread will be produced every year in the weight reeling unit at Kosa Bari.  And gradually its capacity will be increased.


  Savings of fifteen hundred rupees per kilogram: Friends weavers buy imported warp for ₹ 7000 per kg.  But now the production of 1 kg of indigenous warp will cost 5 thousand 5 hundred rupees.  In this way, there will be a savings of 1500 rupees per kg.  Friends, in Chhattisgarh, mostly women of weaver family are taking training so that it can be prepared at home to earn extra profit.


 ▶ ️ Kosa is prepared like this - Kosa silk kit is found on Arjuna, Saja, Sal, Senha trees.  This kit prepares whipped fruit in 45 to 55 days after eating leaves.  Friends, it has three life cycles throughout the year. Korwa tribal tribal families follow these insects.  Tribal communities boil the whipped fruit at a certain temperature so that it becomes soft.  The thread is prepared as soon as these muulayam are kept moist.


 Thanks guys, that's all for today.


 Mountain Leopard Mahendra

        
         कोसा रेशम कीट
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          Whipped silkworm
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