Friday, November 20, 2020

लेख- इतिहास में दफन हमारे नायक Articles - Our heroes buried in history

Ek yatra khajane ki khoje



    
लाल किला



 


नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। 🙏🙏
 


➡️ इतिहास अमृत होता हैं।सतत विकासशील। जय पराजय में समभाव । दोस्तों तथ्य- सत्य को अंगीकृत करता है।वह किसी के प्रभाव में नहीं आता, पर सब को प्रभावित करता है। काल गति का तटस्थ दर्शक होता है , इसलिए इतिहासकारों को भी निष्पक्ष रहना चाहिए , लेकिन अधिकांश भारतीय इतिहासकारों ने स्वार्थवश  मनमानी की है। कई महत्वपूर्ण घटनाओं और नायकों की उपेक्षा हुई है। तथ्यों को तोड़ने -मरोड़ने का अपकृत्य भी किया है। इतिहास केवल भूत नहीं होता। यह भूत के साथ अनुभूत भी होता है। इस विवरण में जय पराजय का लेखा होता है। हर्ष - विषाद के विवरण होते हैं। राष्ट्र जीवन को उमंग से भरने वाले प्रेरक प्रसंग भी होते हैं।
शक्तिशाली पूर्वजों की स्मृति साहसी बनाती है। इतिहास में गर्व करने लायक प्रसंग होते हैं और पराजय के दंश भी। गर्वोक्ति के प्रसंग राष्ट्रीय सामर्थ्य को बढ़ाते हैं और पराजय के प्रसंग गलती न दोहराने की शिक्षा देते हैं। सशक्त और संपन्न राष्ट्र के लिए वास्तविक इतिहास बोध अनिवार्य है ,लेकिन यूरोपीय विद्वानों और उनके समर्थक भारतीय विद्वानों ने साम्राज्यवादी स्वार्थ की पूर्ति के लिए इतिहास को तहस-नहस किया। वामपंथी इतिहासकारों ने भी भारत को सदा पराजित सिद्ध करने का काम किया।इसलिए भारत के इतिहास को नए सिरे से जांचने और प्रमाणिक बनाने की बहस काफी समय से चल रही है।
भारत सदा पराजित देश नहीं रहा।हमारे इतिहास के नायकों ने विदेशी हमलावरों  और उनके शोषण को कभी स्वीकार नहीं किया। दोस्तों बकिम चंद्र ने लिखा था , ' अरब एक तरह से दिग्विजयी  रहे हैं। उन्होंने जहां आक्रमण किया वहां जीते , उन्होंने मिस्र , सीरिया , ईरान अफ्रीका , स्पेन , काबुल और तुर्किस्तान   पर  कब्जा किया , पर फ्रांस और भारत से पराजित होकर लौटे। लेकिन  100 वर्ष में भी वे भारत को नहीं जीत सके। ' यह तथ्य भारत की नई पीढ़ी को अल्प ज्ञात है  ,
क्योंकि भारतीय पौरुष पराक्रम
की घटनाओं और इतिहास के नायकों की उपेक्षा की गई ।
जेएस मिल ने  ' हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया ' लिखी थी। इंग्लैंड से भारत आने वाले अधिकारियों के लिए इसका अध्ययन उपयोगी बताया बताया गया था। जेएस मिल जैसे लेखकों ने भारतीय इतिहास को ब्रिटिश इतिहास का हिस्सा बनाने में कोई कोर -कसर नहीं छोड़ी।
प्राचीन काल को हिंदू इतिहास  ,मध्यकाल को मुस्लिम और आधुनिक काल को ब्रिटिश इतिहास बताया गया।
सच यह है कि संपूर्ण भारत पर न कभी अंग्रेजों की सत्ता रही और नहीं मुगलों की। 
मोहम्मद बिन कासिम मध्यकाल में पहला विदेशी हमलावर था। सिंधी के राजा दाहिर ने उसे सीधे संघर्ष में पराजित किया था। बाद में षड्यंत्र हुआ।
दोस्तों आप लोगों को पता ही होगा कि दाहिर भी इतिहास में प्रशंसा का पात्र नहीं है।बहुत ही अफसोस की बात है कि हमारे इतिहास के नायक इस तरह गुमनाम जिंदगी जी कर भी गुमनाम हो गए हैं।
इसी प्रकार हमारे एक और नायक जो कि उत्तर प्रदेश में बहराइच के राजा सुहेलदेव थे ने महमूद गजनबी के निकट संबंधी सैयद सालार गाजी और उसकी फौज को हराया था। लेकिन इतिहास में सुहेलदेव के पराक्रम का उल्लेख नगण्य है।
दोस्तों आप लोग शायद जानते होंगे कि केरल के मार्तंड वर्मा कई भाषाओं के विद्वान थे। परंतु उन पर भी इतिहासकारों का ध्यान नहीं गया और  वे इतिहास के पन्नों में  गुमनाम हो गए । 
हमारे एक और पराक्रमी राजा हुआ करते थे वे थे चोल वंश के राजेंद्र चोल उन्होंने दक्षिण पूर्व एशिया के बड़े भाग पर अपने पराक्रम का प्रदर्शन किया था। जिस कारण से बंगाल की खाड़ी को चोल खाड़ी कहां जाने लगा था। सबसे बड़ी बात थी कि उनके पास समुद्री सेना भी थी लेकिन हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने उन्हें भी भुला दिया।दोस्तों भूले बिसरे नायकों की सूची में बंगाल के भास्कर बरमन भी हैं जिन्हें भी भुला दिया गया है।
दोस्तों आप सभी लोग विजयनगर साम्राज्य के बारे में तो जानते ही होंगे जो कि अपनी शासन व्यवस्था के लिए काफी चर्चा में रहा है  कृष्ण देव राय की शासन व्यवस्था आदर्श थी। उन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास किया। साथ ही साथ उन्होंने मुस्लिम समाज को बराबर का सामान दिया था।
▶️ दोस्तों भारतीय स्थापत्य की तीन शैलियां मानी जाती है -द्रविड़ , नागर और बेसर ।
द्रविड़ शैली का चरम विकास विजयनगर में हुआ था। मीनाक्षी मंदिर इसका प्रमाण है। नूनिज और पाइस आदि विद्वानों ने इस व्यवस्था की प्रशंसा की है,  लेकिन इतिहास में राजा और राज्य की प्रतिष्ठा को भुला दिया गया। यही स्थिति महाराष्ट्र में बाजीराव और बालाजी बाजीराव के साथ भी हुआ है। दोस्तों उन्होंने दिल्ली के लाल किले पर हमला किया। जीता। हिंदू पद पादशाही उन्हीं की अवधारणा है  और 'अटक से कटक' तक भारत के विस्तार की भी, लेकिन इतिहास में उनकी उपेक्षा हुई।
यूरोपीय वामपंथी इतिहासकारों ने बाबर , गजनी , गोरी  , औरंगजेब आदि को महत्व दिया। मध्यकाल को मुगल या मुस्लिम इतिहास सिद्ध करते रहें। मूर्तियों  ,मंदिरों के ध्वंस कर्ताओं और उत्पीड़कों  को नायक के रूप में पेश किया गया। जिस कारण से मुस्लिम समाज के 1 वर्ग में इसका गलत प्रभाव पड़ा। और हिंदुओं और मुसलमानों के नायक अलग-अलग हो गए ।आप लोगों को पता होगा दोस्तों एकताबद्ध राष्ट्र में सभी वर्गों का इतिहास -भूगोल एक होता है अंबेडकर ने यह बात ध्यान दिलाई कि यहां हिंदुओं और मुसलमानों के नायक अलग-अलग हैं । वामपंथी  यूरोप पंथी इतिहासकारों को भारत के पराक्रम और संस्कृति दर्शन की भी श्रेष्ठता नहीं दिखाई पड़ी। क्योंकि यह इतिहासकार प्रेरक नायकों की अनदेखा कर रहे थे।

▶️ देश के बाल दिल्ली ही नहीं है, मगर इतिहासकारों का ध्यान दिल्ली के आसपास की घटनाओं पर ही गया । साथ ही साथ 18 सो 57 के स्वाधीनता संग्राम को भी इतिहास में सम्मानजनक जगह नहीं मिल पाई। उसे ब्रिटिश प्रभावित विद्वानों और वामपंथियों ने सिपाहियों का विद्रोह बताया। वस्तुतः यह अंग्रेजों से सीधी लड़ाई थी। डरी अंग्रेजी सत्ता ने इसी के 2 साल के भीतर भारत के लिए पुलिस अधिनियम जैसे कई कानून बनाए। लेकिन दोस्तों सावरकर ने स्वाधीनता संग्राम का सही लिखा , जिसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। सावरकर पर भी कई पुस्तकें हैं , पर इतिहास विरूपक उन्हें महत्व नहीं देते। ऐसी ही सोच वालों ने देश में पराजित मानसिकता को बढ़ाया। यह भारत को अशिक्षित और पिछड़ा बता रहे थे।वामपंथी इतिहासकारों ने प्राचीन इतिहास पर भी हमला बोला। पूर्वज आर्यों को भी विदेशी हमलावर बताया । और आत्महीनता से ग्रस्त एक नई बौद्धिक नस्ल का विकास होता रहा ।
आत्महीन समाज निराशा में रहते हैं। वे अब भी गलत तथ्यों के चलते आत्म हीनता का भाव भर रहे हैं।भारत को वास्तविक इतिहास बोध से समृद्ध करने के मार्ग में तथ्यहीन  इतिहास बाधा है 
दोस्तों भूले बिसरे नायकों को पाठ्यक्रम सहित सभी अवसरों पर याद कराया जाना जरूरी है। यह अच्छा हुआ कि अमीश त्रिपाठी में सुहेलदेव पर किताब लिखी और उनके अद्भुत पराक्रम से परिचित कराने का काम किया।दोस्तों ऐसे तमाम पराक्रमी योद्धा इतिहास में दफन हैं। जिस कारण से हमारे आने वाली पीढ़ियां उनके बारे में जान ही नहीं पा रही है।
दोस्तों सबसे बड़ी बात यह है कि आज का भारत पूर्वजों के सचेत और अचेत   कर्मों का परिणाम है। अब सचेत कर्म द्वारा उपेक्षित नायकों को प्रतिष्ठित करना होगा। आत्मा हीन समाज में राष्ट्रीय उमंग नहीं होती। अपनी संस्कृति , सभ्यता और दर्शन पर गर्व का अनुभव नहीं होता। दोस्तों राष्ट्रीय गौरव बोध के लिए वास्तविक इतिहास बोध जरूरी है। 
                           धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।




            
                                 माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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English translate

Indian fort




Hello friends I extend my hearty greetings to all of you mountain leopard Mahendra.  4





 ➡️ History is elixir. Continuous development.  Jai defeat defeat  Friends fact - embraces the truth. He does not come under the influence of anyone, but affects everyone.  Kaal is a neutral spectator of motion, so historians should also be impartial, but most Indian historians have been arbitrarily selfish.  Many important events and heroes have been neglected.  There is also the wrongdoing of breaking the facts.  History is not just a ghost.  It is also felt with the ghost.  This statement accounts for Jai defeat.  There are descriptions of joy and sadness.  There are also inspiring episodes that fill the life of the nation.

 The memory of powerful ancestors makes courageous.  There are proud episodes in history and the sting of defeat.  Contexts of pride enhance national strength and teach them not to repeat mistakes of defeat.  Real history is essential for a strong and prosperous nation, but European scholars and their pro-Indian scholars have destroyed history to fulfill imperialist interests.  The leftist historians also worked to prove that India was always defeated. Hence, the debate to re-examine and authenticate the history of India has been going on for a long time.

 India has not always been a defeated country. The heroes of our history never accepted the foreign invaders and their exploitation.  Friends Bakim Chandra wrote, 'The Arabs have been Digvijay in a way.  They won where they invaded, captured Egypt, Syria, Iran, Africa, Spain, Kabul and Turkistan, but were defeated and returned from France and India.  But even in 100 years he could not win India.  'This fact is little known to the new generation of India,

 Because Indian masculine might

 The events and heroes of history were ignored.

 JS Mill wrote 'History of British India'.  The study was said to be useful for officials coming from England to India.  Writers like JS Mill left no stone unturned in making Indian history a part of British history.

 The ancient period was referred to as Hindu history, the medieval period to Muslim and the modern period to British history.

 The truth is that the whole of India was never ruled by the British and not by the Mughals.

 Mohammed bin Qasim was the first foreign invader in the medieval period.  He was defeated in direct conflict by Dahir, the king of Sindhi.  Later the conspiracy took place.

 Friends, you may be aware that Dahir is not even worthy of praise in history. It is a matter of regret that the heroes of our history have become anonymous even after living an anonymous life like this.

 Similarly, another of our heroes, who was King Suheldev of Bahraich in Uttar Pradesh, defeated Syed Salar Ghazi and his army near Mahmud Ghaznabi.  But the mention of Suheldev's might in history is negligible.

 Friends, you may be aware that Martand Verma of Kerala was a scholar of many languages.  But they too did not get the attention of historians and they became anonymous in the pages of history.

 Another powerful king of ours used to be Rajendra Chola of Chola dynasty. He demonstrated his might over large parts of Southeast Asia.  Due to which, where did the Bay of Bengal go to Chola Bay.  The biggest thing was that he also had a marine force but our left-wing historians have forgotten him. In the list of two forgotten heroes, there is Bhaskar Barman of Bengal who has also been forgotten.

 Friends, all of you must have known about the Vijayanagara Empire, which has been in great discussion for its governance, Krishna Dev Rai's governance system was ideal.  He developed Indian civilization and culture.  At the same time, he gave equal goods to the Muslim society.

 ️ ️ Friends are considered three styles of Indian architecture - Dravidian, Nagar and Besar.

 The Dravidian style flourished in Vijayanagar.  The Meenakshi temple is a proof of this.  Scholars like Nuniz and Pais etc. have praised this system, but in history the prestige of the king and the kingdom was forgotten.  The same situation has happened with Bajirao and Balaji Bajirao in Maharashtra.  Friends, they attacked the Red Fort in Delhi.  Won  The Hindu term Padshahi is his concept and his expansion from 'Stuck to Cuttack' is also neglected in history.

 European leftist historians gave importance to Babur, Ghazni, Ghori, Aurangzeb etc.  Keep proving Mughal or Muslim history in the medieval period.  Statues, temple demolitioners and oppressors were projected as heroes.  Due to which it had a wrong effect in 1 section of Muslim society.  And the heroes of Hindus and Muslims were separated. You will know that friends, the history of all classes in a united nation - geography is one. Ambedkar pointed out that here Hindus and Muslims have different heroes.  Left-wing Europeans did not even see the superiority of India's might and culture philosophy.  Because these historians were ignoring motivational heroes.


 बाल बाल Not only is Delhi the child of the country, but the historians focus on the events around Delhi.  At the same time, the freedom struggle of 18 SO 57 could not find a respectable place in history.  The British influenced scholars and leftists termed the Sepoy Mutiny.  In fact, it was a direct fight with the British.  The English government made many laws like Police Act for India within 2 years of this.  But friends, Savarkar wrote the right to freedom struggle, which was confiscated by the British.  There are many books on Savarkar as well, but the history antics do not give him importance.  Those with similar thoughts increased the defeated mentality in the country.  He was describing India as illiterate and backward. Right wing historians also attacked ancient history.  The ancestors also called the Aryans a foreign invader.  And a new intellectual race obsessed with selflessness continued to develop.

 Selfless societies live in despair.  They are still filling their sense of inferiority due to wrong facts. Factual history is a hindrance in the way of enriching India with real history.

 Friends, forgotten heroes need to be reminded on all occasions including the syllabus.  It was good that Amish Tripathi wrote a book on Suheldev and made him aware of his amazing valor. All such mighty warriors are buried in history.  Because of which our future generations are unable to know about them.

 Friends, the biggest thing is that today's India is the result of conscious and unconscious deeds of ancestors.  Now the heroes neglected by conscious karma have to be distinguished.  There is no national zeal in the soul-less society.  One does not feel proud of its culture, civilization and philosophy.  Friends, real history is necessary for national pride.

 Thanks guys, that's all for today.







 Mountain Leopard Mahendra

                       
Fort in Rajasthan


Tuesday, November 17, 2020

सिलिका ग्रेन फाॅसिल्स - इस तालाब में मिलते हैं पत्थर के चावल- दाल - साहिबगंज राजमहल अनुमंडल कटघर गांव - झारखण्ड भारत। Silica grain fossils - found in this pond stone chawls - pulses - Sahibganj Rajmahal subdivision Katghar village - Jharkhand India

Ek yatra khajane ki khoje



      

साहिबगंज के राजमहल के कटघर गांव स्थित तालाब। इनसेट में निकले पत्थर रुपी अनाज 
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नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं झारखण्ड के सबसे प्राचीन भूखंड की यात्रा पर जहां के चपे चपे पर करोड़ों वर्ष पुराने जीवाश्म बिखरे पड़े हैं ।

शोध की जरूरत-। भूगर्भशास्त्री ने बताया सिलिका ग्रेन फाॅसिल्स , - भूगर्भशास्त्रियों का कहना हैं कि इस पादप  जीवाश्म पर गहन शोध की दरकार है।
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 इस तालाब में मिलते हैं पत्थर के चावल दाल
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दोस्तों सुनने में भले ही अटपटा लगे , लेकिन झारखण्ड में साहिबगंज जिले के राजमहल अनुमंडल के कटघर गांव के एक तालाब में पत्थर के चावल,दाल एवं अन्य अनाज मिलते हैं। इसमें धान , मटर , जौ ,मकई जैसे दिखने वाले अनाज भी है । दोस्तों यह अलग बात है कि लोग इसे खा नहीं सकते हैं।

अनाज जैसे दिखने वाले पत्थर के इन छोटे- छोटे  दानों को भूगर्भशास्त्री डॉ रंजीत सिंह सिलिका ग्रेन फाॅसिल्स बताते हैं।वह कहते हैं कि इस पादप जीवाश्म पर गहन शोध होना चाहिए, ताकि इनके निर्माण के बारे में सही समय का अनुमान लगाया जा सके।

दोस्तों राजमहल के पुरातात्विक स्थलों का भ्रमण करने वाले यहां आने नहीं भूलते। पर्यटकों के लिए कौतूहल बना यह जलाशय शिव मंदिर परिसर में है। और अब तक इसके संरक्षण की पहल नहीं हुई है।

इसी जिले की राजमहल की पहाड़ियों पर बहुतायत में जीवाश्म पाएं जाते हैं। इनमें पादप जीवाश्म भी शामिल हैं।

दोस्तों मंडरो प्रखंड में फाॅसिल्स पार्क बनाया जा रहा है। यहां भूवैज्ञानिक शोध के लिए आते हैं। यहां के जीवाश्म 68 से 145 मिलियन वर्ष पुराने है। बीरबल साहनी पुरा वनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ में इन जीवाश्मों का संग्रह है। डॉ रंजीत कुमार सिंह 12 साल से इस पर शोध कर रहे हैं। वे बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट , आईआईटी-खड़गपुर और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की की रिसर्च टीमों का हिस्सा रहे हैं।वह बताते हैं कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के 40 साल पहले सर्वे किया था।
और इसे सिलिका ग्रेन फाॅसिल्स कहा था। वर्ष 2019 में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के ही सुदीप कुमार ने शोध किया था, लेकिन इस तालाब में पाएं जाने वाले खाधान्न जैसी चीजों के बारे में सटीक जानकारी अब तक नहीं मिल पाई है ।माना जा रहा है कि यह 75 से 110 करोड़ साल पुराना हो सकता है। 
 दोस्तों माना जाता है कि ज्वालामुखी फटने के दौरान उसके संपर्क में अनाज आया होगा और पत्थर जैसें जीवाश्म का निर्माण हुआ होगा। उसपर सिलिका की परत चढ़ गई होगी। हालांकि शोध के बाद ही इस बारे में सही जानकारी मिल सकती हैं।


➡️ राजमहल का कटघर गांव का तालाब काफी पुराना है। इसमें सिलिका ग्रेन फाॅसिल्स बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। उसके संरक्षण व शोध की जरूरत है। अगर उसका संरक्षण किया जाए तो वह इलाका पर्यटन का केंद्र बन सकता है। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।
                       डॉ रंजीत कुमार सिंह भूगर्भशास्त्री साहिबगंज


➡️  कटघर गांव का तालाब से पत्थर के चावल- दाल आदि अनाज निकलते हैं । इस पर शोध की जरूरत है। इसके लिए अभी तक फंड नहीं मिला है। जैसे ही फंड मिलेगा तालाब को संरक्षित करने का काम शुरू कर दिया जाएगा। इस स्थल को को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए।


विकास पालिवाल  , वन प्रमंडल पदाधिकारी साहिबगंज



   



                           धन्यवाद दोस्तों 
                          माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा


                           English translate.                                  

   


The pond located at Katghar village of Rajmahal, Sahibganj.  Stones found in inset

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 Hello friends, I heartily greet all of you mountain leopard Mahendra, Friends, today I am taking you on a journey to the oldest land plot of Jharkhand, where millions of years old fossils are scattered on the rocks.


 Research needed-.  Geologists have said silica grain fossils, - geologists say that this plant fossil needs intensive research.

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 Stone rice pulses are found in this pond

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 While listening to friends may sound strange, but stone rice, pulses and other grains are found in a pond in Katghar village of Rajmahal subdivision of Sahibganj district in Jharkhand.  It also has grains that look like paddy, peas, barley, corn.  Friends, it's a different thing that people can't eat it.


 These small grains of grain-like stone are described by geologist Dr. Ranjit Singh as silica grain fossils. He says that there should be extensive research on this plant fossil, so that the exact time of its formation can be estimated.


 Friends do not forget to visit the archaeological sites of the palace.  This water reservoir made for tourists is in the Shiva temple complex.  And so far its conservation initiative has not taken place.


 Fossils are found in abundance on the palace hills of this district.  These include plant fossils as well.


 Fasils Park is being built in Friends Mandro Block.  Here geologists come for research.  The fossils here are 68 to 145 million years old.  Birbal Sahni Pura Botanical Institute, Lucknow has a collection of these fossils.  Dr. Ranjit Kumar Singh has been doing research on this for 12 years.  He has been part of the research teams of Birbal Sahni Institute, IIT-Kharagpur and Geological Survey of India. He says that the Geological Survey of India was conducted 40 years ago.

 And it was called silica grain fossils.  In 2019, Sudeep Kumar of Geological Survey of India did research, but exact information about things like the food found in this pond has not been found yet. It is believed that it is 75 to 110 crore years old.  It is possible.

 Friends are believed to have come in contact with the grain during the eruption of the volcano and fossils such as stones.  A layer of silica would have climbed over it.  However, correct information can be found only after research.



 तालाब The palace pond of Rajmahal village is quite old.  In this silica grain fossils are found in abundance.  It needs conservation and research.  If it is protected then the area can become a center of tourism.  The government should focus on this.

 Dr. Ranjit Kumar Singh Geologist Sahibganj



 पत्थर Stones of rice, grains, grains etc. come out from the pond of Katghar village.  Research is needed on this.  Funds have not been received for this yet.  As soon as the fund is received, the work of preserving the pond will be started.  This place should be developed as a tourist destination.



 Vikas Paliwal, Forest Division Officer, Sahibganj









 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra





Thursday, November 12, 2020

झारखंड- कसपुर को कहते हैं शिव की नगरी , यहां पर खेत - खलिहानों में में भी मिलते हैं शिवलिंग (झारखंड भारत)। Jharkhand- Kaspur is called the city of Shiva, Shivaling is also found in the fields and barns (Jharkhand India).

Ek yatra khajane ki khoj me

नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं। झारखंड के कसपुर इलाके की यात्रा पर जहां कण कण में भगवान शिव शंकर भोलेनाथ 🙏🙏 विराजमान हैं।
 


             

Jharkhand: कसपुर को कहते हैं शिव की नगरी, यहां खेत-खलिहानों में भी मिलते हैं शिवलिंग

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      लोहरदगा, । झारखंड जंगलों और पहाड़ों का राज्य है। प्रारंभिक समय से ही यह तपोभूमि रही है। साधु-संतों ने इस क्षेत्र को तपस्या के लिए चुना है। इस क्षेत्र में शिव और शक्ति की अराधना के प्रमाण मिलते रहे हैं। दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र के लोहरदगा में शिव साधना के कई ऐतिहासिक प्रमाण मिलते रहे हैं। मुंडा, खेरवार जैसी जातियां शिव की साधक रही है।

यही कारण है कि इस क्षेत्र में शिव साधना यहां की पहचान रही है। शिव साधना के प्रमाण का आलम यह रहा है कि यहां शिवलिंग सिर्फ मंदिरों में नहीं, बल्कि खेत और खलिहान में भी मिलते रहे हैं। इतिहास के जानकार बताते हैं कि इस क्षेत्र में पाए जाने वाले शिवलिंग छठी शताब्दी से लेकर 14 शताब्दी तक के रहे हैं। लोहरदगा जिले के भंडरा, कुडू, लोहरदगा, सेन्हा, किस्को आदि क्षेत्र में कई ऐतिहासिक शिव साधना स्थल 


लोहरदगा के सदर प्रखंड के खखपरता, भंडरा के अखिलेश्वर धाम, कसपुर, बेलडिप्पा, कारुमठ व भंडरा लाल बहादुर शास्त्री परिसर, सेन्हा के महादेव मंडा, कुडू के महादेव मंडा, किस्को के कई स्थानों में शिवलिंग बिखरे पड़े हैं।

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कण-कण में भगवान

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लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के कसपुर गांव में खेत खलिहान, पहाड़ों में शिवलिंग मिल जाते हैं। इस क्षेत्र को शिव की नगरी कहा जाता है। जाने कब कहां से शिवलिंग मिल जाए, यह कोई नहीं जानता। सदियों से यहां शिव की पूजा होती आई है। लोगों का मानना है कि कण-कण में यहां शिव का वास है। इस क्षेत्र को लोग शिव की नगरी कहते हैं। यह कभी शिव साधकों की प्रमुख स्थली रही होगी। आज भी यहां पर शिव नाम का ही जाप होता है। भंडरा गांव के कसपुर, भंडरा के खेत, खलिहान और पहाड़ों में भी शिवलिंग बिखरे पड़े हैं।

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क्या है ऐतिहासिक महत्व

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इतिहास के जानकार, खोजकर्ता और चतरा महाविद्यालय चतरा के सेवानिवृत प्राचार्य डा. इफ्तिखार आलम कहते हैं कि यह क्षेत्र शिव और शक्ति साधना का केंद्र रहा है। यहां प्राचीन काल से ही शिव की आराधना होती आई है। क्षेत्र भगवान हनुमान का ननिहाल भी है। यहां पाए जाने वाले शिवलिंग छठी और सातवीं शताब्दी के हैं। यहां का वातावरण साधना के लिए बहुत ही अनुकूल था

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      यही कारण था कि यहां पर शिव की साधना के प्रमाण हर स्थान पर मिलते हैं। इतिहास के जानकारों का कहना है कि लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड में भगवान राम की माता कौशल्या के राज्य की राजधानी थी। भंडरा के कसपुर गांव में आज भी पुराने जमाने के किले के अवशेष व खेतों की जुताई में पुराने जमाने के सिक्के व बर्तनों के अवशेष मिलते हैं।

कसपुर गांव में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु के हिरण्यकश्यप अवतार की पत्थर में उकेरी प्रतिमा देखने को मिलती है। इसके साथ ही भंडरा के ऐतिहासिक अखिलेश्वर धाम का तीन फीट व नीले रंग के शिवलिंग शेष स्थानों पाए जाने वाले शिवलिंग से अलग है।

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English translate


Hello friends, I am a mountain lepard Mahendra, a warm welcome to all of you guys, today I am taking you on my journey.  On a visit to the Kaspur area of ​​Jharkhand, where Lord Shiva Shankar Bholenath is ensconced in the particle.


   









 Jharkhand: Kaspur is called the city of Shiva, Shivling is also found in fields and barns.


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 Lohardaga,  Jharkhand is a state of forests and mountains.  It has been Tapobhumi since the early times.  The sages and saints have chosen this region for penance.  Evidence of worship of Shiva and Shakti has been found in this area.  Many historical evidences of Shiva cultivation have been found in Lohardaga in the southern Chotanagpur region.  Castes like Munda and Kherwar have been the seekers of Shiva.


 This is the reason that Shiva Sadhana is being identified here in this region.  The proof of Shiva practice has been that the Shivling here is not only found in temples, but also in the fields and barns.  History experts say that the Shivalinga found in this area dates from the 6th century to the 14th century.  Many historical Shiva cultivation sites in Bhandra, Kudu, Lohardaga, Senha, Kisco etc. in Lohardaga district



 Shivalingas are scattered in many places of Khakhaprata of Sadar block of Lohardaga, Akhileshwar Dham of Bhandra, Kaspur, Beldippa, Karumath and Bhandra Lal Bahadur Shastri complex, Mahadev Manda of Senha, Mahadev Manda of Kudu, Kisko.


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 God in particles


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 In the village of Kaspur in Bhandra block of Lohardaga district, the farm barn, the Shivling are found in the mountains.  This region is called the city of Shiva.  No one knows when to get Shivling from where.  Shiva has been worshiped here for centuries.  People believe that Shiva resides here in every particle.  This area is called the city of Shiva.  It must have once been the main site of Shiva seekers.  Even today the name of Shiva is chanted here.  Shivalingas are scattered in Kaspur, Bhandra fields, barns and mountains of Bhandra village.


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 What is historical importance


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 Dr. Iftikhar Alam, a historian, explorer and retired Principal of Chatra College, Chatra, says that this region has been the center of Shiva and Shakti Sadhana.  Lord Shiva has been worshiped here since ancient times.  The area is also the grand nephew of Lord Hanuman.  The Shivalinga found here dates to the sixth and seventh centuries.  The atmosphere here was very favorable for cultivation


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 This was the reason that here the evidence of Shiva's practice is found everywhere.  History experts say that Bhandra block of Lohardaga district was the capital of the kingdom of Kaushalya, mother of Lord Rama.  In Kaspur village of Bhandra, the remains of the old fort and the remains of old coins and utensils are still found in the plowing of fields.


 The stone sculpture of Hiranyakashyap incarnation of Lord Vishnu along with Lord Shiva is seen in Kaspur village.  Along with this, the three feet and blue Shivling of the historic Akhileshwar Dham of Bhandra is different from the Shivling found in the remaining places.


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Thank you friends
Mountain lappord Mahendra






   





Tuesday, November 3, 2020

मानव सभ्यता को भारत का 8000 साल पुराना ' नमस्कार' ▶️ विश्व गुरु: अभिवादन का प्राचीनतम पुरातात्विक साक्ष्य हैं पुरानगरी राखीगढ़ी से प्राप्त नमस्कार मुद्रा वाली यह दुर्लभ प्रतिमा India's 8000-year-old 'Namaskar' to Human Civilization ️ ️ Vishwa Guru: The oldest archaeological evidence of salutation is this rare statue with salutary posture obtained from the old Rakhigarhi.

Ek yatra khajane ki khoje


                      
राखीगढ़ी से प्राप्त नमस्कार मुद्रा में रत योगी की मूर्ति
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मानव सभ्यता को भारत का 8000 साल पुराना नमस्कार 🙏🙏

विश्व गुरु: अभिवादन का प्राचीनतम पुरातात्विक साक्ष्य हैं पुरानगरी राखीगढ़ी से प्राप्त नमस्कार मुद्रा वाली यह दुर्लभ प्रतिमा।

नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा राखीगढ़ी की यात्रा पर जहां से हमारे पूर्वजों ने सभ्यता की नींव रखी थी।


       दोस्तों 8000 वर्ष पुरानी सभ्यता को अपने में समेटे राखीगढ़ी से प्राप्त नमस्कार मुद्रा वाली यह दुर्लभ मूर्ति विश्व को अपना परिचय नहीं दे सकी है , जिसके योग्य वह है ।आज जब विश्व हैंड- शेक को ताज नमस्कार कर रहा है। अभिवादन का यह प्राचीनतम प्रमाण अहम हो जाता है। यह मूर्ति इस बात को भी सिद्ध कर देती है कि आर्य विदेशी नहीं थे।
      हरियाणा के हिसार स्थित राखीगढ़ी कस्बे में तिलों के नीचे 8000 से 6000 वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं।भारतीय पुरातत्व विभाग कुछ चरणों में यहां पर खुदाई कर चुका है जबकि कुछ का होना शेष है। यहां अब तक मिले विविध साक्ष्यो में सबसे महत्वपूर्ण है नमस्कार करते हुए योगी की मूर्ति।
               दोस्तों महत्वपूर्ण इसलिए है कि सभ्यता के विकास क्रम में अभिवादन का यह साक्ष्य प्राचीनतम और दुर्लभ है। दूसरा ,भारतीय योग परंपरा में वर्णित एक प्रमुख योगासन पद्मासन की मुद्रा में बैठे हुए योगी को इस प्रतिमा में अपने दोनों हथेलियों को नमस्कार मुद्रा में जोड़ें हुए दर्शाया गया है। इसमें पश्चिम के विद्वानों का वह दावा औंधे मुंह गिर जाता है , जो आर्यों को विदेशी मूल का बताता आया है। यद्यपि , सभ्यता और इतिहास के इस महत्वपूर्ण पुरातात्विक प्रमाण को भारत विश्व के सम्मुख उस प्रकार नहीं रख सका जिसकी आवश्यकता है।
दोस्तों इस और हमारे कुछ महत्वपूर्ण पत्रकारों का ध्यान रविवार को तब गया जब यहां पुरातत्व संबंधित एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा था। इसके बाद हमारे पत्रकारों ने पुरातत्त्वविदों और इतिहासकारों से विवरण जुटाया। और पता किया कि क्या इससे पूर्व कहीं भी नमस्कार या अभिवादन की मुद्रा का इतना प्राचीन साक्ष्य प्राप्त हुआ है? सभी का उत्तर था - नहीं । अतः स्पष्ट हो गया कि हमारे गौरवशाली अस्तित्व की एक अद्भुत उपलब्धि अंधकार में घिर कर रह गई है।

यही नहीं भारतीय पुरातत्व विभाग से भी हमने प्रश्न किया , ताकि आश्वस्त हुआ जा सके  कि यह  साक्ष्य दुर्लभ है अथवा नहीं? विभाग ने स्वीकार किया कि हां , इसे नेशनल म्यूजियम तक तो पहुंचा दिया गया किंतु जैसा प्रचार-प्रसार होना चाहिए था वह नहीं हो सका।

राखीगढ़ी साइट से जुड़े पुरातत्त्वविदों ने हमें बताया कि हां ,यह प्रमाण इस बात को सिद्ध करता है कि आर्य बाहर से नहीं आए थे वरन वे यहां के ही मूल निवासी थे। अतः हड़प्पा और वैदिक सभ्यता में विभेद नहीं किया जा सकता है।
               पुरातत्त्वविदों ने बताया कि विगत चरण में हुई खुदाई के दौरान यहां 10 सेंटीमीटर ऊंची यह टेराकोटा की मूर्ति मिली।
इतिहासकारों ने कहा इससे पहले हमें बताया जाता रहा है कि नमस्कार वैदिक सभ्यता का अंग है , जो की हड़प्पा के बाद विकसित सभ्यता है , किंतु राखीगढ़ी से मिला यह साक्ष्य अवधारणाओं को सही कर दे रहा है।


🙏🙏 दोस्तों हमारे संस्कार ,प्रतीक और मान्यताओं के प्रमाण हड़प्पा काल से मिलने लगते हैं । हड़प्पा कालीन सभ्यता और अब किस सभ्यता में ज्यादा अंतर नहीं है यह इसका प्रमाण है।
                      प्रोफेसर वसंत शिंदे पूर्व वाइस चांसलर डेक्कन यूनिवर्सिटी पुणे

➡️ राखीगढ़ी से मिला यह प्रमाण बेहद महत्वपूर्ण है जो साबित करता है कि वैदिक सभ्यता संस्कृति बाहर से भारत में नहीं आई बल्कि हड़प्पा और उससे पहले से यहां पर मौजूद थी।
                डॉ महेंद्र सिंह  ,इतिहासकार हिसार

      ➡️ दोस्तों इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हड़प्पा सभ्यता वैदिक सभ्यता ही है। हड़प्पन लोग ही वैदिक आर्य हैं इससे पहले हमारे पास साक्ष्य नहीं थे।
                      डॉक्टर सुरेंद्र कुमार वशिष्ठ     एसो.प्रोफेसर पुरातत्व विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
  
      ➡️राखीगढ़ी में खुदाई के दौरान नमस्कार मुद्रा में एक मूर्ति मिली थी, जिसे दिल्ली के नेशनल म्यूजियम में रख दिया गया है लेकिन अब भी बहुत से लोगों को इसके बारे में पता नहीं है पुरातत्व विभाग के तरफ से भी इसका वैसा प्रचार नहीं किया गया जो कि विभाग को करना चाहिए था।

           बनानी भट्टाचार्य, डिप्टी डायरेक्टर,
 पुरातत्व विभाग हरियाणा

धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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English translate


Rat Yogi idol in salutation posture received from Rakhigarhi


8000 years old greetings of human civilization to India


 Vishwa Guru: The oldest archaeological evidence of salutation is this rare statue with salutary posture obtained from Puranagari Rakhigarhi.


 Hello friends I heartily greet all of you mountain leopard Mahendra, Friends, today I am taking you on a journey to Rakhigarhi from where our ancestors laid the foundation of civilization.



 Friends, this rare idol of salutary posture obtained from Rakhigarhi, an 8000 year old civilization, has not been able to introduce itself to the world, which it deserves.  This earliest evidence of salutation becomes important.  This idol also proves that the Aryans were not foreigners.

 The remains of an 8000 to 6000 year old civilization have been found under sesame in Rakhigarhi town in Hisar, Haryana. The Indian Archaeological Department has excavated here in a few steps while some are yet to be.  The most important of the various evidences found here is the idol of Yogi performing the salutation.

 Friends, it is important that this evidence of salutation is the oldest and rare in the developmental order of civilization.  Second, a Yogi sitting in the posture of Padmasana, a prominent Yogasana described in the Indian Yoga tradition, is depicted in this statue adding both his palms to the Namaskar Mudra.  In this, the claim of the scholars of the west falls inverted, which has been telling the Aryans of foreign origin.  However, India could not put this important archaeological evidence of civilization and history in front of the world in a way that is needed.

 Friends, this and some of our important journalists got attention on Sunday when an archeology related program was being organized here.  After this our journalists collected details from archaeologists and historians.  And found out whether anywhere before this ancient evidence of greetings or greetings has been received?  The answer to all was - no.  Therefore, it became clear that a wonderful achievement of our glorious existence is enveloped in darkness.


 Not only this, we also questioned the Archaeological Department of India, so that it can be assured that this evidence is rare or not?  The Department admitted that yes, it was delivered to the National Museum but could not be promoted as it should have been.


 Archaeologists associated with the Rakhigarhi site told us that yes, this evidence proves that the Aryans did not come from outside, but they were native here.  Hence, Harappan and Vedic civilization cannot be differentiated.

 Archaeologists said that during the excavation in the previous phase, this 10-cm tall terracotta statue was found here.

 Historians said that earlier we have been told that Namaskar is a part of Vedic civilization, which developed after Harappa, but this evidence from Rakhigarhi is correcting the concepts.



 🙏🙏 Friends, evidence of our rites, symbols and beliefs start to be found from the Harappan period.  This is the proof of the Harappan civilization and which civilization is not much different now.

 Professor Vasant Shinde Former Vice Chancellor Deccan University Pune


  This evidence found from Rakhigarhi is very important, which proves that the culture of Vedic civilization did not come from outside India, but was present here in Harappa and before that.

 Dr. Mahendra Singh, Historian Hisar


 ➡️ Friends, it makes it clear that the Harappan civilization is the Vedic civilization itself.  We had no evidence before that the Harappans are the Vedic Aryans.

 Dr. Surendra Kumar Vasistha AS.Professor Department of Archeology Kurukshetra University



 During the excavation at Rakhigarhi, an idol was found in Namaskar Mudra, which has been kept in the National Museum of Delhi, but even now many people are not aware of it.  That the department should have done.


 Banani Bhattacharya, Deputy Director,

 Archeology Department Haryana


 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra

                



Friday, October 30, 2020

झारखंड में मिली पाषाण काल की गुफाएं और आदिमानवों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पत्थरों के औजार- बड़कागांव हजारीबाग भारत. Stone Age caves found in Jharkhand and stone tools used by the Adivasis - Barkagaon Hazaribagh India

Ek yatra khajane ki khoje

                              


 

नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं झारखण्ड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड में जहां हमे पाषाण काल की गुफाएं और आदिमानवों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पत्थरों के औजार ।

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बड़कागांव -

झारखंड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर पसरिया -2 के बाघलतवा जंगल में पाषाण काल की 10 गुफाएं, पत्थरों के औजार व शैल चित्र मिले हैं। 
दोस्तों ये विस्तृत क्षेत्र मे फैले हुए हैं यह गुफा है पलांडू हो पंचायत के पसरिया-2 के अंतर्गत आती हैं, जो बड़कागांव उरीमारी रोड पर स्थित है ये गुफाएं विश्व प्रसिद्ध बड़कागांव के स्कोर एवं मध्य प्रदेश के भीमबेटका गुफा की तरह लगती है।
                       दोस्तों आपको बता दूं कि यह गुफाएं अब तक गुमनाम थी, दुनिया की नजरों से ओझल थी, अब तक यह गुफाएं प्रकाश में नहीं आ पाई थी।
                           यह बिल्कुल नई खोज है इन गुफाओं को देखने से ऐसा प्रतीत पर होता है कि ये पुरापाषाण काल एवं मध्य पाषाण काल के हैं। पुरातात्विक विज्ञान के अनुसार पुरापाषाण काल 2500000 से 10,000 ईसा पूर्व व मध्य पाषाण काल 10 से 5000 , नवपाषाण काल 7000 से 1000  वर्ष पूर्व माना जाता है।
                         दोस्तों पसरिया घाटी में 10 गुफाएं विस्तृत क्षेत्र में फैलीं हुईं हैं। इन गुफाओं को देखने से ऐसा लगता है कि यहां पाषाण काल में प्राचीन मानव सभ्यता का सबसे बड़ा केंद्र रहा होगा। यहां की 10 गुफाएं चारों ओर से चट्टानों से घिरी हुई है, मानों ऐसा लगता है कि पाषाण काल में आदिमानवों की बस्ती रहीं होगी।
           दोस्तों छोटी - बड़ी 6 गुफाएं पश्चिम दिशा में है , जबकि 4 बड़ी गुफाएं पूरब दिशा में है।
         दोस्तों पश्चिम दिशा की प्रथम गुफा में आदिमानव द्वारा बनाए गए शैल चित्र अंकित है एवं पत्थरों के औजार बिखरे पड़े हुए हैं।अब इन औजारों को संग्रह कर सुरक्षित स्थान पर रख दिया गया है इन गुफाओं के बीच में पानी का स्रोत भी है यह पानी हमेशा बहता रहता है।
                 

दोस्तों इतिहास के शिक्षक बसंत कुमार का कहना है कि पाषाण काल में आदिमानव पहाड़ी गुफाओं व कंदराओं में रहा करते थे। यह उसी का प्रमाण है। शिक्षक अरविंद कुमार, आर्यन चंद्रशेखर रजक एवं अन्य शिक्षकों का कहना है कि बड़कागांव पुरातात्विक स्रोतों का खजाना है इन गुफाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है पुरातत्व विभाग के राजेंद्र देहरी का कहना है कि पत्रकार संजय सागर द्वारा खोजी गई गुफाएं व शैल चित्र नई खोज है और अच्छी पहल है ये गुफाएं व शैल चित्र अलग-अलग कालखंड के हो सकते हैं।

दोस्तों बाघलतवा जंगल की पश्चिम दिशा में स्थित पहली गुफा की ऊंचाई लगभग 3 फीट व  लंबाई 20 फीट है। इस गुफा के द्वार के ऊपर में शैल चित्र अंकित है व सांकेतिक चित्र लिपि भी है,ये शैल चित्र रक्तिम लौह अयस्क को कुट पिसकर तैयार किए गए रंग में रंगा गया है। कुछ चित्र में कहीं कहीं चूना अथवा पत्थरों से निर्मित सफेद रंग का भी उपयोग किया गया है। इस रंग के बने चित्र देख रेख के अभाव में मिटते जा रहे है जबकि लाल रंग से रक्तिम लौह से बनाए गए चित्रों में हिरन , गाय , एवं आदमी के चित्र अंकित है। 
दोस्तों दुसरी गुफा की ऊंचाई 3 फीट है जबकि लम्बाई 15-20 फ़ीट हैं। इस गुफा में छोटे-बड़े पत्थरों के औजार बिखरे पड़े हैं , कुछ हड्डियां भी मिली है। इस गुफा के अंदर एक  बड़ी सुरंग भी है जो काफी गहरी लगती है , ऐसा लगता है जैसे किसी अन्य गुफाओं में जा मिला है। अन्य चार गुफाएं दो- ढ़ाई फ़ीट की है। जबकि पूरब दिशा में चार विशाल गुफाएं हैं , चारों में से एक नागफन आकार के चट्टान की तरह फैली हुई है इसकी ऊंचाई लगभग 20 फीट है , लम्बाई 10फीट हैं। इसी गुफा के थोड़ी दूर पर 4 फ़ीट की गुफाएं हैं और इन गुफाओं के दोनों ओर बाहर निकलने के लिए द्वारा है  इसी गुफा में हिरन एवं आदमी के शैल चित्र है।

इसी गुफा से 30 मीटर की दूरी पर स्थित दो स्तम्भ वाली बड़ी गुफाएं हैं और इस गुफा के बगल में एक और गुफा है जो घने झाड़ियों में छुपा हुआ है। जिसकी खोज करनी अभी बाकी हैं । 

धन्यवाद दोस्तों
 
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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English translate
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Hello friends, I heartily congratulate all of you mountain lepards Mahendra, Friends, today I am taking you to Barkagaon block of Hazaribagh district of Jharkhand where we have caves of stone age and stone tools used by Adivans.

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 Barkagaon -


 Ten stone caves, stone tools and rock paintings have been found in the Baghalatwa forest of Pasaria-2, 20 km from the headquarters of Barkagaon in Hazaribagh district of Jharkhand.

 Friends, these are spread over a wide area. This cave is under Palasu-2 of Palandu Ho Panchayat, which is situated on the Badkagaon Urimari Road. These caves look like the scores of the world famous Barkagaon and Bhimbetka Cave of Madhya Pradesh.
 Friends, let me tell you that till now these caves were anonymous, out of the sight of the world, till now these caves could not come to light.

 It is a completely new discovery that from looking at these caves it seems that they belong to the Palaeolithic and Middle Stone Age.  According to archaeological science, the Palaeolithic period is believed to be 2500000 to 10,000 BC and the Middle Paleolithic period 10 to 5000, Neolithic period 7000 to 1000 years ago.
 Friends, 10 caves are spread over a wide area in the Pasaria Valley.  Looking at these caves, it seems that here must have been the biggest center of ancient human civilization in the Stone Age.  The 10 caves here are surrounded by rocks from all around, as if it seems that in the Stone Age there must have been settlements of the primitive people.

 Friends, 6 big and small caves are in the west direction, while 4 big caves are in the east.

 Friends, in the first cave of the west direction, the rock paintings made by the Adimavan are inscribed and the stone tools are scattered. Now these tools have been stored and kept in a safe place. There is also a source of water in the middle of these caves.  Keeps flowing


 



 Friends history teacher Basant Kumar says that during the Stone Age, the Adimavans used to live in hill caves and tubers.  This is the proof of that.  Teachers Arvind Kumar, Aryan Chandrasekhar Rajak and other teachers say that Barkagaon is a treasure house of archaeological sources. These caves need to be preserved. Rajendra Dehri of the Department of Archeology says that the caves and rock paintings discovered by journalist Sanjay Sagar are new discoveries.  And good initiative is that these caves and rock paintings may be of different periods.


 Friends, the first cave in the west direction of Baghaltwa forest is about 3 feet in height and 20 feet in length.  The top of the entrance of this cave is inscribed with a rock image and a symbolic picture script, this rock picture has been painted in a color prepared by grinding ground iron ore.  In some paintings, white paint made of lime or stones has also been used somewhere.  Pictures made of this color are disappearing due to lack of care, while pictures made of red iron with red color have pictures of deer, cow and man.


 Friends, the second cave has a height of 3 feet while the length is 15-20 feet.  Small and big stone tools are scattered in this cave, some bones have also been found.  There is also a big tunnel inside this cave which looks quite deep, it seems like it has been found in some other caves.  The other four caves are two and a half feet.  While there are four huge caves in the east direction, one of the four is spread like a Nagafan shaped rock, it is about 20 feet in height, 10 feet in length.  There are 4 feet of caves on the far side of this cave and there is an exit for both sides of these caves, in this cave there is a picture of deer and man.


 There are two pillar large caves located 30 meters away from this cave, and next to this cave is another cave which is hidden in dense bushes.  Which is yet to be discovered

 Thanks guys



 Mountain Leopard Mahendra







Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...