Saturday, May 8, 2021

एक यात्रा रणकपुर के जैन मंदिर की।दोस्तों यह रणकपुर के जैन मंदिर है ।दोस्तों इस मंदिर की भव्यता एवं सुंदरता की जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है दोस्तों आप तस्वीरों में देख सकते हो कि पत्थरों पर इतनी बेहतरीन कलाकारी की गई है कि शायद इतनी सुंदर कलाकारी तो कागज पर भी ना बन सके। दोस्तों यह मंदिर राणा कुंभा के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। दोस्तों इस मंदिर को धरना शाह नाम के जैन ने बनाया था -रणकपुर जिला पाली राजस्थान भारत A visit to the Jain temple of Ranakpur. Friends, this is the Jain temple of Ranakpur. Friends, the magnificence and beauty of this temple is as much as the friends are praised, you can see in the pictures that the stone has such fine artwork that maybe Such beautiful artwork could not be made even on paper. Friends, this temple was built during the reign of Rana Kumbha. Friends, this temple was built by a Jain named Dharna Shah - Ranakpur District Pali Rajasthan India.

Ek yatra khajane ki khoje

















                रणकपुर के प्राचीन जैन मंदिर की विहंगम दृश्य

           A panoramic view of the ancient Jain temple of Ranakpur
















  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं राजस्थान के पाली जिले में अरावली पर्वत की घाटियों  के मध्य स्थित रणकपुर में जैन तीर्थंकर  ऋषभदेव के चतुर्मुखी जैन मंदिर की यात्रा पर। दोस्तों चारों ओर  घने जंगलों से घिरे इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है ।तो आइए दोस्तों चलते हैं रणकपुर के जैन मंदिर की यात्रा पर।









         रणकपुर जैन मंदिर

       जिला -पाली -राजस्थान

               भारतवर्ष








 नमस्कार दोस्तों भारतवर्ष के राजस्थान राज्य में स्थित रणकपुर जैन धर्म के पांच प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। दोस्तों यह स्थल खूबसूरती से तराशे गए प्राचीन जैन मंदिरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। दोस्तों इन मंदिरों का निर्माण 15 वी शतब्दी में महाराजा राणा कुंभा के शासनकाल में किया गया था। दोस्तों महाराजा राणा कुंभा के नाम पर ही इस जगह का नाम रणकपुर पड़ा है। दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यहां के जैन मंदिर प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत धरोहर है। दोस्तों केवल रणकपुर में ही नहीं बल्कि इसके आसपास के क्षेत्रों में भी अनेक प्राचीन मंदिर मौजूद है। दोस्तों सबसे बड़ी बात यह है कि यहां जैन धर्म में आस्था रखने वालों के साथ-साथ वास्तुशिल्प में दिलचस्पी रखने वालों को भी रणकपुर बहुत ही पसंद है।
               दोस्तों रणकपुर का जैन मंदिर का मुख्य मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित चौमुखा मंदिर है।दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह मंदिर चारों दिशाओं में खुलता है दोस्तों प्राचीन ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण सन 1440 में किया गया था। दोस्तों खूबसूरत संगमरमर के पत्थरों से बने इस अद्भुत व  खूबसूरत मंदिर में 29 विशाल कमरे मौजूद हैं। जहां दोस्तों 1444 खंभे लगे हुए हैं।दोस्तों इन खंभों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सभी खंभे एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न है।दोस्तों अद्भुत रूप से मंदिर के पास के गलियारे में बने मंडपों में सभी 24 तीर्थंकरों की तस्वीरें उकेरी गई है।




















      दोस्तों इन सभी मंडपों में शिखर बने हुए हैं।और इन शिखरों के ऊपर घंटियां लगी हुई है। दोस्तों अद्भुत रूप से जब हवाएं चलने लगती है तब इन घंटियों की आवाज पूरे मंदिर परिसर में गूंजने लगती है जिससे यहां का वातावरण शुद्ध एवं पवित्र हो जाती है।
       दोस्तों मंदिर परिसर में ही जैन तीर्थंकर नोमीनाथ  और जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित 2 मंदिर हैं दोस्तो इन मंदिरों की अद्भुत नक्काशी देखकर खजुराहो की याद आ जाती है।
           
       दोस्तों मंदिर परिसर लगभग 40000 वर्ग फीट में फैला है दोस्तों जैसा कि ऐतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि करीब 600 वर्ष पूर्व 1440 ईस्वी में इस मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था जो 50 वर्षों से अधिक समय तक चला था। दोस्तों उस जमाने में इस मंदिर के निर्माण में करीब 7700000 रुपए का खर्च आया था।
         दोस्तों मंदिर में चार कलात्मक प्रवेश द्वार बने हुए हैं दोस्तों साथ ही मंदिर के मुख्य गृह में जैन तीर्थंकर आदिनाथ की संगमरमर से बनी चार विशाल मूर्तियां मौजूद हैं। दोस्तों करीब 72 इंच ऊंची यह मूर्तियां चार अलग-अलग दिशाओं की ओर उन्मुख है। इसी कारण से इस मंदिर को चतुर्मुख मंदिर कहा जाता है। दोस्तों इसके अलावे मंदिर में 76 छोटे-छोटे गुम्बदनुमा पवित्र स्थान व चार बड़े प्रार्थना कक्ष एवं चार बड़े पूजा स्थल मौजूद हैं।दोस्तों ये सभी आश्चर्यजनक रूप से मनुष्यों को जीवन- मृत्यु की 8400000 जीवयोनियो से मुक्ति प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है।
























दोस्तों आप देखोगे कि उस समय के मंदिर के निर्माताओं ने जहां कलात्मक दो मंजिला भवन का निर्माण किया और वही भविष्य में किसी संकट का गहन अनुमान लगाते हुए कई गुप्त तहखाने भी बनाएं। ताकि इन तहखानों में पवित्र मूर्तियों को सुरक्षित रखा जा सके।यानी दोस्तों देखा जाए तो ये तहखाने मंदिर के निर्माताओं के निर्माण संबंधी दूरदर्शिता का परिचय देते हैं।

              दोस्तों साथ ही मंदिर के उत्तर क्षेत्र में रायन पेड़ स्थित है। दोस्तों इसके अलावे संगमरमर के टुकड़े पर भगवान ऋषभदेव के पदचिन्ह मौजूद हैं दोस्तों ये सभी भगवान ऋषभदेव एवं शंत्रुजय की शिक्षाओं को याद दिलाते हैं।
            दोस्तों कुछ भी हो रणकपुर की प्राचीन जैन मंदिर अपनी विशालता एवं भव्यता को लिए हुए आज भी शान से खड़ी है।

  दोस्तों आप रणकपुर की प्राचीन जैन मंदिर की यात्रा वायु मार्ग , रेल मार्ग और सड़क मार्ग के द्वारा कर सकते हैं। 
 
 वायु मार्ग -  नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर है। दिल्ली और मुंबई से यहां के लिए नियमित उड़ानें हैं।

 रेल मार्ग -   दोस्तों निकटतम रेलवे स्टेशन फालना व रानी जिला पाली है ।यहां के लिए सभी प्रमुख शहरों को जाने वाली रेल गाड़ियां उपलब्ध है। 

 सड़क मार्ग -  दोस्तों रणकपुर उदयपुर से केवल 98 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह स्थान देश के प्रमुख शहरों से सड़कों के जरिए जुड़ा हुआ है।











            धन्यवाद दोस्तों

    माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗 






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        English translate
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 Hello friends, I heartily greet all of you mountain-legged Mahendra friends. Today I am taking you on a journey to the Chaturmukhi Jain temple of Jain Tirthankara Rishabhdev in Ranakpur, situated amidst the valleys of Aravalli mountain in Pali district of Rajasthan.  Friends see the grandeur of this temple surrounded by dense forests. So let's go on a visit to the Jain temple of Ranakpur.









 Ranakpur Jain Temple


 District - Pali - Rajasthan


 India



 Namaskar Friends, Ranakpur is one of the five major pilgrimage sites of Jainism located in the Indian state of Rajasthan.  Friends, this place is world famous for beautifully carved ancient Jain temples.  Friends, these temples were built in the 15th century under the reign of Maharaja Rana Kumbha.  Friends, this place is named Ranakpur after the name of Maharaja Rana Kumbha.  Friends, you will be surprised to know that the Jain temple here is a wonderful heritage of ancient Indian architecture.  Friends, many ancient temples exist not only in Ranakpur but also in the surrounding areas.  Friends, the biggest thing is that those who believe in Jainism as well as those who are interested in architecture, like Ranakpur very much.

 Friends, the main temple of Jain temple of Ranakpur is the Chaumukha temple dedicated to the first Jain Tirthankara Adinath. Friends, you will be surprised to know that this temple opens in all four directions. Friends. Ancient historical documents show that this temple was built in 1440.  .  Friends, there are 29 spacious rooms in this wonderful and beautiful temple made of beautiful marble stones.  Where the Friends are mounted 1444 pillars. Friends, the biggest feature of these pillars is that all these pillars are totally different from each other. The friends are amazingly carved pictures of all 24 Tirthankaras in the mandapas built in the corridors near the temple.























 Friends are the pinnacle in all these pavilions, and there are bells above these peaks.  Friends, when the winds start to move amazingly, then the sound of these bells starts echoing throughout the temple premises, which makes the atmosphere here pure and pure.

 There are 2 temples dedicated to Jain Tirthankara Nominath and Jain Tirthankara Parshvanath in the Friends temple complex itself. Friends remember Khajuraho by seeing the amazing carvings of these temples.









 The Friends temple complex is spread over about 40000 sq. Ft. Friends, as historical sources reveal, the construction work of this temple started in 1440 AD about 600 years ago which lasted for more than 50 years.  Friends, at that time the cost of construction of this temple was about 7700000 rupees.

 There are four artistic gateways in the Friends temple. Friends, there are four huge marble statues of Jain Tirthankara Adinath made of marble in the main house of the temple.  Friends, this sculpture about 72 inches high is oriented towards four different directions.  For this reason, this temple is called Chaturmukh Temple.  Friends, in addition to this, there are 76 small domed sanctum and four big prayer halls and four big places of worship in the temple. All these amazingly inspire humans to attain salvation by getting 8400000 lives of life and death.  is.






















 Friends, you will see that the makers of the temple of the time where the artistic two-storey building was built, and in the same way, build a secret basement in anticipation of any future crisis.  So that the holy idols can be kept safe in these cellars. If friends are seen, then these cellars show the foresight of the construction of the temple's builders.


 Friends, as well as the Ryan tree is located in the north area of ​​the temple.  In addition to the friends, the footprints of Lord Rishabhdev are present on the piece of marble. Friends, all these remind the teachings of Lord Rishabhdev and Shantrujay.

 Whatever be the friends, the ancient Jain temple of Ranakpur is still standing today with its grandeur and grandeur.


 Friends, you can visit the ancient Jain temple of Ranakpur by air, rail and road.



  By aeroplane - The nearest airport is Udaipur.  There are regular flights to here from Delhi and Mumbai.


  Rail route - Friends, the nearest railway station is Falna and Rani district Pali. There are trains available to all major cities.


  By road - Friends Ranakpur is located only 98 km from Udaipur, this place is connected by road to major cities of the country.




















        Thanks guys


 Mountain Leopard              Mahendra 🧗🧗



















 Mountain Leopard                  Mahindra 🧗🧗

















Thursday, May 6, 2021

एक यात्रा अद्भुत अलौकिक प्राचीन भविष्य बद्री मंदिर की जो उत्तराखंड हिमालय के ऊंचे शिखरों के बीच घने जंगलों में स्थित ग्राम - सुभाइ में स्थित है - जोशी मठ उत्तराखंड भारत A visit to the amazing supernatural ancient Bhavishya Badri temple located in the village - Subhai in the dense forests amidst the high peaks of the Uttarakhand Himalayas - Joshi Math Uttarakhand India.

Ek yatra khajane ki khoje

































    Hello friends I extend my hearty greetings to all of you guys at Mountain Leopard Mahendra.  Friends, today I am taking you on a journey to the Bhavishya Badri Nath Temple situated on the high peaks of Uttarakhand.










 Ancient Future Badri Temple


 Village- Subhai



 Joshimath, Uttarakhand


 India









 Namaskar Friends There is a statue of "Badri of the future" present in a cave here.  Friends, legend has it that this idol is emerging from the rock present in the cave itself with the passage of time, earlier this rock was flat and straight but now it has faces, but now it has a face-like shape and hands-like texture has emerged.  .  Friends, it is believed that Lord Badrinath will fully appear in this cave in the future when Lord Badrinath is inundated with the temple.


 Friends "Bhavishya Badri" temple is a famous and ancient temple of Hindus.  Friends "Bhavishya Badri" temple is located in village Subhai, 17 km from Joshimath in Uttarakhand state of India, and Friends "Bhavishya Badri" temple is located at an altitude of 2744 meters above sea level.








 Friends, "Bhavishya Badri" temple is situated at the height as well as it is situated amidst the dense forests of the Himalayas.  Due to the height of friends, this temple can be reached only by mountaineering.  Friends, the "Badrinath" temple of the future is located on the ancient pilgrimage road leading to the sacred Kailash Mansarovar mountain on the banks of the Dhauliganga River.  Friends, pilgrims who visited Kailash Mansarovar in ancient times used to spend the night in the caves of the "future Badri" temple. And they all got up early in the morning and started the journey of Kailash Mansarovar only after reciting the worship of "Future Badri Nath".  Used to do


 Friends, you will be surprised to know that "Badrinath of the future" temples are one of the group of 5 Badri temples "Badrinath", Yogyadhyana Badri, Adi Badri and Old Badri and Sapta Badri Shrines.  Friends, it is believed that these temples were built by Adi Guru Shankaracharya.  Because friends are credited to Adi Guru Shankaracharya for the construction of many ancient temples in Uttarakhand region.  The purpose of the construction of these temples by friends Adi Guru Shankaracharya was to spread the propagation of God and Hinduism in every corner and remote part of the country.


 Friends, the stone rock is present near the temple here, friends. Surprisingly, after looking carefully at the stone stone, the figure of God is seen.  Friends, Lord "Badri Vishal" is enshrined here as "Shaligram" idol.











 According to the Friends legend, when the path of Badrinath Dham will be blocked and inaccessible after meeting the male and Narayan mountains present here at the end of the Kali-yuga, then Lord Badrinath will offer prayers to the devotees in this ancient and famous "future Badri" temple.  Friends, instead of the Badrinath temple, worship of Lord Badrinath will be recited in this ancient "future Badri" temple. Friends, you will be surprised to know that in the "future Badri" temple worshiped the idol of Lord "Narasimha", the incarnation of "Lord Vishnu".  She goes.



 "The Path to Reach the Badri Nath Temple of the Future".


 Friends, all of you can go to "Saldhar" market, about 11 km from Joshimath by "Motor vehicle of the future", Joshimath, and further the journey to the temple is completed by walking and trekking about 6 kilometers.  A little inaccessible and difficult but when you reach the temple, it gives a strange peace of mind.


 "The best time to visit the temple"


 The best time to visit "Bhavishya Badri" is from March to May and September to November as the monsoon and winter is not the ideal season to visit the "Bhavishya Badri" temple.  The mind is fascinated. And on the other side the quadrangular idol of Lord Vishnu is emerging naturally on the rock.  Friends, the idol of "Bhavishya Badri" is going on increasing year by year.


 Friends, the date of the opening of the temple of "Badrinath" temple is also opened on the same date. The door of the temple of "Bhavishya Badri" is opened. That is, the door of the temple is opened for pilgrims at 4:30 am on May 15 every year.  is.










 Thanks guys


 Mountain Leopard               Mahendra 🧗🧗






































    नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं उत्तराखंड के ऊंचे शिखरों पर स्थित भविष्य बद्री नाथ मंदिर की यात्रा पर। 










  प्राचीन भविष्य बद्री मंदिर

           ग्राम-  सुभाइ 
   
        जोशीमठ , उत्तराखंड

                भारतवर्ष









 
 नमस्कार दोस्तों  यहां मौजूद एक गुफा में मौजूद हैं "भविष्य के बद्री" की मूर्ति। दोस्तों किवदंती है कि यह मूर्ति गुफा में मौजूद चट्टान से अपने आप समय बीतने के साथ उभरकर सामने आ रही है पहले यह चट्टान सपाट व सीधी थी लेकिन अब इसमें चेहरे , लेकिन अब इसमें चेहरे जैसी आकृति व हाथों जैसी बनावट उभर कर सामने आ चुकी है। दोस्तों माना जाता है कि जब भगवान बद्रीनाथ मंदिर से अंतर्ध्यान हो जाएंगे तब भविष्य में इसी गुफा में भगवान बद्रीनाथ पूर्ण रूप से प्रकट होंगे।

         दोस्तों "भविष्य बद्री" मंदिर हिंदुओं का एक प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर है । दोस्तों "भविष्य बद्री" मंदिर भारतवर्ष के उत्तराखंड राज्य के जोशीमठ से 17 किलोमीटर की दूरी पर गांव सुभाई में स्थित है।साथ ही दोस्तों "भविष्य बद्री" मंदिर समुद्र तल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।













दोस्तों "भविष्य बद्री" मंदिर ऊंचाई पर होने के साथ-साथ हिमालय के घने जंगलों के बीच स्थित है‌। दोस्तों ऊंचाई पर होने के कारण इस मंदिर तक पर्वतारोहण करके ही पहुंचा जा सकता है। दोस्तों भविष्य के "बद्रीनाथ" मंदिर धौलीगंगा नदी के किनारे पवित्र कैलाश मानसरोवर पर्वत की ओर  जाने वाले प्राचीन तीर्थ मार्ग पर स्थित है। दोस्तों प्राचीन समय में कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले तीर्थयात्री "भविष्य के बद्री" मंदिर के गुफाओं में रात्रि विश्राम किया करते थे ।एवं वे सभी सुबह सुबह उठकर "भविष्य के बद्री नाथ" की पूजा पाठ करने के बाद ही कैलाश मानसरोवर की यात्रा शुरू करते थे।

         दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि "भविष्य के बद्रीनाथ" मंदिर 5 बद्री मंदिरों के समूह "बद्रीनाथ" , योग्यध्यान बद्री, आदि बद्री एवं वृद्ध बद्री व सप्त बद्री तीर्थों में से एक हैं। दोस्तों ऐसा माना जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य जी ने किया था। क्योंकि दोस्तों उत्तराखंड क्षेत्र में कई प्राचीन मंदिरों के निर्माण के लिए आदि गुरु शंकराचार्य जी को ही श्रेय दिया जाता है। दोस्तों आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा इन मंदिरों के निर्माण का उद्देश्य देश के हर कोने  एवं दूरदराज हिस्से में भगवान एवं हिंदू धर्म का प्रचार प्रसार करना था।

          दोस्तों यहां पर मंदिर के पास ही पाषाण की शिला मौजूद है दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से इस     पाषाण की शिला को ध्यान से देखने पर भगवान की आकृति नजर आती है। दोस्तों यहां पर भगवान "बद्री विशाल" "शालिग्राम" मूर्ति के रूप में विराजमान है।







दोस्तों पौराणिक कथा के अनुसार जब कलयुग के अंत में यहां मौजूद नर और नारायण पर्वत के आपस में मिलने पर बद्रीनाथ धाम का रास्ता अवरुद्ध व दुर्गम हो जाएगा तब भगवान बद्रीनाथ इसी प्राचीन व प्रसिद्ध "भविष्य के बद्री" मंदिर में श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे।यानी दोस्तों बद्रीनाथ मंदिर के बजाय इस प्राचीन "भविष्य के बद्री" मंदिर में भगवान बद्रीनाथ की पूजा पाठ की जाएगी ।दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि "भविष्य के बद्री" मंदिर में "भगवान विष्णु" के अवतार भगवान "नरसिंह" की मूर्ति की पूजा की जाती है।
 
 "भविष्य के बद्री नाथ मंदिर तक पहुंचने की मार्ग।"

 दोस्तों आप सभी "भविष्य के बद्री मंदिर" , मोटर वाहन यानी कार के द्वारा जोशीमठ से लगभग 11 किलोमीटर दूर "सलधर" बाजार तक जा सकते हैं और आगे मंदिर तक की यात्रा लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पैदल व ट्रेकिंग के द्वारा पूरा किया जाता हैजो थोड़ा दुर्गम और कठिन है लेकिन जब आप मंदिर तक पहुंच जाते हो तो मन को एक अजीब सी शांति प्रदान होती है।

" मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय"

 दोस्तों "भविष्य की बद्री" जाने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई और सितंबर से नवंबर है  क्योंकि दोस्तों मानसून और सर्दियों में "भविष्य बद्री" मंदिर की यात्रा के लिए आदर्श मौसम नहीं है दोस्तों भविष्य बद्री धाम अपनी विशाल प्राकृतिक सुंदरता के कारण भक्तों के मन को मोह लेती है।और दूसरी तरफ भगवान विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति  चट्टान पर प्राकृतिक रूप से उभर रही है। दोस्तों अलौकिक रूप से "भविष्य बद्री" की मूर्ति साल दर साल बढ़ती ही जा रही है। 

      दोस्तों जिस तिथि को "बद्रीनाथ" मंदिर का कपाट खुलता है , उसी तिथि को "भविष्य बद्री" मंदिर की भी कपाट खोली जाती है।यानी दोस्तों प्रत्येक वर्ष 15 मई को सुबह 4:30 पर तीर्थ यात्रियों के लिए मंदिर का कपाट खोल दिया जाता है।










         धन्यवाद दोस्तों

  माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗

































Monday, May 3, 2021

एक यात्रा राजस्थान के उदयपुर जिले के दुर्गम घने जंगलों में स्थित मायरा गुफा की जिसका उपयोग महाराज महाराणा प्रताप किया करते थे क्रूर मुगल आक्रमणकारियों से बचने के लिए। दोस्तों गुफा के अंदर मौजूद हैं प्राचीन हिंगलाज माता की मंदिर - राजस्थान उदयपुर भारत A visit to the Myra cave located in the inaccessible dense forests of Udaipur district of Rajasthan, which Maharaja Maharana Pratap used to avoid the cruel Mughal invaders. The ancient Hinglaj Mata temple is present inside the friends cave - Rajasthan Udaipur India.

Ek yatra khajane ki khoje















                      
































  Hello friends I extend my hearty greetings to all of you guys at Mountain Leopard Mahendra.  Friends, today I am taking you on a journey to Myra Cave situated in the inaccessible dense forests of Udaipur district of Rajasthan, where I used to live during my days of struggle.  Friends, let's go to that wonderful cave.










 Myra Cave


 Udaipur Rajasthan


 India



 Hello friends Maharaj Maharana Pratap's arsenal, this cave is no less than a labyrinth.  Friends used to fly away after entering the cave.  The temple of ancient Hinglaj Mata is present inside the cave, which was worshiped by Maharana Pratap himself.

 Friends, let us go to this era of history when our brave warrior Maharana Pratap, we were fighting the cruel Mughal invaders from outside to honor the honor of the Indians.  Friends say that in the famous Haldighati war, the valiant warrior Maharana Pratap attacked the ferocious invader Bahlol Khan with his sword that Bahlol Khan's head was broken into two pieces.  Friends, there are many more stories of Maharana Pratap's bravery.  Friends, this may have been the reason these lines were written.


 "Till the duel is brought up"

 "How far can war be avoided"

 "You are also a descendant of Rana"

 "Throw as far as a spear"









 Friends, it is not surprising that everyone who loves the country of India considers himself a descendant of Maharana Pratap.  Therefore, it comes to mind that the sword, with which the horse has broken into two pieces, including the horse, it must have been like that.  And friends, how would that brave warrior be.




















 In such a situation, the new generation of the country and the world can know Maharana Pratap more closely, so the Myra cave is being developed by the Rajasthan government.  So that tourists can easily reach here, and can see and understand this important historical site of India.



 Friends, Myra Cave is amazing among the hills of Iswal, 35 km from Udaipur District Headquarters in Rajasthan.  Friends, you will be surprised to know that even today it is very difficult and difficult to reach.  Friends, the special thing about this is that only a few people who know the history of Mewar, keep information about this cave.  That is, till date neither the Mughals nor the other people were aware of this cave.








 Friends, Rajasthan Chief Minister Ashok Gehlot recently presented the Vajat in the state assembly, in which the highly secreted Myra Caves were among the places selected for the convenience and development of tourists coming to Udaipur.  Friends, there is hope that soon tourists will be able to come here easily.










 Friends, even today it is not possible to reach Myra's cave by a four-wheeler.  Friends, this Myra cave can be reached only after traveling five kilometers through the dense forest by motorcycle or other two-wheeler.  Friends, this journey of five kilometers is very difficult and full of difficulties, only then Mughal invaders could not reach this cave.










 Friends, when you reach here, you will not feel that there is a huge cave here because even after reaching the cave, the path of entering it from outside is not visible.  Friends do not think from outside that there is a huge cave inside.

 Friends, for this reason, the great warrior Maharana Pratap decided to build an armory here due to this cave being very safe and huge.  At the same time, friends Myra cave is no less than a maze. Friends, there are three different routes to visit this cave. Friends, the creations or formations of these paths are such that it was impossible for the enemies to understand.  There is an AC system in the Friends cave which states that all the necessary items were arranged for the soldiers here.








 Friends are present in the cave itself, the temple of ancient Hinglaj Mata where Maharaja Maharana Pratap worshiped himself.  A two-storey arsenal has been built near the Friends cave, which is starting to get dilapidated due to lack of maintenance. Friends Mewar historians have long been demanding the development of this cave and adding it as a tourist destination.  But the matter was left between the tourism department and the forest department.  But friends, this cave is being developed with the help of the government.


 Friends, Myra's cave is mentioned in the history of Rajasthan and historical book called Rajbada.  It has been told that Maharana Pratap had selected a place in the form of an armory where it is not less than a challenge to reach even today.  Maharana Pratap used to live in this cave during the time of crisis.  Friends, the Mughals captured Gogunda four times, but they never had access to this cave.  Due to this, Maharana Pratap attacked Gogunda again and captured him.


 Friends, the contribution of this cave was very important during the battle of Haldighati.  Friends Maharaja Pratap had to find many secret and safe places during the struggle with the Mughal invader Akbar, of which the cave of Myra was the most important.  Because friends Maharaja Maharana Pratap used to do important and secret mantras on this.



 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗


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  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं राजस्थान के उदयपुर जिले के दुर्गम घने जंगलों में स्थित मायरा गुफा की जहां अपने संघर्ष के दिनों में रहा करते थे। दोस्तों आइए चलते हैं उस अद्भुत गुफा की ओर।









         
          मायरा गुफा

       उदयपुर राजस्थान

               भारतवर्ष


 नमस्कार दोस्तों महाराज महाराणा प्रताप के शस्त्रागार रहें यह  गुफा किसी  भूल-भुलैया से कम नहीं हैं । दोस्तों गुफा के अंदर प्रवेश करते ही उड़ जाते थे होस दुश्मनों के । गुफा के अंदर ही मौजूद हैं प्राचीन हिंगलाज माता का मंदिर , जिसकी पूजा स्वंय  महाराज महाराणा प्रताप किया करते थे। 
             दोस्तों आइए चलते हैं इतिहास के इस दौर में जब हमारे वीर योद्धा महाराणा प्रताप हम भारतवासियों के मान सम्मान के लिए बाहर से आए क्रूर मुगल आक्रमणकारियों से युद्ध कर रहे थे। दोस्तों कहते हैं कि प्रसिद्ध हल्दीघाटी के युद्ध में क्रूर आक्रमणकारी बहलोल खां पर वीर योद्धा महाराणा प्रताप ने अपने तलवार से ऐसा वार किया कि  बहलोल खां के  सिर से लेकर घोड़े तक के दो टुकड़े हो गए थे। दोस्तों  महाराणा प्रताप  की वीरता के और भी बहुत सारे किस्से कहानियां हैं। दोस्तों शायद  यही कारण रहा है कि इन पंक्तियों को लिखा गया था।

  " द्वंद्ध कहा तक पाला जाएं "
  " युद्ध कहां तक टाला जाए "
  " तु भी है राणा का वंशज "
  " फेंक जहां  तक भाला जाएं"

         दोस्तों यह आश्चर्य करने वाली बात नहीं है कि भारत देश से प्रेम करने वाला हर कोई खुद को महाराणा प्रताप का वंशज ही मानता है। अतः ऐसे में मन में आता है कि जिस तलवार के एक वार से  घुड़सवार के घोड़े समेत दो  टुकड़े हो गए हों  , वह कैसी रही होगी। और दोस्तों कैसा रहा होगा  वह वीर योद्धा।














दोस्तों ऐसे में देश और दुनिया के नई पीढ़ी महाराणा प्रताप को और करीब से जान सकें  इसलिए महाराणा प्रताप के शस्त्रागार रहें मायरा गुफा को राजस्थान सरकार द्वारा विकसित की जा रही है। ताकि पर्यटक आसानी से यहां तक पहुंच सकें , और भारत के इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल को देख और समझ सकें।
                
           दोस्तों राजस्थान के उदयपुर जिला मुख्यालय से  35 किलोमीटर दूर ईसवाल के पहाड़ियों के बीच हैं अद्भुत की  मायरा गुफा । दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यहां पहुंचना आज भी बेहद दुर्गम और मुश्किलों भरा है। दोस्तों इस की ख़ास बात यह है कि मेवाड़ के इतिहास की जानकारी रखने वाले कुछ लोग हीं  इस गुफा के बारे में जानकारी रखते हैं। यानी दोस्तों आज तक इस गुफा के बारे में न तो मुगलों को जानकारी हो पाईं थीं और नहीं अन्य लोगों को।
   
       दोस्तों हाल ही में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य विधानसभा में वजट प्रस्तुत किया , जिसमें उदयपुर आने वाले पर्यटकों की सुविधा एवं विकास के लिए जिन स्थानों का  चयन किया गया था , उनमें यह अति गोपनीय मायरा गुफा भी  शामिल थीं। दोस्तों ऐसे में उम्मीद है कि जल्द ही पर्यटक यहां आसानी से आ जा सकेंगे।

















दोस्तों क्योंकि आज भी मायरा की गुफा तक  चौपहिया वाहन से पहुंच पाना संभव नहीं है । दोस्तों मोटरसाइकिल या अन्य दुपहिया वाहन से  ही घने जंगलों के बीच से होकर पांच किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद ही इस मायरा गुफा तक पहुंचा जा सकता है। दोस्तों यह पांच किलोमीटर का सफर बहुत ही दुर्गम और मुश्किलों  से भरा है तभी तो मुग़ल आक्रमणकारी इस गुफा तक पहुंच नहीं पाते थे। 
          
     दोस्तों जब आप यहां पहुंचेंगे तो आपको लगेगा ही नहीं की यहां पर कोई विशाल गुफा मौजूद हैं क्योंकि गुफा तक पहुंचने पर भी  बाहर से इसमें अंदर दाखिल होने का मार्ग दिखाईं नहीं देता है। दोस्तों बाहर से लगता हीं नहीं है कि अंदर एक विशाल गुफा मौजूद हैं।
       दोस्तों इसी कारण से महान योद्धा महाराणा प्रताप इस गुफा के अति सुरक्षित और विशाल होने के कारण ही यहां शस्त्रागार बनाने का निर्णय लिया। साथ ही दोस्तों मायरा गुफा किसी भूल भुलैया से कम नहीं हैं दोस्तों इस गुफा में जाने के लिए तीन अलग-अलग रास्ते हैं दोस्तों इन रास्तों की रचनाएं या बनावट ऐसी हैं कि जिसे समझ पाना शत्रुओं के लिए असंभव बात थी । दोस्तों गुफा में एसी व्यवस्था मौजूद है जो बताती है कि यहां सैनिकों के लिए हर जरूरी सामान का बंदोबस्त किया गया था।

  














         दोस्तों   गुफा में ही मौजूद हैं प्राचीन हिंगलाज माता का मंदिर जहां स्वयं महाराज महाराणा प्रताप पूजा किया करते थे। दोस्तों गुफा के नजदीक ही दो मंजिला  शस्त्रागार बना हुआ है जो देख - रेख के अभाव में जीर्ण- शीर्ण होने लगा है दोस्तों मेवाड़ के इतिहासकार लंबे समय से इस गुफा के विकास और उसे पर्यटन स्थल के रूप में जोड़ने की मांग करते रहे हैं। लेकिन मामला पर्यटन विभाग और वन विभाग के बीच फस के रह गया था। लेकिन दोस्तों अब सरकार की मदद से इस गुफा का विकास किया जा रहा है।

       दोस्तों राजस्थान के इतिहास और रजबाड़े नामक ऐतिहासिक पुस्तक में मायरा की गुफा का जिक्र किया गया है । इसमें बताया गया है कि महाराणा प्रताप ने शस्त्रागार के रूप में एक ऐसे स्थान का चयन किया था जहां पहुंच पाना आज भी किसी चुनौती से कम नहीं है । इस गुफा में  महाराणा प्रताप संकट के समय रहा करते थे। दोस्तों मुगलों ने चार बार  गोगुंदा पर कब्जा किया , लेकिन इस गुफा तक उनकी पहुंच कभी भी नहीं बन पाई। इसी के चलते महाराणा प्रताप ने  गोगुंदा पर दोबारा हमला करके  उसे अपने कब्जे में कर लिया था।

         दोस्तों हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान इस गुफा का योगदान बड़ा अहम था । दोस्तों मुग़ल आक्रमणकारी अकबर से हुए संघर्ष के दौरान महाराज महाराणा प्रताप को अनेक गुप्त एवं सुरक्षित स्थान तलाशने पड़े थे , इनमें से मायरा की गुफा सबसे अहम थी। क्योंकि दोस्तों महाराज महाराणा प्रताप यही पर महत्वपूर्ण एवं गुप्त मंत्राणाए किया करते थे।








          धन्यवाद दोस्तों
  माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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 Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗
   













Ek yatra khajane ki khoje me

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          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...