नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं । दोस्तों आइए चलते हैं आज की यात्रा पर "मां शारदा" की उस पवित्र पीठ की यात्रा पर जो आज के वर्तमान में पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाके में स्थित है।
दोस्तों आइए चलते हैं 1947 के दशक में जब भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ था।दोस्तों तब उस जमाने में भारतवर्ष के जम्मू कश्मीर का क्षेत्रफल 222236 वर्ग किलोमीटर था । जिसमें से चीन और पाकिस्तान ने मिलकर आधे जम्मू कश्मीर पर अपना कब्जा किया हुआ है और हमारे भारतवर्ष के पास केवल 102387 वर्ग किलोमीटर जम्मू कश्मीर का भूमि खंड शेष बचा हुआ है।
दोस्तों जम्मू कश्मीर का जो भाग आज हमारे पास नहीं है उनमें से गिलगिट , बालटिस्तान , बजारत , चिल्लास , हाजीपीर आदि हिस्से पर पाकिस्तान का सीधा शासन है। एवं मुजफ्फराबाद , मीरपुर , कोटली और छंब आदि इलाके हालांकि स्वायत्त शासन में हैं। परंतु यह इलाके भी पाक के नियंत्रण में है दोस्तों।
दोस्तों पाकिस्तान के नियंत्रण वाले इसी क्षेत्र जम्मू कश्मीर के मुजफ्फराबाद जिले के सीमा के किनारे पवित्र कृष्ण - गंगा नदी बहती है।दोस्तों जानकर आपको आश्चर्य होगा कि कृष्ण- गंगा नदी वही नदी है जिसमें समुद्र मंथन के पश्चात शेष बचे "अमृत" को "असुरों" से छुपा कर रखा गया था। और उसी के बाद स्वयं भगवान ब्रह्मा जी ने कृष्ण - गंगा नदी के किनारे मां शारदा का मंदिर बनाकर उन्हें वहां स्थापित किया था।दोस्तों हमारे वेद पुराण बताते हैं कि जिस दिन से मां शारदा वहां विराजमान हुई उस दिन से ही सारा जम्मू कश्मीर "नमस्ते शारदा देवी कश्मीरपुरवासनी/ त्वोमहंमप्रार्थये नित्यम विदादानम च देही में" कहते हुए उनकी आराधना करता रहा है एवं दोस्तों उन कश्मीरियों पर मां शारदा की ऐसी कृपा हुई थी "अष्टांग योग" और अष्टांग हृदय लिखने वाले वाग्भट वही जन्मे , नीलमत पुराण वही रची गई , चरक संहिता , शिव पुराण , कल्हण की राजतरंगिणी , सारंग देव की संगीत रत्नाकर सब के सब अद्वितीय ग्रंथों की रचना यही की गई थी। दोस्तों उस कश्मीर में जो रामकथा लिखीं गई थी उसी में मंक्केश्वर महादेव का वर्णन सर्वप्रथम स्पष्ट रूप से किया गया था। दोस्तों शैव दार्शनिकों की लंबी परंपरा जम्मू कश्मीर से ही शुरू हुई थी। साथ ही साथ दोस्तों चिकित्सा पद्धति , खगोल शास्त्र , ज्योतिष दर्शन , विधि ,न्याय शास्त्र , पाककला , चित्रकला और भवन शिल्प विधाओ का भी प्रसिद्ध केंद्र था जम्मू कश्मीर क्योंकि उस पर मां शारदा का साक्षात आशीर्वाद प्राप्त था। दोस्तों प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि शारदा पीठ के पास उसने ऐसे ऐसे विद्वान देखें जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती कि कोई इतना भी विद्वान हो सकता है। दोस्तों शारदा पीठ के पास ही एक बहुत बड़ा विद्यापीठ भी था जहां दुनिया भर से विद्यार्थी ज्ञानार्जन करने आते थे।
दोस्तों मां शारदा के उस पवित्र पीठ में न जाने कितने सहस्त्र वर्षों से हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन एक विशाल मेला का आयोजन होता था जहां भारत के कोने कोने से वाग्देवी सरस्वती के उपासक साधना करने आते थे , दोस्तों भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि को शारदा अष्टमी इसलिए कहा जाता था।दोस्तों शारदा तीर्थ श्रीनगर से लगभग 125 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है फिर भी वहां के लोग पैदल मां के दर्शन करने जाया करते थे।
दोस्तों शास्त्रों के अनुसार एक बहुत ही रोचक दंत कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक निम्न जाति के व्यक्ति को भगवान शिव की उपासना से एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। जिसका नाम उस दंपति ने "शांडलि" रखा था।
दोस्तों शांडलि बहुत ही प्रतिभावन था जिससे उनसे जलन भाव रखने के कारण ब्राह्मणों ने उनका यगोपवित संस्कार करने से मना कर दिया था।दोस्तों निराश शांडलि को ऋषि वशिष्ठ ने मां शारदा के दर्शन करने की सलाह दी और उनके सलाह पर जब वे वहां पहुंचे तो मां ने उन्हें दर्शन दिया और उन्हें नाम दिया ऋषि शांडिल्य। दोस्तों जैसा कि आपको पता ही होगा कि आज हिंदुओं के अंदर हर एक जाति में शांडिल्य गोत्र पाया जाता है।
दोस्तों हिंदू धर्म का महिमामंडन करने निकले जगतगुरु शंकराचार्य जब शारदा पीठ पहुंचे तो उन्हें भी मां शारदा ने दर्शन दिए थे और हिंदू धर्म को बचाने का आशीर्वाद दिया था।दोस्तों मां शारदा की कृपा से ही कश्मीर के शासक जैनुल आबेदीन का मन बदल गया था , जब वह उनके दर्शन के लिए वहां गया था। फिर उसने कश्मीर में अपने पिता सिकंदर द्वारा किए गए हर पाप का प्रायश्चित किया था , दोस्तों इतिहास के किताबों में दर्ज हैं कि मां शारदा की उपासना में वो इतना लीन हो जाता था कि उसे दुनिया की कोई खोज खबर नहीं होती थी।
दोस्तों भारत के कई हिस्सों में जब यगोपवित संस्कार होता है तो बटु को कहा जाता है कि तू शारदा पीठ जाकर ज्ञानार्जन कर और फिर सांकेतिक रूप से वो बटुक शारदा पीठ की दिशा में सात कदम आगे बढ़ता है और फिर कुछ समय पश्चात इस आशय से वह सात कदम पीछे आता है कि अब उसकी शिक्षा पूर्ण हो गई है और वो विद्वान बन कर वहां से लौट रहा है। दोस्तों एक समय ऐसा था जब ये सांकेतिक संस्कार एक दिन वास्तविकता में बदलता था क्योंकि वे बटुक शिक्षा ग्रहण करने मां शारदा पीठ ही जाता था। मगर आज दुर्भाग्य से हमारी "मां शारदा" हमारे पास नहीं है और हम उनके पास जाएं ऐसी कोई व्यवस्था भी नहीं है।दोस्तों अब शायद यगोपवित कि यह रस्म सांकेतिक ही रह जाएगी सदा के लिए।
दोस्तों हमें शारदा पीठ की मुक्ति चाहिए हमें शारदा पीठ तक जाना है दोस्तों हमें दुनिया को बताना होगा कि शारदा पीठ हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित एक अद्भुत और अलौकिक सबसे प्राचीन शिक्षा केंद्रों में से एक था। अतः दोस्तों आपसे निवेदन है कि शारदा पीठ की यात्रा पर जरूर जाएं और अपने पूर्वजों के इस अद्भुत धरोहर को अपने नजरों से अवश्य देखें।
धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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English translate
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Hello friends I extend my hearty greetings to all of you mountain leopard Mahendra. Friends, let's go on the journey of that holy backing of "Maa Sharada" which is located in the present day occupied state of Pakistan.
Friends, let's go when India became independent from the British in the 1947s. At that time, the area of Jammu and Kashmir in India was 222236 square kilometers. Out of which China and Pakistan together occupy half of Jammu and Kashmir and our India year only 102387 square kilometers of the remaining land segment of Jammu and Kashmir.
Friends, the part of Jammu and Kashmir which we do not have today, among them Gilgit, Baltistan, Bazaarrat, Chilas, Hajipir etc., is under direct rule of Pakistan. And the areas like Muzaffarabad, Mirpur, Kotli and Chamba etc. are under autonomous governance. But this area is also under the control of Pakistan.
Friends, the holy Krishna-Ganges river flows along the border of Muzaffarabad district of Jammu and Kashmir under the control of Pakistan. Friends, you will be surprised to know that Krishna-Ganga river is the same river in which the "nectar" remaining after the churning of the sea is called "Asuras". "Was kept hidden from. And after that, Lord Brahma himself built a temple of Maa Sarada on the banks of the Krishna-Ganges river and installed them there. Friends, our Ved Purana tells that from the day Maa Sharda was enthroned, the whole of Jammu and Kashmir "Namaste Sharada Devi has been worshiping her by saying "in Kashmir Purvasani / Tvammahamprathyay Nityam Vidadanam Ch Dehi" and friends, Mother Sharada was blessed with such blessings on those Kashmiris "Ashtanga Yoga" and Vagbhat, who wrote Ashtanga heart, was born the same, Neelmat Purana was composed, Charak All the unique texts were composed by Samhita, Shiva Purana, Kalhana's Rajatarangini, Sarang Dev's music, Ratnakar. Friends, Mankeshwar Mahadev was first clearly mentioned in the Ramkatha that was written in Kashmir. Friends, the long tradition of Shaivite philosophers started from Jammu and Kashmir itself. At the same time, friends were also famous centers of medical practice, astronomy, astrology, philosophy, law, jurisprudence, culinary arts, painting and building crafts etc. Jammu Kashmir because it was blessed with the blessings of Mother Sharda. Friends, famous Chinese traveler Xuanzang has written in his travelogue that near the Sharda Peeth he saw such scholars who cannot be imagined that anyone could be so scholar. Friends, there was also a big school near Sharada Peeth where students from all over the world used to come to learn.
Friends, not knowing how many years in the holy bench of Mother Sharada, a huge fair was held every year on the day of Bhadrapad Shukla Paksha Ashtami where worshipers of Vagdevi Saraswati from every corner of India used to come to worship, Friends Ashtami date of Bhadrapad month It was called Sharada Ashtami because the two Sharada shrine is located at a distance of about 125 km from Srinagar, yet the people used to visit the mother on foot.
According to friends scriptures, a very interesting legend is prevalent according to which a low caste person got a son Ratna from the worship of Lord Shiva. The couple was named "Shandali" by that couple.
Friends, Shandali was very talented, due to jealousy of him, the Brahmins refused to perform Yagopavit Sanskar. Friends, frustrated Shandali was advised by sage Vasistha to visit Maa Sharada and on his advice, when he reached there, his mother Gave him darshan and named him sage Shandilya. Friends, as you may be aware that within Hinduism, the Shandilya gotra is found in every caste.
Friends, Jagadguru Shankaracharya, who came out to glorify Hinduism, came to Sharada Peeth when he was also seen by mother Sharada and blessed to save Hinduism. It was only by the grace of Mother Sharada that the ruler of Kashmir, Janul Abedin changed his mind, When he went there to see him. Then he atoned for every sin committed by his father Alexander in Kashmir, friends are recorded in the history books that he used to become so absorbed in the worship of mother Sharda that he had no news of the world.
Friends, in many parts of India, when the Yagopavit ceremony is performed, the Batu is told that you go to Sharda Peeth and enlighten and then symbolically that Batuk moves seven steps towards the Sharada Peetha and then after some time he will It comes seven steps back that now his education is complete and he is returning from there after becoming a scholar. Friends, there was a time when this symbolic rite would one day turn into reality because they used to go to mother Sharada Peeth to get education. But today unfortunately we do not have our "Mother Sharda" and there is no such system for us to go to them. Friends may now rejoice that this ritual will remain symbolic forever.
Friends, we need the liberation of Sharada Peeth We have to go to Sharada Peeth Friends, we must tell the world that Sharada Peeth was one of the most wonderful and supernatural most ancient education centers established by our ancestors. Therefore, friends, you are requested to go on a journey of Sharada Peeth and see this amazing heritage of your ancestors from your eyes.
Thanks guys
Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗
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