Wednesday, May 12, 2021

एक यात्रा प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर उड़ीसा की जो कि विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर का प्रतिरूप ही है कोणार्क का सूर्य मंदिर- बयालिश बांटी , पुरी, उड़ीसा भारत A visit to the ancient Gangeswari temple of Orissa which is located at a distance of 14 km from the world famous Konark Sun Temple. It is believed that the ancient Gangeswari temple is a replica of the Sun Temple of Konark - Baylish Banti, Puri, Orissa India.

Ek yatra khajane ki khoje





 















                        माता महिषासुरमर्दिनी
                 प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर
                 Mother                                     Mahishasuramardini

      Ancient Gangeswari Temple














  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं भारत के उड़ीसा राज्य में स्थित पूरी जिले में मौजूद प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर । दोस्तों माना जाता है कि प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर विश्व प्रसिद्ध कोणार्क के सूर्य मंदिर से पहले बना था।दोस्तों प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर अपने अद्भुत वास्तु कला निर्माण शैली के कारण  अद्वितीय है। तो आइए दोस्तों चलते हैं प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर की यात्रा पर उड़ीसा के पूरी जिले में स्थित एक छोटे से गांव में।











       प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर

         ग्राम- बयालिश बटी 

       जिला -  पूरी , उड़िसा

                भारतवर्ष







 नमस्कार दोस्तों प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर उड़ीसा के पुरी जिले में गोप के करीब गांव बयालिश बटी में मौजूद है। दोस्तों यह प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर भुवनेश्वर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी और पूरी से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
            दोस्तों ऐतिहासिक दस्तावेजों के अध्ययन से पता चलता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 13 वी सदी के आसपास किया गया था। दोस्तों माना जाता है कि उस समय के महाराज गंगेश्वरी की कुलदेवी इस मंदिर में स्थापित हैं। दोस्तों महाराज गंगेश्वरी के नाम पर हैं इस मंदिर का नाम गंगेश्वरी मंदिर पड़ा है।दोस्तों अति प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर कलिंग वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण पेश करता है।
              दोस्तों हाल ही में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है दोस्तों देखरेख के अभाव में जीर्ण - शीर्ण हो चुके यह प्राचीन मंदिर अब भारतीय पुरातत्व विभाग के निगरानी में है।
        दोस्तों इस प्राचीन मंदिर क नींव लेटराइट पत्थरों का बना हुआ है साथ ही मंदिर के निर्माण में बड़े पैमाने पर बलुआ पत्थर का भी उपयोग किया गया है।






















दोस्तों आप यकीन नहीं करोगे यह प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर पिछले 800 वर्षों से लगातार हवा - पानी  एवं अपक्षय और क्षरण के कारण क्षतिग्रस्त हुआ है। लेकिन आज भी यह मंदिर अपने अद्भुत वास्तुकला को संरक्षित किए हुए हैं।
          दोस्तों इस अति प्राचीन गंधेश्वरी देवी मंदिर में चामुंडा देवी ,
अष्टादिकापालक , नायिका , पशुओं के शिकार करते शिकारी , योद्धा एवं सामाजिक दृश्यों के साथ-साथ कुछ काल्पनिक एवं अद्भुत चित्रो को बहुत ही बारीकी से मंदिर के दीवारों पर उकेरा गया है। साथ ही दोस्तों मंदिर के गर्भ गृह में माता महिषमर्दिनी कि चारों भुजाओं में शस्त्र धारण किए हुए प्राचीन मूर्ति स्थापित है।
                               दोस्तों मंदिर के ही दीवारों पर आश्चर्यचकित करने वाली एक विशेष नक्काशीदार मूर्ति बनाई गई है जिसे मुछालिंडा बुद्ध माना जाता है।दोस्तों भगवान बुद्ध की छवि रखने वाले इस मूर्ति को देखकर इतिहासकार आश्चर्यचकित हो जाते हैं लेकिन दोस्तों कुछ विद्वानों का मानना है कि बौद्ध धर्म का तांत्रिक रूप उड़ीसा में ही उत्पन्न हुआ था जो हिंदू तंत्र विद्या के साथ बहुत ही करीबी का समानताएं रखता है।जिस कारण से दोस्तों इस पूरे क्षेत्र को बौद्ध धर्म , हिंदू धर्म और तंत्रवाद की एकता का केंद्र माना जाता है। इसलिए दोस्तों दीवारों पर बने इन अद्भुत मूर्तियों को देखकर आश्चर्य करने वाली बात नहीं है।


















दोस्तों माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य जी ने नौवीं शताब्दी ईस्वी में उड़िसा का दौरा किया था जिसके परिणाम स्वरुप ही 10 वीं शताब्दी ईस्वी में भगवान विष्णु के नौवें  अवतार के रूप में गौतम बुद्ध को स्वीकार किया गया था।
                दोस्तों अक्सर बियालिस बटी के ग्रामीणों द्वारा उल्लेख किया जाता है कि यह क्षेत्र कोणार्क के महान सूर्य मंदिर से संबंधित रहा है।दोस्तों ऐसा कहा जाता है कि कोणार्क सूर्य मंदिर के मुख्य वास्तुकार सिबेई सामंतराय महापात्र इसी गांव के रहने वाले थे। दोस्तों वे यहीं पर कोणार्क सूर्य मंदिर के 1200 शिल्पकारो , वास्तु कारों एवं पर्यवेक्षकों के साथ मिलकर कोणार्क सूर्य मंदिर की योजना को मृत रूप दिया करते थे। दोस्तों साथ ही यह भी बताया जाता है कि पास में ही बहने वाली पत्थरबुआ नदी के रास्ते ही कोणार्क सूर्य मंदिर में उपयोग होने वाले अधिकांश सामग्रियों को ढोया जाता था , लकड़ी के नाव के जरिए।
            दोस्तों प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर के समीप एक बड़ा तालाब मौजूद है जो अब कीचड़ और गाद से भर गया है जिस कारण से पत्थरबुआ नदी का मार्ग अब पूरी तरह से अवरुद्ध हो गया है।दोस्तों यही नदी किसी जमाने में कोणार्क सूर्य मंदिर तक पहुंचने का सुगम जलमार्ग हुआ करता था।जो प्राचीन गंगेश्वर मंदिर से लगभग 14 किलोमीटर दूर कोणार्क के सूर्य मंदिर के लिए एक प्रमुख जलमार्ग के रूप में कार्य करता था।और मंदिर के पास स्थित यह बड़ा सा जलाशय नदी के मुहाने पर स्थित एक घाट की तरह काम करता था ।
            दोस्तों कुछ विद्वानों का मानना है कि कोणार्क का सूर्य मंदिर का निर्माण करने वाले यहां केवल रुके ही नहीं थे बल्कि मंदिर के निर्माण संबंधी सारी योजनाएं उनके द्वारा यहीं पर बनाए जाते थे। कोणार्क के सूर्य मंदिर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इसी गांव में। दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गंगेश्वरी मंदिर को कोणार्क सूर्य मंदिर का अग्रदूत माना जाता है।दोस्तों एक प्रोटोटाइप नक्शा के रूप में जो संभवत बड़े पैमाने पर कोणार्क सूर्य मंदिर के निर्माण से पहले बनाया गया था। क्योंकि दोस्तों दोनों मंदिरों में काफी समानताएं हैं।

       दोस्तों कुछ भी हो यह प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर भारतवर्ष का अनमोल धरोहर है जो आज भी अपने अद्भुत निर्माण शैली का प्रतिनिधित्व कर रही है।








             धन्यवाद दोस्तों

   माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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       English translate
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 Hello friends I heartily greet all of you mountain leopard Mahendra Friends, on today's journey I am taking you to the ancient Gangeswari temple in the entire district located in the state of Orissa, India.  Friends, it is believed that the ancient Gangeswari temple was built before the Sun Temple of the world famous Konark. The two ancient Gangeswari temples are unique due to their amazing architectural art style.  So let's go on a journey to the ancient Gangeswari temple in a small village located in the entire district of Odisha.









 Ancient Gangeswari Temple


 Village - Baylish Butte


 District - Puri, Orissa


 India








 Namaskar Friends, the ancient Gangeswari temple is present in the village Baylish Bati, close to Gop, in the Puri district of Odisha.  Friends, this ancient Gangeswari temple is located at a distance of about 60 km from Bhubaneswar and 35 km from Puri.

 Friends, the study of historical documents shows that this ancient temple was built around the 13th century.  Friends, it is believed that the Kuldevi of the then Maharaja Gangeswari is enshrined in this temple.  Friends, named after Maharaja Gangeswari, the temple is named after the Gangeswari temple. The two ancient Gangeswari temples offer a wonderful example of Kalinga architecture.

 Friends, this ancient temple has been renovated by the Archaeological Department of India recently, this old temple which has been dilapidated due to lack of care, is now under the supervision of the Archaeological Department of India.

 Friends, the foundation of this ancient temple is made of laterite stones as well as sandstone has been used extensively in the construction of the temple.


























 Friends, you will not believe this ancient Gangeswari temple has been damaged due to continuous air-water and weathering and erosion for the last 800 years.  But even today, these temples preserve their amazing architecture.

 Friends, in this very ancient Gandheswari Devi temple, Chamunda Devi,

 Ashtadikapalak, heroine, animal hunting hunter, warrior and social scenes, as well as some imaginary and amazing paintings are very closely engraved on the walls of the temple.  Also, in the sanctum sanctorum of the Friends temple, an ancient idol is installed in the four arms of Mother Mahishmardini, holding arms.

 On the walls of the Friends temple itself, a special carved sculpture that is believed to be the Muchhalinda Buddha has been made. Historians are surprised to see this statue bearing the image of Lord Buddha, but friends believe that some scholars believe that Buddhism  The Tantric form originated in Orissa itself, which bears very close similarities with Hindu Tantra lore. For this reason, friends have considered this entire region to be the center of unity of Buddhism, Hinduism and Tantrism.  So friends, it is not surprising to see these amazing sculptures on the walls.





















 Friends believe that Adi Guru Shankaracharya visited Orissa in the ninth century AD as a result of which Gautama Buddha was accepted as the ninth incarnation of Lord Vishnu in the 10th century AD.

 Friends are often mentioned by the villagers of Bialis Bati that this area is related to the great Sun Temple of Konark. Friends, it is said that Sibei Samantarai Mahapatra, the main architect of Konark Sun Temple, was from this village.  Friends, here, along with 1200 craftsmen, architectural cars and observers of Konark Sun Temple, they used to give the plan of Konark Sun Temple dead.  Friends are also told that most of the materials used in the Konark Sun Temple were carried by wooden boat through the nearby Stonabua River.

 Friends, a large pond exists near the ancient Gangeswari temple, which is now filled with mud and silt, due to which the path of the Stonbua river is now completely blocked.  Which served as a major waterway for the Sun Temple of Konark, about 14 km from the ancient Gangeswar temple. And this large reservoir near the temple acted like a ghat at the mouth of the river.  .

 Friends, some scholars believe that the people who built the Sun Temple of Konark did not stay here only, but all the plans for the construction of the temple were made by them here.  It is in this village situated 14 kilometers from the Sun Temple of Konark.  Friends, you will be surprised to know that the Gangeswari temple is considered to be the precursor to the Konark Sun Temple. The two form a prototype map that was probably built before the construction of the massive Konark Sun Temple.  Because friends there are many similarities between the two temples.


 Whatever be the friends, this ancient Gangeswari temple is a precious heritage of India, which is still representing its amazing construction style.








 Thanks guys


 Mountain Leopard              Mahendra 🧗🧗























               Mountain Leopard 🧗🧗  Mahendra

                                 Ek Yatra  🇮🇳
      












Saturday, May 8, 2021

एक यात्रा रणकपुर के जैन मंदिर की।दोस्तों यह रणकपुर के जैन मंदिर है ।दोस्तों इस मंदिर की भव्यता एवं सुंदरता की जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है दोस्तों आप तस्वीरों में देख सकते हो कि पत्थरों पर इतनी बेहतरीन कलाकारी की गई है कि शायद इतनी सुंदर कलाकारी तो कागज पर भी ना बन सके। दोस्तों यह मंदिर राणा कुंभा के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। दोस्तों इस मंदिर को धरना शाह नाम के जैन ने बनाया था -रणकपुर जिला पाली राजस्थान भारत A visit to the Jain temple of Ranakpur. Friends, this is the Jain temple of Ranakpur. Friends, the magnificence and beauty of this temple is as much as the friends are praised, you can see in the pictures that the stone has such fine artwork that maybe Such beautiful artwork could not be made even on paper. Friends, this temple was built during the reign of Rana Kumbha. Friends, this temple was built by a Jain named Dharna Shah - Ranakpur District Pali Rajasthan India.

Ek yatra khajane ki khoje

















                रणकपुर के प्राचीन जैन मंदिर की विहंगम दृश्य

           A panoramic view of the ancient Jain temple of Ranakpur
















  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं राजस्थान के पाली जिले में अरावली पर्वत की घाटियों  के मध्य स्थित रणकपुर में जैन तीर्थंकर  ऋषभदेव के चतुर्मुखी जैन मंदिर की यात्रा पर। दोस्तों चारों ओर  घने जंगलों से घिरे इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है ।तो आइए दोस्तों चलते हैं रणकपुर के जैन मंदिर की यात्रा पर।









         रणकपुर जैन मंदिर

       जिला -पाली -राजस्थान

               भारतवर्ष








 नमस्कार दोस्तों भारतवर्ष के राजस्थान राज्य में स्थित रणकपुर जैन धर्म के पांच प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। दोस्तों यह स्थल खूबसूरती से तराशे गए प्राचीन जैन मंदिरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। दोस्तों इन मंदिरों का निर्माण 15 वी शतब्दी में महाराजा राणा कुंभा के शासनकाल में किया गया था। दोस्तों महाराजा राणा कुंभा के नाम पर ही इस जगह का नाम रणकपुर पड़ा है। दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यहां के जैन मंदिर प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत धरोहर है। दोस्तों केवल रणकपुर में ही नहीं बल्कि इसके आसपास के क्षेत्रों में भी अनेक प्राचीन मंदिर मौजूद है। दोस्तों सबसे बड़ी बात यह है कि यहां जैन धर्म में आस्था रखने वालों के साथ-साथ वास्तुशिल्प में दिलचस्पी रखने वालों को भी रणकपुर बहुत ही पसंद है।
               दोस्तों रणकपुर का जैन मंदिर का मुख्य मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित चौमुखा मंदिर है।दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह मंदिर चारों दिशाओं में खुलता है दोस्तों प्राचीन ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण सन 1440 में किया गया था। दोस्तों खूबसूरत संगमरमर के पत्थरों से बने इस अद्भुत व  खूबसूरत मंदिर में 29 विशाल कमरे मौजूद हैं। जहां दोस्तों 1444 खंभे लगे हुए हैं।दोस्तों इन खंभों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सभी खंभे एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न है।दोस्तों अद्भुत रूप से मंदिर के पास के गलियारे में बने मंडपों में सभी 24 तीर्थंकरों की तस्वीरें उकेरी गई है।




















      दोस्तों इन सभी मंडपों में शिखर बने हुए हैं।और इन शिखरों के ऊपर घंटियां लगी हुई है। दोस्तों अद्भुत रूप से जब हवाएं चलने लगती है तब इन घंटियों की आवाज पूरे मंदिर परिसर में गूंजने लगती है जिससे यहां का वातावरण शुद्ध एवं पवित्र हो जाती है।
       दोस्तों मंदिर परिसर में ही जैन तीर्थंकर नोमीनाथ  और जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित 2 मंदिर हैं दोस्तो इन मंदिरों की अद्भुत नक्काशी देखकर खजुराहो की याद आ जाती है।
           
       दोस्तों मंदिर परिसर लगभग 40000 वर्ग फीट में फैला है दोस्तों जैसा कि ऐतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि करीब 600 वर्ष पूर्व 1440 ईस्वी में इस मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था जो 50 वर्षों से अधिक समय तक चला था। दोस्तों उस जमाने में इस मंदिर के निर्माण में करीब 7700000 रुपए का खर्च आया था।
         दोस्तों मंदिर में चार कलात्मक प्रवेश द्वार बने हुए हैं दोस्तों साथ ही मंदिर के मुख्य गृह में जैन तीर्थंकर आदिनाथ की संगमरमर से बनी चार विशाल मूर्तियां मौजूद हैं। दोस्तों करीब 72 इंच ऊंची यह मूर्तियां चार अलग-अलग दिशाओं की ओर उन्मुख है। इसी कारण से इस मंदिर को चतुर्मुख मंदिर कहा जाता है। दोस्तों इसके अलावे मंदिर में 76 छोटे-छोटे गुम्बदनुमा पवित्र स्थान व चार बड़े प्रार्थना कक्ष एवं चार बड़े पूजा स्थल मौजूद हैं।दोस्तों ये सभी आश्चर्यजनक रूप से मनुष्यों को जीवन- मृत्यु की 8400000 जीवयोनियो से मुक्ति प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है।
























दोस्तों आप देखोगे कि उस समय के मंदिर के निर्माताओं ने जहां कलात्मक दो मंजिला भवन का निर्माण किया और वही भविष्य में किसी संकट का गहन अनुमान लगाते हुए कई गुप्त तहखाने भी बनाएं। ताकि इन तहखानों में पवित्र मूर्तियों को सुरक्षित रखा जा सके।यानी दोस्तों देखा जाए तो ये तहखाने मंदिर के निर्माताओं के निर्माण संबंधी दूरदर्शिता का परिचय देते हैं।

              दोस्तों साथ ही मंदिर के उत्तर क्षेत्र में रायन पेड़ स्थित है। दोस्तों इसके अलावे संगमरमर के टुकड़े पर भगवान ऋषभदेव के पदचिन्ह मौजूद हैं दोस्तों ये सभी भगवान ऋषभदेव एवं शंत्रुजय की शिक्षाओं को याद दिलाते हैं।
            दोस्तों कुछ भी हो रणकपुर की प्राचीन जैन मंदिर अपनी विशालता एवं भव्यता को लिए हुए आज भी शान से खड़ी है।

  दोस्तों आप रणकपुर की प्राचीन जैन मंदिर की यात्रा वायु मार्ग , रेल मार्ग और सड़क मार्ग के द्वारा कर सकते हैं। 
 
 वायु मार्ग -  नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर है। दिल्ली और मुंबई से यहां के लिए नियमित उड़ानें हैं।

 रेल मार्ग -   दोस्तों निकटतम रेलवे स्टेशन फालना व रानी जिला पाली है ।यहां के लिए सभी प्रमुख शहरों को जाने वाली रेल गाड़ियां उपलब्ध है। 

 सड़क मार्ग -  दोस्तों रणकपुर उदयपुर से केवल 98 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह स्थान देश के प्रमुख शहरों से सड़कों के जरिए जुड़ा हुआ है।











            धन्यवाद दोस्तों

    माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗 






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        English translate
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 Hello friends, I heartily greet all of you mountain-legged Mahendra friends. Today I am taking you on a journey to the Chaturmukhi Jain temple of Jain Tirthankara Rishabhdev in Ranakpur, situated amidst the valleys of Aravalli mountain in Pali district of Rajasthan.  Friends see the grandeur of this temple surrounded by dense forests. So let's go on a visit to the Jain temple of Ranakpur.









 Ranakpur Jain Temple


 District - Pali - Rajasthan


 India



 Namaskar Friends, Ranakpur is one of the five major pilgrimage sites of Jainism located in the Indian state of Rajasthan.  Friends, this place is world famous for beautifully carved ancient Jain temples.  Friends, these temples were built in the 15th century under the reign of Maharaja Rana Kumbha.  Friends, this place is named Ranakpur after the name of Maharaja Rana Kumbha.  Friends, you will be surprised to know that the Jain temple here is a wonderful heritage of ancient Indian architecture.  Friends, many ancient temples exist not only in Ranakpur but also in the surrounding areas.  Friends, the biggest thing is that those who believe in Jainism as well as those who are interested in architecture, like Ranakpur very much.

 Friends, the main temple of Jain temple of Ranakpur is the Chaumukha temple dedicated to the first Jain Tirthankara Adinath. Friends, you will be surprised to know that this temple opens in all four directions. Friends. Ancient historical documents show that this temple was built in 1440.  .  Friends, there are 29 spacious rooms in this wonderful and beautiful temple made of beautiful marble stones.  Where the Friends are mounted 1444 pillars. Friends, the biggest feature of these pillars is that all these pillars are totally different from each other. The friends are amazingly carved pictures of all 24 Tirthankaras in the mandapas built in the corridors near the temple.























 Friends are the pinnacle in all these pavilions, and there are bells above these peaks.  Friends, when the winds start to move amazingly, then the sound of these bells starts echoing throughout the temple premises, which makes the atmosphere here pure and pure.

 There are 2 temples dedicated to Jain Tirthankara Nominath and Jain Tirthankara Parshvanath in the Friends temple complex itself. Friends remember Khajuraho by seeing the amazing carvings of these temples.









 The Friends temple complex is spread over about 40000 sq. Ft. Friends, as historical sources reveal, the construction work of this temple started in 1440 AD about 600 years ago which lasted for more than 50 years.  Friends, at that time the cost of construction of this temple was about 7700000 rupees.

 There are four artistic gateways in the Friends temple. Friends, there are four huge marble statues of Jain Tirthankara Adinath made of marble in the main house of the temple.  Friends, this sculpture about 72 inches high is oriented towards four different directions.  For this reason, this temple is called Chaturmukh Temple.  Friends, in addition to this, there are 76 small domed sanctum and four big prayer halls and four big places of worship in the temple. All these amazingly inspire humans to attain salvation by getting 8400000 lives of life and death.  is.






















 Friends, you will see that the makers of the temple of the time where the artistic two-storey building was built, and in the same way, build a secret basement in anticipation of any future crisis.  So that the holy idols can be kept safe in these cellars. If friends are seen, then these cellars show the foresight of the construction of the temple's builders.


 Friends, as well as the Ryan tree is located in the north area of ​​the temple.  In addition to the friends, the footprints of Lord Rishabhdev are present on the piece of marble. Friends, all these remind the teachings of Lord Rishabhdev and Shantrujay.

 Whatever be the friends, the ancient Jain temple of Ranakpur is still standing today with its grandeur and grandeur.


 Friends, you can visit the ancient Jain temple of Ranakpur by air, rail and road.



  By aeroplane - The nearest airport is Udaipur.  There are regular flights to here from Delhi and Mumbai.


  Rail route - Friends, the nearest railway station is Falna and Rani district Pali. There are trains available to all major cities.


  By road - Friends Ranakpur is located only 98 km from Udaipur, this place is connected by road to major cities of the country.




















        Thanks guys


 Mountain Leopard              Mahendra 🧗🧗



















 Mountain Leopard                  Mahindra 🧗🧗

















Thursday, May 6, 2021

एक यात्रा अद्भुत अलौकिक प्राचीन भविष्य बद्री मंदिर की जो उत्तराखंड हिमालय के ऊंचे शिखरों के बीच घने जंगलों में स्थित ग्राम - सुभाइ में स्थित है - जोशी मठ उत्तराखंड भारत A visit to the amazing supernatural ancient Bhavishya Badri temple located in the village - Subhai in the dense forests amidst the high peaks of the Uttarakhand Himalayas - Joshi Math Uttarakhand India.

Ek yatra khajane ki khoje

































    Hello friends I extend my hearty greetings to all of you guys at Mountain Leopard Mahendra.  Friends, today I am taking you on a journey to the Bhavishya Badri Nath Temple situated on the high peaks of Uttarakhand.










 Ancient Future Badri Temple


 Village- Subhai



 Joshimath, Uttarakhand


 India









 Namaskar Friends There is a statue of "Badri of the future" present in a cave here.  Friends, legend has it that this idol is emerging from the rock present in the cave itself with the passage of time, earlier this rock was flat and straight but now it has faces, but now it has a face-like shape and hands-like texture has emerged.  .  Friends, it is believed that Lord Badrinath will fully appear in this cave in the future when Lord Badrinath is inundated with the temple.


 Friends "Bhavishya Badri" temple is a famous and ancient temple of Hindus.  Friends "Bhavishya Badri" temple is located in village Subhai, 17 km from Joshimath in Uttarakhand state of India, and Friends "Bhavishya Badri" temple is located at an altitude of 2744 meters above sea level.








 Friends, "Bhavishya Badri" temple is situated at the height as well as it is situated amidst the dense forests of the Himalayas.  Due to the height of friends, this temple can be reached only by mountaineering.  Friends, the "Badrinath" temple of the future is located on the ancient pilgrimage road leading to the sacred Kailash Mansarovar mountain on the banks of the Dhauliganga River.  Friends, pilgrims who visited Kailash Mansarovar in ancient times used to spend the night in the caves of the "future Badri" temple. And they all got up early in the morning and started the journey of Kailash Mansarovar only after reciting the worship of "Future Badri Nath".  Used to do


 Friends, you will be surprised to know that "Badrinath of the future" temples are one of the group of 5 Badri temples "Badrinath", Yogyadhyana Badri, Adi Badri and Old Badri and Sapta Badri Shrines.  Friends, it is believed that these temples were built by Adi Guru Shankaracharya.  Because friends are credited to Adi Guru Shankaracharya for the construction of many ancient temples in Uttarakhand region.  The purpose of the construction of these temples by friends Adi Guru Shankaracharya was to spread the propagation of God and Hinduism in every corner and remote part of the country.


 Friends, the stone rock is present near the temple here, friends. Surprisingly, after looking carefully at the stone stone, the figure of God is seen.  Friends, Lord "Badri Vishal" is enshrined here as "Shaligram" idol.











 According to the Friends legend, when the path of Badrinath Dham will be blocked and inaccessible after meeting the male and Narayan mountains present here at the end of the Kali-yuga, then Lord Badrinath will offer prayers to the devotees in this ancient and famous "future Badri" temple.  Friends, instead of the Badrinath temple, worship of Lord Badrinath will be recited in this ancient "future Badri" temple. Friends, you will be surprised to know that in the "future Badri" temple worshiped the idol of Lord "Narasimha", the incarnation of "Lord Vishnu".  She goes.



 "The Path to Reach the Badri Nath Temple of the Future".


 Friends, all of you can go to "Saldhar" market, about 11 km from Joshimath by "Motor vehicle of the future", Joshimath, and further the journey to the temple is completed by walking and trekking about 6 kilometers.  A little inaccessible and difficult but when you reach the temple, it gives a strange peace of mind.


 "The best time to visit the temple"


 The best time to visit "Bhavishya Badri" is from March to May and September to November as the monsoon and winter is not the ideal season to visit the "Bhavishya Badri" temple.  The mind is fascinated. And on the other side the quadrangular idol of Lord Vishnu is emerging naturally on the rock.  Friends, the idol of "Bhavishya Badri" is going on increasing year by year.


 Friends, the date of the opening of the temple of "Badrinath" temple is also opened on the same date. The door of the temple of "Bhavishya Badri" is opened. That is, the door of the temple is opened for pilgrims at 4:30 am on May 15 every year.  is.










 Thanks guys


 Mountain Leopard               Mahendra 🧗🧗






































    नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं उत्तराखंड के ऊंचे शिखरों पर स्थित भविष्य बद्री नाथ मंदिर की यात्रा पर। 










  प्राचीन भविष्य बद्री मंदिर

           ग्राम-  सुभाइ 
   
        जोशीमठ , उत्तराखंड

                भारतवर्ष









 
 नमस्कार दोस्तों  यहां मौजूद एक गुफा में मौजूद हैं "भविष्य के बद्री" की मूर्ति। दोस्तों किवदंती है कि यह मूर्ति गुफा में मौजूद चट्टान से अपने आप समय बीतने के साथ उभरकर सामने आ रही है पहले यह चट्टान सपाट व सीधी थी लेकिन अब इसमें चेहरे , लेकिन अब इसमें चेहरे जैसी आकृति व हाथों जैसी बनावट उभर कर सामने आ चुकी है। दोस्तों माना जाता है कि जब भगवान बद्रीनाथ मंदिर से अंतर्ध्यान हो जाएंगे तब भविष्य में इसी गुफा में भगवान बद्रीनाथ पूर्ण रूप से प्रकट होंगे।

         दोस्तों "भविष्य बद्री" मंदिर हिंदुओं का एक प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर है । दोस्तों "भविष्य बद्री" मंदिर भारतवर्ष के उत्तराखंड राज्य के जोशीमठ से 17 किलोमीटर की दूरी पर गांव सुभाई में स्थित है।साथ ही दोस्तों "भविष्य बद्री" मंदिर समुद्र तल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।













दोस्तों "भविष्य बद्री" मंदिर ऊंचाई पर होने के साथ-साथ हिमालय के घने जंगलों के बीच स्थित है‌। दोस्तों ऊंचाई पर होने के कारण इस मंदिर तक पर्वतारोहण करके ही पहुंचा जा सकता है। दोस्तों भविष्य के "बद्रीनाथ" मंदिर धौलीगंगा नदी के किनारे पवित्र कैलाश मानसरोवर पर्वत की ओर  जाने वाले प्राचीन तीर्थ मार्ग पर स्थित है। दोस्तों प्राचीन समय में कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले तीर्थयात्री "भविष्य के बद्री" मंदिर के गुफाओं में रात्रि विश्राम किया करते थे ।एवं वे सभी सुबह सुबह उठकर "भविष्य के बद्री नाथ" की पूजा पाठ करने के बाद ही कैलाश मानसरोवर की यात्रा शुरू करते थे।

         दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि "भविष्य के बद्रीनाथ" मंदिर 5 बद्री मंदिरों के समूह "बद्रीनाथ" , योग्यध्यान बद्री, आदि बद्री एवं वृद्ध बद्री व सप्त बद्री तीर्थों में से एक हैं। दोस्तों ऐसा माना जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य जी ने किया था। क्योंकि दोस्तों उत्तराखंड क्षेत्र में कई प्राचीन मंदिरों के निर्माण के लिए आदि गुरु शंकराचार्य जी को ही श्रेय दिया जाता है। दोस्तों आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा इन मंदिरों के निर्माण का उद्देश्य देश के हर कोने  एवं दूरदराज हिस्से में भगवान एवं हिंदू धर्म का प्रचार प्रसार करना था।

          दोस्तों यहां पर मंदिर के पास ही पाषाण की शिला मौजूद है दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से इस     पाषाण की शिला को ध्यान से देखने पर भगवान की आकृति नजर आती है। दोस्तों यहां पर भगवान "बद्री विशाल" "शालिग्राम" मूर्ति के रूप में विराजमान है।







दोस्तों पौराणिक कथा के अनुसार जब कलयुग के अंत में यहां मौजूद नर और नारायण पर्वत के आपस में मिलने पर बद्रीनाथ धाम का रास्ता अवरुद्ध व दुर्गम हो जाएगा तब भगवान बद्रीनाथ इसी प्राचीन व प्रसिद्ध "भविष्य के बद्री" मंदिर में श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे।यानी दोस्तों बद्रीनाथ मंदिर के बजाय इस प्राचीन "भविष्य के बद्री" मंदिर में भगवान बद्रीनाथ की पूजा पाठ की जाएगी ।दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि "भविष्य के बद्री" मंदिर में "भगवान विष्णु" के अवतार भगवान "नरसिंह" की मूर्ति की पूजा की जाती है।
 
 "भविष्य के बद्री नाथ मंदिर तक पहुंचने की मार्ग।"

 दोस्तों आप सभी "भविष्य के बद्री मंदिर" , मोटर वाहन यानी कार के द्वारा जोशीमठ से लगभग 11 किलोमीटर दूर "सलधर" बाजार तक जा सकते हैं और आगे मंदिर तक की यात्रा लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पैदल व ट्रेकिंग के द्वारा पूरा किया जाता हैजो थोड़ा दुर्गम और कठिन है लेकिन जब आप मंदिर तक पहुंच जाते हो तो मन को एक अजीब सी शांति प्रदान होती है।

" मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय"

 दोस्तों "भविष्य की बद्री" जाने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई और सितंबर से नवंबर है  क्योंकि दोस्तों मानसून और सर्दियों में "भविष्य बद्री" मंदिर की यात्रा के लिए आदर्श मौसम नहीं है दोस्तों भविष्य बद्री धाम अपनी विशाल प्राकृतिक सुंदरता के कारण भक्तों के मन को मोह लेती है।और दूसरी तरफ भगवान विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति  चट्टान पर प्राकृतिक रूप से उभर रही है। दोस्तों अलौकिक रूप से "भविष्य बद्री" की मूर्ति साल दर साल बढ़ती ही जा रही है। 

      दोस्तों जिस तिथि को "बद्रीनाथ" मंदिर का कपाट खुलता है , उसी तिथि को "भविष्य बद्री" मंदिर की भी कपाट खोली जाती है।यानी दोस्तों प्रत्येक वर्ष 15 मई को सुबह 4:30 पर तीर्थ यात्रियों के लिए मंदिर का कपाट खोल दिया जाता है।










         धन्यवाद दोस्तों

  माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗

































Ek yatra khajane ki khoje me

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          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...