Monday, December 7, 2020

ऋग्वेद , सुश्रुत संहिता में है सिर प्रत्यारोपण का उल्लेख-भारत. Rigveda, Sushruta Samhita mentions head transplant - India

Ek yatra khajane ki khoje

                       



 



नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लेपर्ड महिंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं।

 ऋग्वेद सुश्रुत संहिता में है सिर प्रत्यारोपण का उल्लेख
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 वृहतरयी  ( चरक  ,सुश्रुत एवं वाग्भट ) मैं अष्टांग आयुर्वेद की कल्पना की गई है ,  जिसमें शल्य चिकित्सा और शालाक्य ( आई ऐंड ईएनटी - आंख , नाक ,कान , गला) प्रमुख अंगों के रूप में वर्णित है। आचार्य सुश्रुत ने अष्टांग आयुर्वेद में शल्य को प्रथम अंग के रूप में  वर्णित कर इस की प्रधानता सिद्ध करते हुए उपयोगिता बताई है । वेदों व   सुश्रुत संहिता में वर्णित शल्य संबंधित कई विषय सिर प्रत्यारोपण आज भी कल्पना से परे लगते हैं ।( ऋग्वेद 1/117/22) व  ( सुश्रुत सूत्र 1/17) । आचार्य सुश्रुत ने सर्वप्रथम शल्य तंत्र संबंधी विषयों का विस्तार से अपनी कृति सुश्रुत संहिता में वर्णन किया है।

सुश्रुत को संधान कर्म (प्लास्टिक सर्जरी) का जनक माना जाता है। सुश्रुत संहिता शल्य चिकित्सा के तमाम पहलुओं का व्यापक वर्णन है। यह तथ्य प्रमाणित करते हैं कि वैदिक एवं संहिता कल में शल्य तंत्र, पठन-पाठन एवं चिकित्सीय रूप में बेहद उच्च स्तर पर था। 

दोस्तों बौद्ध धर्म अहिंसा में विश्वास रखने के कारण शल्य चिकित्सा को हिंसात्मक चिकित्सा मानता था। अतः बौद्ध शासकों ने शल्य चिकित्सा को बढ़ावा नहीं दिया। प्राचीन भारत में काशी , तक्षशिला एवं नालंदा शल्य तंत्र के केंद्र थे।  यहां शल्य तंत्र के अध्ययन एवं अध्यापन की की उत्तम व्यवस्था थी। 
 दोस्तों उस युग के प्रसिद्ध शल्यविद आचार्य  ' जीवक ' तक्षशिला  विश्वविद्यालय के स्नातक थे । जीवक एक महान शल्पज्ञ थे ।उनको मगध के राज दरबार में राजवैद्य का सम्मान प्राप्त था। वह बुद्ध एवं उनके शिष्यों के भी चिकित्सक थे।   लेकिन दोस्तों सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म अपनाने और अहिंसा के विचार को प्रोत्साहन देने से शल्य कर्म को आसुरी चिकित्सा माना जाने लगा। इसी का परिणाम रहा कि शल्य तंत्र का उस काल में उत्तरोत्तर ह्रास होता गया। मध्य कालीन भारत में विदेशी आक्रांताओं ने बड़े बड़े पुस्तक संग्रहालयों को या तो लुट लिया या जला दिया। इस कारण विज्ञान के साथ शल्य तंत्र का  साहित्य भी लुप्तप्राय सा हो गया।

जैसा कि दोस्तों आप सभी लोगों को पता है उत्तर मध्य कल में
 मुगलों का राज था।इस समय राजनीतिक स्थायित्व हो जाने के कारण पुनः चिकित्सा शास्त्र की उन्नति की ओर ध्यान दिया गया और आयुर्वेद की कई पुस्तकें जैसे चरक संहिता , सुश्रुत संहिता आदि का अनुवाद अरबी , फारसी में हुआ। एवं अंग्रेजों के शासन के समय देश के पारंपरिक ज्ञान - विज्ञान चिकित्सा पद्धति तथा अन्य विधाओं को बढ़ने से रोका गया।  जैसा कि दोस्तों शल्य तंत्र तो अंग्रेजों के आगमन से पूर्व ही ह्रास की और था , यह गति और बढ़ गई।इन सभी घटनाक्रमों के साथ-साथ भारत में शल्य तंत्र कुछ घरानों में यत्र - तत्र वंशानुगत क्रम में व्यवहार रूप में जीवंत रहा । इसका एक उदाहरण 1772 ईस्वी में टीपू सुल्तान एवं अंग्रेजों के बीच मैसूर युद्ध में मिलता है।टीपू सुल्तान के सैनिकों ने अंग्रेजो की तरफ से लड़ रहे एक कोवास जी नामक गाड़ीवान एवं चार सिपाहियों को पकड़कर उनकी नाक काट दी थी। तब एक मराठी शल्य चिकित्सक ने सफलतापूर्वक उनके कटे अंगों का संधान किया। जिसे दो अंग्रेज सर्जनों ने देखा।  उस दौरान इसका सचित्र प्रकाशन मद्रास गेट  , लंदन में अक्टूबर 1794 में जेंटल मैन पत्रिका में हुआ था। 

इस तरह 19 वी शताब्दी तक आयुर्वेद का अध्यन अध्यापन  गुरु शिष्य परंपरा के जरिए प्रचलित रहा ।19 वी शताब्दी के अंत एवं 20वी  सदी के आरंभ काल में  कहीं कहीं  आयुर्वेद महाविद्यालयों की स्थापन 1916 में महामना मदन मोहन मालवीय ने वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की  उनका विचार था कि हम अपनी चिकित्सा पद्धति का जब तक  आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी के सनिध्य में अध्ययन नहीं करेंगे उसका विकास एवं वैश्वीकरण संभव  नहीं है।
दोस्तों अब देश की आजादी के 73 वर्षों के बाद भारत सरकार एवं आयुष मंत्रालय द्वारा प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को  पुनः वैधानिक मान्यता दी गई है। भविष्य में निश्चित ही भारतीय चिकित्सा पद्धति को एक नया आयाम मिलेगा।

                   जैसा कि दोस्तों आपको पता ही होगा भारत का इतिहास उथल  पुथल से परिपूर्ण रहा है ।बौद्ध  ,  मुग़ल  , अंग्रेज आदि दौर का प्रत्यक्ष या परोक्ष असर भारतीय चिकित्सा पद्धति पर भी पड़ा। तभी कभी- सिर का प्रत्यारोपण कर सकने में सक्षम आयुर्वेद आज सर्जरी पर तंज सुनने को विवश है ।
          


                          धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।

              माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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                      English translate
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Hello friends I extend my hearty greetings to all of you mountain leopard mahindra.


 The head transplant is mentioned in the Rigveda Sushruta Samhita

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 Vrhatarayi (Charaka, Sushruta & Vagbhata) I ashtanga Ayurveda is conceived, with surgery and Shalakya (Eye & ENT - eye, nose, ear, throat) as the major organs.  Acharya Sushruta described surgery as the first part of Ashtanga Ayurveda, proving its primacy and showing its utility.  Many of the surgical head topics mentioned in the Vedas and the Sushruta Samhita still seem unthinkable today (Rigveda 1/117/22) and (Sushruta Sutra 1/17).  Acharya Sushruta first described in detail his surgical work in the Sushruta Samhita.


 Sushruta is considered the father of Sandhan Karma (plastic surgery).  The Sushruta Samhita is a comprehensive description of all aspects of surgery.  This fact proves that Vedic and Samhita were at very high levels in the surgical system, reading and medicine in yesterday.


 Friends Buddhism considered surgery to be a violent therapy because of its belief in non-violence.  Hence Buddhist rulers did not promote surgery.  In ancient India, Kashi, Taxila and Nalanda were the centers of surgical system.  There was a good system for studying and teaching the surgical system.

 Friends, the famous surgeon Acharya 'Jeevak' of that era was a graduate of Taxila University.  Jeevak was a great sculptor. He had the honor of Rajvaidya in the royal court of Magadha.  He was also a physician to Buddha and his disciples.  But friends Emperor Ashoka embraced Buddhism and encouraged the idea of ​​non-violence, surgical work was considered as devotional medicine.  As a result of this, the surgical system continued to decline in that period.  In central India, foreign invaders either looted or burnt down large book museums.  Due to this, the literature of the surgical system also became endangered along with science.


 As friends you all know in north central tomorrow

 The Mughals were ruled. Due to political stability at this time, attention was paid to the advancement of medical science and many books of Ayurveda like Charak Samhita, Sushruta Samhita etc. were translated into Arabic, Persian.  And at the time of British rule, the traditional knowledge of the country - science, medical system and other disciplines were prevented from growing.  As the friends' surgery was already declining before the arrival of the British, the momentum increased further. Along with all these developments, the surgical system in India was practically alive in hereditary order in some households.  An example of this is found in the Mysore war between Tipu Sultan and the British in 1772 AD. Tipu Sultan's soldiers caught a carriage and four soldiers named Kovas ji fighting on behalf of the British and cut their noses.  A Marathi surgeon then successfully amputated his severed limbs.  Which was noticed by two British surgeons.  During that time, its illustrated publication was in Madras Gate, London in October 1794 in the journal Gentle Man.


 In this way, the teaching of Ayurveda continued to prevail through the Guru Shishya tradition till the 19th century. Somewhere between the end of the 19th century and the early 20th century, the establishment of Ayurveda colleges in 1916 by Mahamana Madan Mohan Malviya established the Kashi Hindu University in Varanasi.  He was of the view that unless we study our medical system under modern science and technology, its development and globalization is not possible.

 Friends, after 73 years of independence of the country, ancient Indian medical system Ayurveda has been given statutory recognition by the Government of India and Ministry of AYUSH.  Indian medicine will definitely get a new dimension in the future.


 As you may know friends, the history of India has been full of turmoil. The Buddhist, Mughal, British etc. era also had a direct or indirect effect on the Indian system of medicine.  Only then, able to transplant the head, Ayurveda is compelled to listen to the surgery.



              






 Thanks guys, that's all for today.


 Mountain Leopard Mahendra
 


Saturday, December 5, 2020

दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद- भारत। World's oldest medical system Ayurveda - India

Ek yatra khajane ki khoje


                         
जल वायु पृथ्वी अग्नि आकाश
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पंचमहाभूत
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                          Water , air , earth , fire , sky

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                                         Quinquent

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               दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद
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  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आप लोगों के लिए लेकर आया हूं दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की जानकारी।

              दोस्तों आयुर्वेद दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धतियों में से एक है। हालांकि, इस चिकित्सा पद्धति को अब तक व्यापक विस्तार नहीं मिल पाया है। दूसरी तरफ आयुर्वेद के करीब 2000 वर्ष बाद प्रचलन में आई एलोपैथी प्रयोग और अनुसंधान के दम पर काफी आगे निकल गई है । हालांकि , विगत कुछ वर्षों में पारंपरिक और असरदार चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को आधार और विस्तार देने के लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर पहल की है। परिणाम स्वरूप चिकित्सा पद्धति का प्रसार उस वर्ग में भी बढ़ने लगा है , जो अब तक इसे ' जड़ी _ बुटी ' भर समझता रहा।

▶️➡️   आयुर्वेद क्या है -  प्रकृति आधारित इस पुरातन चिकित्सा पद्धति में शारीरिक संरचना प्राकृतिक क्रियाओं और ब्रह्मांड के तत्वों के समन्वय के सिद्धांत पर इलाज का प्रावधान है।  
                                    
 जड़ी - बुटियां
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Herbs
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                                                                                                ▶️➡️ इतिहास- माना जाता है कि आयुर्वेद का जन्म ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में हुआ। इसकी आधारशिला हिंदू दार्शनिक विद्यालय वैशेषिक और तक विद्यालय न्याय में रखी गई। यह अभिव्यक्ति की रूपरेखा से भी जुड़ी  है , जिसे समाख्या के नाम से जाना जाता है। समाख्या की स्थापना भी उसी समय हुई थी जब वैशेषिक और न्याय विद्यालयों का बोलबाला था।  वैशेषिक विद्यालयों में रोगों की स्थिति की पढ़ाई होती थी, जबकि न्याय विद्यालयों में इलाज शुरू करने से पहले मरीज और रोग की स्थिति के बारे में पढ़ाया जाता था।   वैशेषिक विद्यालय किसी तत्व को छह प्रकार में विभक्त करते हैं-द्रव्य  ,विशेष , क्रम , सामान्य , समाव्यय और गुण।                                                                     बाद में वैशेषिक और न्याय विद्यालयों का विलय हो गया और उन्हें न्याय वैशेषिक विद्यालय के नाम से जाना जाने लगा।न्याय - वैशेषिक विद्यालयों ने ही प्राचीन ज्ञान को विस्तार दिया और आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार  में बड़ी भूमिका निभाई।  इन स्कूलों की स्थापना से पहले और आज भी आयुर्वेद का जनक पृथ्वी की रचना करने वाले भगवान ब्रह्मा को मानााा जाता  है ।
▶️➡️वेदो में वर्णन - हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथ यजुर्वेद , ऋग्वेद , सामवेद व अथर्ववेद में भी चिकित्सा प्रणाली का उल्लेख है। ऋग्वेद में 67 पौधों जबकि अथर्ववेद में और यजुर्वेद में क्रमशः 293 व 81 औषधीय पौधों का जिक्र है।आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति इन वेदों से प्राप्त ज्ञान पर आधारित है। अथर्ववेद और ऋग्वेद की रचना आत्रेय ऋषि  ने की। ऐसा माना जाता है कि उन्हें इसका ज्ञान भगवान इंद्र ने दिया था। इंद्र ने खुद ब्रह्मा से या विद्या सीखी थी। एवं अग्निवेश ऋषि ने वेदों के ज्ञान को संग्रहित किया, जिसका संपादन चरक और कुछ अन्य ऋषि-मुनियों ने किया। इस रचना को चरक संहिता के नाम से जाना जाता है। चरक संहिता में जहां रोगों और उसके उपचार का वर्णन है , वही सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा का उल्लेख है।

चरक ऋषि
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Charaka Sage
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▶️➡️ आयुर्वेद का आधार-- आयुर्वेद का मानना है कि पूरा ब्रह्मांड पांच तत्वों से मिलकर बना है। इनमें वायु , जल ,आकाश , पृथ्वी व अग्नि शामिल है। आयुर्वेद में इन्हें पंच महाभूत कहां गया है ।मनुष्य के शरीर में 3 विकार पैदा होते हैं - पित्त दोष , वात दोष , व कफ दोष । इन्हें त्रिदोष कहां जाता है , जो 5 उपदोषो के साथ मिलकर शारीरिक क्रिया को नियंत्रित करते हैं। आयुर्वेद का मानना है कि मनुष्य के शरीर में सप्त धातु हैं-- रस , मेद , रक्त , मज्जा , अस्थि ; मम्स व शुक्र।इनके अलग-अलग काम है और  रोगो के निदान में भी इनकी मस्ती भूमिका होती हैं।
▶️➡️ चिकित्सा के सूत्र -  1-वात दोष- इसके तहत कोशिकाओं का आवागमन , शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन , बेकार पदार्थों के उत्सर्जन का नियमन किया जाता है ।सूखे पन से इसके असर में इजाफा होता है।
2- पित्त दोष -इसके तहत शरीर के ताप कर्म का नियमन किया जाता है । ऑप्टिक तंत्रिकाााओं के बीच समन्वय के साथ भूख और प्यास का प्रबंंधन भी होता है ।शरीर की गर्म दशाएं पित्त को बढ़ाती है।

3-कफ दोष- शरीर में पसीने और चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों से इस में वृद्धि होती है। शरीर के जोड़ों को सही सही तरीके से काम करने के लिए यहां लुब्रिकेशन का काम करता है। शरीर की अपचय क्रिया वात से नियंत्रित होती हैं , उपापचय पित्त और कफ से उपचय प्रक्रिया का नियमन होता हैं। किसी स्वस्थ शरीर के लिए तीनों दोषो और अन्य कारकों के बीच संतुलन होना बहुत आवश्यक होता हैं।



धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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English translate
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                          Water , air , earth , fire , sky

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                                         Quinquent
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Ayurveda, the world's oldest medical system

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 Hello friends I heartily greet all of you mountain leopard Mahendra, friends, today I have brought for you the information of Ayurveda, the world's oldest medical system.


 Friends Ayurveda is one of the oldest medical practices in the world.  However, this medical practice has not yet been found to be widespread.  On the other hand, almost 2000 years after Ayurveda, allopathy in circulation has gone a long way on the basis of experimentation and research.  However, in the last few years, the government has taken a large-scale initiative to provide a foundation and extension to traditional and effective medical practice Ayurveda.  As a result, the spread of medical practice has started increasing in that class, which till now has considered it as a 'herd' buti.

 ️➡️ ️➡️ What is Ayurveda - In this ancient based medical system, body structure provides treatment on the principle of coordination of natural actions and elements of the universe.




 

 Herbs

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 Herbs

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 ️➡️ ️➡️ History- Ayurveda is believed to have originated in the second century BC.  Its foundation was laid in the Hindu philosophical school of Vaiseshika and also in school justice.  It is also associated with the outline of expression, known as Samkhya.  Samkhya was also established at a time when Vaishika and Nyaya schools were dominated.  The condition of diseases was taught in special schools, while in the justice schools, the condition of the patient and disease was taught before starting treatment.  Special schools divide an element into six types - matter, special, order, general, isomer and property.  Later on, the Vaishika and Nyaya Vidyalayas merged and came to be known as Nyaya Vaheshika Vidyalaya. Nyaya - Vaishika Vidyalaya itself expanded the ancient knowledge and played a big role in the propagation of Ayurveda.  Before the establishment of these schools and even today, the father of Ayurveda is believed to be Lord Brahma who created the earth.


                                                                                                                                                                                           


 


 ️➡️Description in vedo- Ancient texts of Hinduism Yajurveda, Rigveda, Samveda and Atharvaveda also mention medical system.  There are 67 plants in Rigveda while 293 and 81 medicinal plants are mentioned in Atharvaveda and Yajurveda respectively. Ayurveda medical practice is based on knowledge gained from these Vedas.  The Atharvaya sage composed the Atharvaveda and Rigveda.  It is believed that Lord Indra had given him this knowledge.  Indra himself learned or learned from Brahma.  And Agnivesh Rishi collected the knowledge of Vedas, which was edited by Charak and some other sages.  This composition is known as Charaka Samhita.  While Charaka Samhita describes diseases and its treatment, surgery is mentioned in Sushruta Samhita.

 



 Charaka Sage

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 Charaka Sage

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 ▶️➡️ Foundation of Ayurveda - Ayurveda believes that the whole universe is made up of five elements.  These include air, water, sky, earth and fire.  In Ayurveda, where did he go to Panch Mahabhut. 3 disorders arise in the body of man - Pitta dosha, Vata dosha, and Kapha dosha.  Where do they go to Tridosha, who together with 5 Upadoshas control the physical activity.  Ayurveda believes that there are seven metals in the human body - juice, fattening, blood, marrow, bone;  Mums and Venus. They have different functions and they also have a fun role in diagnosing diseases.


 ▶️➡️Formula of Medicine - 1-Vata dosha - It regulates the movement of cells, electrolyte balance in the body, the excretion of waste substances. Dry water increases its effect.

 2-  Pitta dosha-- Under this, the regulation of body temperature is done.  Coordination between optic nerves is accompanied by the management of hunger and thirst. Hot body conditions increase bile.


 3-Kapha Dosha- This is aggravated by sweat and greasy foods in the body.  Lubrication works here to make the joints of the body work properly.  The catabolism of the body is controlled by Vata, metabolism is regulated by bile and phlegm.  For a healthy body, balance between all the three doshas and other factors is very important.




 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra





 





 

Friday, December 4, 2020

बहन की शादी की अनमोल यादें - बोधगया बिहार

Ek yatra khajane ki khoje



नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लेपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। बहन की शादी की की कुछ शानदार यादें।
 



          
माता मंदिर में 
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          शादी की रस्म निभाते हुए मैं और मेरी पत्नी
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बच्चों के साथ
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                         मैं और मेरी पत्नी
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                       रात्रि में आंगन में सेल्फी लेते हुऐ
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                             बहन और बिटिया रानी
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मां , बहन , पत्नी और बिटिया रानी

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स्वर्ण रेखा नदी तट पर
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जयमाला कार्यक्रम
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               बच्चों के साथ आनंद उठाते हुए
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सेल्फी 
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पारिवारिक मिलन कार्यक्रम
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रिंग सेरेमनी
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शानदार पल
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अनमोल छन्


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यादों की बारात
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धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा



Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...