Ek yatra khajane ki khoje
नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूं। दोस्तों आज की यात्रा में मैं आपको सदियों से उपयोग में लाई जाने वाली प्राकृतिक हैंडसैनीटाइजर की ओर ध्यान आकृष्ट करवाना चाहता हूं जो अभी भी गांवों में उपयोग में लाई जाती हैं।
भारतीय रसोई के चूल्हे की राख में ऐसा क्या था कि, वह पुराने जमाने का Hand Sanitizer थी ...?
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उस समय Hand Sanitizer नहीं हुआ करते थे, तथा साबुन भी दुर्लभ वस्तुओं की श्रेणी आता था। उस समय हाथ धोने के लिए जो सर्वसुलभ वस्तु थी, वह थी चूल्हे की राख। जो बनती थी लकड़ी तथा गोबर के कण्डों के जलाये जाने से। चूल्हे की राख का रासायनिक संगठन है ही कुछ ऐसा ।
आइये चूल्हे की राख का वैज्ञानिक विश्लेषण करें। इस राख में वो सभी तत्व पाए जाते हैं, वे पौधों में भी उपलब्ध होते हैं। इसके सभी Major तथा Minor Elements पौधे या तो मिट्टी से ग्रहण करते हैं या फिर वातावरण से। इसमें सबसे अधिक मात्रा में होता है Calcium.
इसके अलावा होता है Potassium, Aluminium, Magnesium, Iron, Phosphorus, Manganese, Sodium तथा Nitrogen. कुछ मात्रा में Zinc, Boron, Copper, Lead, Chromium, Nickel, Molybdenum, Arsenic, Cadmium, Mercury तथा Selenium भी होता है ।
राख में मौजूद Calcium तथा Potassium के कारण इसकी ph क्षमता ९.० से १३.५ तक होती है। इसी ph के कारण जब कोई व्यक्ति हाथ में राख लेकर तथा उस पर थोड़ा पानी डालकर रगड़ता है तो यह बिल्कुल वही माहौल पैदा करती है जो साबुन रगड़ने पर होता है।
जिसका परिणाम होता है जीवाणुओं और विषाणुओं का विनाश । आइये, अब मनन करें सनातन धर्म के उस तथ्य पर जिसे अब सारा संसार अपनाने पर विवश है। सनातन में मृत देह को जलाने और फिर राख को बहते पानी में अर्पित करने का प्रावधान है। मृत व्यक्ति की देह की राख को पानी में मिलाने से वह पंचतत्वों में समाहित हो जाती है ।
मृत देह को अग्नि तत्व के हवाले करते समय उसके साथ लकड़ियाँ और उपले भी जलाये जाते हैं और अंततः जो राख पैदा होती है उसे जल में प्रवाहित किया जाता है । जल में प्रवाहित की गई राख जल के लिए डिसइंफैकटैण्ट का काम करती है ।
इस राख के कारण मोस्ट प्रोबेबिल नम्बर ऑफ कोलीफॉर्म (MPN) में कमी आ जाती है और साथ ही डिजोल्वड ऑक्सीजन (DO) की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी होती है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह स्पष्ट हो चुका है कि गाय के गोबर से बनी राख डिसइन्फैक्शन के लिए एक एकोफ़्रेंडली विकल्प है...
जिसका उपयोग सीवेज वाटर ट्रीटमैंट (STP) के लिए भी किया जा सकता है। सनातन का हर क्रिया कलाप विशुद्ध वैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है। इसलिए सनातन अपनाइए स्वस्थ रहिये ।
आपने देखा होगा कि नागा साधु अपने शरीर पर धूनी की राख मलते हैं जो कि उन्हें शुद्ध रखती है साथ ही साथ भीषण ठंडक से भी बचाये रखती है ।
धन्यवाद दोस्तों
माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा
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English translate
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Hello friends I extend my hearty greetings to all of you mountain leopard Mahendra. Friends, in today's journey, I would like to draw attention to the natural hand sanitizer used for centuries which is still used in villages.
What was it that in the ashes of Indian kitchen stove, it was an old-fashioned Hand Sanitizer…?
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Hand Sanitizer was not available at that time, and soaps also came under the category of rare items. At that time, the most common item for washing hands was the stove's ashes. Which was made by burning wood and cow dung. The chemical composition of the stove is something like this.
Let's do a scientific analysis of the stove. All those elements are found in this ash, they are also available in plants. All its Major and Minor Elements plants are either taken from the soil or from the environment. It contains the highest amount of Calcium.
Also contains Potassium, Aluminum, Magnesium, Iron, Phosphorus, Manganese, Sodium and Nitrogen. Zinc, Boron, Copper, Lead, Chromium, Nickel, Molybdenum, Arsenic, Cadmium, Mercury and Selenium are also present in some amounts.
Due to the calcium and potassium present in the ash, its ph capacity varies from 7.0 to 13.5. Due to this ph, when a person rubs with ashes in his hand and pours some water on it, it creates exactly the same atmosphere as when soap is rubbed.
The result of which is the destruction of bacteria and viruses. Come, now consider that fact of Sanatan Dharma, which is now forced to adopt the whole world. There is a provision of burning the dead body in Sanatan and then offering the ashes in the flowing water. By mixing the ashes of the dead person's body in water, it is absorbed in the five elements.
While handing over the dead body to the fire element, wood and dung cakes are also burnt along with it and finally the ash that is produced is flown into the water. The ash that flows in the water acts as a disinfectant for the water.
This ash reduces the most probable number of coliform (MPN) and also increases the amount of dissolved oxygen (DO). It has been clear in scientific studies that ash made from cow dung is an eco-friendly alternative for disinfection ...
Which can also be used for sewage water treatment (STP). Every activity of Sanatan is based on purely scientific concept. Therefore, stay healthy, stay eternally.
You must have seen that Naga sadhus rub fumes of fumigation on their body which keeps them pure as well as protecting them from the fierce cold.
Thanks guys
Mountain Leopard Mahendra
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