Tuesday, November 3, 2020

मानव सभ्यता को भारत का 8000 साल पुराना ' नमस्कार' ▶️ विश्व गुरु: अभिवादन का प्राचीनतम पुरातात्विक साक्ष्य हैं पुरानगरी राखीगढ़ी से प्राप्त नमस्कार मुद्रा वाली यह दुर्लभ प्रतिमा India's 8000-year-old 'Namaskar' to Human Civilization ️ ️ Vishwa Guru: The oldest archaeological evidence of salutation is this rare statue with salutary posture obtained from the old Rakhigarhi.

Ek yatra khajane ki khoje


                      
राखीगढ़ी से प्राप्त नमस्कार मुद्रा में रत योगी की मूर्ति
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मानव सभ्यता को भारत का 8000 साल पुराना नमस्कार 🙏🙏

विश्व गुरु: अभिवादन का प्राचीनतम पुरातात्विक साक्ष्य हैं पुरानगरी राखीगढ़ी से प्राप्त नमस्कार मुद्रा वाली यह दुर्लभ प्रतिमा।

नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा राखीगढ़ी की यात्रा पर जहां से हमारे पूर्वजों ने सभ्यता की नींव रखी थी।


       दोस्तों 8000 वर्ष पुरानी सभ्यता को अपने में समेटे राखीगढ़ी से प्राप्त नमस्कार मुद्रा वाली यह दुर्लभ मूर्ति विश्व को अपना परिचय नहीं दे सकी है , जिसके योग्य वह है ।आज जब विश्व हैंड- शेक को ताज नमस्कार कर रहा है। अभिवादन का यह प्राचीनतम प्रमाण अहम हो जाता है। यह मूर्ति इस बात को भी सिद्ध कर देती है कि आर्य विदेशी नहीं थे।
      हरियाणा के हिसार स्थित राखीगढ़ी कस्बे में तिलों के नीचे 8000 से 6000 वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं।भारतीय पुरातत्व विभाग कुछ चरणों में यहां पर खुदाई कर चुका है जबकि कुछ का होना शेष है। यहां अब तक मिले विविध साक्ष्यो में सबसे महत्वपूर्ण है नमस्कार करते हुए योगी की मूर्ति।
               दोस्तों महत्वपूर्ण इसलिए है कि सभ्यता के विकास क्रम में अभिवादन का यह साक्ष्य प्राचीनतम और दुर्लभ है। दूसरा ,भारतीय योग परंपरा में वर्णित एक प्रमुख योगासन पद्मासन की मुद्रा में बैठे हुए योगी को इस प्रतिमा में अपने दोनों हथेलियों को नमस्कार मुद्रा में जोड़ें हुए दर्शाया गया है। इसमें पश्चिम के विद्वानों का वह दावा औंधे मुंह गिर जाता है , जो आर्यों को विदेशी मूल का बताता आया है। यद्यपि , सभ्यता और इतिहास के इस महत्वपूर्ण पुरातात्विक प्रमाण को भारत विश्व के सम्मुख उस प्रकार नहीं रख सका जिसकी आवश्यकता है।
दोस्तों इस और हमारे कुछ महत्वपूर्ण पत्रकारों का ध्यान रविवार को तब गया जब यहां पुरातत्व संबंधित एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा था। इसके बाद हमारे पत्रकारों ने पुरातत्त्वविदों और इतिहासकारों से विवरण जुटाया। और पता किया कि क्या इससे पूर्व कहीं भी नमस्कार या अभिवादन की मुद्रा का इतना प्राचीन साक्ष्य प्राप्त हुआ है? सभी का उत्तर था - नहीं । अतः स्पष्ट हो गया कि हमारे गौरवशाली अस्तित्व की एक अद्भुत उपलब्धि अंधकार में घिर कर रह गई है।

यही नहीं भारतीय पुरातत्व विभाग से भी हमने प्रश्न किया , ताकि आश्वस्त हुआ जा सके  कि यह  साक्ष्य दुर्लभ है अथवा नहीं? विभाग ने स्वीकार किया कि हां , इसे नेशनल म्यूजियम तक तो पहुंचा दिया गया किंतु जैसा प्रचार-प्रसार होना चाहिए था वह नहीं हो सका।

राखीगढ़ी साइट से जुड़े पुरातत्त्वविदों ने हमें बताया कि हां ,यह प्रमाण इस बात को सिद्ध करता है कि आर्य बाहर से नहीं आए थे वरन वे यहां के ही मूल निवासी थे। अतः हड़प्पा और वैदिक सभ्यता में विभेद नहीं किया जा सकता है।
               पुरातत्त्वविदों ने बताया कि विगत चरण में हुई खुदाई के दौरान यहां 10 सेंटीमीटर ऊंची यह टेराकोटा की मूर्ति मिली।
इतिहासकारों ने कहा इससे पहले हमें बताया जाता रहा है कि नमस्कार वैदिक सभ्यता का अंग है , जो की हड़प्पा के बाद विकसित सभ्यता है , किंतु राखीगढ़ी से मिला यह साक्ष्य अवधारणाओं को सही कर दे रहा है।


🙏🙏 दोस्तों हमारे संस्कार ,प्रतीक और मान्यताओं के प्रमाण हड़प्पा काल से मिलने लगते हैं । हड़प्पा कालीन सभ्यता और अब किस सभ्यता में ज्यादा अंतर नहीं है यह इसका प्रमाण है।
                      प्रोफेसर वसंत शिंदे पूर्व वाइस चांसलर डेक्कन यूनिवर्सिटी पुणे

➡️ राखीगढ़ी से मिला यह प्रमाण बेहद महत्वपूर्ण है जो साबित करता है कि वैदिक सभ्यता संस्कृति बाहर से भारत में नहीं आई बल्कि हड़प्पा और उससे पहले से यहां पर मौजूद थी।
                डॉ महेंद्र सिंह  ,इतिहासकार हिसार

      ➡️ दोस्तों इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हड़प्पा सभ्यता वैदिक सभ्यता ही है। हड़प्पन लोग ही वैदिक आर्य हैं इससे पहले हमारे पास साक्ष्य नहीं थे।
                      डॉक्टर सुरेंद्र कुमार वशिष्ठ     एसो.प्रोफेसर पुरातत्व विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
  
      ➡️राखीगढ़ी में खुदाई के दौरान नमस्कार मुद्रा में एक मूर्ति मिली थी, जिसे दिल्ली के नेशनल म्यूजियम में रख दिया गया है लेकिन अब भी बहुत से लोगों को इसके बारे में पता नहीं है पुरातत्व विभाग के तरफ से भी इसका वैसा प्रचार नहीं किया गया जो कि विभाग को करना चाहिए था।

           बनानी भट्टाचार्य, डिप्टी डायरेक्टर,
 पुरातत्व विभाग हरियाणा

धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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English translate


Rat Yogi idol in salutation posture received from Rakhigarhi


8000 years old greetings of human civilization to India


 Vishwa Guru: The oldest archaeological evidence of salutation is this rare statue with salutary posture obtained from Puranagari Rakhigarhi.


 Hello friends I heartily greet all of you mountain leopard Mahendra, Friends, today I am taking you on a journey to Rakhigarhi from where our ancestors laid the foundation of civilization.



 Friends, this rare idol of salutary posture obtained from Rakhigarhi, an 8000 year old civilization, has not been able to introduce itself to the world, which it deserves.  This earliest evidence of salutation becomes important.  This idol also proves that the Aryans were not foreigners.

 The remains of an 8000 to 6000 year old civilization have been found under sesame in Rakhigarhi town in Hisar, Haryana. The Indian Archaeological Department has excavated here in a few steps while some are yet to be.  The most important of the various evidences found here is the idol of Yogi performing the salutation.

 Friends, it is important that this evidence of salutation is the oldest and rare in the developmental order of civilization.  Second, a Yogi sitting in the posture of Padmasana, a prominent Yogasana described in the Indian Yoga tradition, is depicted in this statue adding both his palms to the Namaskar Mudra.  In this, the claim of the scholars of the west falls inverted, which has been telling the Aryans of foreign origin.  However, India could not put this important archaeological evidence of civilization and history in front of the world in a way that is needed.

 Friends, this and some of our important journalists got attention on Sunday when an archeology related program was being organized here.  After this our journalists collected details from archaeologists and historians.  And found out whether anywhere before this ancient evidence of greetings or greetings has been received?  The answer to all was - no.  Therefore, it became clear that a wonderful achievement of our glorious existence is enveloped in darkness.


 Not only this, we also questioned the Archaeological Department of India, so that it can be assured that this evidence is rare or not?  The Department admitted that yes, it was delivered to the National Museum but could not be promoted as it should have been.


 Archaeologists associated with the Rakhigarhi site told us that yes, this evidence proves that the Aryans did not come from outside, but they were native here.  Hence, Harappan and Vedic civilization cannot be differentiated.

 Archaeologists said that during the excavation in the previous phase, this 10-cm tall terracotta statue was found here.

 Historians said that earlier we have been told that Namaskar is a part of Vedic civilization, which developed after Harappa, but this evidence from Rakhigarhi is correcting the concepts.



 🙏🙏 Friends, evidence of our rites, symbols and beliefs start to be found from the Harappan period.  This is the proof of the Harappan civilization and which civilization is not much different now.

 Professor Vasant Shinde Former Vice Chancellor Deccan University Pune


  This evidence found from Rakhigarhi is very important, which proves that the culture of Vedic civilization did not come from outside India, but was present here in Harappa and before that.

 Dr. Mahendra Singh, Historian Hisar


 ➡️ Friends, it makes it clear that the Harappan civilization is the Vedic civilization itself.  We had no evidence before that the Harappans are the Vedic Aryans.

 Dr. Surendra Kumar Vasistha AS.Professor Department of Archeology Kurukshetra University



 During the excavation at Rakhigarhi, an idol was found in Namaskar Mudra, which has been kept in the National Museum of Delhi, but even now many people are not aware of it.  That the department should have done.


 Banani Bhattacharya, Deputy Director,

 Archeology Department Haryana


 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra

                



Friday, October 30, 2020

झारखंड में मिली पाषाण काल की गुफाएं और आदिमानवों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पत्थरों के औजार- बड़कागांव हजारीबाग भारत. Stone Age caves found in Jharkhand and stone tools used by the Adivasis - Barkagaon Hazaribagh India

Ek yatra khajane ki khoje

                              


 

नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं झारखण्ड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड में जहां हमे पाषाण काल की गुफाएं और आदिमानवों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पत्थरों के औजार ।

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बड़कागांव -

झारखंड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर पसरिया -2 के बाघलतवा जंगल में पाषाण काल की 10 गुफाएं, पत्थरों के औजार व शैल चित्र मिले हैं। 
दोस्तों ये विस्तृत क्षेत्र मे फैले हुए हैं यह गुफा है पलांडू हो पंचायत के पसरिया-2 के अंतर्गत आती हैं, जो बड़कागांव उरीमारी रोड पर स्थित है ये गुफाएं विश्व प्रसिद्ध बड़कागांव के स्कोर एवं मध्य प्रदेश के भीमबेटका गुफा की तरह लगती है।
                       दोस्तों आपको बता दूं कि यह गुफाएं अब तक गुमनाम थी, दुनिया की नजरों से ओझल थी, अब तक यह गुफाएं प्रकाश में नहीं आ पाई थी।
                           यह बिल्कुल नई खोज है इन गुफाओं को देखने से ऐसा प्रतीत पर होता है कि ये पुरापाषाण काल एवं मध्य पाषाण काल के हैं। पुरातात्विक विज्ञान के अनुसार पुरापाषाण काल 2500000 से 10,000 ईसा पूर्व व मध्य पाषाण काल 10 से 5000 , नवपाषाण काल 7000 से 1000  वर्ष पूर्व माना जाता है।
                         दोस्तों पसरिया घाटी में 10 गुफाएं विस्तृत क्षेत्र में फैलीं हुईं हैं। इन गुफाओं को देखने से ऐसा लगता है कि यहां पाषाण काल में प्राचीन मानव सभ्यता का सबसे बड़ा केंद्र रहा होगा। यहां की 10 गुफाएं चारों ओर से चट्टानों से घिरी हुई है, मानों ऐसा लगता है कि पाषाण काल में आदिमानवों की बस्ती रहीं होगी।
           दोस्तों छोटी - बड़ी 6 गुफाएं पश्चिम दिशा में है , जबकि 4 बड़ी गुफाएं पूरब दिशा में है।
         दोस्तों पश्चिम दिशा की प्रथम गुफा में आदिमानव द्वारा बनाए गए शैल चित्र अंकित है एवं पत्थरों के औजार बिखरे पड़े हुए हैं।अब इन औजारों को संग्रह कर सुरक्षित स्थान पर रख दिया गया है इन गुफाओं के बीच में पानी का स्रोत भी है यह पानी हमेशा बहता रहता है।
                 

दोस्तों इतिहास के शिक्षक बसंत कुमार का कहना है कि पाषाण काल में आदिमानव पहाड़ी गुफाओं व कंदराओं में रहा करते थे। यह उसी का प्रमाण है। शिक्षक अरविंद कुमार, आर्यन चंद्रशेखर रजक एवं अन्य शिक्षकों का कहना है कि बड़कागांव पुरातात्विक स्रोतों का खजाना है इन गुफाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है पुरातत्व विभाग के राजेंद्र देहरी का कहना है कि पत्रकार संजय सागर द्वारा खोजी गई गुफाएं व शैल चित्र नई खोज है और अच्छी पहल है ये गुफाएं व शैल चित्र अलग-अलग कालखंड के हो सकते हैं।

दोस्तों बाघलतवा जंगल की पश्चिम दिशा में स्थित पहली गुफा की ऊंचाई लगभग 3 फीट व  लंबाई 20 फीट है। इस गुफा के द्वार के ऊपर में शैल चित्र अंकित है व सांकेतिक चित्र लिपि भी है,ये शैल चित्र रक्तिम लौह अयस्क को कुट पिसकर तैयार किए गए रंग में रंगा गया है। कुछ चित्र में कहीं कहीं चूना अथवा पत्थरों से निर्मित सफेद रंग का भी उपयोग किया गया है। इस रंग के बने चित्र देख रेख के अभाव में मिटते जा रहे है जबकि लाल रंग से रक्तिम लौह से बनाए गए चित्रों में हिरन , गाय , एवं आदमी के चित्र अंकित है। 
दोस्तों दुसरी गुफा की ऊंचाई 3 फीट है जबकि लम्बाई 15-20 फ़ीट हैं। इस गुफा में छोटे-बड़े पत्थरों के औजार बिखरे पड़े हैं , कुछ हड्डियां भी मिली है। इस गुफा के अंदर एक  बड़ी सुरंग भी है जो काफी गहरी लगती है , ऐसा लगता है जैसे किसी अन्य गुफाओं में जा मिला है। अन्य चार गुफाएं दो- ढ़ाई फ़ीट की है। जबकि पूरब दिशा में चार विशाल गुफाएं हैं , चारों में से एक नागफन आकार के चट्टान की तरह फैली हुई है इसकी ऊंचाई लगभग 20 फीट है , लम्बाई 10फीट हैं। इसी गुफा के थोड़ी दूर पर 4 फ़ीट की गुफाएं हैं और इन गुफाओं के दोनों ओर बाहर निकलने के लिए द्वारा है  इसी गुफा में हिरन एवं आदमी के शैल चित्र है।

इसी गुफा से 30 मीटर की दूरी पर स्थित दो स्तम्भ वाली बड़ी गुफाएं हैं और इस गुफा के बगल में एक और गुफा है जो घने झाड़ियों में छुपा हुआ है। जिसकी खोज करनी अभी बाकी हैं । 

धन्यवाद दोस्तों
 
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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English translate
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Hello friends, I heartily congratulate all of you mountain lepards Mahendra, Friends, today I am taking you to Barkagaon block of Hazaribagh district of Jharkhand where we have caves of stone age and stone tools used by Adivans.

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 Barkagaon -


 Ten stone caves, stone tools and rock paintings have been found in the Baghalatwa forest of Pasaria-2, 20 km from the headquarters of Barkagaon in Hazaribagh district of Jharkhand.

 Friends, these are spread over a wide area. This cave is under Palasu-2 of Palandu Ho Panchayat, which is situated on the Badkagaon Urimari Road. These caves look like the scores of the world famous Barkagaon and Bhimbetka Cave of Madhya Pradesh.
 Friends, let me tell you that till now these caves were anonymous, out of the sight of the world, till now these caves could not come to light.

 It is a completely new discovery that from looking at these caves it seems that they belong to the Palaeolithic and Middle Stone Age.  According to archaeological science, the Palaeolithic period is believed to be 2500000 to 10,000 BC and the Middle Paleolithic period 10 to 5000, Neolithic period 7000 to 1000 years ago.
 Friends, 10 caves are spread over a wide area in the Pasaria Valley.  Looking at these caves, it seems that here must have been the biggest center of ancient human civilization in the Stone Age.  The 10 caves here are surrounded by rocks from all around, as if it seems that in the Stone Age there must have been settlements of the primitive people.

 Friends, 6 big and small caves are in the west direction, while 4 big caves are in the east.

 Friends, in the first cave of the west direction, the rock paintings made by the Adimavan are inscribed and the stone tools are scattered. Now these tools have been stored and kept in a safe place. There is also a source of water in the middle of these caves.  Keeps flowing


 



 Friends history teacher Basant Kumar says that during the Stone Age, the Adimavans used to live in hill caves and tubers.  This is the proof of that.  Teachers Arvind Kumar, Aryan Chandrasekhar Rajak and other teachers say that Barkagaon is a treasure house of archaeological sources. These caves need to be preserved. Rajendra Dehri of the Department of Archeology says that the caves and rock paintings discovered by journalist Sanjay Sagar are new discoveries.  And good initiative is that these caves and rock paintings may be of different periods.


 Friends, the first cave in the west direction of Baghaltwa forest is about 3 feet in height and 20 feet in length.  The top of the entrance of this cave is inscribed with a rock image and a symbolic picture script, this rock picture has been painted in a color prepared by grinding ground iron ore.  In some paintings, white paint made of lime or stones has also been used somewhere.  Pictures made of this color are disappearing due to lack of care, while pictures made of red iron with red color have pictures of deer, cow and man.


 Friends, the second cave has a height of 3 feet while the length is 15-20 feet.  Small and big stone tools are scattered in this cave, some bones have also been found.  There is also a big tunnel inside this cave which looks quite deep, it seems like it has been found in some other caves.  The other four caves are two and a half feet.  While there are four huge caves in the east direction, one of the four is spread like a Nagafan shaped rock, it is about 20 feet in height, 10 feet in length.  There are 4 feet of caves on the far side of this cave and there is an exit for both sides of these caves, in this cave there is a picture of deer and man.


 There are two pillar large caves located 30 meters away from this cave, and next to this cave is another cave which is hidden in dense bushes.  Which is yet to be discovered

 Thanks guys



 Mountain Leopard Mahendra







Wednesday, September 2, 2020

एक यात्रा माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा के संग- महा ऋषि दधीचि A Journey with Mountain Leopard Mahendra - Maha Rishi Dadhichi

Ek yatra khajane ki khoje


नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन ले पढ़ लूंगा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता दोस्तों मैं आप लोगों को एक कहानी बताने जा रहा हूं प्राचीन भारत के सबसे महा प्रतापी, महादानी, महा ऋषि दधीचि के संबंध में। हमें जानना चाहिए हमें सुनना चाहिए अपने प्राचीन भारत के महान गाथा को ।ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों इन सब को ना भूलें।
🙏🙏

 


दधिची ऋषि ने धर्म की रक्षा के लिए अस्थि दान किया था !
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उनकी हड्डियों से तीन धनुष बने-
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१. गांडीव २. पिनाक  ३. सारंग
जिसमे से गांडीव #अर्जुन को मिला था जिसके बल पर अर्जुन ने महाभारत का युद्ध जीता !

सारंग से #भगवान_राम ने युद्ध किया था और #रावण के अत्याचारी राज्य को ध्वस्त किया था !

और, #पिनाक था #भगवान_शिव जी के पास  जिसे तपस्या के माध्यम से खुश भगवान शिव से रावण ने मांग लिया था !

परन्तु... वह उसका भार लम्बे समय तक नहीं उठा पाने के कारण बीच रास्ते में #जनकपुरी में छोड़ आया था !

इसी पिनाक की नित्य सेवा #सीताजी किया करती थी ! पिनाक का भंजन करके ही भगवान राम ने सीता जी का वरण किया था !

ब्रह्मर्षि दधिची की हड्डियों से ही #एकघ्नी नामक #वज्र भी बना था ... जो भगवान इन्द्र को प्राप्त हुआ था !

इस एकघ्नी वज्र को इन्द्र ने #कर्ण की तपस्या से खुश होकर उन्होंने कर्ण को दे दिया था! इसी एकघ्नी से महाभारत के युद्ध में #भीम का महाप्रतापी पुत्र #घटोत्कच कर्ण के हाथों मारा गया था ! और भी कई अश्त्र-शस्त्रों का निर्माण हुआ था उनकी हड्डियों से !

दधिची के इस अस्थि-दान का एक मात्र संदेश था 

'' हे भारतीय वीरो शस्त्र उठाओ और #अन्याय तथा #अत्याचार के विरुद्ध #युद्ध करो !''


                 धन्यवाद दोस्तों
       माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा

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                         English translate
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    Ek yatra khajane ki khoje



 Hello friends, I will read the mountain, heartily greetings to all of you guys, I am going to tell you a story in connection with the most majestic, great Mahadani, Maha Rishi Dadhichi of ancient India.  We should know, we should listen to the great saga of our ancient India, so that our future generations should not forget all this.

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 Dadhichi Rishi donated bone to protect religion!

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 Three bows were made from his bones.

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 1.  Gandeev 2.  Pinak 3.  Multicolored

 From which Gandiv got #Arjuna, on whose strength Arjuna won the war of Mahabharata!


 # Bhagwan_Ram had fought with Sarang and demolished the tyrannical kingdom of #Ravana!


 And, # Pinak was # near to Lord_Shivji who was sought by Ravana from the happy Lord Shiva through penance!


 But ... he could not bear his load for a long time because he had left the middle road in #Janakpuri!


 #Sitaji used to do regular service of this Pinak!  It was only after breaking Pinaka that Lord Rama killed Sita!


 A # Vajra named # Ekghni was also made from the bones of Brahmarshi Dadhichi ... which was received by Lord Indra!


 Indra was pleased with the penance of # Karna on this Ekghni Vajra and he gave it to Karna!  In the battle of Mahabharata from this Ekghni, #Ghimotkacha, the great son of Bhima, was killed by Karna!  Many more weapons were made from their bones!


 The only message of this bone donation of Dadhichi was


 "O Indian, pick up weapons and fight # # against injustice and # tyranny!"



 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra


 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏।             


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Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...