नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लेपर्ड महिंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं।
ऋग्वेद सुश्रुत संहिता में है सिर प्रत्यारोपण का उल्लेख
--------------------------------------------------------------------
वृहतरयी ( चरक ,सुश्रुत एवं वाग्भट ) मैं अष्टांग आयुर्वेद की कल्पना की गई है , जिसमें शल्य चिकित्सा और शालाक्य ( आई ऐंड ईएनटी - आंख , नाक ,कान , गला) प्रमुख अंगों के रूप में वर्णित है। आचार्य सुश्रुत ने अष्टांग आयुर्वेद में शल्य को प्रथम अंग के रूप में वर्णित कर इस की प्रधानता सिद्ध करते हुए उपयोगिता बताई है । वेदों व सुश्रुत संहिता में वर्णित शल्य संबंधित कई विषय सिर प्रत्यारोपण आज भी कल्पना से परे लगते हैं ।( ऋग्वेद 1/117/22) व ( सुश्रुत सूत्र 1/17) । आचार्य सुश्रुत ने सर्वप्रथम शल्य तंत्र संबंधी विषयों का विस्तार से अपनी कृति सुश्रुत संहिता में वर्णन किया है।
सुश्रुत को संधान कर्म (प्लास्टिक सर्जरी) का जनक माना जाता है। सुश्रुत संहिता शल्य चिकित्सा के तमाम पहलुओं का व्यापक वर्णन है। यह तथ्य प्रमाणित करते हैं कि वैदिक एवं संहिता कल में शल्य तंत्र, पठन-पाठन एवं चिकित्सीय रूप में बेहद उच्च स्तर पर था।
दोस्तों बौद्ध धर्म अहिंसा में विश्वास रखने के कारण शल्य चिकित्सा को हिंसात्मक चिकित्सा मानता था। अतः बौद्ध शासकों ने शल्य चिकित्सा को बढ़ावा नहीं दिया। प्राचीन भारत में काशी , तक्षशिला एवं नालंदा शल्य तंत्र के केंद्र थे। यहां शल्य तंत्र के अध्ययन एवं अध्यापन की की उत्तम व्यवस्था थी।
दोस्तों उस युग के प्रसिद्ध शल्यविद आचार्य ' जीवक ' तक्षशिला विश्वविद्यालय के स्नातक थे । जीवक एक महान शल्पज्ञ थे ।उनको मगध के राज दरबार में राजवैद्य का सम्मान प्राप्त था। वह बुद्ध एवं उनके शिष्यों के भी चिकित्सक थे। लेकिन दोस्तों सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म अपनाने और अहिंसा के विचार को प्रोत्साहन देने से शल्य कर्म को आसुरी चिकित्सा माना जाने लगा। इसी का परिणाम रहा कि शल्य तंत्र का उस काल में उत्तरोत्तर ह्रास होता गया। मध्य कालीन भारत में विदेशी आक्रांताओं ने बड़े बड़े पुस्तक संग्रहालयों को या तो लुट लिया या जला दिया। इस कारण विज्ञान के साथ शल्य तंत्र का साहित्य भी लुप्तप्राय सा हो गया।
जैसा कि दोस्तों आप सभी लोगों को पता है उत्तर मध्य कल में
मुगलों का राज था।इस समय राजनीतिक स्थायित्व हो जाने के कारण पुनः चिकित्सा शास्त्र की उन्नति की ओर ध्यान दिया गया और आयुर्वेद की कई पुस्तकें जैसे चरक संहिता , सुश्रुत संहिता आदि का अनुवाद अरबी , फारसी में हुआ। एवं अंग्रेजों के शासन के समय देश के पारंपरिक ज्ञान - विज्ञान चिकित्सा पद्धति तथा अन्य विधाओं को बढ़ने से रोका गया। जैसा कि दोस्तों शल्य तंत्र तो अंग्रेजों के आगमन से पूर्व ही ह्रास की और था , यह गति और बढ़ गई।इन सभी घटनाक्रमों के साथ-साथ भारत में शल्य तंत्र कुछ घरानों में यत्र - तत्र वंशानुगत क्रम में व्यवहार रूप में जीवंत रहा । इसका एक उदाहरण 1772 ईस्वी में टीपू सुल्तान एवं अंग्रेजों के बीच मैसूर युद्ध में मिलता है।टीपू सुल्तान के सैनिकों ने अंग्रेजो की तरफ से लड़ रहे एक कोवास जी नामक गाड़ीवान एवं चार सिपाहियों को पकड़कर उनकी नाक काट दी थी। तब एक मराठी शल्य चिकित्सक ने सफलतापूर्वक उनके कटे अंगों का संधान किया। जिसे दो अंग्रेज सर्जनों ने देखा। उस दौरान इसका सचित्र प्रकाशन मद्रास गेट , लंदन में अक्टूबर 1794 में जेंटल मैन पत्रिका में हुआ था।
इस तरह 19 वी शताब्दी तक आयुर्वेद का अध्यन अध्यापन गुरु शिष्य परंपरा के जरिए प्रचलित रहा ।19 वी शताब्दी के अंत एवं 20वी सदी के आरंभ काल में कहीं कहीं आयुर्वेद महाविद्यालयों की स्थापन 1916 में महामना मदन मोहन मालवीय ने वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की उनका विचार था कि हम अपनी चिकित्सा पद्धति का जब तक आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी के सनिध्य में अध्ययन नहीं करेंगे उसका विकास एवं वैश्वीकरण संभव नहीं है।
दोस्तों अब देश की आजादी के 73 वर्षों के बाद भारत सरकार एवं आयुष मंत्रालय द्वारा प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को पुनः वैधानिक मान्यता दी गई है। भविष्य में निश्चित ही भारतीय चिकित्सा पद्धति को एक नया आयाम मिलेगा।
जैसा कि दोस्तों आपको पता ही होगा भारत का इतिहास उथल पुथल से परिपूर्ण रहा है ।बौद्ध , मुग़ल , अंग्रेज आदि दौर का प्रत्यक्ष या परोक्ष असर भारतीय चिकित्सा पद्धति पर भी पड़ा। तभी कभी- सिर का प्रत्यारोपण कर सकने में सक्षम आयुर्वेद आज सर्जरी पर तंज सुनने को विवश है ।
धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
____________________________________________________
English translate
__________________
Hello friends I extend my hearty greetings to all of you mountain leopard mahindra.
The head transplant is mentioned in the Rigveda Sushruta Samhita
-------------------------------------------------- ------------------
Vrhatarayi (Charaka, Sushruta & Vagbhata) I ashtanga Ayurveda is conceived, with surgery and Shalakya (Eye & ENT - eye, nose, ear, throat) as the major organs. Acharya Sushruta described surgery as the first part of Ashtanga Ayurveda, proving its primacy and showing its utility. Many of the surgical head topics mentioned in the Vedas and the Sushruta Samhita still seem unthinkable today (Rigveda 1/117/22) and (Sushruta Sutra 1/17). Acharya Sushruta first described in detail his surgical work in the Sushruta Samhita.
Sushruta is considered the father of Sandhan Karma (plastic surgery). The Sushruta Samhita is a comprehensive description of all aspects of surgery. This fact proves that Vedic and Samhita were at very high levels in the surgical system, reading and medicine in yesterday.
Friends Buddhism considered surgery to be a violent therapy because of its belief in non-violence. Hence Buddhist rulers did not promote surgery. In ancient India, Kashi, Taxila and Nalanda were the centers of surgical system. There was a good system for studying and teaching the surgical system.
Friends, the famous surgeon Acharya 'Jeevak' of that era was a graduate of Taxila University. Jeevak was a great sculptor. He had the honor of Rajvaidya in the royal court of Magadha. He was also a physician to Buddha and his disciples. But friends Emperor Ashoka embraced Buddhism and encouraged the idea of non-violence, surgical work was considered as devotional medicine. As a result of this, the surgical system continued to decline in that period. In central India, foreign invaders either looted or burnt down large book museums. Due to this, the literature of the surgical system also became endangered along with science.
As friends you all know in north central tomorrow
The Mughals were ruled. Due to political stability at this time, attention was paid to the advancement of medical science and many books of Ayurveda like Charak Samhita, Sushruta Samhita etc. were translated into Arabic, Persian. And at the time of British rule, the traditional knowledge of the country - science, medical system and other disciplines were prevented from growing. As the friends' surgery was already declining before the arrival of the British, the momentum increased further. Along with all these developments, the surgical system in India was practically alive in hereditary order in some households. An example of this is found in the Mysore war between Tipu Sultan and the British in 1772 AD. Tipu Sultan's soldiers caught a carriage and four soldiers named Kovas ji fighting on behalf of the British and cut their noses. A Marathi surgeon then successfully amputated his severed limbs. Which was noticed by two British surgeons. During that time, its illustrated publication was in Madras Gate, London in October 1794 in the journal Gentle Man.
In this way, the teaching of Ayurveda continued to prevail through the Guru Shishya tradition till the 19th century. Somewhere between the end of the 19th century and the early 20th century, the establishment of Ayurveda colleges in 1916 by Mahamana Madan Mohan Malviya established the Kashi Hindu University in Varanasi. He was of the view that unless we study our medical system under modern science and technology, its development and globalization is not possible.
Friends, after 73 years of independence of the country, ancient Indian medical system Ayurveda has been given statutory recognition by the Government of India and Ministry of AYUSH. Indian medicine will definitely get a new dimension in the future.
As you may know friends, the history of India has been full of turmoil. The Buddhist, Mughal, British etc. era also had a direct or indirect effect on the Indian system of medicine. Only then, able to transplant the head, Ayurveda is compelled to listen to the surgery.
Thanks guys, that's all for today.
Mountain Leopard Mahendra
No comments:
Post a Comment