Wednesday, August 3, 2022

एक यात्रा - अतिप्राचीन वाराह मंदिर एरन सागर मध्य प्रदेश भारतवर्षA Journey - Ancient Varaha Temple Eran Sagar Madhya Pradesh India

Ek yatra khajane ki khoje


  








  नमस्कार दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं एक ऐसी अतिप्राचीन मंदिर की यात्रा पर जो विशालकाय वराह की प्रतिमा के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं । दोस्तों भगवान विष्णु को समर्पित यह अद्भुत और अलौकिक प्राचीनतम मंदिर अपने विशिष्ट वास्तुशिल्प के कारण भी जाना जाता है।








 दोस्तों मध्य प्रदेश के सागर जिले में मौजूद हैं एरन  ।  दोस्तों आज वर्तमान समय में यहा का रास्ता ज्यादातर लोगों को पता नहीं है पर दोस्तों प्राचीन भारत का प्रत्येक प्रमुख रास्त यहीं से होकर गुजरता दोस्तों हम जैसे धर्म का इतिहास जानने में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह एक खास बात है कि एरन  में भगवान विष्णु को दो अवतारों - भगवान नरसिम्हा और पशु अवतार वाराह की मंदिर और विशालकाय मूर्तियां मौजूद है। 








 आइये दोस्तों अवलोकन करते हैं एरन में मौजूद भगवान विष्णु के मंदिरों के समूहों का ।


     दोस्तों जैसे ही आप  एरन पहुंचेंगे तो आप देखेंगे कि भगवान विष्णु के मंदिरों के समूहों के दाएं तरफ भगवान विष्णु के पशु अवतार वाराह की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है। दोस्तों  जो 13 फ़ीट ऊंची और 12 फ़ीट लंबी यह मूर्ति भारतवर्ष में वाराह की सबसे विशालकाय मूर्तियों में से एक है।
           
             दोस्तों क्या आप जानते हों विशाल और प्रचंड जैसे शब्द अनुमानतः इसी मूर्ति को देखकर गढ़े गए हो ऐसा अनुभव इसे प्रत्यक्ष रूप से देखने से मालूम होता है।






       दोस्तों इसकी ऐतिहासिकता को देखने पर पता चलता है कि गुप्त कालीन मूर्ति कला में वाराह की यह प्राचीन मूर्ति विशेष स्थान रखती है। 

     दोस्तों आप देखोगे कि वाराह की प्रतिमा के मुख में जिव्हा के उपर देवी मां सरस्वती विराजमान हैं और वहीं स्त्री रूप में देवी पृथ्वी वाराह की दाईं दाढ़ पकड़े हुए हैं। जो अद्भुत है और महाप्रलय उस कहानी की याद दिलाती है जिसमें भगवान विष्णु द्वारा  वाराह अवतार धारण कर अंतरिक्ष में मौजूद अथाह समुद्र से पृथ्वी को बाहर निकाल कर उसका पुनः उद्धार किया था। 








            दोस्तों आपको पता है इस अलौकिक प्राचीनतम दंतकथा के अंतर्गत भारतीय मूर्तिकला में अक्सर दो प्रकार की मूर्तियां बनती हैं। पहली प्रकार हैं  नृवाराह की मूर्ति जिसमें उनके दांतों पर गोल पृथ्वी धारित है।
                       और दूसरी प्रकार में पशु वाराह की यह प्रतिमा जिसमें स्त्री रूप धारण किए हुए भू-देवी  वाराह की दाढ़ पकड़े हुए हैं। साथ ही दोस्तों इस प्राचीन वाराह मूर्ति में बाएं तरफ एक विशाल नाग को उपर की तरफ उत्कीर्ण किया गया है और दोस्तों इस प्राचीन वाराह मूर्ति के पुरे शरीर पर कमंडल धारी ऋषि और देवताओं को प्रभावशाली रूप से उत्कीर्ण किया गया है।






            ऐतिहासिकता

 दोस्तों वाराह देवता की यह महाकाय प्रतिमा  भारतीय इतिहास में हूणों के काल का प्रतिनिधित्व करतीं हैं।

       दोस्तों माना जाता है कि गुप्त वंश के कमजोर पड़ते ही  हूणों ने मालवा क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया था। और उनका नेता  'तोरमण' इस क्षेत्र का राजा बन गया था।






              दोस्तों आप देखेंगे कि महाराज 'तोरमण' के राजत्वकाल का सूचनात्मक लेख इस प्राचीन वाराह की प्रतिमा अंकित है। दोस्तों इस लेख को सर्व प्रथम सन् 1838 में कैप्टन  टीएस . बर्ट ने खोजा और पढ़ा था।

     दोस्तों इस लेख को  महाराज तोरमण के अधीनस्थ शासक धन्यविष्णु ने उत्कीर्ण करवाया था। दोस्तों इस प्राचीन और ऐतिहासिक लेख में महाराज तोरमण के प्रथम राजयवर्ष का मात्र उल्लेख किया गया है। दोस्तों इसके अलावा हूणं वंश के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। 








      दोस्तों पुरा का पुरा लेख  अधीनस्थ शासक धन्यविष्णु और उनके पूर्वजों का ही  उल्लेख करता है  दोस्तों इनमें धन्यविष्णु के पूर्वज  मातृ विष्णु , इंद्र विष्णु , वरुण विष्णु ,  व हरिविष्णु की विशेषताओं को  इंगित किया गया है। साथ ही दोस्तों  अभिलेख में धन्यविष्णु द्वारा एरण में वाराह मंदिर बनाए जाने का भी उल्लेख किया गया है । दोस्तों मंदिर के बनाए जाने के तिथि के रूप में केवल फाल्गुन मास का 10 वा दिन ही अंकित है। वर्ष का उल्लेख नहीं किया गया है। दोस्तों अनुमानित है कि इस प्राचीन वाराह मंदिर का निर्माण 485 ईस्वी से 500 ईस्वी के मध्य हुआ होगा।

      धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।
  







 _________________________

  English Translation
 _______________________






 Hello friends, on today's journey, I am taking you on the journey of such an ancient temple which is world famous for the statue of giant Varaha.  Friends, this wonderful and supernatural oldest temple dedicated to Lord Vishnu is also known for its distinctive architecture.







 Friends are present in Sagar district of Madhya Pradesh.  Friends, today, most people do not know the way here, but friends, every major road of ancient India passes through here, friends, it is a special thing for those who are interested in knowing the history of religion like us, that Lord Vishnu is worshiped in Eran.  The temple and giant sculptures of two incarnations - Lord Narasimha and the animal avatar Varaha are present.






   
    Let's see friends, the groups of temples of Lord Vishnu present in Eran.



 Friends, as soon as you reach Eran, you will see that a giant statue of Lord Vishnu's animal avatar Varaha is installed on the right side of the groups of temples of Lord Vishnu.  Friends, this idol which is 13 feet high and 12 feet long is one of the largest statues of Varaha in India.



 Friends, do you know that words like Vishal and Prachanda are supposed to have been coined by looking at this idol, such an experience is known by seeing it directly.









 Friends, seeing its historicity, it is known that this ancient idol of Varaha holds a special place in the Gupta period sculpture.


 Friends, you will see that in the face of the statue of Varaha, Goddess Saraswati is seated on the top of the tongue and while in female form Goddess Prithvi is holding the right molar of Varaha.  Which is amazing and reminds of the story of Mahapralay, in which Lord Vishnu, incarnated as a Varaha avatar, took the earth out of the unfathomable sea present in space and saved it again.








   
   Friends, you know that under this supernatural ancient legend, two types of sculptures are often made in Indian sculpture.  The first type is the idol of Nrivarah in which the round earth is held on his teeth.

 And in the second type, this statue of the animal Varaha, in which the earth-goddess, in female form, is holding the molars of Varaha.  Also friends, in this ancient Varaha idol, a huge serpent has been engraved on the left side and friends, the kamandala sages and deities have been engraved effectively on the entire body of this ancient Varaha idol.








          historicity

  
     Friends, this giant statue of Varaha Devta represents the era of Huns in Indian history.


 Friends, it is believed that as soon as the Gupta dynasty weakened, the Huns had taken control of the Malwa region. And their leader, 'Toraman' had become the king of this region.








 Friends, you will see that the informational article of the reign of Maharaj 'Toraman' is inscribed in the statue of this ancient Varaha. Friends, this article was first published in 1838 by Captain TS. Burt had searched and read.


 Friends, this article was engraved by Dhanyavishnu, a subordinate ruler of Maharaj Toman. Friends, in this ancient and historical article, only the first royal year of Maharaj Toman has been mentioned. Apart from this, no information has been given about the Hunam dynasty.







 Friends Pura's entire article mentions only the subordinate ruler Dhanyavishnu and his ancestors. Friends, among them the characteristics of Dhanyavishnu's ancestors, Mother Vishnu, Indra Vishnu, Varun Vishnu, Om and Harivishnu have been pointed out. Along with this, there is also a mention of the construction of Varaha temple in Eran by Dhanyavishnu in the inscription. Friends, only the 10th day of Falgun month is marked as the date of construction of the temple. The year is not mentioned. Friends, it is estimated that this ancient Varaha temple must have been built between 485 AD to 500 AD. 









      Thanks guys that's all for today.











       
























































No comments:

Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...