Sunday, January 3, 2021

माता भद्रकाली मंदिर या भदुली माता मंदिर - भदुली ग्राम , ईटखोरी ,चतरा जिला , झारखण्ड भारत Mata Bhadrakali Temple or Bhaduli Mata Temple - Bhaduli Village, Itkhori, Chatra District, Jharkhand India

Ek yatra khajane ki khoje

                               

   मां भद्रकाली मंदिर या भदुली माता मंदिर -  भदुली ग्राम , इटखोरी जिला चतरा , झारखंड भारत वर्ष।
  
नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा  आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको झारखंड के एक और रमणीक और ऐतिहासिक माता के मंदिर जिसे हम सभी मां भद्रकाली या भदुली माता के नाम से जानते हैं की यात्रा पर लेकर चल रहा हूं। जो अपने ऐतिहासिकता और प्राचीनता के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
                               दोस्तों तो आइए चलते हैं माता भद्रकाली की यात्रा पर दोस्तों चतरा जिले के इटखोरी प्रखंड मुख्यालय से डेढ़ किलोमीटर दूर पूरब में भदुली ग्राम में स्थित है माता भद्रकाली की मंदिर। दोस्तों या चतरा चौपारण मार्ग पर अवस्थित है चतरा जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर पूरब तथा चौपारण से 16 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में महानद और बक्सा नदी के संगम पर स्थित माता भद्रकाली धर्म  , सहिष्णुता और धार्मिक  सहअस्तित्व का प्रतीक है यह स्थान बक्सा नदी से तीन ओर से घिरा हुआ अंग्रेजी अक्षर 'यू' के आकार का है।
 दोस्तों आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह कितना रमणीक और ऐतिहासिक स्थल है कि यहां पर 1993 में ' मां भद्रकाली '  नामक वृत्तचित्र की शूटिंग भी यहां पर की गई थी।
 सबसे बड़ी बात है दोस्तों माता भद्रकाली मंदिर परिसर हरे-भरे जंगलों , झाड़ियों , झरनों एवं नदियों के मध्य स्थित होने के कारण और गया के निकट , मगध का एक मनमोहक आकर्षक , एकांत एवं शांत वातावरण में अवस्थित साधना के लिए साधकों एवं भक्तों को आकर्षित करता रहा है एवं यह भारत की प्राचीन , संस्कृतिक एवं धार्मिक धरोहर है। यह हिंदू , वैष्णव ,शैव , जैन और बौद्ध धर्म का संगम स्थल है। 

 नामकरण -   दोस्तों ईटखोरी का नामकरण बौद्ध काल से संबंधित है जैसा कि दोस्तों माना जाता है कि ईटखोरी का नाम पूर्व में ' इतखोई' था। ऐसी मान्यता है एवं किवदंती है कि यहां एकांत में अरण्य में जब सिद्धार्थ यानी गौतमबुद्ध अपनी निर्बाध एवं अटूट साधना में लीन थे तब उनकी मौसी , विमाता प्रजावति उन्हें वापस कपिलवस्तु ले जाने के लिए आईं थीं , किंतु जब तथागत का ध्यान मौसी के आगमन से भी नहीं टूटा तो पुत्र के लौटने की आशा त्यागकर प्रजावति को लगा कि उन्होंने अपना पुत्र रत्न यहां खो दिया है अतः उनके मुख से अनायास ही निकल पड़ 'इतखोई' अर्थात यही खोई । उसी समय से यह जगह इतखोई कहलाया , जो कालान्तर में ईटखोरी कहलाया और आज भी इसी नाम से प्रसिद्ध हैं।
              दोस्तों दूसरी मान्यता यह है कि इटखोरी शांति का पर्याय है क्योंकि इसका अर्थ होता है शांति इस क्षेत्र में 'खोरी' संकरी गली या छोटे रास्ते को कहा जाता है। ईट वास्तव में ईट के लिए व्यवह्रत होता था अर्थात  इट का रास्ता अर्थात पक्का रास्ता जो यहां के राजप्रासाद एवं सुंदर नगर होने का प्रमाण है और यहां के अवशेष इसके मूक साक्षी हैं। 
  इसी प्रकार दोस्तों ईटखोरी पाली भाषा के 'इतलखोई' का अपभ्रंश माना जाता है। स्वयं माता भद्रकाली की प्रतिमा भी पाल युगीन दिखाई पड़ती है। जाने-माने इतिहासकार डॉ ग्रियर्सन ने भी इसकी पुष्टि की है। दोस्तों काल की झंझावात  को पार करता हुआ ईतखोई अथवा ईतलखोई आज ईटखोरी के नाम से भी जाना जाता है। 
  दोस्तों चुकी मंदिर का परिवेश एक नदी भदुली के किनारे है इसलिए इसे माता भदुली भी कहा जाता है। जैन साहित्य में भदुली को 10 वें तीर्थंकर सितला स्वामी का जन्म स्थान बताया गया है। दोस्तों भदुली , भद्रकाली का अपभ्रंश है अभी भी जैन धर्मावलंबी माता भद्रकाली को भदुली माता कहते हैं। 
 
  दोस्तों  ई.एफ . लिस्टर जो कि हजारीबाग के तत्कालीन आयुक्त थे 1917 ईस्वी में , हजारीबाग जिले के गजेटियर का संकलन एवं संपादन किया। उन्होंने इस क्षेत्र को भदौली लिखा। अतः इस प्रकार भद्रकाली का अपभ्रंश भदुली हुआ और भदुली  को अंग्रेजी में उच्चारण की गड़बड़ी के कारण भदौली कहा गया। दोस्तों वास्तव में यह देखा जाए तो भद्रकाली ही  है।
 
 मुख्य मंदिर -   मुख्य मंदिर के गर्भगृह की लंबाई 14 फीट एवं चौड़ाई 12 फीट है जिसमें मां भद्रकाली की प्रतिमा स्थापित है।दोस्तों सन् 1968 तक यहां पर मां भद्रकाली एवं अष्टभुजी देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित थी किंतु 1968 में दोनों प्रतिमाओं की चोरी हो गई थी। बहुत ही प्रयास करने के बाद दोनों में से एक माता भद्रकाली की मूर्ति , कोलकाता से वापस लाई गई किंतु अष्टभुजी देवी दुर्गा की प्रतिमा , वापस नहीं लाई जा सकी।
       दोस्तों मां भद्रकाली की सौम्य प्रतिमा मंगला गौरी के रूप में है। मां भद्रकाली की प्रतिमा गोमेद पत्थर या अष्ट धातुओं से निर्मित उच्च कोटि की कला का नमूना है जिस पर समय का अब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ा है यह प्रतिमा लगभग 6:30 फीट ऊंची , ढाई फीट चौड़ी तथा 30 मन वजन की बताई जाती है जो अपने आप में एक अनूठी प्रतिमा है और भारत की अनुपम धरोहर भी है। 
 दोस्तों मुख्य मंदिर के बाहर चारों कोनों पर गौतम बुध की चार छोटी-छोटी प्रतिमाएं हैं , जो ध्यान मुद्रा में है उत्खनन से प्राप्त इन मूर्तियों को यहां पर प्रतिष्ठित कर दिया गया है।

 दोस्तों इसी प्रकार परिसर से खुदाई के दौरान 417 प्रतिमाएं एवं अन्य वस्तुएं प्राप्त हुई थी , जिन्हें जिला परिषद के विश्राम गृह में नवनिर्मित म्यूजियम में रखा गया है।

 दोस्तों मंदिर में कुल मिलाकर 24 प्रतिमाएं हैं जिनमें गौरी , शंकर , विष्णु , लक्ष्मी , सरस्वती , दुर्गा , गणेश , हनुमान , सूर्य देव आदि को पहचाना जा सकता है। साथ ही कुछ गन्धर्व कन्याओं की मूर्तियों तथा रिद्धि एवं सिद्धि की भी पहचान की जा सकती है। 

       मुख्य प्रतिमा की बाईं और  दाईं ओर ध्यान मुद्रा में लीन दूसरी प्रतिमाएं यह बताती है कि कोई राजकुमारी अपने साथियों एवं सुसज्जित घोड़े पर सवार होकर मां भद्रकाली की आराधना के लिए पधारी थी , प्रतिमा के दोनों ओर मां भद्रकाली का वाहन 'सिंह' सिंहनाद करता हुआ छलांग लगा रहा है। 
 
  हनुमान की प्रतिमा-  मां भद्रकाली के मंदिर के बाहर निकलते ही दृष्टि जाती है केसरी नंदन आंजनेय  की मनोरम मूर्ति पर लगता है कि अनंत काल से दुष्ट जनों से मां की रक्षा हेतु बजरंगबली अपनी गदा लेकर खड़े हैं ताकि भक्तजन निरापद रूप से मां की पूजा करने आ सके।

 खुला शिवालय-  मुख्य मंदिर से लगभग 200 फीट की दूरी पर एक खुला हुआ शिवालय है पूर्व के द्वार पर तीन पाषाण स्तंभ थे , जिसमें दो खड़े और एक नीचे लेटा हुआ स्तंभ था , किंतु उनकी एक विशेषता यह थी कि यह स्तंभ बिना किसी जोड़ के थे। यहां तक कि जमीन में भी खुदाई करके स्तंभ को गाढ़ा नहीं गया था और ना राजमस्त्री से काम लिया गया था , ऐसा लगता है कि दैव  कृपा से यह तीनों स्तंभ प्राकृतिक क्षय से अप्रभावित निर्बाध रूप से खड़े रहे। दोस्तों 1985 में  ये स्तंभ गिर पड़े और बगल में ही उन्हें रख दिया गया है। इन स्तम्भो पर कलात्मक नक्काशी की गई थी।जो लम्बाई में 6 फीट और चौड़ाई में 1 फीट है। इसका निचला भाग 9 इंच चौड़ा है नीचे जड़ के पास कमल दल उत्कीर्ण
 है।
 दोस्तों यहां पर एक विचित्र  सहस्त्र लिंगम शिव की मूर्ति  है जिसमें 1008 छोटे-छोटे शिवलिंंग उत्कीर्ण है शिवलिंग की ऊंचाई 5 फीट 3 इंच है , जबकि चौड़ाई 6 फीट 3 इंच है। 
         दोस्तों इस शिवालय के बाहर ठीक द्वार पर बीचोबीच एक विशाल शिव वाहन नंदी की प्रतिमा है , जो श्वेत पत्थर से निर्मित है यह प्रतिमा बैठने की मुद्रा में है इसका मुंह पश्चिम दिशा की ओर शिवलिंग के सामने है अब यह प्रतिमा भुरी दिखती है। दोस्तों कालक्रम के प्रवाह में नंदी का एक सींग टूट गया है। यह प्रतिमा एक ही विशाल पत्थर को तराश कर बनाई गई प्रतीत होती है जो 4 फीट 6 इंच लंबी और 4 फीट 3 इंच चौड़ी है।दोस्तों आश्चर्य की बात यह है कि इसे देखकर नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मंदिर की याद ताजा हो जाती है।
दोस्तों वर्तमान में अब एक शिवालय का निर्माण कार्य उसी स्थल पर प्रगति में है जो 71 फीट लंबा , 50 फीट चौड़ा और 65 फीट ऊंचा होगा। दोस्तों जीर्णोद्धार के पूर्व नाग नागिन की एक जोड़ा यहां निवास करती थी जिनके दर्शन भक्तजनों को प्राय: हो जाया करती थी ,किंतु बताते हैं कि अब यह जोड़ी वटवृक्ष के एक कोटर में निवास करती है तथा यदा-कदा भक्तजनों को आशीर्वाद देती है।
 सहस्त्र बुद्ध ( कांटेश्वरनाथ बौद्ध स्तूप)-  सहस्त्र लिंगम शिव की प्रतिमा से 100 कदम की दूरी पर एक बौद्ध स्तूप है जो सहस्त्र शिवलिंगम की आकृति का बना हुआ है , इस पर भगवान बुद्ध की 1004 लघु एवं चार विभिन्न मुद्राओं में बड़ी प्रतिमाएं उत्कीर्ण है . वास्तव में यह स्तूप 15 फीट ऊंचा है किंतु उसका एक बड़ा भाग जमीन के अंदर गड़ा हुआ है। अतः केवल 5 फीट ही दृष्टिगोचर होता है, आधार पर यह 8 फीट चौड़ा है , जो क्रमानुसार ऊपर में 2 फीट चौड़ा है। ऊपर का मस्तूल गड्ढा नुमा है जिस पर शिव लिंग के आकार का एक  लघु ढक्कन है दोस्तों मस्तूल से ढक्कन हटाने पर एक कोने से जल आश्चर्यजनक ढंग से पसीजता रहता है जो की खोज का विषय है।
                      दोस्तों भगवान बुद्ध के स्तूप एवं शिवलिंग की समानता अपने आप में कलाकृति का एक नमूना है। इस समानता के चलते ही दोनों के शिवलिंग होने का विवाद उठाया जाता रहा है।
                   धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही अगला भाग मैं कल लिखूंगा इसके लिए धन्यवाद।

                 माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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                 English translate
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  Maa Bhadrakali Temple or Bhaduli Mata Temple - Bhaduli Village, Itkhori District Chatra, Jharkhand India Year.



 Hello friends, I heartily congratulate all of you mountain lepards Mahendra, Friends, today I am taking you on a visit to another beautiful and historic mother temple of Jharkhand which we all know as Maa Bhadrakali or Bhaduli Mata.  Which is world famous for its historicity and antiquity.

 Friends, let's go on a visit to Mata Bhadrakali Friends of Mata Bhadrakali temple is located in Bhaduli village, one and a half kilometers east of Itkhori block headquarters in Chatra district.  Situated on the Friends or Chatra Chauparan Marg, 35 km east of the district headquarters of Chatra and 16 km southwest of Chaparan, Mata Bhadrakali at the confluence of the Mahanad and Baksa rivers is a symbol of religion, tolerance and religious coexistence.  The surrounded English letter is 'U' shaped.

 Friends, you will be surprised to know how delightful and historic it is that in 1993 the documentary titled 'Maa Bhadrakali' was also shot here.

 The biggest thing is the Friends Mata Bhadrakali temple complex being situated amidst lush green forests, bushes, waterfalls and rivers and near Gaya, attracting seekers and devotees for spiritual practice situated in an enchanting attractive, secluded and serene environment of Magadha.  It has been doing this and it is the ancient, cultural and religious heritage of India.  It is a confluence of Hindu, Vaishnavite, Shaivite, Jain and Buddhism religions.

 Nomenclature - The nomenclature of Friends Itkhori is related to the Buddhist period as friends believed that the name of Itkhori was formerly 'Itkhoi'.  There is a belief and legend that when Siddhartha i.e. Gautam Budhha was absorbed in his uninterrupted and unbreakable sadhana in Aranya here in seclusion, his aunt, Vimata Prajavati came to take him back to Kapilavastu, but when Tathagata's attention also came from her aunt  If not broken, Prajavati felt that he had lost his son Ratna here, abandoning the hope of his son's return, so it was 'Itkhoi' that came out of his mouth unintentionally.  Since that time, this place has been called Itkhoi, which was later called Itkhori and is still famous by this name.

 Friends, another belief is that itkhori is synonymous with peace because it means peace in this area is called 'Khori' narrow street or small street.  The brick was actually used for brick, ie the way of it, that is the paved road, which is the proof of being a royal city and a beautiful city, and its remains are silent witnesses.

 Likewise, itkhori is considered a corruption of 'Italkhoi' of Pali language.  The idol of Goddess Bhadrakali herself is also seen in Pal Yugin.  The noted historian Dr. Grierson has also confirmed this.  Itkhoi or Ithalkhoi is also known as Itkhori, crossing the mess of friends.

 The ambience of the Friends Chuka Temple is on the banks of a river Bhaduli, hence it is also called Mata Bhaduli.  In Jain literature, Bhaduli is described as the birthplace of 10th Tirthankara Sitala Swamy.  Friends, Bhaduli is an aberration of Bhadrakali. Still, Jaina long-standing mother Bhadrakali is called Bhaduli Mata.


 Friends ef  Lister, who was the then Commissioner of Hazaribagh, in 1917 AD, compiled and edited the Gazetteer of Hazaribagh district.  He wrote the region as Bhadauli.  Thus, Bhadrakali's profanity was misplaced and Bhaduli was called Bhadauli due to pronunciation slang in English.  Friends, in reality it is Bhadrakali.


 Main Temple - The sanctum sanctorum of the main temple is 14 feet in length and 12 feet in width, where the idol of Goddess Bhadrakali is installed. By 1968, the idol of Goddess Bhadrakali and Ashtabhuji Devi Durga was installed but both the statues were stolen in 1968.  .  After much effort, the idol of one of the two Goddess Bhadrakali was brought back from Kolkata but the statue of Ashtabhuji Devi Durga could not be brought back.

 Friends is the gentle statue of mother Bhadrakali as Mangala Gauri.  The idol of Maa Bhadrakali is a specimen of high quality art made from onyx stone or octal metals, which has not had any effect on time till now.  It is a unique statue in itself and also has a unique heritage of India.

 There are four small idols of Gautam Mercury at the four corners outside the Friends main temple, which is in meditation posture, these statues obtained from excavation have been revered here.

 Friends, similarly 417 statues and other objects were found during the excavation from the premises, which have been kept in the newly constructed museum in the rest house of the Zilla Parishad.

 There are a total of 24 statues in the Friends temple in which Gauri, Shankar, Vishnu, Lakshmi, Saraswati, Durga, Ganesh, Hanuman, Surya Dev etc. can be identified.  Also, the idols of some Gandharva girls and Riddhi and Siddhi can also be identified.


 The other idols in the meditative posture on the left and right side of the main statue show that a princess was rushing to worship her mother Bhadrakali by riding on her companions and a well-equipped horse, with the vehicle 'Singh' emblazoned on both sides of the statue.  Is leaping.


 Hanuman's statue- As soon as the mother Bhadrakali's temple comes out, Kesari Nandan looks at the picturesque statue of Anjaneya that Bajrangbali is standing with his mace to protect the mother from evil people from eternity so that the devotees can safely worship the mother  Could come.


 Open Pagoda - There is an open pagoda about 200 feet away from the main temple. There were three stone pillars at the east gate, with two standing and one lying down pillar, but one of their specialties is that this pillar is without any joints.  Were.  Even by digging in the ground, the pillar was not thickened and the masonry was not used, it seems that by grace, these three pillars stood uninterrupted, unaffected by natural decay.  Friends, these pillars fell in 1985 and they are placed next to it.  Artistic carvings were done on these pillars which are 6 feet in length and 1 feet in width.  Its bottom is 9 inches wide. Lotus crew engraved near the bottom root.

 is.

 Friends, there is a bizarre Sahastra Lingam Shiva idol in which 1008 small Shivalingas are engraved. The height of Shivling is 5 feet 3 inches, while the width is 6 feet 3 inches.

 Friends, right in the middle of this pagoda is a huge Shiva vehicle Nandi statue in the center, which is made of white stone.  A horn of Nandi is broken in the flow of friends chronology.  The statue appears to have been carved out of a single huge stone which is 4 feet 6 inches long and 4 feet 3 inches wide. Friends are astonishing to see that it is reminiscent of the Pashupatinath temple in Nepal.

 Friends, now the construction work of a pagoda is in progress at the same site which will be 71 feet long, 50 feet wide and 65 feet high.  Before the restoration of friends, a pair of serpent serpents resided here, whose devotees often visited the devotees, but they say that now the couple lives in a coter of Vatavriksha and bless the devotees occasionally.

 Sahastra Buddha (Kanteshwaranath Buddhist Stupa) - Sahastra Lingam is a Buddhist Stupa 100 steps away from the idol of Shiva which is made of the shape of Sahastra Shivlingam, it has 1004 small and four large statues of Lord Buddha engraved on it.  In fact, this stupa is 15 feet high but a large part of it is buried underground.  So only 5 feet is visible, at the base it is 8 feet wide, which is 2 feet wide at the top.  The top of the mast is a crater with a small Shiva linga shaped lid on it. Friends remove the lid from the mast and the water from one corner exhales wonderfully, which is the subject of the discovery.

 The resemblance of the stupa and the lingam of the friends Lord Buddha is a specimen of the artwork in itself.  Due to this similarity, the dispute of Shivling is being raised.

 Thank you guys for today, I will write this next part tomorrow, thank you for that.

 Mountain Leopard Mahendra





                  Thank you

Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...