Wednesday, August 3, 2022

एक यात्रा - अतिप्राचीन वाराह मंदिर एरन सागर मध्य प्रदेश भारतवर्षA Journey - Ancient Varaha Temple Eran Sagar Madhya Pradesh India

Ek yatra khajane ki khoje


  








  नमस्कार दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं एक ऐसी अतिप्राचीन मंदिर की यात्रा पर जो विशालकाय वराह की प्रतिमा के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं । दोस्तों भगवान विष्णु को समर्पित यह अद्भुत और अलौकिक प्राचीनतम मंदिर अपने विशिष्ट वास्तुशिल्प के कारण भी जाना जाता है।








 दोस्तों मध्य प्रदेश के सागर जिले में मौजूद हैं एरन  ।  दोस्तों आज वर्तमान समय में यहा का रास्ता ज्यादातर लोगों को पता नहीं है पर दोस्तों प्राचीन भारत का प्रत्येक प्रमुख रास्त यहीं से होकर गुजरता दोस्तों हम जैसे धर्म का इतिहास जानने में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह एक खास बात है कि एरन  में भगवान विष्णु को दो अवतारों - भगवान नरसिम्हा और पशु अवतार वाराह की मंदिर और विशालकाय मूर्तियां मौजूद है। 








 आइये दोस्तों अवलोकन करते हैं एरन में मौजूद भगवान विष्णु के मंदिरों के समूहों का ।


     दोस्तों जैसे ही आप  एरन पहुंचेंगे तो आप देखेंगे कि भगवान विष्णु के मंदिरों के समूहों के दाएं तरफ भगवान विष्णु के पशु अवतार वाराह की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है। दोस्तों  जो 13 फ़ीट ऊंची और 12 फ़ीट लंबी यह मूर्ति भारतवर्ष में वाराह की सबसे विशालकाय मूर्तियों में से एक है।
           
             दोस्तों क्या आप जानते हों विशाल और प्रचंड जैसे शब्द अनुमानतः इसी मूर्ति को देखकर गढ़े गए हो ऐसा अनुभव इसे प्रत्यक्ष रूप से देखने से मालूम होता है।






       दोस्तों इसकी ऐतिहासिकता को देखने पर पता चलता है कि गुप्त कालीन मूर्ति कला में वाराह की यह प्राचीन मूर्ति विशेष स्थान रखती है। 

     दोस्तों आप देखोगे कि वाराह की प्रतिमा के मुख में जिव्हा के उपर देवी मां सरस्वती विराजमान हैं और वहीं स्त्री रूप में देवी पृथ्वी वाराह की दाईं दाढ़ पकड़े हुए हैं। जो अद्भुत है और महाप्रलय उस कहानी की याद दिलाती है जिसमें भगवान विष्णु द्वारा  वाराह अवतार धारण कर अंतरिक्ष में मौजूद अथाह समुद्र से पृथ्वी को बाहर निकाल कर उसका पुनः उद्धार किया था। 








            दोस्तों आपको पता है इस अलौकिक प्राचीनतम दंतकथा के अंतर्गत भारतीय मूर्तिकला में अक्सर दो प्रकार की मूर्तियां बनती हैं। पहली प्रकार हैं  नृवाराह की मूर्ति जिसमें उनके दांतों पर गोल पृथ्वी धारित है।
                       और दूसरी प्रकार में पशु वाराह की यह प्रतिमा जिसमें स्त्री रूप धारण किए हुए भू-देवी  वाराह की दाढ़ पकड़े हुए हैं। साथ ही दोस्तों इस प्राचीन वाराह मूर्ति में बाएं तरफ एक विशाल नाग को उपर की तरफ उत्कीर्ण किया गया है और दोस्तों इस प्राचीन वाराह मूर्ति के पुरे शरीर पर कमंडल धारी ऋषि और देवताओं को प्रभावशाली रूप से उत्कीर्ण किया गया है।






            ऐतिहासिकता

 दोस्तों वाराह देवता की यह महाकाय प्रतिमा  भारतीय इतिहास में हूणों के काल का प्रतिनिधित्व करतीं हैं।

       दोस्तों माना जाता है कि गुप्त वंश के कमजोर पड़ते ही  हूणों ने मालवा क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया था। और उनका नेता  'तोरमण' इस क्षेत्र का राजा बन गया था।






              दोस्तों आप देखेंगे कि महाराज 'तोरमण' के राजत्वकाल का सूचनात्मक लेख इस प्राचीन वाराह की प्रतिमा अंकित है। दोस्तों इस लेख को सर्व प्रथम सन् 1838 में कैप्टन  टीएस . बर्ट ने खोजा और पढ़ा था।

     दोस्तों इस लेख को  महाराज तोरमण के अधीनस्थ शासक धन्यविष्णु ने उत्कीर्ण करवाया था। दोस्तों इस प्राचीन और ऐतिहासिक लेख में महाराज तोरमण के प्रथम राजयवर्ष का मात्र उल्लेख किया गया है। दोस्तों इसके अलावा हूणं वंश के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। 








      दोस्तों पुरा का पुरा लेख  अधीनस्थ शासक धन्यविष्णु और उनके पूर्वजों का ही  उल्लेख करता है  दोस्तों इनमें धन्यविष्णु के पूर्वज  मातृ विष्णु , इंद्र विष्णु , वरुण विष्णु ,  व हरिविष्णु की विशेषताओं को  इंगित किया गया है। साथ ही दोस्तों  अभिलेख में धन्यविष्णु द्वारा एरण में वाराह मंदिर बनाए जाने का भी उल्लेख किया गया है । दोस्तों मंदिर के बनाए जाने के तिथि के रूप में केवल फाल्गुन मास का 10 वा दिन ही अंकित है। वर्ष का उल्लेख नहीं किया गया है। दोस्तों अनुमानित है कि इस प्राचीन वाराह मंदिर का निर्माण 485 ईस्वी से 500 ईस्वी के मध्य हुआ होगा।

      धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।
  







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  English Translation
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 Hello friends, on today's journey, I am taking you on the journey of such an ancient temple which is world famous for the statue of giant Varaha.  Friends, this wonderful and supernatural oldest temple dedicated to Lord Vishnu is also known for its distinctive architecture.







 Friends are present in Sagar district of Madhya Pradesh.  Friends, today, most people do not know the way here, but friends, every major road of ancient India passes through here, friends, it is a special thing for those who are interested in knowing the history of religion like us, that Lord Vishnu is worshiped in Eran.  The temple and giant sculptures of two incarnations - Lord Narasimha and the animal avatar Varaha are present.






   
    Let's see friends, the groups of temples of Lord Vishnu present in Eran.



 Friends, as soon as you reach Eran, you will see that a giant statue of Lord Vishnu's animal avatar Varaha is installed on the right side of the groups of temples of Lord Vishnu.  Friends, this idol which is 13 feet high and 12 feet long is one of the largest statues of Varaha in India.



 Friends, do you know that words like Vishal and Prachanda are supposed to have been coined by looking at this idol, such an experience is known by seeing it directly.









 Friends, seeing its historicity, it is known that this ancient idol of Varaha holds a special place in the Gupta period sculpture.


 Friends, you will see that in the face of the statue of Varaha, Goddess Saraswati is seated on the top of the tongue and while in female form Goddess Prithvi is holding the right molar of Varaha.  Which is amazing and reminds of the story of Mahapralay, in which Lord Vishnu, incarnated as a Varaha avatar, took the earth out of the unfathomable sea present in space and saved it again.








   
   Friends, you know that under this supernatural ancient legend, two types of sculptures are often made in Indian sculpture.  The first type is the idol of Nrivarah in which the round earth is held on his teeth.

 And in the second type, this statue of the animal Varaha, in which the earth-goddess, in female form, is holding the molars of Varaha.  Also friends, in this ancient Varaha idol, a huge serpent has been engraved on the left side and friends, the kamandala sages and deities have been engraved effectively on the entire body of this ancient Varaha idol.








          historicity

  
     Friends, this giant statue of Varaha Devta represents the era of Huns in Indian history.


 Friends, it is believed that as soon as the Gupta dynasty weakened, the Huns had taken control of the Malwa region. And their leader, 'Toraman' had become the king of this region.








 Friends, you will see that the informational article of the reign of Maharaj 'Toraman' is inscribed in the statue of this ancient Varaha. Friends, this article was first published in 1838 by Captain TS. Burt had searched and read.


 Friends, this article was engraved by Dhanyavishnu, a subordinate ruler of Maharaj Toman. Friends, in this ancient and historical article, only the first royal year of Maharaj Toman has been mentioned. Apart from this, no information has been given about the Hunam dynasty.







 Friends Pura's entire article mentions only the subordinate ruler Dhanyavishnu and his ancestors. Friends, among them the characteristics of Dhanyavishnu's ancestors, Mother Vishnu, Indra Vishnu, Varun Vishnu, Om and Harivishnu have been pointed out. Along with this, there is also a mention of the construction of Varaha temple in Eran by Dhanyavishnu in the inscription. Friends, only the 10th day of Falgun month is marked as the date of construction of the temple. The year is not mentioned. Friends, it is estimated that this ancient Varaha temple must have been built between 485 AD to 500 AD. 









      Thanks guys that's all for today.











       
























































Wednesday, July 6, 2022

एक यात्रा - आदिनाथ मंदिर रणकपुर राजस्थान भारतवर्षA Visit - Adinath Temple Ranakpur Rajasthan Indiavarsh.

Ek yatra khajane ki khoje























 नमस्कार दोस्तों मैं पर्वतारोही महेंद्र कुमार आप सभी लोगों का अपने यात्रा ब्लॉग पर हार्दिक अभिनंदन करता हूं। दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं रणकपुर जहां मौजूद हैं अद्भुत अलौकिक आदिनाथ मंदिर जो अपने अद्भुत वास्तुशिल्प और अलौकिक नक्काशी के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं।








       रणकपुर आदिनाथ मंदिर 

           राजस्थान


             भारतवर्ष






   दोस्तों राजस्थान राज्य के पाली जिले में अरावली पर्वतमाला की घाटियों के मध्य स्थित रणकपुर में ऋषभदेव का चतुर्मुखी जैन मंदिर हैं  दोस्तों चारों ओर जंगलों से घिरे इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। 

       दोस्तों राजस्थान का रणकपुर जैन मंदिर जैन धर्म के के पांच तीर्थ स्थलों में से एक हैं । दोस्तों रणकपुर का जैन मंदिर खुबसूरत नक्काशी और अपनी प्राचीनता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं । दोस्तों इन मंदिरों का निर्माण 15 वीं शताब्दी में राणा कुम्भा के शासन काल में हुआ था माना जाता है। लेकिन दोस्तों यह मंदिर 15 वीं शताब्दी से कहीं ज्यादा प्राचीन हैं।






     आइये दोस्तों जानते हैं रणकपुर के आदिनाथ मंदिर के इतिहास को।

 दोस्तों इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया यह आज भी पहेली बना हुआ हैं क्योंकि दोस्तों इसकी  सही जानकारी मिल पाना आज भी संभव नहीं है क्योंकि इसकी वास्तुशिल्प ठीक उसी प्रकार का है जिस तरह का दो ढाई हजार वर्ष पहले का हुआ करता था।

   दोस्तों इस मंदिर का निर्माण का वर्णन चालुक्यो के इतिहास में भी दर्ज है। दोस्तों इनके इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि इस भव्य मंदिर का निर्माण चालुक्य वंश राजाओं ने करवाया था।







    लेकिन दोस्तों जानकारी हासिल करने पर पता चलता है कि उदयपुर वाले भी इस मंदिर पर अपना दावा ठोकते हैं और कहते हैं कि हमारे पूर्वजों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। और तो और दोस्तों वहीं जैन धर्म वालों का मानना है कि यह मंदिर हमने बनवाया है।
                  अतः दोस्तों इस मंदिर का सही इतिहास मिल पाना संभव नहीं है लेकिन दोस्तों पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने जितना इस मंदिर के संबंध में जानकारी हासिल किया है उसके आधार पर यह माना जाता है कि यह प्राचीन मंदिर कम से कम दो से ढाई हजार साल पुराना है और आज भी भव्यता से खड़ा हैं।







        दोस्तों जानकारी हासिल करने से पता चलता है कि सम्भवतः इस मंदिर का निर्माण मौर्य शासकों ने करवाया था। और उसके बाद आगे चलकर चालुक्य वंश के शासकों ने जीर्णोद्धार किया था।

         दोस्तों कालांतर में जैनों ने महाराणा कुम्भा से इस मंदिर को खरीदकर खुद भी इसे और भी भव्यता प्रदान की । और आज अपने उसी स्वरुप में विद्यमान हैं।

        दोस्तों ये सब इतिहास और प्राचीनता की बातें हैं जिसे छोड़ा जाएं , फिर भी जिसने भी इस मंदिर का निर्माण किया था , वे सभी महान और वास्तुशिल्प में निपुण रहें होंगे।








    दोस्तों हमे गर्व करना चाहिए कि क्योंकि हजारों साल पुरानी अद्भूत और अलौकिक विरासत आज हम भारतियों के पास मौजूद हैं जिस पर प्रत्येक भारतवासी गर्व करते हैं।

     धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।   








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        English Translat
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 Hello friends, I am a mountain climber, Mahendra Kumar, warmly greet all of you on my travel blog.  Friends, I am taking you on today's journey to Ranakpur where there is a wonderful supernatural Adinath temple which is world famous for its amazing architectural and supernatural carvings.








 Ranakpur Adinath Temple


 Rajasthan



 Bharatvarsh








 Friends, there is a Chaturmukhi Jain temple of Rishabhdev in Ranakpur, situated in the middle of the valleys of the Aravalli ranges in the Pali district of Rajasthan state.


 Friends, Ranakpur Jain Temple of Rajasthan is one of the five pilgrimage sites of Jainism.  Friends, the Jain temple of Ranakpur is famous all over the world for its beautiful carvings and its antiquity.  Friends, these temples are believed to have been built in the 15th century during the reign of Rana Kumbha.  But friends, this temple is more ancient than the 15th century.






      
  Come friends, let us know the history of Adinath temple of Ranakpur.


 Friends, who got this temple built, it remains a puzzle even today because it is not possible to get the correct information about it, because its architecture is exactly the same as it used to be two and a half thousand years ago.


 Friends, the description of the construction of this temple is also recorded in the history of Chalukyo.  Friends, it is recorded in the pages of their history that this grand temple was built by the Chalukya dynasty kings.







 But friends, on getting information, it is known that the people of Udaipur also stake their claim on this temple and say that our ancestors had built this temple.  Apart from this, the people of Jain religion believe that we have built this temple.

 So friends, it is not possible to get the exact history of this temple, but friends, archaeologists and historians have obtained information about this temple, on the basis of which it is believed that this ancient temple is at least two to two and a half thousand years old and  Still standing majestically today.







 Friends, getting information shows that this temple was probably built by the Maurya rulers.  And after that it was renovated later by the rulers of Chalukya dynasty.


 Friends, later on, the Jains themselves gave it even more grandeur by buying this temple from Maharana Kumbha.  And today it exists in its same form.







 Friends, these are all things of history and antiquity, which should be left out, yet whoever built this temple, they must have been great and expert in architecture.


 Friends, we should be proud that because thousands of years old wonderful and supernatural heritage is present with us Indians today, which every Indian is proud of.


 Thanks guys that's all for today.






















 Mountaineer Mahendra Kumar 🧗🧗

















 

     

Tuesday, July 5, 2022

एक यात्रा - रामराजा मंदिर ओरछा मध्यप्रदेश भारतA Tour - Ramraja Temple Orchha Madhya Pradesh India.

Ek yatra khajane ki khoje










     नमस्कार दोस्तों मै पर्वतारोही महेंद्र कुमार आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज कि यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं एक ऐसे अनोखे मंदिर कि यात्रा जहां प्रभू श्री राम राजा के रूप में विराजमान हैं अपने बाल स्वरूप में । 


            रामराजा मंदिर

            ओरछा मध्यप्रदेश

                 भारतवर्ष









 दोस्तों ओरछा भारत के मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित एक प्राचीन ऐतिहासिक नगरी हैं। इसकी स्थापना रूद्र प्रताप सिंह द्वारा अपने राज्य की राजधानी के रूप में सन् 1501 के आस पास किसी समय में की थी । 

        दोस्तों ओरछा बुंदेलखंड में बेतवा नदी के किनारे बसा हुआ हुआ है। दोस्तों यह टीकमगढ़ से 80 किलोमीटर दूर और उत्तर प्रदेश राज्य के झांसी से 15 किलोमीटर दूर स्थित है और दोस्तों यही पर मौजूद हैं भगवान श्री राम की अनोखी राम राजा मंदिर जहां भगवान श्री राम अपने बाल्यकाल में मौजूद हैं।








              रामराजा मंदिर

 दोस्तों  भगवान् श्री राम का ओरछा में 400 वर्ष पहले राज्याभिषेक हुआ था और उसके बाद से वर्तमान में आज तक यहां भगवान श्री राम को राजा के रूप में पूजा जाता है। दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह मंदिर  सम्पूर्ण विश्व का एकमात्र ऐसा अद्भुत मंदिर है जहां भगवान श्री राम का राजा के रूप में पूजा जाता है।






   दोस्तों रामराजा के अयोध्या से ओरछा आने की एक अत्यंत ही सुंदर कथा है।


    दोस्तों कहा जाता है कि 500 वर्ष पहले एक दिन ओरछा  नरेश महाराज मधुकर शाह ने अपनी धर्मपत्नी गणेश कुंवर से भगवान कृष्ण के उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन दोस्तों रानी प्रभु श्री राम की अनन्य भक्त थी अतः उन्होंने  वृंदावन चलने से मना कर दिया। इससे क्रोध में आकर राजा ने यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा लें कर  आओ।

      दोस्तों इसके बाद रानी  अयोध्या पहुंच कर सरयू नदी के किनारे लक्षमण क़िले के पास अपनी कुटिया बनाकर प्रभु श्री राम की आराधना शुरू कर दी।

      दोस्तों आपको पता है  इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसी दास भी अयोध्या में प्रभु श्री राम की साधना कर रहे थे । दोस्तों कहा जाता है कि तुलसी दास से आशीर्वाद प्राप्त कर रानी की अराधना दृढ़ से दृढतर होती गई। लेकिन दोस्तों रानी को कई महीनों तक  प्रभु श्री राम की दर्शन नहीं हुए। अंततः दोस्तों वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू नदी की अथाह जलराशि में कूद पड़ी । लेकिन दोस्तों प्रभू की माया अपरम्पार होती है दोस्तों यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें प्रभू श्री राम के दर्शन प्राप्त हुएं।









             दोस्तों रानी ने प्रभू श्री राम को अपना मंतव्य बताया जिसे सुनकर प्रभू श्री राम ने ओरछा चलना स्वीकार कर लिया किन्तु प्रभू श्री राम तीन शर्तें रखी। पहली यह कि ओरछा तक कि यात्रा पैदल होगी  , दुसरी शर्त यह कि यात्रा केवल पुष्प नक्षत्र में होगी , और तीसरा शर्त यह था दोस्तों कि  रामलला की मूर्ति जिस स्थान पर रखीं जाएगी वहां से पुनः नहीं उठेगी।

          दोस्तों रानी ने राजा को संदेश भेजा कि वो प्रभू श्री राम को लेकर ओरछा आ रही है दोस्तों यह सुनकर राजा मधुकर शाह ने रामराजा के विग्रह को स्थापित करने केलिए उस जमाने में करोड़ों रुपए की लागत से प्रभू श्री राम के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाया।
                दोस्तों जब रानी ओरछा पहुंची तो रात्रि हो जाने की वजह से उन्होंने प्रभु श्री राम की मूर्ति को अपने महल के भोजन कक्ष में रख दिया और यह निश्चित हुआ कि शुभ मुहूर्त में प्रभू श्री राम की मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी।








              लेकिन दोस्तों शर्त के अनुसार प्रभू श्री राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज मंदिर जाने से मना कर दिया। 
              दोस्तों कहते हैं कि प्रभू श्री राम यहां अपने बाल स्वरूप में आए और अपनी मां का महल छोड़कर वे मंदिर में कैसे जा सकतें थे। अंत दोस्तों आज भी प्रभू श्री राम इसी रानी महल में विराजमान हैं और उनके लिए बना करोड़ों का चतुर्भुज मंदिर आज भी वीराना पड़ा है। दोस्तों यह मंदिर आज भी मूर्ति विहिन है ।









       दोस्तों यह भी एक संयोग कि बात है कि जिस संवत् 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ था , उसी दिन संत शिरोमणि तुलसी दास जी द्वारा पवित्र रामचरितमानस का लेखन भी पूर्ण हुआ था।

       दोस्तों एक और अलौकिक कहानी यह है कि जो भगवान श्री राम कि मूर्ति ओरछा में विद्यमान हैं उनके बारे में बताया जाता है कि जब भगवान श्री राम वनवास जा रहें थे तो उन्होंने अपनी एक बाल स्वरूप मूर्ति अपनी माता कौशल्या को दी थी। दोस्तों माता कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं। और जब भगवान श्री राम अयोध्या लौटे तो माता कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में प्रवाहित कर दीं थीं। दोस्तों यही मूर्ति रानी गणेश कुंवर को  भगवान श्री राम के द्वारा सरयू नदी के मझधार से निकाल कर रानी को दीं गईं थीं।

       दोस्तों यह सम्पूर्ण विश्व का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान श्री राम की पूजा राजा के रूप में होती हैं। और सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात प्रत्येक दिन सलामी दी जाती है। दोस्तों यहां भगवान श्री राम ओरछाधीश के रूप में विराजमान हैं।
   
      दोस्तों रामराजा मंदिर के चारों ओर वीर बजरंगबली का मंदिर है जैसे छड़दारी हनुमानजी , बजरिया के हनुमान जी , लंका हनुमान जी का मंदिर मौजूद हैं जो रामराजा के सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ़ है। दोस्तों ओरछा के अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर , पंचमुखी महादेव , राधिका बिहारी मंदिर ,राजा महल , राय प्रवीण महल , हरदौल की बैठक , हरदौल की समाधि आदि प्रमुख हैं।   

     धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।

   






 



    









































   English Translat
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 Hello friends, I warmly greet all of you, mountain climber Mahendra Kumar, friends, today I am taking you on this journey to visit such a unique temple where Lord Shri Ram is seated in the form of a king in his child form.








 Ramraja Temple


 Orchha Madhya Pradesh


 Bharatvarsh




 Friends Orchha is an ancient historical city located in Niwari district of Madhya Pradesh, India. It was founded by Rudra Pratap Singh sometime around 1501 as the capital of his kingdom.


 Friends Orchha is situated on the banks of Betwa river in Bundelkhand. Friends, it is located 80 kilometers away from Tikamgarh and 15 kilometers from Jhansi in the state of Uttar Pradesh, and friends, this is the unique Ram Raja temple of Lord Shri Ram, where Lord Shri Ram is present in his childhood.







 Ramraja Temple


 Friends, Lord Shri Ram was coronated 400 years ago in Orchha and since then till today Lord Shri Ram is worshiped here as a king. Friends, you will be surprised to know that this temple is the only wonderful temple in the whole world where Lord Shri Ram is worshiped as a king.











        Friends, there is a very beautiful story of Ramraja coming from Ayodhya to Orchha.



 Friends, it is said that 500 years ago one day Orchhanresh Maharaj Madhukar Shah asked his wife Ganesh Kunwar to go to Vrindavan with the intention of worshiping Lord Krishna.  But friends, Rani was an exclusive devotee of Lord Shri Ram, so she refused to go to Vrindavan.  Angered by this, the king said that if you are such a devotee of Ram, then go and cover your Ram and come.


 Friends, after reaching Ayodhya, the queen started worshiping Lord Shri Ram by making her hut near Lakshman fort on the banks of river Saryu.








 Friends, you know that these days Saint Shiromani Tulsi Das was also doing spiritual practice of Lord Shri Ram in Ayodhya.  Friends, it is said that after receiving blessings from Tulsi Das, the worship of the queen grew stronger and stronger.  But friends Rani did not see Lord Shri Ram for many months.  Eventually friends, she jumped into the bottomless waters of the Sarayu river to give up her life in despair.  But friends, the Maya of the Lord is incomparable, friends, here in the depths of the water, they got the darshan of Lord Shri Ram.










        Friends, Rani told Prabhu Shri Ram her intention, after hearing which Prabhu Shri Ram accepted to walk in Orchha, but Lord Shri Ram kept three conditions.  The first is that the journey up to Orchha will be on foot, the second condition is that the journey will be only in Pushpa Nakshatra, and the third condition was that the idol of Ram Lalla will not rise again from the place where it will be kept.


 Friends, Rani sent a message to the king that she is coming to Orchha with Lord Shri Ram. Friends, hearing this, King Madhukar Shah built a quadrangle temple for Lord Shri Ram at a cost of crores of rupees at that time to establish the Deity of Ramraja.  .

 Friends, when the queen reached Orchha, because it was night, she kept the idol of Lord Shri Ram in the dining room of her palace and it was decided that in the auspicious time, the idol of Lord Shri Ram would be established in the Chaturbhuj temple.  .








 But friends, according to the condition, this Deity of Lord Shri Ram refused to go to the Chaturbhuj temple.

 Friends say that Lord Shri Ram came here in his child form and how could he leave his mother's palace and go to the temple.  Finally friends, even today Lord Shri Ram is seated in this queen's palace and the quadrangle temple built for him has to be deserted even today.  Friends, this temple is still idolless.










       Friends, it is also a matter of coincidence that the Samvat on which Ramraja had arrived in Orchha in 1631, on the same day the writing of the holy Ramcharitmanas by Saint Shiromani Tulsi Das was also completed.


 Friends, another supernatural story is that the idol of Lord Shri Ram who is present in Orchha is told that when Lord Shri Ram was going to exile, he gave one of his childhood idols to his mother Kaushalya.  Friends, mother Kaushalya used to offer child bhog to him.  And when Lord Shri Ram returned to Ayodhya, Mata Kaushalya had immersed this idol in the river Saryu.  Friends, this idol was given to Rani Ganesh Kunwar by Lord Shri Ram from the middle of the river Sarayu and given to the queen.












 Friends, this is the only temple in the whole world where Lord Shri Ram is worshiped in the form of a king.  And salami is given every day before sunrise and after sunset.  Friends, Lord Shri Ram is seated here in the form of Orchhadheesh.



 Friends, around the Ramraja temple, there is a temple of Veer Bajrangbali such as Chaddari Hanumanji, Hanuman of Bajaria, Lanka Hanuman ji's temple is present which is around in the form of protection wheel of Ramraja.  Friends, among other valuable heritage of Orchha, Laxmi Temple, Panchmukhi Mahadev, Radhika Bihari Temple, Raja Mahal, Rai Praveen Mahal, Meeting of Hardaul, Samadhi of Hardaul etc. are prominent.


      Thanks guys that's all for today.


     




















           

Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...