Friday, December 4, 2020

बहन की शादी की अनमोल यादें - बोधगया बिहार

Ek yatra khajane ki khoje



नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लेपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। बहन की शादी की की कुछ शानदार यादें।
 



          
माता मंदिर में 
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          शादी की रस्म निभाते हुए मैं और मेरी पत्नी
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बच्चों के साथ
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                         मैं और मेरी पत्नी
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                       रात्रि में आंगन में सेल्फी लेते हुऐ
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                             बहन और बिटिया रानी
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मां , बहन , पत्नी और बिटिया रानी

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स्वर्ण रेखा नदी तट पर
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जयमाला कार्यक्रम
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               बच्चों के साथ आनंद उठाते हुए
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सेल्फी 
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पारिवारिक मिलन कार्यक्रम
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रिंग सेरेमनी
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शानदार पल
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अनमोल छन्


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यादों की बारात
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धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा



Sunday, November 22, 2020

दुर्लभ प्रजाति की जइया मिर्च- बलराम पुर छत्तीसगढ़ भारत। Jaiya chilli of rare species - Balram Pur Chhattisgarh India

Ek yatra khajane ki khoje


                  
दुर्लभ जइया मिर्च
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Rare jaya chili
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नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं छत्तीसगढ़ की यात्रा पर जहां आपकी मुलाकात होगी दुर्लभ प्रजाति की जइया मिर्च से जो अपने तीखेपन के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं।
तो आइए चलते हैं तीखेपन का मजा लेने 🙏🙏 


▶️ दुर्लभ प्रजाति की जइया मिर्च के गुण दुनिया जल्द जानेगी। दरअसल , दोस्तों आईआईटी कानपुर में इस पर छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के रामलाल लहरें शोध करेंगे।
लहरें को नेशनल इनीशिएटिव फॉर डेवलपिंग एंड हारनेसिंग इनोवेशन ने एंटरप्रेन्योर इन रेसिडेंस फेलोशिप के तहत 1 वर्ष के लिए अनुबंधित किया है। यह फेलोशिप केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के माध्यम से आईआईटी कानपुर ने दी है। 

▶️ दोस्तों लहरे ने छत्तीसगढ़ के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली दुर्लभ व तीखी   प्रजाति की जइया मिर्च के संरक्षण , संवर्धन और उससे आचार  ,चिल्ली पेस्ट  ,सास , मसाला व बीज उत्पादन की संभावनाएं तलाशी हैं । भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई के अनुसार इस मिर्च में 2% कैपसाइसिन योगिक पाया जाता है। एमएससी में गोल्ड मेडलिस्ट लहरें को जइया  मिर्च से मधुमेह और कैंसर जैसी घातक बीमारियों का इलाज खोजने के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च द्वारा नेशनल इनोवेटिव फार्मर अवार्ड 2020 मिल चुका है। दोस्तों बायोटेक्नोलॉजी से पोस्ट ग्रेजुएट रामलला ने बताया कि 2016 में वाह अपने गृह ग्राम वाड्राफ नगर महुली के पहाड़ी क्षेत्र में घूम रहे थे। इसी दौरान उनकी नजर इस प्रजाति की मिर्च पर पड़ी थी। एवं सामान्य मिर्च की तुलना में इसका आकार - प्रकार (मार्फो लॉजिकल कैरेक्टर) अलग था। यह तना से नीचे के बजाय ऊपर की ओर था। एवं ज्यादा तीखे पन के कारण उन्होंने इसके बीजों का संरक्षण शुरू किया। इसके बाद इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के विज्ञानी डॉ दीपक शर्मा से संपर्क किया तो पता चला कि यह जइया  प्रजाति की मिर्च है। इसके बाद ही डॉ शर्मा ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र मुम्बई को मिर्च का सैंपल भेजा तो पता चला कि मिर्च में कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक कैप्साइसिन यौगिक मौजूद हैं , जिसे कैप्सूल का रूप दिया जा सकता है।

                    जीवन रक्षक औषधि के गुणों से भरपूर__  _  _______________________________
1. जइया मिर्च में पाया जाने वाला कैप्सइसिन योगिक शुगर का लेवल कम करने में लाभदायक है।
2. विटामिन ए , बी , सी  व इम्युनटी बढ़ाने में भी यह मिर्च मददगार है।
3. कैप्सइसिन यौगीक  के कोलेस्ट्रॉल को कम करने में भी सहायक है , जो हृदय रोगियों  को लाभ पहुंचाता है 


              इसे धन मिर्ची भी कहते हैं
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 जइया मिर्ची को छत्तीसगढ़ प्रदेश के सरगुजा जिले में धन मिर्ची के नाम से भी जाना जाता है। दोस्तों रामलला ने भी 20 डिसमिल जमीन में जइया मिर्च की खेती शुरू की थी। और इस बार उन्होंने 40 डिसमिल जमीन में खेती की है और करीब 2000 पौधे लगाए हैं। दोस्तों ठंडे प्रदेशों में इसकी पैदावार कई सालों तक की जा सकती है।


धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही और दोस्तों मैं आशा करता हूं कि अगले यात्रा पर मैं आपको एक से बढ़कर एक जानकारियां दूंगा और अपने एक यात्रा खजाने की खोज
को निरंतर आगे बढ़ाता रहूंगा धन्यवाद दोस्तों।


                          माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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                  English translate
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रामलाल लहरे 
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Hello friends I extend my hearty greetings to all of you mountain leopard Mahendra.  Friends, today I am taking you on a trip to Chhattisgarh where you will meet the rare species of Jaiya Chilli, which are world famous for their sharpness.

 So let's go to enjoy the sharpness.



 The quality of Jaiya pepper of rare species will be known soon in the world.  Actually, friends at IIT Kanpur, Ramlal waves of Balrampur district of Chhattisgarh will do research on this.

 Lahar is contracted by the National Initiative for Developing and Harnessing Innovation for 1 year under the Entrepreneur in Residence Fellowship.  This fellowship has been awarded by IIT Kanpur through the Ministry of Science and Technology of the Central Government.

 ️ ️ Friends Lahre has explored the possibilities of conservation, promotion and production of pickles, chilli paste, saas, spices and seeds of Jaiya chilli, a rare and pungent species found in some hilly areas of Chhattisgarh.  According to Bhabha Atomic Research Center Mumbai, 2% capsaicin is found in this chilli.  Gold Medalist Waves at MSC has received the National Innovative Farmer Award 2020 by the Indian Council of Agriculture Research for finding a cure for deadly diseases like diabetes and cancer from Jaiya Pepper.  Friends, Ramlala, a post graduate from Biotechnology, told that in 2016 Wah was roaming in the hilly area of ​​his home village Vadraf Nagar Mahuli.  During this time, he had his eye on the pepper of this species.  And its size - type (marfo logical character) was different compared to normal chili.  It was upward rather than downward from the stem.  And due to the sharper pan, they started preserving its seeds.  After this, I contacted Dr. Deepak Sharma, a scientist at Indira Gandhi Agricultural University, Raipur, and came to know that it is a pepper of Jaiya species.  Only after this Dr. Sharma sent a pepper sample to the Bhabha Atomic Research Center, Mumbai, it was found that chillies contain capsaicin compounds that help in reducing cholesterol, which can be given in capsule form.


 Full of life saving medicine

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 1. Capsaicin found in Jaya chili is beneficial in reducing the level of yogic sugar.

 2. This chili is also helpful in increasing vitamin A, B, C and immunity.

 3. Capsaicin is also helpful in lowering cholesterol in the liver, which benefits heart patients.



 It is also called Dhan Mirchi
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 Jaiya Mirchi is also known as Dhan Mirchi in Surguja district of Chhattisgarh region.  Friends Ramlala also started the cultivation of Jaiya chilli in 20 decimals of land.  And this time, they have cultivated 40 decimals of land and planted around 2000 saplings.  Friends, it can be grown for many years in cold regions.



 Thank you guys, that's all for today and friends, I hope that on the next trip, I will give you more than one information and one of my journey treasure hunt

 I will keep pushing forward thanks guys.


 Mountain Leopard Mahendra

                     दुर्लभ जइया मिर्च
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                     Rare jaya chili


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Saturday, November 21, 2020

आत्मनिर्भर भारत: कोसा की साड़ी के बुनकरों की की खत्म होगी आयात पर निर्भरता अब छत्तीसगढ़ में मे महिलाएं मशीनों के जरिए करेंगी तैयारी Self-reliant India: Weavers of Kosa saree will end dependence on imports, now women in Chhattisgarh will prepare through machines

Ek yatra khajane ki khoje

             
कोरबा में धागों से ताना तैयार करतीं महिलाएं
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Women preparing warp threads in Korba
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नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्त  एक यात्रा खजाने की खोज के दरमियान मैं पहुंच चुका हूं छत्तीसगढ़ की यात्रा पर।

 

आत्मनिर्भर भारत: कोसा की साड़ी के बुनकरों कि खत्म होगी आयत पर निर्भरता ,अब छत्तीसगढ़ में महिलाएं मशीनों के जरिए करेंगी तैयार।
▶️ दोस्तों हथकरघे पर कोसा के कपड़े की बुनाई के लिए अब छत्तीसगढ़ के बुनकर चीन और दक्षिण कोरिया के बजाय स्वदेशी ताना (लंबवत या वर्टिकल धागा) का उपयोग करेंगे। केंद्रीय रेशम बोर्ड अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र बेंगलुरु में इसके लिए मशीनें तैयार की गई है। दोस्तों छत्तीसगढ़ के कोरबा में भेजी गई इन मशीनों के संचालन का महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके बाद महिलाएं स्वदेशी ताना तैयार करेगी।

दोस्तों छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में करीब 12 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र में प्रतिवर्ष दो करोड़ 50 लाख नग (लच्छे ) कोसा (यह एक विशेष प्रकार का धागा होता है) का उत्पादन होता है। इससे बुने जाने वाले कपड़े को ही कोसा सिल्क कहते हैं। दोस्तों यहां तैयार होने वाले कोसे की साड़ी वह कुर्ते की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मांग है। इस कपड़े की बुनाई के लिए ताना का मजबूत होना जरूरी है।। दोस्तों दुख की बात यह है कि स्वदेशी तकनीक विकसित नहीं होने के कारण बुनकर ताना के लिए चीन और दक्षिण कोरिया पर निर्भर थे। बाना (चौड़ा या होरिजेंटल धागा) से ताना पर बुनाई होती है।
दोस्तों इस समय कोरोना काल में चीन से तल्खी के बीच ताना का आयत बंद हो गया। इसी दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान का सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। इसी दरमियान जिला रेशम एवं तसर केंद्र के सहायक उप संचालक बीपी विश्वास ने बताया कि केंद्रीय रेशम बोर्ड अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र बेंगलुरु के सहयोग से प्रदेश में पहली वेट रीलिंग यूनिट की स्थापना कोसा बाड़ी में की गई है । यहां 20 रीलींग 12 बुनियादी और 10 स्पिनिंग मशीनें लगाई गई है। इन पर 12 समूह की 40 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही हैं।।

यह सभी महिलाएं एक माह के अंदर ताना बनाने में दक्ष हो जाएंगे। इसके बाद सब्सिडी दर पर इन महिला समूहों को रेशम बोर्ड मशीनें उपलब्ध कराया जाएगा। इससे होने वाली कमाई से आसान किस्तों में मशीन की कीमत चुकाने की स्व- सहायता समूह की महिलाओं को सुविधा दी जाएगी ।

▶️ प्रतिवर्ष 8000 किलो की खबर: दोस्तों जिले की छुरी व  उमरेली में करीब 400 बुनकर हैं। इन्हें कोसा के कपड़े की बुनाई के लिए प्रतिवर्ष 8000 किलोग्राम ताना की जरूरत होती है। दोस्तों बताया जाता है कि वेट रीलिंग इकाई कोसा बाड़ी में प्रतिवर्ष 3 हजार किलोग्राम रेशम के धागे का उत्पादन होगा। एवं धीरे-धीरे इसकी क्षमता बढ़ाई जाएगी। 

▶️ प्रति किलो पंद्रह सौ रुपए की बचत : दोस्तों बुनकर आयातित ताना ₹7000 रुपए प्रति किलो के भाव से खरीदते हैं। लेकिन अब 1 किलो स्वदेशी ताना के उत्पादन में 5 हजार 5सौ रुपए की लागत आएगी। इस तरह प्रति किलो 1500 रुपए की बचत होगी। दोस्तों छत्तीसगढ़ में ज्यादातर बुनकर परिवार की महिलाएं   ही इसका प्रशिक्षण ले रही है , ताकि घर पर ही इसे तैयार कर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सके। 

▶️ कोसा ऐसे तैयार होता है- कोसा रेशम किट अर्जुन , साजा , साल , सेन्हा के पेड़ों पर पाया जाता है। यह किट  पत्तेेे खाकर 45 से 55 दिनों में  कोसा फल तैयार करता है । दोस्तों वर्ष भर में इसके तीन जीवन चक्र होते हैं।कोरवा आदिवासी जनजातीय परिवार इन कीड़ों का पालन करते हैं।  जनजातीय समुदाय कोसा फल को एक निश्चित ताप पर उबालते हैं ताकि  यह मुलायम हो जाय । इन मुुुलायम कोस सेे  नम रहते ही  धागा तैयार कर लिया जाता है।  

           धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।

              माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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                  English translate
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कोरबा में कोसा के फल से धागा तैयार करती महिलाएं
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Women preparing thread in Korba with the fruit of Kosa
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 Hello friends I heartily congratulate all of you mountain leopard Mahendra, friend, I have reached Chhattisgarh on the journey of a treasure hunt.





 Self-reliant India: Weavers of Kosa saree will end dependence on rectangles, now women in Chhattisgarh will be ready through machines.

 ️ ️ Friends, the weavers of Chhattisgarh will now use indigenous warp (vertical or vertical thread) instead of China and South Korea to weave kosa cloth on handlooms.  Machines have been prepared for this at the Central Silk Board Research and Training Center, Bangalore.  Friends, women are being trained to operate these machines sent to Korba in Chhattisgarh.  After this, women will prepare indigenous warp.


 Friends: In the Korba district of Chhattisgarh, about 12 thousand hectares of forest area is produced in two crore 50 lakh pieces of kosha (it is a special type of thread).  The fabric woven from it is called kosa silk.  Friends, this kurti sari, which is prepared here, is also internationally demanded.  The weft of this fabric is necessary to be strong.  Friends, the sad fact is that weavers depended on China and South Korea for warp due to indigenous technology not being developed.  Bana (wide or horizontal thread) is woven on the warp.

 Friends, at this time during the Corona era, the rectangle of taunting between China and China was closed.  During this time, the positive impact of the self-reliant India campaign of Prime Minister of India Narendra Modi was seen.  Meanwhile, Assistant Director of the District Silk and Tasar Center BP Vishwas told that the first weight reeling unit in the state has been established in Kosa Bari in collaboration with the Central Silk Board Research and Training Center, Bangalore.  There are 20 releasing 12 basic and 10 spinning machines.  40 women of 12 groups are undergoing training on these.


 All these women will become proficient in making taunts within a month.  After this, silk board machines will be made available to these women groups at a subsidized rate.  The women of the self-help group will be given the facility to pay the cost of the machine in easy installments from the income generated from it.


  News of 8000 kg per annum: Friends, there are about 400 weavers in Churi and Umreli of the district.  They require 8000 kg of warp every year to weave the fabric of Kosa.  Friends are told that 3 thousand kg silk thread will be produced every year in the weight reeling unit at Kosa Bari.  And gradually its capacity will be increased.


  Savings of fifteen hundred rupees per kilogram: Friends weavers buy imported warp for ₹ 7000 per kg.  But now the production of 1 kg of indigenous warp will cost 5 thousand 5 hundred rupees.  In this way, there will be a savings of 1500 rupees per kg.  Friends, in Chhattisgarh, mostly women of weaver family are taking training so that it can be prepared at home to earn extra profit.


 ▶ ️ Kosa is prepared like this - Kosa silk kit is found on Arjuna, Saja, Sal, Senha trees.  This kit prepares whipped fruit in 45 to 55 days after eating leaves.  Friends, it has three life cycles throughout the year. Korwa tribal tribal families follow these insects.  Tribal communities boil the whipped fruit at a certain temperature so that it becomes soft.  The thread is prepared as soon as these muulayam are kept moist.


 Thanks guys, that's all for today.


 Mountain Leopard Mahendra

        
         कोसा रेशम कीट
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          Whipped silkworm
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Friday, November 20, 2020

लेख- इतिहास में दफन हमारे नायक Articles - Our heroes buried in history

Ek yatra khajane ki khoje



    
लाल किला



 


नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। 🙏🙏
 


➡️ इतिहास अमृत होता हैं।सतत विकासशील। जय पराजय में समभाव । दोस्तों तथ्य- सत्य को अंगीकृत करता है।वह किसी के प्रभाव में नहीं आता, पर सब को प्रभावित करता है। काल गति का तटस्थ दर्शक होता है , इसलिए इतिहासकारों को भी निष्पक्ष रहना चाहिए , लेकिन अधिकांश भारतीय इतिहासकारों ने स्वार्थवश  मनमानी की है। कई महत्वपूर्ण घटनाओं और नायकों की उपेक्षा हुई है। तथ्यों को तोड़ने -मरोड़ने का अपकृत्य भी किया है। इतिहास केवल भूत नहीं होता। यह भूत के साथ अनुभूत भी होता है। इस विवरण में जय पराजय का लेखा होता है। हर्ष - विषाद के विवरण होते हैं। राष्ट्र जीवन को उमंग से भरने वाले प्रेरक प्रसंग भी होते हैं।
शक्तिशाली पूर्वजों की स्मृति साहसी बनाती है। इतिहास में गर्व करने लायक प्रसंग होते हैं और पराजय के दंश भी। गर्वोक्ति के प्रसंग राष्ट्रीय सामर्थ्य को बढ़ाते हैं और पराजय के प्रसंग गलती न दोहराने की शिक्षा देते हैं। सशक्त और संपन्न राष्ट्र के लिए वास्तविक इतिहास बोध अनिवार्य है ,लेकिन यूरोपीय विद्वानों और उनके समर्थक भारतीय विद्वानों ने साम्राज्यवादी स्वार्थ की पूर्ति के लिए इतिहास को तहस-नहस किया। वामपंथी इतिहासकारों ने भी भारत को सदा पराजित सिद्ध करने का काम किया।इसलिए भारत के इतिहास को नए सिरे से जांचने और प्रमाणिक बनाने की बहस काफी समय से चल रही है।
भारत सदा पराजित देश नहीं रहा।हमारे इतिहास के नायकों ने विदेशी हमलावरों  और उनके शोषण को कभी स्वीकार नहीं किया। दोस्तों बकिम चंद्र ने लिखा था , ' अरब एक तरह से दिग्विजयी  रहे हैं। उन्होंने जहां आक्रमण किया वहां जीते , उन्होंने मिस्र , सीरिया , ईरान अफ्रीका , स्पेन , काबुल और तुर्किस्तान   पर  कब्जा किया , पर फ्रांस और भारत से पराजित होकर लौटे। लेकिन  100 वर्ष में भी वे भारत को नहीं जीत सके। ' यह तथ्य भारत की नई पीढ़ी को अल्प ज्ञात है  ,
क्योंकि भारतीय पौरुष पराक्रम
की घटनाओं और इतिहास के नायकों की उपेक्षा की गई ।
जेएस मिल ने  ' हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया ' लिखी थी। इंग्लैंड से भारत आने वाले अधिकारियों के लिए इसका अध्ययन उपयोगी बताया बताया गया था। जेएस मिल जैसे लेखकों ने भारतीय इतिहास को ब्रिटिश इतिहास का हिस्सा बनाने में कोई कोर -कसर नहीं छोड़ी।
प्राचीन काल को हिंदू इतिहास  ,मध्यकाल को मुस्लिम और आधुनिक काल को ब्रिटिश इतिहास बताया गया।
सच यह है कि संपूर्ण भारत पर न कभी अंग्रेजों की सत्ता रही और नहीं मुगलों की। 
मोहम्मद बिन कासिम मध्यकाल में पहला विदेशी हमलावर था। सिंधी के राजा दाहिर ने उसे सीधे संघर्ष में पराजित किया था। बाद में षड्यंत्र हुआ।
दोस्तों आप लोगों को पता ही होगा कि दाहिर भी इतिहास में प्रशंसा का पात्र नहीं है।बहुत ही अफसोस की बात है कि हमारे इतिहास के नायक इस तरह गुमनाम जिंदगी जी कर भी गुमनाम हो गए हैं।
इसी प्रकार हमारे एक और नायक जो कि उत्तर प्रदेश में बहराइच के राजा सुहेलदेव थे ने महमूद गजनबी के निकट संबंधी सैयद सालार गाजी और उसकी फौज को हराया था। लेकिन इतिहास में सुहेलदेव के पराक्रम का उल्लेख नगण्य है।
दोस्तों आप लोग शायद जानते होंगे कि केरल के मार्तंड वर्मा कई भाषाओं के विद्वान थे। परंतु उन पर भी इतिहासकारों का ध्यान नहीं गया और  वे इतिहास के पन्नों में  गुमनाम हो गए । 
हमारे एक और पराक्रमी राजा हुआ करते थे वे थे चोल वंश के राजेंद्र चोल उन्होंने दक्षिण पूर्व एशिया के बड़े भाग पर अपने पराक्रम का प्रदर्शन किया था। जिस कारण से बंगाल की खाड़ी को चोल खाड़ी कहां जाने लगा था। सबसे बड़ी बात थी कि उनके पास समुद्री सेना भी थी लेकिन हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने उन्हें भी भुला दिया।दोस्तों भूले बिसरे नायकों की सूची में बंगाल के भास्कर बरमन भी हैं जिन्हें भी भुला दिया गया है।
दोस्तों आप सभी लोग विजयनगर साम्राज्य के बारे में तो जानते ही होंगे जो कि अपनी शासन व्यवस्था के लिए काफी चर्चा में रहा है  कृष्ण देव राय की शासन व्यवस्था आदर्श थी। उन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास किया। साथ ही साथ उन्होंने मुस्लिम समाज को बराबर का सामान दिया था।
▶️ दोस्तों भारतीय स्थापत्य की तीन शैलियां मानी जाती है -द्रविड़ , नागर और बेसर ।
द्रविड़ शैली का चरम विकास विजयनगर में हुआ था। मीनाक्षी मंदिर इसका प्रमाण है। नूनिज और पाइस आदि विद्वानों ने इस व्यवस्था की प्रशंसा की है,  लेकिन इतिहास में राजा और राज्य की प्रतिष्ठा को भुला दिया गया। यही स्थिति महाराष्ट्र में बाजीराव और बालाजी बाजीराव के साथ भी हुआ है। दोस्तों उन्होंने दिल्ली के लाल किले पर हमला किया। जीता। हिंदू पद पादशाही उन्हीं की अवधारणा है  और 'अटक से कटक' तक भारत के विस्तार की भी, लेकिन इतिहास में उनकी उपेक्षा हुई।
यूरोपीय वामपंथी इतिहासकारों ने बाबर , गजनी , गोरी  , औरंगजेब आदि को महत्व दिया। मध्यकाल को मुगल या मुस्लिम इतिहास सिद्ध करते रहें। मूर्तियों  ,मंदिरों के ध्वंस कर्ताओं और उत्पीड़कों  को नायक के रूप में पेश किया गया। जिस कारण से मुस्लिम समाज के 1 वर्ग में इसका गलत प्रभाव पड़ा। और हिंदुओं और मुसलमानों के नायक अलग-अलग हो गए ।आप लोगों को पता होगा दोस्तों एकताबद्ध राष्ट्र में सभी वर्गों का इतिहास -भूगोल एक होता है अंबेडकर ने यह बात ध्यान दिलाई कि यहां हिंदुओं और मुसलमानों के नायक अलग-अलग हैं । वामपंथी  यूरोप पंथी इतिहासकारों को भारत के पराक्रम और संस्कृति दर्शन की भी श्रेष्ठता नहीं दिखाई पड़ी। क्योंकि यह इतिहासकार प्रेरक नायकों की अनदेखा कर रहे थे।

▶️ देश के बाल दिल्ली ही नहीं है, मगर इतिहासकारों का ध्यान दिल्ली के आसपास की घटनाओं पर ही गया । साथ ही साथ 18 सो 57 के स्वाधीनता संग्राम को भी इतिहास में सम्मानजनक जगह नहीं मिल पाई। उसे ब्रिटिश प्रभावित विद्वानों और वामपंथियों ने सिपाहियों का विद्रोह बताया। वस्तुतः यह अंग्रेजों से सीधी लड़ाई थी। डरी अंग्रेजी सत्ता ने इसी के 2 साल के भीतर भारत के लिए पुलिस अधिनियम जैसे कई कानून बनाए। लेकिन दोस्तों सावरकर ने स्वाधीनता संग्राम का सही लिखा , जिसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। सावरकर पर भी कई पुस्तकें हैं , पर इतिहास विरूपक उन्हें महत्व नहीं देते। ऐसी ही सोच वालों ने देश में पराजित मानसिकता को बढ़ाया। यह भारत को अशिक्षित और पिछड़ा बता रहे थे।वामपंथी इतिहासकारों ने प्राचीन इतिहास पर भी हमला बोला। पूर्वज आर्यों को भी विदेशी हमलावर बताया । और आत्महीनता से ग्रस्त एक नई बौद्धिक नस्ल का विकास होता रहा ।
आत्महीन समाज निराशा में रहते हैं। वे अब भी गलत तथ्यों के चलते आत्म हीनता का भाव भर रहे हैं।भारत को वास्तविक इतिहास बोध से समृद्ध करने के मार्ग में तथ्यहीन  इतिहास बाधा है 
दोस्तों भूले बिसरे नायकों को पाठ्यक्रम सहित सभी अवसरों पर याद कराया जाना जरूरी है। यह अच्छा हुआ कि अमीश त्रिपाठी में सुहेलदेव पर किताब लिखी और उनके अद्भुत पराक्रम से परिचित कराने का काम किया।दोस्तों ऐसे तमाम पराक्रमी योद्धा इतिहास में दफन हैं। जिस कारण से हमारे आने वाली पीढ़ियां उनके बारे में जान ही नहीं पा रही है।
दोस्तों सबसे बड़ी बात यह है कि आज का भारत पूर्वजों के सचेत और अचेत   कर्मों का परिणाम है। अब सचेत कर्म द्वारा उपेक्षित नायकों को प्रतिष्ठित करना होगा। आत्मा हीन समाज में राष्ट्रीय उमंग नहीं होती। अपनी संस्कृति , सभ्यता और दर्शन पर गर्व का अनुभव नहीं होता। दोस्तों राष्ट्रीय गौरव बोध के लिए वास्तविक इतिहास बोध जरूरी है। 
                           धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।




            
                                 माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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English translate

Indian fort




Hello friends I extend my hearty greetings to all of you mountain leopard Mahendra.  4





 ➡️ History is elixir. Continuous development.  Jai defeat defeat  Friends fact - embraces the truth. He does not come under the influence of anyone, but affects everyone.  Kaal is a neutral spectator of motion, so historians should also be impartial, but most Indian historians have been arbitrarily selfish.  Many important events and heroes have been neglected.  There is also the wrongdoing of breaking the facts.  History is not just a ghost.  It is also felt with the ghost.  This statement accounts for Jai defeat.  There are descriptions of joy and sadness.  There are also inspiring episodes that fill the life of the nation.

 The memory of powerful ancestors makes courageous.  There are proud episodes in history and the sting of defeat.  Contexts of pride enhance national strength and teach them not to repeat mistakes of defeat.  Real history is essential for a strong and prosperous nation, but European scholars and their pro-Indian scholars have destroyed history to fulfill imperialist interests.  The leftist historians also worked to prove that India was always defeated. Hence, the debate to re-examine and authenticate the history of India has been going on for a long time.

 India has not always been a defeated country. The heroes of our history never accepted the foreign invaders and their exploitation.  Friends Bakim Chandra wrote, 'The Arabs have been Digvijay in a way.  They won where they invaded, captured Egypt, Syria, Iran, Africa, Spain, Kabul and Turkistan, but were defeated and returned from France and India.  But even in 100 years he could not win India.  'This fact is little known to the new generation of India,

 Because Indian masculine might

 The events and heroes of history were ignored.

 JS Mill wrote 'History of British India'.  The study was said to be useful for officials coming from England to India.  Writers like JS Mill left no stone unturned in making Indian history a part of British history.

 The ancient period was referred to as Hindu history, the medieval period to Muslim and the modern period to British history.

 The truth is that the whole of India was never ruled by the British and not by the Mughals.

 Mohammed bin Qasim was the first foreign invader in the medieval period.  He was defeated in direct conflict by Dahir, the king of Sindhi.  Later the conspiracy took place.

 Friends, you may be aware that Dahir is not even worthy of praise in history. It is a matter of regret that the heroes of our history have become anonymous even after living an anonymous life like this.

 Similarly, another of our heroes, who was King Suheldev of Bahraich in Uttar Pradesh, defeated Syed Salar Ghazi and his army near Mahmud Ghaznabi.  But the mention of Suheldev's might in history is negligible.

 Friends, you may be aware that Martand Verma of Kerala was a scholar of many languages.  But they too did not get the attention of historians and they became anonymous in the pages of history.

 Another powerful king of ours used to be Rajendra Chola of Chola dynasty. He demonstrated his might over large parts of Southeast Asia.  Due to which, where did the Bay of Bengal go to Chola Bay.  The biggest thing was that he also had a marine force but our left-wing historians have forgotten him. In the list of two forgotten heroes, there is Bhaskar Barman of Bengal who has also been forgotten.

 Friends, all of you must have known about the Vijayanagara Empire, which has been in great discussion for its governance, Krishna Dev Rai's governance system was ideal.  He developed Indian civilization and culture.  At the same time, he gave equal goods to the Muslim society.

 ️ ️ Friends are considered three styles of Indian architecture - Dravidian, Nagar and Besar.

 The Dravidian style flourished in Vijayanagar.  The Meenakshi temple is a proof of this.  Scholars like Nuniz and Pais etc. have praised this system, but in history the prestige of the king and the kingdom was forgotten.  The same situation has happened with Bajirao and Balaji Bajirao in Maharashtra.  Friends, they attacked the Red Fort in Delhi.  Won  The Hindu term Padshahi is his concept and his expansion from 'Stuck to Cuttack' is also neglected in history.

 European leftist historians gave importance to Babur, Ghazni, Ghori, Aurangzeb etc.  Keep proving Mughal or Muslim history in the medieval period.  Statues, temple demolitioners and oppressors were projected as heroes.  Due to which it had a wrong effect in 1 section of Muslim society.  And the heroes of Hindus and Muslims were separated. You will know that friends, the history of all classes in a united nation - geography is one. Ambedkar pointed out that here Hindus and Muslims have different heroes.  Left-wing Europeans did not even see the superiority of India's might and culture philosophy.  Because these historians were ignoring motivational heroes.


 बाल बाल Not only is Delhi the child of the country, but the historians focus on the events around Delhi.  At the same time, the freedom struggle of 18 SO 57 could not find a respectable place in history.  The British influenced scholars and leftists termed the Sepoy Mutiny.  In fact, it was a direct fight with the British.  The English government made many laws like Police Act for India within 2 years of this.  But friends, Savarkar wrote the right to freedom struggle, which was confiscated by the British.  There are many books on Savarkar as well, but the history antics do not give him importance.  Those with similar thoughts increased the defeated mentality in the country.  He was describing India as illiterate and backward. Right wing historians also attacked ancient history.  The ancestors also called the Aryans a foreign invader.  And a new intellectual race obsessed with selflessness continued to develop.

 Selfless societies live in despair.  They are still filling their sense of inferiority due to wrong facts. Factual history is a hindrance in the way of enriching India with real history.

 Friends, forgotten heroes need to be reminded on all occasions including the syllabus.  It was good that Amish Tripathi wrote a book on Suheldev and made him aware of his amazing valor. All such mighty warriors are buried in history.  Because of which our future generations are unable to know about them.

 Friends, the biggest thing is that today's India is the result of conscious and unconscious deeds of ancestors.  Now the heroes neglected by conscious karma have to be distinguished.  There is no national zeal in the soul-less society.  One does not feel proud of its culture, civilization and philosophy.  Friends, real history is necessary for national pride.

 Thanks guys, that's all for today.







 Mountain Leopard Mahendra

                       
Fort in Rajasthan


Tuesday, November 17, 2020

सिलिका ग्रेन फाॅसिल्स - इस तालाब में मिलते हैं पत्थर के चावल- दाल - साहिबगंज राजमहल अनुमंडल कटघर गांव - झारखण्ड भारत। Silica grain fossils - found in this pond stone chawls - pulses - Sahibganj Rajmahal subdivision Katghar village - Jharkhand India

Ek yatra khajane ki khoje



      

साहिबगंज के राजमहल के कटघर गांव स्थित तालाब। इनसेट में निकले पत्थर रुपी अनाज 
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नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं झारखण्ड के सबसे प्राचीन भूखंड की यात्रा पर जहां के चपे चपे पर करोड़ों वर्ष पुराने जीवाश्म बिखरे पड़े हैं ।

शोध की जरूरत-। भूगर्भशास्त्री ने बताया सिलिका ग्रेन फाॅसिल्स , - भूगर्भशास्त्रियों का कहना हैं कि इस पादप  जीवाश्म पर गहन शोध की दरकार है।
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 इस तालाब में मिलते हैं पत्थर के चावल दाल
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दोस्तों सुनने में भले ही अटपटा लगे , लेकिन झारखण्ड में साहिबगंज जिले के राजमहल अनुमंडल के कटघर गांव के एक तालाब में पत्थर के चावल,दाल एवं अन्य अनाज मिलते हैं। इसमें धान , मटर , जौ ,मकई जैसे दिखने वाले अनाज भी है । दोस्तों यह अलग बात है कि लोग इसे खा नहीं सकते हैं।

अनाज जैसे दिखने वाले पत्थर के इन छोटे- छोटे  दानों को भूगर्भशास्त्री डॉ रंजीत सिंह सिलिका ग्रेन फाॅसिल्स बताते हैं।वह कहते हैं कि इस पादप जीवाश्म पर गहन शोध होना चाहिए, ताकि इनके निर्माण के बारे में सही समय का अनुमान लगाया जा सके।

दोस्तों राजमहल के पुरातात्विक स्थलों का भ्रमण करने वाले यहां आने नहीं भूलते। पर्यटकों के लिए कौतूहल बना यह जलाशय शिव मंदिर परिसर में है। और अब तक इसके संरक्षण की पहल नहीं हुई है।

इसी जिले की राजमहल की पहाड़ियों पर बहुतायत में जीवाश्म पाएं जाते हैं। इनमें पादप जीवाश्म भी शामिल हैं।

दोस्तों मंडरो प्रखंड में फाॅसिल्स पार्क बनाया जा रहा है। यहां भूवैज्ञानिक शोध के लिए आते हैं। यहां के जीवाश्म 68 से 145 मिलियन वर्ष पुराने है। बीरबल साहनी पुरा वनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ में इन जीवाश्मों का संग्रह है। डॉ रंजीत कुमार सिंह 12 साल से इस पर शोध कर रहे हैं। वे बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट , आईआईटी-खड़गपुर और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की की रिसर्च टीमों का हिस्सा रहे हैं।वह बताते हैं कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के 40 साल पहले सर्वे किया था।
और इसे सिलिका ग्रेन फाॅसिल्स कहा था। वर्ष 2019 में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के ही सुदीप कुमार ने शोध किया था, लेकिन इस तालाब में पाएं जाने वाले खाधान्न जैसी चीजों के बारे में सटीक जानकारी अब तक नहीं मिल पाई है ।माना जा रहा है कि यह 75 से 110 करोड़ साल पुराना हो सकता है। 
 दोस्तों माना जाता है कि ज्वालामुखी फटने के दौरान उसके संपर्क में अनाज आया होगा और पत्थर जैसें जीवाश्म का निर्माण हुआ होगा। उसपर सिलिका की परत चढ़ गई होगी। हालांकि शोध के बाद ही इस बारे में सही जानकारी मिल सकती हैं।


➡️ राजमहल का कटघर गांव का तालाब काफी पुराना है। इसमें सिलिका ग्रेन फाॅसिल्स बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। उसके संरक्षण व शोध की जरूरत है। अगर उसका संरक्षण किया जाए तो वह इलाका पर्यटन का केंद्र बन सकता है। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।
                       डॉ रंजीत कुमार सिंह भूगर्भशास्त्री साहिबगंज


➡️  कटघर गांव का तालाब से पत्थर के चावल- दाल आदि अनाज निकलते हैं । इस पर शोध की जरूरत है। इसके लिए अभी तक फंड नहीं मिला है। जैसे ही फंड मिलेगा तालाब को संरक्षित करने का काम शुरू कर दिया जाएगा। इस स्थल को को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए।


विकास पालिवाल  , वन प्रमंडल पदाधिकारी साहिबगंज



   



                           धन्यवाद दोस्तों 
                          माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा


                           English translate.                                  

   


The pond located at Katghar village of Rajmahal, Sahibganj.  Stones found in inset

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 Hello friends, I heartily greet all of you mountain leopard Mahendra, Friends, today I am taking you on a journey to the oldest land plot of Jharkhand, where millions of years old fossils are scattered on the rocks.


 Research needed-.  Geologists have said silica grain fossils, - geologists say that this plant fossil needs intensive research.

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 Stone rice pulses are found in this pond

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 While listening to friends may sound strange, but stone rice, pulses and other grains are found in a pond in Katghar village of Rajmahal subdivision of Sahibganj district in Jharkhand.  It also has grains that look like paddy, peas, barley, corn.  Friends, it's a different thing that people can't eat it.


 These small grains of grain-like stone are described by geologist Dr. Ranjit Singh as silica grain fossils. He says that there should be extensive research on this plant fossil, so that the exact time of its formation can be estimated.


 Friends do not forget to visit the archaeological sites of the palace.  This water reservoir made for tourists is in the Shiva temple complex.  And so far its conservation initiative has not taken place.


 Fossils are found in abundance on the palace hills of this district.  These include plant fossils as well.


 Fasils Park is being built in Friends Mandro Block.  Here geologists come for research.  The fossils here are 68 to 145 million years old.  Birbal Sahni Pura Botanical Institute, Lucknow has a collection of these fossils.  Dr. Ranjit Kumar Singh has been doing research on this for 12 years.  He has been part of the research teams of Birbal Sahni Institute, IIT-Kharagpur and Geological Survey of India. He says that the Geological Survey of India was conducted 40 years ago.

 And it was called silica grain fossils.  In 2019, Sudeep Kumar of Geological Survey of India did research, but exact information about things like the food found in this pond has not been found yet. It is believed that it is 75 to 110 crore years old.  It is possible.

 Friends are believed to have come in contact with the grain during the eruption of the volcano and fossils such as stones.  A layer of silica would have climbed over it.  However, correct information can be found only after research.



 तालाब The palace pond of Rajmahal village is quite old.  In this silica grain fossils are found in abundance.  It needs conservation and research.  If it is protected then the area can become a center of tourism.  The government should focus on this.

 Dr. Ranjit Kumar Singh Geologist Sahibganj



 पत्थर Stones of rice, grains, grains etc. come out from the pond of Katghar village.  Research is needed on this.  Funds have not been received for this yet.  As soon as the fund is received, the work of preserving the pond will be started.  This place should be developed as a tourist destination.



 Vikas Paliwal, Forest Division Officer, Sahibganj









 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra





Thursday, November 12, 2020

झारखंड- कसपुर को कहते हैं शिव की नगरी , यहां पर खेत - खलिहानों में में भी मिलते हैं शिवलिंग (झारखंड भारत)। Jharkhand- Kaspur is called the city of Shiva, Shivaling is also found in the fields and barns (Jharkhand India).

Ek yatra khajane ki khoj me

नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं। झारखंड के कसपुर इलाके की यात्रा पर जहां कण कण में भगवान शिव शंकर भोलेनाथ 🙏🙏 विराजमान हैं।
 


             

Jharkhand: कसपुर को कहते हैं शिव की नगरी, यहां खेत-खलिहानों में भी मिलते हैं शिवलिंग

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      लोहरदगा, । झारखंड जंगलों और पहाड़ों का राज्य है। प्रारंभिक समय से ही यह तपोभूमि रही है। साधु-संतों ने इस क्षेत्र को तपस्या के लिए चुना है। इस क्षेत्र में शिव और शक्ति की अराधना के प्रमाण मिलते रहे हैं। दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र के लोहरदगा में शिव साधना के कई ऐतिहासिक प्रमाण मिलते रहे हैं। मुंडा, खेरवार जैसी जातियां शिव की साधक रही है।

यही कारण है कि इस क्षेत्र में शिव साधना यहां की पहचान रही है। शिव साधना के प्रमाण का आलम यह रहा है कि यहां शिवलिंग सिर्फ मंदिरों में नहीं, बल्कि खेत और खलिहान में भी मिलते रहे हैं। इतिहास के जानकार बताते हैं कि इस क्षेत्र में पाए जाने वाले शिवलिंग छठी शताब्दी से लेकर 14 शताब्दी तक के रहे हैं। लोहरदगा जिले के भंडरा, कुडू, लोहरदगा, सेन्हा, किस्को आदि क्षेत्र में कई ऐतिहासिक शिव साधना स्थल 


लोहरदगा के सदर प्रखंड के खखपरता, भंडरा के अखिलेश्वर धाम, कसपुर, बेलडिप्पा, कारुमठ व भंडरा लाल बहादुर शास्त्री परिसर, सेन्हा के महादेव मंडा, कुडू के महादेव मंडा, किस्को के कई स्थानों में शिवलिंग बिखरे पड़े हैं।

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कण-कण में भगवान

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लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के कसपुर गांव में खेत खलिहान, पहाड़ों में शिवलिंग मिल जाते हैं। इस क्षेत्र को शिव की नगरी कहा जाता है। जाने कब कहां से शिवलिंग मिल जाए, यह कोई नहीं जानता। सदियों से यहां शिव की पूजा होती आई है। लोगों का मानना है कि कण-कण में यहां शिव का वास है। इस क्षेत्र को लोग शिव की नगरी कहते हैं। यह कभी शिव साधकों की प्रमुख स्थली रही होगी। आज भी यहां पर शिव नाम का ही जाप होता है। भंडरा गांव के कसपुर, भंडरा के खेत, खलिहान और पहाड़ों में भी शिवलिंग बिखरे पड़े हैं।

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क्या है ऐतिहासिक महत्व

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इतिहास के जानकार, खोजकर्ता और चतरा महाविद्यालय चतरा के सेवानिवृत प्राचार्य डा. इफ्तिखार आलम कहते हैं कि यह क्षेत्र शिव और शक्ति साधना का केंद्र रहा है। यहां प्राचीन काल से ही शिव की आराधना होती आई है। क्षेत्र भगवान हनुमान का ननिहाल भी है। यहां पाए जाने वाले शिवलिंग छठी और सातवीं शताब्दी के हैं। यहां का वातावरण साधना के लिए बहुत ही अनुकूल था

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      यही कारण था कि यहां पर शिव की साधना के प्रमाण हर स्थान पर मिलते हैं। इतिहास के जानकारों का कहना है कि लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड में भगवान राम की माता कौशल्या के राज्य की राजधानी थी। भंडरा के कसपुर गांव में आज भी पुराने जमाने के किले के अवशेष व खेतों की जुताई में पुराने जमाने के सिक्के व बर्तनों के अवशेष मिलते हैं।

कसपुर गांव में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु के हिरण्यकश्यप अवतार की पत्थर में उकेरी प्रतिमा देखने को मिलती है। इसके साथ ही भंडरा के ऐतिहासिक अखिलेश्वर धाम का तीन फीट व नीले रंग के शिवलिंग शेष स्थानों पाए जाने वाले शिवलिंग से अलग है।

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English translate


Hello friends, I am a mountain lepard Mahendra, a warm welcome to all of you guys, today I am taking you on my journey.  On a visit to the Kaspur area of ​​Jharkhand, where Lord Shiva Shankar Bholenath is ensconced in the particle.


   









 Jharkhand: Kaspur is called the city of Shiva, Shivling is also found in fields and barns.


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 Lohardaga,  Jharkhand is a state of forests and mountains.  It has been Tapobhumi since the early times.  The sages and saints have chosen this region for penance.  Evidence of worship of Shiva and Shakti has been found in this area.  Many historical evidences of Shiva cultivation have been found in Lohardaga in the southern Chotanagpur region.  Castes like Munda and Kherwar have been the seekers of Shiva.


 This is the reason that Shiva Sadhana is being identified here in this region.  The proof of Shiva practice has been that the Shivling here is not only found in temples, but also in the fields and barns.  History experts say that the Shivalinga found in this area dates from the 6th century to the 14th century.  Many historical Shiva cultivation sites in Bhandra, Kudu, Lohardaga, Senha, Kisco etc. in Lohardaga district



 Shivalingas are scattered in many places of Khakhaprata of Sadar block of Lohardaga, Akhileshwar Dham of Bhandra, Kaspur, Beldippa, Karumath and Bhandra Lal Bahadur Shastri complex, Mahadev Manda of Senha, Mahadev Manda of Kudu, Kisko.


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 God in particles


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 In the village of Kaspur in Bhandra block of Lohardaga district, the farm barn, the Shivling are found in the mountains.  This region is called the city of Shiva.  No one knows when to get Shivling from where.  Shiva has been worshiped here for centuries.  People believe that Shiva resides here in every particle.  This area is called the city of Shiva.  It must have once been the main site of Shiva seekers.  Even today the name of Shiva is chanted here.  Shivalingas are scattered in Kaspur, Bhandra fields, barns and mountains of Bhandra village.


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 What is historical importance


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 Dr. Iftikhar Alam, a historian, explorer and retired Principal of Chatra College, Chatra, says that this region has been the center of Shiva and Shakti Sadhana.  Lord Shiva has been worshiped here since ancient times.  The area is also the grand nephew of Lord Hanuman.  The Shivalinga found here dates to the sixth and seventh centuries.  The atmosphere here was very favorable for cultivation


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 This was the reason that here the evidence of Shiva's practice is found everywhere.  History experts say that Bhandra block of Lohardaga district was the capital of the kingdom of Kaushalya, mother of Lord Rama.  In Kaspur village of Bhandra, the remains of the old fort and the remains of old coins and utensils are still found in the plowing of fields.


 The stone sculpture of Hiranyakashyap incarnation of Lord Vishnu along with Lord Shiva is seen in Kaspur village.  Along with this, the three feet and blue Shivling of the historic Akhileshwar Dham of Bhandra is different from the Shivling found in the remaining places.


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Thank you friends
Mountain lappord Mahendra






   





Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...