कौलेश्वरी पहाड़
नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लेपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं कौलेश्वरी पर्वत की यात्रा पर जो की चतरा जिले के हंटरगंज में मौजूद हैं जो झारखंड के प्रमुख पर्वतीय क्षेत्रों में से एक है और जो अनेकों रहस्यों को अपने में समेटे हुए हैं।
दोस्तों कौलेश्वरी पर्वत चतरा जिले में हंटरगंज प्रखण्ड से 10 किमी. दूर पूरब में 1575 फीट ऊंचा कोल्हुआ या कौलेश्वरी पर्वत मौजूद हैं। जिस पर चढ़ने के लिए अब सीढ़ियों का निर्माण हो चुका है। प्राकृतिक छटाओं के बीच स्थित इस पर्वत पर अनेक हिंदू और जैन तीर्थ स्थलों के साथ ही अनुपम पर्यटन स्थल भी है।। साथ ही साथ दोस्तों आदिवासियों के देवता भी यहां पर विराजमान हैं। इस स्थान को कोल्हुआ , या कौलेश्वरी , कुलेश्वरी एवं कोटशिला के नाम से जाना जाता है । दोस्तों कोल या मुंडा आदिवासियों की आराधना देवी कौलेश्वरी हैं। और दोस्तों जैसा कि आपको पता होगा की दुर्गा सप्तशती में देवी भागवती को कुलेश्वरी कहां गया है । माना जाता है कि महाभारत काल के मत्स्य राज राजा विराट ने अपने ईष्ट या कुलदेवी कौलेश्वरी कि यहां प्राण प्रतिष्ठा की थी। दोस्तों महिषासुर मर्दिनी के रूप में मां कौलेश्वरी आराध्य देवी , दुर्गा है।
किवदंती है कि इस स्थल पर माता सती का कोख गिरा था और इस रूप में यहां एक सिद्ध पीठ है। इस आधार पर धारणा है कि संतान प्राप्ति की मनोकामना यहां पूरी होती है। मन्नत मांगने के बाद मनोकामना पूर्ण होने पर लोग यहां बकरे की बलि भी चढ़ाते हैं। दोस्तों सबसे बड़ी बात है कि यहां नेपाल से भी काफी लोग आते हैं।
दोस्तों कॉल हुआ पर्वत महाकाव्य काल एवं पुराण काल से संबंधित प्रागैतिहासिक स्थल है। वनवास के समय श्री राम , माता सीता एवं लक्ष्मण का वास इसी अरण्य में होने की किवदंती है। साथ ही साथ महाभारत कालीन इतिहास भी यहां मौजूद है लोगों का मानना है कि अज्ञातवास काल में पांडवों की साधना स्थली भी इसे माना जाता है। अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के साथ उत्तरा का विवाह भी इसी स्थल पर होने की बात लोग मानते हैं।
जैन धर्मावलंबी 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ से भी इस स्थल का सम्बन्ध जोड़ते हैं ।जैन धर्म से संबंधित अनेक अवशेष यहां मौजूद हैं। दोस्तों 10 वी शताब्दी से यह स्थान तीर्थ के रूप में पूजित है।इसे मत्स्यराज विराट की राजधानी एवं जिला भी माना जाता है।
मां कौलेश्वरी की मंदिर- इस प्राचीन मंदिर में महिषासुर मर्दिनी , त्रिशूल धारणी , कुलेश्वरी देवी के काले पत्थर की चतुर्भुजी प्रतिमा प्रतिष्ठित है। अवधारणा है कि संपूर्ण कौलेश्वरी मंदिर प्रांगण में कौवा , सियार और सेवाल का अस्तित्व नहीं है। दोस्तों किवदंती है कि कोलासुर दैत्य का अत्याचार बढ़ गया था दैत्य का विनाश कर मानव को त्राण दिलाने के लिए मां भगवती का अवतरण "12 वर्ष की कुंवारी कन्या कौलेश्वरी के रूप में हुआ एवं कोला सुर का वध किया गया।
दोस्तों पूर्व में यहां बलि की प्रथा थी। वर्ष में दो बार बसंत पंचमी एवं रामनवमी मेले में यहां बलि दी जाती थी , जिससे मंदिर के सामने स्थित सरोवर का पानी गंदा हो जाता था, किंतु अब मंदिर में बलि के लिए लाए गए बकरों का , मंदिर में सिर्फ पूजन होता है ,एवं पहाड़ के नीचे के भाग में विभिन्न स्थानों पर ठहराव की जगह में बलि दी जाती है। दोस्तों पुराने दस्तावेजों द्वारा अधिकृत दंतार तथा सुग्गा ग्राम के साकल द्वीपीय ब्राह्मण बारी - बारी से इस मंदिर में प्रतिष्ठित देवी कौलेश्वरी की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। वसंत पंचमी , दशहरा , रामनवमी आदि त्यौहारों के समय , मंदिर के आसपास चहल-पहल बढ़ जाती हैं।
दोस्तों मंदिर के चबूतरे पर प्रतिदिन ब्रहामण बालकों को धर्म ग्रंथों का पाठ तथा मंत्रोच्चार का अभ्यास कराया जाता है । सामूहिक मंत्रोच्चार से पर्वत शिखर ऐसा मालूम पड़ता है जैसे उसने कैलाश का रूप धारण कर लिया हो और भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए ऋषि- मुनियों का मंत्र जाप चल रहा हों ।
दोस्तों माता कौलेश्वरी मंदिर का पाट प्रायः भादों से लेकर कृष्णपक्ष आश्विन तक बंद रहता है।
प्राकृतिक झील- क़ोलहुआ पर्वत पर मां कौलेश्वरी के मुख्य मंदिर के सामने करीब 900 फ़ीट चौड़ी ,2000 फ़ीट लम्बी और 30 फीट गहरी प्राकृतिक झील है जिसे कुछ लोग तालाब भी कहते हैं देखने में यह क्रेटर झील के समान लगती हैं। झील में स्थाई रूप से पानी रहता है । दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 1967 के भयंकर अकाल में भी इस झील में भरपुर पानी था। एवं देवी के प्रिय पुष्प लाल कमल इस झील में बहुतायत से पाए जाते हैं।
झील से पानी निकासी के लिए पूर्व से प्राकृतिक मार्ग बना हुआ है। एक दो बार झील को सुखाने का प्रयास सफाई के उद्देश्य से किया गया था लेकिन झील सुख नहीं पाई।
सप्तकूप - कहते हैं कि पर्वत पर स्थित झील के भीतर भी सात कुएं या स्रोत हैं । इसे सप्तकूप कहा जाता है। इन्हीं की वजह से शायद झील का पानी कभी सुख नहीं पाता।
तालाब- पहाड़ पर अलग एक छोटा तालाब है जिसमें उजले कमल खिलते हैं।
भैरवनाथ मंदिर या पाश्र्वनाथ मंदिर - तालाब के पश्चिमी किनारे पर एक विशाल गुफा में पद्मासन तथा काले पत्थरों से निर्मित 9 सर्प- छत्रों से युक्त प्रतिमा है। इसे हिन्दू भैरवनाथ की मूर्ति मानते हैं , किन्तु जैनी इसे 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति मानते हैं । दोनों ही धर्मावलंबी अपनी आस्था के मुताबिक इस मूर्ति का पूजन करते हैं बगल में एक और गुफा है जिसमें तीन मूर्तियां अवस्थित थी।
द्वारपाल अथवा पार्श्वनथ की प्रतिमा- हट वरिया ग्राम की ओर से पर्वत पर चढ़ते समय मार्ग में जिस प्रतिमा के दर्शन होते हैं वह हिंदुओं के लिए द्वारपाल तथा जैनियों के लिए पाश्र्वनाथ की प्रतिमा है।
पंच पांडव या पंच तीर्थंकर- मां कौलेश्वरी मंदिर के सामने एक बहुत बड़े चट्टान पर पांच आदम कद मूर्तियां उत्कीर्ण है हिंदू इन्हें पांचों पांडवों की मूर्तियां मानते हैं किंतु जैनी इसे पंच तीर्थंकर की मूर्तियां मानते हैं जिसमें उनके अनुसार जैन तीर्थ कर अभिनंदन नाथ जी , मन्मथनाथजी , नेमिनाथ जी , महावीर स्वामी जी तथा पाश्र्वनाथ जी की प्रतिमाएं हैं।
आकाश - लोचन- मां कौलेश्वरी मंदिर के उत्तर पूर्व कौण में आकाश लोचन नामक एक स्थल है। इस स्थान से आकाश को देखने पर सुखद अनुभूति होती है शायद इसलिए इसे अकाश लोचन कहा गया है।
विष्णुपग या पाश्र्वनाथ पग चिन्ह- आकाश-लोचन की एक शिला पर दो चरण चिन्ह उभरे नजर आते हैं । हिन्दू धर्मावलंबियों का मानना है कि इनमें से एक चरण चिन्ह मौलिक है और वह भगवान विष्णु के चरण चिन्ह है उनका कहना है कि एक चरण चिन्ह गया के विष्णु पद मंदिर में तथा दूसरा इस स्थल पर अंकित है। और शिला पर दूसरा चरण चिन्ह किसी शिल्पी द्वारा बाद में बना दिया गया है जैनी इन्हें पाश्र्वनाथ जी के पग-चिन्ह बताते हैं।
सप्त ऋषि गुफा- कौलेश्वरी मंदिर से कुछ ही दूरी पर सप्त ऋषि गुफा के नाम से पुकारी जाने वाली एक दूसरे से जुड़े सात गुफाएं हैं। इसमें बने एक मूर्ति के बारे में भी हिंदू और जैन धर्मावलंबियों के अलग-अलग दावे हैं।
वाण गंगा- इस पर्वत पर वाण गंगा नाम से भी एक स्थल है जहां से एक क्षीण जलधारा वर्ष भर निकलती रहती है।
भीम भार- भीम भार के बारेे में एकता दंत कथा है कि अज्ञात वास के समय पांडवों के
आवास निर्माण के लिए भीभ जब भार या कांवर से पत्थर ढोकर ला रहे थे , तो भार टूट जाने से दो बड़े पत्थर उल्लिखित स्थल पर गिरकर स्थिर हो गए थे । यह स्थल लेढो ग्राम की ओर से पहाड़ पर चढ़ने के मार्ग में है।
नकटी भवानी- यह स्थल भीम भार के निकट हैं जिसके बारे में अलग-अलग दंतकथाएं प्रचलित है।
अर्जुन बाण - इस स्थल पर विशालकाय एक चट्टान के छिद्रों से हर समय पानी झरता रहता है । दंतकथा है कि अज्ञात वास के समय इसी स्थल पर अर्जुन बाणो के संधान का अभ्यास करते थे , जिससे अनेक चट्टानों में छिद्र हो गए। ऐसे ही छिद्रों से पानी झरता रहता है।
मंड़वा- मड़ई- एक स्थल को मड़वा- मड़ई के नाम से पुकारा जाता है । इसके बारे में कई दंत कथाएं हैं इन दंत कथाओं में देवी कौलेश्वरी के विवाह का भी उल्लेख है।
धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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English translate
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Hello friends, I heartily congratulate all of you mountain leopard Mahendra, Friends, today I am taking you on a journey to Mount Kauleshwari which is present in Hunterganj in Chatra district, which is one of the major hill areas of Jharkhand and which has many mysteries. Are included in themselves.
Friends Kauleshwari mountain 10 km from Hunterganj block in Chatra district. In the far east there are 1575 feet high Kolhua or Kauleshwari mountains. The stairs have been built to climb on it. This mountain, situated amidst natural terraces, has numerous Hindu and Jain pilgrimage sites as well as unique tourist spots. At the same time, the God of friends and tribals is also seated here. This place is known as Kolhua, or Kauleshwari, Kuleshwari and Kotshila. Friends are the worship goddess Kauleshwari of Kol or Munda tribals. And friends, as you would know, where Goddess Bhagwati has gone to Kuleshwari in Durga Saptashati. It is believed that the Matsya Raj king Virat of the Mahabharata period had the life of his Ishta or Kuladevi Kauleshwari. Mother Kauleshwari as friends Mahishasura Mardini is the adorable goddess, Durga.
Legend has it that the womb of Mata Sati fell on this site and in this form there is a proven back. On this basis, the belief that the desire to have children is fulfilled here. After offering a vow, people offer sacrifices of goats here as well. Friends, the biggest thing is that a lot of people also come here from Nepal.
Friends Call Hua Mountain is a prehistoric site related to the epic period and the Puranas. At the time of exile, the residence of Shri Rama, Mother Sita and Lakshmana is the legend of being in this Aranya. As well as the history of Mahabharata, it is also present here that people believe that it is also considered as a place of worship of the Pandavas during the period of unknown life. People believe that Uttara's marriage with Arjun's son Abhimanyu is also at this place.
Jain Dharmavlambi also connects this place with the 23rd Tirthankara Parshwanath. Many relics related to Jainism are present here. Friends, this place has been worshiped as a pilgrimage since the 10th century. It is also considered as the capital and district of Matsya Raja Virat.
Temple of Maa Kouleshwari- This ancient temple is revered with Mahishasura Mardini, Trident holding, black stone quadrangular statue of Kuleshwari Devi. The concept is that crow, jackal and seval do not exist in the entire Kauleshwari temple complex. Friends legend has it that the tyranny of the Kolasur monster had increased, to destroy the monster and to provide human life, the incarnation of Maa Bhagwati as a 12-year-old virgin girl Kauleshwari and Kola Sur were killed.
Friends, in the past, sacrifice was the practice here. Sacrificed here twice a year at Basant Panchami and Ramnavami fair, the water of the lake situated in front of the temple was dirty, but now the goats brought for sacrifice in the temple are worshiped only in the temple, and the mountains Sacrifices are made at various places in the lower part of the place. Friends, the Dantars authorized by old documents and the Sakal island Brahmins of Sugga village have been worshiping the iconic Goddess Kauleshwari in this temple from time to time. During the festivals like Vasant Panchami, Dussehra, Ramnavami etc., the movement around the temple increases.
Everyday Brahmin children are taught religious texts and chants of mantras on the platform of Friends temple. From the collective chant, the mountain peak looks as if it has taken the form of Kailash and is chanting the mantras of sages and sages to please Lord Bholenath and Mata Parvati.
Friends, the roof of the Mata Kauleshwari temple is usually closed from Bhadan to Krishnapaksha Ashwin.
Natural Lake - In front of the main temple of Maa Kaulleshwari on Mount Kollhua, there is a 900 feet wide, 2000 feet long and 30 feet deep natural lake, which some people call as a pond, it looks like a crater lake. The lake has permanent water. Friends, you will be surprised to know that even in the severe famine of 1967, this lake was full of water. And the red flower lotus, beloved of the Goddess, is found abundantly in this lake.
There is a natural route from the east to drain the lake. An attempt was made to dry the lake twice, for the purpose of cleaning but the lake did not get pleasure.
Saptakup - It is said that there are seven wells or sources within the lake situated on the mountain. It is called Saptakup. Perhaps because of these, the water of the lake never gets happiness.
Pond- There is a small pond isolated on the mountain in which bright lotus blooms.
Bhairavnath Temple or Parshvanath Temple - In a huge cave on the western side of the pond, there is a statue of Padmasana and nine snake-chhatras made of black stones. Hindus consider it as the idol of Bhairavnath, but Jaini considers it as the idol of the 23rd Tirthankara Parshvanath. Both religious people worship this idol according to their faith. There is another cave next to which three idols were located.
Statue of Dwarapal or Parshvanatha - The idol of Darshapal, which is seen in the path while climbing the mountain from the village of Hat Varia, is the gatekeeper for Hindus and the idol of Parshvanath for Jains.
Panch Pandavas or Panch Tirthankaras - Five Adam statues are engraved on a very large rock in front of the Maa Kauleshwari temple.Hindus consider them as idols of the five Pandavas, but Jains consider it as the idols of Panch Tirthankara, according to which Jain pilgrimage tax Abhinandan Nathji, Manmathnathji , Neminath ji, Mahavir Swami ji and Parshvanath ji.
Akash - Lochan - In the north east Kaun of the Maa Kaulleshwari temple, there is a place called Akash Lochan. There is a pleasant feeling on seeing the sky from this place, probably because it has been called Akash Lochan.
Vishnupag or Parshvanath Pag Sign - Two stages of the sky appear on a rock of sky-locality. Hindu religious people believe that one of these footprints is original and is the foot sign of Lord Vishnu.He says that one step sign is inscribed in Vishnu Pad Mandir of Gaya and the other at this place. And the second stage sign on the rock has been made later by some craftsman, Jaini calls them the footprints of Parsvanath ji.
Sapta Rishi Cave- There are seven interconnected caves known as Sapta Rishi Cave just a short distance from the Kauleshwari Temple. Hindu and Jain religions also have different claims about an idol built in it.
Vana Ganga - There is a place on this mountain also called Vana Ganga, from where a dilapidated stream flows throughout the year.
Bhima Bhar- Ekta is a legend about Bhima Bhar that during the time of unknown dwellings of Pandavas
When the bhebas were carrying boulders with the load or Kanwar for the construction of the house, two big stones fell on the mentioned site and became stable after the load broke. This place is on the way to climb the mountain from the side of Laddho village.
Nakti Bhavani - This place is near Bhima Bhar, about which different legends are popular.
Arjun Baan - At this site, water flows all the time from the holes of a huge rock. Legend has it that at the same time, Arjuna used to practice the cultivation of arrows at the same place during the unknown habitat, which led to holes in many rocks. Water keeps flowing through such holes.
Mandwa - Madai - A site is called Madwa - Madai. There are many legends about this.These legends also mention the marriage of Goddess Kauleshwari.
Thanks guys
Mountain Leopard Mahendra