Thursday, December 31, 2020

कौलेश्वरी पर्वत - चतरा हंटरगंज झारखंड भारत. Kauleshwari Mountains - Chatra Hunterganj Jharkhand India

Ek yatra khajane ki khoje 

                               

                   कौलेश्वरी पहाड़




नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लेपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं कौलेश्वरी पर्वत की यात्रा पर जो की चतरा जिले के हंटरगंज में मौजूद हैं जो झारखंड के प्रमुख पर्वतीय क्षेत्रों में से एक है और जो अनेकों रहस्यों को अपने में समेटे हुए हैं।
      दोस्तों कौलेश्वरी पर्वत चतरा जिले में हंटरगंज प्रखण्ड से 10 किमी. दूर पूरब में 1575 फीट ऊंचा कोल्हुआ या कौलेश्वरी पर्वत मौजूद हैं। जिस पर चढ़ने के लिए अब सीढ़ियों का निर्माण हो चुका है। प्राकृतिक छटाओं के बीच स्थित इस पर्वत पर अनेक हिंदू और जैन तीर्थ स्थलों के साथ ही अनुपम पर्यटन स्थल भी है।। साथ ही साथ दोस्तों आदिवासियों के देवता भी यहां पर विराजमान हैं। इस स्थान को कोल्हुआ , या कौलेश्वरी , कुलेश्वरी एवं कोटशिला के नाम से जाना जाता है । दोस्तों कोल या मुंडा आदिवासियों की आराधना देवी कौलेश्वरी हैं। और दोस्तों जैसा कि आपको पता होगा की दुर्गा सप्तशती में देवी भागवती को कुलेश्वरी कहां गया है । माना जाता है कि महाभारत काल के मत्स्य राज राजा विराट ने अपने ईष्ट या कुलदेवी कौलेश्वरी कि यहां प्राण प्रतिष्ठा की थी। दोस्तों महिषासुर मर्दिनी के रूप में मां कौलेश्वरी आराध्य देवी , दुर्गा है। 
               किवदंती है कि इस स्थल पर माता सती का कोख गिरा था और इस रूप में यहां एक सिद्ध पीठ है। इस आधार पर धारणा है कि संतान प्राप्ति की मनोकामना यहां पूरी होती है। मन्नत मांगने के बाद मनोकामना पूर्ण होने पर लोग यहां बकरे की बलि भी चढ़ाते हैं। दोस्तों सबसे बड़ी बात है कि यहां नेपाल से भी काफी लोग आते हैं।
               दोस्तों कॉल हुआ पर्वत महाकाव्य काल एवं पुराण काल से संबंधित प्रागैतिहासिक स्थल है। वनवास के समय श्री राम , माता सीता एवं लक्ष्मण का वास इसी अरण्य में होने की किवदंती है। साथ ही साथ महाभारत कालीन इतिहास भी यहां मौजूद है लोगों का मानना है कि अज्ञातवास काल में पांडवों की साधना स्थली भी इसे माना जाता है। अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के साथ उत्तरा का विवाह भी इसी स्थल पर होने की बात लोग मानते हैं।
                  जैन धर्मावलंबी 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ से भी इस स्थल का सम्बन्ध जोड़ते हैं ।जैन धर्म से संबंधित अनेक अवशेष यहां मौजूद हैं। दोस्तों 10 वी शताब्दी से यह स्थान तीर्थ के रूप में पूजित है।इसे मत्स्यराज विराट की राजधानी एवं जिला भी माना जाता है। 
  मां कौलेश्वरी की मंदिर-  इस प्राचीन मंदिर में महिषासुर मर्दिनी  , त्रिशूल धारणी , कुलेश्वरी देवी के काले पत्थर की चतुर्भुजी प्रतिमा प्रतिष्ठित है। अवधारणा है कि संपूर्ण कौलेश्वरी मंदिर प्रांगण में कौवा ,  सियार और सेवाल का अस्तित्व नहीं है। दोस्तों किवदंती है कि कोलासुर दैत्य का अत्याचार बढ़ गया था दैत्य का विनाश कर मानव को त्राण दिलाने के लिए मां भगवती का अवतरण "12 वर्ष की कुंवारी कन्या कौलेश्वरी के रूप में हुआ एवं कोला सुर का वध किया गया। 
 दोस्तों पूर्व में यहां बलि की प्रथा थी। वर्ष में दो बार बसंत पंचमी एवं रामनवमी मेले में यहां बलि दी जाती थी , जिससे मंदिर के सामने स्थित सरोवर का पानी गंदा हो जाता था, किंतु अब मंदिर में बलि के लिए लाए गए बकरों का , मंदिर में सिर्फ पूजन होता है ,एवं पहाड़ के नीचे के भाग में विभिन्न स्थानों पर ठहराव की जगह में बलि दी जाती है। दोस्तों पुराने दस्तावेजों द्वारा अधिकृत दंतार तथा सुग्गा ग्राम के साकल द्वीपीय ब्राह्मण बारी  -  बारी से इस मंदिर में प्रतिष्ठित देवी कौलेश्वरी की पूजा  अर्चना करते आ रहे हैं। वसंत पंचमी , दशहरा , रामनवमी आदि त्यौहारों के समय , मंदिर के आसपास चहल-पहल बढ़ जाती हैं।

               दोस्तों मंदिर के चबूतरे पर प्रतिदिन ब्रहामण बालकों को धर्म ग्रंथों का पाठ तथा मंत्रोच्चार का अभ्यास कराया जाता है । सामूहिक मंत्रोच्चार से पर्वत शिखर ऐसा मालूम पड़ता है जैसे उसने कैलाश का रूप धारण कर लिया हो और भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए ऋषि- मुनियों का मंत्र जाप चल रहा हों ।

दोस्तों माता कौलेश्वरी मंदिर का पाट प्रायः भादों से लेकर कृष्णपक्ष आश्विन तक बंद रहता है।

  प्राकृतिक झील-     क़ोलहुआ पर्वत  पर मां कौलेश्वरी के मुख्य मंदिर के सामने करीब 900 फ़ीट चौड़ी ,2000 फ़ीट लम्बी और 30 फीट गहरी प्राकृतिक झील है जिसे कुछ लोग तालाब भी कहते हैं  देखने में यह क्रेटर झील के समान लगती हैं। झील में स्थाई रूप से पानी रहता है । दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 1967 के भयंकर अकाल में भी इस झील में भरपुर पानी था। एवं देवी के प्रिय पुष्प लाल कमल इस झील में बहुतायत से पाए जाते हैं।
झील से पानी निकासी के लिए पूर्व से प्राकृतिक मार्ग बना हुआ है। एक दो बार झील को सुखाने का प्रयास सफाई के उद्देश्य से किया गया था लेकिन झील सुख नहीं पाई।

 सप्तकूप - कहते हैं कि पर्वत पर स्थित झील के भीतर भी सात कुएं  या स्रोत हैं । इसे सप्तकूप कहा जाता है। इन्हीं की वजह से शायद झील का पानी कभी सुख नहीं पाता।
 तालाब-  पहाड़ पर अलग एक छोटा तालाब है जिसमें उजले कमल खिलते हैं।
 भैरवनाथ मंदिर या पाश्र्वनाथ मंदिर -  तालाब के पश्चिमी किनारे पर एक विशाल गुफा में पद्मासन तथा काले पत्थरों से निर्मित  9 सर्प- छत्रों से युक्त प्रतिमा है। इसे हिन्दू भैरवनाथ की मूर्ति मानते हैं , किन्तु जैनी इसे 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति मानते हैं । दोनों ही धर्मावलंबी अपनी आस्था के मुताबिक इस मूर्ति का पूजन करते हैं बगल में एक और गुफा है जिसमें तीन मूर्तियां अवस्थित थी।

 द्वारपाल अथवा पार्श्वनथ की प्रतिमा-  हट वरिया ग्राम की ओर से पर्वत पर चढ़ते समय मार्ग में जिस प्रतिमा के दर्शन होते हैं वह हिंदुओं के लिए द्वारपाल तथा जैनियों के लिए पाश्र्वनाथ की प्रतिमा है। 
 पंच पांडव या पंच तीर्थंकर-  मां कौलेश्वरी मंदिर के सामने एक बहुत बड़े चट्टान पर पांच आदम कद मूर्तियां उत्कीर्ण है हिंदू इन्हें पांचों पांडवों की मूर्तियां मानते हैं किंतु जैनी इसे पंच तीर्थंकर की मूर्तियां मानते हैं   जिसमें उनके अनुसार जैन तीर्थ कर अभिनंदन नाथ जी , मन्मथनाथजी , नेमिनाथ जी , महावीर स्वामी जी तथा पाश्र्वनाथ  जी की प्रतिमाएं हैं।
 आकाश - लोचन-   मां कौलेश्वरी मंदिर के उत्तर पूर्व कौण में आकाश लोचन नामक एक स्थल है। इस स्थान से आकाश को देखने पर सुखद अनुभूति होती है शायद इसलिए इसे अकाश लोचन कहा गया है।
 विष्णुपग या पाश्र्वनाथ पग चिन्ह-  आकाश-लोचन की एक शिला पर दो चरण चिन्ह उभरे नजर आते हैं । हिन्दू धर्मावलंबियों का मानना है कि इनमें से एक चरण चिन्ह मौलिक है और वह भगवान विष्णु के चरण चिन्ह है उनका कहना है कि एक चरण चिन्ह गया के विष्णु पद मंदिर में तथा दूसरा इस स्थल पर अंकित है। और शिला पर दूसरा चरण चिन्ह किसी शिल्पी द्वारा बाद में बना दिया गया है जैनी इन्हें पाश्र्वनाथ जी के पग-चिन्ह बताते हैं।

 सप्त ऋषि गुफा-  कौलेश्वरी मंदिर से कुछ ही दूरी पर सप्त ऋषि गुफा के नाम से पुकारी जाने वाली एक दूसरे से जुड़े सात गुफाएं हैं। इसमें बने एक मूर्ति के बारे में भी हिंदू और जैन धर्मावलंबियों के अलग-अलग दावे हैं।
 वाण गंगा-  इस पर्वत पर वाण गंगा नाम से भी एक स्थल है जहां से एक क्षीण जलधारा वर्ष भर निकलती रहती है।
 
 भीम भार-   भीम भार के बारेे में  एकता दंत कथा है कि अज्ञात वास के समय पांडवों के 

आवास  निर्माण के लिए भीभ जब भार या कांवर से पत्थर ढोकर ला रहे थे  , तो भार टूट जाने से दो बड़े पत्थर उल्लिखित स्थल पर गिरकर स्थिर हो गए थे । यह स्थल लेढो ग्राम की ओर से पहाड़ पर चढ़ने के मार्ग में है।

 नकटी भवानी-   यह स्थल भीम भार के निकट हैं जिसके बारे में अलग-अलग दंतकथाएं प्रचलित है।

 अर्जुन बाण -   इस स्थल पर विशालकाय एक चट्टान के छिद्रों से हर समय पानी झरता रहता है  । दंतकथा है कि अज्ञात वास के समय इसी स्थल पर अर्जुन बाणो के संधान का अभ्यास करते थे , जिससे अनेक चट्टानों में छिद्र हो गए। ऐसे ही छिद्रों से पानी झरता रहता है।
 
मंड़वा- मड़ई-  एक स्थल को मड़वा- मड़ई के नाम से पुकारा जाता है । इसके बारे में कई दंत कथाएं हैं इन दंत कथाओं में देवी कौलेश्वरी के विवाह का भी उल्लेख है।
                    धन्यवाद दोस्तों
                माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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                          English translate
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   Hello friends, I heartily congratulate all of you mountain leopard Mahendra, Friends, today I am taking you on a journey to Mount Kauleshwari which is present in Hunterganj in Chatra district, which is one of the major hill areas of Jharkhand and which has many mysteries.  Are included in themselves.

 Friends Kauleshwari mountain 10 km from Hunterganj block in Chatra district.  In the far east there are 1575 feet high Kolhua or Kauleshwari mountains.  The stairs have been built to climb on it.  This mountain, situated amidst natural terraces, has numerous Hindu and Jain pilgrimage sites as well as unique tourist spots.  At the same time, the God of friends and tribals is also seated here.  This place is known as Kolhua, or Kauleshwari, Kuleshwari and Kotshila.  Friends are the worship goddess Kauleshwari of Kol or Munda tribals.  And friends, as you would know, where Goddess Bhagwati has gone to Kuleshwari in Durga Saptashati.  It is believed that the Matsya Raj king Virat of the Mahabharata period had the life of his Ishta or Kuladevi Kauleshwari.  Mother Kauleshwari as friends Mahishasura Mardini is the adorable goddess, Durga.

 Legend has it that the womb of Mata Sati fell on this site and in this form there is a proven back.  On this basis, the belief that the desire to have children is fulfilled here.  After offering a vow, people offer sacrifices of goats here as well.  Friends, the biggest thing is that a lot of people also come here from Nepal.

 Friends Call Hua Mountain is a prehistoric site related to the epic period and the Puranas.  At the time of exile, the residence of Shri Rama, Mother Sita and Lakshmana is the legend of being in this Aranya.  As well as the history of Mahabharata, it is also present here that people believe that it is also considered as a place of worship of the Pandavas during the period of unknown life.  People believe that Uttara's marriage with Arjun's son Abhimanyu is also at this place.
 Jain Dharmavlambi also connects this place with the 23rd Tirthankara Parshwanath. Many relics related to Jainism are present here.  Friends, this place has been worshiped as a pilgrimage since the 10th century. It is also considered as the capital and district of Matsya Raja Virat.

 Temple of Maa Kouleshwari- This ancient temple is revered with Mahishasura Mardini, Trident holding, black stone quadrangular statue of Kuleshwari Devi.  The concept is that crow, jackal and seval do not exist in the entire Kauleshwari temple complex.  Friends legend has it that the tyranny of the Kolasur monster had increased, to destroy the monster and to provide human life, the incarnation of Maa Bhagwati as a 12-year-old virgin girl Kauleshwari and Kola Sur were killed.

 Friends, in the past, sacrifice was the practice here.  Sacrificed here twice a year at Basant Panchami and Ramnavami fair, the water of the lake situated in front of the temple was dirty, but now the goats brought for sacrifice in the temple are worshiped only in the temple, and the mountains  Sacrifices are made at various places in the lower part of the place.  Friends, the Dantars authorized by old documents and the Sakal island Brahmins of Sugga village have been worshiping the iconic Goddess Kauleshwari in this temple from time to time.  During the festivals like Vasant Panchami, Dussehra, Ramnavami etc., the movement around the temple increases.

 Everyday Brahmin children are taught religious texts and chants of mantras on the platform of Friends temple.  From the collective chant, the mountain peak looks as if it has taken the form of Kailash and is chanting the mantras of sages and sages to please Lord Bholenath and Mata Parvati.


 Friends, the roof of the Mata Kauleshwari temple is usually closed from Bhadan to Krishnapaksha Ashwin.

 Natural Lake - In front of the main temple of Maa Kaulleshwari on Mount Kollhua, there is a 900 feet wide, 2000 feet long and 30 feet deep natural lake, which some people call as a pond, it looks like a crater lake.  The lake has permanent water.  Friends, you will be surprised to know that even in the severe famine of 1967, this lake was full of water.  And the red flower lotus, beloved of the Goddess, is found abundantly in this lake.

 There is a natural route from the east to drain the lake.  An attempt was made to dry the lake twice, for the purpose of cleaning but the lake did not get pleasure.


 Saptakup - It is said that there are seven wells or sources within the lake situated on the mountain.  It is called Saptakup.  Perhaps because of these, the water of the lake never gets happiness.

 Pond- There is a small pond isolated on the mountain in which bright lotus blooms.

 Bhairavnath Temple or Parshvanath Temple - In a huge cave on the western side of the pond, there is a statue of Padmasana and nine snake-chhatras made of black stones.  Hindus consider it as the idol of Bhairavnath, but Jaini considers it as the idol of the 23rd Tirthankara Parshvanath.  Both religious people worship this idol according to their faith. There is another cave next to which three idols were located.

 Statue of Dwarapal or Parshvanatha - The idol of Darshapal, which is seen in the path while climbing the mountain from the village of Hat Varia, is the gatekeeper for Hindus and the idol of Parshvanath for Jains.

 Panch Pandavas or Panch Tirthankaras - Five Adam statues are engraved on a very large rock in front of the Maa Kauleshwari temple.Hindus consider them as idols of the five Pandavas, but Jains consider it as the idols of Panch Tirthankara, according to which Jain pilgrimage tax Abhinandan Nathji, Manmathnathji  , Neminath ji, Mahavir Swami ji and Parshvanath ji.
 Akash - Lochan - In the north east Kaun of the Maa Kaulleshwari temple, there is a place called Akash Lochan.  There is a pleasant feeling on seeing the sky from this place, probably because it has been called Akash Lochan.
 Vishnupag or Parshvanath Pag Sign - Two stages of the sky appear on a rock of sky-locality.  Hindu religious people believe that one of these footprints is original and is the foot sign of Lord Vishnu.He says that one step sign is inscribed in Vishnu Pad Mandir of Gaya and the other at this place.  And the second stage sign on the rock has been made later by some craftsman, Jaini calls them the footprints of Parsvanath ji.

 Sapta Rishi Cave- There are seven interconnected caves known as Sapta Rishi Cave just a short distance from the Kauleshwari Temple.  Hindu and Jain religions also have different claims about an idol built in it.

 Vana Ganga - There is a place on this mountain also called Vana Ganga, from where a dilapidated stream flows throughout the year.


 Bhima Bhar- Ekta is a legend about Bhima Bhar that during the time of unknown dwellings of Pandavas


 When the bhebas were carrying boulders with the load or Kanwar for the construction of the house, two big stones fell on the mentioned site and became stable after the load broke.  This place is on the way to climb the mountain from the side of Laddho village.


 Nakti Bhavani - This place is near Bhima Bhar, about which different legends are popular.


 Arjun Baan - At this site, water flows all the time from the holes of a huge rock.  Legend has it that at the same time, Arjuna used to practice the cultivation of arrows at the same place during the unknown habitat, which led to holes in many rocks.  Water keeps flowing through such holes.



 Mandwa - Madai - A site is called Madwa - Madai.  There are many legends about this.These legends also mention the marriage of Goddess Kauleshwari.



 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra

            



Tuesday, December 29, 2020

गुवारीडीह : भागलपुर ; इंटर पास ग्रामीण की सूझबूझ से सामने आई समृद्ध विरासत मोड़ी जाएगी कोसी नदी की धारा ताम्र पाषाण काल तक के पुरावशेष मौजूद Guwaridih: Bhagalpur; The rich heritage that has come to the knowledge of the Inter Pass villagers will be twisted up.

Ek yatra khajane ki khoje

                               

               अविनाश जी के मुर्गी
 फार्म में जमा किए हुए पुरातात्विक वस्तुएं
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 Avinash ji's cock

 Archaeological objects deposited in the farm

  गुवारीडीह भागलपुर: इंटर पास अविनाश जी की सूझबूझ से सामने आई समृद्ध विरासत , मोड़ी जाएगी कोसी की धारा , ताम्र पाषाण काल तक के पुरावशेष मौजूद भागलपुर के धरती के अंदर
              नमस्कार दोस्तों मैं बहुत उत्साहित था यह जानकर कि इंटर पास ग्रामीण अविनाश जी की एक छोटी सी प्रयास ने उस समय सभी का ध्यान खींचा ,जब रविवार को स्वयं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके क्षेत्र गुवारीडीह पहुंचे । पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार यह क्षेत्र  पुरातत्व के दृष्टिकोण से से अहम हो सकता हैं इस क्षेत्र में  ताम्र पाषाण काल तक के पुरावशेष मौजूद है। पुरातात्विक क्षेत्र का निरीक्षण करने के उपरांत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने विरासत को सहेजने का निर्देश दिया। इसके लिए कोसी की धारा को  मोड़ने का भी निर्देश उन्होंने दिया। 
दोस्तों भागलपुर  , बिहार स्थित इस क्षेत्र में कोसी नदी के किनारे कुछ टीले है नदी में कटाव के चलते इनसे ऐसी अनेक प्राचीन वस्तुएं आती रही है , जो हजारों वर्ष पुरानी सभ्यताओं की निशानियां हैं । किंतु ग्रामीणजन यह बात समझ नहीं सके और इनकी अनदेखी करते रहे।

 इधर गांव के ही एक युवक अविनाश जी , जिनकी इन वस्तुओं के प्रति बचपन से ही रुचि थी। वे इन प्राचीन वस्तुओं को देखकर अचरज करते हैं और इन वस्तुओं की पहेली को सुलझाने का जतन करते थे।
   अतः अविनाश जी इन प्राचीन अवशेषों को एकत्र करते गए और सुरक्षित रखती गए । और अंत में शासन तक इसकी जानकारी पहुंचाई।
                             दोस्तों इंटर तक पढ़ाई करने वाले ग्राम जयरामपुर निवासी अविनाश जी ने बताया कि गुबारीडीह के समीप ही उनका खेत है। और वहां भी प्राचीन टीले हैं। एवं नदी के कटाव के कारण यहां ऐसी अनेक प्राचीन वस्तुएं बिखरी हुई थी। अतः जब मैं समझदार हुआ तो इनके बारे में जानने का प्रयास किया और इन्हें समझने के लिए मोबाइल पर यानी यूट्यूब पर वीडियो देखने लगा जिस कारण से मुझे एहसास हुआ की वस्तुएं बहुत ही प्राचीन होगी।
और दोस्तों वह बताते हैं कि जब जब यह समझ में आने लगा कि यह तो पूरा अवशेष हैं तो इन्हें लेकर सहज हो गए हैं और एकत्र कर सहेजने लगे प्राचीन वस्तुओं को।  और अविनाश जी बताते हैं बचपन की बातें जब उन्हें याद आती है तो वह कहते हैं कि साथियों के साथ यहां खेलते थे तो यह प्राचीन वस्तुएं मिल जाती थी लेकिन हम इन्हें पानी में फेंक दिया करते थे। तब इनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। और जब बड़े हुए तो उत्सुकता जागी और इनके बारे में जानने-समझने का प्रयास किया।  
                   दोस्तों अविनाश जी के अनुसार , तब अपने मुर्ग
 फार्म में इन्हें सहेजकर रखने लगा । फिर पता चला कि सरकार ऐसे स्थलों को संरक्षित करती हैं ,तब सरकार तक इसकी जानकारी पहुंचाने का प्रयास किया। इसी दरम्यान मैंने अनेक पुरातात्विक अवशेष जमा कर लिया था। 
               इसी दौरान पूर्व स्थानीय विधायक ई. शैलेन्द्र गांव आए तो उन्हें भी इसकी जानकारी दी। और विधायक जी के पहल से ही पुरातत्व विभाग के लोगों ने आकर पड़ताल की तो सामने आया कि यह महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है।

      आगे अविनाश जी बताते हैं कि फिर मुझे जानकारी मिली कि स्वयं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी जल्द ही यहा आने वाले हैं।।तब मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा  । अतः मुख्यमंत्री जी ने कोशी नदी की धारा को मोड़ने और इन टीलों की खुदाई कर प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करने का निर्देश दिया , जो मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता की बात है। और लगा मानो मेरी मेहनत सफल हो गईं।
                     दोस्तों अविनाश जी के पिता उपेंद्र चौधरी भी किसान हैं। चार भाइयों चंदन , बबलू  ,प्रीतम और अविनाश जी में अविनाश सबसे छोटे हैं।अविनाश जी के अनुसार टीला पहले 25 एकड़ से अधिक में फैला हुआ था। परंतु कोसी नदी के कटाव के कारण अब यह महज 5 एकड़ ही बचा है। टीले की विशेषता यह है कि कोसी नदी जब रौद्र रूप में भी रहती है तब भी वह नहीं डूबता है। दोस्तों अविनाश जी ने बताया कि कोसी नदी के दूसरे किनारे पर भी पुरातात्विक महत्व के टीले मौजूद हैं। लेकिन वहां अब अपराधियों का बोलबाला है।अपराधियों के भय से लोग वहां अब खेती करने भी नहीं जाते हैं। अतः सरकार से मेरी विनम्र निवेदन है कि इन टीलों को संरक्षित किया जाना चाहिए।

     गुवारीडीह में मिले पुरातात्विक अवशेषों में काले - लाल मृदभांड ,
तेरा कोटा निर्मित वस्तुएं , तांबे से निर्मित वस्तुएं , आभूषण , लौह धातु मल, रत्न जड़ित आभूषण , कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाले औजार , तांबे के सिक्के , कुषाण कालीन ईटे , मिट्टी के बांट इत्यादि अनेक प्राचीन वस्तुएं मिली है। अतः इनसे पता चलता है कि यह पुरातात्विक क्षेत्र ताम्र पाषाण युग से लेकर 2500 तक के पुरावशेषों को को अपने धरती के अंदर समेटे हुए है।
                धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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                         English translate
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 Guvaridih Bhagalpur: Inter pass Avinash ji's rich heritage revealed by wisdom, modi jogi kosi stream, antiquity till copper stone age present inside Bhagalpur earth

 Hello friends I was very excited to know that a small effort of the Inter Pass Rural Avinash ji caught everyone's attention when on Sunday Bihar Chief Minister Nitish Kumar himself reached his area Guwaridih.  According to archeology experts, this area can be important from the point of view of archeology, there is antiquity up to the copper stone period in this area.  After inspecting the archaeological area, Chief Minister Nitish Kumar instructed to save the heritage.  For this, he also instructed to divert the Kosi stream.

 Friends, in this area located in Bhagalpur, Bihar, there are some mounds on the banks of Kosi river, due to erosion in the river, many such antiques have come from them, which are the traces of civilizations thousands of years old.  But the villagers could not understand this and kept ignoring them.

 Here, a young man from the village Avinash ji, who was interested in these things since childhood.  He was surprised by seeing these ancient objects and used to solve the puzzle of these objects.

 Therefore, Avinash ji kept collecting these ancient relics and kept them safe.  And finally brought this information to the government.

 Avinash Ji, a resident of village Jairampur, who studied up to his friends, said that his farm is near Gubaridih.  And there are ancient mounds too.  And due to the erosion of the river, many such antiques were scattered here.  Therefore, when I became intelligent, I tried to learn about them and to understand them, I started watching videos on mobile i.e. YouTube, due to which I realized that things would be very ancient.

 And friends tell that when they started to understand that these are complete relics then they have become comfortable with them and started collecting and saving the antiques.  And Avinash ji says that when he remembers childhood things, he says that he used to get these antiques while playing here with his companions, but we used to throw them in the water.  There was no information about them then.  And when they grew up, they got curious and tried to understand about them.

 According to friends Avinash ji, then his cock

 Started saving them in the form.  Then came to know that the government patronizes such sites, then tried to convey this information to the government.  During this period, I had collected many archaeological remains.

 Meanwhile, former local MLA E. Shailendra came to the village and informed him about it.  And it was only at the initiative of the MLA that the people of the archeology department came and investigated that it is an important archaeological site.

 Further Avinash ji says that then I got information that Bihar Chief Minister Nitish Kumar himself is going to come here soon. Then there was no place for my happiness.  Therefore, the Chief Minister instructed to bend the stream of Koshi river and preserve these heritage sites by digging these mounds, which is a matter of great pleasure for me.  And felt as if my efforts were successful.

 Friends of Avinash ji's father Upendra Chaudhary are also farmers.  Avinash is the youngest among four brothers Chandan, Bablu, Pritam and Avinash ji. According to Avinash ji the mound was earlier spread over 25 acres.  But due to erosion of Kosi river, now it has left only 5 acres.  The feature of the mound is that even when the Kosi river remains in the form of a raudra, it does not sink.  Friends Avinash ji told that dunes of archaeological importance exist on the other bank of Kosi river.  But criminals are now there. People do not even go there to do farming due to fear of offenses.  So my humble request to the government is that these mounds should be protected.
 Archaeological remains found in Guvaridih include black-red pottery,

 Tera Kota manufactured items, copper made items, jewelery, iron metal stools, jewelery studded with gems, tools used in agricultural work, copper coins, Kushan carpet bricks, clay pots etc. have been found.  Therefore, it shows that this archaeological area has contained antiquities from the Copper Stone Age up to 2500 within its soil.



 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra
              
      

                        

Sunday, December 27, 2020

स्वर्ण रेखा नदी जो सदियों से उगल रही है सोना में राफ्टिंग का मजा लेते हुए , Swarna Rekha river which has been spewing for centuries while enjoying rafting in Sona,



स्वर्ण रेखा नदी में राफ्टिंग





Ek yatra khajane ki khoje 
    
      Rafting trip

नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं राफ्टिंग के लिए स्वर्ण रेखा नदी में जो सदियों से सोना उगल रहीं हैं।

दोस्तों आप लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि स्वर्ण रेखा नदी सदियों से सोना उगल रहीं हैं । जीवन दायिनी स्वर्ण रेखा नदी यहां के लोगों के लिए वरदान से कम नहीं है ।यह नदी सदियों से यहां के लोगों की प्यास बुझा रही हैं । और साथ ही साथ यहां के लोग नदी सोना भी निकालते हैं जो कि कुछ लोगों का मुख्य जीवकोपार्जन का साधन भी है । 

Hello friends I heartily greet all of you mountain leopard Mahendra friends, today I am taking you for rafting in the Swarna Rekha river which has been spewing gold for centuries.


 Friends, you will be surprised to know that Swarna Rekha river has been spewing gold for centuries.  The Golden Line of life is nothing less than a boon for the people here. This river has been quenching the thirst of its people for centuries.  And at the same time people here also extract the river gold, which is also the main means of earning some people.




Wednesday, December 23, 2020

पुरावशेषों के संरक्षण को मोड़ी जाएगी कोसी नदी की धारा - गुवारीडीह भागलपुर बिहार. Conservation of antiquities will be diverted to the Kosi river stream - Guwaridih Bhagalpur Bihar

Ek yatra khajane ki khoje

            

          भागलपुर के गुवारीडीह में मिलें पुरावशेषों का अवलोकन करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व अन्य

 Bihar Chief Minister Nitish Kumar and others, while observing the antiquities, meet in Guwaridih, Bhagalpur




  भागलपुर के गुवारीडीह में मिलें पुरावशेषों के संरक्षण के लिए मोड़ी जाएगी कोसी नदी की धारा
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  दोस्तों माना जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देशन पर भागलपुर के गुवारीडीह में मिलें पुरावशेषों के संरक्षण के लिए कोसी नदी की धारा मोड़ी जाएगी। और आस पास के गांवों और ऐतिहासिक टीलों को इसके लिए संरक्षित करने के लिए योजना भी तैयार की जाएगी। मुख्यमंत्री बिहपुर प्रखंड के गुवारीडीह में टीले और आसपास मिले पौराणिक - ऐतिहासिक अवशेषों का अवलोकन करने के लिए पहुंचे थे। 
         माना जा रहा है कि गुवारीडीह में मिले पुरावशेष  ढाई हजार साल पुराना है। ऐसे में इनकी जांच की जानी बहुत जरूरी है। पुरातत्वविद ओं का मानना है कि यह और भी पुराने हो सकते हैं।दोस्तों पुरातत्व का मानना है कि ये अवशेष ताम्र पाषाण काल से लेकर गुप्तोत्तर काल तक के हो सकते हैं।
     दोस्तों नदी में कटाव के बाद यह अवशेष व टीले बाहर निकले हैं अन्यथा यह इतिहास के गर्भ में ही दवे रहते हैं। स्थानीय विधायक ई. शैलेन्द्र ने संज्ञान लेकर इसकी जानकारी दी । ग्रामीण अविनाश कुमार भी इस कार्य के लिए प्रशंसा के पात्र हैं  ।
 
  दोस्तों आस पास होगी खुदाई : मुख्यमंत्री ने कहा कि इस  स््थ   
स्थल की पुरी जानकारी के लिए आसपास खुदाई की जाएगी। अभी प्रारंभिक जानकारी के आधार पर वे यहां पहुंचे हैं । अवशेषों की जांच के लिए एक्सर्पट्स की टीम आई हैं । तिलकामांझी विश्वविद्यालय और पुरातत्व के अन्य जानकारों से भी इसके बारे में जानकारी ली जा रही हैं।
                  धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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   The mines at Guwaridih in Bhagalpur will be diverted for the conservation of antiquities

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 Friends, it is believed that under the direction of Bihar Chief Minister Nitish Kumar, a stream of Kosi river will be diverted for the conservation of antiquities at Guwaridih in Bhagalpur.  And plans will also be prepared to preserve the surrounding villages and historical mounds for it.  The Chief Minister arrived in Guwaridih of Bihpur block to observe the mythological and historical remains found in and around the mound.

 It is believed that the antiquity found in Guvaridih is two and a half thousand years old.  In such a situation, it is very important to investigate them.  Archaeologists believe that it may be even older. Friends archaeologists believe that these relics may be from the Paleolithic to the post-Gupta period.

 After the erosion in the river friends, these remains and mounds have come out otherwise they remain in the womb of history.  Local MLA E. Shailendra informed about this by taking cognizance.  Rural Avinash Kumar also deserves praise for this work.


 Friends will be digging around: Chief Minister said that this situation

 The site will be excavated for complete details.  They have just arrived here based on preliminary information.  Experts have come to investigate the remains.  Information is also being sought from Tilakamanjhi University and other archaeologists.

 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra

Tuesday, December 22, 2020

कालिंजर - पन्ना घाटी में रेडियो टैग लगाकर छोड़े गए 25 गिद्ध -संरक्षण में मिलेगी मदद-भारतीय वन्यजीव संस्थान के सहयोग से शुरू किया मिशन, लगातार की जा सकेगी निगरानी. Kalinjar - 25 vultures left by radio tag in Panna Valley - will help in conservation - Mission launched in collaboration with Wildlife Institute of India, can be monitored continuously

Ek yatra khajane ki khoje

                            
पन्ना टाइगर रिजर्व में गिद्धों की रेडियो टैगिंग करते भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून  के विशेषज्ञ।
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Expert of Wildlife Institute of India Dehradun radio-tagging vultures in Panna Tiger Reserve.

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 कालिंजर - पन्ना घाटी में रेडियो टैग लगाकर छोड़े गए 25 गिद्ध
   संरक्षण में मिलेगी मदद: भारतीय वन्यजीव संस्थान के सहयोग से शुरू किया गया मिशन , लगातार की जा सकेगी निगरानी ।
       विलुप्त प्राय गिद्धों के संरक्षण और सतत  निगरानी  के लिए अब रेडियो टैगिंग कीी प्रक्रिया शुरूू की गई है। दोस्तों इस अनूठे और अहम प्रयोग का मकसद पर्यावरण के इन सफाई कर्मियोंं के रिहायशी , प्रवास के मार्ग एवंं पन्ना लैंडस्केप में मौजूदगी की सटीक सूचना , उपस्थिति    आदी की जानकारी   जुुटाना है । पन्ना टाइगर रिजर्व ने इनके संरक्षण और संख्या  वृद्धि  केे लि केंद्र सरकार की इजाजत केेे बाद भारतीय वन्य  जीव संस्थान  के सहयोग से पहलेेे चरण में 25  गिद्धो को  रेडियो टैगिंग कर जीपीएस टैैग से लैस कर छोड़ हैं। अब इनकी लोकेेशन आसानी से पता चलेगी और सुरक्षा भी  की जा सकेगी।
   दोस्तों जैसा कि आपको पता होगा की बांदा जिले की सीमा से सटे मध्यपदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व ना सिर्फ बाघो , बल्कि गिद्धों के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है । बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा पन्ना  व करतल क्षेत्र बागी 2 की बहुतायत है। पर्यावरण की सफाई कर्मी कहलाने वाले गिद्धों की यहां 7 प्रजातियां पाई जाती है। एवं 4 प्रजातियां पन्ना टाइगर रिजर्व की है। शेष 3 प्रजातियां प्रवासी है। इनकी संख्या करीब 600 होने की अनुमान है। लेकिन संख्या में तेजी से कमी को देखते हुए संरक्षण के लिए प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं। इसी क्रम में पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने गिद्धों की रेडियो टैगिंग के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान , देहरादून की मदद ली। विशेषज्ञ  डॉक्टर के रमेश व  सहायक विशेषज्ञ डॉ सुप्रेतम  की टीम ने 15 दिन तक गिद्धों को पकड़ कर ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम से लैस किया। दोस्तों पहले चरण में रेडियो टैगिंग पूरी कर ली गई है। व आगे दुसरे गिद्धो को भी टैगिंग की जायेगी। 
 
         यह है रेडियो टैगिंग --  डब्ल्यूआइआइ के विशेषज्ञ दक्षिण अफ्रीका और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी भारत के विधि के तहत घास के मैदान में 15 वर्ग मीटर आकार का पिंजरा बनाया गया है। कैमरा नुमा पिंजरे में ताजे मांस के टुकड़े डालते हैं जिन्हें खाने के लिए  गिद्ध पिंजरे के भीतर आ जाते हैं , लेकिन बाहर नहीं निकल पाते। इसी दौरान पिंजरे में कैद गिद्ध को रेडियो टैगिंग की जाती है । इसमें गिद्धों के सिर के पास मोबाइल चिप की तरह छोटा जीपीएस उपकरण फिट कर दिया जाता है।फिर 7 दिनों बाद उड़ान भरने के लिए गिद्धों को खुला छोड़ दिया जाता है।
 
 क्या होगा फायदा --   १. इसके जरिए इनकी लोकेशन पता चलती रहेगी कि वह कहां कहां जा रही है और अपना आवास क्षेत्र बना रही है।
२. एवं सबसे ज्यादा कौन सी जगह उन्हें पसंद आ रही है इसका सहज आकलन होगा।
३. दोस्तों भविष्य में उन स्थानों को ही उनके रहने के लिए विकसित किया जाएगा ताकि वे आसानी से अपना प्रजनन उन्हीं क्षेत्रों में कर सके और अपनी जनसंख्या वृद्धि कर पाएंगे।
 यह 7 प्रजातियां पाई जाती है इन क्षेत्रों में - १.  स्थानीय -
१. बिल्ड

२. किंग वल्चर
३. लांग विल्ड वल्चर
४. वाइट रंप 
५. इजिप्शियन वल्चर 
 
 प्रवासी प्रजाति यह माइग्रेट होती रहती हैं। 
१. हिमालयन ग्रिफाॅन 
२. यूरेशियन ग्रिफाॅन 
३. सिनेरियस 
  दोस्तों पहले चरण  में फिलहाल 25  गिद्धो को रेडियो टैगिंग की गई है । इन्हें जीपीएस से लैस कर छोड़ दिया गया है । और इनके जरिए इनकी  मॉनिटरिंग  की जा सकेगी ।

            धन्यवाद दोस्तों
    माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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                  88888888   

                                      Vultur

 
  Kalinjar - 25 vultures released by putting radio tags in Panna Valley

 Help in conservation: Mission launched in collaboration with Wildlife Institute of India, will be monitored continuously.

 The radio tagging process has now been initiated for the conservation and continuous monitoring of extinct vultures.  Friends, the purpose of this unique and important experiment is to gather information about the presence, habituation and habitual use of these cleaners of environment, route of migration and presence in the emerald landscape.  With the permission of the Central Government for their conservation and increase in numbers, Panna Tiger Reserve in collaboration with the Wildlife Institute of India has released 25 vultures by radio tagging them with GPS tag.  Now their location will be easily detected and security can also be done.
 Friends, as you may know that Panna Tiger Reserve of Madhya Pradesh, bordering the Banda district, is world famous not only for tigers but also for vultures.  Bagelkhand has maximum emerald and voluminous area of ​​Bagi 2.  There are 7 species of vultures known as environmental cleaners.  And 4 species belong to Panna Tiger Reserve.  The remaining 3 species are migratory.  Their number is estimated to be around 600.  But in view of the rapid reduction in numbers, effective steps are being taken for conservation.  In this sequence, the Panna Tiger Reserve management enlisted the help of the Wildlife Institute of India, Dehradun for radio tagging of the vultures.  Expert Doctor K Ramesh and team of Assistant Specialist Dr Supratam held the vultures for 15 days and equipped them with global positioning system.  Radio tagging has been completed in the Friends first phase.  And further, other vultures will also be tagged.


 This is Radio Tagging - a 15-square-meter cage in a meadow built under the method of WII expert South Africa and Bombay Natural History Society of India.  Camera Numa inserts pieces of fresh meat into the cage which the vultures enter inside the cage to eat, but cannot exit.  At the same time radio tagging is done to the vulture in the cage.  A small GPS device like a mobile chip is fitted near the head of the vultures. The vultures are then left open to fly after 7 days.


 What will be the benefit - 1.  Through this, their location will be known where they are going and making their own housing area.

 2.  And which place they like the most will be a comfortable assessment.

 3.  Friends, in the future, only those places will be developed for their living so that they can easily breed themselves in the same areas and will be able to increase their population.

 This 7 species is found in these areas - 1.  Local -

 1.  Build


 2.  King culture

 3.  Long will culture

 4.  White rump

 5.  Egyptian culture


 Migratory species continue to migrate.

 1.  Himalayan Griffan

 2.  Eurasian Griffan

 3.  Cinereous

 At present 25 radio vultures have been radio tagged in the first phase.  They have been left equipped with GPS.  And through them they can be monitored.

 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra
 

Sunday, December 20, 2020

टंडवा प्रखंड की गुफाएं- झारखंड भारत. Caves of Tandwa Block - Jharkhand India

Ek yatra khajane ki khoje

              



 


               टंडवा प्रखंड की गुफाएं
              झारखंड
              भारत
 नमस्कार दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं झारखंड की टंडवा प्रखंड की गुफाओं की यात्रा पर।

             दोस्तों चतरा जिले में हजारीबाग , चतरा और रांची जिलों के सीमावर्ती क्षेत्रों में टंडवा प्रखंड के पिपरवार पहाड़ी क्षेत्र के 2 स्थानों हरगौरी एवं भगवान टोला तथा ठिठोगी क्षेत्र के सप्त पहाड़ी में प्राचीन गुफाएं मिली है। यह गुफाएं अति प्राचीन है और इसमें  आदिमानवों
 का कभी ठिकाना रहा होगा यह प्रागैतिहासिक कालीन गुफाएं अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण और राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संजोए जा सकते हैं।
      दोस्तों 6 अद्भुत गुफाएं टंडवा प्रखंड में मिली हैं इन गुफाओं 500 लोगों के रहने की व्यवस्था है इन गुफाओं में मध्य पाषाण युग की चित्रकारी का भी पता चला है , ये गुफाएं ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। दोस्तों और सबसे महत्वपूर्ण बात है इन गुफाओं में जलस्रोतों का पाया जाना । जिससे इस बात का बल मिलता है कि इन गुफाओं में आदिमानवों का बसेरा रहा होगा । 
  दोस्तों पिपरवार क्षेत्र में जिस प्रकार की गुफाएं मिली है वैसी गुफाएं संभवतः भारत में प्रथम तथा विश्व में दुसरी है ।ये गुफाएं 1900 वर्ष पुरानी बताई गई हैं। दोस्तों जानकर आश्चर्य होगा कि गुफाओं की भीतर  दीवारों पर बड़ी संख्या में सफेद , पीले और केसरिया रंगों से बने चित्र मीले हैं।  यह गुफाएं पाषाण काल की है चित्रों में हिरण के झुण्डो के कई चित्र , ज्यामितीय बनावट के कई  चित्र और तीर धनुष लिए लोगों के चित्र पाए गए हैं। दोस्तों साथ ही साथ पुरातत्ववेताओं को इस क्षेत्र में कुषाण काल के दुर्लभ भवन के भी अवशेष मिले हैं।

 दोस्तों साथ ही साथ 8000 ईसा पूर्व से 4000 ईसा पूर्व सभ्यता की पांच गुफाएं भी मिली है इन गुफाओं में पाई गई चित्रकारी में तीर धनुष लिए झुंड के झुंड आदि मानवों को शिकार करते तथा शिकार किए गए जानवरों के पास दिखाया गया है ये पाषाण काल के पूर्व के पैलियोलीथिक वस्तुएं है। 
  पिपरवार कोयला परियोजना के भगवान टोला में दुसरी सदी ईसा पूर्व के 60 * 100 फीट में मैगालीथ  भी मिले हैं। इस प्रकार की गुफाएं भारत में इससे पहले मध्य प्रदेश में पाई गई थी.  यहां हरगौरी एवं भगवान टोला में प्रागैतिहासिक धरोहर का पता लगा है इन दोनों स्थानों पर इससे 1000 वर्ष पूर्व के समाधि स्थलों का पता लगा है हरगौरी में कुछ ऐसे टूल्स मिले हैं जिनमें इस क्षेत्र में इससे 800 से 1000 वर्ष पूर्व लोहा उद्योग होने का पता चलता है मध्य पूरा पाषाण काल के टूल्स अद्भुत है यहां पाषाण समाधि स्थल से आयरन  ,स्लैग , 1 एयर पाइप ,  हैंड हैंगर एवं ढलाई किए गए भाले का अग्रभाग प्राप्त हुआ है। 

इसी क्षेत्र के ठिठोगी गांव क्षेत्र के सप्त पहाड़ी में भी एक , दो  तल्ले वाली गुफा मिली है . 50 गुने 30 फीट के क्षेत्र की इस गुफा से पुरानी कलाकृतियां प्राप्त हुई है जिन्हें पुरातत्व विशेषज्ञों ने   'मेन्हीर' नाम दिया है। ये कलाकृतियां भी हजारों वर्ष पुरानी है। 

    धोरधोरा खावा  --टंडवा प्रखंड के सराढू ग्राम में एक अत्यंत रमणीक स्थल है . यहां एक गुफा है जिसका द्वार चौड़ा है एवं सफेद चिकने पत्थर से बना है गुफा के ठीक नीचे चिकना चमकता हुआ लाल पत्थर का सपाट है ।लाल पत्थर के नीचे नीचे एक नदी बहती है कहा जाता है कि ग्रामीण को यहां खुदाई वगैरह  करने पर प्राचीन काल की चोड़ी चोड़ी ईटे एवं प्राचीन वस्तुएं यदा-कदा मिलती रहती है। यह जंगल में होने के कारण अत्यंत मनोरम है। दूर-दूर से यहां लोग पिकनिक मनाने आते हैं।
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               English translate
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Tandwa Block Caves

 Jharkhand

 India

 Hello friends, today I am taking you on a journey to the caves of Tandwa Block of Jharkhand.


 Friends, ancient caves have been found in 2 places Hargouri and Bhagwan Tola of Piparwar hill area of ​​Tandwa block in the border areas of Hazaribagh, Chatra and Ranchi districts in Chatra district and Sapta hill of Tithogi area.  These caves are very ancient and have ancient humans

 This prehistoric period caves may have been a place of great importance in itself and can be preserved as a national heritage.

 Friends, 6 amazing caves have been found in Tandwa Block. These caves have an arrangement of 500 people. These caves have also revealed the paintings of the Middle Stone Age, these caves are historically important.  Friends and the most important thing is to find the waters in these caves.  Which reinforces the fact that these caves must have been inhabited by the primitive people.

 Friends, the type of caves found in Piparwar region is probably the first in India and the second in the world. These caves are said to be 1900 years old.  Friends will be surprised to know that on the inner walls of the caves there are a large number of paintings made of white, yellow and saffron colors.  These caves are of Stone Age paintings, many pictures of deer herds, many pictures of geometric textures and pictures of people carrying arrow bow have been found.  Friends as well as archaeologists have also found the remains of a rare Kushan building in this area.


 Friends, as well as five caves of civilization have been found from 8000 BCE to 4000 BCE, the paintings found in these caves have been shown near the prey of human beings hunting and hunting animals like flocks of arrows and bow.  Palaeolithic objects of the East.

 Magaliths have also been found at 60 * 100 feet of the 2nd century BCE at Bhagwan Tola of Pipwarwar coal project.  Caves of this type were found in India earlier in Madhya Pradesh.  Here prehistoric heritage has been unearthed in Hargauri and Bhagwan Tola, both these places have found mausoleum sites dating back to 1000 years ago, some such tools have been found in Hargauri which shows the iron industry in this area from 800 to 1000 years ago.  The tools of the Middle Stone Age are amazing, here the stone mausoleum has received a façade of iron, slag, 1 air pipe, hand hanger and cast spear.


 One, two-floor cave has also been found in the Sapta hill in the village of Chitogi area of ​​the same area.  Old artefacts have been obtained from this cave of 50 times 30 feet area which has been named 'Menheer' by the archaeologists.  These artifacts are also thousands of years old.


 Dhordhora Khawa - is a very beautiful place in Saradhu village of Tandwa Block.  There is a cave here whose door is wide and made of white smooth stone, just below the cave there is a smooth shining red stone flat. A river flows down below the red stone is said to have been excavated by the villagers, etc.  Chudai Chodi Ete and antiques are occasionally found.  It is very captivating because of being in the forest.  People come from far away to have a picnic.

             Mountain lappord Mahendra

Wednesday, December 16, 2020

विजय दिवस 16 दिसंबर 1971 से लेकर 16 दिसंबर 2020 तक- Vijay Day from 16 December 1971 to 16 December 2020-

Ek yatra khajane ki khoje


   
            विजय दिवस 2020 फील्ड मार्शल  मानेकशॉ को याद करना
            जिन्होंने 1971 के युद्ध में भारत को जीत दिलाई
            
             Victory Day 2020 Remembering Field Marshal Manekshaw

 Who led India to victory in the 1971 war.

 


                      विजय के बावजूद गवाया अवसर

नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लेपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों विजय दिवस के अवसर पर यह मेरा छोटा सा प्रयास है कि मैं आपको विजय गाथा की कुछ यादें स्मरण करा सकूं। 

दोस्तों आजादी के पहले और उसके उपरांत हम भारत के लोग संविधान के अतिरिक्त ऐसी धुर भारतीय सोच विकसित करने में नाकाम रहे  जो आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भारतीयता का एक स्थिर दर्शन व परिभाषा प्रतिपादित करती। दोस्तों हम अब कहीं जाकर राष्ट्रीय हित की दिशा में चले हैं। दोस्तों समझौतापरस्त राजनीति वास्तव में विभाजन कारी सोच के लोगों को भी सत्ता में ले आती है।और यह देश उसका प्रतिरोध नहीं करता , बल्कि उसे बर्दाश्त करता है। दोस्तों समय-समय पर इसके प्रमाण मिलते रहे हैं। साल 1971 भी ऐसा ही एक पड़ाव था जब हमें महान विजय प्राप्त हुई थी जिसमें हमने  द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को दफन किया था। दोस्तों वह एक सैन्य विजय के साथ-साथ महान वैचारिक विजय भी थी। दोस्तों उस समय बस एक और कदम की दरकार थी कि कश्मीर विवाद समाप्त हुआ होता। हम पाकिस्तान के विचार को ध्वस्त कर देते ।लेकिन 1971 में गवाह है इस अवसर ने राजनेता इंदिरा गांधी के नजरिए की सीमाएं स्पष्ट कर दी थी।
शायद नेताओं की जमात सप्ताहिक से आगे सोच भी नहीं पाती ।
दोस्तों हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं कि 1971 का युद्ध यदि कश्मीर - मुक्ति का मुख्य लक्ष्य लेकर चला होता तो क्या परिणाम होते। दोस्तों जैसा कि आपको पता होगा पाकिस्तान का बंगाल आक्रमण 25 मार्च 1971 को प्रारंभ हुआ था। जैसा कि जनरल मानेकशॉ की जीवनी में जनरल दीपेंद्र सिंह लिखते हैं की उसी रात सेना मुख्यालय में हुई आपात बैठक में इंदिरा गांधी ने जनरल मानेकशॉ से पूछा कि हम कुछ कर सकते हैं क्या ?  इसके जवाब में ही दोस्तों ' मुक्ति वाहिनी ' का जन्म हुआ। फिर 28 अप्रैल की कैबिनेट बैठक में पूर्वी पाकिस्तान पर तत्काल आक्रमण के निर्देश को लेकर मानेकशॉ का यह जवाब की सेनाएं अभी इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं है , उन्हें भू राजनीति की स्पष्ट समझ वाला कमांडर सीद्ध करता है । उन्होंने कहा कि सेनाएं चुनाव करा रही थी। अब खाली हुई है।मोबिलाइजेशन  , स्टॉकिंग , मेंटेनेंस में 2 माह लगेगा और पूर्वी कमान में सिर्फ 13 टैंक है। इसी दौरान वित्त मंत्री चौहान ने पूछा सिर्फ तेरह टैंक ? जवाब था , मैं पिछले डेढ़ साल से लगातार कह रहा हूं लेकिन आपका जवाब होता है कि पैसे नहीं है। 2 माह बाद मानसून में बंगाल की जमीन समुद्र जैसी हो जाएगी, कोई सैन्य अभियान संभव नहीं होगा। दूसरा चीन अल्टीमेटम दे सकता है। तभी सरदार स्वर्ण सिंह ने पूछा क्या चीन अल्टीमेटम देगा ? जवाब मिला , सर आप बताएं , आप विदेश मंत्री हैं। जब तक हिमालय पर बर्फ नहीं पड़ती , तब तक प्रतीक्षा करनी होगी। हम दो मोर्चों पर लड़ाई नहीं लड़ सकते। ' यह कैबिनेट को दो टूक जवाब था। कोई प्रतिवाद  नहीं कर सका। तमतमाई इंदिरा गांधी ने बैठक 4:00 बजे तक स्थगित कर दिए। तभी जनरल ने कहा कि आप चाहेंगे तो मैं स्वास्थ्य कारणों से त्यागपत्र दे दूंगा। फिर मानेकशॉ को पूरी तरह छूट दे दी गई । और 1971 की विजय उसी का परिणाम है। 
वही देश के नेता तो यह कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि युद्ध की इन परिस्थितियों का लाभ उठाकर कश्मीर और फिर आगे पाकिस्तान समस्या का स्थाई समाधान भी हो सकता है। हमारी असल समस्या कश्मीर थी , लेकिन कश्मीर का कोई जिक्र नहीं करता। वह कैसे समझते कि पश्चिम में पाकिस्तान की पराजय बांग्लादेश की आजादी का मार्ग स्वत: बना सकती है। दोस्तों युद्ध से पूर्व पश्चिमी मोर्चे पर आक्रमक रणनीति के निर्देश जारी किए गए थे। सारी तैयारियां पूर्ण थी। दोस्तों शायद आप लोगों ने पढ़ा भी होगा कि जनरल संधू अपनी पुस्तक "बैटलग्राउंड छंब " में लिखते हैं कि युद्ध से महज 2 दिन पहले अचानक 1 दिसंबर को प्रधानमंत्री द्वारा रक्षात्मक रणनीति के निर्देश दिए गए । इसने पश्चिमी मोर्चे पर हमारी समस्त सैन्य आक्रमण प्लान पर अचानक ब्रेक लगा दिया। अब हम ना हाजीपीर पर हमला कर पाते और ना लाहौर सियालकोट सेक्टरों पर। दोस्तों से ना कि हाथ बांध दिए गए ।
दोस्तों मानेकशॉ  के जबरदस्त प्रतिरोध के बावजूद इंदिरा गांधी नहीं मानी और कहा कि यदि हम पश्चिमी सीमा पर आक्रमण किए तो अंतर्राष्ट्रीय विरोध नहीं झेल पाएंगे। निक्सन किसिंग्जर का दबाव था , लेकिन रणनीति बदलने की आखिर मजबूरी क्या थी ? दोस्तों इसका कश्मीर विवाद के भविष्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। और हम युद्ध विराम रेखा तक ही सीमित रह गए। छंब का हमारा 120 वर्ग किलोमीटर का इलाका भी पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। 

           दोस्तों एक दुर्भाग्यपूर्ण आदेश ने 1971 की युद्ध की उस विजय को हमारे लिए अर्थहीन कर दिया। जबकि उस युद्ध में कश्मीर वापसी की संभावनाएं स्पष्ट दिख रही थी , पर सियासी नेतृत्व में साहस नहीं था। वह बंगाल की खाड़ी की तरफ बढ़ रहे अमेरिकी बेड़े से डर गया था। आखिर जिनकी प्रकृति ही भीरुता की हो वह धमकियों से भी डर जाते हैं। बंगाल में सेनाएं आक्रमक रणनीति के मुताबिक चल रही थी। 16 दिसंबर को ढाका में जनरल नियाजी का आत्मसमर्पण होते ही रात में युद्ध विराम घोषित कर दिया गया।हमारे राजनीतिक नेतृत्व में घबराहट इतनी अधिक थी कि हाजी पीर पास आदि तो छोड़िए छंब पर पुनः आक्रमण कर वापस अपने कब्जे में लेने का समय भी सेनाओं को नहीं दिया गया। यदि दोस्तों आक्रमक नीति कायम रहती तो हम हाजी पीर , स्कर्दू और गिलगित पर काबिज होते हैं। सेनाएं लाहौर , सियालकोट में दाखिल हो रही होती। नौसेना कराची बंदरगाह को और थल सेना अमरकोट  , थारपारकर तक बढ़ गई होती , मगर नहीं , क्योंकि इंदिरा गांधी बांग्लादेश की आजादी के निष्कर्ष कर्म से ही संतुष्ट थी। 

        दोस्तों बांग्लादेश बनने की वाहवाही को भारत के राष्ट्रीय हित से अधिक महत्व दिया गया। शिमला समझौता हुआ। भुट्टो को उनके सैनिक मिल गए  , पर हमने छंब  गंवा दिया ।दोस्तों बांग्लादेश बनने के बाद वहां की प्रताड़ित 8500000 हिंदू आबादी की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी हमें लेनी चाहिए थी लेकिन राष्ट्रीय हित की समाझ
 के अभाव से ऐसा ना हो सका।

        दोस्तों राष्ट्रवाद का जन्म तो इस देश में जैसे 2014 के बाद हुआ है। उससे पहले सत्ताओ ने तुष्टीकरण के खेल में देश को सराय बना रखा था । 1971 तो एक महान जनरल की सैन्य विजय थी जिससे कश्मीर का हल निकलता , परंतु राजनीति की स्थापित शूद्र अदाओं ने इसे अर्थहीन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
      धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।

             माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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                     English translate
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Missed opportunity despite victory


 Hello friends, I would like to extend my hearty greetings to all of you mountain lepards Mahendra, Friends, on the occasion of Vijay Diwas, it is my small effort to remind you of some memories of the Vijay saga.


 Friends, before and after independence, the people of India, apart from the Constitution, failed to develop such an aristocratic Indian thought which would give a stable philosophy and definition of Indianness in modern perspective.  Friends, we have now gone in the direction of national interest.  Friends, compromised politics actually brings power to the people of divisive thinking and this country does not resist it, but tolerates it.  Friends have been finding evidence of this from time to time.  The year 1971 was one such stop when we had a great victory in which we buried the doctrine of two-nation theory.  Friends, it was a military victory as well as a great ideological victory.  Friends, at that time, just one more step was needed that the Kashmir dispute would have ended.  We would have demolished the idea of ​​Pakistan. But in 1971, this occasion made the boundaries of the vision of the politician Indira Gandhi clear.

 Perhaps the group of leaders cannot think beyond the week.

 Friends, we can only imagine what the consequences would have been if the 1971 war had run with the main goal of Kashmir-liberation.  Friends, as you may know, the Bengal invasion of Pakistan started on 25 March 1971.  As General Deepender Singh writes in the biography of General Manekshaw that during the emergency meeting that took place at the Army Headquarters that night, Indira Gandhi asked General Manekshaw what we can do.  In response to this, friends 'Mukti Vahini' was born.  Then Manekshaw's reply to the directive of an immediate attack on East Pakistan in the Cabinet meeting of April 28 that the forces are not yet ready for this, proves him a commander with a clear understanding of geopolitics.  He said that the forces were holding elections.  It is empty now. Mobilization, stocking, maintenance will take 2 months and Eastern Command has only 13 tanks.  Meanwhile, Finance Minister Chauhan asked only thirteen tanks?  The answer was, I have been saying continuously for the last year and a half but your answer is that there is no money.  After 2 months, the land of Bengal will become like sea in the monsoon, no military operation will be possible.  Second China may give ultimatum.  Then Sardar Swaran Singh asked if China would give an ultimatum?  The answer was, Sir, you tell me, you are the foreign minister.  Until the snow falls on the Himalayas, one has to wait.  We cannot fight on two fronts.  It was a blunt reply to the cabinet.  Nobody could counter-protest.  Tamtamai Indira Gandhi adjourned the meeting till 4:00 pm.  Then the general said that if you want, I will resign due to health reasons.  Then Manekshaw was completely exempted.  And the 1971 victory is the result of that.

 The leaders of the same country could not even imagine that by taking advantage of these circumstances of war, there could be a permanent solution to the problem of Kashmir and then Pakistan.  Our real problem was Kashmir, but there is no mention of Kashmir.  How did he understand that the defeat of Pakistan in the West could automatically make the road to Bangladesh independence.  Before the war, instructions for aggressive tactics were issued on the Western Front.  All preparations were complete.  Friends, you may have also read that General Sandhu writes in his book "Battleground Chamba" that on 1 December suddenly, just 2 days before the war, the Prime Minister gave instructions for defensive tactics.  This put a sudden brake on our entire military invasion plan on the Western Front.  Now we would not have been able to attack Hajipir or Lahore Sialkot sectors.  No hands were tied to friends.

 Friends, despite the strong resistance of Manekshaw, Indira Gandhi did not accept and said that if we attack the western border, we will not face international opposition.  Nixon was the pressure of Kissinger, but what was the compulsion to change the strategy?  Friends, it had a very bad effect on the future of Kashmir dispute.  And we remained confined to the ceasefire line.  Our 120 square kilometer area of ​​Chamba also went under the occupation of Pakistan.


 Friends, an unfortunate order rendered that victory of the 1971 war meaningless to us.  While the prospects of a return to Kashmir were clear in that war, the political leadership lacked courage.  He was frightened by the American fleet advancing towards the Bay of Bengal.  After all, whose nature is of the same nature, they are afraid of threats too.  The forces in Bengal were following an aggressive strategy.  A ceasefire was declared at night as soon as General Niazi surrendered in Dhaka on 16 December. The panic in our political leadership was so high that the Haji Pir Pass, etc., leave the Chamba to recapture and take back the forces.  Not given  If friends aggressive policy continues, then we hold on to Haji Pir, Skardu and Gilgit.  The forces would have been entering Lahore, Sialkot.  The Navy would have extended to the port of Karachi and the army to Amarkot, Tharparkar, but not because Indira Gandhi was satisfied with the conclusion of Bangladesh's independence.


 The accolades of becoming friends Bangladesh were given more importance than India's national interest.  The Simla Agreement was reached.  Bhutto got his soldiers, but we lost the Chamba. After becoming friends Bangladesh, we should have also taken the responsibility of protecting the oppressed 8500000 Hindu population there but in the interest of national interest.

 This could not happen due to lack of


 Friends, nationalism has been born in this country like after 2014.  Before that the powers had made the country an inn in the game of appeasement.  1971 was a military victory of a great general that would solve Kashmir, but the established Shudra styles of politics left no stone unturned to make it meaningless.

 Thanks guys, that's all for today.


 Mountain Leopard Mahendra

 

Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...