Saturday, August 6, 2022

एक यात्रा - क्या भारत में विशाल मानवों का अस्तित्व था शायद हां भीम पुत्र घटोत्कच का कंकाल मिलना आज भी एक रहस्य बना हुआ है?A Journey - Did giant humans exist in India, perhaps yes, getting the skeleton of Bhima's son Ghatotkacha remains a mystery even today?

Ek yatra khajane ki khoje 












   सन् 2007 में हिनदूस्तान समाचारपत्र में महामानव की                                    तस्वीर
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         Picture of great man in Hindustan                             newspaper in 2007

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  नमस्कार दोस्तों मेरे यात्रा ब्लॉग में आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन है । दोस्तों मैं आज एक ऐसी घटना की जीक्र करने जा रहा हूं जिसे पढ़ कर आप सभी हैरत में पड़ जाएंगे। जी हां दोस्तों उस वर्ष यानी 2007 की समाचारपत्र हिनदुस्तान  की पेपर कटिंग आज भी मेरे पास मौजूद है जिसमें दर्ज हैं भीमपुत्र घटोत्कच का रहस्यमई कंकाल मिलना। जिसे शायद उस समय ज्यादा प्रचारित नहीं होने दिया गया था और उस खबर छुपा दिया गया था।  
 






     आइये दोस्तों देखते हैं क्या सचमुच में उस समय पाया गया विशालकाय कंकाल भीम पुत्र घटोत्कच था?  शायद जी हां।

 दोस्तों उस समय समाचारपत्र हिन्दूस्तान में लेख इस प्रकार था। हाल ही में भारत के उत्तरी क्षेत्र मे एक विशालकाय या फिर कहें भीमकाय मानव कंकाल की प्राप्ति हुई है।  दोस्तों  जिसका वर्णन हमारे विभिन्न प्राचीन धर्म ग्रंथों एवं कहानियों में होता रहा है । दोस्तों इसके पहले विश्व में कहीं भी इस तरह के विशाल मानव कंकाल की प्राप्ति नहीं हुई थी।  दोस्तों उस समय ऐसी खबर थी कि यह ख़ोज एक अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान ने भारतीय सुरक्षाकर्मियों के सहयोग से किया था। क्योंकि वह क्षेत्र भारतीय सुरक्षाकर्मियों के अधीन आता है अतः उस क्षेत्र गुप्त रखा गया था। 








       वैसे दोस्तों आपको जानकारी के लिए बता दूं कि उस रेगिस्तानी क्षेत्र को "एम्प्टी क्वार्टर" के नाम से जाना जाता है जिस क्षेत्र में वह कंकाल मिला था। दोस्तों वह एक बलुआई क्षेत्र हैं जो इस प्रकार के जीवाश्म को बचा कर रखनें के लिए काफी उपयुक्त होता है दोस्तों इस तरह के क्षेत्र में किसी भी प्रकार के जीवाश्म के कठोर भाग जैसे हड्डी हजारों साल तक पृथ्वी के ऊपरी सतह के नीचे सुरक्षित रह सकते हैं । 
                 दोस्तों माना जाता है कि उस क्षेत्र में एक और विशालकाय मानव कंकाल मिला था। लेकिन वह पत्थर में परिवर्तित हो चुका था।यानि दोस्तों इस कंकाल से भी वह प्राचीन होगा। दोस्तों खोजी दलों ने उस समय एक शिलालेख भी प्राप्त किया था। जिसमें वर्णन था कि भगवान ब्रह्मा जी ने इस इस विशालकाय मनुष्य को बनाया था जो पहले नहीं था। दोस्तों  वे सभी विशालकाय मानव काफी लंबे चौड़े तथा शक्तिशाली हुआ करतें थे इतने शक्तिशाली की एक बड़े पेड़ के तने को चारों ओर से अपने बाहों में जकड़ कर जड़ से उखाड़ सकते थे।









  दोस्तों माना जाता है कि मनुष्य जो उस समय आपस में लड़ते रहते थे को नियंत्रित करने के लिए इन भीमकाय मानवों का अवतरण हुआ था।  दोस्तों इसी तरह के एक महामानव का वर्णन महाभारत में भी मिलता है इस महामानव का नाम घटोत्कच था। जो भीम एवं हिडिंबा के पुत्र थे। दोस्तों इन विशालकाय मानवों जो शक्तियां प्रदान की गई थी  आगे चलकर सभी देवताओं के खिलाफ होने लगी थी। जिसे क्षुब्ध होकर भगवान शिव ने इन सभी विशालकाय  मानवों का संहार कर दिया था। जिससे उनका पृथ्वी से अस्तित्व ही समाप्त हो गया था।





                दोस्तों भूवैज्ञानिकों का मानना है कि ये कंकाल किसी मानवों की है। दोस्तों वैसे आपको बता दूं कि भारत सरकार ने इन विशालकाय कंकालो की जानकारी जानकारी गुप्त रखीं हैं। और उस क्षेत्र में किसी के भी जानें पर रोक लगा रखी है। 


      दोस्तों हमारे विभिन्न प्राचीन विभिन्न धर्मग्रंथों में देवताओं एवं मनुष्यों तथा राक्षसों के बीच हुए युद्ध का वर्णन मिलता है अतः इससे साफ लगता है कि कहीं न कहीं राक्षसों या विशालकाय मानवों का अस्तित्व था। अतः इस खोज के बाद वैज्ञानिक सत्यता की भी मुहर लग जाती है। 

      दोस्तों एसी मान्यता है कि सत्य युग में मनुष्यों की उंचाई 21 हाथ होती थी। यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो हों सकता है कि ये अति प्राचीन मानव तथा आधुनिक मानव के बीच की कोई कड़ी हो जो किसी कारणवश लुप्त हो गयी हों।







     दोस्तों आपको जानकारी के लिए बता दूं कि पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों ने नियेन्डरथल नामक एक मानवजाति के अवशेषों की खोज की है जो लगते तो मानव की तरह है लेकिन उनका शरीर आधुनिक मानव से ज्यादा बलशाली एवं विशाल था तथा वे मांसभक्षी थे। तथा उनका आधुनिक मानव से कई बार भिड़ंत होता रहता था। दोस्तों वे आज से 350000 साल पहले तक पुरे यूरोप एवं एशिया में फैले हुए थे। दोस्तों वैज्ञानिकों का मानना है कि उनके विलुप्त होने के कारणों में प्रमुख हैं मौसम में बदलाव तथा आधुनिक मानवों से युद्ध।  

   दोस्तों समाचारपत्र में छपे हुए इन चित्रों को देखेंगे तो पाएंगे कि इस विशालकाय कंकाल के अगल बगल खड़े खोजी दल के सदस्य बहुत ही छोटे लग रहें हैं ।  







       दोस्तों खोज में यदि कोई सत्यता है तो इससे साफ पता चलता है कि विभिन्न हिंदू एवं दूसरे धर्मों के प्राचीन पुस्तकों एवं धर्मग्रंथों में जो महामानवों का वर्णन मिलता है वे कोरी कल्पना नहीं हैं ।
      अतः भारत सरकार को चाहिए कि इस खोज की विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित करें। ताकि लोगों को अपने प्राचीन विरासत को जानने का मौका मिल सके।

     धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।


     
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    English Translat
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 Ek yatra khajane ki khoje




 




 Picture of a great man in Hindustan newspaper in 2007
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 Hello friends, a warm welcome to all of you in my travel blog.  Friends, today I am going to mention an incident that you will be surprised to read.  Yes friends, the paper cutting of the newspaper Hindustan' of that year i.e. 2007 is still present with me, in which the mysterious skeleton of Bhimputra Ghatotkach is recorded.  Which was probably not allowed much publicity at that time and that news was hidden.







 Let's see friends, was the giant skeleton found at that time really was Bhima's son Ghatotkacha?  Maybe yes.


 Friends, at that time the article in the newspaper Hindustan was as follows.  Recently, in the northern region of India, a giant human skeleton has been found.  Friends, which has been described in our various ancient religious texts and stories.  Friends, before this such a huge human skeleton was not found anywhere in the world.  Friends, at that time there was news that this discovery was done by an international research institute with the help of Indian security personnel.  Because that area comes under Indian security personnel, so that area was kept secret.







 By the way, friends, let me tell you for information that that desert area is known as "Empty Quarter" in the area where that skeleton was found.  Friends, it is a sandy area which is quite suitable for saving this type of fossil. Friends, in such an area, the hard part of any type of fossil such as bone can remain safe under the upper surface of the earth for thousands of years.  .

 Friends, it is believed that another giant human skeleton was found in that area.  But he had turned into stone. That is, friends, he will be older than this skeleton.  Friends, the search parties had also obtained an inscription at that time.  In which it was described that Lord Brahma had created this giant man who was not there before.  Friends, all those giant humans used to be very tall, wide and powerful, so powerful that they could uproot the trunk of a big tree by holding it in their arms from all sides.










 Friends, it is believed that these giant humans were incarnated to control the humans who used to fight amongst themselves at that time.  Friends, the description of a similar superhuman is also found in the Mahabharata, the name of this great man was Ghatotkacha.  He was the son of Bhima and Hidimba.  Friends, the powers that were given to these giant human beings, later turned against all the gods.  Being furious, Lord Shiva had killed all these giant human beings.  Due to which their existence from the earth had ceased.


 Friends, geologists believe that this skeleton is of some human.  Friends, let me tell you that the Indian government has kept the information about these giant skeletons secret.  And there is a ban on anyone's life in that area.









 Friends, in our various ancient scriptures, there is a description of the war between gods and humans and demons, so it is clear that there was existence of demons or giant human beings somewhere.  Therefore, after this discovery, scientific truth is also stamped.


 Friends, it is believed that the height of human beings was 21 hands in Satya Yuga.  If we look at it from a scientific point of view, it may be that there is some link between the very ancient man and the modern man, which has disappeared due to some reason.


 Friends, let me tell you for information that the scientists of western countries have discovered the remains of a human being called Neanderthal, which looks like human but their body was more powerful and bigger than modern humans and they were carnivorous.  And they used to clash with modern humans many times.  Friends, they were spread throughout Europe and Asia till 350,000 years ago.  Friends, scientists believe that the main reasons for their extinction are climate change and war with modern humans.







 Friends, if you see these pictures printed in the newspaper, you will find that the members of the search team standing next to this giant skeleton are looking very small.



 Friends, if there is any truth in the search, then it clearly shows that the descriptions of the great human beings found in the ancient books and scriptures of various Hindu and other religions are not mere imagination.

 Therefore, the Government of India should publish a detailed report of this discovery.  So that people can get a chance to know their ancient heritage. 


 Thanks guys that's all for today.




















Wednesday, August 3, 2022

एक यात्रा - अतिप्राचीन वाराह मंदिर एरन सागर मध्य प्रदेश भारतवर्षA Journey - Ancient Varaha Temple Eran Sagar Madhya Pradesh India

Ek yatra khajane ki khoje


  








  नमस्कार दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं एक ऐसी अतिप्राचीन मंदिर की यात्रा पर जो विशालकाय वराह की प्रतिमा के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं । दोस्तों भगवान विष्णु को समर्पित यह अद्भुत और अलौकिक प्राचीनतम मंदिर अपने विशिष्ट वास्तुशिल्प के कारण भी जाना जाता है।








 दोस्तों मध्य प्रदेश के सागर जिले में मौजूद हैं एरन  ।  दोस्तों आज वर्तमान समय में यहा का रास्ता ज्यादातर लोगों को पता नहीं है पर दोस्तों प्राचीन भारत का प्रत्येक प्रमुख रास्त यहीं से होकर गुजरता दोस्तों हम जैसे धर्म का इतिहास जानने में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह एक खास बात है कि एरन  में भगवान विष्णु को दो अवतारों - भगवान नरसिम्हा और पशु अवतार वाराह की मंदिर और विशालकाय मूर्तियां मौजूद है। 








 आइये दोस्तों अवलोकन करते हैं एरन में मौजूद भगवान विष्णु के मंदिरों के समूहों का ।


     दोस्तों जैसे ही आप  एरन पहुंचेंगे तो आप देखेंगे कि भगवान विष्णु के मंदिरों के समूहों के दाएं तरफ भगवान विष्णु के पशु अवतार वाराह की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है। दोस्तों  जो 13 फ़ीट ऊंची और 12 फ़ीट लंबी यह मूर्ति भारतवर्ष में वाराह की सबसे विशालकाय मूर्तियों में से एक है।
           
             दोस्तों क्या आप जानते हों विशाल और प्रचंड जैसे शब्द अनुमानतः इसी मूर्ति को देखकर गढ़े गए हो ऐसा अनुभव इसे प्रत्यक्ष रूप से देखने से मालूम होता है।






       दोस्तों इसकी ऐतिहासिकता को देखने पर पता चलता है कि गुप्त कालीन मूर्ति कला में वाराह की यह प्राचीन मूर्ति विशेष स्थान रखती है। 

     दोस्तों आप देखोगे कि वाराह की प्रतिमा के मुख में जिव्हा के उपर देवी मां सरस्वती विराजमान हैं और वहीं स्त्री रूप में देवी पृथ्वी वाराह की दाईं दाढ़ पकड़े हुए हैं। जो अद्भुत है और महाप्रलय उस कहानी की याद दिलाती है जिसमें भगवान विष्णु द्वारा  वाराह अवतार धारण कर अंतरिक्ष में मौजूद अथाह समुद्र से पृथ्वी को बाहर निकाल कर उसका पुनः उद्धार किया था। 








            दोस्तों आपको पता है इस अलौकिक प्राचीनतम दंतकथा के अंतर्गत भारतीय मूर्तिकला में अक्सर दो प्रकार की मूर्तियां बनती हैं। पहली प्रकार हैं  नृवाराह की मूर्ति जिसमें उनके दांतों पर गोल पृथ्वी धारित है।
                       और दूसरी प्रकार में पशु वाराह की यह प्रतिमा जिसमें स्त्री रूप धारण किए हुए भू-देवी  वाराह की दाढ़ पकड़े हुए हैं। साथ ही दोस्तों इस प्राचीन वाराह मूर्ति में बाएं तरफ एक विशाल नाग को उपर की तरफ उत्कीर्ण किया गया है और दोस्तों इस प्राचीन वाराह मूर्ति के पुरे शरीर पर कमंडल धारी ऋषि और देवताओं को प्रभावशाली रूप से उत्कीर्ण किया गया है।






            ऐतिहासिकता

 दोस्तों वाराह देवता की यह महाकाय प्रतिमा  भारतीय इतिहास में हूणों के काल का प्रतिनिधित्व करतीं हैं।

       दोस्तों माना जाता है कि गुप्त वंश के कमजोर पड़ते ही  हूणों ने मालवा क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया था। और उनका नेता  'तोरमण' इस क्षेत्र का राजा बन गया था।






              दोस्तों आप देखेंगे कि महाराज 'तोरमण' के राजत्वकाल का सूचनात्मक लेख इस प्राचीन वाराह की प्रतिमा अंकित है। दोस्तों इस लेख को सर्व प्रथम सन् 1838 में कैप्टन  टीएस . बर्ट ने खोजा और पढ़ा था।

     दोस्तों इस लेख को  महाराज तोरमण के अधीनस्थ शासक धन्यविष्णु ने उत्कीर्ण करवाया था। दोस्तों इस प्राचीन और ऐतिहासिक लेख में महाराज तोरमण के प्रथम राजयवर्ष का मात्र उल्लेख किया गया है। दोस्तों इसके अलावा हूणं वंश के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। 








      दोस्तों पुरा का पुरा लेख  अधीनस्थ शासक धन्यविष्णु और उनके पूर्वजों का ही  उल्लेख करता है  दोस्तों इनमें धन्यविष्णु के पूर्वज  मातृ विष्णु , इंद्र विष्णु , वरुण विष्णु ,  व हरिविष्णु की विशेषताओं को  इंगित किया गया है। साथ ही दोस्तों  अभिलेख में धन्यविष्णु द्वारा एरण में वाराह मंदिर बनाए जाने का भी उल्लेख किया गया है । दोस्तों मंदिर के बनाए जाने के तिथि के रूप में केवल फाल्गुन मास का 10 वा दिन ही अंकित है। वर्ष का उल्लेख नहीं किया गया है। दोस्तों अनुमानित है कि इस प्राचीन वाराह मंदिर का निर्माण 485 ईस्वी से 500 ईस्वी के मध्य हुआ होगा।

      धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।
  







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  English Translation
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 Hello friends, on today's journey, I am taking you on the journey of such an ancient temple which is world famous for the statue of giant Varaha.  Friends, this wonderful and supernatural oldest temple dedicated to Lord Vishnu is also known for its distinctive architecture.







 Friends are present in Sagar district of Madhya Pradesh.  Friends, today, most people do not know the way here, but friends, every major road of ancient India passes through here, friends, it is a special thing for those who are interested in knowing the history of religion like us, that Lord Vishnu is worshiped in Eran.  The temple and giant sculptures of two incarnations - Lord Narasimha and the animal avatar Varaha are present.






   
    Let's see friends, the groups of temples of Lord Vishnu present in Eran.



 Friends, as soon as you reach Eran, you will see that a giant statue of Lord Vishnu's animal avatar Varaha is installed on the right side of the groups of temples of Lord Vishnu.  Friends, this idol which is 13 feet high and 12 feet long is one of the largest statues of Varaha in India.



 Friends, do you know that words like Vishal and Prachanda are supposed to have been coined by looking at this idol, such an experience is known by seeing it directly.









 Friends, seeing its historicity, it is known that this ancient idol of Varaha holds a special place in the Gupta period sculpture.


 Friends, you will see that in the face of the statue of Varaha, Goddess Saraswati is seated on the top of the tongue and while in female form Goddess Prithvi is holding the right molar of Varaha.  Which is amazing and reminds of the story of Mahapralay, in which Lord Vishnu, incarnated as a Varaha avatar, took the earth out of the unfathomable sea present in space and saved it again.








   
   Friends, you know that under this supernatural ancient legend, two types of sculptures are often made in Indian sculpture.  The first type is the idol of Nrivarah in which the round earth is held on his teeth.

 And in the second type, this statue of the animal Varaha, in which the earth-goddess, in female form, is holding the molars of Varaha.  Also friends, in this ancient Varaha idol, a huge serpent has been engraved on the left side and friends, the kamandala sages and deities have been engraved effectively on the entire body of this ancient Varaha idol.








          historicity

  
     Friends, this giant statue of Varaha Devta represents the era of Huns in Indian history.


 Friends, it is believed that as soon as the Gupta dynasty weakened, the Huns had taken control of the Malwa region. And their leader, 'Toraman' had become the king of this region.








 Friends, you will see that the informational article of the reign of Maharaj 'Toraman' is inscribed in the statue of this ancient Varaha. Friends, this article was first published in 1838 by Captain TS. Burt had searched and read.


 Friends, this article was engraved by Dhanyavishnu, a subordinate ruler of Maharaj Toman. Friends, in this ancient and historical article, only the first royal year of Maharaj Toman has been mentioned. Apart from this, no information has been given about the Hunam dynasty.







 Friends Pura's entire article mentions only the subordinate ruler Dhanyavishnu and his ancestors. Friends, among them the characteristics of Dhanyavishnu's ancestors, Mother Vishnu, Indra Vishnu, Varun Vishnu, Om and Harivishnu have been pointed out. Along with this, there is also a mention of the construction of Varaha temple in Eran by Dhanyavishnu in the inscription. Friends, only the 10th day of Falgun month is marked as the date of construction of the temple. The year is not mentioned. Friends, it is estimated that this ancient Varaha temple must have been built between 485 AD to 500 AD. 









      Thanks guys that's all for today.











       
























































Wednesday, July 6, 2022

एक यात्रा - आदिनाथ मंदिर रणकपुर राजस्थान भारतवर्षA Visit - Adinath Temple Ranakpur Rajasthan Indiavarsh.

Ek yatra khajane ki khoje























 नमस्कार दोस्तों मैं पर्वतारोही महेंद्र कुमार आप सभी लोगों का अपने यात्रा ब्लॉग पर हार्दिक अभिनंदन करता हूं। दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं रणकपुर जहां मौजूद हैं अद्भुत अलौकिक आदिनाथ मंदिर जो अपने अद्भुत वास्तुशिल्प और अलौकिक नक्काशी के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं।








       रणकपुर आदिनाथ मंदिर 

           राजस्थान


             भारतवर्ष






   दोस्तों राजस्थान राज्य के पाली जिले में अरावली पर्वतमाला की घाटियों के मध्य स्थित रणकपुर में ऋषभदेव का चतुर्मुखी जैन मंदिर हैं  दोस्तों चारों ओर जंगलों से घिरे इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। 

       दोस्तों राजस्थान का रणकपुर जैन मंदिर जैन धर्म के के पांच तीर्थ स्थलों में से एक हैं । दोस्तों रणकपुर का जैन मंदिर खुबसूरत नक्काशी और अपनी प्राचीनता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं । दोस्तों इन मंदिरों का निर्माण 15 वीं शताब्दी में राणा कुम्भा के शासन काल में हुआ था माना जाता है। लेकिन दोस्तों यह मंदिर 15 वीं शताब्दी से कहीं ज्यादा प्राचीन हैं।






     आइये दोस्तों जानते हैं रणकपुर के आदिनाथ मंदिर के इतिहास को।

 दोस्तों इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया यह आज भी पहेली बना हुआ हैं क्योंकि दोस्तों इसकी  सही जानकारी मिल पाना आज भी संभव नहीं है क्योंकि इसकी वास्तुशिल्प ठीक उसी प्रकार का है जिस तरह का दो ढाई हजार वर्ष पहले का हुआ करता था।

   दोस्तों इस मंदिर का निर्माण का वर्णन चालुक्यो के इतिहास में भी दर्ज है। दोस्तों इनके इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि इस भव्य मंदिर का निर्माण चालुक्य वंश राजाओं ने करवाया था।







    लेकिन दोस्तों जानकारी हासिल करने पर पता चलता है कि उदयपुर वाले भी इस मंदिर पर अपना दावा ठोकते हैं और कहते हैं कि हमारे पूर्वजों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। और तो और दोस्तों वहीं जैन धर्म वालों का मानना है कि यह मंदिर हमने बनवाया है।
                  अतः दोस्तों इस मंदिर का सही इतिहास मिल पाना संभव नहीं है लेकिन दोस्तों पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने जितना इस मंदिर के संबंध में जानकारी हासिल किया है उसके आधार पर यह माना जाता है कि यह प्राचीन मंदिर कम से कम दो से ढाई हजार साल पुराना है और आज भी भव्यता से खड़ा हैं।







        दोस्तों जानकारी हासिल करने से पता चलता है कि सम्भवतः इस मंदिर का निर्माण मौर्य शासकों ने करवाया था। और उसके बाद आगे चलकर चालुक्य वंश के शासकों ने जीर्णोद्धार किया था।

         दोस्तों कालांतर में जैनों ने महाराणा कुम्भा से इस मंदिर को खरीदकर खुद भी इसे और भी भव्यता प्रदान की । और आज अपने उसी स्वरुप में विद्यमान हैं।

        दोस्तों ये सब इतिहास और प्राचीनता की बातें हैं जिसे छोड़ा जाएं , फिर भी जिसने भी इस मंदिर का निर्माण किया था , वे सभी महान और वास्तुशिल्प में निपुण रहें होंगे।








    दोस्तों हमे गर्व करना चाहिए कि क्योंकि हजारों साल पुरानी अद्भूत और अलौकिक विरासत आज हम भारतियों के पास मौजूद हैं जिस पर प्रत्येक भारतवासी गर्व करते हैं।

     धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।   








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        English Translat
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 Hello friends, I am a mountain climber, Mahendra Kumar, warmly greet all of you on my travel blog.  Friends, I am taking you on today's journey to Ranakpur where there is a wonderful supernatural Adinath temple which is world famous for its amazing architectural and supernatural carvings.








 Ranakpur Adinath Temple


 Rajasthan



 Bharatvarsh








 Friends, there is a Chaturmukhi Jain temple of Rishabhdev in Ranakpur, situated in the middle of the valleys of the Aravalli ranges in the Pali district of Rajasthan state.


 Friends, Ranakpur Jain Temple of Rajasthan is one of the five pilgrimage sites of Jainism.  Friends, the Jain temple of Ranakpur is famous all over the world for its beautiful carvings and its antiquity.  Friends, these temples are believed to have been built in the 15th century during the reign of Rana Kumbha.  But friends, this temple is more ancient than the 15th century.






      
  Come friends, let us know the history of Adinath temple of Ranakpur.


 Friends, who got this temple built, it remains a puzzle even today because it is not possible to get the correct information about it, because its architecture is exactly the same as it used to be two and a half thousand years ago.


 Friends, the description of the construction of this temple is also recorded in the history of Chalukyo.  Friends, it is recorded in the pages of their history that this grand temple was built by the Chalukya dynasty kings.







 But friends, on getting information, it is known that the people of Udaipur also stake their claim on this temple and say that our ancestors had built this temple.  Apart from this, the people of Jain religion believe that we have built this temple.

 So friends, it is not possible to get the exact history of this temple, but friends, archaeologists and historians have obtained information about this temple, on the basis of which it is believed that this ancient temple is at least two to two and a half thousand years old and  Still standing majestically today.







 Friends, getting information shows that this temple was probably built by the Maurya rulers.  And after that it was renovated later by the rulers of Chalukya dynasty.


 Friends, later on, the Jains themselves gave it even more grandeur by buying this temple from Maharana Kumbha.  And today it exists in its same form.







 Friends, these are all things of history and antiquity, which should be left out, yet whoever built this temple, they must have been great and expert in architecture.


 Friends, we should be proud that because thousands of years old wonderful and supernatural heritage is present with us Indians today, which every Indian is proud of.


 Thanks guys that's all for today.






















 Mountaineer Mahendra Kumar 🧗🧗

















 

     

Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...