Monday, January 4, 2021

भाग दो- माता भद्रकाली मंदिर भदुली ग्राम इटखोरी प्रखंड चतरा झारखण्ड भारत वर्ष। Part Two- Mata Bhadrakali Temple Bhaduli Village Itkhori Block Chatra Jharkhand India Year.

                            सहस्त्र लिंगम  
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Ek yatra khajane ki khoje

                


        माता भद्रकाली मंदिर

 नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों जैसा कि आप लोगों ने पिछले अध्याय में पढ़ा माता भद्रकाली मंदिर के ऐतिहासिकता और प्राचीनता के बारे में जो कि अपने आप में अद्भुत और अलौकिक है जिसके बारे में कुछ भी वर्णन करना नामुमकिन है  फिर भी दोस्तो मेरे पास कुछ और भी जानकारी है माता भद्रकाली मंदिर परिसर के संबंध में जिसे मैं वर्णन कर रहा हूं।
  कुटेश्वर स्थान का तालाब -   सहस्र बुद्ध  स्तूप से तीन सौ फीट की दूरी पर एक तालाब हैं। जैसा कि दोस्तों मेरी जानकारी के अनुसार सन् 1978-79 में हस्त मानव मजदूरी योजना के अंतर्गत इस तालाब की  सफाई हुई थी , जिसमें अनेक प्रकार की प्राचीन वस्तुएं जैसे कि लाठी रहित भाले , लोहे की सिक्कड़ , तलवार , टांगी आदि लौह अस्त्र निकालें गए थे। जिनकी 25 है जबकि दो मोटे  सिक्कड़ भी पाए गए थे । लगता है कि  राजप्रासाद की चारदीवारी में भाले के समान तीक्ष्ण लौह अस्त्र का प्रयोग किया गया था। दोस्तों यह स्थल पुरातत्त्वविदों की बाट जोह रहा है ताकि इस स्थल का सही तरीके से पुरातात्विक उत्खनन किया जा सके। 
       
 शीतलनाथ के चरण - चिन्ह-   माता भद्रकाली के मुख्य मंदिर से 450 फीट की दूरी पर पश्चिम में एक पत्थर के टुकड़े पर एक जोड़ा चरण-चिन्ह है ।यह चरण चिन्ह जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर शीतल नाथ का है , जिनका काल 10 वी सदी ईसा पूर्व था । दोस्तों जैन साहित्य ' भदुली' को शीतला स्वामी के जन्म स्थान के रूप में  निरुपित करता है । आज भी जैन समुदाय मां भद्रकाली को  भदुली माता ही कहकर पुकारता है ।
     
                 दोस्तों यही से एक मंजूषा में ताम्र पत्र भी मिला था , जिसपर अंकित था    'शीतलनाथ '  इसमें जैन मंत्र भी उल्लेखित थे। दोस्तों ताम्रपत्र पर उल्लिखित लेख जब पढ़ लिया जाएगा तब तथ्य और तिथि पर विशेष प्रकाश पड़ेगा। दोस्तों यह ताम्रपत्र अभी मंदिर परिसर में नहीं है , बल्कि किसी षंडयंत्र का शिकार हो गया है यानि चोरी हो गया है , यदि उसे वापस कर दिया जाता है , तो भक्त जन और इतिहासकार उस सज्जन के ऋणी रहेंगे , जिनके घर की शोभा यह ताम्रपत्र बढ़ा रहा है।
 शाही वन पोखर ( रानी पोखर)-  दोस्तों मुख्य मंदिर से पूरब और सहस्त्र बुद्ध स्तूप से 300 फीट की दूरी पर मनोहारी बगीचा से सटे पूरब दिशा में राजा का वन पोखर है। जो एक रहस्यमई सुरंग द्वारा महाने नदी से जुड़ा हुआ है। जिससे होकर महाराज और महारानी पोखर में स्नान करने आया करते थे। दोस्तों शाही सरंक्षण में इस पोखर में विभिन्न प्रकार के कमल पुष्प उपजाए जाते थे जो राजा द्वारा स्नान के पश्चात अष्टभुजी देवी दुर्गा माता को पूजा अर्चना कर अर्पित किए जाते थे। कहा जाता है कि महाराज के द्वारा 108 कमल पुष्प प्रतिदिन मां को अर्पित किए जाते थे। दोस्तों यह वन पोखर 500 गुने 300 फीट में फैला हुआ है जो जीर्णोद्धार हेतु शोधकर्ताओं एवं सरकार की ओर देख रहा है।

 करुणामयी मां या कनुनिया माई का मंदिर-   वन पोखर से लगभग 300 फीट उत्तर स्थित करुणामई मां का मंदिर है , जिसे साधारण बोलचाल की भाषा में कनुनिया  माई का मंदिर भी कहा जाता है। यह एक सिद्ध तांत्रिक पीठ है , जहां एक प्रस्तर के नीचे शिवशक्ति या शून्य ओंकार शक्ति है।  शिव के बाएं सिद्धि , दाहिनी ओर रिद्धि  , उसके ऊपर शिव शक्ति का वरदहस्त , बाएं अर्धचंद्र  , अदाएं पूर्ण चंद्र और सबसे ऊपर स्थित अमृत कलश निखिल ब्रह्मांड की सकारात्मक व्याख्या है।

  बौद्ध देवी तारा - दोस्तों सन् 1917 में एक.एफ.लिस्टर द्वारा रचित तथा पी.सी.राय द्वारा परिवर्द्धित 1957 ई.मे हजारीबाग जिला गैजेटियर में ऐसा उल्लेख है कि यहां पर अनेक बौद्ध देवी तारा की प्रतिमाएं हैं किंतु दु:खद आश्चर्य है कि एक भी देवी तारा की प्रतिमा अब यहां पर उपलब्ध नहीं है। दोस्तों मां भद्रकाली मंदिर परिसर के पास 25 एकड़ भूमि पर रामकृष्ण मिशन स्कूल की स्थापना की गई है। साथ ही साथ मंदिर परिसर में शादी विवाह कराने के लिए भी उचित व्यवस्था जिला प्रशासन के द्वारा की गईं हैं।।
 डोहरा से प्राप्त कलाकृतियां -  ईटाखोरी प्रखंड का सीमावर्ती प्रखंड चतरा के भोकतमा पंचायत में डोहरा  गांव के निकटवर्ती जंगल में जब 1993 ई. में खुदाई की गई तो जमीन में दबे ऐसे पत्थर प्राप्त हुएं जिनपर विभिन्न देवी देवताओं व अन्य प्रकार की आकृतियां बनी हुई पाई गई।
                 दोस्तों पत्थरों पर खुद ही हुई इन कलात्मक मूर्तियों में भगवान राम तीर धनुष लिए हुए , लक्ष्मण और भरत ढाल तलवार और चक्र लिए हुए , एवं देवी राधिका दही लेकर इतराती हुई मुद्रा में है , भगवान शंकर त्रिशूल  ,डमरु और शंख लिए हुए तपस्या की मुद्रा में हैं। साथ ही साथ अन्य कलाकृतियों में हाथी , मछली , कलश तथा घड़ा व बछड़ों को दूध पिलाती हुई गाय है एवं अन्य पत्थरों पर स्तंभ , चौखट - दरवाजे की कलात्मक आकृतियां बनी हुई है।
                                 इस तरह की कलाकृतियां इटखोरी स्थित भद्रकाली मंदिर परिसर में खुदाई के दौरान पाई गई थी दोस्तों दोनों की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है ।संभवत उस जमाने में डोहरा जंगल और भद्रकाली मंदिर में कुछ संबंध रहा होगा। दोस्तों ऐसा लगता है की डोहरा जंगल में जिन पत्थरों में कलाकृतियां उत्क्रीण पाई गई है , उसी प्रकार के पत्थर भद्रकाली मंदिर परिसर में खुदाई के दरमियान मिले थे , माता भद्रकाली  की मूर्ति 9 वी शताब्दी के मध्य में निर्मित बताई जाती है। आश्चर्य की बात है कि दोनों स्थलों के पत्थर एक समान है इसलिए यह कलाकृतियां भी उसी काल की लगती है। उस काल में डोहरा वह भद्रकाली क्षेत्र मगध राजधानी के क्षेत्र में ही था । दोस्तों संभावना व्यक्त की जा रही है कि यह स्थल किसी राजा का किला या गढ़ होगा या फिर कोई शक्ति पीठ। दोस्तों खुदाई स्थल के पूरब में एक नदी भी है जिसकी दूरी 100 गज है , दोस्तों पुराणों के अनुसार जहां - जहां धार्मिक महत्व के स्थान हैं वहां- वहां से नदी गुजरती है।
        
          दोस्तों खुदाई स्थल  के लिए सुलभ रास्ता  , अंटा मोड़ से दो तीन किलोमीटर दक्षिण की ओर पक्की सड़क है फिर  चार किलोमीटर तक जंगली रास्ता तय करके वहां पहुंचना होता है। 

 महाने नदी का दह -  माता भद्रकाली मंदिर से 1 से 2 किलोमीटर की दूरी पर महाने नदी के किनारे एक 'दह' पहाड़ियों और जंगलों से घिरा है जिसकी प्राकृतिक तथा नैसर्गिक सुषमा अपने आप में अनुपम है यहां झुंड के झुंड लोग आनंद उठाने के लिए आते हैं एवं कार्तिक पूर्णिमा के दिन विशुआ  के अवसर पर यहां एक मेला लग जाता है। लोग स्नान एवं धूप सेवन का आनंद लेते हैं एवं मेले का लुफ्त उठाते हैं। 

 कुंदा का ऐतिहासिक किला -  प्रतापपुर प्रखंड मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर दक्षिण में कुंदा गांव में राजा का ऐतिहासिक किला आज भी अपनी पूरी मजबूती से खड़ा है । साक्ष्यों के आधार पर कहा जाता है कि इस भव्य किले का निर्माण 17वीं शताब्दी में हुआ था।

 कुंदा गुफा -  दोस्तों कुंदा के ऐतिहासिक किले से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर कुंदा गुफा मौजूद है जो प्राचीन काल की उन्नत तकनीक का परिचायक है। किले के दक्षिणी भाग से एक संकरी गली गुफा को किले से जोड़ती है एवं एक छिछली धारा गुफा के आधार को पकड़ती हुई उतरती है। दोस्तों पहाड़ी के निचले भाग से कुछ ऊपर पहाड़ी के अंदर ही यह गुफा है गुफा का प्रवेश द्वार इतना संकरा है कि कोई व्यक्ति बिना लेटे इसमें प्रवेश नहीं कर सकता है और गुफा के द्वार से प्रवेश करते हैं एक बड़ा सा हाल सामने मिलता है हॉल की ऊंचाई इतनी है कि कोई व्यक्ति आसानी से खड़ा रह सकता है इस हॉल का का उपयोग पर्यटक विश्राम के लिए करते हैं।
                   हॉल का संबंध दो कमरों से है जो आपस में एक दूसरे से जुड़े हैं दोस्तों एक कमरे में विशाल शिवलिंग है। यहां के स्थानीय लोगों का कथन है कि दूसरे कमरे में कोई 100 वर्षीय वृद्ध साधु रहते थे जो कहीं चले गए हैं। दोस्तों इस गुफा की सबसे विशिष्ट और उल्लेखनीय बात यह है कि बिना रोशनी के शिवलिंग वाले कमरे में सदैव प्रकाश रहता है जबकि केंद्रीय हॉल में धुप्प अंधेरा रहता है जबकि शिवलिंग कक्ष में हमेशा प्रकाश विद्यमान रहता है। 


                   धन्यवाद दोस्तों

                माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗
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                    English translate
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                      Baudh stup
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Mata Bhadrakali Temple


 Hello friends, I would like to extend my heartfelt greetings to you guys, as you read in the last chapter, about the historicity and antiquity of the Mata Bhadrakali Temple which itself is amazing and supernatural about which it is impossible to describe anything.  Still friends, I have some more information regarding the Mata Bhadrakali temple complex which I am describing.

 Pond of Kuteshwar place - Sahasra is a pond three hundred feet from Buddha Stupa.  As per my knowledge, this pond was cleaned in 1978-79 under Hast Manav Wage Yojana, in which many types of antiques such as lathiless spears, iron coins, swords, legs etc. were removed.  .  Whose 25 are while two thick coins were also found.  It seems that sharp iron weapon was used like spear in the boundary wall of Rajprasad.  Friends, this site is waiting for archaeologists so that the archaeological excavation of this site can be done properly.



 Phase-insignia of Shitalnath- 450 feet from the main temple of Mata Bhadrakali is a paired foot-sign on a stone piece in the west.  Was the former.  Friends refer to the Jain literature 'Bhaduli' as the birth place of Sheetla Swamy.  Even today, the Jain community calls Mother Bhadrakali as Bhaduli Mother.



 Friends, a copper letter was also found in a manusha from which Jain mantra was also mentioned in it.  Friends, when the article mentioned on the copperplate will be read, then the fact and date will be special light.  Friends, this copperplate is not currently in the temple premises, but has fallen victim to a conspiracy, ie it has been stolen, if it is returned, the devout people and historians will be indebted to the gentleman, whose house adorned this copper plate.  Used to be.

 Shahi Van Pokhar (Rani Pokhar) - East of Friends main temple and 300 feet away from Sahastra Buddha Stupa is Raja forest Pokhar in the east direction adjoining the picturesque garden.  Which is connected to the Mahane River by a mysterious tunnel.  Through which Maharaj and Maharani used to come to bathe in Pokhar.  In the royal preservation, various types of lotus flowers were made in this pokhar which were offered by the king after bathing and offered obeisance to Ashtabhuji Devi Durga Mata.  It is said that 108 lotus flowers were offered daily by Maharaj to the mother.  Friends, this forest puddle is spread over 500 times 300 feet, which is looking towards the researchers and the government for renovation.

 Temple of Karunamayi Maa or Kanuniya Mai - Situated about 300 feet north of Van Pokhar is the temple of Karunamai Maa, also colloquially known as Kanuniya Mai's Temple.  It is a Siddha Tantric Peetha, where there is Shivshakti or zero Omkar Shakti under a stone.  Shiva's left Siddhi, Riddhi on the right, Shiva's power over him, the left half moon, Ada Purna Chandra and the nectar Kalash on the top are positive interpretations of Nikhil universe.


 Buddhist Goddess Tara - Friends, in 1917 AD Hazaribagh District Gadgetier, written by A. F. Lister and augmented by PC Rai, mentions that there are many statues of Buddhist Goddess Tara here but sad  That a single goddess Tara's statue is no longer available here.  Friends, Ramakrishna Mission School has been established on 25 acres of land near the premises of Maa Bhadrakali Temple.  At the same time, proper arrangements have been made by the district administration for getting married in the temple premises.


 Artifacts received from Dohra - When the excavation was done in 1993 AD in the forest adjacent to the village of Dohra in Bhoktama Panchayat of Chatra, the border block of Itakhori block, such stones were found buried in the ground on which various deities and other types of figures were found to be intact.  .

 In these artistic idols on the stones themselves, Lord Ram carried arrows, bow, Lakshmana and Bharata carried a sword and chakra, and Goddess Radhika is in a moving pose with curd, Lord Shankar trishul, damru and conch with austerity  Are in  At the same time, among other artifacts are elephants, fish, urns, and cows feeding the pot and calves, and on other stones, the artistic motifs of pillars, door-doors remain.
 Such artifacts were found during excavations at the Bhadrakali temple complex at Itkhori. The distance of the two friends is about 35 kilometers. Probably there was some connection between the Dohra forest and the Bhadrakali temple at that time.  Friends, it seems that the stones in which the artifacts have been found in the Dohra forest were found during excavation in the Bhadrakali temple complex, the idol of Mata Bhadrakali is said to be built in the middle of the 9th century.  Surprisingly, the stones of both the sites are the same, so these artifacts also appear to be of the same period.  In that period, Dohra was in the area of ​​the capital of Magadha, Bhadrakali region.  Friends, chances are being expressed that this place will be a fort or stronghold of a king or a Shakti Peeth.  To the east of the Friends excavation site is a river which is 100 yards away, according to the Friends Puranas - where there are places of religious importance - the river passes from there.


 Friends, the accessible road to the excavation site is two to three kilometers south of Anta Mor, a paved road and then a four-kilometer wild path has to be reached there.


 The river Mahane - 1 to 2 kilometers from Mata Bhadrakali temple is surrounded by a 'fire' hills and forests on the banks of river Mahane whose natural and scenic Sushma is unique in its own right, here flocks of herds come to enjoy  And on the occasion of Kartik Purnima, a fair is organized here on the occasion of Vishua.  People enjoy bathing and sunshine and enjoy the fair.



 Historical Fort of Kunda - Raja's historical fort in Kunda village, about 14 km south of Pratappur block headquarters, still stands in its full strength.  Based on the evidence, this grand fort is said to have been built in the 17th century.


 Kunda Cave - Friends, Kunda Cave is present about 1 kilometer from the historical fort of Kunda, which reflects the advanced technology of ancient times.  A narrow lane from the southern part of the fort connects the cave with the fort and a shallow stream descends holding the base of the cave.  Friends, this cave is inside the hill, some above the bottom of the hill, the entrance of the cave is so narrow that no person can enter it without lying down and when entering from the entrance of the cave, a big hall is found in front of the hall.  The height is so that one can easily stand, this hall is used by tourists for relaxation.
 The hall is related to two rooms which are connected to each other. Friends, there is a huge Shivling in one room.  The locals here state that in the second room lived some 100-year-old monks who have gone somewhere.  Friends, the most distinctive and remarkable thing of this cave is that the lightless Shivling room always has light, while the central hall has a bluish darkness while the Shivlinga room always has light.

                  
              Sheetalnath Mandir
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 Thanks guys


 Mountain Leopard Mahendra 🧗

 
        

               Ancient artefact
                 In museum
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Sunday, January 3, 2021

माता भद्रकाली मंदिर या भदुली माता मंदिर - भदुली ग्राम , ईटखोरी ,चतरा जिला , झारखण्ड भारत Mata Bhadrakali Temple or Bhaduli Mata Temple - Bhaduli Village, Itkhori, Chatra District, Jharkhand India

Ek yatra khajane ki khoje

                               

   मां भद्रकाली मंदिर या भदुली माता मंदिर -  भदुली ग्राम , इटखोरी जिला चतरा , झारखंड भारत वर्ष।
  
नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा  आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको झारखंड के एक और रमणीक और ऐतिहासिक माता के मंदिर जिसे हम सभी मां भद्रकाली या भदुली माता के नाम से जानते हैं की यात्रा पर लेकर चल रहा हूं। जो अपने ऐतिहासिकता और प्राचीनता के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
                               दोस्तों तो आइए चलते हैं माता भद्रकाली की यात्रा पर दोस्तों चतरा जिले के इटखोरी प्रखंड मुख्यालय से डेढ़ किलोमीटर दूर पूरब में भदुली ग्राम में स्थित है माता भद्रकाली की मंदिर। दोस्तों या चतरा चौपारण मार्ग पर अवस्थित है चतरा जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर पूरब तथा चौपारण से 16 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में महानद और बक्सा नदी के संगम पर स्थित माता भद्रकाली धर्म  , सहिष्णुता और धार्मिक  सहअस्तित्व का प्रतीक है यह स्थान बक्सा नदी से तीन ओर से घिरा हुआ अंग्रेजी अक्षर 'यू' के आकार का है।
 दोस्तों आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह कितना रमणीक और ऐतिहासिक स्थल है कि यहां पर 1993 में ' मां भद्रकाली '  नामक वृत्तचित्र की शूटिंग भी यहां पर की गई थी।
 सबसे बड़ी बात है दोस्तों माता भद्रकाली मंदिर परिसर हरे-भरे जंगलों , झाड़ियों , झरनों एवं नदियों के मध्य स्थित होने के कारण और गया के निकट , मगध का एक मनमोहक आकर्षक , एकांत एवं शांत वातावरण में अवस्थित साधना के लिए साधकों एवं भक्तों को आकर्षित करता रहा है एवं यह भारत की प्राचीन , संस्कृतिक एवं धार्मिक धरोहर है। यह हिंदू , वैष्णव ,शैव , जैन और बौद्ध धर्म का संगम स्थल है। 

 नामकरण -   दोस्तों ईटखोरी का नामकरण बौद्ध काल से संबंधित है जैसा कि दोस्तों माना जाता है कि ईटखोरी का नाम पूर्व में ' इतखोई' था। ऐसी मान्यता है एवं किवदंती है कि यहां एकांत में अरण्य में जब सिद्धार्थ यानी गौतमबुद्ध अपनी निर्बाध एवं अटूट साधना में लीन थे तब उनकी मौसी , विमाता प्रजावति उन्हें वापस कपिलवस्तु ले जाने के लिए आईं थीं , किंतु जब तथागत का ध्यान मौसी के आगमन से भी नहीं टूटा तो पुत्र के लौटने की आशा त्यागकर प्रजावति को लगा कि उन्होंने अपना पुत्र रत्न यहां खो दिया है अतः उनके मुख से अनायास ही निकल पड़ 'इतखोई' अर्थात यही खोई । उसी समय से यह जगह इतखोई कहलाया , जो कालान्तर में ईटखोरी कहलाया और आज भी इसी नाम से प्रसिद्ध हैं।
              दोस्तों दूसरी मान्यता यह है कि इटखोरी शांति का पर्याय है क्योंकि इसका अर्थ होता है शांति इस क्षेत्र में 'खोरी' संकरी गली या छोटे रास्ते को कहा जाता है। ईट वास्तव में ईट के लिए व्यवह्रत होता था अर्थात  इट का रास्ता अर्थात पक्का रास्ता जो यहां के राजप्रासाद एवं सुंदर नगर होने का प्रमाण है और यहां के अवशेष इसके मूक साक्षी हैं। 
  इसी प्रकार दोस्तों ईटखोरी पाली भाषा के 'इतलखोई' का अपभ्रंश माना जाता है। स्वयं माता भद्रकाली की प्रतिमा भी पाल युगीन दिखाई पड़ती है। जाने-माने इतिहासकार डॉ ग्रियर्सन ने भी इसकी पुष्टि की है। दोस्तों काल की झंझावात  को पार करता हुआ ईतखोई अथवा ईतलखोई आज ईटखोरी के नाम से भी जाना जाता है। 
  दोस्तों चुकी मंदिर का परिवेश एक नदी भदुली के किनारे है इसलिए इसे माता भदुली भी कहा जाता है। जैन साहित्य में भदुली को 10 वें तीर्थंकर सितला स्वामी का जन्म स्थान बताया गया है। दोस्तों भदुली , भद्रकाली का अपभ्रंश है अभी भी जैन धर्मावलंबी माता भद्रकाली को भदुली माता कहते हैं। 
 
  दोस्तों  ई.एफ . लिस्टर जो कि हजारीबाग के तत्कालीन आयुक्त थे 1917 ईस्वी में , हजारीबाग जिले के गजेटियर का संकलन एवं संपादन किया। उन्होंने इस क्षेत्र को भदौली लिखा। अतः इस प्रकार भद्रकाली का अपभ्रंश भदुली हुआ और भदुली  को अंग्रेजी में उच्चारण की गड़बड़ी के कारण भदौली कहा गया। दोस्तों वास्तव में यह देखा जाए तो भद्रकाली ही  है।
 
 मुख्य मंदिर -   मुख्य मंदिर के गर्भगृह की लंबाई 14 फीट एवं चौड़ाई 12 फीट है जिसमें मां भद्रकाली की प्रतिमा स्थापित है।दोस्तों सन् 1968 तक यहां पर मां भद्रकाली एवं अष्टभुजी देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित थी किंतु 1968 में दोनों प्रतिमाओं की चोरी हो गई थी। बहुत ही प्रयास करने के बाद दोनों में से एक माता भद्रकाली की मूर्ति , कोलकाता से वापस लाई गई किंतु अष्टभुजी देवी दुर्गा की प्रतिमा , वापस नहीं लाई जा सकी।
       दोस्तों मां भद्रकाली की सौम्य प्रतिमा मंगला गौरी के रूप में है। मां भद्रकाली की प्रतिमा गोमेद पत्थर या अष्ट धातुओं से निर्मित उच्च कोटि की कला का नमूना है जिस पर समय का अब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ा है यह प्रतिमा लगभग 6:30 फीट ऊंची , ढाई फीट चौड़ी तथा 30 मन वजन की बताई जाती है जो अपने आप में एक अनूठी प्रतिमा है और भारत की अनुपम धरोहर भी है। 
 दोस्तों मुख्य मंदिर के बाहर चारों कोनों पर गौतम बुध की चार छोटी-छोटी प्रतिमाएं हैं , जो ध्यान मुद्रा में है उत्खनन से प्राप्त इन मूर्तियों को यहां पर प्रतिष्ठित कर दिया गया है।

 दोस्तों इसी प्रकार परिसर से खुदाई के दौरान 417 प्रतिमाएं एवं अन्य वस्तुएं प्राप्त हुई थी , जिन्हें जिला परिषद के विश्राम गृह में नवनिर्मित म्यूजियम में रखा गया है।

 दोस्तों मंदिर में कुल मिलाकर 24 प्रतिमाएं हैं जिनमें गौरी , शंकर , विष्णु , लक्ष्मी , सरस्वती , दुर्गा , गणेश , हनुमान , सूर्य देव आदि को पहचाना जा सकता है। साथ ही कुछ गन्धर्व कन्याओं की मूर्तियों तथा रिद्धि एवं सिद्धि की भी पहचान की जा सकती है। 

       मुख्य प्रतिमा की बाईं और  दाईं ओर ध्यान मुद्रा में लीन दूसरी प्रतिमाएं यह बताती है कि कोई राजकुमारी अपने साथियों एवं सुसज्जित घोड़े पर सवार होकर मां भद्रकाली की आराधना के लिए पधारी थी , प्रतिमा के दोनों ओर मां भद्रकाली का वाहन 'सिंह' सिंहनाद करता हुआ छलांग लगा रहा है। 
 
  हनुमान की प्रतिमा-  मां भद्रकाली के मंदिर के बाहर निकलते ही दृष्टि जाती है केसरी नंदन आंजनेय  की मनोरम मूर्ति पर लगता है कि अनंत काल से दुष्ट जनों से मां की रक्षा हेतु बजरंगबली अपनी गदा लेकर खड़े हैं ताकि भक्तजन निरापद रूप से मां की पूजा करने आ सके।

 खुला शिवालय-  मुख्य मंदिर से लगभग 200 फीट की दूरी पर एक खुला हुआ शिवालय है पूर्व के द्वार पर तीन पाषाण स्तंभ थे , जिसमें दो खड़े और एक नीचे लेटा हुआ स्तंभ था , किंतु उनकी एक विशेषता यह थी कि यह स्तंभ बिना किसी जोड़ के थे। यहां तक कि जमीन में भी खुदाई करके स्तंभ को गाढ़ा नहीं गया था और ना राजमस्त्री से काम लिया गया था , ऐसा लगता है कि दैव  कृपा से यह तीनों स्तंभ प्राकृतिक क्षय से अप्रभावित निर्बाध रूप से खड़े रहे। दोस्तों 1985 में  ये स्तंभ गिर पड़े और बगल में ही उन्हें रख दिया गया है। इन स्तम्भो पर कलात्मक नक्काशी की गई थी।जो लम्बाई में 6 फीट और चौड़ाई में 1 फीट है। इसका निचला भाग 9 इंच चौड़ा है नीचे जड़ के पास कमल दल उत्कीर्ण
 है।
 दोस्तों यहां पर एक विचित्र  सहस्त्र लिंगम शिव की मूर्ति  है जिसमें 1008 छोटे-छोटे शिवलिंंग उत्कीर्ण है शिवलिंग की ऊंचाई 5 फीट 3 इंच है , जबकि चौड़ाई 6 फीट 3 इंच है। 
         दोस्तों इस शिवालय के बाहर ठीक द्वार पर बीचोबीच एक विशाल शिव वाहन नंदी की प्रतिमा है , जो श्वेत पत्थर से निर्मित है यह प्रतिमा बैठने की मुद्रा में है इसका मुंह पश्चिम दिशा की ओर शिवलिंग के सामने है अब यह प्रतिमा भुरी दिखती है। दोस्तों कालक्रम के प्रवाह में नंदी का एक सींग टूट गया है। यह प्रतिमा एक ही विशाल पत्थर को तराश कर बनाई गई प्रतीत होती है जो 4 फीट 6 इंच लंबी और 4 फीट 3 इंच चौड़ी है।दोस्तों आश्चर्य की बात यह है कि इसे देखकर नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मंदिर की याद ताजा हो जाती है।
दोस्तों वर्तमान में अब एक शिवालय का निर्माण कार्य उसी स्थल पर प्रगति में है जो 71 फीट लंबा , 50 फीट चौड़ा और 65 फीट ऊंचा होगा। दोस्तों जीर्णोद्धार के पूर्व नाग नागिन की एक जोड़ा यहां निवास करती थी जिनके दर्शन भक्तजनों को प्राय: हो जाया करती थी ,किंतु बताते हैं कि अब यह जोड़ी वटवृक्ष के एक कोटर में निवास करती है तथा यदा-कदा भक्तजनों को आशीर्वाद देती है।
 सहस्त्र बुद्ध ( कांटेश्वरनाथ बौद्ध स्तूप)-  सहस्त्र लिंगम शिव की प्रतिमा से 100 कदम की दूरी पर एक बौद्ध स्तूप है जो सहस्त्र शिवलिंगम की आकृति का बना हुआ है , इस पर भगवान बुद्ध की 1004 लघु एवं चार विभिन्न मुद्राओं में बड़ी प्रतिमाएं उत्कीर्ण है . वास्तव में यह स्तूप 15 फीट ऊंचा है किंतु उसका एक बड़ा भाग जमीन के अंदर गड़ा हुआ है। अतः केवल 5 फीट ही दृष्टिगोचर होता है, आधार पर यह 8 फीट चौड़ा है , जो क्रमानुसार ऊपर में 2 फीट चौड़ा है। ऊपर का मस्तूल गड्ढा नुमा है जिस पर शिव लिंग के आकार का एक  लघु ढक्कन है दोस्तों मस्तूल से ढक्कन हटाने पर एक कोने से जल आश्चर्यजनक ढंग से पसीजता रहता है जो की खोज का विषय है।
                      दोस्तों भगवान बुद्ध के स्तूप एवं शिवलिंग की समानता अपने आप में कलाकृति का एक नमूना है। इस समानता के चलते ही दोनों के शिवलिंग होने का विवाद उठाया जाता रहा है।
                   धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही अगला भाग मैं कल लिखूंगा इसके लिए धन्यवाद।

                 माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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  Maa Bhadrakali Temple or Bhaduli Mata Temple - Bhaduli Village, Itkhori District Chatra, Jharkhand India Year.



 Hello friends, I heartily congratulate all of you mountain lepards Mahendra, Friends, today I am taking you on a visit to another beautiful and historic mother temple of Jharkhand which we all know as Maa Bhadrakali or Bhaduli Mata.  Which is world famous for its historicity and antiquity.

 Friends, let's go on a visit to Mata Bhadrakali Friends of Mata Bhadrakali temple is located in Bhaduli village, one and a half kilometers east of Itkhori block headquarters in Chatra district.  Situated on the Friends or Chatra Chauparan Marg, 35 km east of the district headquarters of Chatra and 16 km southwest of Chaparan, Mata Bhadrakali at the confluence of the Mahanad and Baksa rivers is a symbol of religion, tolerance and religious coexistence.  The surrounded English letter is 'U' shaped.

 Friends, you will be surprised to know how delightful and historic it is that in 1993 the documentary titled 'Maa Bhadrakali' was also shot here.

 The biggest thing is the Friends Mata Bhadrakali temple complex being situated amidst lush green forests, bushes, waterfalls and rivers and near Gaya, attracting seekers and devotees for spiritual practice situated in an enchanting attractive, secluded and serene environment of Magadha.  It has been doing this and it is the ancient, cultural and religious heritage of India.  It is a confluence of Hindu, Vaishnavite, Shaivite, Jain and Buddhism religions.

 Nomenclature - The nomenclature of Friends Itkhori is related to the Buddhist period as friends believed that the name of Itkhori was formerly 'Itkhoi'.  There is a belief and legend that when Siddhartha i.e. Gautam Budhha was absorbed in his uninterrupted and unbreakable sadhana in Aranya here in seclusion, his aunt, Vimata Prajavati came to take him back to Kapilavastu, but when Tathagata's attention also came from her aunt  If not broken, Prajavati felt that he had lost his son Ratna here, abandoning the hope of his son's return, so it was 'Itkhoi' that came out of his mouth unintentionally.  Since that time, this place has been called Itkhoi, which was later called Itkhori and is still famous by this name.

 Friends, another belief is that itkhori is synonymous with peace because it means peace in this area is called 'Khori' narrow street or small street.  The brick was actually used for brick, ie the way of it, that is the paved road, which is the proof of being a royal city and a beautiful city, and its remains are silent witnesses.

 Likewise, itkhori is considered a corruption of 'Italkhoi' of Pali language.  The idol of Goddess Bhadrakali herself is also seen in Pal Yugin.  The noted historian Dr. Grierson has also confirmed this.  Itkhoi or Ithalkhoi is also known as Itkhori, crossing the mess of friends.

 The ambience of the Friends Chuka Temple is on the banks of a river Bhaduli, hence it is also called Mata Bhaduli.  In Jain literature, Bhaduli is described as the birthplace of 10th Tirthankara Sitala Swamy.  Friends, Bhaduli is an aberration of Bhadrakali. Still, Jaina long-standing mother Bhadrakali is called Bhaduli Mata.


 Friends ef  Lister, who was the then Commissioner of Hazaribagh, in 1917 AD, compiled and edited the Gazetteer of Hazaribagh district.  He wrote the region as Bhadauli.  Thus, Bhadrakali's profanity was misplaced and Bhaduli was called Bhadauli due to pronunciation slang in English.  Friends, in reality it is Bhadrakali.


 Main Temple - The sanctum sanctorum of the main temple is 14 feet in length and 12 feet in width, where the idol of Goddess Bhadrakali is installed. By 1968, the idol of Goddess Bhadrakali and Ashtabhuji Devi Durga was installed but both the statues were stolen in 1968.  .  After much effort, the idol of one of the two Goddess Bhadrakali was brought back from Kolkata but the statue of Ashtabhuji Devi Durga could not be brought back.

 Friends is the gentle statue of mother Bhadrakali as Mangala Gauri.  The idol of Maa Bhadrakali is a specimen of high quality art made from onyx stone or octal metals, which has not had any effect on time till now.  It is a unique statue in itself and also has a unique heritage of India.

 There are four small idols of Gautam Mercury at the four corners outside the Friends main temple, which is in meditation posture, these statues obtained from excavation have been revered here.

 Friends, similarly 417 statues and other objects were found during the excavation from the premises, which have been kept in the newly constructed museum in the rest house of the Zilla Parishad.

 There are a total of 24 statues in the Friends temple in which Gauri, Shankar, Vishnu, Lakshmi, Saraswati, Durga, Ganesh, Hanuman, Surya Dev etc. can be identified.  Also, the idols of some Gandharva girls and Riddhi and Siddhi can also be identified.


 The other idols in the meditative posture on the left and right side of the main statue show that a princess was rushing to worship her mother Bhadrakali by riding on her companions and a well-equipped horse, with the vehicle 'Singh' emblazoned on both sides of the statue.  Is leaping.


 Hanuman's statue- As soon as the mother Bhadrakali's temple comes out, Kesari Nandan looks at the picturesque statue of Anjaneya that Bajrangbali is standing with his mace to protect the mother from evil people from eternity so that the devotees can safely worship the mother  Could come.


 Open Pagoda - There is an open pagoda about 200 feet away from the main temple. There were three stone pillars at the east gate, with two standing and one lying down pillar, but one of their specialties is that this pillar is without any joints.  Were.  Even by digging in the ground, the pillar was not thickened and the masonry was not used, it seems that by grace, these three pillars stood uninterrupted, unaffected by natural decay.  Friends, these pillars fell in 1985 and they are placed next to it.  Artistic carvings were done on these pillars which are 6 feet in length and 1 feet in width.  Its bottom is 9 inches wide. Lotus crew engraved near the bottom root.

 is.

 Friends, there is a bizarre Sahastra Lingam Shiva idol in which 1008 small Shivalingas are engraved. The height of Shivling is 5 feet 3 inches, while the width is 6 feet 3 inches.

 Friends, right in the middle of this pagoda is a huge Shiva vehicle Nandi statue in the center, which is made of white stone.  A horn of Nandi is broken in the flow of friends chronology.  The statue appears to have been carved out of a single huge stone which is 4 feet 6 inches long and 4 feet 3 inches wide. Friends are astonishing to see that it is reminiscent of the Pashupatinath temple in Nepal.

 Friends, now the construction work of a pagoda is in progress at the same site which will be 71 feet long, 50 feet wide and 65 feet high.  Before the restoration of friends, a pair of serpent serpents resided here, whose devotees often visited the devotees, but they say that now the couple lives in a coter of Vatavriksha and bless the devotees occasionally.

 Sahastra Buddha (Kanteshwaranath Buddhist Stupa) - Sahastra Lingam is a Buddhist Stupa 100 steps away from the idol of Shiva which is made of the shape of Sahastra Shivlingam, it has 1004 small and four large statues of Lord Buddha engraved on it.  In fact, this stupa is 15 feet high but a large part of it is buried underground.  So only 5 feet is visible, at the base it is 8 feet wide, which is 2 feet wide at the top.  The top of the mast is a crater with a small Shiva linga shaped lid on it. Friends remove the lid from the mast and the water from one corner exhales wonderfully, which is the subject of the discovery.

 The resemblance of the stupa and the lingam of the friends Lord Buddha is a specimen of the artwork in itself.  Due to this similarity, the dispute of Shivling is being raised.

 Thank you guys for today, I will write this next part tomorrow, thank you for that.

 Mountain Leopard Mahendra





                  Thank you

Thursday, December 31, 2020

कौलेश्वरी पर्वत - चतरा हंटरगंज झारखंड भारत. Kauleshwari Mountains - Chatra Hunterganj Jharkhand India

Ek yatra khajane ki khoje 

                               

                   कौलेश्वरी पहाड़




नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लेपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं कौलेश्वरी पर्वत की यात्रा पर जो की चतरा जिले के हंटरगंज में मौजूद हैं जो झारखंड के प्रमुख पर्वतीय क्षेत्रों में से एक है और जो अनेकों रहस्यों को अपने में समेटे हुए हैं।
      दोस्तों कौलेश्वरी पर्वत चतरा जिले में हंटरगंज प्रखण्ड से 10 किमी. दूर पूरब में 1575 फीट ऊंचा कोल्हुआ या कौलेश्वरी पर्वत मौजूद हैं। जिस पर चढ़ने के लिए अब सीढ़ियों का निर्माण हो चुका है। प्राकृतिक छटाओं के बीच स्थित इस पर्वत पर अनेक हिंदू और जैन तीर्थ स्थलों के साथ ही अनुपम पर्यटन स्थल भी है।। साथ ही साथ दोस्तों आदिवासियों के देवता भी यहां पर विराजमान हैं। इस स्थान को कोल्हुआ , या कौलेश्वरी , कुलेश्वरी एवं कोटशिला के नाम से जाना जाता है । दोस्तों कोल या मुंडा आदिवासियों की आराधना देवी कौलेश्वरी हैं। और दोस्तों जैसा कि आपको पता होगा की दुर्गा सप्तशती में देवी भागवती को कुलेश्वरी कहां गया है । माना जाता है कि महाभारत काल के मत्स्य राज राजा विराट ने अपने ईष्ट या कुलदेवी कौलेश्वरी कि यहां प्राण प्रतिष्ठा की थी। दोस्तों महिषासुर मर्दिनी के रूप में मां कौलेश्वरी आराध्य देवी , दुर्गा है। 
               किवदंती है कि इस स्थल पर माता सती का कोख गिरा था और इस रूप में यहां एक सिद्ध पीठ है। इस आधार पर धारणा है कि संतान प्राप्ति की मनोकामना यहां पूरी होती है। मन्नत मांगने के बाद मनोकामना पूर्ण होने पर लोग यहां बकरे की बलि भी चढ़ाते हैं। दोस्तों सबसे बड़ी बात है कि यहां नेपाल से भी काफी लोग आते हैं।
               दोस्तों कॉल हुआ पर्वत महाकाव्य काल एवं पुराण काल से संबंधित प्रागैतिहासिक स्थल है। वनवास के समय श्री राम , माता सीता एवं लक्ष्मण का वास इसी अरण्य में होने की किवदंती है। साथ ही साथ महाभारत कालीन इतिहास भी यहां मौजूद है लोगों का मानना है कि अज्ञातवास काल में पांडवों की साधना स्थली भी इसे माना जाता है। अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के साथ उत्तरा का विवाह भी इसी स्थल पर होने की बात लोग मानते हैं।
                  जैन धर्मावलंबी 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ से भी इस स्थल का सम्बन्ध जोड़ते हैं ।जैन धर्म से संबंधित अनेक अवशेष यहां मौजूद हैं। दोस्तों 10 वी शताब्दी से यह स्थान तीर्थ के रूप में पूजित है।इसे मत्स्यराज विराट की राजधानी एवं जिला भी माना जाता है। 
  मां कौलेश्वरी की मंदिर-  इस प्राचीन मंदिर में महिषासुर मर्दिनी  , त्रिशूल धारणी , कुलेश्वरी देवी के काले पत्थर की चतुर्भुजी प्रतिमा प्रतिष्ठित है। अवधारणा है कि संपूर्ण कौलेश्वरी मंदिर प्रांगण में कौवा ,  सियार और सेवाल का अस्तित्व नहीं है। दोस्तों किवदंती है कि कोलासुर दैत्य का अत्याचार बढ़ गया था दैत्य का विनाश कर मानव को त्राण दिलाने के लिए मां भगवती का अवतरण "12 वर्ष की कुंवारी कन्या कौलेश्वरी के रूप में हुआ एवं कोला सुर का वध किया गया। 
 दोस्तों पूर्व में यहां बलि की प्रथा थी। वर्ष में दो बार बसंत पंचमी एवं रामनवमी मेले में यहां बलि दी जाती थी , जिससे मंदिर के सामने स्थित सरोवर का पानी गंदा हो जाता था, किंतु अब मंदिर में बलि के लिए लाए गए बकरों का , मंदिर में सिर्फ पूजन होता है ,एवं पहाड़ के नीचे के भाग में विभिन्न स्थानों पर ठहराव की जगह में बलि दी जाती है। दोस्तों पुराने दस्तावेजों द्वारा अधिकृत दंतार तथा सुग्गा ग्राम के साकल द्वीपीय ब्राह्मण बारी  -  बारी से इस मंदिर में प्रतिष्ठित देवी कौलेश्वरी की पूजा  अर्चना करते आ रहे हैं। वसंत पंचमी , दशहरा , रामनवमी आदि त्यौहारों के समय , मंदिर के आसपास चहल-पहल बढ़ जाती हैं।

               दोस्तों मंदिर के चबूतरे पर प्रतिदिन ब्रहामण बालकों को धर्म ग्रंथों का पाठ तथा मंत्रोच्चार का अभ्यास कराया जाता है । सामूहिक मंत्रोच्चार से पर्वत शिखर ऐसा मालूम पड़ता है जैसे उसने कैलाश का रूप धारण कर लिया हो और भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए ऋषि- मुनियों का मंत्र जाप चल रहा हों ।

दोस्तों माता कौलेश्वरी मंदिर का पाट प्रायः भादों से लेकर कृष्णपक्ष आश्विन तक बंद रहता है।

  प्राकृतिक झील-     क़ोलहुआ पर्वत  पर मां कौलेश्वरी के मुख्य मंदिर के सामने करीब 900 फ़ीट चौड़ी ,2000 फ़ीट लम्बी और 30 फीट गहरी प्राकृतिक झील है जिसे कुछ लोग तालाब भी कहते हैं  देखने में यह क्रेटर झील के समान लगती हैं। झील में स्थाई रूप से पानी रहता है । दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 1967 के भयंकर अकाल में भी इस झील में भरपुर पानी था। एवं देवी के प्रिय पुष्प लाल कमल इस झील में बहुतायत से पाए जाते हैं।
झील से पानी निकासी के लिए पूर्व से प्राकृतिक मार्ग बना हुआ है। एक दो बार झील को सुखाने का प्रयास सफाई के उद्देश्य से किया गया था लेकिन झील सुख नहीं पाई।

 सप्तकूप - कहते हैं कि पर्वत पर स्थित झील के भीतर भी सात कुएं  या स्रोत हैं । इसे सप्तकूप कहा जाता है। इन्हीं की वजह से शायद झील का पानी कभी सुख नहीं पाता।
 तालाब-  पहाड़ पर अलग एक छोटा तालाब है जिसमें उजले कमल खिलते हैं।
 भैरवनाथ मंदिर या पाश्र्वनाथ मंदिर -  तालाब के पश्चिमी किनारे पर एक विशाल गुफा में पद्मासन तथा काले पत्थरों से निर्मित  9 सर्प- छत्रों से युक्त प्रतिमा है। इसे हिन्दू भैरवनाथ की मूर्ति मानते हैं , किन्तु जैनी इसे 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति मानते हैं । दोनों ही धर्मावलंबी अपनी आस्था के मुताबिक इस मूर्ति का पूजन करते हैं बगल में एक और गुफा है जिसमें तीन मूर्तियां अवस्थित थी।

 द्वारपाल अथवा पार्श्वनथ की प्रतिमा-  हट वरिया ग्राम की ओर से पर्वत पर चढ़ते समय मार्ग में जिस प्रतिमा के दर्शन होते हैं वह हिंदुओं के लिए द्वारपाल तथा जैनियों के लिए पाश्र्वनाथ की प्रतिमा है। 
 पंच पांडव या पंच तीर्थंकर-  मां कौलेश्वरी मंदिर के सामने एक बहुत बड़े चट्टान पर पांच आदम कद मूर्तियां उत्कीर्ण है हिंदू इन्हें पांचों पांडवों की मूर्तियां मानते हैं किंतु जैनी इसे पंच तीर्थंकर की मूर्तियां मानते हैं   जिसमें उनके अनुसार जैन तीर्थ कर अभिनंदन नाथ जी , मन्मथनाथजी , नेमिनाथ जी , महावीर स्वामी जी तथा पाश्र्वनाथ  जी की प्रतिमाएं हैं।
 आकाश - लोचन-   मां कौलेश्वरी मंदिर के उत्तर पूर्व कौण में आकाश लोचन नामक एक स्थल है। इस स्थान से आकाश को देखने पर सुखद अनुभूति होती है शायद इसलिए इसे अकाश लोचन कहा गया है।
 विष्णुपग या पाश्र्वनाथ पग चिन्ह-  आकाश-लोचन की एक शिला पर दो चरण चिन्ह उभरे नजर आते हैं । हिन्दू धर्मावलंबियों का मानना है कि इनमें से एक चरण चिन्ह मौलिक है और वह भगवान विष्णु के चरण चिन्ह है उनका कहना है कि एक चरण चिन्ह गया के विष्णु पद मंदिर में तथा दूसरा इस स्थल पर अंकित है। और शिला पर दूसरा चरण चिन्ह किसी शिल्पी द्वारा बाद में बना दिया गया है जैनी इन्हें पाश्र्वनाथ जी के पग-चिन्ह बताते हैं।

 सप्त ऋषि गुफा-  कौलेश्वरी मंदिर से कुछ ही दूरी पर सप्त ऋषि गुफा के नाम से पुकारी जाने वाली एक दूसरे से जुड़े सात गुफाएं हैं। इसमें बने एक मूर्ति के बारे में भी हिंदू और जैन धर्मावलंबियों के अलग-अलग दावे हैं।
 वाण गंगा-  इस पर्वत पर वाण गंगा नाम से भी एक स्थल है जहां से एक क्षीण जलधारा वर्ष भर निकलती रहती है।
 
 भीम भार-   भीम भार के बारेे में  एकता दंत कथा है कि अज्ञात वास के समय पांडवों के 

आवास  निर्माण के लिए भीभ जब भार या कांवर से पत्थर ढोकर ला रहे थे  , तो भार टूट जाने से दो बड़े पत्थर उल्लिखित स्थल पर गिरकर स्थिर हो गए थे । यह स्थल लेढो ग्राम की ओर से पहाड़ पर चढ़ने के मार्ग में है।

 नकटी भवानी-   यह स्थल भीम भार के निकट हैं जिसके बारे में अलग-अलग दंतकथाएं प्रचलित है।

 अर्जुन बाण -   इस स्थल पर विशालकाय एक चट्टान के छिद्रों से हर समय पानी झरता रहता है  । दंतकथा है कि अज्ञात वास के समय इसी स्थल पर अर्जुन बाणो के संधान का अभ्यास करते थे , जिससे अनेक चट्टानों में छिद्र हो गए। ऐसे ही छिद्रों से पानी झरता रहता है।
 
मंड़वा- मड़ई-  एक स्थल को मड़वा- मड़ई के नाम से पुकारा जाता है । इसके बारे में कई दंत कथाएं हैं इन दंत कथाओं में देवी कौलेश्वरी के विवाह का भी उल्लेख है।
                    धन्यवाद दोस्तों
                माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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                          English translate
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   Hello friends, I heartily congratulate all of you mountain leopard Mahendra, Friends, today I am taking you on a journey to Mount Kauleshwari which is present in Hunterganj in Chatra district, which is one of the major hill areas of Jharkhand and which has many mysteries.  Are included in themselves.

 Friends Kauleshwari mountain 10 km from Hunterganj block in Chatra district.  In the far east there are 1575 feet high Kolhua or Kauleshwari mountains.  The stairs have been built to climb on it.  This mountain, situated amidst natural terraces, has numerous Hindu and Jain pilgrimage sites as well as unique tourist spots.  At the same time, the God of friends and tribals is also seated here.  This place is known as Kolhua, or Kauleshwari, Kuleshwari and Kotshila.  Friends are the worship goddess Kauleshwari of Kol or Munda tribals.  And friends, as you would know, where Goddess Bhagwati has gone to Kuleshwari in Durga Saptashati.  It is believed that the Matsya Raj king Virat of the Mahabharata period had the life of his Ishta or Kuladevi Kauleshwari.  Mother Kauleshwari as friends Mahishasura Mardini is the adorable goddess, Durga.

 Legend has it that the womb of Mata Sati fell on this site and in this form there is a proven back.  On this basis, the belief that the desire to have children is fulfilled here.  After offering a vow, people offer sacrifices of goats here as well.  Friends, the biggest thing is that a lot of people also come here from Nepal.

 Friends Call Hua Mountain is a prehistoric site related to the epic period and the Puranas.  At the time of exile, the residence of Shri Rama, Mother Sita and Lakshmana is the legend of being in this Aranya.  As well as the history of Mahabharata, it is also present here that people believe that it is also considered as a place of worship of the Pandavas during the period of unknown life.  People believe that Uttara's marriage with Arjun's son Abhimanyu is also at this place.
 Jain Dharmavlambi also connects this place with the 23rd Tirthankara Parshwanath. Many relics related to Jainism are present here.  Friends, this place has been worshiped as a pilgrimage since the 10th century. It is also considered as the capital and district of Matsya Raja Virat.

 Temple of Maa Kouleshwari- This ancient temple is revered with Mahishasura Mardini, Trident holding, black stone quadrangular statue of Kuleshwari Devi.  The concept is that crow, jackal and seval do not exist in the entire Kauleshwari temple complex.  Friends legend has it that the tyranny of the Kolasur monster had increased, to destroy the monster and to provide human life, the incarnation of Maa Bhagwati as a 12-year-old virgin girl Kauleshwari and Kola Sur were killed.

 Friends, in the past, sacrifice was the practice here.  Sacrificed here twice a year at Basant Panchami and Ramnavami fair, the water of the lake situated in front of the temple was dirty, but now the goats brought for sacrifice in the temple are worshiped only in the temple, and the mountains  Sacrifices are made at various places in the lower part of the place.  Friends, the Dantars authorized by old documents and the Sakal island Brahmins of Sugga village have been worshiping the iconic Goddess Kauleshwari in this temple from time to time.  During the festivals like Vasant Panchami, Dussehra, Ramnavami etc., the movement around the temple increases.

 Everyday Brahmin children are taught religious texts and chants of mantras on the platform of Friends temple.  From the collective chant, the mountain peak looks as if it has taken the form of Kailash and is chanting the mantras of sages and sages to please Lord Bholenath and Mata Parvati.


 Friends, the roof of the Mata Kauleshwari temple is usually closed from Bhadan to Krishnapaksha Ashwin.

 Natural Lake - In front of the main temple of Maa Kaulleshwari on Mount Kollhua, there is a 900 feet wide, 2000 feet long and 30 feet deep natural lake, which some people call as a pond, it looks like a crater lake.  The lake has permanent water.  Friends, you will be surprised to know that even in the severe famine of 1967, this lake was full of water.  And the red flower lotus, beloved of the Goddess, is found abundantly in this lake.

 There is a natural route from the east to drain the lake.  An attempt was made to dry the lake twice, for the purpose of cleaning but the lake did not get pleasure.


 Saptakup - It is said that there are seven wells or sources within the lake situated on the mountain.  It is called Saptakup.  Perhaps because of these, the water of the lake never gets happiness.

 Pond- There is a small pond isolated on the mountain in which bright lotus blooms.

 Bhairavnath Temple or Parshvanath Temple - In a huge cave on the western side of the pond, there is a statue of Padmasana and nine snake-chhatras made of black stones.  Hindus consider it as the idol of Bhairavnath, but Jaini considers it as the idol of the 23rd Tirthankara Parshvanath.  Both religious people worship this idol according to their faith. There is another cave next to which three idols were located.

 Statue of Dwarapal or Parshvanatha - The idol of Darshapal, which is seen in the path while climbing the mountain from the village of Hat Varia, is the gatekeeper for Hindus and the idol of Parshvanath for Jains.

 Panch Pandavas or Panch Tirthankaras - Five Adam statues are engraved on a very large rock in front of the Maa Kauleshwari temple.Hindus consider them as idols of the five Pandavas, but Jains consider it as the idols of Panch Tirthankara, according to which Jain pilgrimage tax Abhinandan Nathji, Manmathnathji  , Neminath ji, Mahavir Swami ji and Parshvanath ji.
 Akash - Lochan - In the north east Kaun of the Maa Kaulleshwari temple, there is a place called Akash Lochan.  There is a pleasant feeling on seeing the sky from this place, probably because it has been called Akash Lochan.
 Vishnupag or Parshvanath Pag Sign - Two stages of the sky appear on a rock of sky-locality.  Hindu religious people believe that one of these footprints is original and is the foot sign of Lord Vishnu.He says that one step sign is inscribed in Vishnu Pad Mandir of Gaya and the other at this place.  And the second stage sign on the rock has been made later by some craftsman, Jaini calls them the footprints of Parsvanath ji.

 Sapta Rishi Cave- There are seven interconnected caves known as Sapta Rishi Cave just a short distance from the Kauleshwari Temple.  Hindu and Jain religions also have different claims about an idol built in it.

 Vana Ganga - There is a place on this mountain also called Vana Ganga, from where a dilapidated stream flows throughout the year.


 Bhima Bhar- Ekta is a legend about Bhima Bhar that during the time of unknown dwellings of Pandavas


 When the bhebas were carrying boulders with the load or Kanwar for the construction of the house, two big stones fell on the mentioned site and became stable after the load broke.  This place is on the way to climb the mountain from the side of Laddho village.


 Nakti Bhavani - This place is near Bhima Bhar, about which different legends are popular.


 Arjun Baan - At this site, water flows all the time from the holes of a huge rock.  Legend has it that at the same time, Arjuna used to practice the cultivation of arrows at the same place during the unknown habitat, which led to holes in many rocks.  Water keeps flowing through such holes.



 Mandwa - Madai - A site is called Madwa - Madai.  There are many legends about this.These legends also mention the marriage of Goddess Kauleshwari.



 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra

            



Tuesday, December 29, 2020

गुवारीडीह : भागलपुर ; इंटर पास ग्रामीण की सूझबूझ से सामने आई समृद्ध विरासत मोड़ी जाएगी कोसी नदी की धारा ताम्र पाषाण काल तक के पुरावशेष मौजूद Guwaridih: Bhagalpur; The rich heritage that has come to the knowledge of the Inter Pass villagers will be twisted up.

Ek yatra khajane ki khoje

                               

               अविनाश जी के मुर्गी
 फार्म में जमा किए हुए पुरातात्विक वस्तुएं
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 Avinash ji's cock

 Archaeological objects deposited in the farm

  गुवारीडीह भागलपुर: इंटर पास अविनाश जी की सूझबूझ से सामने आई समृद्ध विरासत , मोड़ी जाएगी कोसी की धारा , ताम्र पाषाण काल तक के पुरावशेष मौजूद भागलपुर के धरती के अंदर
              नमस्कार दोस्तों मैं बहुत उत्साहित था यह जानकर कि इंटर पास ग्रामीण अविनाश जी की एक छोटी सी प्रयास ने उस समय सभी का ध्यान खींचा ,जब रविवार को स्वयं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके क्षेत्र गुवारीडीह पहुंचे । पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार यह क्षेत्र  पुरातत्व के दृष्टिकोण से से अहम हो सकता हैं इस क्षेत्र में  ताम्र पाषाण काल तक के पुरावशेष मौजूद है। पुरातात्विक क्षेत्र का निरीक्षण करने के उपरांत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने विरासत को सहेजने का निर्देश दिया। इसके लिए कोसी की धारा को  मोड़ने का भी निर्देश उन्होंने दिया। 
दोस्तों भागलपुर  , बिहार स्थित इस क्षेत्र में कोसी नदी के किनारे कुछ टीले है नदी में कटाव के चलते इनसे ऐसी अनेक प्राचीन वस्तुएं आती रही है , जो हजारों वर्ष पुरानी सभ्यताओं की निशानियां हैं । किंतु ग्रामीणजन यह बात समझ नहीं सके और इनकी अनदेखी करते रहे।

 इधर गांव के ही एक युवक अविनाश जी , जिनकी इन वस्तुओं के प्रति बचपन से ही रुचि थी। वे इन प्राचीन वस्तुओं को देखकर अचरज करते हैं और इन वस्तुओं की पहेली को सुलझाने का जतन करते थे।
   अतः अविनाश जी इन प्राचीन अवशेषों को एकत्र करते गए और सुरक्षित रखती गए । और अंत में शासन तक इसकी जानकारी पहुंचाई।
                             दोस्तों इंटर तक पढ़ाई करने वाले ग्राम जयरामपुर निवासी अविनाश जी ने बताया कि गुबारीडीह के समीप ही उनका खेत है। और वहां भी प्राचीन टीले हैं। एवं नदी के कटाव के कारण यहां ऐसी अनेक प्राचीन वस्तुएं बिखरी हुई थी। अतः जब मैं समझदार हुआ तो इनके बारे में जानने का प्रयास किया और इन्हें समझने के लिए मोबाइल पर यानी यूट्यूब पर वीडियो देखने लगा जिस कारण से मुझे एहसास हुआ की वस्तुएं बहुत ही प्राचीन होगी।
और दोस्तों वह बताते हैं कि जब जब यह समझ में आने लगा कि यह तो पूरा अवशेष हैं तो इन्हें लेकर सहज हो गए हैं और एकत्र कर सहेजने लगे प्राचीन वस्तुओं को।  और अविनाश जी बताते हैं बचपन की बातें जब उन्हें याद आती है तो वह कहते हैं कि साथियों के साथ यहां खेलते थे तो यह प्राचीन वस्तुएं मिल जाती थी लेकिन हम इन्हें पानी में फेंक दिया करते थे। तब इनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। और जब बड़े हुए तो उत्सुकता जागी और इनके बारे में जानने-समझने का प्रयास किया।  
                   दोस्तों अविनाश जी के अनुसार , तब अपने मुर्ग
 फार्म में इन्हें सहेजकर रखने लगा । फिर पता चला कि सरकार ऐसे स्थलों को संरक्षित करती हैं ,तब सरकार तक इसकी जानकारी पहुंचाने का प्रयास किया। इसी दरम्यान मैंने अनेक पुरातात्विक अवशेष जमा कर लिया था। 
               इसी दौरान पूर्व स्थानीय विधायक ई. शैलेन्द्र गांव आए तो उन्हें भी इसकी जानकारी दी। और विधायक जी के पहल से ही पुरातत्व विभाग के लोगों ने आकर पड़ताल की तो सामने आया कि यह महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है।

      आगे अविनाश जी बताते हैं कि फिर मुझे जानकारी मिली कि स्वयं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी जल्द ही यहा आने वाले हैं।।तब मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा  । अतः मुख्यमंत्री जी ने कोशी नदी की धारा को मोड़ने और इन टीलों की खुदाई कर प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करने का निर्देश दिया , जो मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता की बात है। और लगा मानो मेरी मेहनत सफल हो गईं।
                     दोस्तों अविनाश जी के पिता उपेंद्र चौधरी भी किसान हैं। चार भाइयों चंदन , बबलू  ,प्रीतम और अविनाश जी में अविनाश सबसे छोटे हैं।अविनाश जी के अनुसार टीला पहले 25 एकड़ से अधिक में फैला हुआ था। परंतु कोसी नदी के कटाव के कारण अब यह महज 5 एकड़ ही बचा है। टीले की विशेषता यह है कि कोसी नदी जब रौद्र रूप में भी रहती है तब भी वह नहीं डूबता है। दोस्तों अविनाश जी ने बताया कि कोसी नदी के दूसरे किनारे पर भी पुरातात्विक महत्व के टीले मौजूद हैं। लेकिन वहां अब अपराधियों का बोलबाला है।अपराधियों के भय से लोग वहां अब खेती करने भी नहीं जाते हैं। अतः सरकार से मेरी विनम्र निवेदन है कि इन टीलों को संरक्षित किया जाना चाहिए।

     गुवारीडीह में मिले पुरातात्विक अवशेषों में काले - लाल मृदभांड ,
तेरा कोटा निर्मित वस्तुएं , तांबे से निर्मित वस्तुएं , आभूषण , लौह धातु मल, रत्न जड़ित आभूषण , कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाले औजार , तांबे के सिक्के , कुषाण कालीन ईटे , मिट्टी के बांट इत्यादि अनेक प्राचीन वस्तुएं मिली है। अतः इनसे पता चलता है कि यह पुरातात्विक क्षेत्र ताम्र पाषाण युग से लेकर 2500 तक के पुरावशेषों को को अपने धरती के अंदर समेटे हुए है।
                धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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                         English translate
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 Guvaridih Bhagalpur: Inter pass Avinash ji's rich heritage revealed by wisdom, modi jogi kosi stream, antiquity till copper stone age present inside Bhagalpur earth

 Hello friends I was very excited to know that a small effort of the Inter Pass Rural Avinash ji caught everyone's attention when on Sunday Bihar Chief Minister Nitish Kumar himself reached his area Guwaridih.  According to archeology experts, this area can be important from the point of view of archeology, there is antiquity up to the copper stone period in this area.  After inspecting the archaeological area, Chief Minister Nitish Kumar instructed to save the heritage.  For this, he also instructed to divert the Kosi stream.

 Friends, in this area located in Bhagalpur, Bihar, there are some mounds on the banks of Kosi river, due to erosion in the river, many such antiques have come from them, which are the traces of civilizations thousands of years old.  But the villagers could not understand this and kept ignoring them.

 Here, a young man from the village Avinash ji, who was interested in these things since childhood.  He was surprised by seeing these ancient objects and used to solve the puzzle of these objects.

 Therefore, Avinash ji kept collecting these ancient relics and kept them safe.  And finally brought this information to the government.

 Avinash Ji, a resident of village Jairampur, who studied up to his friends, said that his farm is near Gubaridih.  And there are ancient mounds too.  And due to the erosion of the river, many such antiques were scattered here.  Therefore, when I became intelligent, I tried to learn about them and to understand them, I started watching videos on mobile i.e. YouTube, due to which I realized that things would be very ancient.

 And friends tell that when they started to understand that these are complete relics then they have become comfortable with them and started collecting and saving the antiques.  And Avinash ji says that when he remembers childhood things, he says that he used to get these antiques while playing here with his companions, but we used to throw them in the water.  There was no information about them then.  And when they grew up, they got curious and tried to understand about them.

 According to friends Avinash ji, then his cock

 Started saving them in the form.  Then came to know that the government patronizes such sites, then tried to convey this information to the government.  During this period, I had collected many archaeological remains.

 Meanwhile, former local MLA E. Shailendra came to the village and informed him about it.  And it was only at the initiative of the MLA that the people of the archeology department came and investigated that it is an important archaeological site.

 Further Avinash ji says that then I got information that Bihar Chief Minister Nitish Kumar himself is going to come here soon. Then there was no place for my happiness.  Therefore, the Chief Minister instructed to bend the stream of Koshi river and preserve these heritage sites by digging these mounds, which is a matter of great pleasure for me.  And felt as if my efforts were successful.

 Friends of Avinash ji's father Upendra Chaudhary are also farmers.  Avinash is the youngest among four brothers Chandan, Bablu, Pritam and Avinash ji. According to Avinash ji the mound was earlier spread over 25 acres.  But due to erosion of Kosi river, now it has left only 5 acres.  The feature of the mound is that even when the Kosi river remains in the form of a raudra, it does not sink.  Friends Avinash ji told that dunes of archaeological importance exist on the other bank of Kosi river.  But criminals are now there. People do not even go there to do farming due to fear of offenses.  So my humble request to the government is that these mounds should be protected.
 Archaeological remains found in Guvaridih include black-red pottery,

 Tera Kota manufactured items, copper made items, jewelery, iron metal stools, jewelery studded with gems, tools used in agricultural work, copper coins, Kushan carpet bricks, clay pots etc. have been found.  Therefore, it shows that this archaeological area has contained antiquities from the Copper Stone Age up to 2500 within its soil.



 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra
              
      

                        

Sunday, December 27, 2020

स्वर्ण रेखा नदी जो सदियों से उगल रही है सोना में राफ्टिंग का मजा लेते हुए , Swarna Rekha river which has been spewing for centuries while enjoying rafting in Sona,



स्वर्ण रेखा नदी में राफ्टिंग





Ek yatra khajane ki khoje 
    
      Rafting trip

नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं राफ्टिंग के लिए स्वर्ण रेखा नदी में जो सदियों से सोना उगल रहीं हैं।

दोस्तों आप लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि स्वर्ण रेखा नदी सदियों से सोना उगल रहीं हैं । जीवन दायिनी स्वर्ण रेखा नदी यहां के लोगों के लिए वरदान से कम नहीं है ।यह नदी सदियों से यहां के लोगों की प्यास बुझा रही हैं । और साथ ही साथ यहां के लोग नदी सोना भी निकालते हैं जो कि कुछ लोगों का मुख्य जीवकोपार्जन का साधन भी है । 

Hello friends I heartily greet all of you mountain leopard Mahendra friends, today I am taking you for rafting in the Swarna Rekha river which has been spewing gold for centuries.


 Friends, you will be surprised to know that Swarna Rekha river has been spewing gold for centuries.  The Golden Line of life is nothing less than a boon for the people here. This river has been quenching the thirst of its people for centuries.  And at the same time people here also extract the river gold, which is also the main means of earning some people.




Wednesday, December 23, 2020

पुरावशेषों के संरक्षण को मोड़ी जाएगी कोसी नदी की धारा - गुवारीडीह भागलपुर बिहार. Conservation of antiquities will be diverted to the Kosi river stream - Guwaridih Bhagalpur Bihar

Ek yatra khajane ki khoje

            

          भागलपुर के गुवारीडीह में मिलें पुरावशेषों का अवलोकन करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व अन्य

 Bihar Chief Minister Nitish Kumar and others, while observing the antiquities, meet in Guwaridih, Bhagalpur




  भागलपुर के गुवारीडीह में मिलें पुरावशेषों के संरक्षण के लिए मोड़ी जाएगी कोसी नदी की धारा
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  दोस्तों माना जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देशन पर भागलपुर के गुवारीडीह में मिलें पुरावशेषों के संरक्षण के लिए कोसी नदी की धारा मोड़ी जाएगी। और आस पास के गांवों और ऐतिहासिक टीलों को इसके लिए संरक्षित करने के लिए योजना भी तैयार की जाएगी। मुख्यमंत्री बिहपुर प्रखंड के गुवारीडीह में टीले और आसपास मिले पौराणिक - ऐतिहासिक अवशेषों का अवलोकन करने के लिए पहुंचे थे। 
         माना जा रहा है कि गुवारीडीह में मिले पुरावशेष  ढाई हजार साल पुराना है। ऐसे में इनकी जांच की जानी बहुत जरूरी है। पुरातत्वविद ओं का मानना है कि यह और भी पुराने हो सकते हैं।दोस्तों पुरातत्व का मानना है कि ये अवशेष ताम्र पाषाण काल से लेकर गुप्तोत्तर काल तक के हो सकते हैं।
     दोस्तों नदी में कटाव के बाद यह अवशेष व टीले बाहर निकले हैं अन्यथा यह इतिहास के गर्भ में ही दवे रहते हैं। स्थानीय विधायक ई. शैलेन्द्र ने संज्ञान लेकर इसकी जानकारी दी । ग्रामीण अविनाश कुमार भी इस कार्य के लिए प्रशंसा के पात्र हैं  ।
 
  दोस्तों आस पास होगी खुदाई : मुख्यमंत्री ने कहा कि इस  स््थ   
स्थल की पुरी जानकारी के लिए आसपास खुदाई की जाएगी। अभी प्रारंभिक जानकारी के आधार पर वे यहां पहुंचे हैं । अवशेषों की जांच के लिए एक्सर्पट्स की टीम आई हैं । तिलकामांझी विश्वविद्यालय और पुरातत्व के अन्य जानकारों से भी इसके बारे में जानकारी ली जा रही हैं।
                  धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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       English translate
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   The mines at Guwaridih in Bhagalpur will be diverted for the conservation of antiquities

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 Friends, it is believed that under the direction of Bihar Chief Minister Nitish Kumar, a stream of Kosi river will be diverted for the conservation of antiquities at Guwaridih in Bhagalpur.  And plans will also be prepared to preserve the surrounding villages and historical mounds for it.  The Chief Minister arrived in Guwaridih of Bihpur block to observe the mythological and historical remains found in and around the mound.

 It is believed that the antiquity found in Guvaridih is two and a half thousand years old.  In such a situation, it is very important to investigate them.  Archaeologists believe that it may be even older. Friends archaeologists believe that these relics may be from the Paleolithic to the post-Gupta period.

 After the erosion in the river friends, these remains and mounds have come out otherwise they remain in the womb of history.  Local MLA E. Shailendra informed about this by taking cognizance.  Rural Avinash Kumar also deserves praise for this work.


 Friends will be digging around: Chief Minister said that this situation

 The site will be excavated for complete details.  They have just arrived here based on preliminary information.  Experts have come to investigate the remains.  Information is also being sought from Tilakamanjhi University and other archaeologists.

 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra

Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...