Wednesday, December 23, 2020

पुरावशेषों के संरक्षण को मोड़ी जाएगी कोसी नदी की धारा - गुवारीडीह भागलपुर बिहार. Conservation of antiquities will be diverted to the Kosi river stream - Guwaridih Bhagalpur Bihar

Ek yatra khajane ki khoje

            

          भागलपुर के गुवारीडीह में मिलें पुरावशेषों का अवलोकन करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व अन्य

 Bihar Chief Minister Nitish Kumar and others, while observing the antiquities, meet in Guwaridih, Bhagalpur




  भागलपुर के गुवारीडीह में मिलें पुरावशेषों के संरक्षण के लिए मोड़ी जाएगी कोसी नदी की धारा
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  दोस्तों माना जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देशन पर भागलपुर के गुवारीडीह में मिलें पुरावशेषों के संरक्षण के लिए कोसी नदी की धारा मोड़ी जाएगी। और आस पास के गांवों और ऐतिहासिक टीलों को इसके लिए संरक्षित करने के लिए योजना भी तैयार की जाएगी। मुख्यमंत्री बिहपुर प्रखंड के गुवारीडीह में टीले और आसपास मिले पौराणिक - ऐतिहासिक अवशेषों का अवलोकन करने के लिए पहुंचे थे। 
         माना जा रहा है कि गुवारीडीह में मिले पुरावशेष  ढाई हजार साल पुराना है। ऐसे में इनकी जांच की जानी बहुत जरूरी है। पुरातत्वविद ओं का मानना है कि यह और भी पुराने हो सकते हैं।दोस्तों पुरातत्व का मानना है कि ये अवशेष ताम्र पाषाण काल से लेकर गुप्तोत्तर काल तक के हो सकते हैं।
     दोस्तों नदी में कटाव के बाद यह अवशेष व टीले बाहर निकले हैं अन्यथा यह इतिहास के गर्भ में ही दवे रहते हैं। स्थानीय विधायक ई. शैलेन्द्र ने संज्ञान लेकर इसकी जानकारी दी । ग्रामीण अविनाश कुमार भी इस कार्य के लिए प्रशंसा के पात्र हैं  ।
 
  दोस्तों आस पास होगी खुदाई : मुख्यमंत्री ने कहा कि इस  स््थ   
स्थल की पुरी जानकारी के लिए आसपास खुदाई की जाएगी। अभी प्रारंभिक जानकारी के आधार पर वे यहां पहुंचे हैं । अवशेषों की जांच के लिए एक्सर्पट्स की टीम आई हैं । तिलकामांझी विश्वविद्यालय और पुरातत्व के अन्य जानकारों से भी इसके बारे में जानकारी ली जा रही हैं।
                  धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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       English translate
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   The mines at Guwaridih in Bhagalpur will be diverted for the conservation of antiquities

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 Friends, it is believed that under the direction of Bihar Chief Minister Nitish Kumar, a stream of Kosi river will be diverted for the conservation of antiquities at Guwaridih in Bhagalpur.  And plans will also be prepared to preserve the surrounding villages and historical mounds for it.  The Chief Minister arrived in Guwaridih of Bihpur block to observe the mythological and historical remains found in and around the mound.

 It is believed that the antiquity found in Guvaridih is two and a half thousand years old.  In such a situation, it is very important to investigate them.  Archaeologists believe that it may be even older. Friends archaeologists believe that these relics may be from the Paleolithic to the post-Gupta period.

 After the erosion in the river friends, these remains and mounds have come out otherwise they remain in the womb of history.  Local MLA E. Shailendra informed about this by taking cognizance.  Rural Avinash Kumar also deserves praise for this work.


 Friends will be digging around: Chief Minister said that this situation

 The site will be excavated for complete details.  They have just arrived here based on preliminary information.  Experts have come to investigate the remains.  Information is also being sought from Tilakamanjhi University and other archaeologists.

 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra

Tuesday, December 22, 2020

कालिंजर - पन्ना घाटी में रेडियो टैग लगाकर छोड़े गए 25 गिद्ध -संरक्षण में मिलेगी मदद-भारतीय वन्यजीव संस्थान के सहयोग से शुरू किया मिशन, लगातार की जा सकेगी निगरानी. Kalinjar - 25 vultures left by radio tag in Panna Valley - will help in conservation - Mission launched in collaboration with Wildlife Institute of India, can be monitored continuously

Ek yatra khajane ki khoje

                            
पन्ना टाइगर रिजर्व में गिद्धों की रेडियो टैगिंग करते भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून  के विशेषज्ञ।
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Expert of Wildlife Institute of India Dehradun radio-tagging vultures in Panna Tiger Reserve.

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 कालिंजर - पन्ना घाटी में रेडियो टैग लगाकर छोड़े गए 25 गिद्ध
   संरक्षण में मिलेगी मदद: भारतीय वन्यजीव संस्थान के सहयोग से शुरू किया गया मिशन , लगातार की जा सकेगी निगरानी ।
       विलुप्त प्राय गिद्धों के संरक्षण और सतत  निगरानी  के लिए अब रेडियो टैगिंग कीी प्रक्रिया शुरूू की गई है। दोस्तों इस अनूठे और अहम प्रयोग का मकसद पर्यावरण के इन सफाई कर्मियोंं के रिहायशी , प्रवास के मार्ग एवंं पन्ना लैंडस्केप में मौजूदगी की सटीक सूचना , उपस्थिति    आदी की जानकारी   जुुटाना है । पन्ना टाइगर रिजर्व ने इनके संरक्षण और संख्या  वृद्धि  केे लि केंद्र सरकार की इजाजत केेे बाद भारतीय वन्य  जीव संस्थान  के सहयोग से पहलेेे चरण में 25  गिद्धो को  रेडियो टैगिंग कर जीपीएस टैैग से लैस कर छोड़ हैं। अब इनकी लोकेेशन आसानी से पता चलेगी और सुरक्षा भी  की जा सकेगी।
   दोस्तों जैसा कि आपको पता होगा की बांदा जिले की सीमा से सटे मध्यपदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व ना सिर्फ बाघो , बल्कि गिद्धों के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है । बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा पन्ना  व करतल क्षेत्र बागी 2 की बहुतायत है। पर्यावरण की सफाई कर्मी कहलाने वाले गिद्धों की यहां 7 प्रजातियां पाई जाती है। एवं 4 प्रजातियां पन्ना टाइगर रिजर्व की है। शेष 3 प्रजातियां प्रवासी है। इनकी संख्या करीब 600 होने की अनुमान है। लेकिन संख्या में तेजी से कमी को देखते हुए संरक्षण के लिए प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं। इसी क्रम में पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने गिद्धों की रेडियो टैगिंग के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान , देहरादून की मदद ली। विशेषज्ञ  डॉक्टर के रमेश व  सहायक विशेषज्ञ डॉ सुप्रेतम  की टीम ने 15 दिन तक गिद्धों को पकड़ कर ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम से लैस किया। दोस्तों पहले चरण में रेडियो टैगिंग पूरी कर ली गई है। व आगे दुसरे गिद्धो को भी टैगिंग की जायेगी। 
 
         यह है रेडियो टैगिंग --  डब्ल्यूआइआइ के विशेषज्ञ दक्षिण अफ्रीका और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी भारत के विधि के तहत घास के मैदान में 15 वर्ग मीटर आकार का पिंजरा बनाया गया है। कैमरा नुमा पिंजरे में ताजे मांस के टुकड़े डालते हैं जिन्हें खाने के लिए  गिद्ध पिंजरे के भीतर आ जाते हैं , लेकिन बाहर नहीं निकल पाते। इसी दौरान पिंजरे में कैद गिद्ध को रेडियो टैगिंग की जाती है । इसमें गिद्धों के सिर के पास मोबाइल चिप की तरह छोटा जीपीएस उपकरण फिट कर दिया जाता है।फिर 7 दिनों बाद उड़ान भरने के लिए गिद्धों को खुला छोड़ दिया जाता है।
 
 क्या होगा फायदा --   १. इसके जरिए इनकी लोकेशन पता चलती रहेगी कि वह कहां कहां जा रही है और अपना आवास क्षेत्र बना रही है।
२. एवं सबसे ज्यादा कौन सी जगह उन्हें पसंद आ रही है इसका सहज आकलन होगा।
३. दोस्तों भविष्य में उन स्थानों को ही उनके रहने के लिए विकसित किया जाएगा ताकि वे आसानी से अपना प्रजनन उन्हीं क्षेत्रों में कर सके और अपनी जनसंख्या वृद्धि कर पाएंगे।
 यह 7 प्रजातियां पाई जाती है इन क्षेत्रों में - १.  स्थानीय -
१. बिल्ड

२. किंग वल्चर
३. लांग विल्ड वल्चर
४. वाइट रंप 
५. इजिप्शियन वल्चर 
 
 प्रवासी प्रजाति यह माइग्रेट होती रहती हैं। 
१. हिमालयन ग्रिफाॅन 
२. यूरेशियन ग्रिफाॅन 
३. सिनेरियस 
  दोस्तों पहले चरण  में फिलहाल 25  गिद्धो को रेडियो टैगिंग की गई है । इन्हें जीपीएस से लैस कर छोड़ दिया गया है । और इनके जरिए इनकी  मॉनिटरिंग  की जा सकेगी ।

            धन्यवाद दोस्तों
    माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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                  88888888   

                                      Vultur

 
  Kalinjar - 25 vultures released by putting radio tags in Panna Valley

 Help in conservation: Mission launched in collaboration with Wildlife Institute of India, will be monitored continuously.

 The radio tagging process has now been initiated for the conservation and continuous monitoring of extinct vultures.  Friends, the purpose of this unique and important experiment is to gather information about the presence, habituation and habitual use of these cleaners of environment, route of migration and presence in the emerald landscape.  With the permission of the Central Government for their conservation and increase in numbers, Panna Tiger Reserve in collaboration with the Wildlife Institute of India has released 25 vultures by radio tagging them with GPS tag.  Now their location will be easily detected and security can also be done.
 Friends, as you may know that Panna Tiger Reserve of Madhya Pradesh, bordering the Banda district, is world famous not only for tigers but also for vultures.  Bagelkhand has maximum emerald and voluminous area of ​​Bagi 2.  There are 7 species of vultures known as environmental cleaners.  And 4 species belong to Panna Tiger Reserve.  The remaining 3 species are migratory.  Their number is estimated to be around 600.  But in view of the rapid reduction in numbers, effective steps are being taken for conservation.  In this sequence, the Panna Tiger Reserve management enlisted the help of the Wildlife Institute of India, Dehradun for radio tagging of the vultures.  Expert Doctor K Ramesh and team of Assistant Specialist Dr Supratam held the vultures for 15 days and equipped them with global positioning system.  Radio tagging has been completed in the Friends first phase.  And further, other vultures will also be tagged.


 This is Radio Tagging - a 15-square-meter cage in a meadow built under the method of WII expert South Africa and Bombay Natural History Society of India.  Camera Numa inserts pieces of fresh meat into the cage which the vultures enter inside the cage to eat, but cannot exit.  At the same time radio tagging is done to the vulture in the cage.  A small GPS device like a mobile chip is fitted near the head of the vultures. The vultures are then left open to fly after 7 days.


 What will be the benefit - 1.  Through this, their location will be known where they are going and making their own housing area.

 2.  And which place they like the most will be a comfortable assessment.

 3.  Friends, in the future, only those places will be developed for their living so that they can easily breed themselves in the same areas and will be able to increase their population.

 This 7 species is found in these areas - 1.  Local -

 1.  Build


 2.  King culture

 3.  Long will culture

 4.  White rump

 5.  Egyptian culture


 Migratory species continue to migrate.

 1.  Himalayan Griffan

 2.  Eurasian Griffan

 3.  Cinereous

 At present 25 radio vultures have been radio tagged in the first phase.  They have been left equipped with GPS.  And through them they can be monitored.

 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra
 

Sunday, December 20, 2020

टंडवा प्रखंड की गुफाएं- झारखंड भारत. Caves of Tandwa Block - Jharkhand India

Ek yatra khajane ki khoje

              



 


               टंडवा प्रखंड की गुफाएं
              झारखंड
              भारत
 नमस्कार दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं झारखंड की टंडवा प्रखंड की गुफाओं की यात्रा पर।

             दोस्तों चतरा जिले में हजारीबाग , चतरा और रांची जिलों के सीमावर्ती क्षेत्रों में टंडवा प्रखंड के पिपरवार पहाड़ी क्षेत्र के 2 स्थानों हरगौरी एवं भगवान टोला तथा ठिठोगी क्षेत्र के सप्त पहाड़ी में प्राचीन गुफाएं मिली है। यह गुफाएं अति प्राचीन है और इसमें  आदिमानवों
 का कभी ठिकाना रहा होगा यह प्रागैतिहासिक कालीन गुफाएं अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण और राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संजोए जा सकते हैं।
      दोस्तों 6 अद्भुत गुफाएं टंडवा प्रखंड में मिली हैं इन गुफाओं 500 लोगों के रहने की व्यवस्था है इन गुफाओं में मध्य पाषाण युग की चित्रकारी का भी पता चला है , ये गुफाएं ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। दोस्तों और सबसे महत्वपूर्ण बात है इन गुफाओं में जलस्रोतों का पाया जाना । जिससे इस बात का बल मिलता है कि इन गुफाओं में आदिमानवों का बसेरा रहा होगा । 
  दोस्तों पिपरवार क्षेत्र में जिस प्रकार की गुफाएं मिली है वैसी गुफाएं संभवतः भारत में प्रथम तथा विश्व में दुसरी है ।ये गुफाएं 1900 वर्ष पुरानी बताई गई हैं। दोस्तों जानकर आश्चर्य होगा कि गुफाओं की भीतर  दीवारों पर बड़ी संख्या में सफेद , पीले और केसरिया रंगों से बने चित्र मीले हैं।  यह गुफाएं पाषाण काल की है चित्रों में हिरण के झुण्डो के कई चित्र , ज्यामितीय बनावट के कई  चित्र और तीर धनुष लिए लोगों के चित्र पाए गए हैं। दोस्तों साथ ही साथ पुरातत्ववेताओं को इस क्षेत्र में कुषाण काल के दुर्लभ भवन के भी अवशेष मिले हैं।

 दोस्तों साथ ही साथ 8000 ईसा पूर्व से 4000 ईसा पूर्व सभ्यता की पांच गुफाएं भी मिली है इन गुफाओं में पाई गई चित्रकारी में तीर धनुष लिए झुंड के झुंड आदि मानवों को शिकार करते तथा शिकार किए गए जानवरों के पास दिखाया गया है ये पाषाण काल के पूर्व के पैलियोलीथिक वस्तुएं है। 
  पिपरवार कोयला परियोजना के भगवान टोला में दुसरी सदी ईसा पूर्व के 60 * 100 फीट में मैगालीथ  भी मिले हैं। इस प्रकार की गुफाएं भारत में इससे पहले मध्य प्रदेश में पाई गई थी.  यहां हरगौरी एवं भगवान टोला में प्रागैतिहासिक धरोहर का पता लगा है इन दोनों स्थानों पर इससे 1000 वर्ष पूर्व के समाधि स्थलों का पता लगा है हरगौरी में कुछ ऐसे टूल्स मिले हैं जिनमें इस क्षेत्र में इससे 800 से 1000 वर्ष पूर्व लोहा उद्योग होने का पता चलता है मध्य पूरा पाषाण काल के टूल्स अद्भुत है यहां पाषाण समाधि स्थल से आयरन  ,स्लैग , 1 एयर पाइप ,  हैंड हैंगर एवं ढलाई किए गए भाले का अग्रभाग प्राप्त हुआ है। 

इसी क्षेत्र के ठिठोगी गांव क्षेत्र के सप्त पहाड़ी में भी एक , दो  तल्ले वाली गुफा मिली है . 50 गुने 30 फीट के क्षेत्र की इस गुफा से पुरानी कलाकृतियां प्राप्त हुई है जिन्हें पुरातत्व विशेषज्ञों ने   'मेन्हीर' नाम दिया है। ये कलाकृतियां भी हजारों वर्ष पुरानी है। 

    धोरधोरा खावा  --टंडवा प्रखंड के सराढू ग्राम में एक अत्यंत रमणीक स्थल है . यहां एक गुफा है जिसका द्वार चौड़ा है एवं सफेद चिकने पत्थर से बना है गुफा के ठीक नीचे चिकना चमकता हुआ लाल पत्थर का सपाट है ।लाल पत्थर के नीचे नीचे एक नदी बहती है कहा जाता है कि ग्रामीण को यहां खुदाई वगैरह  करने पर प्राचीन काल की चोड़ी चोड़ी ईटे एवं प्राचीन वस्तुएं यदा-कदा मिलती रहती है। यह जंगल में होने के कारण अत्यंत मनोरम है। दूर-दूर से यहां लोग पिकनिक मनाने आते हैं।
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               English translate
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Tandwa Block Caves

 Jharkhand

 India

 Hello friends, today I am taking you on a journey to the caves of Tandwa Block of Jharkhand.


 Friends, ancient caves have been found in 2 places Hargouri and Bhagwan Tola of Piparwar hill area of ​​Tandwa block in the border areas of Hazaribagh, Chatra and Ranchi districts in Chatra district and Sapta hill of Tithogi area.  These caves are very ancient and have ancient humans

 This prehistoric period caves may have been a place of great importance in itself and can be preserved as a national heritage.

 Friends, 6 amazing caves have been found in Tandwa Block. These caves have an arrangement of 500 people. These caves have also revealed the paintings of the Middle Stone Age, these caves are historically important.  Friends and the most important thing is to find the waters in these caves.  Which reinforces the fact that these caves must have been inhabited by the primitive people.

 Friends, the type of caves found in Piparwar region is probably the first in India and the second in the world. These caves are said to be 1900 years old.  Friends will be surprised to know that on the inner walls of the caves there are a large number of paintings made of white, yellow and saffron colors.  These caves are of Stone Age paintings, many pictures of deer herds, many pictures of geometric textures and pictures of people carrying arrow bow have been found.  Friends as well as archaeologists have also found the remains of a rare Kushan building in this area.


 Friends, as well as five caves of civilization have been found from 8000 BCE to 4000 BCE, the paintings found in these caves have been shown near the prey of human beings hunting and hunting animals like flocks of arrows and bow.  Palaeolithic objects of the East.

 Magaliths have also been found at 60 * 100 feet of the 2nd century BCE at Bhagwan Tola of Pipwarwar coal project.  Caves of this type were found in India earlier in Madhya Pradesh.  Here prehistoric heritage has been unearthed in Hargauri and Bhagwan Tola, both these places have found mausoleum sites dating back to 1000 years ago, some such tools have been found in Hargauri which shows the iron industry in this area from 800 to 1000 years ago.  The tools of the Middle Stone Age are amazing, here the stone mausoleum has received a façade of iron, slag, 1 air pipe, hand hanger and cast spear.


 One, two-floor cave has also been found in the Sapta hill in the village of Chitogi area of ​​the same area.  Old artefacts have been obtained from this cave of 50 times 30 feet area which has been named 'Menheer' by the archaeologists.  These artifacts are also thousands of years old.


 Dhordhora Khawa - is a very beautiful place in Saradhu village of Tandwa Block.  There is a cave here whose door is wide and made of white smooth stone, just below the cave there is a smooth shining red stone flat. A river flows down below the red stone is said to have been excavated by the villagers, etc.  Chudai Chodi Ete and antiques are occasionally found.  It is very captivating because of being in the forest.  People come from far away to have a picnic.

             Mountain lappord Mahendra

Wednesday, December 16, 2020

विजय दिवस 16 दिसंबर 1971 से लेकर 16 दिसंबर 2020 तक- Vijay Day from 16 December 1971 to 16 December 2020-

Ek yatra khajane ki khoje


   
            विजय दिवस 2020 फील्ड मार्शल  मानेकशॉ को याद करना
            जिन्होंने 1971 के युद्ध में भारत को जीत दिलाई
            
             Victory Day 2020 Remembering Field Marshal Manekshaw

 Who led India to victory in the 1971 war.

 


                      विजय के बावजूद गवाया अवसर

नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लेपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों विजय दिवस के अवसर पर यह मेरा छोटा सा प्रयास है कि मैं आपको विजय गाथा की कुछ यादें स्मरण करा सकूं। 

दोस्तों आजादी के पहले और उसके उपरांत हम भारत के लोग संविधान के अतिरिक्त ऐसी धुर भारतीय सोच विकसित करने में नाकाम रहे  जो आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भारतीयता का एक स्थिर दर्शन व परिभाषा प्रतिपादित करती। दोस्तों हम अब कहीं जाकर राष्ट्रीय हित की दिशा में चले हैं। दोस्तों समझौतापरस्त राजनीति वास्तव में विभाजन कारी सोच के लोगों को भी सत्ता में ले आती है।और यह देश उसका प्रतिरोध नहीं करता , बल्कि उसे बर्दाश्त करता है। दोस्तों समय-समय पर इसके प्रमाण मिलते रहे हैं। साल 1971 भी ऐसा ही एक पड़ाव था जब हमें महान विजय प्राप्त हुई थी जिसमें हमने  द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को दफन किया था। दोस्तों वह एक सैन्य विजय के साथ-साथ महान वैचारिक विजय भी थी। दोस्तों उस समय बस एक और कदम की दरकार थी कि कश्मीर विवाद समाप्त हुआ होता। हम पाकिस्तान के विचार को ध्वस्त कर देते ।लेकिन 1971 में गवाह है इस अवसर ने राजनेता इंदिरा गांधी के नजरिए की सीमाएं स्पष्ट कर दी थी।
शायद नेताओं की जमात सप्ताहिक से आगे सोच भी नहीं पाती ।
दोस्तों हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं कि 1971 का युद्ध यदि कश्मीर - मुक्ति का मुख्य लक्ष्य लेकर चला होता तो क्या परिणाम होते। दोस्तों जैसा कि आपको पता होगा पाकिस्तान का बंगाल आक्रमण 25 मार्च 1971 को प्रारंभ हुआ था। जैसा कि जनरल मानेकशॉ की जीवनी में जनरल दीपेंद्र सिंह लिखते हैं की उसी रात सेना मुख्यालय में हुई आपात बैठक में इंदिरा गांधी ने जनरल मानेकशॉ से पूछा कि हम कुछ कर सकते हैं क्या ?  इसके जवाब में ही दोस्तों ' मुक्ति वाहिनी ' का जन्म हुआ। फिर 28 अप्रैल की कैबिनेट बैठक में पूर्वी पाकिस्तान पर तत्काल आक्रमण के निर्देश को लेकर मानेकशॉ का यह जवाब की सेनाएं अभी इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं है , उन्हें भू राजनीति की स्पष्ट समझ वाला कमांडर सीद्ध करता है । उन्होंने कहा कि सेनाएं चुनाव करा रही थी। अब खाली हुई है।मोबिलाइजेशन  , स्टॉकिंग , मेंटेनेंस में 2 माह लगेगा और पूर्वी कमान में सिर्फ 13 टैंक है। इसी दौरान वित्त मंत्री चौहान ने पूछा सिर्फ तेरह टैंक ? जवाब था , मैं पिछले डेढ़ साल से लगातार कह रहा हूं लेकिन आपका जवाब होता है कि पैसे नहीं है। 2 माह बाद मानसून में बंगाल की जमीन समुद्र जैसी हो जाएगी, कोई सैन्य अभियान संभव नहीं होगा। दूसरा चीन अल्टीमेटम दे सकता है। तभी सरदार स्वर्ण सिंह ने पूछा क्या चीन अल्टीमेटम देगा ? जवाब मिला , सर आप बताएं , आप विदेश मंत्री हैं। जब तक हिमालय पर बर्फ नहीं पड़ती , तब तक प्रतीक्षा करनी होगी। हम दो मोर्चों पर लड़ाई नहीं लड़ सकते। ' यह कैबिनेट को दो टूक जवाब था। कोई प्रतिवाद  नहीं कर सका। तमतमाई इंदिरा गांधी ने बैठक 4:00 बजे तक स्थगित कर दिए। तभी जनरल ने कहा कि आप चाहेंगे तो मैं स्वास्थ्य कारणों से त्यागपत्र दे दूंगा। फिर मानेकशॉ को पूरी तरह छूट दे दी गई । और 1971 की विजय उसी का परिणाम है। 
वही देश के नेता तो यह कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि युद्ध की इन परिस्थितियों का लाभ उठाकर कश्मीर और फिर आगे पाकिस्तान समस्या का स्थाई समाधान भी हो सकता है। हमारी असल समस्या कश्मीर थी , लेकिन कश्मीर का कोई जिक्र नहीं करता। वह कैसे समझते कि पश्चिम में पाकिस्तान की पराजय बांग्लादेश की आजादी का मार्ग स्वत: बना सकती है। दोस्तों युद्ध से पूर्व पश्चिमी मोर्चे पर आक्रमक रणनीति के निर्देश जारी किए गए थे। सारी तैयारियां पूर्ण थी। दोस्तों शायद आप लोगों ने पढ़ा भी होगा कि जनरल संधू अपनी पुस्तक "बैटलग्राउंड छंब " में लिखते हैं कि युद्ध से महज 2 दिन पहले अचानक 1 दिसंबर को प्रधानमंत्री द्वारा रक्षात्मक रणनीति के निर्देश दिए गए । इसने पश्चिमी मोर्चे पर हमारी समस्त सैन्य आक्रमण प्लान पर अचानक ब्रेक लगा दिया। अब हम ना हाजीपीर पर हमला कर पाते और ना लाहौर सियालकोट सेक्टरों पर। दोस्तों से ना कि हाथ बांध दिए गए ।
दोस्तों मानेकशॉ  के जबरदस्त प्रतिरोध के बावजूद इंदिरा गांधी नहीं मानी और कहा कि यदि हम पश्चिमी सीमा पर आक्रमण किए तो अंतर्राष्ट्रीय विरोध नहीं झेल पाएंगे। निक्सन किसिंग्जर का दबाव था , लेकिन रणनीति बदलने की आखिर मजबूरी क्या थी ? दोस्तों इसका कश्मीर विवाद के भविष्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। और हम युद्ध विराम रेखा तक ही सीमित रह गए। छंब का हमारा 120 वर्ग किलोमीटर का इलाका भी पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। 

           दोस्तों एक दुर्भाग्यपूर्ण आदेश ने 1971 की युद्ध की उस विजय को हमारे लिए अर्थहीन कर दिया। जबकि उस युद्ध में कश्मीर वापसी की संभावनाएं स्पष्ट दिख रही थी , पर सियासी नेतृत्व में साहस नहीं था। वह बंगाल की खाड़ी की तरफ बढ़ रहे अमेरिकी बेड़े से डर गया था। आखिर जिनकी प्रकृति ही भीरुता की हो वह धमकियों से भी डर जाते हैं। बंगाल में सेनाएं आक्रमक रणनीति के मुताबिक चल रही थी। 16 दिसंबर को ढाका में जनरल नियाजी का आत्मसमर्पण होते ही रात में युद्ध विराम घोषित कर दिया गया।हमारे राजनीतिक नेतृत्व में घबराहट इतनी अधिक थी कि हाजी पीर पास आदि तो छोड़िए छंब पर पुनः आक्रमण कर वापस अपने कब्जे में लेने का समय भी सेनाओं को नहीं दिया गया। यदि दोस्तों आक्रमक नीति कायम रहती तो हम हाजी पीर , स्कर्दू और गिलगित पर काबिज होते हैं। सेनाएं लाहौर , सियालकोट में दाखिल हो रही होती। नौसेना कराची बंदरगाह को और थल सेना अमरकोट  , थारपारकर तक बढ़ गई होती , मगर नहीं , क्योंकि इंदिरा गांधी बांग्लादेश की आजादी के निष्कर्ष कर्म से ही संतुष्ट थी। 

        दोस्तों बांग्लादेश बनने की वाहवाही को भारत के राष्ट्रीय हित से अधिक महत्व दिया गया। शिमला समझौता हुआ। भुट्टो को उनके सैनिक मिल गए  , पर हमने छंब  गंवा दिया ।दोस्तों बांग्लादेश बनने के बाद वहां की प्रताड़ित 8500000 हिंदू आबादी की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी हमें लेनी चाहिए थी लेकिन राष्ट्रीय हित की समाझ
 के अभाव से ऐसा ना हो सका।

        दोस्तों राष्ट्रवाद का जन्म तो इस देश में जैसे 2014 के बाद हुआ है। उससे पहले सत्ताओ ने तुष्टीकरण के खेल में देश को सराय बना रखा था । 1971 तो एक महान जनरल की सैन्य विजय थी जिससे कश्मीर का हल निकलता , परंतु राजनीति की स्थापित शूद्र अदाओं ने इसे अर्थहीन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
      धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।

             माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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                     English translate
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Missed opportunity despite victory


 Hello friends, I would like to extend my hearty greetings to all of you mountain lepards Mahendra, Friends, on the occasion of Vijay Diwas, it is my small effort to remind you of some memories of the Vijay saga.


 Friends, before and after independence, the people of India, apart from the Constitution, failed to develop such an aristocratic Indian thought which would give a stable philosophy and definition of Indianness in modern perspective.  Friends, we have now gone in the direction of national interest.  Friends, compromised politics actually brings power to the people of divisive thinking and this country does not resist it, but tolerates it.  Friends have been finding evidence of this from time to time.  The year 1971 was one such stop when we had a great victory in which we buried the doctrine of two-nation theory.  Friends, it was a military victory as well as a great ideological victory.  Friends, at that time, just one more step was needed that the Kashmir dispute would have ended.  We would have demolished the idea of ​​Pakistan. But in 1971, this occasion made the boundaries of the vision of the politician Indira Gandhi clear.

 Perhaps the group of leaders cannot think beyond the week.

 Friends, we can only imagine what the consequences would have been if the 1971 war had run with the main goal of Kashmir-liberation.  Friends, as you may know, the Bengal invasion of Pakistan started on 25 March 1971.  As General Deepender Singh writes in the biography of General Manekshaw that during the emergency meeting that took place at the Army Headquarters that night, Indira Gandhi asked General Manekshaw what we can do.  In response to this, friends 'Mukti Vahini' was born.  Then Manekshaw's reply to the directive of an immediate attack on East Pakistan in the Cabinet meeting of April 28 that the forces are not yet ready for this, proves him a commander with a clear understanding of geopolitics.  He said that the forces were holding elections.  It is empty now. Mobilization, stocking, maintenance will take 2 months and Eastern Command has only 13 tanks.  Meanwhile, Finance Minister Chauhan asked only thirteen tanks?  The answer was, I have been saying continuously for the last year and a half but your answer is that there is no money.  After 2 months, the land of Bengal will become like sea in the monsoon, no military operation will be possible.  Second China may give ultimatum.  Then Sardar Swaran Singh asked if China would give an ultimatum?  The answer was, Sir, you tell me, you are the foreign minister.  Until the snow falls on the Himalayas, one has to wait.  We cannot fight on two fronts.  It was a blunt reply to the cabinet.  Nobody could counter-protest.  Tamtamai Indira Gandhi adjourned the meeting till 4:00 pm.  Then the general said that if you want, I will resign due to health reasons.  Then Manekshaw was completely exempted.  And the 1971 victory is the result of that.

 The leaders of the same country could not even imagine that by taking advantage of these circumstances of war, there could be a permanent solution to the problem of Kashmir and then Pakistan.  Our real problem was Kashmir, but there is no mention of Kashmir.  How did he understand that the defeat of Pakistan in the West could automatically make the road to Bangladesh independence.  Before the war, instructions for aggressive tactics were issued on the Western Front.  All preparations were complete.  Friends, you may have also read that General Sandhu writes in his book "Battleground Chamba" that on 1 December suddenly, just 2 days before the war, the Prime Minister gave instructions for defensive tactics.  This put a sudden brake on our entire military invasion plan on the Western Front.  Now we would not have been able to attack Hajipir or Lahore Sialkot sectors.  No hands were tied to friends.

 Friends, despite the strong resistance of Manekshaw, Indira Gandhi did not accept and said that if we attack the western border, we will not face international opposition.  Nixon was the pressure of Kissinger, but what was the compulsion to change the strategy?  Friends, it had a very bad effect on the future of Kashmir dispute.  And we remained confined to the ceasefire line.  Our 120 square kilometer area of ​​Chamba also went under the occupation of Pakistan.


 Friends, an unfortunate order rendered that victory of the 1971 war meaningless to us.  While the prospects of a return to Kashmir were clear in that war, the political leadership lacked courage.  He was frightened by the American fleet advancing towards the Bay of Bengal.  After all, whose nature is of the same nature, they are afraid of threats too.  The forces in Bengal were following an aggressive strategy.  A ceasefire was declared at night as soon as General Niazi surrendered in Dhaka on 16 December. The panic in our political leadership was so high that the Haji Pir Pass, etc., leave the Chamba to recapture and take back the forces.  Not given  If friends aggressive policy continues, then we hold on to Haji Pir, Skardu and Gilgit.  The forces would have been entering Lahore, Sialkot.  The Navy would have extended to the port of Karachi and the army to Amarkot, Tharparkar, but not because Indira Gandhi was satisfied with the conclusion of Bangladesh's independence.


 The accolades of becoming friends Bangladesh were given more importance than India's national interest.  The Simla Agreement was reached.  Bhutto got his soldiers, but we lost the Chamba. After becoming friends Bangladesh, we should have also taken the responsibility of protecting the oppressed 8500000 Hindu population there but in the interest of national interest.

 This could not happen due to lack of


 Friends, nationalism has been born in this country like after 2014.  Before that the powers had made the country an inn in the game of appeasement.  1971 was a military victory of a great general that would solve Kashmir, but the established Shudra styles of politics left no stone unturned to make it meaningless.

 Thanks guys, that's all for today.


 Mountain Leopard Mahendra

 

Tuesday, December 15, 2020

Dimna lake Jamshedpur Jharkhand

Ek yatra khajane ki khoje

नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं जमेशदपुर झारखंड के डल झील कहें जाने वाले डिमना लेक की यात्रा पर जो अपनी खुबसूरती से देश-विदेश के पर्यटकों  कोअपनी ओर आकर्षित करतीं हैं  । 

      आइए दोस्तों एक खूबसूरत अवलोकन करते हैं डिमना लेक जमशेदपुर की।
                   
Hello friends, I heartily congratulate all of you mountain leopard Mahendra, Friends, today I am taking you on a trip to Dimna Lake, called Dal Lake in Jamshedpur Jharkhand, which attracts tourists from all over the country and abroad with its beauty.


 Come, friends, make a beautiful observation of Dimna Lake Jamshedpur.



                            झील के बीच में बना   बेस 
                            Base built in the middle of the lake
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खुबसूरत टापू
Beautiful island
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                           बहुत ही सुंदर दृश्य
                          Very beautiful view
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         डिमना लेक के बीचो-बीच बने वाटर प्लेटफार्म पर बैठकर निर्मल सर आसपास के इलाकों का अवलोकन करते हुए ।
Sitting on the water platform built in the middle of Dimna Lake, Nirmal Sir while observing the surrounding areas.

 


         दोस्तों डिमना लेक के आईलैंड पर बना हुआ वाटर प्लेटफार्म टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की एक अनुपम उपहार है जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।  

Friends, the water platform on the island of Dimna Lake is a unique gift from the Tata Steel Adventure Foundation that attracts tourists.

      दोस्तों डिमना लेक में कई प्रकार के जलीय जीव पाए जाते हैं और  इसकेे गहराइयों मैं ना जाने कितनी रहस्य छुपे हुए हैं। और खास बात यह है दोस्तों   की डिमना लेक पूरे शहर को यानी पूरे जमशेदपुर को अपने जल से प्यास बुझाती है ।


Friends, many types of aquatic creatures are found in Dimna Lake and how many secrets are hidden in its depths.  And the special thing is that the Dimna Lake of friends quenches the entire city i.e. the entire Jamshedpur with its water.


दोस्तों आज की रात हम डिमना लेक में हैं व्यतीत करने वाले हैं और रहस्य और रोमांच की दुनिया मेंंंं प्रवेश करने वाले हैं। हम रात में विभिन्न प्रकार के जलीय जीवो को ढूंढने की कोशिश करेंगे और उस रहस्यमई   जीव को ढूंढने की कोशिश करेंगे जिसे यहां केेे गांव वालो  कई बार  देखा है  ।




 Friends, tonight we are about to spend in Dimna Lake and are about to enter the world of mystery and adventure.  We will try to find different types of aquatic creatures at night and try to find the mysterious creature that has seen many times here.



हमारा यह अभियान बहुत ही महत्वपूर्ण है और यहां रात के समय रुकना काफी खतरनाक हो सकताा है। लेकिन हम जोखिम उठाते हुए उस रहस्य पर से  पर्दा उठाने की कोशिश करेंगे और देखतेे हैं की कहां तक कामयाबी मिलती है  ।

This expedition of ours is very important and it can be quite dangerous to stay here at night.  But we will take the risk and try to cover up that secret and see how far we get success.




यह पुनीत भाई ने जो बहुत ही रोमांचकारी युवा है और मेरे साथ बहुत सारे अभियानों में शामिल हो चुके हैं। बहुत अच्छे माउंटेनियर और स्विमर है।

This Puneet bhai who is a very thrilling youth and has joined many campaigns with me.  Very good mountaineer and swimmer.





पुनीत भाई की सबसेे बड़ी खासियत यह हैै कि यह हमेशा मुस्कुरातेेे रहते हैं और  बड़ी से बड़ी कठिनाइयों को चुटकी    में हल कर लेतेे हैं।

The biggest feature of Puneet Bhai is that he is always smiling and resolves the biggest difficulties in a pinch.

टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन एक बहुत बड़ी एडवेंचर कंपनी है। जो टाटा स्टील की ही एक अनुषंगी इकाई है जो एडवेंचर स्पोर्ट्स का प्रतिनिधित्व करती है।

Tata Steel Adventure Foundation is a very large adventure company.  Which is a subsidiary of Tata Steel representing Adventure Sports.













                
                                    धन्यवाद दोस्तों
                       माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

              Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra

Sunday, December 13, 2020

Aasmarn rahe akhand Bharat ka Sankalp स्मरण रहे अखंड भारत का संकल्प. Aasman rahe akhand bharat ka sankalp remember the resolve of united India

Ek yatra khajane ki khoje



 



          स्मरण रहे अखंड भारत का संकल्प
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हम जिस स्थान से आए उसका स्मरण रखना प्रत्येक पीढ़ी का दायित्व है ताकि समय आने पर फिर उसे वहां वापस जा सके।
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 नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लेपर्ड महिंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं तो। 
दोस्तों कुछ दिन पूर्व मुंबई में कराची स्वीट मार्ट नामक दुकान के मालिक को एक शिव सैनिक ने दुकान का नाम बदलने के लिए धमकाया। उसका कहना था कि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियां चलाता है इसलिए नाम बदलना चाहिए।उस दुकान के मालिक ने भी संघर्ष टालने की मंशा से नाम बदलने की बात स्वीकार करते हुए कराची शब्द को ढक दिया। अतः दोस्तों यह समाचार पढ़कर उस शिवसैनिक की क्षुद्र मनोदशा , इतिहास बोध का अभाव और सत्ता से उपजे हेकड़ी देखकर दया आई। उसे भारत के इतिहास का थोड़ा सा भी बोध होता तो किस परिस्थिति में कराची का अपना सारा कारोबार छोड़कर उस दुकानदार के पूर्वज भारत में आने को बाध्य हुए , इसका स्मरण होता। दोस्तों जानकर आपको भी दुख होगा कि हिंदू समाज की और उस समय के भारत के नेतृत्व की कमजोरी या मजबूरी के कारण उन्हें अपने ही देश में निर्वासित होकर आना पड़ा था। एवं वे  लोग यहां आकर अन्य किसी भी गलत मार्ग का अवलंब ना करते हुए अपनी मेहनत से धीरे-धीरे तिनका तिनका जुटाकर उन्होंने यहां अपना कारोबार खड़ा किया और देश की समृद्धि में अपना योगदान दिया। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सिंध या पंजाब से आए ऐसे अनेक लोगों ने कष्ट सहते हुए पूरे देश के भंडार समृद्धि किए हैं  । उन्होंने अनेक शैक्षिक और व्यवसायिक संस्थान प्रतिष्ठान खड़े किए हैं जिनका लाभ समाज के सभी वर्ग ले रहे हैं। अतः दोस्तों हम सभी जिस स्थान से आए उस स्थान का स्मरण करना या रखना नई पीढ़ी का दायित्व बनता है , ताकि आगे योग्य समय एवं सामर्थ्य आने पर फिर से वहां वापस जा सके।

           दोस्तों हम सभी जानते हैं कि हमारे देश भारत में 14 अगस्त के दिन ' अखंड भारत स्मृति दिवस ' मनाया जाता है। इस दिन लोगों को भारत विभाजन की दर्द भरी कहानी बताई जाती है और फिर से भारत अखंड बनाने के संकल्प को दोहराया जाता है। शायद यह बात वह शिवसैनिक नहीं जानता होगा दोस्तों मेरा मानना है कि वह आदमी शिव भक्त हो ही नहीं सकता है जिसे अपने अखंड भारत के बारे में जरा सा भी ज्ञान ना हो। दोस्तों शायद आप लोगों को यह बात नहीं मालूम होगी कि योगी अरविंद ने भारत विभाजन के समय ही कहा था कि यह विभाजन कृत्रिम है और कृत्रिम बातें स्थाई नहीं रहती है। और एक न एक दिन भारतवर्ष फिर से अखंड होगा। 

 हम कराची से आए हैं या हमें मजबूरी में आना पड़ा है और हम फिर वापस कराची जाएंगे ऐसा संकल्प रखना कोई गुनाह नहीं है। आने वाली पीढ़ियों को भी यह संकल्प याद रहे इसलिए कराची नाम रखना गलत बात नहीं है।
दोस्तों शायद आपने मे  से बहुत  ही कम लोगों को पता होगा की इस्राएल के लोग अट्ठारह सौ बरसों तक अपनी भूमि से दूर थे। और प्रतिवर्ष वे लोग नए साल के दिन फिर से यरुशलम जाने का संकल्प वे अट्ठारह सौ बरसों तक दोहराते रहें और आज इसराइल विश्व का एक शक्ति संपन्न देश है। 
दोस्तों आज हमारे देश भारत में कुछ लोगों को खासकर वामपंथियों को अखंड भारत की बात सुनते हैं भूकुटियां  तन जाती है। क्योंकि वे लोग पूरे भारत को विखंडित होते हुए देखना चाहते हैं। दोस्तों यह राजकीय विस्तार बाद की बात नहीं है उन्हें इसे समझना होगा। जैसा कि आपको पता होगा दोस्तों अंग्रेजों के एकछत्र शासन में आने से पहले संपूर्ण भारत में एक राजा का राज्य नहीं था , फिर भी भारत एक था। वास्तव में भारत एक भू सांस्कृतिक इकाई है। और यह सदियों से रही है। हम सब को जोड़ने वाली जीवन की अध्यात्मिक आधारित एक आत्मा और सर्वांगीण दृष्टि से भारत की एक विशिष्ट पहचान और व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है।
                    भारत की इस पहचान या व्यक्तित्व को ही दुनिया 'हिंदुत्व ' के रूप में जानती है। दोस्तों अपने शोध परक ग्रंथ वर्ल्ड हिस्ट्री ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रख्यात ब्रिटिश अर्थशास्त्री एंगस मैडिसन ने दावा किया है कि ईसा की पहली शताब्दी से 17वीं शताब्दी तक विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी सर्वाधिक यानी 33% थी। वाह इस भू सांस्कृतिक इकाई भारत की बात थी। दूसरी शताब्दी में यहूदी , छठी शताब्दी में पारसी और आठवीं शताब्दी में सीरियन ईसाई भारत के अलग-अलग भूभाग में आश्रय के लिए आए।  दोस्तों वहां के राजा अलग थे  , लोग अलग-अलग  भाषा बोलते थे , अलग-अलग उपासना करते थे  , फिर भी उन लोगों के साथ भारत का व्यवहार एक सम्मान स्वागत , सम्मान और स्वीकार का था । पता है दोस्तों कारण क्या था क्योंकि भारत भू - सांस्कृतिक दृष्टि से एक था। इसलिए भारतीय हिंदुओं के श्रद्धा स्थल इस संपूर्ण भूभाग सांस्कृतिक इकाई में व्याप्त हैं। 
                   हिंदुओं के प्रसिद्ध हिंगलाज देवी की मंदिर , ननकाना साहिब गुरुद्वारा आज भारत के पाकिस्तान में , ढाकेश्वरी देवी का मंदिर आज के बांग्लादश में , पशुपतिनाथ का मंदिर , सीता माता का जन्म स्थान जनकपुरी आज के नेपाल में है । 

        इसी प्रकार दोस्तों हमारे सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ रामायण से संबंधित कितने सारे स्थान आज के श्रीलंका में हैं। एवं इसी प्रकार ब्रह्मा देश यानी म्यानमार, श्रीलंका , तिब्बत , भूटान आदि देशों में रहने वाले बौद्ध मतावलंबियों हो के श्रद्धा स्थान भारत में है। 

 जैसा कि दोस्तों आप सभी लोग जानते हैं कि हम भारतीय कैलाश मानसरोवर की यात्रा सदियों से करते आए हैं।अतः इन सब स्थानों की तीर्थ यात्रा इस भू सांस्कृतिक इकाई में रहने वाले लोग वर्षों से श्रद्धापूर्वक करते आए हैं।

           दोस्तों इतना ही नहीं इस भू सांस्कृतिक एकता का दर्शन भारतीय परिवारों में बच्चों के नामकरण में भी होता है या रहा है जैसे कि कर्नाटक का एक परिवार गुजरात में रहता था उनकी दो पुत्रियों के नाम सिंधु व सरयू थे ।जैसा कि दोस्तों आपको पता ही है कि सरयू नदी कर्नाटक में नहीं है और सिंधु नदी तो आज के भारत में भी नहीं है। वह  पाकिस्तान में बहती है । इसी प्रकार कर्णावती में इसरो में कार्यरत उत्तर प्रदेश के फैजाबाद के एक विज्ञानिक की पुत्री का नाम कावेरी था।एवं गुजरात के भावनगर के एक परिवार की बेटी का नाम झेलम है और विदर्भ के एक परिवार में एक बेटी का नाम रावी रखा गया है। ये सब बातें इतनी सहजता से और आनंद से होती आई है कि इसके पीछे का विचार यही भू - सांस्कृतिक एकता की भावना ही है। 

       दोस्तों जाहिर है कि भारत की भू सांस्कृतिक इकाई का इतिहास तो हजारों वर्षों पुराना , व आर्थिक समृद्धि का , सांस्कृतिक संपन्नता का , मानव जीवन के लिए दीपस्तंभ के समान दिशा दर्शक रहा है ।अतः दोस्तों इस वृहत भारतवर्ष का वही स्थान फिर से प्राप्त करना है तो भारत की इस भू सांस्कृतिक इकाई का  विस्मरण नहीं होने देना चाहिए। दोस्तों स्थानों के और व्यक्तियों के नाम के द्वारा ही सही उसकी स्मृति संजोए रखना आवश्यक है।

    अतः दोस्तों क्षुद्र मानसिकता , इतिहास बोध का अभाव और सत्ता के कारण उपजी  हेकड़ी , इन सब बातों का कड़े शब्दों में निषेध और विरोध करते हुए  , हर उपाय करते हुए इस भू - सांस्कृतिकता एकता का  स्मरण , गौरव और फिर से वह श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करने का संकल्प बार-बार दोहराना आवश्यक है। 

   धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही और एक बात कहना चाहता हूं दोस्तों की अपनी सांस्कृतिक विरासत को कभी भूलना नहीं चाहिए हमारा भारतवर्ष एक था और हमेशा एक रहेगा।

    


                  माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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                              English translate
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         Remember the resolve of a united India

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 It is the responsibility of each generation to remember the place where we came so that when the time comes, it can then go back there.

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 Hello friends, I would like to extend my hearty greetings to all of you Mountain Leopard Mahindra.

 Friends, a few days ago, the owner of a shop called Karachi Sweet Mart in Mumbai was threatened by a Shiva soldier for renaming the shop.  He said that because Pakistan runs terrorist activities against India, the name should be changed. The owner of that shop also covered the word Karachi, accepting the change of name with the intention of creating conflict.  So friends, reading this news, took pity on seeing the petty mood of the Shiv Sainiks, lack of understanding of history and arrogance arising out of power.  If he had a little understanding of the history of India, then under which circumstances the ancestor of that shopkeeper was forced to leave India after leaving all his business in Karachi, it would be remembered.  Friends, you will also be sad to know that due to the weakness or compulsion of the Hindu society and the leadership of India at that time, they had to come into exile in their own country.  And those people, coming here and not following any other wrong path, gradually built up their business here and made their business here and contributed to the prosperity of the country.  You will be surprised to know that many such people coming from Sindh or Punjab have endured the reserves of the whole country by suffering.  He has established many educational and professional institutes, which are being taken advantage of by all sections of the society.  Therefore, friends, remembering or keeping the place from which we all came, becomes the responsibility of the new generation, so that it can go back to it again when the appropriate time and ability comes.


 Friends, we all know that 'Akhand Bharat Smriti Divas' is celebrated on 14th August in our country India.  On this day people are told the painful story of Partition of India and the resolve to make India united again is repeated.  Perhaps he would not have known this Shiv Sainik friends, I believe that a man cannot be a devotee of Shiva who does not have a little knowledge about his unbroken India.  Friends, perhaps you will not know that Yogi Arvind had said at the time of partition of India that this division is artificial and artificial things do not remain permanent.  And one day, India will be united again.


 We have come from Karachi or we have to come under compulsion and we will go back to Karachi again. It is not a crime to keep such a resolution.  It is not a wrong thing to keep the name Karachi for future generations to remember this resolve.

 Friends, very few of you probably would have known that the people of Israel were away from their land for eighteen hundred years.  And every year those people resolve to go to Jerusalem again on New Year's Day, they keep repeating for eighteen hundred years and today Israel is a power-rich country in the world.

 Friends, in our country today, some people, especially the leftists, listen to unbroken India. Earthquakes are created.  Because they want to see the whole of India disintegrating.  Friends, this state expansion is not the latter, they have to understand it.  As you may know, there was not a single kingly kingdom in India before the British came under unitary rule, yet India was one.  In fact, India is a geocultural unit.  And it has been for centuries.  A uniquely based identity and personality of India has been created by a spiritually based and holistic view of life connecting us all.

 The world knows this identity or personality of India as 'Hindutva'.  In his research treatise World History of Economics, the noted British economist Angus Madison claimed that India's share of world trade was the highest at 33% from the first century to the 17th century.  Wow this geo-cultural unit was the talk of India.  Jews in the second century, Parsis in the sixth century, and Syrian Christians in the eighth century came to different parts of India for shelter.  Friends, the kings there were different, people spoke different languages, worshiped differently, yet India's treatment of them was a welcome, respect and acceptance.  You know what the reason was because India was one of geo-cultural terms.  That is why the revered sites of Indian Hindus permeate this entire terrain cultural unit.

 Nankana Sahib Gurdwara, the temple of the famous Hinglaj Devi of Hindus, today in Pakistan, India, the temple of Dhakeshwari Devi in ​​present-day Bangladesh, Pashupatinath's temple, Janakpuri, the birth place of Sita Mata, in today's Nepal.


 Similarly friends, how many places related to our most famous book Ramayana are in Sri Lanka today.  And similarly, there is a place of reverence for Buddhist people living in Brahma country i.e. Myanmar, Sri Lanka, Tibet, Bhutan etc.


 As friends all of you know that we have been visiting the Indian Kailash Mansarovar for centuries, so people living in this geo-cultural unit have been paying homage to these places.


 Friends, not only this geo-cultural unity is also seen in the naming of children in Indian families, or as if a family of Karnataka lived in Gujarat, their two daughters had names like Sindhu and Saryu. As friends you know.  That the Saryu river is not in Karnataka and the Indus river is not even in today's India.  She flows into Pakistan.  Similarly, the daughter of a scientist from Faizabad, Uttar Pradesh, working at ISRO in Karnavati, was named Kaveri, and the daughter of a family from Bhavnagar in Gujarat is named Jhelum and a daughter in a Vidarbha family is named Ravi.  All these things have happened so easily and with pleasure that the idea behind this is the feeling of geo-cultural unity.


 Friends, it is clear that the history of India's geocultural unit has been thousands of years old, and has been a direction for economic prosperity, cultural prosperity, like a lamp for human life. So friends, to regain this place of this great India  So this geo-cultural unit of India should not be forgotten.  It is necessary to cherish the memory of friends and places by their names.


 So friends, petty mentality, lack of sense of history and arrogance arising due to power, strongly prohibit and oppose all these things, remembering this geo-cultural unity in every way, glorifying and regaining that superior position.  It is necessary to repeat the resolution of it again and again.


 Thank you guys, that's all I want to say for today. Friends, never forget your cultural heritage, our India was one and always will be one.









 Mountain Leopard Mahendra
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Friday, December 11, 2020

हमारे नए भारत के लिए नया संसद भवन. New Parliament House for our new India

Ek yatra khajane ki khoje

              

                         नय संसद भवन 
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हमारे नए भारत के लिए नया संसद भवन
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 नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लेपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। 

हमारी संसद देश के जनतांत्रिक मूल्यों की उम्दा अभिव्यक्ति है। इसमें जनता के प्रतिनिधि राष्ट्रीय विधायिका के रूप में संघ की सर्वाधिक शक्तियों का उपयोग करते हैं। इसका हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है।प्रजातंत्र के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए भारत के लोगों के लिए यह एक आस्था और विश्वास का मंदिर है। दोस्तों जैसा कि आपको जानकारी दे दूं भारत वर्ष 2022 में अपनी स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ मनाएगा। और यह विश्व के सर्वाधिक जीवंत लोकतंत्र में अग्रणी होने की ऐतिहासिक उपलब्धि है। अतः इस अवसर को चिर स्मरणीय बनाने के लिए भारतीयों द्वारा राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में पहली बार लोक संसद का निर्माण किया जा रहा है। और माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी आधारशिला रखने जा रहे हैं। एवं यह नया संसद भवन भारतीय जनतंत्र के विकास को दर्शाने के साथ-साथ भारत की आकांक्षाओं को भी प्रतिबिंबित करेगा।

                   जैसा कि दोस्तों आप सभी को पता होगा कि वास्तव में हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें प्राचीन भारत के समय से है।और यह इस उपमहाद्वीप में कई राजवंशों के शासनकाल में शताब्दियों से निर्बाध रूप से विकसित हुई है। मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत सशक्त स्थानीय शासकीय निकायों सहित वैदिक काल की जन आधारित सभाओं और समितियों ने हमें लोकतांत्रिक मूल्यों का मूलभूत आधार उपलब्ध  कराया है। हालांकि सल्तनत और मुगल युग  6 शताब्दियों और तत्पश्चात ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने भारतीय लोकतंत्र को बहुत कमजोर बना दिया , लेकिन स्वतंत्रता के बाद जनतांत्रिक आदर्शों का शासन के मूलभूत सिद्धांत के रूप में पुनः एकीकरण हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व का महत्वपूर्ण कदम  रहा है ।इस दौरान पराधीनता के काल में बने वर्तमान संसद भवन ने हमारे लोकतंत्र को आधारभूत सुविधा उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जैसा कि दोस्तों संसद भवन के संबंध में पहला सवाल वर्ष 1912 में ब्रिटेन की संसद में उठाया गया था।इसमें राजधानी दिल्ली में विधान परिषद स्थापित करने के लिए अलग भवन का निर्माण करने की व्यवस्था करने के बारे में पूछा गया था।एवं दर्ज ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार वर्तमान संसद परिसर का उद्घाटन वर्ष 1927 में हुआ था , जिसके तीन हाल थे चेंबर ऑफ प्रिंसेस , स्टेट काउंसिल और सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली जो स्वतंत्रता के पश्चात क्रमशः लाइब्रेरी हॉल  ,राज्यसभा और लोकसभा के रूप में प्रयोग हो रहा है। एवं ऐतिहासिक दस्तावेज बताती है कि बढ़ी हुई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वर्ष 1956 में इसमें दो अतिरिक्त तल जोड़े गए थे।

दोस्तों आप सभी को पता है कि वर्तमान संसद भवन एक औपनिवेशिक शाही निर्माण है  , जिससे भारत ने सफल लोक आधारित जनतंत्र के  7 से अधिक दशकों में प्रगति की है।  अतः अब जैसे-जैसे राष्ट्र वर्ष 2022 में स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ की ओर बढ़ रहा है , वैसे-वैसे 130 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए नए लोक संसद के निर्माण की योजना राष्ट्र के समृद्ध इतिहास में अस्थाई स्मारक के रूप में उभर कर आ रही है। इस भवन की स्थापना भारतीय लोकतंत्र की ऐसी ऐतिहासिक पहल है , जो राष्ट्र की जनता द्वारा , जनता का और जनता के लिए वाले सिद्धांत का अनुपालन करते हुए समृद्ध सांस्कृतिक विविधता को अक्षुण्ण बनाएगी।

 दोस्तों विश्व इतिहास में ऐसे तमाम उदाहरण है जहां औपनिवेशिक व्यवस्था से स्वतंत्र होकर कई देशों ने ऐसे कार्य किए हैं। जैसा कि वर्ष 1776 में स्वतंत्रता के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में आजादी के 25 वर्षों के अंदर राजधानी भवन का निर्माण करके वर्ष 1800 में संयुक्त राज्य   कांग्रेस का पहला सत्र आयोजित किया गया था  ।इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में वर्ष 1901 में स्वतंत्रता के 87 वर्षों के बाद देश की राजधानी केनबरा  में एक नए लोक संसद भवन का अनावरण किया गया , जो वहां के नागरिकों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। एक और देश ब्राजील में स्वतंत्रता के लगभग 70 वर्षों के बाद 1960 में राष्ट्रीय कांग्रेस भवन का निर्माण किया गया।इन परिवर्तनकारी कार्यो ने विश्व के 3 बड़े लोकतंत्रों 
 के विकास क्रम में अहम भूमिका निभाई ।

अतः ऐसे में दोस्तों भारत के लोगों को प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में में राष्ट्र का गौरव और उत्साह बढ़ाने के लिए स्वतंत्रता के बाद पहली बार अपने लोक संसद भवन के निर्माण के लिए एक साथ खड़ा होना चाहिए। क्योंकि नया संसद भवन भारतीय लोकतंत्र के लिए ना केवल एक प्रतीक का कार्य करेगा  , बल्कि यह भी इंगित करेगा कि कैसे देश ने अत्याधुनिक भवन निर्माण की दिशा में प्रगति की है। दोस्तों यह नए भारत का प्रतिरूप होने से साथ-साथ नए भारत के विजन का एक अहम अंग भी होगा। आपको बता दूं कि इसमें वर्ष 2022 में संसद के शीतकालीन सत्र का आयोजन किया जाएगा। खास बात यह है कि संसद परिसर में वर्तमान संसद भवन और त्रिकोणीय आकार का नया भवन आपस में जुड़े होंगे , जिसमें राष्ट्रीय विधायिका का प्रभावी संचालन हो सकेगा। एवं यह भारतीय लोकतंत्र की बढ़ती हुई क्षमता को प्रदर्शित करेगा। नए संसद का डिजाइन और इसकी आंतरिक सज्जा भारतीय मूल्य और क्षेत्रीय कलाओं  ,शिल्पो और संस्कृति की अनूठी विविधताओं से ओतप्रोत होगी। एवं इसका लोकसभा सदन मौजूदा लोकसभा से 3 गुना बड़ा होगा। लोकसभा और राज्यसभा में संसद सदस्यों के लिए उच्च स्तर की सुरक्षा के साथ-साथ उत्तम गुणवत्ता वाली ध्वनि , दृश्य -श्रव्य सुविधाएं तथा सुरक्षित आपातकालीन निकासी की व्यवस्था होगी। इस भवन का आसानी से रख -रखाव और संचालन भी किया जा सकेगा। 

एवं दोस्तों वर्ष 2024 तक प्रत्येक संसद सदस्य के लिए अलग-अलग चेंबर भी बनाया जाएगा।एवं इसमें प्रत्येक सांसद को संसद परिसर में अपने कार्यालय के लिए पर्याप्त जगह होगी, जिससे वे सम्मानजनक तरीके से अपने निर्वाचन क्षेत्र के व्यक्ति या अन्य से मिलकर चर्चा कर सकेंगे। इनके अतिरिक्त सांसदों के लिए चेंबर ,संसद एनेक्सी और पुस्तकालय भवन को मिलाकर एक लेजिसलेटिव एनक्लेव बनेगा , जो हमारे लोकतंत्र के आधुनिक कॉलेजियम के रूप में प्रतिष्ठित होगा। ऐसा देखा जाता है कि कुल मिलाकर सेंट्रल विस्टा की विरासत का संरक्षण करते हुए नया संसद भवन नए भारत की भावी  मांगों का समाधान करेगा । 
अतः दोस्तों हमें गर्व करना चाहिए कि नए भारत के लिए नया संसद भवन बनकर तैयार होने वाला है।

                      धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही

               माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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       English translate
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New Parliament House for our new India

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 Hello friends I heartily congratulate all of you on the mountain leopard Mahendra.


 Our Parliament is a great expression of the democratic values ​​of the country.  In this, representatives of the public exercise the highest powers of the Union as the national legislature.  It has an important place in our democratic system. It is a temple of faith and faith for the people of India to uphold the principles of the nation.  Friends, as I inform you, India will celebrate the 75th anniversary of its independence in the year 2022.  And it is a historic achievement to be the leader in the world's most vibrant democracy.  Therefore, to make this occasion memorable, for the first time a Lok Parliament is being built by Indians in the national capital, New Delhi.  And Honorable Prime Minister Narendra Modi is going to lay the foundation stone for this.  And this new parliament building will reflect the development of Indian democracy as well as the aspirations of India.


 As friends all of you may know that democracy in our country has its roots in ancient India in fact, and it has developed seamlessly for centuries in the reign of many dynasties in this subcontinent.  Under the Mauryan Empire, the mass local public bodies and committees of the Vedic period, including the strong local government bodies, have provided us with the basic basis of democratic values.  Although the Sultanate and Mughal era 6 centuries and the subsequent British colonial rule made Indian democracy very weak, the re-integration of democratic ideals as a fundamental principle of governance after independence has been an important step of our national leadership.  The present Parliament House built during the period has played an important role in providing basic amenities to our democracy.  As the first question regarding the Friends Parliament House was raised in the UK Parliament in the year 1912, it was asked about arranging for the construction of a separate building to establish the Legislative Council in the capital Delhi.  According to the present Parliament complex was inaugurated in the year 1927, the three halls of which were the Chamber of Princes, the State Council and the Central Legislative Assembly which are being used as Library Hall, Rajya Sabha and Lok Sabha respectively after independence.  And historical documents show that two additional floors were added to it in the year 1956 to meet the increased requirements.


 Friends, you all know that the present Parliament House is a colonial imperial construction, from which India has progressed in more than 7 decades of successful public based democracy.  Therefore, as the nation is moving towards the 75th anniversary of independence in the year 2022, the plan for the creation of a new Lok Parliament to fulfill the aspirations of 130 crore Indians as a temporary monument in the rich history of the nation.  Is emerging  The establishment of this building is such a historic initiative of Indian democracy, which will make the rich cultural diversity intact by following the principle of the people of the nation, the people and the people.


 Friends, there are many examples in world history, where many countries have done such things independent of the colonial system.  As the first session of the United States Congress was held in the year 1800 by building a capital building within 25 years of independence in the United States after independence in the year 1776. Similarly in Australia after 87 years of independence in the year 1901.  A new Lok Parliament building was unveiled in Canberra, the country's capital, which is a center of attraction for its citizens and tourists.  After 70 years of independence in another country Brazil, the National Congress building was built in 1960. These transformative works have led to the creation of 3 major democracies of the world.

 Played an important role in the development order of


 Therefore, Friends, the people of India should stand together for the construction of their Lok Parliament House for the first time since Independence, under the able leadership of Prime Minister Modi, to increase the pride and enthusiasm of the nation.  Because the new Parliament House will not only act as a symbol for Indian democracy, but it will also indicate how the country has progressed towards the construction of state-of-the-art buildings.  Friends, this will be an important part of the vision of a new India along with being a model of the new India.  Let me tell you that the Winter Session of Parliament will be organized in the year 2022.  The special thing is that the present Parliament House and a new building of triangular shape will be interlinked in the Parliament complex, in which the national legislature will be effective.  And it will show the growing potential of Indian democracy.  The design of the new parliament and its interiors will be dotted with unique variations of Indian values ​​and regional arts, crafts and culture.  And its Lok Sabha House will be 3 times larger than the current Lok Sabha.  The Lok Sabha and Rajya Sabha will have a high level of security as well as sound quality audio-visual facilities and safe emergency evacuation for Members of Parliament.  This building can also be easily maintained and operated.


 And friends, a separate chamber will also be created for each Member of Parliament by the year 2024. And in this, every MP will have enough space for his office in the Parliament premises, so that he can respectfully discuss with the person or other of his constituency.  Will be able to  In addition to this, there will be a Legislative Enclave for MPs, including the Chamber, Parliament Annexe and Library Building, which will be distinguished as the modern collegium of our democracy.  It is seen that while preserving the heritage of Central Vista overall, the new Parliament House will address the future demands of the new India.

 So friends, we should be proud that a new parliament building is going to be ready for a new India.


 Thanks guys that's all for today


 Mountain Leopard Mahendra

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Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...