Sunday, June 28, 2020

एक यात्रा खजाने की खोज में mountain lappord Mahendraके संग भाग-6 का अगला अध्याय

Ek yatra khajane ki khoje




                  ताम्बाखानी गुफा का रहस्य
                 ______________________

     
नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों को हार्दिक अभिनन्दन करता हूं ।



जैसा कि दोस्तों कल आपलोगो ने पढ़ा कि कैसे मैं अपने अतित के सपने में खोया हुआ हुं और अतित की घटनाएं चलचित्र की भांति मेरे आंखों के सामने घटित हो रही थी । जिसे मैं आप लोगों के लिए सजीव वर्णन कर रहा हूं ।  दोस्तों जैसा कि आप लोगों ने पढ़ा कि कैसे हमारे दण्डक वन में शिकार खेलने जाने की बात सुनकर  हमारी माताएं  भड़क जाती हैं  । और हम माताओं के पिछे पिछे रसोईघर की ओर चल पड़ते हैं । जहां पर  सभी लोग हमारा पहले से ही इंतज़ार कर रहे होते हैं । और हम सभी भी अपने अपने जगहों पर  बैठ जाते हैं । और माताएं खाना परोसने के लिए   जहां खाना पक रहा होता हैं वहां चलीं जाती हैं  माहौल एकदम शांत था जैसे कोई तुफ़ान आने वाला हों  । हम सभी चुपचाप बैठे हुए थे कोई कुछ नहीं बोल रहा था  और सभी खाने का इंतजार कर रहे थे । और एक दूसरे को देख रहे थे और आंखों  आंखों में ही इशारा कर रहे थे  कि क्या हुआ आप लोगों की माताएं गुस्से में है क्या । तभी राजा भाई बोलते हैं हां पिताजी हमारे दण्डक वन जाने की बात सुनकर   वह बहुत गुस्से में है और बोल रही थी कि हमें किसी भी हालत में दण्डक वन नहीं जाने देंगी । हम सभी बातें कर ही रहे थे कि तभी माताएं  खाना लेकर आ जाती हैं  और सबसे पहले हमें खाना परोसती हैं  और  पिताजी जी को खाना देते हुए बोलतीं हैं  कि आप लोगों को जरा सा भी  माया है कि नहीं आप लोगों को अपने बच्चों को कोई भेजता है क्या  दण्डक वन जैसे  खतरनाक जंगलों में  । जहां से कोई आज तक बच के आ पाया है  सिवाय आप सभी भाईयों को छोड़कर ।हम अपने बच्चों की जान जोखिम में नहीं डालेंगे । और इन्हें कभी नहीं जाने देंगे दण्डक वन की यात्रा पर और अगर ये जायेंगे तो हम भी साथ जायेंगे। नहीं तो हम अपने बच्चों को नहीं जाने देंगे । तभी बड़े पापा बोलते हैं कि आप लोग डरते क्यो हो । हमारे बच्चे कोई मामूली  राजकुमार नहीं है  वे लोग मां काली के भक्त  हैं और इस महानतम योद्धाओं में मे से एक है और मां काली ने स्वंय वरदान दिया है  वे हमेशा हमारे बच्चों की रक्षा करेंगी।  और बहुत सारे अस्त्र शस्त्र भी वरदान मे दिये हैं लोक कल्याण के लिए ।  और हमारे बच्चे दण्डक वन  राक्षसों का सफाया कर के लोगों का कल्याण करने के लिए ही जा रहे हैं । तभी माता श्री बोलती हैं कि क्या लोगे के कल्याण के लिए हमारे बच्चों ने ही जन्म लिया है और वैसे भी  जब आप लोग गये थे दण्डक वन  तो आप लोगों को आने में दो वर्ष लग गए थे । और इन दो वर्षों में  हमने कितने कष्ट सहे थे जो हम ही जानते हैं  और आज फिर हमारे बच्चों को भी मुसीबत में डाला जा रहा है। और फिर वे रोने लगते हैं और पिता श्री उनको  समझाने में लग जाते हैं । और हमलोग खाना खाने में व्यस्त हो जाते हैं । तभी अखिलेश के पिताजी यानी हमलोगो के छोटे चाचा श्री बोलते हैं  मजाक मजाक में  अरे भाभी जी  जाने दिजिए हमारे बच्चों को  ये लोग सिर्फ दण्डक वन ही नहीं  बल्कि  दण्डक वन के उत्तरी छोर पर स्थित रूप नगर भी जायेंगे  पता है भाभी जी वहां की कन्याये बहुत ही सुंदर होती हैं ।  हमारे बच्चे वहां से आपलोगो के लिए  बहुये  लायेंगे। सुंदर सुंदर सी बहुये  । तभी छोटी चाची गुस्सा के बोलती हैं आप को तो सिर्फ बहुओं की ही पड़
 हुई हैं  और सभी लोग ठहाके ्् लगा कर हंसने लगते हैं । 





____________________________________________________

                           English translate
                           __________________




Hello friends I extend my hearty greetings to all of you mountain leopard Mahendra.




 As friends yesterday, you read how I was lost in my dream of Atith and the events of Atit were happening in front of my eyes like a movie.  Which I am describing lively for you guys.  Friends, as you have read about how our mothers are infuriated by hearing about going hunting in Dandak forest.  And we walk to the kitchen behind the mothers.  Where everyone is already waiting for us.  And we all sit in our own places.  And the mothers go to the place where the food is being cooked to serve, the atmosphere was very calm as if a storm is coming.  We were all sitting quietly, no one was saying anything and all were waiting to eat.  And they were looking at each other and were pointing in their eyes, what happened to the anger of your people?  That's why Raja Bhai says yes, father is very angry after listening to our visit to Dandak forest and was saying that we will not let Dandak forest in any condition.  We were all talking that only then the mothers bring food and first of all serve us food and while giving food to Dad ji, you say that you guys have a little illusion or not you send someone to your children  Is it in dangerous forests like Dandak forest?  Except where everyone has survived till today, except you all brothers. We will not put the lives of our children at risk.  And they will never let them go on the journey to Dandak forest and if they go, we will also go together.  Otherwise we will not let our children go.  Only then, my father says, why are you afraid?  Our children are no ordinary princes. They are the devotees of Mother Kali and one of the greatest warriors and mother Kali has given her own boon. She will always protect our children.  And many weapons are also a boon for public welfare.  And our children are going to the welfare of the people by eliminating the Dandak forest demons.  That is why Mother Shri says that our children have taken birth for the welfare of the people, and anyway when you went to Dandak forest, it took two years for you to come.  And in these two years, we suffered so much that we only know and today our children are also being put in trouble.  And then they start crying and father Sri starts to convince them.  And we get busy eating food.  That is why Akhilesh's father, that is, the younger uncle of Hamalogo, speaks jokingly, "Hey brother-in-law, let our children know that these people will not only visit Dandak forest but also Roop Nagar situated at the northern end of Dandak forest."  It is beautiful.  Our children will bring a large number of people from there.  Beautiful beautiful daughters.  That's when the little auntie speaks angrily, you only need daughters-in-law

 And everyone laughs and laughs




            और हम सभी लोग अभी खाना खा ही रहे थे कि सेनापति जी  का आगमन होता हैं जो कि हमारे  मामा जी भी लगते थे।  मामा जी को देखते ही मां रोने लगती है । मामा जी को पता था कि हम सभी दण्डक वन  जा रहे थे । मामा जी भी अपने बहनों में सबसे छोटे थे ।  और बहनों के दुलारे भी ।  इसलिए मां रो रो कर मामा जी को बोलने लगी  देखो  भाई  तुम्हारे जिजा जी  बच्चों को दण्डक वन के खतरनाक यात्रा पर भेज रहे  और हमारी बात भी नहीं सुन रहे हैं ।  अभी मामा जी कुछ कहते कि तभी पिता श्री ने कहा  अरे साले साहब बैठिए और खाना खाईये ।  और माता श्री से बोलते हैं अरे भाग्यवान रोती क्यो हो  हमारे बच्चे अकेले थोड़े ही जा रहें हैं । इनके साथ तो विश्व के महानतम योद्धाओं में से एक  आपके छोटे भाई और हमारे सेनापति   धर्म वीर जी । इतना सुनते ही  मां और दहाड़े मारकर रोने लगती है ।



_________________________________________________
        English translate
      _____________________



4


 And all of us were just eating food that the arrival of the commander-in-law, which our maternal uncle also used to look like.  Mother starts crying as soon as she sees maternal uncle.  Mama ji knew that we were all going to Dandak forest.  Mama ji was also the youngest of her sisters.  And the sisters also cherished.  That's why the mother started crying and crying to her uncle, see brother, your brother-in-law is sending children on a dangerous journey to Dandak forest and they are not even listening to us.  Right now Mama ji would say something, that is when Father Shri said, "Oh brother-in-law, sit and eat."  And mother says to Shri Shree, why are we lucky people? Why are our children going a little alone?  With him, one of the greatest warriors of the world, your younger brother and our general Dharm Veer Ji.  On hearing this, the mother starts crying in broad daylight.


 ________________________________________________

धन्यवाद दोस्तों आगे कि वृतांत मैं कल सुनाऊंगा  क्योंकि इसी  समय  अलख निरंजन की आवाज सुनाई देती हैं  और वहीं चमत्कारी बाबा का आगमन होता हैं । और सभी लोग खाने पर से उठ कर । बाबा जी को  दण्डवत करने लगते हैं   और बाबा जी सभी को आशीर्वाद देते हैं  ।  और आगे क्या होता हैं वह कल बताता हूं दोस्तों ।


धन्यवाद दोस्तों

________________________________________________
     English translate
      __________________


Thank you guys, I will narrate the story tomorrow because at this time, the voice of Alakh Niranjan is heard and there is the arrival of the miraculous Baba.  And everybody got up from eating.  Baba starts worshiping Baba ji and Baba ji blesses everyone.  And what happens next, I will tell you tomorrow friends.



 Thanks guys

_____________________________________


एक यात्रा साधु संतो और संन्यासियों की खोज में mountain lappord Mahendra के संग

Ek yatra khajane ki khoje


 


              साधु संतो और संन्यासियों की रहस्यमई दुनिया
__________________________________________________ 




Apart from this, there have been many sages like Valmiki and Brahmrishi in India.  Many Brahmarshis themselves are Lord Shri Rama Kalin, they gave astra-sastra and weapons to Lord Rama to fight with knowledge and Ravana.


 #Brahmarshi:


 The sages of the Brahmin clans, whose gotras went on.  Who were theologians.


 Those who lived in Brahmlok.


 The mantras of the Vedas were called sages.


 Those who interviewed religion were also called sages…. Rishya: Interviewed creation.


 He was the inspirational Ojasvita, the perfect poet of Rijuta.  His former number was seven.  He was called the Great Bear.


 His name comes in Shatapatha Brahmin.


 In the Mahabharata, it is widely used in various places.  Names also varied.


 Vishnupuran also added some names.


 A constellation of Saptarishis in the sky is considered.  Which revolves around the pole.


 Single Brahmarshi are as follows


 Arvavasu, Kashyapa, Dadhichi, Bharadwaja, Bhrigu, Krupa, Ashtavakra, Gautama, Daman, Manankanaka, Markandeya, Atri, Chyavan, Devasarman, Ruchik, Likha, Venus, Orva, Jajali, Narada, Lomash, Vasistha, Vyas, Pulastya, Vishvamitra,  Vairampathan.


 # Devarshi:


 Devarshi means - 'celestial sage';  It is one of the three categories of sages, the other two are Brahmrishi and Rajrishi.  The Rajrishi was the Kshatriya king who attained the status of a sage;  The difference between a sage and a Brahmrishi was austerities and siddhis and his life-span.


 A sage living in the world of gods and considered to be his counterpart;  It is called Devarshi.


 #great Bear :


 Great seven saints of india


 A circle of seven stars appears in the sky, they are called the Circle of the Saptarshis.  The stars of the said mandal are named after the great seven saints of India.  A detailed discussion of the position, speed, distance and extent of the said mandala is found in the Vedas.  There are seven sages in each manvantara.  Here is a brief introduction of seven great Rishis born in the era of Vaivavatav Manu.


 Rishi, the author of the Vedas: There are about one thousand Suktas in the Rigveda, about ten thousand mantras.  There are about twenty thousand in the four Vedas and the poets who composed these mantras, we call them sages.  Like the mantras of the other three Vedas, many sages have contributed to the creation of mantras of the Rig Veda.  But among them, there are seven sages whose clans had a long tradition of the sages who created the mantra.  These total traditions are stored in the Sukta ten mandalas of the Rig Veda and there are two to seven or six mandalas which we call the dynasty from tradition as they have been assembled with the mantras of the sages of the six sages.


 The names of the seven sages or sage clans revealed on studying the Vedas are as follows: - 1. Vashistha, 2. Vishvamitra, 3. Karma, 4. Bharadwaja, 5. Atri, 6. Vamdev and  7.Shonak.


 In Puranas, different nomenclature is found in the name of Sapta Rishi.  According to Vishnu Purana, the Saptarishi of this manvantara is as follows: - Vasishtakashipo Yatrairjamadagnissagaut.  Vishwamitrabharadvajo sapt saptarshyobhavn.  That is, in the seventh Manvantara, the Saptarishi is as follows: - Vashistha, Kashyapa, Atri, Jamadagni, Gautama, Vishwamitra and Bharadwaja.


 Apart from this, other nomenclature of Puranas are as follows: - These are Ketu, Pulah, Pulastya, Atri, Angira, Vashishta and Marichi respectively.


 In the Mahabharata, two names of Saptarshis are found.  The names of Kashyap, Atri, Bhardwaj, Vishwamitra, Gautama, Jamadagni and Vashishtha appear in one namavali, and five names are changed in the second namavali.  Kashyap and Vashistha remain there, but instead of the rest, the names Marichi, Angiras, Pulastya, Pulah and Kratu come.  In some Puranas, Kashyapa and Marichi are considered to be one, while elsewhere Kashyapa and Kanva are considered synonymous.  Here is an introduction to the Saptarishis according to the Vedic nomenclature.


 1. #Vashistha: Who does not know Rishi Vasishtha, the Vice-Chancellor of King Dasharatha.  He was the guru of the four sons of Dasaratha.  At the behest of Vashistha, Dashrath sent his four sons along with sage Vishwamitra to slay the demons.  There was also a battle for Kamadhenu cow in Vasistha and Vishwamitra.  When Vashistha gave the idea of ​​curb on the royalty, Vashishtha of his family made a new history by creating hundred suktas together on the banks of river Saraswati.


 2. # Vishvamitra: Vishwamitra was the king before he was a sage and he fought with sage Vasistha to grab Kamadhenu cow, but he lost.  This defeat inspired him to austerity.  Vishwamitra's penance and the story of Maneka dissolving his penance are world famous.  Vishwamitra, on the strength of his penance, had sent Hung to heaven in physical form.  In this way there are innumerable tales of sage Vishwamitra.


 Vishwamitra is believed to have created a different heavenly world in a fierce penance at the same place in Haridwar today where Shantikunj is there.  Vishwamitra taught this country to make Richa and composed the Gayatri Mantra, which has been living continuously in the heart of India and on Jeehana for thousands of years till date.


 3. # Kanva: It is believed that the most important Yajna of this country was organized by the Kanavas.  Kanva was a sage of the Vedic period.  In his ashram, Shakuntala, the wife of King Dushyant of Hastinapur and his son Bharat were raised.


 4. #Bhardwaja: Bharadwaja-sage holds a high position among the Vedic sages.  Bhardwaj's father was Jupiter and mother Mamta.  Bharadwaja was preceded by the sage Rama, but his longevity suggests that Rama had gone to his ashram at the time of exile, which was historically a treaty of Treta-Dwapara.  It is believed that one of the Bharadwajas, Bharadwaja Vidath, succeeded Dushyanta's son Bharata and continued to compose the mantra while reigning.


 Among the sons of Rishi Bharadwaj, 10 sages are the mantrasadha of the Rigveda and a daughter named 'Ratri' is also considered to be the mantraadhika of the night Sukta.  The seer Bharadwaja is the sage of the sixth division of ्वgveda.  There are 765 mantras of Bharadwaj in this circle.  23 mantras of Bharadwaj are also found in the Atharvaveda.  The creator of 'Bhardwaj-Smriti' and 'Bhardwaj-Samhita' was also Rishi Bhardwaj.  Rishi Bharadwaj had composed a large book called 'Yantra-Sarvasva'.  Some part of this book has been published by Swami Brahmamuni under the name of 'Vimana-Shastra'.  This book describes the manufacture of various metals for high and low level aircraft.


 5. #Atri: The seer of the fifth division of the Rigveda, Maharishi Atri was the son of Brahma, the father of Soma and husband of Kardam Prajapati and Anusuya, daughter of Devahuti.  When Atri went out, Tridev started asking for alms in the disguise of the Brahmin at Anasuya's house and told Anusuya that we will accept alms only when you take off all your clothes, then Anusuya, by virtue of her faithfulness, made the above three gods ignorant children  Gave them alms  Mata Anusuya preached Pativrata to Goddess Sita.


 Atri Rishi contributed to the development of agriculture in this country like Prithu and Rishabh.  The Atri people had crossed the Indus and gone to Paras (today's Iran), where they preached a yajna.  It was due to Atriya that the religion of Agnipalyas started the Parsi religion.  The ashram of Atri Rishi was in Chitrakoot.  It is believed that as a result of the austerity of the Atri-couple and the happiness of the trinity, Mahayogi Dattatreya was born as part of Vishnu, Moon as part of Brahma, and Mahamani Durvasa as part of Shankara and Maharishi Atri and son of Goddess Anusuya.  Ashwini Kumar was also pleased with Rishi Atri.


 6. #Vamdev: Vamdev gave Samagan (meaning music) to this country.  Vamdev is considered to be the sutradrushta of the fourth division of the Rigveda, the son of the sage Gautama, and the philosopher of the birthright.


 7. # Shaunak: Shaunak won the singular honor of the Vice Chancellor by running a Gurukula of ten thousand students and any sage achieved such honor for the first time.  Vedic acharya and sage who was the son of sage Shunak.


 Again, Vashistha, Vishwamitra, Kanva, Bharadwaj, Atri, Vamdev and Shaunak - these are the seven sages who gave so much to this country that the grateful nation gave them such an immortality by sitting in the constellations of the sky that the Saptarshi would hear the words  Our imagination rests on the constellations of the sky.


 Apart from this, it is believed that Agastya, Kashyapa, Ashtavakra, Yajnavalkya, Katyayan, Aitareya, Kapil, Gemini, Gautam etc. all sages are of the same status as the above seven sages.


 We often address all Brahmins with different names like Pandit ji, Guru ji, Acharya ji, Brahmin deity etc.  But have you ever tried to know the meaning behind these names?  Would not have done because what is kept in the name is everyone's thinking.  But I have made a small effort to know about these names which I am presenting to you.  First let's start with Guru because Guru is the first


 #Master


 Gu means darkness and Ru means light.  That is, the person who leads you from darkness to light is a guru.  Guru means the destroyer of darkness.  There is a lot of difference between people giving discourses on spiritual science or religious subjects and between gurus.  The Guru speaks of self-development and the divine.  Every Guru is a saint;  But every saint does not have to be a guru.  Only a few saints are eligible to become a guru.  Guru means the guide of Brahman knowledge.


 Goswami Tulsidas ji has written in the Ramcharit Manas lecturing the glory of Guru


 Guru post Raz Mridu Manjul Anjan.  Nayan amiya visha dosha bibhanjan॥

 Tehin kari bimal bibek bilochan.  Barnaun Ram Charit Bhavan Mochan ॥1॥



 Connotation: - The king of the feet of Shri Guru Maharaj is a gentle and beautiful nemesis, who is the destroyer of the defects of the eyes.  By refining the eyes of the conscience from that person, I describe Shri Ramcharitra, who is freed from the bondage of the world ॥1॥.


 #Teacher


 Acharya is said to be one who has knowledge of Vedas and scriptures and who works to teach students in Gurukul.  The meaning of an Acharya is that one who is a good knowledgeer of ethics, rules and principles etc. and teaches others.  He who is a good knowledgeer of rituals and acts as the chief priest in yagyas etc. was also called Acharya.  Nowadays, Acharya is called the principal officer and teacher of a college.


 #Purohit


 The priest is made up of two words: 'Par' and 'Hita', that is, a person who worries about the welfare of others.  In ancient times, the Ashram chief was called a priest, where education was imparted.  However, the main person performing the sacrificial act was also called a priest.  This priest is also appointed to perform all kinds of rites.  In ancient times, priests were also related to a royal family.  That is, priests were appointed in the royal court, who were involved in the advisory committee as well as seeing the work of religion.


 #Priest


 The meaning of this word related to worship and recitation is automatically revealed.  That is, the priest who recites the worship at the temple or any other place.  A person who worships an idol or statue of a deity is called a priest.


 #Pandit


 Pandah means scholarship.  To be proficient in a particular knowledge is called erudition.  Pandit means Dash or skilled in a particular knowledge.  It can also be called scholar or master.  The one possessing knowledge of a particular discipline is a scholar.  In ancient India, the great scholar of Vedas and scriptures etc. was called Pandit.  This priest is called Pandey, Pandey, Pandya.  Nowadays the name Pandit has also become a surname of Brahmins.  The Brahmins of Kashmir are also known as Kashmiri Pandits.  There is a practice of calling Pandit's wife as Panditin in native language.


 #Brahmin


 The word Brahmin is derived from Brahm.  The Brahman, who does not worship anyone except God, is called a Brahmin.  The priest who makes his living by offering priesthood is not a Brahmin, a yatchak.  An astrologer or one who makes his or her living with constellation is not a Brahmin, an astrologer.  The Pandit calls the expert of a subject and the person who creates the story is a narrator, not a Brahmin.  Thus anyone who performs karma except Veda and Brahma is not a Brahmin.  Whose mouth does not pronounce the word Brahman, it is not a Brahmin.  The Smritipuranas describe the eight distinctions of Brahman - mere, Brahmin, Srotriya, Anuchan, Embryo, Rishikalpa, Rishi and Muni.  The eight types of Brahmins are mentioned earlier in the Shruti.  Apart from this, Brahmins who are elevated from descent, knowledge and virtue are called 'Trishukla'.  The Brahmin is also called the Dharmist Vipra and Dwij which has no relation with any caste or society.


 Har Har Har Mahadev



साधु, संत, सन्यासी, अघोरी, आचार्य, योगी, यति-मुनि, ऋषि, महर्षि, ब्रम्हर्षि, राजऋषि, देवर्षि, सप्तऋषि कौंन हैं ?
ब्राह्मण, गुरु, आचार्य, पुरोहित, पुजारी, पण्डित
आइए जानते हैं इनके बीच अंतर व समानता।

#साधु:

साधु, संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ 'सज्जन व्यक्ति' से है। लघुसिद्धान्तकौमुदी में कहा है- 'साध्नोति परकार्यमिति साधुः' (जो दूसरे का कार्य कर देता है, वह साधु है।)। वर्तमान समय में साधु उनको कहते हैं जो सन्यास दीक्षा लेकर गेरुए वस्त्र धारण करते है उन्हें भी साधु कहा जाने लगा है। साधु(सन्यासी) का मूल उद्देश्य समाज का पथप्रदर्शन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करना है। साधु सन्यासी गण साधना, तपस्या करते हुए वेदोक्त ज्ञान को जगत को देते है और अपने जीवन को त्याग और वैराग्य से जीते हुए ईश्वर भक्ति में विलीन हो जाते है।

#नागा_साधू :

महाकुंभ, अर्धकुंभ या फिर सिंहस्थ कुंभ में आपने नागा साधुओं को जरूर देखा होगा. इनको देखकर आप सभी के मन में अक्सर यह सवाल उठते होंगे कि - कौन हैं ये नागा साधु, कहां से आते हैं और कुंभ खत्म होते ही कहां चले जाते हैं ? आइए आज हम लोग चर्चा करते है हिंदू धर्म के इन सबसे रहस्यमयी लोगों के बारे में.

"नागा" शब्द बहुत पुराना है. यह शब्द संस्कृत के 'नग' शब्द से निकला है, जिसका अर्थ 'पहाड़' से होता है. इस पर रहने वाले लोग 'पहाड़ी' या 'नागा' कहलाते हैं. 'नागा' का अर्थ 'नग्न' रहने वाले व्यक्तियों से भी है. भारत में नागवंश और नागा जाति का बहुत पुराना इतिहास है. शैव पंथ से कई संन्यासी पंथों और परंपराओं की शुरुआत मानी गई है.

भारत में प्राचीन काल से नागवंशी, नागा जाति और दसनामी संप्रदाय के लोग रहते आए हैं. उत्तर भारत का एक संप्रदाय "नाथ संप्रदाय" भी दसनामी संप्रदाय से ही संबंध रखता है". 'नागा' से तात्पर्य 'एकबहादुर लड़ाकू व्यक्ति' से लिया जाता है. जैसा कि हम जानते है कि - सनातन धर्म के वर्तमान स्वरूप की नींव आध्य शंकराचार्य ने रखी थी.

शंकराचार्य जी का जन्म 8 वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था. उस समय भारत सम्रद्ध तो बहुत था परन्तु धर्म से विमुख होने लगा था. भारत की धन संपदा को लूटने के लालच में तमाम आक्रमणकारी यहां आ रहे थे. कुछ उस खजाने को अपने साथ वापस ले गए तो कुछ भारत की दिव्य आभा से ऐसे मोहित हुए कि यहीं बस गए,

लेकिन कुल मिलाकर सामान्य शांति-व्यवस्था बाधित थी. ईश्वर, धर्म, धर्मशास्त्रों को तर्क, शस्त्र और शास्त्र सभी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था. ऐसे में आध्य शंकराचार्य ने सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के लिए कई बड़े कदम उठाए जिनमें से एक था देश के चार कोनों पर चार पीठों (चार धाम) का निर्माण करना.

आदिगुरु आध्य शंकराचार्य को लगने लगा था कि - केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही इन चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं है. इसके लिए अधर्मियों से युद्ध करने के लिए धर्मयोद्दाओं की भी आवश्यकता है. तब उन्होंने जोर दिया कि युवा साधु व्यायाम करके अपने शरीर को मजबूत बनाए और हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें.

इसके लिए उन्होंने कुछ ऐसे मठों का निर्माण किया, जिनमे व्यायाम करने और तरह तरह के शस्त्र संचालन का अभ्यास कराया जाता था, ऐसे मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा. आम बोलचाल की भाषा में भी अखाड़े उन जगहों को कहा जाता है जहां पहलवान कसरत के दांवपेंच सीखते हैं. कालांतर में कई और अखाड़े अस्तित्व में आए.

शंकराचार्य ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि - मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर शक्ति का प्रयोग करें. इस तरह विदेशी और विधर्मी आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने एक भारत को सुरक्षा कवच देने का काम किया. विदेशी आक्रमण की स्थिति में नागा योद्धा साधुओं ने अनेकों युद्धों में हिस्सा लिया.

प्रथ्वीराज चौहान के समय में हुए मोहम्मद गौरी के पहले आक्रमण के समय सेना के पहुँचने से पहले ही नागा साधुओ ने कुरुक्षेत्र में गौरी की सेना को घेर लिया था जब गौरी की सेना कुरुक्षेत्र और पेहोवा के मंदिरों को नुकशान पहुंचाने की कोशिश कर रही थी. उसके बाद प्रथ्वी राज की सेना ने गौरी की सेना को तराइन (तरावडी) में काट दिया था.

इस युद्ध के बाद पड़े कुम्भ में , नागा योद्धाओं को सम्मान देने के लिए, प्रथ्वीराज चौहान ने कुम्भ में सबसे पहले स्नान करने का अधिकार दिया था. तब से यह परम्परा चली आ रही है कि - कुम्भ का पहला स्नान नागा साधू करेंगे. इन नागा धर्म योद्धाओं ने केवल एक में ही नहीं बल्कि अनेकों युद्धों में विदेशी आक्रान्ताओं को टक्कर दी.

दिल्ली को लूटने के बाद हरिद्वार के विध्वंस को निकले "तैमूर लंग" को भी हरिद्वार के पास हुई ज्वालापुर की लड़ाई में नागाओं ने मार भगाया था. तैमूर के हमले के समय जब ज्यादातर राजा डर कर छुप गए थे. जोगराज सिंह गुर्जर, हरवीर जाट, राम प्यारी, धूलाधाडी , आदि के साथ साथ नागा योद्धाओं ने तैमूर लंग को भारत से भागने पर मजबूर किया था.

इसी प्रकार खिलजी के आक्रमण के समय नाथ सम्प्रदाय के योद्धा साधुओं ने कडा मुकाबला किया था. अहेमद शाह अब्दाली के आक्रमण के समय जब उत्तर भारत के राजाओं ने नोटा दबा दिया था और मराठा सेना पानीपत में हार गई थी तब मथुरा - वृन्दावन - गोकुल की रक्षा के लिए 40,000 नागा योद्धाओं ने अब्दाली से टक्कर ली थी..

पानीपत की हार का बदला लेने के लिए जब पेशवा माधवराव ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया था तो नागा योद्धाओं ने अब्दाली के स्थानीय मददगारों को मारा था. इस प्रकार आप अब यह समझ चुके होंगे कि - नागा साधू सनातन धर्म के रक्षक धर्म योद्धा हैं. यह सांसारिक सुखों से दूर रहकर केवल धर्म के लिए जीते हैं.

अब बात करते हैं कि - नागा साधू कौन बनते हैं तथा कैसे बनते है?
 नागाओं को आम दुनिया से अलग और विशेष बनना होता है. नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन है.  नागा साधु बनने के लिए इतनी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है कि शायद कोई आम आदमी इसे पार ही नहीं कर पाए इस प्रक्रिया को पूरा होने में कई साल लग जाते हैं.

जब कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए किसी अखाड़े में जाता है, तो उसे कभी सीधे-सीधे अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता, पहले अखाड़ा अपने स्तर पर ये पता लगाता कि वह साधु क्यों बनना चाहता है? उस व्यक्ति की तथा उसके परिवार की संपूर्ण पृष्ठभूमि देखी जाती है. पहले उसे नागाा सन्यासी जीवन की कठिनता से परिचय कराया जाता है

अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है, तो ही उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है. अखाड़े में प्रवेश के बाद उसको ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी जाती है. उसके तप, ब्रह्मचर्य, वैराग्य, ध्यान, संन्यास और धर्म का अनुशासन तथा निष्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं।

इसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक लग जाते हैं. अगर अखाड़ा यह निश्चित कर लें कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है. इसके बाद वह अपना श्राद्ध, मुंडन और पिंडदान करते हैं तथा गुरु मंत्र लेकर संन्यास धर्म मे दीक्षित होते है. अपना श्राद्ध करने का मतलब सांसारिक रिश्तेदारों से सम्बन्ध तोड़ लेना.

कई अखाड़ों मे महिलाओं को भी नागा साधु की दीक्षा दी जाती है.वैसे तो महिला नागा साधु और पुरुष नागा साधु के नियम कायदे समान ही है, फर्क केवल इतना ही है की महिला नागा साधु को एक पीला वस्त्र लपेटकर रखना पड़ता है और यही वस्त्र पहन कर स्नान करना पड़ता है. उन्हें नग्न स्नान की अनुमति नहीं है,

जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा से सफलतापूर्वक गुजर जाता है, तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है. उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं. ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं. इन्हें भस्म, भगवा, रूद्राक्ष आदि चीजें दी जाती हैं. यह नागाओं के प्रतीक और आभूषण होते हैं.

महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है. इसमें सबसे पहले उसे अपने बाल कटवाने होते हैं. अवधूत रूप में दीक्षा लेने वाले को खुद का तर्पण और पिंडदान करना होता है. ये पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते हैं. अब ये संसार और परिवार के लिए मृत हो जाते हैं. इनका एक ही उद्देश्य होता है सनातन और वैदिक धर्म की रक्षा.

नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती. अगर वस्त्र धारण करने हों, तो सिर्फ गेरुए रंग का एक वस्त्र ही नागा साधु पहन सकते हैं. नागा साधुओं को शरीर पर सिर्फ भस्म लगाने की अनुमति होती है. नागा साधुओं को विभूति एवं रुद्राक्ष धारण करना पड़ता है, उन्हें अपनी चोटी का त्याग करना होता है और जटा रखनी होती है.

नागा साधुओं को 24 घंटे में केवल एक ही समय भोजन करना होता है. वो भोजन भी भिक्षा मांग कर लिया गया होता है. एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है. अगर सात घरों से भिक्षा मांगने पर कोई भिक्षा ना मिले, तो वह आठवे घर में भिक्षा मांगने भी नहीं जा सकता. उसे उस दिन भूखा ही रहना पड़ता है.

नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकता. नागा साधु केवल पृथ्वी पर ही सोते हैं. यह बहुत ही कठोर नियम है, जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है. दीक्षा के बाद गुरु से मिले गुरुमंत्र में ही उसे संपूर्ण आस्था रखनी होती है. उसकी भविष्य की सारी तपस्या इसी गुरु मंत्र पर आधारित होती है.

कुम्भ मेले के अलावा नागा साधु पूरी तरह तरह से आम आवादी से दूर रहते हैं और गुफाओं, कन्दराओं मे कठोर तप करते हैं. ये लोग बस्ती से बाहर निवास करते हैं. ये किसी को प्रणाम नहीं करते है तथा केवल संन्यासी को ही प्रणाम करते हैं. ऐसे और भी कुछ नियम हैं, जो दीक्षा लेने वाले हर नागा साधु को पालन करना पड़ते हैं.

नागाओं को सिर्फ साधु नहीं, बल्कि योद्धा माना गया है. वे युद्ध कला में माहिर, क्रोधी और बलवान शरीर के स्वामी होते हैं. अक्सर नागा साधु अपने साथ तलवार, फरसा या त्रिशूल लेकर चलते हैं. ये हथियार इनके योद्धा होने के प्रमाण  हैं, नागाओं में चिमटा रखना अनिवार्य होता है. चिमटा हथियार भी है और इनका औजार भी.

नागा साधू अपने भक्तों को चिमटे से छूकर ही आशीर्वाद देते हैं. माना जाता है कि- जिसको सिद्ध नागा साधू चिमटा छू जाए उसका कल्याण हो जाता है. आधुनिक आग्नेयास्त्रों के आने के बाद से इन अखाड़ों ने अपना पारम्परिक सैन्य चरित्र त्याग दिया है. अब इन अखाड़ों में सनातनी मूल्यों का अनुपालन करते हुए संयमित जीवन जीने पर ध्यान रहता है.

इस समय 13 प्रमुख अखाड़े हैं जिनमें प्रत्येक के शीर्ष पर महन्त आसीन होते हैं. प्रयागराज के कुंभ में उपाधि पाने वाले को नागा, उज्जैन में खूनी नागा, हरिद्वार में बर्फानी नागा, नासिक में उपाधि पाने वाले को खिचड़िया नागा कहा जाता है. इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है.

इन प्रमुख अखाड़ों के नाम प्रकार हैः श्री निरंजनी अखाड़ा, श्री जूनादत्त या जूना अखाड़ा, श्री महानिर्वाण अखाड़ा, श्री अटल अखाड़ा, श्री आह्वान अखाड़ा, श्री आनंद अखाड़ा, श्री पंचाग्नि अखाड़ा, श्री नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, श्री वैष्णव अखाड़ा, श्री उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, श्री उदासीन नया अखाड़ा, श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा।

वरीयता के हिसाब से इनको कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव जैसे पद दिए जाते हैं. सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पद सचिव का होता है. नागा साधु अखाड़े के आश्रम और मंदिरों में रहते हैं. तथा तपस्या करने के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में जीवन बिताते हैं।

#अघोर_पंथ:

अघोर पंथ, अघोर मत या अघोरियों का संप्रदाय, हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को 'अघोरी' कहते हैं। इसके प्रवर्त्तक स्वयं अघोरनाथ शिव माने जाते हैं। रुद्र की मूर्ति को श्वेताश्वतरोपनिषद (३-५) में अघोरा वा मंगलमयी कहा गया है और उनका अघोर मंत्र भी प्रसिद्ध है। विदेशों में, विशेषकर ईरान में, भी ऐसे पुराने मतों का पता चलता है तथा पश्चिम के कुछ विद्वानों ने उनकी चर्चा भी की है।

इतिहास:

अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरू माना जाता है। अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया। अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं। इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।

अघोर दर्शन और साधना:

अघोर साधनाएं मुख्यतः श्मशान घाटों और निर्जन स्थानों पर की जाती है। शव साधना एक विशेष क्रिया है जिसके द्वारा स्वयं के अस्तित्व के विभिन्न चरणों की प्रतीकात्मक रूप में अनुभव किया जाता है। अघोर विश्वास के अनुसार अघोर शब्द मूलतः दो शब्दों 'अ' और 'घोर' से मिल कर बना है जिसका अर्थ है जो कि घोर न हो अर्थात सहज और सरल हो। प्रत्येक मानव जन्मजात रूप से अघोर अर्थात सहज होता है। बालक ज्यों ज्यों बड़ा होता है त्यों वह अंतर करना सीख जाता है और बाद में उसके अंदर विभिन्न बुराइयां और असहजताएं घर कर लेती हैं और वह अपने मूल प्रकृति यानी अघोर रूप में नहीं रह जाता। अघोर साधना के द्वारा पुनः अपने सहज और मूल रूप में आ सकते हैं और इस मूल रूप का ज्ञान होने पर ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अघोर संप्रदाय के साधक समदृष्टि के लिए नर मुंडों की माला पहनते हैं और नर मुंडों को पात्र के तौर पर प्रयोग भी करते हैं। चिता के भस्म का शरीर पर लेपन और चिताग्नि पर भोजन पकाना इत्यादि सामान्य कार्य हैं। अघोर दृष्टि में स्थान भेद भी नहीं होता अर्थात महल या श्मशान घाट एक समान होते हैं।

#नाथ_सम्प्रदाय:

नाथ सम्प्रदाय में योगिनियों का भी समावेश था। १७वीं शताब्दी की इस चित्रकला में एक नाथ योगिनी का चित्रण है।

नेपाल स्थित एक मत्स्येन्द्रनाथ मन्दिर जहाँ हिन्दू और बौद्ध दोनों ही पूजा-अराधना करते हैं।

नाथ सम्प्रदाय भारत का एक हिंदू धार्मिक पन्थ है। मध्ययुग में उत्पन्न इस सम्प्रदाय में बौद्ध, शैव तथा योग की परम्पराओं का समन्वय दिखायी देता है। यह हठयोग की साधना पद्धति पर आधारित पंथ है। शिव इस सम्प्रदाय के प्रथम गुरु एवं आराध्य हैं। इसके अलावा इस सम्प्रदाय में अनेक गुरु हुए जिनमें गुरु मच्छिन्द्रनाथ /मत्स्येन्द्रनाथ तथा गुरु गोरखनाथसर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। नाथ सम्प्रदाय समस्त देश में बिखरा हुआ था। गुरु गोरखनाथ ने इस सम्प्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया, अतः इसके संस्थापक गोरखनाथ माने जाते हैं। भारत में नाथ सम्प्रदाय को सन्यासी, योगी, जोगी, नाथ, अवधूत, कौल, उपाध्याय (पश्चिम उत्तर प्रदेश में), आदि नामों से जाना जाता है। इनके कुछ गुरुओं के शिष्य मुसलमान, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के भी थे। इस पंथ के लोगो को शिव का वंशज माना जाता है ।

नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख:

 गुरुआदिगुरू :- भगवान शिव (हिन्दू देवता)मच्छेन्द्रनाथ :- 8वीं या 9वीं सदी के योग सिद्ध, "तंत्र" परंपराओं और अपरंपरागत प्रयोगों के लिए मशहूरगोरक्षनाथ (गोरखनाथ) :- 10वीं या 11वीं शताब्दी में जन्म, मठवादी नाथ संप्रदाय के संस्थापक, व्यवस्थित योग तकनीकों, संगठन , हठ योग के ग्रंथों के रचियता एवं निर्गुण भक्ति के विचारों के लिए प्रसिद्धजालन्धरनाथ :- 12वीं सदी के सिद्ध, मूल रूप से जालंधर (पंजाब) निवासी, राजस्थान और पंजाब क्षेत्र में ख्यातिप्राप्तकानीफनाथ :- 14वीं सदी के सिद्ध, मूल रूप से बंगाल निवासी, नाथ सम्प्रदाय के भीतर एक अलग उप-परंपरा की शुरूआत करने वालेचौरंगीनाथ :- बंगाल के राजा देवपाल के पुत्र, उत्तर-पश्चिम में पंजाब क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त, उनसे संबंधित एक तीर्थस्थल सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में हैlचर्पटीनाथ :- हिमाचल प्रदेश के चंबा क्षेत्र में हिमालय की गुफाओं में रहने वाले, उन्होंने अवधूत का प्रतिपादन किया और बताया कि व्यक्ति को अपनी आन्तरिक शक्तियों को बढ़ाना चाहिए क्योंकि बाहरी प्रथाओं से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता हैlभर्तृहरिनाथ :- उज्जैन के राजा और विद्वान जिन्होंने योगी बनने के लिए अपना राज्य छोड़ दियाlगोपीचन्दनाथ :- बंगाल की रानी के पुत्र जिन्होंने अपना राजपाट त्याग दिया थाl रत्ननाथ :- 13वीं सदी के सिद्ध, मध्य नेपाल और पंजाब में ख्यातिप्राप्त, उत्तर भारत में नाथ और सूफी दोनों सम्प्रदाय में आदरणीयधर्मनाथ :- 15वीं सदी के सिद्ध, गुजरात में ख्यातिप्राप्त, उन्होंने कच्छ क्षेत्र में एक मठ की स्थापना की थी, किंवदंतियों के अनुसार उन्होंने कच्छ क्षेत्र को जीवित रहने योग्य बनायाlमस्तनाथ :- 18वीं सदी के सिद्ध, उन्होंने हरियाणा में एक मठ की स्थापना की थी

जीवन शैली:

नाथ साधु-सन्त परिव्राजक होते हैं। वे भगवा रंग के बिना सिले वस्त्र धारण करते हैं। ये योगी अपने गले में काली ऊनका एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' कहते हैं। उनके एक हाथ में चिमटा, दूसरे हाथ में कमण्डल, दोनों कानों में कुण्डल, कमर में कमरबन्ध होता है। ये जटाधारी होते हैं। नाथपन्थी भजन गाते हुए घूमते हैं और भिक्षाटन कर जीवन यापन करते हैं। उम्र के अंतिम चरण में वे किसी एक स्थान पर रुककर अखण्ड धूनी रमाते हैं। कुछ नाथ साधक हिमालय की गुफाओं में चले जाते हैं। इसके अलावा नाथ सम्प्रदाय में गृहस्थ जोगी भी होते है।

साधना-पद्धति:

नाथ सम्प्रदाय में सात्विक भाव से शिव की भक्ति की जाती है। वे शिव को 'अलख' (अलक्ष) नाम से सम्बोधित करते हैं। ये अभिवादन के लिए 'आदेश' या आदीश शब्द का प्रयोग करते हैं। अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या 'परम पुरुष' होता है। नाथ साधु-सन्त हठयोग पर विशेष बल देते हैं।

गुरु परम्परा:

प्रारम्भिक दस नाथ:

आदिनाथ, आनंदिनाथ, करालानाथ, विकरालानाथ, महाकाल नाथ, काल भैरव नाथ, बटुक नाथ, भूतनाथ, वीरनाथ और श्रीकांथनाथ। इनके बारह शिष्य थे जो इस क्रम में है- नागार्जुन, जड़ भारत, हरिशचंद्र, सत्यनाथ, चर्पटनाथ, अवधनाथ, वैराग्यनाथ, कांताधारीनाथ, जालंधरनाथ और मालयार्जुन नाथ।

चौरासी सिद्ध एवं नौ नाथ:

८वी सदी में ८४ सिद्धों के साथ बौद्ध धर्म के वज्रयान की परम्परा का प्रचलन हुआ। ये सभी भी नाथ ही थे। सिद्ध धर्मकी वज्रयान शाखा के अनुयायी सिद्ध कहलाते थे। उनमें से प्रमुख जो हुए उनकी संख्या चौरासी मानी गई है।
नौ नाथ गुरु
1. मच्छेंद्रनाथ
2. गोरखनाथ 
3. जालंदरनाथ 
4. नागेशनाथ 
5. भर्तरीनाथ 
6. चर्पटीनाथ 
7. कानीफनाथ 
8. गहनीनाथ 
9. रेवननाथ
इसके अलावा ये भी हैं:
1. आदिनाथ 2. मीनानाथ 3. गोरखनाथ 4.खपरनाथ 5.सतनाथ 6.बालकनाथ 7.गोलक नाथ 8.बिरुपक्षनाथ 9.भर्तृहरि नाथ 10.अईनाथ 11.खेरची नाथ 12.रामचंद्रनाथ।
ओंकार नाथ, उदय नाथ, सन्तोष नाथ, अचल नाथ, गजबेली नाथ, ज्ञान नाथ, चौरंगी नाथ, मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरक्षनाथ। सम्भव है यह उपयुक्त नाथों के ही दूसरे नाम है। बाबा शिलनाथ, दादाधूनी वाले, , गोगा नाथ, पंढरीनाथ और श्री स्वामी समर्थ, गजानन महाराज, साईं बाबा को भी नाथ परंपरा का माना जाता है। उल्लेखनीय है कि भगवान दत्तात्रेय को वैष्णव और शैव दोनों ही संप्रदाय का माना जाता है, क्योंकि उनकी भी नाथों में गणना की जाती है। भगवान भैरवनाथ भी नाथ संप्रदाय के अग्रज माने जाते हैं। और विशेष इन्हे योगी भी कहते और जोगी भी कहा जाता हैं। देवो के देव महादेव जी स्वयं शिव जी ने नवनाथो को खुद का नाम जोगी दिया हैं। इन्हें तो नाथो के नाथ नवनाथ भी कहा जाता हैं।

सन्यास‌‌‍ दीक्षा: 

नाथ सम्प्रदाय में किसी भी प्रकार का भेद-भाव आदि काल से नहीं रहा है। इस संप्रदाय को किसी भी जाति, वर्ण व किसी भी उम्र में अपनाया जा सकता है।सन्यासी का अर्थ काम , क्रोध , मोह , लोभ आदि बुराईयों का त्याग कर समस्त संसार से मोह छोड़ कर शिव भक्ति में समाधि लगाकर लीन होना बताया जाता है। प्राचीन काल में राजे -महाराजे भी अपना राज-पाठ छोड़ सन्यास इसी लिए लिया करते थे ताकि वे अपना बचा हुआ जीवन सांसारिक परेशानियों को त्याग कर साधुओ की तरह साधारण जीवन बिताते थे। नाथ संप्रदाय को अपनाने के बाद 7 से 12 साल की कठोर तपस्या के बाद ही सन्यासी को दीक्षा दि जाती थी। विशेष परिस्तिथियों में गुरु अनुसार कभी भी दीक्षा दि जा सकती है‍‌‍‍‍‍‍। दीक्षा देने से पहले वा बाद में दीक्षा पाने वाले को उम्र भर कठोर नियमो का पालन करना होता है। वो कभी किसी राजा के दरबार में पद प्राप्त नहीं कर सकता , वो कभी किसी राज दरबार में या राज घराने में भोजन नहीं कर सकता परन्तु राज दरबार वा राजा से भिक्षा जरुर प्राप्त कर सकता है। उसे बिना सिले भगवा वस्त्र धारण करने होते है ।हर साँस के साथ मन में आदेश शब्द का जाप करना होता है था किसी अन्य नाथ का अभिवादन भी आदेश शब्द से ही करना होता है । सन्यासी योग व जड़ी- बूटी से किसी का रोग ठीक कर सकता है पर एवज में वो रोगी या उसके परिवार से भिक्षा में सिर्फ अनाज या भगवा वस्त्र ही ले सकता है। वह रोग को ठीक करने की एवज में किसी भी प्रकार के आभूषण , मुद्रा आदि ना ले सकता हैऔर न इनका संचय कर सकता। सांसारिक मोह को त्यागना पड़ता है दीक्षा देने के बाद सन्यासी ,जोगी , बाबा के दोनों कानों में छेड़ किये जाते है और उनमे गुरु द्वारा ही कुण्डल डाले जाते है । जिन्हें धारण करने के बाद निकला नहीं जा सकता।बिना कुण्डल के किसी को योगी ,जोगी ,बाबा, सन्यासी नहीं माना जा सकता ऐसा सन्यासी जोगी जरुर होता है परन्तु उसे गुरु द्वारा दीक्षा नहीं दि गई होती। इसलिए उन्हें अर्ध सन्यासी के रूप मे माना जाता है।

#संत:

 हिन्दू धर्म तथा अन्य भारतीय धर्मों में सन्त उस व्यक्ति को कहते हैं जो सत्य आचरण करता है तथा आत्मज्ञानी है, जैसे संत शिरोमणि गुरु रविदास , सन्त कबीरदास, संत तुलसी दास गुरू घासीदास।

'सन्त' शब्द 'सत्' शब्द के कर्ताकारक का बहुवचन है। इसका अर्थ है - साधु, संन्यासी, विरक्त या त्यागी पुरुष या महात्मा।

उदाहरण

या जग जीवन को है यहै फल जो छल छाँडि भजै रघुराई।
शोधि के संत महंतनहूँ पदमाकर बात यहै ठहराई। 

ईश्वर के भक्त या धार्मिक पुरुष को भी सन्त कहते हैं। साधुओं को परिभाषा में सन्त उस संप्रदायमुक्त साधु या संत को कहते हैं जो विवाह करके गृहस्थ बन गया हो।
मत्स्यपुराण के अनुसार संत शब्द की निम्न परिभाषा है :

ब्राह्मणा: श्रुतिशब्दाश्च देवानां व्यक्तमूर्तय:।सम्पूज्या ब्रह्मणा ह्येतास्तेन सन्तः प्रचक्षते॥

ब्राह्मण ग्रंथ और वेदों के शब्द, ये देवताओं की निर्देशिका मूर्तियां हैं। जिनके अंतःकरण में इनके और ब्रह्म का संयोग बना रहता है, वह सन्त कहलाते हैं।

#सन्यासी:

सन्यासी वह है जिसने संन्यास को धारण किया है। इंद्रियों का निग्रह करने वाला संन्यासी कहलाता है। हिन्दू या सनातनधर्म के चार आश्रमों में चौथा आश्रम सन्यासाश्रम है।

#आचार्य:

आचिनोति च शास्त्राणि आचारे स्थापयत्यपि।स्वयम् आचरते यस्मात् तस्मात् आचार्य उच्यते।।
स्वयमाचरते यस्मादाचारं स्थापयत्यपि। आचिनोति च शास्त्राणि आचार्यस्तेन चोच्यते।। (ब्रह्मपुराण पूर्वभाग ३२.३२)

प्राचीन काल में आचार्य एक शिक्षा संबंधी पद था। उपनयन संस्कार के समय बालक का अभिभावक उसको आचार्य के पास ले जाता था। विद्या के क्षेत्र में आचार्य के पास बिना विद्या, श्रेष्ठता और सफलता की प्राप्ति नहीं होती। (आचार्याद्धि विद्या विहिता साधिष्ठं प्रापयतीति।)

उच्च कोटि के प्रध्यापकों में आचार्य, गुरु एवं उपाध्याय होते थे, जिनमें आचार्य का स्थान सर्वोत्तम था। मनुस्मृति के अनुसार उपाध्याय वह होता था जो वेद का कोई भाग अथवा वेदांग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद तथा ज्योतिष) विद्यार्थी को अपनी जीविका के लिए शुल्क लेकर पढ़ाता था। गुरु अथवा आचार्य विद्यार्थी का संस्कार करके उसको अपने पास रखता था तथा उसके संपूर्ण शिक्षण और योगक्षेम की व्यवस्था करता था। 'आचार्य' शब्द के अर्थ और योग्यता पर सविस्तार विचार किया गया है। निरुक्त के अनुसार उसको आचार्य इसलिए कहते हैं कि वह विद्यार्थी से आचारशास्त्रों के अर्थ तथा बुद्धि का आचयन (ग्रहण) कराता है। आपस्तंब धर्मसूत्र के अनुसार उसको आचार्य इसलिए कहा जाता है कि विद्यार्थी उससे धर्म का आचयन करता है। आचार्य का चुनाव बड़े महत्व का होता था। 'वह अंधकार से घोर अंधकार में प्रवेश करता है जिसका अपनयन अविद्वान्‌ करता है। इसलिए कुलीन, विद्यासंपन्न तथा सम्यक्‌ प्रकार से संतुलित बुद्धिवाले व्यक्ति को आचार्य पद के लिए चुनना चाहिए।' 
यम (वीरमित्रोदय, भाग 1, पृ. 408) ने आचार्य की योग्यता निम्नलिखित प्रकार से बतलाई है :

 'सत्यवाक्‌, धृतिमान्‌, दक्ष, सर्वभूतदयापर, आस्तिक, वेदनिरत तथा शुचियुक्त, वेदाध्ययनसंपन्न, वृत्तिमान्‌, विजितेंद्रिय, दक्ष, उत्साही, यथावृत्त, जीवमात्र से स्नेह रखनेवाला आदि' आचार्य कहलाता है। 

आचार्य आदर तथा श्रद्धा का पात्र था। श्वेताश्वतरोपनिषद् में कहा गया है : 
जिसकी ईश्वर में परम भक्ति है, जैसे ईश्वर में वैसे ही गुरु में, क्योंकि इनकी कृपा से ही अर्थों का प्रकाश होता है। शरीरिक जन्म देनेवाले पिता से बौद्धिक एवं आध्यात्मिक जन्म देनेवाले आचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है।

#योगी:

योग को जानने वाला या योग का अभ्यास करने वाला योगीकहलाता है।

#मुनि:

राग-द्वेष-रहित संतों, साधुओं और ऋषियों को मुनि कहा गया है। मुनियों को यति, तपस्वी, भिक्षु और श्रमण भी कहा जाता है। भगवद्गीता में कहा है कि जिनका चित्त दु:ख से उद्विग्न नहीं होता, जो सुख की इच्छा नहीं करते और जो राग, भय और क्रोध से रहित हैं, ऐसे निश्चल बुद्धिवाले मुनि कहे जाते हैं। वैदिक ऋषि जंगल के कंदमूल खाकर जीवन निर्वाह करते थे।

जैन मुनि:

जैन ग्रंथों में उन निग्रंथ महर्षियों को मुनि कहा गया है जिनकी आत्मा संयम में स्थिर है, सांसारिक वासनाओं से जो रहित हैं और जीवों की जो रक्षा करते हैं। जैन मुनि 28 मूल गणों का पालन करते हैं। वे अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पाँच व्रतों तथा ईर्या (गमन में सावधानी), भाषा, एषणा (भोजन शुद्धि), आदाननिक्षेप (धार्मिक उपकरण उठाने रखने में सावधानी) और प्रतिष्ठापना (मल मूत्र के त्याग में सावधानी), इन पाँच समितियों का पालन करते हैं। वे पाँच इंद्रियों का निग्रह करते हैं, तथा सामायिक, चतुविंशतिस्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान (त्याग) और कायोत्सर्ग (देह में ममत्व का त्याग) इन छह आवश्यकों को पालते हैं। वे केशलोंच करते हैं, नग्न रहते हैं, स्नान और दातौन नहीं करते, पृथ्वी पर सोते हैं, त्रिशुद्ध आहार ग्रहण करते हैं और दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं। ये सब मिलाकर 28 मूल गुण होते हैं।

#ऋषि:

ऋषि भारतीय परंपरा में श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने (यानि यथावत समझ पाने) वाले जनों को कहा जाता है। वे व्यक्ति विशिष्ट जिन्होंने अपनी विलक्षण एकाग्रता के बल पर गहन ध्यान में विलक्षण शब्दों के दर्शन किये उनके गूढ़ अर्थों को जाना व मानव अथवा प्राणी मात्र के कल्याण के लिये ध्यान में देखे गए शब्दों को लिखकर प्रकट किया। इसीलिये कहा गया - ऋषि:तु मन्त्र द्रष्टारः न तु कर्तारः। अर्थात् ऋषि तो मंत्र के देखनेवाले हैं नकि बनानेवाले। अर्थात् बनानेवाला तो केवल एक परमात्मा ही है। इसीलिये किसी भी मंत्र के जप से पूर्व उसका विनियोग अवश्य बोला जाता है। उदाहरणार्थ अस्य श्री'ऊँ'कार स्वरूप परमात्मा गायत्री छंदः परमात्मा ऋषिः अन्तर्यामी देवता अन्तर्यामी प्रीत्यर्थे आत्मज्ञान प्राप्त्यार्थे जपे विनियोगः। ऋषि शब्द की व्युत्पत्ति 'ऋष' है जिसका अर्थ देखना होता है। ऋषि के प्रकाशित कृतियों को आर्ष कहते हैं जो इसी मूल से बना है, इसके अतिरिक्त दृष्टि(नज़र) जैसे शब्द भी इसी मूल से हैं। सप्तर्षि आकाश में हैं और हमारे कपाल में भी।
ऋषि आकाश, अन्तरिक्ष और शरीर तीनों में होते हैं।

#महर्षि:

प्राचीन भारतीय आर्य संस्कृति में ज्ञान और तप की उच्चतम सीमा पर पहुँच चुके व्यक्ति महर्षि कहलाते थे। इससे ऊपर ऋषियों की एकमात्र कोटि ब्रह्मर्षि की मानी जाती थी।
हम सभी मनुष्यो में तीन प्रकार के चक्षु होते है वह है ज्ञान चक्षु, दिव्य चक्षु और परम चक्षु । जिसका ज्ञान ज्ञान जाग्रत होता है उसे ऋषि कहते है, जिसका दिव्य चक्षु जाग्रत होता है उसे महर्षि कहते है एवं जिसका परम चक्षु भी जाग्रत हो जाता है उसे ब्रह्मर्षि कहते है ।ज्ञान चक्षु आंखो की पलकों के ऊपर दिखता है दिव्य चक्षु दोनों भौहों के मध्य होता है एवं परम चक्षु हमारी ललाट पर स्थित होता है ।

इसके अतरिक्त भारतवर्ष में अनेकों ऋषि,मुनि,महर्षि जैसे वाल्मीकि एवम् ब्रह्मऋषि हुए हैं। कई ब्रह्मऋषि स्वयं भगवान श्री राम कालीन हैं उन्होंने भगवान राम को ज्ञान एवम् रावण से लडने के लिए अस्त्र शास्त्र और शस्त्र प्रदान किए।

#ब्रह्मर्षि: 

ब्राह्मण कुलों के ऋषि, जिनके गौत्र चले। जो ब्रह्मज्ञानी थे।

जिनका वास ब्रह्मलोक में हुआ।

वेद के मन्त्रदृष्टा ऋषि कहलाते थे।

धर्म का साक्षात्कार कराने वाले भी ऋषि कहे गये.....ऋषय:साक्षात्कृतधर्माण।

वे प्रेरणावान ओजस्विता, ऋजुता से परिपूर्ण कवि थे। उनकी पूर्व में संख्या सात थी। इससे सप्तऋषि कहे गये।

शतपथ ब्राह्मण में इनके नाम आते हैं।

महाभारत में इसका स्थान-स्थान पर प्रचुर प्रयोग मिलता है। नामों में भी भिन्नता आ गई।

विष्णुपुराण ने भी कुछ नाम जोड़ दिये।

आकाश में सप्तऋषियों का एक तारामण्डल माना गया है। जो ध्रुव की परिक्रमा करता है।

एकल ब्रह्मर्षि निम्न प्रकार हैं-

अर्वावसु, कश्यप, दधीचि, भारद्वाज, भृगु, कृप, अष्टावक्र, गौतम, दमन, मनंकनक, मार्कण्डेय, अत्रि, च्यवन, देवशर्मण, रुचीक, लिखित, शुक्र, और्व, जाजलि, नारद, लोमश, वशिष्ठ, व्यास, पुलस्त्य, विश्वामित्र, वैराम्पाथन।

#देवर्षि:

देवर्षि का अर्थ है - 'आकाशीय ऋषि'; यह ऋषियों की तीन श्रेणियों में से एक है, अन्य दो हैं - ब्रह्मऋषि और राजऋषि। राजऋषि वे क्षत्रिय राजा थे जिन्होंने ऋषि का दर्जा प्राप्त किया; एक ऋषि और एक ब्रह्मऋषि के बीच अंतर तपस्या और सिद्धि और उनकी जीवन-अवधि का था। 

देवताओं के लोक में रहने वाला और उनके समकक्ष माना जाने वाला ऋषि; देवर्षि कहलाते हैं।

#सप्त_ऋषि : 

भारत के महान सात संत

आकाश में सात तारों का एक मंडल नजर आता है उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है। उक्त मंडल के तारों के नाम भारत के महान सात संतों के आधार पर ही रखे गए हैं। वेदों में उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है। प्रत्येक मनवंतर में सात सात ऋषि हुए हैं। यहां प्रस्तुत है वैवस्तवत मनु के काल में जन्में सात महान ‍ऋषियों का संक्षिप्त परिचय। 

वेदों के रचयिता ऋषि : ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं, लगभग दस हजार मन्त्र हैं। चारों वेदों में करीब बीस हजार हैं और इन मन्त्रों के रचयिता कवियों को हम ऋषि कहते हैं। बाकी तीन वेदों के मन्त्रों की तरह ऋग्वेद के मन्त्रों की रचना में भी अनेकानेक ऋषियों का योगदान रहा है। पर इनमें भी सात ऋषि ऐसे हैं जिनके कुलों में मन्त्र रचयिता ऋषियों की एक लम्बी परम्परा रही। ये कुल परंपरा ऋग्वेद के सूक्त दस मंडलों में संग्रहित हैं और इनमें दो से सात यानी छह मंडल ऐसे हैं जिन्हें हम परम्परा से वंशमंडल कहते हैं क्योंकि इनमें छह ऋषिकुलों के ऋषियों के मन्त्र इकट्ठा कर दिए गए हैं। 

वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है वे नाम क्रमश: इस प्रकार है:- 1.वशिष्ठ, 2.विश्वामित्र, 3.कण्व, 4.भारद्वाज, 5.अत्रि, 6.वामदेव और 7.शौनक। 

पुराणों में सप्त ऋषि के नाम पर भिन्न-भिन्न नामावली मिलती है। विष्णु पुराण अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार है :- वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत। विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।। अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं:-वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज। 

इसके अलावा पुराणों की अन्य नामावली इस प्रकार है:- ये क्रमशः केतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ट तथा मारीचि है। 

महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं। एक नामावली में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली में पांच नाम बदल जाते हैं। कश्यप और वशिष्ठ वहीं रहते हैं पर बाकी के बदले मरीचि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु नाम आ जाते हैं। कुछ पुराणों में कश्यप और मरीचि को एक माना गया है तो कहीं कश्यप और कण्व को पर्यायवाची माना गया है। यहां प्रस्तुत है वैदिक नामावली अनुसार सप्तऋषियों का परिचय। 

1. #वशिष्ठ : राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता। ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया। 

2. #विश्वामित्र : ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए। इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है। विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। इस तरह ऋषि विश्वामित्र के असंख्य किस्से हैं। 

माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्र ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो भारत के हृदय में और जिह्ना पर हजारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है। 

3. #कण्व : माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। 

4. #भारद्वाज : वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुए थे, लेकिन एक उल्लेख अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का सन्धिकाल था। माना जाता है कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी। 

ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम 'रात्रि' था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। 'भारद्वाज-स्मृति' एवं 'भारद्वाज-संहिता' के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे। ऋषि भारद्वाज ने 'यन्त्र-सर्वस्व' नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने 'विमान-शास्त्र' के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है। 

5. #अत्रि : ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा मांगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे, तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था। 

अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहां उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया। अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ। अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था। मान्यता है कि अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे। ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी। 

6. #वामदेव : वामदेव ने इस देश को सामगान (अर्थात् संगीत) दिया। वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं। 

7. #शौनक : शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया। वैदिक आचार्य और ऋषि जो शुनक ऋषि के पुत्र थे। 

फिर से बताएं तो वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भरद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक- ये हैं वे सात ऋषि जिन्होंने इस देश को इतना कुछ दे डाला कि कृतज्ञ देश ने इन्हें आकाश के तारामंडल में बिठाकर एक ऐसा अमरत्व दे दिया कि सप्तर्षि शब्द सुनते ही हमारी कल्पना आकाश के तारामंडलों पर टिक जाती है। 

इसके अलावा मान्यता हैं कि अगस्त्य, कष्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम आदि सभी ऋषि उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त है।

हम सभी ब्राह्मणों को अक्सर पण्डित जी, गुरु जी, आचार्य जी, ब्राह्मण देवता आदि तरह तरह के नामों से संबोधित करते हैं। पर क्या आपने कभी इन नामों के पीछे जो अर्थ है उसको जानने की कोशिश की है? नहीं की होगी क्योंकि नाम में क्या रखा है यही सबकी सोच है। लेकिन मैंने एक छोटा सा प्रयास किया है इन नामों के बारे में जानने के लिए जो आपके सन्मुख उपस्थित कर रहा हूँ। पहले शुरू करते है गुरु से क्योंकि गुरु ही प्रथम है –

#गुरु

गु का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ प्रकाश। अर्थात जो व्यक्ति आपको अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए वह गुरु होता है। गुरु का अर्थ अंधकार का नाश करने वाला। अध्यात्मशास्त्र अथवा धार्मिक विषयों पर प्रवचन देने वाले व्यक्तियों में और गुरु में बहुत अंतर होता है। गुरु आत्म विकास और परमात्मा की बात करता है। प्रत्येक गुरु संत होते ही हैं; परंतु प्रत्येक संत का गुरु होना आवश्यक नहीं है। केवल कुछ संतों में ही गुरु बनने की पात्रता होती है। गुरु का अर्थ ब्रह्म ज्ञान का मार्गदर्शक।

रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने गुरू की महिमा का व्याख्यान करते हुए लिखा है 

गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउं राम चरित भव मोचन॥1॥
भावार्थ:- श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूं॥1॥

#आचार्य

आचार्य उसे कहते हैं जिसे वेदों और शास्त्रों का ज्ञान हो और जो गुरुकुल में ‍विद्यार्थियों को शिक्षा देने का कार्य करता हो। आचार्य का अर्थ यह कि जो आचार, नियमों और सिद्धातों आदि का अच्छा ज्ञाता हो और दूसरों को उसकी शिक्षा देता हो। वह जो कर्मकाण्ड का अच्छा ज्ञाता हो और यज्ञों आदि में मुख्य पुरोहित का काम करता हो उसे भी आचार्य कहा जाता था। आजकल आचार्य किसी महाविद्यालय के प्रधान अधिकारी और अध्यापक को कहा जाता है।

#पुरोहित

पुरोहित दो शब्दों से बना है:- ‘पर’ तथा ‘हित’, अर्थात ऐसा व्यक्ति जो दुसरो के कल्याण की चिंता करे। प्राचीन काल में आश्रम प्रमुख को पुरोहित कहते थे जहां शिक्षा दी जाती थी। हालांकि यज्ञ कर्म करने वाले मुख्‍य व्यक्ति को भी पुरोहित कहा जाता था। यह पुरोहित सभी तरह के संस्कार कराने के लिए भी नियुक्त होता है। प्रचीनकाल में किसी राजघराने से भी पुरोहित संबंधित होते थे। अर्थात राज दरबार में पुरोहित नियुक्त होते थे, जो धर्म-कर्म का कार्य देखने के साथ ही सलाहकार समीति में शामिल रहते थे।

#पुजारी

पूजा और पाठ से संबंधित इस शब्द का अर्थ स्वत: ही प्रकाट होता है। अर्थात जो मंदिर या अन्य किसी स्थान पर पूजा पाठ करता हो वह पुजारी। किसी देवी-देवता की मूर्ति या प्रतिमा की पूजा करने वाले व्यक्ति को पुजारी कहा जाता है।

#पण्डित

पंडः का अर्थ होता है विद्वता। किसी विशेष ज्ञान में पारंगत होने को ही पांडित्य कहते हैं। पण्डित का अर्थ होता है किसी ज्ञान विशेष में दश या कुशल। इसे विद्वान या निपुण भी कह सकते हैं। किसी विशेष विद्या का ज्ञान रखने वाला ही पण्डित होता है। प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि के बहुत बड़े ज्ञाता को पण्डित कहा जाता था। इस पण्डित को ही पाण्डेय, पाण्डे, पण्ड्या कहते हैं। आजकल पण्डित नाम ब्रह्मणों का उपनाम भी बन गया है। कश्मीर के ब्राह्मणों को तो कश्मीरी पण्डित के नाम से ही जाना जाता है। पंडित की पत्नी को देशी भाषा में पंडिताइन कहने का चलन है।

#ब्राह्मण

ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना है। जो ब्रह्म यानि ईश्वर को छोड़कर अन्य किसी को नहीं पूजता, वह ब्राह्मण कहा गया है। जो पुरोहिताई कर अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है। जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका चलाता है वह ब्राह्मण नहीं होता, ज्योतिषी होता है। पंडित तो किसी विषय के विशेषज्ञ को कहते हैं और जो कथा बांचता है वह ब्राह्मण नहीं कथावाचक है। इस प्रकार वेद और ब्रह्म को छोड़कर जो कोई भी कर्म करता है वह ब्राह्मण नहीं है। जिसके मुख से ब्रह्म शब्द का उच्चारण नहीं होता रहता, वह ब्राह्मण नहीं। स्मृतिपुराणों में ब्राह्मण के आठ भेदों का वर्णन मिलता है- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। आठ प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अतिरिक्त वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है जिसका किसी जाति या समाज से कोई संबंध नहीं होता है।

🙏हर-हर महादेव🙏






 ___________________________________________________ 
                    English translate
________________________________




The mysterious world of saints and ascetics

 __________________________________________________






 Who are sages, saints, ascetics, Aghori, Acharya, yogi, Yeti-sage, sage, Maharishi, Brahmarshi, Rajrishi, Devarshi, Saptarishi?

 Brahmin, Guru, Acharya, priest, priest, priest

 Let's know the difference and similarity between them.


 # Monk:


 Sadhu is a Sanskrit word that normally means 'gentleman'.  In the short theory, Kaumudi says - 'Sadhnoti Parakaryamiti Sadhu' (One who does the work of another, he is a monk.).  In the present time, sadhus call them those who wear saintly clothes after taking sanyasa initiation, they have also started being called sadhus.  The main purpose of a monk (sanyasi) is to follow the path of society and attain salvation by following the path of religion.  Sage monks perform spiritual meditation, do penance and give Vedokta knowledge to the world and merge in devotion to God by sacrificing their lives and living with disinterest.


 # Naga_Sadhu:


 You must have seen Naga sadhus in Mahakumbh, Ardhkumbh or Simhastha Kumbh.  Seeing these, the question will often arise in the minds of all of you - who are these Naga monks, where do they come from and where do they go when the Kumbh ends?  Let us discuss today about these most mysterious people of Hinduism.


 The word "Naga" is very old.  The word derives from the Sanskrit word 'nag', which means 'mountain'.  The people living on it are called 'Pahari' or 'Naga'.  'Naga' also means people who are 'naked'.  Nagavansh and Naga caste have a very old history in India.  Many ascetics and traditions are believed to have originated from the Shaivism.


 Since ancient times, people of Nagavanshi, Naga caste and Denami sect have lived in India.  "Nath Sect", a sect of North India, also belongs to the Denami sect ". 'Naga' means 'Ek Bahadur Fighter Person'. As we know - the foundation of the present form of Sanatana Dharma is Adhya Shankara.  Had kept


 Shankaracharya was born in the middle of the 8th century.  At that time, India was very prosperous, but it was becoming alienated from religion.  In the greed to loot India's wealth, all the invaders were coming here.  Some took that treasure back with them, some were fascinated by the divine aura of India that settled here,


 But overall general peace was disrupted.  God, religion, theology were facing all kinds of challenges like logic, weapons and scriptures.  In such a situation, Adhya Shankaracharya took many big steps for the restoration of Sanatan Dharma, one of which was the construction of four Peeths (Char Dham) at the four corners of the country.


 Adiguru Adhya Shankaracharya felt that - It is not enough to meet these challenges only with spiritual power.  For this, religious leaders are also needed to fight the unrighteous.  Then he insisted that the young monks strengthen their body by exercising and also get skill in running the arms.


 For this, he built some such monasteries, which used to be exercised and practiced various types of weapons, such monasteries came to be called the akhada.  In common parlance, the arena is called those places where wrestlers learn workout tricks.  Over the years, many more akharas came into existence.


 Shankaracharya suggested to the akhadas that - to protect the monasteries, temples and devotees, use the power if needed.  In this way, in those times of foreign and heretical invasions, these Akharas served as a protective shield to an India.  Naga warrior sadhus took part in many wars in the event of foreign invasion.


 Naga Sadhuas surrounded Gauri's army in Kurukshetra even before the army reached Mohammad Gauri's first invasion in the time of Prathviraj Chauhan when Gauri's army was trying to damage the temples of Kurukshetra and Pehowa.  After that, the army of Prithvi Raj had cut Gauri's army in Tarain (Taravadi).


 To honor the Naga warriors in the Kumbh after this war, Prathviraj Chauhan gave the right to bathe first in the Kumbh.  Since then, this tradition has been going on that Naga Sadhu will take the first bath of Kumbh.  These Naga Dharm warriors fought foreign invaders not only in one but in many wars.


 After plundering Delhi, the "Timur Lung", which came out of the demolition of Haridwar, was also killed by the Nagas in the battle of Jwalapur near Haridwar.  At the time of Timur's attack, most of the kings hid in fear.  Along with Jograj Singh Gurjar, Harveer Jat, Ram Pyari, Dhuladhadi, etc., the Naga warriors forced Timur Lang to flee India.


 Similarly, at the time of Khilji's invasion, the warrior sadhus of the Nath sect had a tough fight.  At the time of Ahmad Shah Abdali's invasion, when the kings of North India suppressed NOTA and the Maratha army was defeated at Panipat, 40,000 Naga warriors fought Abdali to protect Mathura - Vrindavan - Gokul.


 To avenge Panipat's defeat, when Peshwa Madhavrao invaded Afghanistan, Naga warriors killed local helpers of Abdali.  Thus you must have now understood that - Naga sadhus are the warriors of the religion of Sanatan Dharma.  They live only for religion by staying away from worldly pleasures.


 Now, let's talk about who becomes a Naga monk and how?

 Nagas have to become separate and special from the common world.  The process of becoming a Naga monk is very difficult.  To become a Naga monk, one has to go through such difficult examinations that perhaps a common man could not overcome it, this process takes many years to complete.


 When a person goes into an arena to become a monk, he is never directly included in the arena, first the arena finds out at his level why he wants to become a monk?  The entire background of that person and his family is seen.  First he is introduced to the difficulty of life of a Naga Sannyasi.


 If the arena feels that he is the right person to become a monk, then only he is allowed to enter the arena.  After entering the arena, he is taught celibacy.  His tenacity, celibacy, disinterest, meditation, renunciation and discipline of religion and loyalty are tested prominently.


 It takes from 6 months to 12 years.  If the arena makes sure that it is fit for initiation, then it is taken to the next process.  After this, they perform their Shraddha, Mundan and Pindadan and are initiated into the Sannyas Dharma by taking Guru Mantra.  To perform your Shraddha means to break the relationship with earthly relatives.


 In many akharas, women are also given the initiation of Naga monk. The same rules are same for female Naga monk and male Naga monk, the only difference is that female Naga monk has to keep a yellow cloth wrapped and this is the same  Have to bathe wearing it.  They are not allowed to bathe naked,


 A person who successfully passes the test of practicing Brahmacharya, is made a great man from Brahmachari.  His five gurus are made.  These five gurus are Pancha Dev or Panch Parmeshwar (Shiva, Vishnu, Shakti, Surya and Ganesh).  They are given Bhasma, Saffron, Rudraksha etc.  These are symbols and ornaments of Nagas.


 Nagas are made avadhut after the great man.  In this, he has to get his haircut first.  Those who take initiation in Avadhoot form have to perform the Tarapan and Pindadan of themselves.  These Pindadan priests of the arena.  Now they die for the world and the family.  They have only one aim to protect Sanatan and Vedic religion.


 Naga sadhus are also not allowed to wear clothes.  If you want to wear clothes, only a garment of ocher color can wear Naga Sadhu.  Naga sadhus are only allowed to consume on the body.  Naga sadhus have to wear Vibhuti and Rudraksh, they have to sacrifice their peak and keep their jata.


 Naga sadhus have to eat only once in 24 hours.  That food would also have been demanded.  A Naga monk has the right to take alms from more than seven houses.  If one does not get alms on begging from seven houses, then he cannot even go to the eighth house to ask for alms.  He has to stay hungry that day.


 Naga monks cannot use beds, cots or any other means to sleep.  Naga monks sleep only on earth.  This is a very strict rule, which every Naga monk has to follow.  After initiation, he has to maintain complete faith in the Gurmantra he met.  All his future austerities are based on this Guru Mantra.


 Apart from the Kumbh Mela, Naga sadhus remain completely away from the common people and perform rigorous penance in caves and shrines.  These people live outside the colony.  They do not bow down to anyone and only bow down to the monk.  There are other such rules, which every Naga monk who takes initiation has to follow.


 The Nagas are considered to be warriors, not just sages.  He is a master of martial arts, a master of furious and strong body.  Often Naga sadhus carry a sword, fursa or trident with them.  These weapons are proof of their being warriors, it is mandatory to keep tongs in Nagas.  Pliers are weapons and their tools too.


 Naga sadhus bless their devotees only by touching them with tongs.  It is believed that anyone who touches the Siddha Naga Sadhu extractor gets welfare.  Since the advent of modern firearms, these arenas have abandoned their traditional military character.  Now, in these akharas, the focus is on living a moderate life, following the values ​​of Sanatani.


 At present, there are 13 major akharas with Mahantas at the top of each.  Those who have received a degree in the Kumbh of Prayagraj are called Naga, the bloody Naga in Ujjain, the Barfani Naga in Haridwar, and the Khichdiya Naga who has a degree in Nashik.  This shows that in which Kumbh he has been made a Naga.


 The names of these major arenas are as follows: Shri Niranjani Arena, Shri Junadatta or Juna Arena, Shri Mahanirvan Arena, Shri Atal Arena, Shri Awaan Arena, Shri Anand Arena, Shri Panchagni Arena, Shri Nagapanti Gorakhnath Arena, Shri Vaishnava Arena, Shri Neptune Panchayati Bada  Arena, Mr. Neutral New Arena, Mr. Nirmal Panchayati Arena, Nirmohi Arena.


 According to their preference, they are given positions like Kotwal, Pujari, Bada Kotwal, Bhandari, Kothari, Bada Kothari, Mahant and Secretary.  The biggest and important post is that of secretary.  Naga Sadhus live in the ashram and temples of the arena.  And to do penance, he lives in caves of Himalayas or high mountains.


 #Aghor_Phant:


 Aghor sect, Aghor sect or sect of Aghoris, is a sect of Hinduism.  Those who follow it are called 'Aghori'.  Its originator is believed to be Aghornath Shiva himself.  The idol of Rudra is called Aghora or Mangalamayi in the Shvetashvatropanishad (3-5) and his Aghor mantra is also famous.  Abroad, especially in Iran, such old views are also known and some scholars of the West have also discussed them.


 History:


 Lord Shiva is believed to be the pioneer of Aghor Panth.  It is said that Lord Shiva himself propounded the Aghor cult.  Avadhoota Lord Dattatreya is also considered to be the Guru of Aghorshastra.  Avadhoot also considers Dattatreya to be an avatar of Lord Shiva.  According to the beliefs of the Aghor sect, Dattatreya incarnated as a part and physical form of these three Brahma, Vishnu and Shiva.  Baba Kinaram is worshiped as a saint of the Aghor sect.  People of Aghor sect are followers of Shiva.  According to him, Shiva is complete in himself and the root, Chetan exists in all forms.  Salvation can be attained by meditating on this body and mind and experiencing the root-conscious and all the situations and knowing them.


 Aghor Darshan and Sadhana:


 Aghor sadhanas are mainly performed at cremation ghats and uninhabited places.  Corpse cultivation is a special action by which various stages of one's own existence are experienced symbolically.  According to the Aghor belief, the word Aghor is basically made up of two words 'A' and 'Ghor' which means one who is not loud, which means easy and simple.  Every human is innate in nature, Aghor.  As the child grows up, he learns to differentiate and later inside him evils and evils and he does not remain in his original nature ie Aghor.  Aghor can come back to its natural and original form through spiritual practice and attainment of salvation is possible only with the knowledge of this basic form.  The practitioners of the Aghor sect wear a garland of male mundans for visualization and also use male mundas as characters.  The use of pyre ashes on the body and cooking food on the pyre are common functions.  There is no difference of location in Aghor sight i.e. palace or crematorium are the same.


 #Nath_Community:


 Yoginis were also included in the Nath sect.  This 16th century painting depicts a Nath Yogini.


 A Matsyendranath temple in Nepal where both Hindus and Buddhists worship.


 The Nath sect is a Hindu religious text in India.  The syncretism of Buddhist, Shaivite and Yoga traditions is visible in this sect originating in the Middle Ages.  It is a cult based on the cultivation method of Hatha Yoga.  Shiva is the first guru and worshiper of this community.  Apart from this, there were many Gurus in this community, among whom Guru Machindranath / Matsyendranath and Guru Gorakhnath are famous.  The Nath sect was scattered all over the country.  Guru Gorakhnath disseminated this community and collected the yogic teachings of this community, hence its founder is considered Gorakhnath.  In India, the Nath sect is known by the names Sanyasi, Yogi, Jogi, Nath, Avadhoot, Kaul, Upadhyaya (in western Uttar Pradesh), etc.  Some of his gurus had disciples of Muslims, Jains, Sikhs and Buddhism.  The people of this cult are considered descendants of Shiva.


 Heads of Nath Sect:


 Gurusadiguru: - Lord Shiva (Hindu deity) Machendranath: - 8th or 9th century Yoga Siddha, famous for "Tantra" traditions and unconventional experiments: Gorakshnath (Gorakhnath): - Born in 10th or 11th century, founder of the Mathist Nath sect, systematic yoga.  Famous for his ideas of techniques, organization, scripture of Hatha Yoga and devotion to Nirguna: Jalandharnath: 12th century Siddha, originally a resident of Jalandhar (Punjab), renowned in Rajasthan and Punjab region: - 14th century Siddha, originally  Chauranginath, a resident of Bengal, initiating a different sub-tradition within the Nath sect: - The son of King Devpal of Bengal, famous in the Punjab region in the north-west, is in Sialkot (now in Pakistan), a pilgrimage center related to him. Charpatinath: - Himachal Pradesh  Living in the Himalayan caves in the Chamba region, he rendered Avadhuta and told that one should increase his inner powers because external practices do not matter to us. Bhartruharinath: - The king of Ujjain and the scholar who became a yogi.  Gopichandnath: - Son of the queen of Bengal who had relinquished his throne. Ratnath: - 13th century Siddha, famous in central Nepal and Punjab, revered in both Nath and Sufi sect in North India: - 15th century Siddha,  Eminent in Gujarat, he established a monastery in the Kutch region, according to legends he made the Kutch region a living place. Mastanath: - Siddha of the 18th century, he founded a monastery in Haryana.


 lifestyle:


 Nath saints are saints.  They wear unstitched garments of saffron color.  These yogis keep a thread of black wool in their neck which is called 'Silay'.  A horn is placed in the throat.  These two are called 'Seungi Sealy'.  They have tongs in one hand, a lotus in the other hand, a coil in both ears, a waistband in the waist.  They are jatadhari.  Nathpanthi roams singing hymns and makes a living by begging.  In the last phase of his age, he stops at any one place and makes Akhand Dhuni Ram.  Some Nath seekers go to the Himalayan caves.  Apart from this, there are householder jogis in the Nath sect.


 Methodology:


 In the Nath Sampraday, devotion to Shiva is done with a sattvik sense.  He addresses Shiva under the name 'Alakh' (Alaksha).  They use the word 'order' or adish for salutation.  The word alakh and order means Pranava or 'Param Purush'.  Nath saints and saints lay special emphasis on hatha yoga.


 Guru tradition:


 Early ten Naths:


 Adinath, Anandinath, Karalanath, Vikralanath, Mahakal Nath, Kaal Bhairav ​​Nath, Batuk Nath, Bhootnath, Veeranath and Srikanthnath.  He had twelve disciples who are in this order - Nagarjuna, Jude Bharat, Harishchandra, Satyanath, Charpatnath, Avadhanath, Vairagyanath, Kantadhari Nath, Jalandharnath and Malayarjun Nath.


 Eighty-four Siddhas and nine Naths:


 In the 7th century, the tradition of Vajrayana of Buddhism came into vogue with the 6 Siddhas.  All these were also Nath.  Followers of the Vajrayana branch of Siddha Dharmakya were called Siddhas.  The number of those who became prominent among them is considered as eighty-four.

 Nine master

 1. Machendranath

 2. Gorakhnath

 3. Jalandharnath

 4. Nagesh Nath

 5. Bhartrinath

 6. Charpatinath

 7. Kanifnath

 8. Gahinath

 9. Revannath

 Apart from this, there are also:

 1. Adinath 2. Meenanath 3. Gorakhnath 4. Khaparnath 5. Satnath 6. Balaknath 7. Golak Nath 8. Birupakshanath 9. Bhartrihari Nath 10. Ayinath 11. Kherchi Nath 12. Ramachandranath.

 Omkar Nath, Uday Nath, Santosh Nath, Achal Nath, Gajabeli Nath, Gyan Nath, Chowrangi Nath, Matsyendra Nath and Guru Gorakshanath.  It is possible that it is the second name of the appropriate Naths.  Baba Shilnath, Dadadhuni Wale, Goga Nath, Pandharinath and Shri Swami Samarth, Gajanan Maharaj, Sai Baba are also considered to be of the Nath tradition.  It is noteworthy that Lord Dattatreya is considered to be of both Vaishnava and Shaiva sect, as he is also counted in the Naths.  Lord Bhairavnath is also considered the forerunner of the Nath sect.  And in particular, they are also called yogis and also called jogis.  Lord Shiva himself has given his name to Navnatho.  He is also called Nath Navnath of Natho.


 Retirement:


 There has not been any kind of discrimination in the Nath sect since time immemorial.  This sect can be adopted in any caste, varna and any age. Sanyasi means work, anger, attachment, greed, etc., abandoning the evil, attachment to the whole world and indulging in Shiva Bhakti by indulging in samadhi.  In ancient times, Raja-Maharajas used to leave their kingdom and take sannyas for this reason so that they left their remaining life for worldly troubles and lived ordinary lives like sadhus.  After adopting the Nath sect, the sanyasi was initiated only after 7 to 12 years of rigorous penance.  In special circumstances, initiation can be done at any time according to the Guru.  Before taking initiation or after getting initiation, one has to follow strict rules throughout his life.  He can never get a position in the court of a king, he can never get food in a royal court or a royal family, but he can definitely get alms from the royal court or the king.  He has to wear unstitched saffron clothes. With every breath he has to chant the word Mantra in his mind. He should also greet any other Nath with the word Mantra.  A sannyasin can cure someone's disease with yoga and herbs, but in lieu of that he can take only cereal or saffron cloth in alms from the patient or his family.  He cannot take any kind of jewelery, currency etc. in exchange for curing the disease and cannot store them.  The worldly fascination has to be renounced, after initiation, saints, jogis, Baba are pierced in both the ears and in them the kundalas are inserted.  Those who cannot be removed after wearing. No one in the Kundal can be considered a Yogi, Jogi, Baba, Sannyasi. Such a Sannyasi is a Jogi but he is not initiated by the Guru.  Hence they are considered as half-ascetics.


 #Saint:


 In Hinduism and other Indian religions, a saint calls a person who conducts truth and is enlightened, such as Sant Shiromani Guru Ravidas, Sant Kabirdas, Sant Tulsi Das Guru Ghasidas.


 The word 'Saint' is the plural of the nominative of the word 'Sat'.  It means - monk, monk, virakta or renounced man or mahatma.


 Examples


 Or life is the fruit that is tricked by ragging.

 The saint of research, Mahanthanhu Padmakar, said this.


 Devotees or religious men of God are also called saints.  In the definition of sages, a saint is a saint-free saint or saint who has become a householder by marriage.

 According to the Matsya Purana, the following definition of the word saint is:


 Brahmana: तिrutībhārāश्चa देa devāांanā persona murtiूर्तa :a। ।ससससम्पससस। ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म ब्रह्म.


 The Brahmin texts and the words of the Vedas, these are directory idols of the gods.  Those who have a combination of their and Brahm in their consciences are called saints.


 #Hermit:


 The Sannyasi is the one who has taken sannyas.  The one who exercises the senses is called a sannyasin.  The fourth ashram is the Sanyasashram among the four ashrams of Hindu or Sanatan Dharma.


 #Teacher:


 Achinoti ch Shastrani Achare Architecture.

 Self-contained Yasmadacharan architecture.  Achinoti ch shastrani acharyasten chochyate.  (Brahmapurana East Section 32.32)


 Acharya was an educational post in ancient times.  During the Upanayana ceremony, the child's guardian used to take him to the Acharya.  In the field of learning, Acharya does not have knowledge, superiority and success.  (Acharyaadhi Vidya Vihita Sadhishtham Pranayati.)


 Acharya, Guru and Upadhyaya were among the teachers of the highest order, among whom the position of Acharya was the best.  According to Manusmriti, Upadhyaya was one who taught a section of Vedas or Vedang (education, kalpa, grammar, nirukta, verses and astrology) to the student for a fee for their livelihood.  The Guru or Acharya used to keep the student with him by cremating and arranging for his complete teaching and yoga.  The meaning and merit of the word 'Acharya' has been considered in detail.  According to Nirukta, he is called an Acharya because he imparts (eclipses) the meaning and wisdom of ethics to the student.  According to the Apastamb Dharmasutra, he is said to be an Acharya because the student studies religion from him.  The election of Acharya was of great importance.  'He enters darkness from darkness to darkness, which he does not believe in.  Therefore, a noble, scholarly and properly balanced person should be selected for the post of Acharya.

 Yama (Viramitrodaya, Part 1, p. 408) has described the merit of Acharya in the following way:


 'Satyavakya, Dhritimana, Daksha, Sarvabhutadayapar, Aastika, Vednirat and Shukhiyukta, Vedadhyayanaspan, Vrittiman, Vijitendriya, Daksha, Enthusiastic, Ascendant, Jeevatra with affection, etc. are called Acharya.


 Acharya was a character of respect and reverence.  It is said in the Shvetashtaropanishad:

 One who has the ultimate devotion in God, just as in God, as in Guru, because by His grace only the light of meanings is revealed.  The place of acharya giving intellectual and spiritual birth is much higher than the father who gives birth to the body.


 # Yogi:


 A yogi who knows yoga or who practices yoga is called.


 # Muni:


 Saints, sadhus and sages without raga have been called sages.  Munis are also called Yeti, ascetic, monk and Shramana.  It is said in the Bhagavad Gita that those whose mind is not filled with grief, who does not desire happiness and those who are devoid of raga, fear and anger, are said to be monks with fixed intellect.  Vedic sages used to eat life after eating the kandamul of the forest.


 Jain monk:


 Jain scriptures refer to the sages who are free from restraint, whose soul is stable in restraint, devoid of worldly desires and those who protect the living beings.  The Jain sages follow the 28 original ganas.  These are the five vratas and non-violence (caution in movement), language, eshena (food purification), entrapment (caution in lifting religious equipment) and consecration (caution in the excretion of fecal urine), these are non-violence, truth, inability, celibacy and apragya.  Five committees follow.  He enjoins the five senses, and sustains these six essentials like Samayik, Chatuvinshatistava, Vandana, Pratikramana, Pratyakthana (renunciation) and Kayotsarga (renunciation of motherhood in the body).  They capitulate, remain naked, do not bathe and dent, sleep on earth, eat trident food and eat only once a day.  Together these are 28 basic qualities.


 #Rishi:


 In the Indian tradition, the sage is called the people who have appeared in the Shruti texts (i.e., understandable).  Individuals who appeared in deep meditation on the strength of their eccentric concentration, learned their deep meaning and wrote down the words seen in meditation for the welfare of human beings or animals.  That is why it was said - Rishi: Tu Mantra Drishtarah nor Tu Kartarah.  That is, the sage is the observer of the mantra and not the creator.  That is, the creator is only one God.  That is why his appropriation is spoken before chanting any mantra.  For example, the form of Asya Shri 'O', Paramatma Gayatri verses: Paramatma Rishi: Antaryami Deity Antaryami Preityarthe Self Realization Received  The etymology of the word Rishi is 'Rish' which means to look.  The published works of the sage are called Aarasha, which is made from this root, in addition words like vision (Nazar) are also from this root.  The Saptarshi is in the sky and also in our skull.

 The sage is in the sky, space and body in all three.


 # Maharishi:


 In ancient Indian Aryan culture, people who had reached the highest limit of knowledge and tenacity were called Maharishi.  Above this, the only category of sages was considered to be Brahmarshi.

 All of us humans have three types of eye, that is the wisdom eye, the divine eye and the ultimate eye.  Whose knowledge is awakened, it is called a sage, whose divine eye is awakened, it is called Maharishi and whose ultimate eye is also awakened, it is called Brahmarshi.  And the ultimate eye lies on our forehead.


Apart from this, there have been many sages like Valmiki and Brahmrishi in India.  Many Brahmarshis themselves are Lord Shri Rama Kalin, they gave astra-sastra and weapons to Lord Rama to fight with knowledge and Ravana.


 #Brahmarshi:


 The sages of the Brahmin clans, whose gotras went on.  Who were theologians.


 Those who lived in Brahmlok.


 The mantras of the Vedas were called sages.


 Those who interviewed religion were also called sages…. Rishya: Interviewed creation.


 He was the inspirational Ojasvita, the perfect poet of Rijuta.  His former number was seven.  He was called the Great Bear.


 His name comes in Shatapatha Brahmin.


 In the Mahabharata, it is widely used in various places.  Names also varied.


 Vishnupuran also added some names.


 A constellation of Saptarishis in the sky is considered.  Which revolves around the pole.


 Single Brahmarshi are as follows


 Arvavasu, Kashyapa, Dadhichi, Bharadwaja, Bhrigu, Krupa, Ashtavakra, Gautama, Daman, Manankanaka, Markandeya, Atri, Chyavan, Devasarman, Ruchik, Likha, Venus, Orva, Jajali, Narada, Lomash, Vasistha, Vyas, Pulastya, Vishvamitra,  Vairampathan.


 # Devarshi:


 Devarshi means - 'celestial sage';  It is one of the three categories of sages, the other two are Brahmrishi and Rajrishi.  The Rajrishi was the Kshatriya king who attained the status of a sage;  The difference between a sage and a Brahmrishi was austerities and siddhis and his life-span.


 A sage living in the world of gods and considered to be his counterpart;  It is called Devarshi.


 #great Bear :


 Great seven saints of india


 A circle of seven stars appears in the sky, they are called the Circle of the Saptarshis.  The stars of the said mandal are named after the great seven saints of India.  A detailed discussion of the position, speed, distance and extent of the said mandala is found in the Vedas.  There are seven sages in each manvantara.  Here is a brief introduction of seven great Rishis born in the era of Vaivavatav Manu.


 Rishi, the author of the Vedas: There are about one thousand Suktas in the Rigveda, about ten thousand mantras.  There are about twenty thousand in the four Vedas and the poets who composed these mantras, we call them sages.  Like the mantras of the other three Vedas, many sages have contributed to the creation of mantras of the Rig Veda.  But among them, there are seven sages whose clans had a long tradition of the sages who created the mantra.  These total traditions are stored in the Sukta ten mandalas of the Rig Veda and there are two to seven or six mandalas which we call the dynasty from tradition as they have been assembled with the mantras of the sages of the six sages.


 The names of the seven sages or sage clans revealed on studying the Vedas are as follows: - 1. Vashistha, 2. Vishvamitra, 3. Karma, 4. Bharadwaja, 5. Atri, 6. Vamdev and  7.Shonak.


 In Puranas, different nomenclature is found in the name of Sapta Rishi.  According to Vishnu Purana, the Saptarishi of this manvantara is as follows: - Vasishtakashipo Yatrairjamadagnissagaut.  Vishwamitrabharadvajo sapt saptarshyobhavn.  That is, in the seventh Manvantara, the Saptarishi is as follows: - Vashistha, Kashyapa, Atri, Jamadagni, Gautama, Vishwamitra and Bharadwaja.


 Apart from this, other nomenclature of Puranas are as follows: - These are Ketu, Pulah, Pulastya, Atri, Angira, Vashishta and Marichi respectively.


 In the Mahabharata, two names of Saptarshis are found.  The names of Kashyap, Atri, Bhardwaj, Vishwamitra, Gautama, Jamadagni and Vashishtha appear in one namavali, and five names are changed in the second namavali.  Kashyap and Vashistha remain there, but instead of the rest, the names Marichi, Angiras, Pulastya, Pulah and Kratu come.  In some Puranas, Kashyapa and Marichi are considered to be one, while elsewhere Kashyapa and Kanva are considered synonymous.  Here is an introduction to the Saptarishis according to the Vedic nomenclature.


 1. #Vashistha: Who does not know Rishi Vasishtha, the Vice-Chancellor of King Dasharatha.  He was the guru of the four sons of Dasaratha.  At the behest of Vashistha, Dashrath sent his four sons along with sage Vishwamitra to slay the demons.  There was also a battle for Kamadhenu cow in Vasistha and Vishwamitra.  When Vashistha gave the idea of ​​curb on the royalty, Vashishtha of his family made a new history by creating hundred suktas together on the banks of river Saraswati.


 2. # Vishvamitra: Vishwamitra was the king before he was a sage and he fought with sage Vasistha to grab Kamadhenu cow, but he lost.  This defeat inspired him to austerity.  Vishwamitra's penance and the story of Maneka dissolving his penance are world famous.  Vishwamitra, on the strength of his penance, had sent Hung to heaven in physical form.  In this way there are innumerable tales of sage Vishwamitra.


 Vishwamitra is believed to have created a different heavenly world in a fierce penance at the same place in Haridwar today where Shantikunj is there.  Vishwamitra taught this country to make Richa and composed the Gayatri Mantra, which has been living continuously in the heart of India and on Jeehana for thousands of years till date.


 3. # Kanva: It is believed that the most important Yajna of this country was organized by the Kanavas.  Kanva was a sage of the Vedic period.  In his ashram, Shakuntala, the wife of King Dushyant of Hastinapur and his son Bharat were raised.


 4. #Bhardwaja: Bharadwaja-sage holds a high position among the Vedic sages.  Bhardwaj's father was Jupiter and mother Mamta.  Bharadwaja was preceded by the sage Rama, but his longevity suggests that Rama had gone to his ashram at the time of exile, which was historically a treaty of Treta-Dwapara.  It is believed that one of the Bharadwajas, Bharadwaja Vidath, succeeded Dushyanta's son Bharata and continued to compose the mantra while reigning.


 Among the sons of Rishi Bharadwaj, 10 sages are the mantrasadha of the Rigveda and a daughter named 'Ratri' is also considered to be the mantraadhika of the night Sukta.  The seer Bharadwaja is the sage of the sixth division of ्वgveda.  There are 765 mantras of Bharadwaj in this circle.  23 mantras of Bharadwaj are also found in the Atharvaveda.  The creator of 'Bhardwaj-Smriti' and 'Bhardwaj-Samhita' was also Rishi Bhardwaj.  Rishi Bharadwaj had composed a large book called 'Yantra-Sarvasva'.  Some part of this book has been published by Swami Brahmamuni under the name of 'Vimana-Shastra'.  This book describes the manufacture of various metals for high and low level aircraft.


 5. #Atri: The seer of the fifth division of the Rigveda, Maharishi Atri was the son of Brahma, the father of Soma and husband of Kardam Prajapati and Anusuya, daughter of Devahuti.  When Atri went out, Tridev started asking for alms in the disguise of the Brahmin at Anasuya's house and told Anusuya that we will accept alms only when you take off all your clothes, then Anusuya, by virtue of her faithfulness, made the above three gods ignorant children  Gave them alms  Mata Anusuya preached Pativrata to Goddess Sita.


 Atri Rishi contributed to the development of agriculture in this country like Prithu and Rishabh.  The Atri people had crossed the Indus and gone to Paras (today's Iran), where they preached a yajna.  It was due to Atriya that the religion of Agnipalyas started the Parsi religion.  The ashram of Atri Rishi was in Chitrakoot.  It is believed that as a result of the austerity of the Atri-couple and the happiness of the trinity, Mahayogi Dattatreya was born as part of Vishnu, Moon as part of Brahma, and Mahamani Durvasa as part of Shankara and Maharishi Atri and son of Goddess Anusuya.  Ashwini Kumar was also pleased with Rishi Atri.


 6. #Vamdev: Vamdev gave Samagan (meaning music) to this country.  Vamdev is considered to be the sutradrushta of the fourth division of the Rigveda, the son of the sage Gautama, and the philosopher of the birthright.


 7. # Shaunak: Shaunak won the singular honor of the Vice Chancellor by running a Gurukula of ten thousand students and any sage achieved such honor for the first time.  Vedic acharya and sage who was the son of sage Shunak.


 Again, Vashistha, Vishwamitra, Kanva, Bharadwaj, Atri, Vamdev and Shaunak - these are the seven sages who gave so much to this country that the grateful nation gave them such an immortality by sitting in the constellations of the sky that the Saptarshi would hear the words  Our imagination rests on the constellations of the sky.


 Apart from this, it is believed that Agastya, Kashyapa, Ashtavakra, Yajnavalkya, Katyayan, Aitareya, Kapil, Gemini, Gautam etc. all sages are of the same status as the above seven sages.


 We often address all Brahmins with different names like Pandit ji, Guru ji, Acharya ji, Brahmin deity etc.  But have you ever tried to know the meaning behind these names?  Would not have done because what is kept in the name is everyone's thinking.  But I have made a small effort to know about these names which I am presenting to you.  First let's start with Guru because Guru is the first


 #Master


 Gu means darkness and Ru means light.  That is, the person who leads you from darkness to light is a guru.  Guru means the destroyer of darkness.  There is a lot of difference between people giving discourses on spiritual science or religious subjects and between gurus.  The Guru speaks of self-development and the divine.  Every Guru is a saint;  But every saint does not have to be a guru.  Only a few saints are eligible to become a guru.  Guru means the guide of Brahman knowledge.


 Goswami Tulsidas ji has written in the Ramcharit Manas lecturing the glory of Guru


 Guru post Raz Mridu Manjul Anjan.  Nayan amiya visha dosha bibhanjan॥

 Tehin kari bimal bibek bilochan.  Barnaun Ram Charit Bhavan Mochan ॥1॥



 Connotation: - The king of the feet of Shri Guru Maharaj is a gentle and beautiful nemesis, who is the destroyer of the defects of the eyes.  By refining the eyes of the conscience from that person, I describe Shri Ramcharitra, who is freed from the bondage of the world ॥1॥.


 #Teacher


 Acharya is said to be one who has knowledge of Vedas and scriptures and who works to teach students in Gurukul.  The meaning of an Acharya is that one who is a good knowledgeer of ethics, rules and principles etc. and teaches others.  He who is a good knowledgeer of rituals and acts as the chief priest in yagyas etc. was also called Acharya.  Nowadays, Acharya is called the principal officer and teacher of a college.


 #Purohit


 The priest is made up of two words: 'Par' and 'Hita', that is, a person who worries about the welfare of others.  In ancient times, the Ashram chief was called a priest, where education was imparted.  However, the main person performing the sacrificial act was also called a priest.  This priest is also appointed to perform all kinds of rites.  In ancient times, priests were also related to a royal family.  That is, priests were appointed in the royal court, who were involved in the advisory committee as well as seeing the work of religion.


 #Priest


 The meaning of this word related to worship and recitation is automatically revealed.  That is, the priest who recites the worship at the temple or any other place.  A person who worships an idol or statue of a deity is called a priest.


 #Pandit


 Pandah means scholarship.  To be proficient in a particular knowledge is called erudition.  Pandit means Dash or skilled in a particular knowledge.  It can also be called scholar or master.  The one possessing knowledge of a particular discipline is a scholar.  In ancient India, the great scholar of Vedas and scriptures etc. was called Pandit.  This priest is called Pandey, Pandey, Pandya.  Nowadays the name Pandit has also become a surname of Brahmins.  The Brahmins of Kashmir are also known as Kashmiri Pandits.  There is a practice of calling Pandit's wife as Panditin in native language.


 #Brahmin


 The word Brahmin is derived from Brahm.  The Brahman, who does not worship anyone except God, is called a Brahmin.  The priest who makes his living by offering priesthood is not a Brahmin, a yatchak.  An astrologer or one who makes his or her living with constellation is not a Brahmin, an astrologer.  The Pandit calls the expert of a subject and the person who creates the story is a narrator, not a Brahmin.  Thus anyone who performs karma except Veda and Brahma is not a Brahmin.  Whose mouth does not pronounce the word Brahman, it is not a Brahmin.  The Smritipuranas describe the eight distinctions of Brahman - mere, Brahmin, Srotriya, Anuchan, Embryo, Rishikalpa, Rishi and Muni.  The eight types of Brahmins are mentioned earlier in the Shruti.  Apart from this, Brahmins who are elevated from descent, knowledge and virtue are called 'Trishukla'.  The Brahmin is also called the Dharmist Vipra and Dwij which has no relation with any caste or society.


 Har Har Har Mahadev




____________________________________________________

























































































































































Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...