Tuesday, February 23, 2021

एक यात्रा अपने झारखंड के हजारीबाग जिले में स्थित बहोरनपुर के ईटवा टिल्हा की जहां मां तारा सहित भगवान बुद्ध की एक ही स्थान पर मिली 5 प्रतिमाएं A visit to Etawah Tilha of Bahoranpur in Hazaribagh district of Jharkhand where 5 statues of Lord Buddha including mother Tara were found at one place.

Ek yatra khajane ki khoje
















 






















         बहोरनपुर में खुदाई के दौरान मिली भगवान बुध की प्रतिमाएं                                   विभिन्नन मुद्राओं में
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Statues of Lord Mercury found in various postures during excavation in Bahoranpur
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 नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आप सभी को लेकर चल रहा हूं अपने झारखंड प्रदेश के हजारीबाग जिले में स्थित बहोरनपुर की जहां पर बहुत ही प्राचीन एक टिलहा स्थित है जिसे वहां के स्थानीय लोग इटवा टिलहा के नाम से जानते हैं। दोस्तों बहोरनपुर कभी बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र था जहां पर आज खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग वालों को मां तारा सहित भगवान बुद्ध की एक ही स्थान पर 5 प्रतिमाएं मिली है। 












 दोस्तों झारखंड के हजारीबाग जिले के बहोरनपुर स्थित पहाड़ी की तलहटी में बने इटवा टिलहा में खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग वालों को 2 प्रतिमाएं मिली थी। दोस्तों दोनों प्रतिमाएं भगवान बुद्ध की महानिवार्ण मुद्रा की है। दोस्तों यह पहला मौका है जब हजारीबाग के इटवा टीलहा में खुदाई के दौरान 2 प्रतिमाएं मिली इससे पूर्व यहां पर मिट्टी का घड़ा , कील आदि वस्तुएं मिल चुकी है।दोस्तों दोनों प्रतिमाओं के मिलने से पुरातात्विक विभाग वाले की आंखों में भी चमक आ गई अतः प्रतिमाओं को लेकर पुरातात्विक विभाग द्वारा विश्लेषण किया जा रहा है और इस इलाके में पूरे जोर-शोर से खुदाई का कार्य किया जा रहा है।










 दोस्तों यहां मिली मौन प्रतिमाएं बोल रही है कि कभी बहोरनपुर बौद्ध धर्म का एक बहुत बड़ा आध्यात्मिक केंद्र रहा होगा।
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 दोस्तों मालूम चलता है कि बिहार के राजगीर, नालंदा , पावापुरी और बोधगया के बाद 10 वीं शताब्दी के पाल वंश के शासकों के शासनकाल में झारखंड के हजारीबाग का बहोरनपुर भी बौद्ध धर्म का  एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा होगा। दोस्तों पुरातत्व विभाग द्वारा दूसरे चरण की खुदाई में मिल रही प्रतिमाएं इस बात की ओर इशारा कर रही है। दोस्तों सोमवार को यहां खुदाई में पांच प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी।इनमें से एक मां तारा और चार भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं थी।दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि प्राप्त बुद्ध की प्रतिमाएं विभिन्न मुद्राओं में बनी हुई है। दोस्तों सभी प्रतिमाएं इटवा टिलहे के पश्चिम - उत्तर कोने से प्राप्त हुई है। दोस्तों एक ही कोने से सभी प्रतिमाओं के मिलने से पुरातात्विक विभाग के विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित हो रहे हैं।  दोस्तों टिलहे में मौजूद कोने को बौद्ध धर्म में विशेष महत्व का होना बता रहे हैं। जो आगे के शोध में सामने आ जाएगा।










दोस्तों माना जा रहा है जी अब तक बौद्ध सर्किट में राजगीर , नालंदा , पावापुरी ,बोधगया , चतरा की कौलेश्वरी पहाड़ी  तथा मां भद्रकाली मंदिर का जिक्र आता रहा है लेकिन अब यह क्षेत्र भी इसमें शामिल हो सकता है। दोस्तों प्राप्त प्रतिमाओं , बौद्ध मठ के आकार और अवशेषों से यह बात तो तय हो गई है कि बहोरनपुर भी बौद्ध धर्म का पाल वंश के समय का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र रहा होगा। दोस्तों आश्चर्य की बात है कि इटवा टिलहा से बरामद सभी प्रतिमाएं सैंड स्टोन की बनी हुई है। दोस्तों इसी तरह की प्रतिमाएं मां भद्रकाली मंदिर से भी बरामद हुई थी। दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हजारीबाग में कहीं भी सैंड स्टोन नहीं मिलता है।यानी दोस्तों साबित होता है कि प्राचीन काल में इन प्रतिमाओं को कहीं और से लाकर प्राण प्रतिष्ठित किया गया था। और बहुत ही महत्वपूर्ण बौद्ध मठ की स्थापना की गई थी इस क्षेत्र में। दोस्तों हो सकता है कि यह शिक्षा का भी बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र रहा होगा यह शोध का विषय है।





               धन्यवाद दोस्तों

             माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗








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                   English translate
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  Ek yatra khajane ki khoje









 Hello friends I heartily greet all of you mountain leopard Mahendra Friends, today I am taking you all on my journey to Bahoranpur in Hazaribagh district of Jharkhand, where a very ancient Tilha is located there  People know it by the name of Itwa Tilha.  Friends, Bahoranpur was once an important center of Buddhism where during the excavation today, the archaeological department has found 5 statues of Lord Buddha along with mother Tara at one place.









 Friends, during the excavation at Itwa Tilha in the foothills of Bahoranpur in Hazaribagh district of Jharkhand, the archaeological department found 2 statues.  Friends, both idols are of the great posture of Lord Buddha.  Friends, this is the first time when 2 statues were found during the excavation at Itwa Tilaha, Hazaribagh, before it has been found here an earthen pot, nail etc. The two archaeological department's eyes also shone in the eyes of the archaeological department, hence the statues  The analysis is being done by the archaeological department and excavation work is being done in this area.











 Friends, the silent statues found here are saying that Bahoranpur must have been a very big spiritual center of Buddhism.

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 Friends know that Bahoranpur of Hazaribagh in Jharkhand would have been an important center of Buddhism during the reigns of the 10th-century Pal dynasty after Rajgir, Nalanda, Pavapuri and Bodh Gaya in Bihar.  Friends, the statues found in the second phase of excavation by the Archaeological Department are pointing to this.  Friends, five statues were found in the excavation here on Monday. One of them was statues of mother Tara and four Lord Buddha. Friends, you will be surprised to know that the received Buddha statues are in different postures.  Friends All statues have been received from the west-north corner of Itwa Tilhe.  Friends, experts of the archaeological department are also surprised by the meeting of all the statues from the same corner.  Friends are telling the corner present in Tilhe to be of special importance in Buddhism.  Which will be revealed in further research.











 It is believed that till now the Buddhist circuit has been mentioned in Rajgir, Nalanda, Pavapuri, Bodh Gaya, Kaleshwari hill of Chatra and Maa Bhadrakali temple but now this area can also be included in it.  The statues and friends of friends, the size and the remains of the Buddhist monastery have ensured that Bahoranpur must have been an important cultural center of Buddhism during the Pala dynasty.  It is surprising that all the statues recovered from Itwa Tilha are made of sand stone.  Friends, similar idols were also recovered from Maa Bhadrakali temple.  Friends, you will be surprised to know that sand stone is not found anywhere in Hazaribagh. This proves that in ancient times, these statues were brought to life by bringing these idols from elsewhere.  And a very important Buddhist monastery was established in this area.  Friends, it may be that it has also been a very important center of education, it is a subject of research.





 Thanks guys


 Mountain Leopard Mahendra  






                        🧗🧗














Monday, February 22, 2021

एक यात्रा शारदा पीठ जम्मू-कश्मीर की - जो वर्तमान में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में मौजूद हैं। visit to Sharda Peeth of Jammu and Kashmir.

Ek yatra khajane ki khoje




































  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं । दोस्तों आइए चलते हैं आज की यात्रा पर "मां शारदा" की उस पवित्र पीठ की यात्रा पर जो आज के वर्तमान में पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाके में स्थित है।








 दोस्तों आइए चलते हैं 1947 के दशक में जब भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ था।दोस्तों तब उस जमाने में भारतवर्ष के जम्मू कश्मीर का क्षेत्रफल 222236 वर्ग किलोमीटर था । जिसमें से चीन और पाकिस्तान ने मिलकर आधे जम्मू कश्मीर पर अपना कब्जा किया हुआ है और हमारे भारतवर्ष के पास केवल 102387 वर्ग किलोमीटर जम्मू कश्मीर का भूमि खंड शेष बचा हुआ है।
                       दोस्तों जम्मू कश्मीर का जो भाग आज हमारे पास नहीं है उनमें से गिलगिट , बालटिस्तान , बजारत , चिल्लास , हाजीपीर आदि हिस्से पर पाकिस्तान का सीधा शासन है। एवं मुजफ्फराबाद , मीरपुर , कोटली और छंब आदि इलाके हालांकि स्वायत्त शासन में हैं। परंतु यह इलाके भी पाक के नियंत्रण में है दोस्तों।













दोस्तों पाकिस्तान के नियंत्रण वाले इसी क्षेत्र जम्मू कश्मीर के मुजफ्फराबाद जिले के सीमा के किनारे पवित्र कृष्ण - गंगा नदी बहती है।दोस्तों जानकर आपको आश्चर्य होगा कि कृष्ण- गंगा नदी वही नदी है जिसमें समुद्र मंथन के पश्चात शेष बचे "अमृत" को "असुरों" से छुपा कर रखा गया था। और उसी के बाद स्वयं भगवान ब्रह्मा जी ने कृष्ण - गंगा नदी के किनारे मां शारदा का मंदिर बनाकर उन्हें वहां स्थापित किया था।दोस्तों हमारे वेद पुराण बताते हैं कि जिस दिन से मां शारदा वहां विराजमान हुई उस दिन से ही सारा जम्मू कश्मीर "नमस्ते शारदा देवी कश्मीरपुरवासनी/ त्वोमहंमप्रार्थये नित्यम विदादानम च देही में" कहते हुए उनकी आराधना करता रहा है एवं दोस्तों उन कश्मीरियों पर मां शारदा की ऐसी कृपा हुई थी "अष्टांग योग" और अष्टांग हृदय लिखने वाले वाग्भट वही जन्मे , नीलमत पुराण वही रची गई ,  चरक संहिता , शिव पुराण , कल्हण की राजतरंगिणी , सारंग देव की संगीत रत्नाकर सब के सब अद्वितीय ग्रंथों की रचना यही की गई थी। दोस्तों उस कश्मीर में जो रामकथा लिखीं गई थी उसी में मंक्केश्वर महादेव का वर्णन सर्वप्रथम स्पष्ट रूप से किया गया था। दोस्तों शैव दार्शनिकों की लंबी परंपरा जम्मू कश्मीर से ही शुरू हुई थी। साथ ही साथ दोस्तों चिकित्सा पद्धति , खगोल शास्त्र , ज्योतिष दर्शन , विधि ,न्याय शास्त्र , पाककला , चित्रकला और भवन शिल्प विधाओ का भी प्रसिद्ध केंद्र था जम्मू कश्मीर क्योंकि उस पर मां शारदा का साक्षात आशीर्वाद प्राप्त था। दोस्तों प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि शारदा पीठ के पास उसने ऐसे ऐसे विद्वान देखें जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती कि कोई इतना भी विद्वान हो सकता है। दोस्तों शारदा पीठ के पास ही एक बहुत बड़ा विद्यापीठ भी था जहां दुनिया भर से विद्यार्थी ज्ञानार्जन करने आते थे। 













 
दोस्तों मां शारदा के उस पवित्र पीठ में न जाने कितने सहस्त्र वर्षों से हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन एक विशाल मेला का आयोजन होता था जहां भारत के कोने कोने से वाग्देवी सरस्वती के उपासक साधना करने आते थे , दोस्तों भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि को शारदा अष्टमी इसलिए कहा जाता था।दोस्तों शारदा तीर्थ श्रीनगर से लगभग  125 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है फिर भी वहां के लोग पैदल मां के दर्शन करने जाया करते थे।









दोस्तों शास्त्रों के अनुसार एक बहुत ही रोचक दंत कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक निम्न जाति के व्यक्ति को भगवान शिव की उपासना से एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। जिसका नाम उस दंपति ने "शांडलि" रखा था।
दोस्तों शांडलि बहुत ही प्रतिभावन था जिससे उनसे जलन भाव रखने के कारण ब्राह्मणों ने उनका यगोपवित संस्कार करने से मना कर दिया था।दोस्तों निराश शांडलि को ऋषि वशिष्ठ ने मां शारदा के दर्शन करने की सलाह दी और उनके सलाह पर जब वे वहां पहुंचे तो मां ने उन्हें दर्शन दिया और उन्हें नाम दिया ऋषि शांडिल्य। दोस्तों जैसा कि आपको पता ही होगा कि आज हिंदुओं के अंदर हर एक जाति में शांडिल्य गोत्र पाया जाता है।










दोस्तों हिंदू धर्म का महिमामंडन करने निकले जगतगुरु शंकराचार्य जब शारदा पीठ पहुंचे तो उन्हें भी मां शारदा ने दर्शन दिए थे और हिंदू धर्म को बचाने का आशीर्वाद दिया था।दोस्तों मां शारदा की कृपा से ही कश्मीर के शासक जैनुल आबेदीन का मन बदल गया था , जब वह उनके दर्शन के लिए वहां गया था। फिर उसने कश्मीर में अपने पिता सिकंदर द्वारा किए गए हर पाप का प्रायश्चित किया था , दोस्तों इतिहास के किताबों में दर्ज हैं कि मां शारदा की उपासना में वो इतना लीन हो जाता था कि उसे दुनिया की कोई खोज खबर नहीं होती थी।  















दोस्तों भारत के कई हिस्सों में जब यगोपवित संस्कार होता है तो बटु को कहा जाता है कि तू शारदा पीठ जाकर ज्ञानार्जन कर और फिर सांकेतिक रूप से वो बटुक शारदा पीठ की दिशा में सात कदम आगे बढ़ता है और फिर कुछ समय पश्चात इस आशय से वह सात कदम पीछे आता है कि अब उसकी शिक्षा पूर्ण हो गई है और वो विद्वान बन कर वहां से लौट रहा है। दोस्तों एक समय ऐसा था जब ये सांकेतिक संस्कार एक दिन वास्तविकता में बदलता था क्योंकि वे बटुक शिक्षा ग्रहण करने मां शारदा पीठ ही जाता था। मगर आज दुर्भाग्य से हमारी "मां शारदा" हमारे पास नहीं है और हम उनके पास जाएं ऐसी कोई व्यवस्था भी नहीं है।दोस्तों अब शायद यगोपवित कि यह रस्म सांकेतिक ही रह जाएगी सदा के लिए। 










दोस्तों हमें शारदा पीठ की मुक्ति चाहिए हमें शारदा पीठ तक जाना है दोस्तों हमें दुनिया को बताना होगा कि शारदा पीठ हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित एक अद्भुत और अलौकिक सबसे प्राचीन शिक्षा केंद्रों में से एक था। अतः दोस्तों आपसे निवेदन है कि शारदा पीठ की यात्रा पर जरूर जाएं और अपने पूर्वजों के इस अद्भुत धरोहर को अपने नजरों से अवश्य देखें। 












               धन्यवाद दोस्तों
              माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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            English translate
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 Hello friends I extend my hearty greetings to all of you mountain leopard Mahendra.  Friends, let's go on the journey of that holy backing of "Maa Sharada" which is located in the present day occupied state of Pakistan.









 Friends, let's go when India became independent from the British in the 1947s. At that time, the area of ​​Jammu and Kashmir in India was 222236 square kilometers.  Out of which China and Pakistan together occupy half of Jammu and Kashmir and our India year only 102387 square kilometers of the remaining land segment of Jammu and Kashmir.

 Friends, the part of Jammu and Kashmir which we do not have today, among them Gilgit, Baltistan, Bazaarrat, Chilas, Hajipir etc., is under direct rule of Pakistan.  And the areas like Muzaffarabad, Mirpur, Kotli and Chamba etc. are under autonomous governance.  But this area is also under the control of Pakistan.














 Friends, the holy Krishna-Ganges river flows along the border of Muzaffarabad district of Jammu and Kashmir under the control of Pakistan. Friends, you will be surprised to know that Krishna-Ganga river is the same river in which the "nectar" remaining after the churning of the sea is called "Asuras".  "Was kept hidden from.  And after that, Lord Brahma himself built a temple of Maa Sarada on the banks of the Krishna-Ganges river and installed them there. Friends, our Ved Purana tells that from the day Maa Sharda was enthroned, the whole of Jammu and Kashmir "Namaste  Sharada Devi has been worshiping her by saying "in Kashmir Purvasani / Tvammahamprathyay Nityam Vidadanam Ch Dehi" and friends, Mother Sharada was blessed with such blessings on those Kashmiris "Ashtanga Yoga" and Vagbhat, who wrote Ashtanga heart, was born the same, Neelmat Purana was composed, Charak  All the unique texts were composed by Samhita, Shiva Purana, Kalhana's Rajatarangini, Sarang Dev's music, Ratnakar.  Friends, Mankeshwar Mahadev was first clearly mentioned in the Ramkatha that was written in Kashmir.  Friends, the long tradition of Shaivite philosophers started from Jammu and Kashmir itself.  At the same time, friends were also famous centers of medical practice, astronomy, astrology, philosophy, law, jurisprudence, culinary arts, painting and building crafts etc. Jammu Kashmir because it was blessed with the blessings of Mother Sharda.  Friends, famous Chinese traveler Xuanzang has written in his travelogue that near the Sharda Peeth he saw such scholars who cannot be imagined that anyone could be so scholar.  Friends, there was also a big school near Sharada Peeth where students from all over the world used to come to learn.
















 Friends, not knowing how many years in the holy bench of Mother Sharada, a huge fair was held every year on the day of Bhadrapad Shukla Paksha Ashtami where worshipers of Vagdevi Saraswati from every corner of India used to come to worship, Friends Ashtami date of Bhadrapad month  It was called Sharada Ashtami because the two Sharada shrine is located at a distance of about 125 km from Srinagar, yet the people used to visit the mother on foot.
















 According to friends scriptures, a very interesting legend is prevalent according to which a low caste person got a son Ratna from the worship of Lord Shiva.  The couple was named "Shandali" by that couple.

 Friends, Shandali was very talented, due to jealousy of him, the Brahmins refused to perform Yagopavit Sanskar. Friends, frustrated Shandali was advised by sage Vasistha to visit Maa Sharada and on his advice, when he reached there, his mother  Gave him darshan and named him sage Shandilya.  Friends, as you may be aware that within Hinduism, the Shandilya gotra is found in every caste.











 Friends, Jagadguru Shankaracharya, who came out to glorify Hinduism, came to Sharada Peeth when he was also seen by mother Sharada and blessed to save Hinduism. It was only by the grace of Mother Sharada that the ruler of Kashmir, Janul Abedin changed his mind,  When he went there to see him.  Then he atoned for every sin committed by his father Alexander in Kashmir, friends are recorded in the history books that he used to become so absorbed in the worship of mother Sharda that he had no news of the world.

















 Friends, in many parts of India, when the Yagopavit ceremony is performed, the Batu is told that you go to Sharda Peeth and enlighten and then symbolically that Batuk moves seven steps towards the Sharada Peetha and then after some time he will  It comes seven steps back that now his education is complete and he is returning from there after becoming a scholar.  Friends, there was a time when this symbolic rite would one day turn into reality because they used to go to mother Sharada Peeth to get education.  But today unfortunately we do not have our "Mother Sharda" and there is no such system for us to go to them. Friends may now rejoice that this ritual will remain symbolic forever.











 Friends, we need the liberation of Sharada Peeth We have to go to Sharada Peeth Friends, we must tell the world that Sharada Peeth was one of the most wonderful and supernatural most ancient education centers established by our ancestors.  Therefore, friends, you are requested to go on a journey of Sharada Peeth and see this amazing heritage of your ancestors from your eyes.




















 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗































 








Sunday, February 21, 2021

यात्रा राजमहल की पहाड़ियों की दोस्तों जब राजमहल की पहाड़ियों को छूता था महासागर 280 करोड़ वर्ष पहले - साहिबगंज झारखंड भारत Visit friends of the palace hills when the ocean used to touch the palaces of the palace 280 million years ago - Sahibganj Jharkhand India

Ek yatra khajane ki khoje















                   पत्थर में रूपांतरित  पत्तियों के जीवाश्म
                   Fossils of metamorphosed leaves into                           stone
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  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूंदोस्तों आज फिर मैं आपको लेकर चल रहा हूं राजमहल की पहाड़ियों पर जो कि झारखंड के साहिबगंज जिले में स्थित है जहां करोड़ों वर्ष पहले महासागर हुआ करता था। 












 दोस्तों जब राजमहल की पहाड़ियों को छूता था महासागर आज से करोड़ों वर्ष पहले 
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 दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि झारखंड के गोड्डा जिले के लल मटिया में स्थित सेल पत्थर व कोयला के नमूनों के 2 वर्ष के अध्ययन के बाद जो तथ्य निकले हैं वह चौंकाने वाले हैं।
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Fossils of metamorphosed leaves into stone
                       पत्थर में रूपांतरित  पत्तियों के जीवाश्म
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 दोस्तों भारत के झारखंड राज्य में स्थित गोड्डा , साहिबगंज , पाकुड़ और दुमका तक राजमहल की पहाड़ियां फैली हुई है। और इन्हीं जिलों में जीवाश्म के रूप में  जैव प्रजातियों के क्रमिक विकास के साक्ष्य बिखरे पड़े हैं। दोस्तों पेड़ -पौधो के यह जवाब करीब 280 करोड़ वर्ष पुराने हैं। दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि तब यहां पर महासागर लहराता था। दोस्तों चौंकिए नहीं लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ पेलियोसाइंस के विज्ञानी डॉक्टर  एस .सुरेश कुमार पिल्लई  एवं उनकी टीम ने शोध में इसे साबित किया है। दोस्तों इन्होंने गोंडवाना बेसिन की राजमहल पहाड़ियों में स्थित है गोड्डा के ललमटिया इलाके में मौजूद कोयला व उसके ऊपरी शैल परतों में मिले जीवाश्मों का अध्ययन कर इसके सबूत तलाशें हैं।







 दोस्तों पेलियोसांइस विज्ञानी डॉक्टर एस .पिल्लई व साहिबगंज डिग्री कॉलेज के भूगर्भ विज्ञानी प्रोफ़ेसर रंजीत सिंह ने बताया कि शैल पर जीवाश्म के रूप में मौजूद पत्तियों , क्यूटिकल्स (पत्तियों के ऊपरी सतह पर वाष्पोत्सर्जन को नियंत्रित करने वाली परत ) , स्टोमेटा ( रंध्र) व परागकण की छाप का अध्ययन किया गया है। दोस्तों अध्ययन से पता चला है कि करोड़ों वर्ष पहले इस इलाके में बहुत ही घना जंगल हुआ करता था। दोस्तो इन जंगलों में जिम्मनोस्पर्म व कोर्डेटेल्स वंश के पेड़ मौजूद थे। दोस्तों यहां इनकी 14 प्रजातियां थी। दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से कार्बनिक और अकार्बनिक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला कि यहां समुंद्र का पानी मौजूद था यानी समुंद्र मौजूद था। जिससे घना जंगल समुद्र के पानी में डूब गया था। जो करोड़ों साल बाद कोयला में बदल गया। दोस्तों यह खोज जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की पत्रिका व इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कोल जियोलॉजी में हाल ही में प्रकाशित किया गया था। दोस्तों 2 वर्ष तक किए गए गहन शोध में यह परिणाम सामने आए हैं। दोस्तों टीम में विज्ञानी आरपी . मैथ्यूज , शैलेश अग्रवाल , मनोज एमसी , श्रीकांत  व संभलपुर विश्वविद्यालय के  के . एस गोस्वामी , मृत्युंजय साहू आदि शामिल थे। दोस्तों निश्चित तौर पर यह शोध कार्य आश्चर्यजनक लगता है कि आज साहिबगंज से समुंद्र कम से कम 400 किलोमीटर दूर स्थित है। दोस्तों है ना आश्चर्यजनक कि कभी साहिबगंज यानी राजमहल का इलाका पूरी तरह से समुद्र में डूबा हुआ था।







 खुल गया राज समुद्री  शैवालों की मौजूदगी का राजमहल की पहाड़ियों में साहिबगंज झारखंड ।
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 दोस्तों कोयले के नमूनों के अध्ययन से समुद्री शैवाल की मौजूदगी के पक्के प्रमाण मिले हैं। अकार्बनिक और कार्बनिक प्रयोगों से साबित हुआ है कि नमूनों में कार्बन - 15 , कार्बन -17 , व कार्बन-19 के योगिकों की मौजूदगी है , जो समुद्री पौधों में मिलते हैं। एवं स्ट्रांशियम और  बेरियम का अनुपात 0.5 से 1 के बीच पाया गया जो खारे जल की मौजूदगी का प्रमाण बताता है। दोस्तों मीठे जल के क्षेत्र में यह मान 0.5 से कम होता है। साथ ही साथ दोस्तों थोरियम व यूरेनियम का मान 7 से 2 के बीच पाया गया है जो की खारे पानी की मौजूदगी को इंगित करता है।एवं दोस्तों 7 से अधिक मान मीठे जल के इलाके की जानकारी देती है दोस्तों इससे साबित होता है कि यहां समुद्री शैवाल समुंद्र की पानी के साथ बहकर आया होगा। दोस्तों अध्ययन से पता चलता है कि सिक्किम की ओर से टेथिस सागर का पानी यहां आया था , तब गोड़वाना लैंड में अंटार्कटिका ,ऑस्ट्रेलिया ,दक्षिण अमेरिका , अफ्रीका एवं भारत एक साथ मौजूद थे एवं आपस में जुड़े हुए थे। जो कालांतर में करोड़ों वर्षों की विकास प्रक्रिया में अलग-अलग महाद्वीपों में बदल गए हैं या अलग हो गए।।




 





 दोस्तों यह शोध कार्य जैव विकास को समझने में मददगार होगा।
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 दोस्तों डॉक्टर एस.सुरेश कुमार पिल्लई कहते हैं कि  पारिस्थितिकी तंत्र के बदलाव, नई प्रजातियों की उत्पत्ति , मौसम परिवर्तन समेत कई गुढ़ विषयों को समझने में मदद करेंगी।  दोस्तों उस समय के पेड़-पौधो  पराग कण , रंध्रों के आकार , मौसम के स्थितियों का आज के वातावरण व जीवों से तुलनात्मक अध्ययन करने पर जैव विकास के अनसुलझे रहस्य उजागर हो पायेंगे। और साथ ही साथ यह अध्ययन भी हो सकेगा कि किस प्रकार मौसम बदलने से हुएं उत्परिवर्तनों से नई प्रजातियां बनी । दोस्तों साफ दिखता है कि जिन पेड़ों से यहां कोयलें का निर्माण हुआ है वैसे ही वृक्षों से आस्ट्रेलिया में भी कोयला का निर्माण हुआ है। अतः साफ पता चलता है कि दोनों महाद्विप  पूर्व में आपस में जुड़े हुए थे , जो बाद में अलग-अलग हिस्सों में बट गया। दोस्तों राजमहल की पहाड़ियां  दुनिया की प्राचीनतम पहाड़ियों में गिनी जाती हैं। दोस्तों यहां मौजूद जीवाश्मों को सहेजने की  जरूरत है क्योंकि ये भारत ही नहीं समूचे विश्व की धरोहर हैं । दोस्तों हमें इनकी  महत्ता को समझनी होगी अन्यथा ये विलुप्त हो जाएंगे। क्योंकि दोस्तों पहाड़ियों में पत्थरों के खनन से ये नष्ट होते जा रहे हैं।
 

                 धन्यवाद दोस्तों

                 माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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          English translate
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  पत्थरों में जीवाश्मों की तलाश करते हुए डॉक्टर एस . सुरेश कुमार पिल्लई राजमहल की पहाड़ियां साहिबगंज झारखंड।
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Doctor S. while searching for fossils in stones  Suresh Kumar Pillai Rajmahal Hills Sahibganj Jharkhand.




 
 
  Hello friends, I would like to give a warm welcome to all of you mountain lepards Mahendra. Today I am taking you again to the hills of Rajmahal, which is located in Sahibganj district of Jharkhand, where the ocean used to be millions of years ago.












 Friends, when the ocean used to touch the palace hills millions of years ago.













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 Friends, you will be surprised to know that the facts which have come out after 2 years of study of cell stone and coal samples located in Lal Matia of Godda district of Jharkhand are shocking.

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 Friends, Rajmahal hills are spread to Godda, Sahibganj, Pakur and Dumka located in the state of Jharkhand, India.  And in these districts there is scattered evidence of the gradual development of bio-species in the form of fossils.  Friends tree - this answer of the Paudho is about 280 million years old.  Friends, you will be surprised to know that the ocean used to sway here.  Friends, don't be surprised, Dr. S. Suresh Kumar Pillai, a scientist at Birbal Sahni Institute of PaleoScience in Lucknow and his team has proved this in research.  Friends, they have located the Rajmahal hills of Gondwana basin in the Lalmatiya area of ​​Godda and studied the fossils found in the coal and its upper rock layers to find evidence of this.








 Friends Paleoceanologist Dr. S. Pillai and Sahibganj degree college geologist Professor Ranjit Singh told that the leaves present in the form of fossils on the shell, cuticles (layer controlling the transpiration on the upper surface of the leaves), stomata (stomata) and pollen.  The impression of has been studied.  Friends study showed that crores of years ago there used to be a very dense forest in this area.  Friends, in these forests there were trees of Zimnosperm and Cordellatus.  Friends, they had 14 species here.  Friends surprisingly, the organic and inorganic study concluded that sea water was present here.  Due to which the dense forest was submerged in the sea water.  Which turned into coal after millions of years.  Friends, this discovery was recently published in the Journal of the Geological Society of India and in the International Journal of Coal Geology.  Friends, these results have been revealed in the deep research conducted for 2 years.  Friends in the team, scientist R.P.  Mathews, Shailesh Aggarwal, Manoj MC, Srikanth and K. Sambalpur University  S. Goswami, Mrityunjay Sahu etc.  Friends, this research work certainly seems surprising that today the sea is at least 400 km from Sahibganj.  Friends, is it not surprising that the area of ​​Sahibganj i.e. Rajmahal was completely submerged in the sea.













 The presence of Raj seaweeds has been revealed in Sahibganj Jharkhand in the palace hills.

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 Friends, studies of coal samples have confirmed the presence of seaweed.  Inorganic and organic experiments have proved that the presence of carbon-15, carbon-17, and carbon-19 compounds in samples is found in marine plants.  And the ratio of strontium and barium was found to be between 0.5 to 1, which indicates the presence of saltwater.  Friends, in the area of ​​fresh water, this value is less than 0.5.  Also, the value of friends thorium and uranium has been found to be between 7 and 2, which indicates the presence of saltwater. And more than 7 values ​​of freshwater area. Friends, this proves that the marine here  The algae must have flowed with sea water.  Friends study shows that the water of Tethys Sea came here from Sikkim, then Antarctica, Australia, South America, Africa and India were present and connected together in Godwana Land.  Over the course of millions of years the development process has changed or separated into different continents.












 Friends, this research work will be helpful in understanding bio-development.

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 Friends, Dr. S. Suresh Kumar Pillai says that changes in the ecosystem, including the origin of new species, weather changes, will help in understanding many deep topics.  Friends, by doing a comparative study of the plants, pollen particles of the time, the size of the stomata, the weather conditions of today's environment and organisms, we will be able to uncover unresolved mysteries of bio-development.  And at the same time it will be possible to study how mutations caused by changing seasons have created a new species.  Friends, it is clear that the trees from which cuckoos have been made here, similarly trees have also produced coal in Australia.  Hence, it is clear that the two Mahadwip were formerly connected, which later got separated into different parts.  Friends, the palace hills are counted among the oldest hills in the world.  Friends, there is a need to save the fossils present here because they are not only the heritage of the whole world.  Friends, we have to understand their importance otherwise they will become extinct.  Because they are being destroyed by the mining of stones in friends hills.

















 Thanks guys


 Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗















Fossils of metamorphosed leaves into stone
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Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...