Friday, April 30, 2021

एक यात्रा अलौकिक व चमत्कारी शिव मंदिर की जहां मृत व्यक्ति पुनः जीवित हो जाता था /लाखामंडल गांव का पुरातन शिव मंदिर देहरादून उत्तराखंड भारतवर्ष ek yaatra alaukik va chamatkaaree shiv mandir kee jahaan mrt vyakti punah jeevit ho jaata tha /laakhaamandal gaanv ka puraatan shiv mandir deharaadoon uttaraakhand bhaaratavarsh.

Ek yatra khajane ki khoje



























   नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको एक ऐसे मंदिर की यात्रा पर ले जा रहा हूं जहां पहुंचते ही मृत व्यक्ति पुनः जिंदा हो उठता था। तो आइए दोस्तों चलते हैं उत्तराखंड राज्य के  देहरादून के लाखामंडल गांव की यात्रा पर जहां हम दर्शन करेंगे उस पवित्र मंदिर की जो द्वापर और त्रेता युग से संबंधित है।











  लाखामंडल गांव का अति प्राचीन शिव मंदिर


  उत्तराखंड / देहरादून

         भारतवर्ष


 नमस्कार दोस्तों उत्तराखंड के देहरादून जिले के लाखामंडल गांव के पास बहुत ही ऐतिहासिक व पौराणिक और धार्मिक महत्व की कई धरोहर मौजूद है। लेकिन सरकारी देखरेख के अभाव में यह धरोहर अब तक उपेक्षित पड़ी हुई है।दोस्तों इसी वजह से यह जगह तीर्थ यात्रियों की पहुंच से दूर है केवल कुछ स्थानीय लोग ही यहां पहुंच पाते हैं। इस पवित्र शिव धाम की यात्रा पर।

    दोस्तों देहरादून के सुदूर लाखामंडल गांव की सबसे अमूल्य धरोहर है अति प्राचीन शिव मंदिर जहां किसी कालखंड में मृत व्यक्ति भी जिंदा हो उठता था। महाकाल भोलेनाथ की कृपा से।दोस्तों भगवान शिव और मां पार्वती को समर्पित यह मंदिर महाभारत कालीन बताया जाता है दोस्तों इस इलाके में मंदिर से संबंधित दो दंतकथाएं प्रचलित है। 
















दोस्तों स्थानीय लोग बताते हैं कि इसी स्थान पर दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह का निर्माण करवाया था।लेकिन लाक्षागृह में आग लगने के बाद सभी पांडव भगवान की कृपा से एक गुफा के रास्ते होते हुए इस लाक्षागृह से बाहर निकल गए थे। दोस्तों माना जाता है कि जहां से पांडव बाहर निकले थे वह स्थान चित्रेश्वर नाम की एक गुफा है।दोस्तों चित्रेश्वर नाम की वह गुफा इस अति प्राचीन शिव मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर है जो लाखामंडल गांव के निचले हिस्से में मौजूद है।दोस्तों की किंवदंतिया है कि इसी कार्य के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने इस जगह पर मंदिर का निर्माण करवाया था , ताकि सभी पांडव शिव पार्वती की शक्तियों को धन्यवाद कर सके।

          दोस्तों एक अन्य दंतकथा के अनुसार जब पांडव महाभारत के युद्ध के बाद हिमालय के इस क्षेत्र में भ्रमण करते हुए आए तो उन्होंने इस मंदिर का निर्माण किया और यहां पर एक लाख शिवलिंग की स्थापना की। दोस्तों कहते हैं कि लाखा का मतलब है एक लाख और मंडल का अर्थ है लिंग। अर्थात दोस्तों पांडवों द्वारा एक लाख शिवलिंग को प्रतिष्ठित किए जाने के कारण ही इस जगह का नाम लाखामंडल पड़ा है। अतः दोस्तों मुझे भी यही कहानी सच लगती है पहली वाली कहानी के अपेक्षा क्योंकि दोस्तों माना जाता है कि लाक्षागृह  कुरुक्षेत्र यानी दिल्ली और उत्तर प्रदेश के आसपास कहीं मौजूद है।










दोस्तों अद्भुत रूप से केदारनाथ मंदिर की ही शैली में बने इस प्राचीन शिव मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव , माता पार्वती के अलावे काल भैरव , कार्तिकेय , माता सरस्वती , भगवान गणेश , माता दुर्गा , भगवान विष्णु , सूर्य देव , बजरंगबली आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां मौजूद है। दोस्तों इसके अलावा यहां पर धर्मराज युधिष्ठिर एवं पांचों पांडवों की भी मूर्तियां मौजूद है । दोस्तों इस मंदिर में मौजूद सभी मूर्तियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो यह एक भव्य प्राचीन संग्रहालय हो।
          
           दोस्तों जब आप यहां पहुंचेंगे तो देखोगे कि इस मंदिर के विशाल परिसर में ढेरों मूर्तियां , लघु शिवाल है और शिवलिंग यत्र तत्र बिखरे पड़े हुए हैं।दोस्तों देखभाल व संरक्षण के अभाव में कई प्राचीन मूर्तियां नष्ट भ्रष्ट हो चुकी है व खंडित होकर इधर-उधर बिखरी हुई है दोस्तों स्थानीय लोग बताते हैं कि यह मंदिर पुरातत्व विभाग वालों के देखरेख में है लेकिन पुरातत्व विभाग वाले सही तरीके से देखभाल नहीं कर रहे हैं इस कारण से यह मंदिर अब भी उपेक्षित है ।                                                      दोस्तों स्थानीय लोग बताते हैं कि मंदिर परिसर में मौजूद गहरे हरे रंग का शिवलिंग द्वापर युग का है जब भगवान कृष्ण ने अवतार लिया था। और साथ ही परिसर में मौजूद लाल रंग के शिवलिंग का संबंध त्रेता युग से बताया जाता है जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया था। दोस्तों मंदिर परिसर में एक और अद्भुत शिवलिंग मौजूद है जिस पर जल चढ़ाने पर आप अपने प्रतिबिंब को स्पष्ट रुप से देख सकते हो।


















दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से मंदिर के गर्भ गृह में मौजूद खुरों   (पैर) के निशान गाय माता के कहे जाते हैं।दोस्तों इस बारे में कहावत है कि गर्भ गृह में शिवलिंग की खोज तब की जा सकी थी , जब यमुनापार के गांव की एक गाय यहां आकर प्रतिदिन अपने दूध से शिवलिंग का अभिषेक किया करती थी। तभी इस शिवलिंग के बारे में स्थानीय लोगों को पता चल पाया था।

     दोस्तों जब आप यहां पहुंचोगे  तो देखोगे कि मंदिर के पश्चिमी हिस्से में दो मूर्तियां मौजूद हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि यह मूर्तियां द्वारपाल जय और विजय की है।दोस्तों इस बारे में मान्यता है कि इन मूर्तियों के सामने किसी मृत व्यक्ति को रख देने पर पुजारी उसके ऊपर गंगाजल छिड़क देते थे और वह व्यक्ति जिंदा हो उठता था।दोस्तों जीवित होते ही वह व्यक्ति भगवान शिव का नाम लेने लगता था , तब उसके मुंह में गंगाजल डाला जाता था जिससे वह पुनः शरीर त्याग कर स्वर्ग को चला जाता था। दोस्तों कहते हैं कि एक बार एक स्त्री ने जिंदा हो चुके अपने पति को यहां से ले जाने की कोशिश की थी , उसके बाद से ही यहां  मृत व्यक्ति की जीवित होने की शक्ति समाप्त हो गई।  











       धन्यवाद दोस्तों

    माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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      English translate
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 Hello friends I extend my hearty greetings to all of you guys at Mountain Leopard Mahendra.  Friends, on today's journey I am taking you on a journey to a temple where the dead person used to come back alive.  So let's go on a trip to the Lakhamandal village of Dehradun in Uttarakhand state where we will see the sacred temple which is related to Dwapara and Treta Yuga.














 The ancient Shiva temple of Lakhamandal village



 Uttarakhand / Dehradun


 India



 Namaskar Friends, Lakhamandal village of Dehradun district of Uttarakhand has many heritage of very historical and mythological and religious importance.  But due to lack of government care, this heritage is still neglected. Friends, due to this reason, this place is far from the reach of pilgrims, only a few local people are able to reach here.  On this pilgrimage to the holy Shiva Dham.


 Friends, the most invaluable heritage of the remote Lakhamandal village of Dehradun is the very ancient Shiva temple where even a dead person used to be alive in a period of time.  By the grace of Mahakal Bholenath. This temple dedicated to friends Lord Shiva and mother Parvati is said to be the Mahabharata period. Friends, there are two legends related to the temple in this area.


















 Friends say local people say that this is the place where Duryodhana built the Laksha Griha to kill the Pandavas. But after the fire in the Laksha Griha, all the Pandavas got out of the Laksha Griha by the grace of God via a cave.  Friends, it is believed that the place where the Pandavas came out is a cave named Chitreshwar. Friends, this cave named Chitreshwar is at a distance of 2 km from this very ancient Shiva temple which is present in the lower part of the village of Lakhamandal.  Legend has it that for this work Dharmaraja Yudhishthira had built a temple at this place, so that all the Pandavas could thank the powers of Shiva Parvati.


 According to another legend, when the Pandavas came to visit this region of the Himalayas after the war of Mahabharata, they built this temple and established one lakh Shivlinga here.  Friends say Lakha means one lakh and Mandal means gender.  That is, this place is named Lakhmandal due to the presence of one lakh Shivalinga by friends Pandavas.  So friends, the same story seems true to me as compared to the first story because friends are believed that Lakshagriha exists somewhere around Kurukshetra i.e. Delhi and Uttar Pradesh.



















 Friends, Lord Shiva, Goddess Parvati, Kaal Bhairava, Kartikeya, Mata Saraswati, Lord Ganesha, Mata Durga, Lord Vishnu, Surya Dev, Bajrangbali etc. Goddesses in this womb of this ancient Shiva temple, built in the same style as Kedarnath temple.  Statues of deities exist.  Friends, in addition to this, idols of Dharmaraja Yudhishthira and the five Pandavas are also present here.  Friends, looking at all the idols present in this temple, it seems as if it is a grand ancient museum.



 Friends, when you reach here, you will see that the huge complex of this temple has many statues, miniature Shiva and the Shivalinga scattered here and there. Many ancient idols have been destroyed and broken due to lack of friend care and protection.  Scattered friends local people say that this temple is under the supervision of the archeology department but the archeology department is not taking proper care of the reason, because of this the temple is still neglected.  Friends locals say that the dark green Shivalinga present in the temple complex dates back to the Dwapar era when Lord Krishna took incarnation.  Also, the red colored Shivling present in the premises is said to be related to the Treta Yuga when Lord Shri Ram incarnated.  Friends, there is another amazing Shivling in the temple complex, on which you can clearly see your reflection when you offer water.





















 Astonishingly, the traces of hooves (feet) in the sanctum sanctorum of the temple are said to be of the mother goddess. Friends say that the Shivling was discovered in the sanctum sanctorum when a cow from the village of Yamunapar was found here.  She used to anoint Shiva lingam every day with her milk.  Only then the local people came to know about this Shivling.


 Friends, when you reach here, you will see that there are two idols in the western part of the temple, which is said to be the idols of Dwarapal Jai and Vijay. Friends believe that to put a dead person in front of these idols.  But the priests used to sprinkle Gangajal on him and that person would get alive. As soon as the friends were alive, the person used to take the name of Lord Shiva, then Gangajal was put in his mouth from which he renounced his body and went to heaven.  Friends say that once a woman tried to take her husband who was alive from here, since then the dead person's power to live here has been exhausted.












 Thanks guys


 Mountain Leopard              Mahendra 🧗🧗









       





       Mountain Leopard             Mahendra 🧗🧗




















Wednesday, April 28, 2021

एक यात्रा शेष शैया पर सोए भगवान विष्णु की अति प्राचीन मूर्ति की खोज में , शेषशाई विष्णु बांधवगढ़ मध्य प्रदेश भारत A journey in search of an ancient statue of Lord Vishnu sleeping on Shesha Shaya, Sheshai Vishnu Bandhavgarh Madhya Pradesh India.

Ek yatra khajane ki khoje


















                 भगवान विष्णु की अति प्राचीन मूर्ति

              Very ancient idol of Lord Vishnu









  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं , मध्य प्रदेश के घने जंगलों में स्थित बांधवगढ़ की यात्रा पर जहां हम देखेंगे एक रहस्यमई किले में स्थित शेषशय्या पर सोए भगवान विष्णु की अति प्राचीन मूर्ति को।









    शेषशाई विष्णु बांधवगढ़

             मध्य प्रदेश

               भारतवर्ष

 नमस्कार दोस्तों क्या आपको पता है भारत के मध्य प्रदेश राज्य के घने जंगलों में स्थित बांधवगढ़ किले में मौजूद है भगवान विष्णु की एक अति प्राचीन मूर्ति जो कि शेष शैया पर सोए हुए अवस्था में मौजूद हैं। दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि शयन मुद्रा में भगवान विष्णु की यह मूर्ति व जहां यह मूर्ति मौजूद है यानी शिव पुराण का यह रहस्यमई पहाड़ी किला ही नहीं , बल्कि पूरा का पूरा यह पहाड़ ही चमत्कारी , रहस्यमई व अद्भुत है। 
            दोस्तों भगवान विष्णु की यह अति प्राचीन मूर्ति कम रहस्यमई नहीं है क्योंकि क्षीरसागर में विश्राम मुद्रा में उनका यह स्वरूप कम ही देखने को मिलता है। दोस्तों आज हम आपको एक ऐसे ही स्थान पर लेकर जा रहे हैं जो मौजूद है एक प्राचीन किले में लेकिन यह स्थान एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यान के लिए पहचाना जाता है जिसे हम सभी बांधवगढ़ नेशनल पार्क के रूप में जानते हैं। दोस्तों बांधवगढ़ नेशनल पार्क मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में स्थित है।





















दोस्तों ऐतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि यहां मौजूद एक पहाड़ के नाम पर ही इस जगह का नाम बांधवगढ़ पड़ा है और इसी पहाड़ पर स्थित है यह प्राचीन रहस्यमई किला जिसका निर्माण लगभग 2000 से 3000 वर्ष पहले कराया गया था। दोस्तों सिर्फ यह किला ही नहीं पूरा का पूरा पहाड़ ही रहस्यमई और अद्भुत है।दोस्तों प्राचीन दस्तावेजों से जानकारी मिलती है कि "रीवा रियासत" के महाराज राजा व्याघ्र देव ने ही इस किले का निर्माण करवाया था। साथ ही दोस्तों इस प्राचीन किले का उल्लेख "नारद पंच" और "शिव पुराण" में भी मिलता है।

          दोस्तों इस प्राचीन किले के अंदर जाने के लिए एक ही मार्ग मौजूद है जो बांधवगढ़ के घने जंगलों से होकर गुजरता है दोस्तों स्थानीय लोग बताते हैं कि इस प्राचीन किले में एक गुप्त सुरंग बनी हुई है जो सीधे "रीवा" शहर में निकलती है। परंतु दोस्तों आज तक यह सुरंग लोगों की नजर में नहीं आई है जो कि एक खोज का विषय है।






















दोस्तों ऐतिहासिक स्रोत बताते हैं कि इस क्षेत्र के स्थानीय राजा गुलाब सिंह और उनके पिता मार्तंड सिंह जूदेव इसका इस्तेमाल खुफिया किले के रूप में किया करते थे , दोस्तों बताया जाता है कि उनके द्वारा उस जमाने में यहां कई गुप्त रणनीतियां बनाई गई थी दुश्मनों के खिलाफ साथ ही वे इस किले का उपयोग गोरिल्ला युद्ध में भी किया करते थे। 

      दोस्तों जैसे ही आप प्राचीन किले की सीमा में प्रवेश करोगे तो आप देखोगे की अद्भुत रूप से भगवान विष्णु के 12 अवतारों की प्रतिमाएं यहां मौजूद पत्थरों को तराश कर बनाई गई है। दोस्तों इन मूर्तियों में कच्छप अवतार और शेष शैया पर आराम की मुद्रा में भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं। दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से शेष शैया पर विराजमान भगवान विष्णु जी के मूर्ति के ऊपर बाईं तरफ भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग मौजूद है। और पैरों के पास एक कल कल करती हुई झरना बहती है दोस्तों माना जाता है कि यह स्थान त्रिमूर्तियों यानी भगवान ब्रह्मा , विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करती है।






















दोस्तों स्थानीय दंतकथाओं के अनुसार कहते हैं कि भगवान राम ने लंका से लौट कर लक्ष्मण जी के लिए यहां पर एक किले का निर्माण करवाया था। दोस्तों शायद यही किला वह प्राचीन किला है जिसका निर्माण भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण जी के लिए करवाया था।दोस्तों वर्तमान समय में इस  किले और आसपास के घने जंगलों में बाघ और दूसरे खतरनाक जंगली जानवरों का बसेरा हो गया है।

        दोस्तों कुछ ऐतिहासिक स्रोतों से मालूम होता है कि बांधवगढ़ क्षेत्र में माघ , मौर्य , वाकाटक , सेंगर , कलचुरी और बघेल वंश के शासकों ने भी शासन किया था। और इस रहस्यमई किले को अपना ठिकाना बनाया था।

        दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यहां पर ऐसे 7 तलाब भी मौजूद हैं जो आज तक सूखे ही नहीं है दोस्तों इन तालाबों की खास बात यह है कि किसी भी मौसम में इनमे पानी लबालब भरा रहता है।
              दोस्तों इस समय यहां की देखरेख मध्य प्रदेश सरकार द्वारा की जाती है।


            धन्यवाद दोस्तों

  माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗

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         English translate
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   Hello friends I extend my hearty greetings to all of you guys at Mountain Leopard Mahendra.  Friends, today I am taking you on a journey to Bandhavgarh situated in the dense forests of Madhya Pradesh, where we will see the ancient statue of Lord Vishnu sleeping on the rest of the house in a mysterious fort.









 Sheshai Vishnu Bandhavgarh


 Madhya Pradesh


 India


 Hello friends, do you know Bandhavgarh Fort is located in the dense forests of Madhya Pradesh state of India, there is a very ancient idol of Lord Vishnu which is present in the sleeping state on the rest of the Shayya.  Friends, you will be surprised to know that this idol of Lord Vishnu in the sleeping posture and where this idol is present i.e. this mysterious hill fort of Shiva Purana is not only the whole mountain, but this whole mountain is miraculous, mysterious and amazing.

 Friends, this very ancient idol of Lord Vishnu is no less mysterious because his form is rarely seen in the resting posture in Kshirsagar.  Friends, today we are taking you to a place which is present in an ancient fort but this place is recognized for a famous national park which we all know as Bandhavgarh National Park.  Friends Bandhavgarh National Park is located in Umaria district of Madhya Pradesh.














 Friends, historical sources reveal that this place is named Bandhavgarh after the name of a mountain present here and it is on this mountain that this ancient mysterious fort was built about 2000 to 3000 years ago.  Friends, this fort is not only the whole mountain, it is mysterious and amazing. Two ancient documents provide information that King Vyaghra Dev of "Rewa Princely State" had built this fort.  Also, friends, this ancient fort is also mentioned in "Narada Panch" and "Shiva Purana".


 Friends, there is only one route to go inside this ancient fort which passes through the dense forests of Bandhavgarh. Friends, the locals tell that this ancient fort has a secret tunnel which leads directly to the city of "Rewa".  But friends, till date this tunnel has not come in the eyes of people, which is the subject of a search.


























 Friends, historical sources reveal that the local king of the region Gulab Singh and his father Martand Singh Judeo used it as an intelligence fortress, friends are told that in those days many secret strategies were made here against the enemies.  They also used this fort in gorilla warfare.


 Friends, as soon as you enter the boundary of the ancient fort, you will see that the 12 incarnations of Lord Vishnu are amazingly made by carving the stones present here.  Friends, in these idols, Kachhap Avatar and the rest of the Shaya have visions of Lord Vishnu in a relaxed posture.  Friends surprisingly, there is a Shiva lingam symbol of Lord Shiva on the left, above the idol of Lord Vishnu, resting on the rest of Shaya.  And a waterfall flows near the feet tomorrow. Friends, this place is believed to represent the Trimurtis i.e. Lord Brahma, Vishnu and Mahesh.















 Friends say according to local legends that Lord Rama returned from Lanka and built a fort here for Laxman ji.  Friends, perhaps this fort is an ancient fort built by Lord Rama for his younger brother Lakshman ji. In the present times, this fort and the surrounding dense forests are inhabited by tigers and other dangerous wild animals.


 Friends, it is known from some historical sources that the Bandhavgarh region was also ruled by the rulers of Magh, Maurya, Vakataka, Sengar, Kalchuri and Baghel dynasties.  And this mysterious fort was made its hideout.


 Friends, you will be surprised to know that there are 7 such ponds which are not dry till date, friends. The special thing about these ponds is that in any season, the water in them is full.

 Friends, at present, it is looked after by the Government of Madhya Pradesh.



 Thanks guys


 Mountain Leopard                Mahendra 🧗🧗

















Friday, April 23, 2021

एक यात्रा महामृत्युंजय उर्जा मंदिर और जागेश्वर धाम मंदिरों की जहां सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा की शुरुआत हुई थी -अल्मोड़ा उत्तराखंड भारत A visit to Mahamrityunjaya Urja Mandir and Jageshwar Dham Temples where the worship of Shivling first started - Almora Uttarakhand India

Ek yatra khajane ki khoje
















                 
                    जागेश्वर धाम मंदिर समूह का विहंगम दृश्य

               Panoramic view of the Jageshwar Dham                                           Temple Group
















  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले की यात्रा पर जहां हम देखेंगे भगवान शिव शंभू की अद्भुत धाम को जहां माना जाता है कि सर्वपथम बार शिवलिंग की पूजा इसी स्थान से शुरू हुई थी।


          महामृत्युंजय उर्जा मंदिर /जोगेश्वर धाम

       अल्मोड़ा , उत्तराखंड 

              भारतवर्ष

 दोस्तों  उत्तराखंड का महामृत्युंजय ऊर्जा मंदिर जागेश्वर धाम उत्तर भारत के एक प्रमुख शिव मंदिर के रूप में प्रसिद्ध व  प्रतिष्ठित है। दोस्तों मान्यता है कि यहां भगवान शिव जागृत अवस्था में विद्वान हैं। दोस्तों माना जाता है कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मांड में सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा करने की पद्धति हिमालय में मौजूद इसी जागेश्वर धाम मंदिर से शुरू हुआ था।
          साथ ही दोस्तों यह मंदिर प्राचीन कैलाश मानसरोवर मार्ग में ही स्थित है क्योंकि दोस्तों माना जाता है कि प्राचीन काल में कैलाश मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्री इसी मार्ग का प्रयोग करते थे।यानी दोस्तों देखा जाए तो प्राचीन काल से ही यह स्थान तीर्थ यात्रियों के बीच काफी प्रसिद्ध रहा है ।तीर्थयात्रीगण कैलाश मानसरोवर की अपनी यात्रा को सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए जागेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना करके ही आगे की यात्रा शुरू करते थे।
























  दोस्तों उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से 38 किलोमीटर दूर देवदार के घने वनों के बीच स्थित जागेश्वर धाम मंदिर का प्राचीन समय से ही काफी महत्व रहा है।दोस्तों पौराणिक दंत कथाओं में कहा गया है कि भगवान शिव अल्मोड़ा के जागेश्वर के घने जंगलों के बीच स्थित दंडेश्वर में घोर तपस्या कर रहे थे। इसी बीच भ्रमण करते हुए सप्तऋषियों की धर्मपत्नीया इसी स्थल पर आ पहुंची और समाधि में लीन भगवान शिव के दिगंबर रूप को देखकर वे सभी भगवान शिव पर मोहित हो गई और अपनी  शुद्ध बुद्ध खोकर मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई। और जब सप्तऋषि अपनी पत्नियों की खोज में इस स्थल पर पहुंचे तो अपनी पत्नियों को इस अवस्था में देखकर गुस्से में नाराज होकर भगवान शिव को पहचाने बगैर लिंग पतन का श्राप दे दिया। जिससे दोस्तों संपूर्ण ब्रह्मांड में हाहाकार व उथल-पुथल मच गई।तब जाकर सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव के क्रोध को शांत किया और जागेश्वर में लिंग की स्थापना कर लिंग की पूजा पाठ शुरू की गई।अतः दोस्तों मान्यता है कि तभी से ही शिवलिंग की पूजा पद्धति की शुरुआत हुई।















       दोस्तों ऐतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि जागेश्वर धाम में मंदिरों का निर्माण सातवीं से 17 वी शताब्दी के बीच किया गया था। साथी दोस्तों मान्यता है कि जगतगुरू आदि शंकराचार्य ने इस स्थान का भ्रमण कर इस मंदिर की मान्यता को पुनर्स्थापित किया था और यहां पर स्थापित प्राचीन शिवलिंग को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बताया था।


    दोस्तों प्राचीन जागेश्वर मंदिर को प्रसिद्ध नागर शैली में बनाया गया है दोस्तों यहां स्थापित मंदिरों की एक और विशेषता है वह यह है कि इनके शिखर में लकड़ी का "बिजौरा"यानी दोस्तों एक प्रकार का छत्र बना होता है जो बारिश और बर्फबारी  के दौरान मंदिर की सुरक्षा करता है।
             दोस्तों किसी समय में जोगेश्वर धाम लकुलीश संप्रदाय का भी प्रमुख केंद्र रहा था। दोस्तों इस संप्रदाय को भगवान शिव के 28 वें अवतार के रूप में माना जाता है।
 

    दोस्तों आश्चर्यचकित करने वाले जागेश्वर धाम के मंदिरों के समूहों में सबसे बड़े एवं खूबसूरत मंदिर महामृत्युंजय महादेव जी के नाम से प्रसिद्ध है। दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इन घने जंगलों में स्थित जागेश्वर धाम में लगभग 250 छोटे बड़े मंदिर हैं , व दोस्तों इन मंदिरों में लगभग 124 मंदिरों का समूह है जो अति प्राचीन काल से ही यहां पर मौजूद है। और जिनमें से 4 से 5 मंदिरों में प्रतिदिन पूजा अर्चना होती है।








       

    दोस्त हो इन मंदिरों में सबसे आकर्षक , बड़े व प्राचीनतम महामृत्युंजय शिव मंदिर जागेश्वर धाम के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। दोस्तों इसके अलावा जागेश्वर धाम में भैरव मंदिर , माता पार्वती मंदिर , केदारनाथ मंदिर , हनुमान मंदिर एवं माता दुर्गा के मंदिर भी विद्यमान हैं।दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से इन मंदिरों के समूहों में 108 मंदिर भगवान शिव को समर्पित है एवं 16 मंदिर अन्य देवी-देवतओं को समर्पित है। दोस्तों जागेश्वर धाम में महामृत्युंजय , जगन्नाथ , पुष्टि देवी एवं कुबेर के मंदिरों को मुख्य मंदिरों में गिना जाता है। दोस्तों सबसे बड़ी बात यह है कि धर्म ग्रंथों  स्कंद पुराण , लिंग पुराण , मार्कंडेय पुराण आदि पुराणों में जागेश्वर धाम की महिमा का बहुत ही सुंदर तरीके से गुणगान किया गया है।
  

         धन्यवाद दोस्तों

  माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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               English                              translate
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 Hello friends, I heartily greet all of you mountain lepards Mahendra, Friends, today I am taking you on a journey in Almora district of Uttarakhand, where we will see the amazing shrine of Lord Shiva Shambhu where it is believed to be the first time Shivalinga.  Worship of this place started from this place.



 Mahamrityunjaya Urja Mandir / Jogeshwar Dham


 Almora, Uttarakhand


 India


 Friends, the Mahamrityunjaya energy temple of Uttarakhand Jageshwar Dham is famous and revered as a prominent Shiva temple in North India.  Friends believe that Lord Shiva is a learned scholar here.  Friends, it is believed that according to mythological beliefs, the first method of worshiping Shivalinga in the universe started from the same Jageshwar Dham temple in the Himalayas.

 Also friends, this temple is situated in the ancient Kailash Mansarovar Marg itself because friends believed that pilgrims visiting Kailash Mansarovar in ancient times used this route.  It has been famous. The pilgrims used to undertake their journey of Kailash Mansarovar successfully by offering prayers at the Jageshwar temple.







 







 Friends, the Jageshwar Dham temple, situated amidst the dense forests of deodar, 38 km from Almora district of Uttarakhand, has been of great importance since ancient times. Friends mythology states that Lord Shiva is situated in the dense forest of Jageshwar of Almora, Dandeshwar.  I was doing severe penance.  Meanwhile, the saints of the Saptarishis came to this place while walking and seeing the Digambar form of Lord Shiva absorbed in the tomb, they all became fascinated by Lord Shiva and lost their pure Buddha and fell to the ground unconscious.  And when the Saptarishi reached this place in search of his wives, seeing his wives in this state, angry and angry, cursed the penis fall without recognizing Lord Shiva.  Due to which there was chaos and upheaval in the entire universe. Then all the gods together pacified the anger of Lord Shiva and started the worship of Linga by establishing the Linga in Jageshwar. Friends, it is believed that since then Shivalinga.  The puja system started.










 












 Friends historical sources suggest that the temples at Jageshwar Dham were constructed between the seventh to the 17th century.  Fellow friends believe that Jagatguru Adi Shankaracharya visited this place and restored the recognition of this temple and described the ancient Shivalinga established here as one of the 12 Jyotirlingas.










 Friends The ancient Jageshwar temple has been built in the famous Nagar style. Friends, another feature of the temples established here is that the wooden "Bijaura", or friends, is a type of parasol formed in their shikhara which during the rain and snowfall of the temple.  Protects.

 Friends, Jogeshwar Dham was once a major center of the Lakulish sect.  Friends, this sect is considered as the 28th incarnation of Lord Shiva.



 












 The biggest and beautiful temple among the groups of temples of Jageshwar Dham, which surprised friends, is famous as Mahamrityunjaya Mahadev Ji.  Friends, you will be surprised to know that there are about 250 small big temples in Jageshwar Dham situated in these dense forests, and friends, these temples have a group of about 124 temples which have been present here since time immemorial.  And of which 4 to 5 temples worship daily.











 Dost Ho is one of the most attractive, large and oldest Mahamrityunjaya Shiva Temple is one of the most prominent temples of Jageshwar Dham.  Friends, there are also temples of Bhairav ​​Temple, Mata Parvati Temple, Kedarnath Temple, Hanuman Temple and Mata Durga in Jageshwar Dham. Friends surprisingly, there are 108 temples in groups of these temples dedicated to Lord Shiva and 16 temples to other Goddesses.  is devoted to.  The temples of Mahamrityunjaya, Jagannath, Virmana Devi and Kubera in Friends Jageshwar Dham are counted among the main temples.  Friends, the biggest thing is that the glory of Jageshwar Dham has been praised in a very beautiful way in the Puranas like Dharma texts Skanda Purana, Linga Purana, Markandeya Purana.














 Thanks guys


 Mountain Leopard                Mahendra 🧗🧗



















Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...