Wednesday, March 10, 2021

एक यात्रा मध्य प्रदेश के सागर शहर की आदी मानव के द्वारा बनाए गए शैल चित्रों एवं पुरातात्त्विक अवशेषों की जो अब मध्य प्रदेश सरकार द्वारा बनाए जा रहे एक कृत्रिम बांध की अथाह जल राशि में डूबने वाला है। यानी दोस्तों हम सभी एक और अपने पूर्वजों द्वारा बनाए गए ऐतिहासिक पुरातात्विक अवशेषों को होने वाले हैं - सागर शहर मध्य प्रदेश भारतवर्ष A visit to Sagar city of Madhya Pradesh is about to be carved by man-made rock paintings and archaeological remains, which are now going to sink in the bottomless water of an artificial dam being constructed by the Government of Madhya Pradesh. That is, friends, all of us are going to have historical archaeological remains made by one and our ancestors - Sagar city Madhya Pradesh India.

Ek yatra khajane ki khoje 










        शैल चित्र मध्य प्रदेश के सागर शहर के खानपुर गांव की पहाड़ियों में स्थित है।
 
The rock painting is located in the hills of Khanpur village in Sagar city of Madhya Pradesh.











  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं मध्य प्रदेश के सागर शहर की यात्रा पर जहां हम देखेंगे कि कैसे एक प्राचीन नगर के अवशेष मानवों के दखलंदजी से बर्बाद हो रहा है। क्योंकि दोस्तों यह अवशेष अपने सुख सुविधाओं के लिए मानव द्वारा बनाए जा रहे हैं कृत्रिम बांध में डूब रहा है जो कि सागर शहर के प्राचीन इतिहास का अनछुआ पन्ना है।









 दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह सागर शहर से जुड़े प्राचीन इतिहास का बिल्कुल अनछुआ पृष्ठ है जो दुनिया वालों की नजर में आते ही बनाए जा रहे बांध के पानी की अथाह गहराइयों में डूबने के कगार पर है।दोस्तों ये पुरातात्विक अवशेष सागर शहर की प्राचीनता की एक खोई हुई कड़ी की तरह है।दोस्तों इस खोज का आरंभिक निष्कर्ष यह है कि हमें सागर शहर के इतिहास को गढ़पहरा नगर की स्थापना से भी पहले जाना होगा।

















दोस्तों सागर शहर से करीब 10 से 11 किलोमीटर की दूरी पर एक पुरातात्विक स्थल मौजूद है जहां हम मानव विकास के क्रम को शैलाश्रयों  में रहने वाले गुफा मानवों से लेकर मराठा काल तक के पुरातात्विक प्रमाणों को क्रमवार देख सकते हैं।दोस्तों जानकर आश्चर्य होगा कि प्राचीन इतिहास की चरणबद्धता को संजोने वाले ऐसे पुरातात्विक स्थल कम ही मिलते हैं। दोस्तों आप सभी को बताते हुए मुझे बहुत दुख हो रहा है कि इस महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोज का एक दुखद पहलू भी है जोकि आप समझ सकते हो कि सागर शहर के निवासी और हम जैसे जिज्ञासु खोजकर्ता और इतिहासकार , सागर तालाब से निकली कड़ान नदी की घाटियों में छिपे इस महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल को लगभग डेढ़ वर्षो तक ही देख सकेंगे क्योंकि यह स्थल एक विशाल बांध की अथाह जल राशि में समा जाएगी।








दोस्तों मध्य प्रदेश के सागर शहर के लाखा बंजारा तालाब के अंदर से निकलने वाला पानी आगे जाकर एक नदी में बदल जाता था। जिसे शहर के बाहर निकलते ही कड़ान नदी कहा जाने लगता है । दोस्तों सन 1650 के पहले जब सागर शहर का तालाब तालाब ना होकर एक नदी के उद्गम की तरह था।  परंतु आबादी के विस्तार के साथ-सथ 20 वीं सदी में कभी इस प्राकृतिक स्रोत से निकले पारदर्शी जलधारा से शहर के गंदे नाले जोड़ दिए गए।दोस्तों वर्तमान में गंदी नाली की तरह दिखने वाली कड़ान नदी शहर के पश्चिमी दिशा में लावे से निर्मित पहाड़ों की एक श्रृंखला के पीछे जाकर घने जंगलों में गुम हो जाती है। दोस्तों इन्ही पहाड़ी घाटी में नदी के किनारे छोटे से किले जैसा एक महल है जिसे सतगढ़ का महल कहा जाता है। जहां पहुंचने का मार्ग काफी दुर्गम है 

















दोस्तों महल तक जाने का रास्ता खानपुर गांव से होकर जाता है दोस्तों इसी खानपुर गांव की पहाड़ियां अपने शैल चित्रों के कारण काफी प्रसिद्ध है।जो कभी गुफा मानवों द्वारा यानी आदि मानव द्वारा उकेरी गई थी गुफाओं की दीवारों पर। दोस्तों इस जगह और सतगढ़ महल तक पहुंचने के लिए खानपुर गांव के आगे का जंगल और गंदे नाले में बदल चुकी कड़ान नदी को पैदल पार करना होता है।दोस्तों शहर की गंदगी से भरा बदबूदार पानी में उतरने की अनिवार्यता ही इस इलाके को दुर्गम और अछूता बना देती है जिस कारण से हम जैसे खोजकर्ताओं को वहां तक पहुंचना नामुमकिन हो जाता है। 








दोस्तों सागर शहर की नई कृषि उपज मंडी से आगे दाहिने तरफ पहाड़ों से घिरे खानपुर गांव के रहने वाले रमेश यादव और रघुनाथ राउत्त जैसे जागरुक लोगों ने सतगढ़ का महल दिखाने का जो सिलसिला शुरू किया , तो जंगल में बिखरे पड़े पुरातात्विक अवशेषों की झड़ी लग गई । दोस्तों नदी के किनारे बनी किले नुमा खूबसूरत  गढ़ी  एवं अनेकों की संख्या में ध्वस्त हो चुके प्राचीन कुएं और बावड़ियां , प्राचीन मंदिरों के अवशेष , स्तंभ शिखर , खंडित मूर्तियां , सती स्तंभ और समृद्ध शैल चित्रों से भरे दर्जनों शैल चित्र। 















दोस्तों निश्चित ही सभी पुरातात्विक अवशेष 12 वीं शताब्दी के आसपास के परमार या चंदेल कांडखंड में बने होंगे। दोस्तों स्थानीय निवासियों ने बताया कि यहां कभी बंजारे रहा करते थे इन्होंने ही निकटवर्ती गांव का नाम खानपुर रखा था।हालांकि दोस्तों यह एक किवदंती है क्योंकि यह सभी बहुत ही प्राचीन है जो कि शैव और वैष्णव मतों के काफी नजदीक प्रतीत होते हैं।साथ ही साथ दोस्तों स्थानीय ग्रामीणों ने यह भी बताया कि उन्होंने 40 वर्ष पहले तक प्राचीन मंदिरों के अवशेषों की बड़ी मात्रा  यहां देखी थी ।उनके अनुसार दोस्तों नक्काशी दार पत्थरों के ढेर बन गए इन मंदिरों का अगर उत्खनन हो तो अभी भी बड़े पैमाने पर महत्वपूर्ण पुरा संपदा हाथ लग सकती है। संभवत कुछ प्रतिमाएं और अभिलेख भी प्राप्त हो सकते हैं।दोस्तों इनके समीप स्थित कुओं कि अगर सफाई करवाई जाए तो उनमें से प्राचीन प्रतिमाएं और बड़ी संख्या में सोने और चांदी के सिक्कों के मिलने की संभावना है।









दोस्तों मंदिरों को ध्वंश जिस पाशविकता  से किया गया है उससे मालूम होता है कि यह अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल 1305 के आसपास हुआ होगा।क्योंकि ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि इस काल के बाद से ही मूर्ति भंजक मुस्लिम शासकों के बड़े हमले नहीं हुए थे।फिर भी दोस्तों आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि अपने समय के समृद्धशाली  रही इस नगर का साहित्यिक स्रोतों में कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया है।
















खैर दोस्तों कड़ान नदी के गंदी नाली में बदल जाने के कारण इस घाटी को घने जंगलों ने ढक लिया है। जिस कारण से यहां लोगों का आना जाना बंद हो गया है। देखा जाए तो दोस्तों पहाड़ की चोटी के ऊपर बना सत गढ़ किला ही सिर्फ लोगों के नजर में आता रहा है।
एवं दोस्तों खानपुर के शैल चित्र जिन्हें आदिमानव ने बनाया था अपनी विशिष्टता के लिए काफी प्रसिद्ध है एवं पिछले 40 वर्षों से यहां शोधकर्ताओं का आना जाना लगा हुआ है फिर भी आश्चर्य करने वाली बात है कि इन शोधकर्ताओं को शैलाश्रयों की तराई में जंगलों से ढके मंदिरों के पूरा अवशेष क्यों नहीं दिखाई दिए। खैर छोड़िए इन सब बातों को क्योंकि ये पूरा अवशेष हमारे पूर्वजों के अनमोल धरोहर हैं जिन्हें बचाया जाना अति आवश्यक है  अन्यथा दोस्तों मध्य प्रदेश सरकार द्वारा बनाई जाने वाली बांध की पानी की अथाह गहराइयों में ये सभी पूरा अवशेष विलीन हो जाएंगे। 








             
                धन्यवाद दोस्तों

              माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗

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                English translate
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Hello friends, I heartily greet all of you mountain lepards Mahendra, Friends, today I am taking you on a journey to Sagar city of Madhya Pradesh where we will see how the ruins of an ancient city are being ruined by the interference of human beings.  is.  Because friends, these remains are being built by humans for their amenities, sinking in the artificial dam, which is the untouched emerald of a ncient history of Sagar city.










 Friends, you will be surprised to know that this is an absolutely untouched page of ancient history associated with the city of Sagar, which is on the verge of sinking in the bottomless depths of the dam water being built as soon as the world sees it.  Is like a lost link. Friends, the initial conclusion of this discovery is that we have to know the history of Sagar city even before the establishment of Garhpahra city.


















 An archeological site exists about 10 to 11 kilometers from the city of Friends Sagar where we can see the sequence of human development from the archaeological evidences from cave humans living in the rock shelters to the Maratha period.  Few such archaeological sites that preserve the phasing of history are rarely found.  Friends, I am very sad to tell you that there is also a sad aspect of this important archaeological discovery which you can understand that the curious explorers and historians like the residents of Sagar city and us, in the valleys of Kadan river originated from Sagar Pond.  You will be able to see this important archaeological site hidden for about one and a half years because this site will be contained in the huge amount of water in a huge dam.













 Friends, the water coming from inside the Lakha Banjara Pond in Sagar city of Madhya Pradesh used to go further into a river.  Which comes out of the city is called Kadan river.  Friends, before 1650, when the lake in Sagar city was like a river rather than a pond.  But with the expansion of the population, in the 20th century, the sewer drains of the city were added to the transparent stream that came out of this natural source sometime in the 20th century.  Go behind a chain and get lost in the dense forests.  Friends, there is a palace like a small fort on the bank of the river in these mountainous valleys, which is called the palace of Satgarh.  Where the route to reach is very inaccessible
















 The way to reach the friends palace is through the Khanpur village. Friends, the hills of the same Khanpur village are very famous for their rock paintings. The cave was once carved by humans, that is, by the early humans, on the walls of the caves.  Friends, to reach this place and the Satgarh palace, one has to cross the Kadan river, which has been turned into a forest and dirty drain ahead of Khanpur village. The necessity of landing in the filthy stinking water of the two cities, this area is inaccessible and untouched.  For this reason, it is impossible for explorers like us to reach there.













 Friends, the new agricultural produce market of Mandi Sagar city, on the right side, the conscious people like Ramesh Yadav and Raghunath Raut, who live in Khanpur village surrounded by mountains, started showing the palace of Satgarh, the archeological remains scattered in the forest.  .  Forts built on the banks of the Friends River are beautiful forts and numerous demolished ancient wells and stepwells, remnants of ancient temples, pillar peaks, fragmented sculptures, sati pillars and dozens of rock paintings filled with rich rock paintings.

















 Friends, all archaeological remains must have been built in the Parmar or Chandel Kandkhand around the 12th century.  Friends local residents told that once the Banjaras used to live here, they named the nearby village as Khanpur. However, friends, it is a legend because it is all very ancient which seems to be very close to Shaivite and Vaishnavism.  Along with friends, the local villagers also told that they had seen a large amount of the remains of ancient temples here till 40 years ago. According to them, the friends carving dar became a heap of stones.  It may take a hand.  Probably some statues and inscriptions can also be found. If the wells near the two are cleaned, then ancient statues and a large number of gold and silver coins are likely to be found among them.










 The bestiality of the demolition of the Friends temples suggests that it must have taken place around 1305 during the reign of Alauddin Khilji. Historical documents suggest that there were no major attacks by idol-worshiping Muslim rulers since this period.  Yet what is surprising to friends is that this city, which was prosperous during its time, is not mentioned anywhere in the literary sources.

















 Well friends, this valley has been covered by dense forests due to the Kadan river turning into a dirty drain.  Due to which people have stopped coming here.  If seen, friends, only the fort fort built on top of the mountain has been seen by the people only.

 And friends, the rock paintings of Khanpur which Adimanav made are very famous for their uniqueness and the researchers have been coming here for the last 40 years, yet it is surprising that these researchers have found the forests covered temples in the valley of Shailashri  Why did not the entire relic of it appear.  Well, leave all these things because these entire remains are the precious heritage of our ancestors which need to be saved otherwise friends, all these remains will be dissolved in the deep water depths of the dam created by the Madhya Pradesh government.










 Thanks guys


 Mountain Leopard Mahendra                         🧗🧗

































 















Mountain lappord Mahendra
🧗🧗















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