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Ek yatra khajane ki khoje
Ek yatra khajane ki khoje
माता भद्रकाली मंदिर
नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों जैसा कि आप लोगों ने पिछले अध्याय में पढ़ा माता भद्रकाली मंदिर के ऐतिहासिकता और प्राचीनता के बारे में जो कि अपने आप में अद्भुत और अलौकिक है जिसके बारे में कुछ भी वर्णन करना नामुमकिन है फिर भी दोस्तो मेरे पास कुछ और भी जानकारी है माता भद्रकाली मंदिर परिसर के संबंध में जिसे मैं वर्णन कर रहा हूं।
कुटेश्वर स्थान का तालाब - सहस्र बुद्ध स्तूप से तीन सौ फीट की दूरी पर एक तालाब हैं। जैसा कि दोस्तों मेरी जानकारी के अनुसार सन् 1978-79 में हस्त मानव मजदूरी योजना के अंतर्गत इस तालाब की सफाई हुई थी , जिसमें अनेक प्रकार की प्राचीन वस्तुएं जैसे कि लाठी रहित भाले , लोहे की सिक्कड़ , तलवार , टांगी आदि लौह अस्त्र निकालें गए थे। जिनकी 25 है जबकि दो मोटे सिक्कड़ भी पाए गए थे । लगता है कि राजप्रासाद की चारदीवारी में भाले के समान तीक्ष्ण लौह अस्त्र का प्रयोग किया गया था। दोस्तों यह स्थल पुरातत्त्वविदों की बाट जोह रहा है ताकि इस स्थल का सही तरीके से पुरातात्विक उत्खनन किया जा सके।
शीतलनाथ के चरण - चिन्ह- माता भद्रकाली के मुख्य मंदिर से 450 फीट की दूरी पर पश्चिम में एक पत्थर के टुकड़े पर एक जोड़ा चरण-चिन्ह है ।यह चरण चिन्ह जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर शीतल नाथ का है , जिनका काल 10 वी सदी ईसा पूर्व था । दोस्तों जैन साहित्य ' भदुली' को शीतला स्वामी के जन्म स्थान के रूप में निरुपित करता है । आज भी जैन समुदाय मां भद्रकाली को भदुली माता ही कहकर पुकारता है ।
दोस्तों यही से एक मंजूषा में ताम्र पत्र भी मिला था , जिसपर अंकित था 'शीतलनाथ ' इसमें जैन मंत्र भी उल्लेखित थे। दोस्तों ताम्रपत्र पर उल्लिखित लेख जब पढ़ लिया जाएगा तब तथ्य और तिथि पर विशेष प्रकाश पड़ेगा। दोस्तों यह ताम्रपत्र अभी मंदिर परिसर में नहीं है , बल्कि किसी षंडयंत्र का शिकार हो गया है यानि चोरी हो गया है , यदि उसे वापस कर दिया जाता है , तो भक्त जन और इतिहासकार उस सज्जन के ऋणी रहेंगे , जिनके घर की शोभा यह ताम्रपत्र बढ़ा रहा है।
शाही वन पोखर ( रानी पोखर)- दोस्तों मुख्य मंदिर से पूरब और सहस्त्र बुद्ध स्तूप से 300 फीट की दूरी पर मनोहारी बगीचा से सटे पूरब दिशा में राजा का वन पोखर है। जो एक रहस्यमई सुरंग द्वारा महाने नदी से जुड़ा हुआ है। जिससे होकर महाराज और महारानी पोखर में स्नान करने आया करते थे। दोस्तों शाही सरंक्षण में इस पोखर में विभिन्न प्रकार के कमल पुष्प उपजाए जाते थे जो राजा द्वारा स्नान के पश्चात अष्टभुजी देवी दुर्गा माता को पूजा अर्चना कर अर्पित किए जाते थे। कहा जाता है कि महाराज के द्वारा 108 कमल पुष्प प्रतिदिन मां को अर्पित किए जाते थे। दोस्तों यह वन पोखर 500 गुने 300 फीट में फैला हुआ है जो जीर्णोद्धार हेतु शोधकर्ताओं एवं सरकार की ओर देख रहा है।
करुणामयी मां या कनुनिया माई का मंदिर- वन पोखर से लगभग 300 फीट उत्तर स्थित करुणामई मां का मंदिर है , जिसे साधारण बोलचाल की भाषा में कनुनिया माई का मंदिर भी कहा जाता है। यह एक सिद्ध तांत्रिक पीठ है , जहां एक प्रस्तर के नीचे शिवशक्ति या शून्य ओंकार शक्ति है। शिव के बाएं सिद्धि , दाहिनी ओर रिद्धि , उसके ऊपर शिव शक्ति का वरदहस्त , बाएं अर्धचंद्र , अदाएं पूर्ण चंद्र और सबसे ऊपर स्थित अमृत कलश निखिल ब्रह्मांड की सकारात्मक व्याख्या है।
बौद्ध देवी तारा - दोस्तों सन् 1917 में एक.एफ.लिस्टर द्वारा रचित तथा पी.सी.राय द्वारा परिवर्द्धित 1957 ई.मे हजारीबाग जिला गैजेटियर में ऐसा उल्लेख है कि यहां पर अनेक बौद्ध देवी तारा की प्रतिमाएं हैं किंतु दु:खद आश्चर्य है कि एक भी देवी तारा की प्रतिमा अब यहां पर उपलब्ध नहीं है। दोस्तों मां भद्रकाली मंदिर परिसर के पास 25 एकड़ भूमि पर रामकृष्ण मिशन स्कूल की स्थापना की गई है। साथ ही साथ मंदिर परिसर में शादी विवाह कराने के लिए भी उचित व्यवस्था जिला प्रशासन के द्वारा की गईं हैं।।
डोहरा से प्राप्त कलाकृतियां - ईटाखोरी प्रखंड का सीमावर्ती प्रखंड चतरा के भोकतमा पंचायत में डोहरा गांव के निकटवर्ती जंगल में जब 1993 ई. में खुदाई की गई तो जमीन में दबे ऐसे पत्थर प्राप्त हुएं जिनपर विभिन्न देवी देवताओं व अन्य प्रकार की आकृतियां बनी हुई पाई गई।
दोस्तों पत्थरों पर खुद ही हुई इन कलात्मक मूर्तियों में भगवान राम तीर धनुष लिए हुए , लक्ष्मण और भरत ढाल तलवार और चक्र लिए हुए , एवं देवी राधिका दही लेकर इतराती हुई मुद्रा में है , भगवान शंकर त्रिशूल ,डमरु और शंख लिए हुए तपस्या की मुद्रा में हैं। साथ ही साथ अन्य कलाकृतियों में हाथी , मछली , कलश तथा घड़ा व बछड़ों को दूध पिलाती हुई गाय है एवं अन्य पत्थरों पर स्तंभ , चौखट - दरवाजे की कलात्मक आकृतियां बनी हुई है।
इस तरह की कलाकृतियां इटखोरी स्थित भद्रकाली मंदिर परिसर में खुदाई के दौरान पाई गई थी दोस्तों दोनों की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है ।संभवत उस जमाने में डोहरा जंगल और भद्रकाली मंदिर में कुछ संबंध रहा होगा। दोस्तों ऐसा लगता है की डोहरा जंगल में जिन पत्थरों में कलाकृतियां उत्क्रीण पाई गई है , उसी प्रकार के पत्थर भद्रकाली मंदिर परिसर में खुदाई के दरमियान मिले थे , माता भद्रकाली की मूर्ति 9 वी शताब्दी के मध्य में निर्मित बताई जाती है। आश्चर्य की बात है कि दोनों स्थलों के पत्थर एक समान है इसलिए यह कलाकृतियां भी उसी काल की लगती है। उस काल में डोहरा वह भद्रकाली क्षेत्र मगध राजधानी के क्षेत्र में ही था । दोस्तों संभावना व्यक्त की जा रही है कि यह स्थल किसी राजा का किला या गढ़ होगा या फिर कोई शक्ति पीठ। दोस्तों खुदाई स्थल के पूरब में एक नदी भी है जिसकी दूरी 100 गज है , दोस्तों पुराणों के अनुसार जहां - जहां धार्मिक महत्व के स्थान हैं वहां- वहां से नदी गुजरती है।
दोस्तों खुदाई स्थल के लिए सुलभ रास्ता , अंटा मोड़ से दो तीन किलोमीटर दक्षिण की ओर पक्की सड़क है फिर चार किलोमीटर तक जंगली रास्ता तय करके वहां पहुंचना होता है।
महाने नदी का दह - माता भद्रकाली मंदिर से 1 से 2 किलोमीटर की दूरी पर महाने नदी के किनारे एक 'दह' पहाड़ियों और जंगलों से घिरा है जिसकी प्राकृतिक तथा नैसर्गिक सुषमा अपने आप में अनुपम है यहां झुंड के झुंड लोग आनंद उठाने के लिए आते हैं एवं कार्तिक पूर्णिमा के दिन विशुआ के अवसर पर यहां एक मेला लग जाता है। लोग स्नान एवं धूप सेवन का आनंद लेते हैं एवं मेले का लुफ्त उठाते हैं।
कुंदा का ऐतिहासिक किला - प्रतापपुर प्रखंड मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर दक्षिण में कुंदा गांव में राजा का ऐतिहासिक किला आज भी अपनी पूरी मजबूती से खड़ा है । साक्ष्यों के आधार पर कहा जाता है कि इस भव्य किले का निर्माण 17वीं शताब्दी में हुआ था।
कुंदा गुफा - दोस्तों कुंदा के ऐतिहासिक किले से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर कुंदा गुफा मौजूद है जो प्राचीन काल की उन्नत तकनीक का परिचायक है। किले के दक्षिणी भाग से एक संकरी गली गुफा को किले से जोड़ती है एवं एक छिछली धारा गुफा के आधार को पकड़ती हुई उतरती है। दोस्तों पहाड़ी के निचले भाग से कुछ ऊपर पहाड़ी के अंदर ही यह गुफा है गुफा का प्रवेश द्वार इतना संकरा है कि कोई व्यक्ति बिना लेटे इसमें प्रवेश नहीं कर सकता है और गुफा के द्वार से प्रवेश करते हैं एक बड़ा सा हाल सामने मिलता है हॉल की ऊंचाई इतनी है कि कोई व्यक्ति आसानी से खड़ा रह सकता है इस हॉल का का उपयोग पर्यटक विश्राम के लिए करते हैं।
हॉल का संबंध दो कमरों से है जो आपस में एक दूसरे से जुड़े हैं दोस्तों एक कमरे में विशाल शिवलिंग है। यहां के स्थानीय लोगों का कथन है कि दूसरे कमरे में कोई 100 वर्षीय वृद्ध साधु रहते थे जो कहीं चले गए हैं। दोस्तों इस गुफा की सबसे विशिष्ट और उल्लेखनीय बात यह है कि बिना रोशनी के शिवलिंग वाले कमरे में सदैव प्रकाश रहता है जबकि केंद्रीय हॉल में धुप्प अंधेरा रहता है जबकि शिवलिंग कक्ष में हमेशा प्रकाश विद्यमान रहता है।
धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗
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English translate
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Mata Bhadrakali Temple
Hello friends, I would like to extend my heartfelt greetings to you guys, as you read in the last chapter, about the historicity and antiquity of the Mata Bhadrakali Temple which itself is amazing and supernatural about which it is impossible to describe anything. Still friends, I have some more information regarding the Mata Bhadrakali temple complex which I am describing.
Pond of Kuteshwar place - Sahasra is a pond three hundred feet from Buddha Stupa. As per my knowledge, this pond was cleaned in 1978-79 under Hast Manav Wage Yojana, in which many types of antiques such as lathiless spears, iron coins, swords, legs etc. were removed. . Whose 25 are while two thick coins were also found. It seems that sharp iron weapon was used like spear in the boundary wall of Rajprasad. Friends, this site is waiting for archaeologists so that the archaeological excavation of this site can be done properly.
Phase-insignia of Shitalnath- 450 feet from the main temple of Mata Bhadrakali is a paired foot-sign on a stone piece in the west. Was the former. Friends refer to the Jain literature 'Bhaduli' as the birth place of Sheetla Swamy. Even today, the Jain community calls Mother Bhadrakali as Bhaduli Mother.
Friends, a copper letter was also found in a manusha from which Jain mantra was also mentioned in it. Friends, when the article mentioned on the copperplate will be read, then the fact and date will be special light. Friends, this copperplate is not currently in the temple premises, but has fallen victim to a conspiracy, ie it has been stolen, if it is returned, the devout people and historians will be indebted to the gentleman, whose house adorned this copper plate. Used to be.
Shahi Van Pokhar (Rani Pokhar) - East of Friends main temple and 300 feet away from Sahastra Buddha Stupa is Raja forest Pokhar in the east direction adjoining the picturesque garden. Which is connected to the Mahane River by a mysterious tunnel. Through which Maharaj and Maharani used to come to bathe in Pokhar. In the royal preservation, various types of lotus flowers were made in this pokhar which were offered by the king after bathing and offered obeisance to Ashtabhuji Devi Durga Mata. It is said that 108 lotus flowers were offered daily by Maharaj to the mother. Friends, this forest puddle is spread over 500 times 300 feet, which is looking towards the researchers and the government for renovation.
Temple of Karunamayi Maa or Kanuniya Mai - Situated about 300 feet north of Van Pokhar is the temple of Karunamai Maa, also colloquially known as Kanuniya Mai's Temple. It is a Siddha Tantric Peetha, where there is Shivshakti or zero Omkar Shakti under a stone. Shiva's left Siddhi, Riddhi on the right, Shiva's power over him, the left half moon, Ada Purna Chandra and the nectar Kalash on the top are positive interpretations of Nikhil universe.
Buddhist Goddess Tara - Friends, in 1917 AD Hazaribagh District Gadgetier, written by A. F. Lister and augmented by PC Rai, mentions that there are many statues of Buddhist Goddess Tara here but sad That a single goddess Tara's statue is no longer available here. Friends, Ramakrishna Mission School has been established on 25 acres of land near the premises of Maa Bhadrakali Temple. At the same time, proper arrangements have been made by the district administration for getting married in the temple premises.
Artifacts received from Dohra - When the excavation was done in 1993 AD in the forest adjacent to the village of Dohra in Bhoktama Panchayat of Chatra, the border block of Itakhori block, such stones were found buried in the ground on which various deities and other types of figures were found to be intact. .
In these artistic idols on the stones themselves, Lord Ram carried arrows, bow, Lakshmana and Bharata carried a sword and chakra, and Goddess Radhika is in a moving pose with curd, Lord Shankar trishul, damru and conch with austerity Are in At the same time, among other artifacts are elephants, fish, urns, and cows feeding the pot and calves, and on other stones, the artistic motifs of pillars, door-doors remain.
Such artifacts were found during excavations at the Bhadrakali temple complex at Itkhori. The distance of the two friends is about 35 kilometers. Probably there was some connection between the Dohra forest and the Bhadrakali temple at that time. Friends, it seems that the stones in which the artifacts have been found in the Dohra forest were found during excavation in the Bhadrakali temple complex, the idol of Mata Bhadrakali is said to be built in the middle of the 9th century. Surprisingly, the stones of both the sites are the same, so these artifacts also appear to be of the same period. In that period, Dohra was in the area of the capital of Magadha, Bhadrakali region. Friends, chances are being expressed that this place will be a fort or stronghold of a king or a Shakti Peeth. To the east of the Friends excavation site is a river which is 100 yards away, according to the Friends Puranas - where there are places of religious importance - the river passes from there.
Friends, the accessible road to the excavation site is two to three kilometers south of Anta Mor, a paved road and then a four-kilometer wild path has to be reached there.
The river Mahane - 1 to 2 kilometers from Mata Bhadrakali temple is surrounded by a 'fire' hills and forests on the banks of river Mahane whose natural and scenic Sushma is unique in its own right, here flocks of herds come to enjoy And on the occasion of Kartik Purnima, a fair is organized here on the occasion of Vishua. People enjoy bathing and sunshine and enjoy the fair.
Historical Fort of Kunda - Raja's historical fort in Kunda village, about 14 km south of Pratappur block headquarters, still stands in its full strength. Based on the evidence, this grand fort is said to have been built in the 17th century.
Kunda Cave - Friends, Kunda Cave is present about 1 kilometer from the historical fort of Kunda, which reflects the advanced technology of ancient times. A narrow lane from the southern part of the fort connects the cave with the fort and a shallow stream descends holding the base of the cave. Friends, this cave is inside the hill, some above the bottom of the hill, the entrance of the cave is so narrow that no person can enter it without lying down and when entering from the entrance of the cave, a big hall is found in front of the hall. The height is so that one can easily stand, this hall is used by tourists for relaxation.
The hall is related to two rooms which are connected to each other. Friends, there is a huge Shivling in one room. The locals here state that in the second room lived some 100-year-old monks who have gone somewhere. Friends, the most distinctive and remarkable thing of this cave is that the lightless Shivling room always has light, while the central hall has a bluish darkness while the Shivlinga room always has light.
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Thanks guys
Mountain Leopard Mahendra 🧗
Ancient artefact
In museum
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