Friday, April 23, 2021

एक यात्रा महामृत्युंजय उर्जा मंदिर और जागेश्वर धाम मंदिरों की जहां सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा की शुरुआत हुई थी -अल्मोड़ा उत्तराखंड भारत A visit to Mahamrityunjaya Urja Mandir and Jageshwar Dham Temples where the worship of Shivling first started - Almora Uttarakhand India

Ek yatra khajane ki khoje
















                 
                    जागेश्वर धाम मंदिर समूह का विहंगम दृश्य

               Panoramic view of the Jageshwar Dham                                           Temple Group
















  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले की यात्रा पर जहां हम देखेंगे भगवान शिव शंभू की अद्भुत धाम को जहां माना जाता है कि सर्वपथम बार शिवलिंग की पूजा इसी स्थान से शुरू हुई थी।


          महामृत्युंजय उर्जा मंदिर /जोगेश्वर धाम

       अल्मोड़ा , उत्तराखंड 

              भारतवर्ष

 दोस्तों  उत्तराखंड का महामृत्युंजय ऊर्जा मंदिर जागेश्वर धाम उत्तर भारत के एक प्रमुख शिव मंदिर के रूप में प्रसिद्ध व  प्रतिष्ठित है। दोस्तों मान्यता है कि यहां भगवान शिव जागृत अवस्था में विद्वान हैं। दोस्तों माना जाता है कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मांड में सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा करने की पद्धति हिमालय में मौजूद इसी जागेश्वर धाम मंदिर से शुरू हुआ था।
          साथ ही दोस्तों यह मंदिर प्राचीन कैलाश मानसरोवर मार्ग में ही स्थित है क्योंकि दोस्तों माना जाता है कि प्राचीन काल में कैलाश मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्री इसी मार्ग का प्रयोग करते थे।यानी दोस्तों देखा जाए तो प्राचीन काल से ही यह स्थान तीर्थ यात्रियों के बीच काफी प्रसिद्ध रहा है ।तीर्थयात्रीगण कैलाश मानसरोवर की अपनी यात्रा को सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए जागेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना करके ही आगे की यात्रा शुरू करते थे।
























  दोस्तों उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से 38 किलोमीटर दूर देवदार के घने वनों के बीच स्थित जागेश्वर धाम मंदिर का प्राचीन समय से ही काफी महत्व रहा है।दोस्तों पौराणिक दंत कथाओं में कहा गया है कि भगवान शिव अल्मोड़ा के जागेश्वर के घने जंगलों के बीच स्थित दंडेश्वर में घोर तपस्या कर रहे थे। इसी बीच भ्रमण करते हुए सप्तऋषियों की धर्मपत्नीया इसी स्थल पर आ पहुंची और समाधि में लीन भगवान शिव के दिगंबर रूप को देखकर वे सभी भगवान शिव पर मोहित हो गई और अपनी  शुद्ध बुद्ध खोकर मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई। और जब सप्तऋषि अपनी पत्नियों की खोज में इस स्थल पर पहुंचे तो अपनी पत्नियों को इस अवस्था में देखकर गुस्से में नाराज होकर भगवान शिव को पहचाने बगैर लिंग पतन का श्राप दे दिया। जिससे दोस्तों संपूर्ण ब्रह्मांड में हाहाकार व उथल-पुथल मच गई।तब जाकर सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव के क्रोध को शांत किया और जागेश्वर में लिंग की स्थापना कर लिंग की पूजा पाठ शुरू की गई।अतः दोस्तों मान्यता है कि तभी से ही शिवलिंग की पूजा पद्धति की शुरुआत हुई।















       दोस्तों ऐतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि जागेश्वर धाम में मंदिरों का निर्माण सातवीं से 17 वी शताब्दी के बीच किया गया था। साथी दोस्तों मान्यता है कि जगतगुरू आदि शंकराचार्य ने इस स्थान का भ्रमण कर इस मंदिर की मान्यता को पुनर्स्थापित किया था और यहां पर स्थापित प्राचीन शिवलिंग को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बताया था।


    दोस्तों प्राचीन जागेश्वर मंदिर को प्रसिद्ध नागर शैली में बनाया गया है दोस्तों यहां स्थापित मंदिरों की एक और विशेषता है वह यह है कि इनके शिखर में लकड़ी का "बिजौरा"यानी दोस्तों एक प्रकार का छत्र बना होता है जो बारिश और बर्फबारी  के दौरान मंदिर की सुरक्षा करता है।
             दोस्तों किसी समय में जोगेश्वर धाम लकुलीश संप्रदाय का भी प्रमुख केंद्र रहा था। दोस्तों इस संप्रदाय को भगवान शिव के 28 वें अवतार के रूप में माना जाता है।
 

    दोस्तों आश्चर्यचकित करने वाले जागेश्वर धाम के मंदिरों के समूहों में सबसे बड़े एवं खूबसूरत मंदिर महामृत्युंजय महादेव जी के नाम से प्रसिद्ध है। दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इन घने जंगलों में स्थित जागेश्वर धाम में लगभग 250 छोटे बड़े मंदिर हैं , व दोस्तों इन मंदिरों में लगभग 124 मंदिरों का समूह है जो अति प्राचीन काल से ही यहां पर मौजूद है। और जिनमें से 4 से 5 मंदिरों में प्रतिदिन पूजा अर्चना होती है।








       

    दोस्त हो इन मंदिरों में सबसे आकर्षक , बड़े व प्राचीनतम महामृत्युंजय शिव मंदिर जागेश्वर धाम के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। दोस्तों इसके अलावा जागेश्वर धाम में भैरव मंदिर , माता पार्वती मंदिर , केदारनाथ मंदिर , हनुमान मंदिर एवं माता दुर्गा के मंदिर भी विद्यमान हैं।दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से इन मंदिरों के समूहों में 108 मंदिर भगवान शिव को समर्पित है एवं 16 मंदिर अन्य देवी-देवतओं को समर्पित है। दोस्तों जागेश्वर धाम में महामृत्युंजय , जगन्नाथ , पुष्टि देवी एवं कुबेर के मंदिरों को मुख्य मंदिरों में गिना जाता है। दोस्तों सबसे बड़ी बात यह है कि धर्म ग्रंथों  स्कंद पुराण , लिंग पुराण , मार्कंडेय पुराण आदि पुराणों में जागेश्वर धाम की महिमा का बहुत ही सुंदर तरीके से गुणगान किया गया है।
  

         धन्यवाद दोस्तों

  माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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               English                              translate
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 Hello friends, I heartily greet all of you mountain lepards Mahendra, Friends, today I am taking you on a journey in Almora district of Uttarakhand, where we will see the amazing shrine of Lord Shiva Shambhu where it is believed to be the first time Shivalinga.  Worship of this place started from this place.



 Mahamrityunjaya Urja Mandir / Jogeshwar Dham


 Almora, Uttarakhand


 India


 Friends, the Mahamrityunjaya energy temple of Uttarakhand Jageshwar Dham is famous and revered as a prominent Shiva temple in North India.  Friends believe that Lord Shiva is a learned scholar here.  Friends, it is believed that according to mythological beliefs, the first method of worshiping Shivalinga in the universe started from the same Jageshwar Dham temple in the Himalayas.

 Also friends, this temple is situated in the ancient Kailash Mansarovar Marg itself because friends believed that pilgrims visiting Kailash Mansarovar in ancient times used this route.  It has been famous. The pilgrims used to undertake their journey of Kailash Mansarovar successfully by offering prayers at the Jageshwar temple.







 







 Friends, the Jageshwar Dham temple, situated amidst the dense forests of deodar, 38 km from Almora district of Uttarakhand, has been of great importance since ancient times. Friends mythology states that Lord Shiva is situated in the dense forest of Jageshwar of Almora, Dandeshwar.  I was doing severe penance.  Meanwhile, the saints of the Saptarishis came to this place while walking and seeing the Digambar form of Lord Shiva absorbed in the tomb, they all became fascinated by Lord Shiva and lost their pure Buddha and fell to the ground unconscious.  And when the Saptarishi reached this place in search of his wives, seeing his wives in this state, angry and angry, cursed the penis fall without recognizing Lord Shiva.  Due to which there was chaos and upheaval in the entire universe. Then all the gods together pacified the anger of Lord Shiva and started the worship of Linga by establishing the Linga in Jageshwar. Friends, it is believed that since then Shivalinga.  The puja system started.










 












 Friends historical sources suggest that the temples at Jageshwar Dham were constructed between the seventh to the 17th century.  Fellow friends believe that Jagatguru Adi Shankaracharya visited this place and restored the recognition of this temple and described the ancient Shivalinga established here as one of the 12 Jyotirlingas.










 Friends The ancient Jageshwar temple has been built in the famous Nagar style. Friends, another feature of the temples established here is that the wooden "Bijaura", or friends, is a type of parasol formed in their shikhara which during the rain and snowfall of the temple.  Protects.

 Friends, Jogeshwar Dham was once a major center of the Lakulish sect.  Friends, this sect is considered as the 28th incarnation of Lord Shiva.



 












 The biggest and beautiful temple among the groups of temples of Jageshwar Dham, which surprised friends, is famous as Mahamrityunjaya Mahadev Ji.  Friends, you will be surprised to know that there are about 250 small big temples in Jageshwar Dham situated in these dense forests, and friends, these temples have a group of about 124 temples which have been present here since time immemorial.  And of which 4 to 5 temples worship daily.











 Dost Ho is one of the most attractive, large and oldest Mahamrityunjaya Shiva Temple is one of the most prominent temples of Jageshwar Dham.  Friends, there are also temples of Bhairav ​​Temple, Mata Parvati Temple, Kedarnath Temple, Hanuman Temple and Mata Durga in Jageshwar Dham. Friends surprisingly, there are 108 temples in groups of these temples dedicated to Lord Shiva and 16 temples to other Goddesses.  is devoted to.  The temples of Mahamrityunjaya, Jagannath, Virmana Devi and Kubera in Friends Jageshwar Dham are counted among the main temples.  Friends, the biggest thing is that the glory of Jageshwar Dham has been praised in a very beautiful way in the Puranas like Dharma texts Skanda Purana, Linga Purana, Markandeya Purana.














 Thanks guys


 Mountain Leopard                Mahendra 🧗🧗



















Tuesday, April 20, 2021

हिमालय की वादियों में स्थित शक्तिपीठ माता पूर्णागिरी मंदिर की यात्रा --चंपावत नगर उत्तराखंड भारतवर्ष Visit to Shaktipeeth Mata Purnagiri Temple situated in the Himalayan Plains - Champawat Nagar Uttarakhand India .

Ek yatra khajane ki khoje















                माता पूर्णागिरी मंदिर की विहंगम दृश्य।
                 A bird's eye view of the Mata Purnagiri temple.














 
  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्राआप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं उत्तराखंड के सुरमई वादियों में यानी दोस्तों हिमालय की वादियों में स्थित शक्तिपीठ माता पूर्णागिरी मंदिर की यात्रा पर।








      माता पूर्णागिरी मंदिर

   चंपावत नगर , उत्तराखंड

             भारतवर्ष


  दोस्तों अति प्राचीन माता पूर्णागिरी मंदिर उत्तराखंड राज्य के चंपावत नगर में काली नदी के दाएं किनारे पर स्थित है। दोस्तों चीन , नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण चंपावत जिले के प्रवेश द्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ मां भगवती की 108 सिद्ध पीठों में से एक है। दोस्तों उत्तराखंड जनपद चंपावत के टनकपुर पर्वतीय अंचल में स्थित अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर यह शक्ति पीठ स्थापित है जो माता पूर्णागिरी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
     
         दोस्तों माता पूर्णागिरी मंदिर की मान्यता यह है कि जब भगवान शिव शंभू तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से माता सती के शरीर को लेकर आकाश मार्ग से जा रहे थे तब भगवान विष्णु ने तांडव नृत्य को देखकर माता सती के शरीर के अंग के  टुकड़े टुकड़े कर दिए जो आकाश मार्ग से पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर जा गिरी थी।अतः दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से कथा के अनुसार जहां जहां माता सती के अंग गिरे वे सभी स्थान माता के शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गए । दोस्तों माना जाता है कि माता सती के "नाभि" अंग चंपावत जिले के "पूर्णा" पर्वत पर ही गिरने से मां पूर्णागिरी मंदिर की स्थापना हुई है।
और तभी से ही देश के चारों दिशाओं में स्थित मल्लिका गिरी हेमला गिरी व पूर्णागिरि में इस पावन स्थल पूर्णागिरि पर्वत को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ है।














दोस्तों पुराणों के अनुसार महाभारत काल में प्राचीन ब्रह्मा कुंड के निकट पांडवों द्वारा देवी भगवती की आराधना तथा ब्रह्मा देव मंडी में सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा द्वारा आयोजित विशाल यज्ञ में एकत्रित अपार सोने से यहां सोने का पर्वत बन गया था।
  
       दोस्तों साथ ही साथ कुछ ऐतिहासिक स्रोतों के अध्ययन से पता चलता है कि सन 1632 ईस्वी में कुमाऊं के राजा ज्ञानचंद के दरबार में गुजरात से आए एक ब्राह्मण श्री चंद्र तिवारी जी को इस देवी स्थल की महिमा स्वप्न में देखने पर उन्होंने यहां मूर्ति स्थापित कर इस जगह को और प्रसिद्ध कर दिया था।
      दोस्तों माना जाता है कि देश के चारों दिशाओं में स्थित कालिका गिरी , हेमला गिरी व मल्लिका गिरी में सबसे ज्यादा मां पूर्णागिरि का यह शक्तिपीठ सर्वोच्च महत्व रखता है।दोस्तों यहां आने पर आप देखोगे कि आसपास घने जंगलों के बीच में स्थित एक ऊंचे पर्वत पर विराजमान है माता भगवती दुर्गा।दोस्तों इस स्थल को देश के अति महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में गिना जाता है।साथ ही दोस्तों माना जाता है कि चैत्र मास की नवरात्रा में यहां माता का दर्शन करना विशेष महत्व रखता है फिर भी यहां सालों भर श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है।














दोस्तों माता पूर्णागिरी मंदिर की एक और प्रचलित किवदंती है , दोस्तों किंवदंतियों के अनुसार माना जाता है कि प्राचीन काल में एक हठी साधु ने व्यर्थ रूप से ही माता पूर्णागिरी के उच्च शिखर पर चढ़ने की कोशिश की तो माता ने क्रोध में आकर साधु को नदी के पार फेंक दिया था।परंतु बाद में माता को इस साधु पर दया आ गई और दयालु माता ने इस संत को सिद्ध बाबा के नाम से विख्यात कर उसे आशीर्वाद दिया। कि जो व्यक्ति मेरा दर्शन करने आएगा वह मेरे दर्शन के बाद तुम्हारा भी दर्शन करेगा जिससे कि उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। इसी कारण दोस्तों कुमाऊं के अधिकतर स्थानीय लोग सिद्ध बाबा के नाम से मोटी रोटी बनाकर सिद्ध बाबा को भेंट स्वरूप चढ़ाते हैं।

        दोस्तों माता पूर्णागिरी मंदिर में ही कुछ दूरी पर स्थित झूठे मंदिर की एक अलग ही कहानी है। दोस्तों पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि एक बार एक सेठ जिसका कोई संतान नहीं था को देवी मां ने सपने में आकर कहा कि मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।जिससे वह खुश होकर माता पूर्णागिरी के दर्शन किए और कहा कि यदि उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी तो वह देवी मां के लिए सोने का मंदिर बनवाएगा।
                लेकिन दोस्तों मनोकामना पूर्ण होने पर भी सेठ ने लालच में आकर सोने की मंदिर की जगह तांबे की मंदिर में सोने की पॉलिश लगाकर देवी मां को चढ़ाने के लिए मंदिर की ओर जाने लगा तो रास्ते में वह "टुन्याश" नामक स्थान पर पहुंचकर वह तांबे की मंदिर को लेकर आगे बढ़ ही नहीं सका। दोस्तों थक हार कर सेठ को तांबे की मंदिर वहीं पर स्थापित करना पड़ा । तभी से ही वह मंदिर वहीं पर स्थापित है और वर्तमान समय में झूठे मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। 
    
        दोस्तों माता पूर्णागिरी मंदिर की एक मान्यता यह भी है कि इस स्थान पर बच्चों का मुंडन कराने पर बच्चे दीर्घायु और बुद्धिमान होते हैं। दोस्तों इसलिए भी इस मंदिर का विशेष महत्व है साथ ही दोस्तों प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में तीर्थयात्री इस मंदिर परिसर में अपने बच्चों को लेकर मुंडन कराने के लिए आते हैं।
















दोस्तों अंग्रेजों के जमाने के ऐतिहासिक दस्तावेजों में उल्लेखित है कि प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और शिकारी "जिम कार्बेट" मैं सन 1927 ईस्वी में अपने यात्रा के दौरान इस स्थल पर विश्राम किया था और उसने पूर्णागिरि पर्वत पर स्वयं अलौकिक प्रकाश पुंजो को देखा था जिससे वह देवी मां के चरणों में नतमस्तक हो गया था। दोस्तों वापस लौटने पर उसने देवी मां के चमत्कारों का उल्लेख देशी व विदेशी अखबारों में कर इस पवित्र स्थल को काफी मशहूर किया था। दोस्तों कहां जाता है कि जो भक्त सच्ची आस्था लेकर माता पूर्णागिरी की दरबार में आता है अपनी मनोकामनाओं को साकार कर के ही वापस लौटता है।











           धन्यवाद दोस्तों

     माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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      English translate
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 Hello friends, I am a mountain lepard Mahendra. I extend my heartiest greetings to all of you, friends. Today, I am taking you on a trip to the Shaktipeeth Mata Purnagiri temple located in the picturesque hills of Uttarakhand, i.e. in the Himalayas.









 Mata Purnagiri Temple


 Champawat Nagar, Uttarakhand


 India



 Friends, the ancient Mata Purnagiri Temple is located on the right bank of the Kali River in Champawat Nagar in the state of Uttarakhand.  Friends Shaktipeeth, located 19 km from Tanakpur, the gateway to the strategically important Champawat district, surrounded by the borders of China, Nepal and Tibet, is one of the 108 Siddha Peethas of Maa Bhagwati.  Friends, this Shakti Peeth is situated at an altitude of about 3000 feet in the peak of Annapurna peak located in the Tanakpur mountain region of Champawat, Uttarakhand district, which is famous as Mata Purnagiri temple.



 Friends Mata Purnagiri temple has the belief that when Lord Shiva was going through the sky route while carrying the Shambhu Tandava from the Yagna Kunda to the body of Mata Sati, then Lord Vishnu saw the Tandava dance and cut the body part of Mata Sati into pieces.  Which fell on different places of the earth from the sky route, so friends surprisingly, according to the legend, where all the parts of Mother Sati fell, all those places became famous as Shaktipeeth of Mother.  Friends, it is believed that the "navel" organ of Mata Sati fell on the "Poorna" mountain in Champawat district, which established the Maa Purnagiri temple.

 And since then, this holy place Purnagiri mountain has got the highest position in Mallika Giri Hemla Giri and Purnagiri located in all four directions of the country.














 According to the Friends Puranas, in the Mahabharata period near the ancient Brahma Kunda, the worship of Goddess Bhagwati by the Pandavas and the immense gold collected in Brahma Dev Mandi in a huge yagna organized by Lord Brahma, the Creator, became a mountain of gold here.



 Friends, as well as a study of some historical sources, shows that in 1632 AD, in the court of King Gyanchand of Kumaon, a Brahmin from Gujarat, Shri Chandra Tiwari ji, seeing the glory of this Goddess site in his dream, installed the idol here.  The place was made more famous.

 Friends, it is believed that this Shaktipeeth of Maa Purnagiri holds the highest importance in Kalika Giri, Hemla Giri and Mallika Giri located in all the four directions of the country. When friends come here, you will see that on a high mountain situated in the middle of dense forests.  Mata Bhagwati Durga is seated. Friends, this place is counted among the most important Shaktipeeths of the country. Also friends are believed that visiting the mother in the Navratra of Chaitra month is of special importance, yet devotees visit here throughout the years.  Stays on













 Friends is another popular legend of the Mata Purnagiri temple, according to the friends legends, it is believed that in the ancient times a stubborn monk tried in vain to climb the high peak of Mata Purnagiri, then the mother got angry and sent the sadhu into the river.  He was thrown across. But later, the mother took pity on this sadhu and the kind mother blessed this saint by making him known as Siddha Baba.  That the person who comes to see me will also see you after my darshan, so that his wish will be fulfilled.  For this reason, most of the local people of Kumaon make thick bread in the name of Siddha Baba and offer it to Siddha Baba as an offering.


 Friends lies a different story of the false temple situated at a distance in the Mata Purnagiri temple itself.  According to friends mythology, it is believed that once a Seth who had no child, the Goddess came in a dream and said that only after my darshan you will get the son Ratna, so that she was happy and saw Mata Purnagiri and said  That if he gets the son Ratna then he will build a gold temple for the Mother Goddess.

 But even after the desire of friends was complete, Seth came to greed and started to go to the temple to offer the Goddess mother by putting gold polish in the copper temple instead of the gold temple, on the way he reached a place called "Tunyash".  Could not move forward regarding the temple.  Fearing defeat, Seth had to install a copper temple there.  Since then, that temple has been established there and in the present times it is famous as a false temple.



 There is also a belief of Friends Mata Purnagiri Temple that children are longevity and wise when they shave children at this place.  Friends, this temple is also of special importance, as well as friends, millions of pilgrims come to the temple premises every year to shave their children.













 Friends, the historical documents of the British era mention that the famous environmentalist and hunter "Jim Corbett" I rested at this place during my visit in 1927 AD and he himself saw the supernatural light on the mountain Purnagiri, which gave him the Mother Goddess.  Was bowed down at the feet of.  On returning friends, he had made this sacred place quite famous by mentioning the miracles of the Mother Goddess in domestic and foreign newspapers.  Where do friends go that a devotee who comes to the court of Mother Purnagiri with true faith, returns only after realizing his wishes.




 Thanks guys


 Mountain Leopard            Mahendra 🧗🧗

  




              







     Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗














          

Sunday, April 18, 2021

रहस्यमई हवा में झूलते हुए खंभे वाली अति प्राचीन लोपाक्षी मंदिर की यात्रा- आंध्र प्रदेश भारत Visit to the ancient Lopakshi temple with pillars swinging in the mysterious wind - Andhra Pradesh India.

Ek yatra khajane ki khoje



































   नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता। दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसे मंदिर की यात्रा पर लेकर चल रहा हूं जो पुरातन काल से ही उत्सुकता का केंद्र बना हुआ है। जी हां दोस्तों एक ऐसे मंदिर जिसके खंभे हवा में झूलते हैं दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से यह प्राचीन 70 खंभों वाला मंदिर आज के आधुनिक युग में विज्ञान को चुनौती दे रहा है कि कैसे आज से हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने इस मंदिर का निर्माण किया होगा।।











 प्राचीन लोपाक्षी या वीरभद्र मंदिर
         
            आंध्र प्रदेश 

             भारतवर्ष

 दोस्तों आप सभी तो जानते ही होंगे कि हमारे देश भारत वर्ष में ऐसे मंदिरों की कमी नहीं है जो आलौकिक , चमत्कारी और रहस्यों से भरे ना हो।दोस्तों एक ऐसा ही मंदिर है दक्षिण भारत में जिसके रहस्यों को सुलझाने में अंग्रेजो के भी दांत खट्टे हो गए थे। और वे कभी भी इस मंदिर के रहस्य नहीं जान पाए थे। दोस्तों यह मंदिर अति प्राचीन काल से ही लोगों के  बीच उत्सुकता का केंद्र बना हुआ है। और शायद ही हम कभी इस रहस्य को सुलझा पाएंगे। दोस्तों यह मंदिर भगवान शिव और भगवान विष्णु एवं भगवान वीरभद्र को समर्पित है।

          दोस्तों भारतवर्ष के आंध्र प्रदेश राज्य के अनंतपुर जिले में स्थापित अति प्राचीन लोपाक्षी मंदिर अद्भुत रूप से 70 खंभों पर टिका हुआ है , लेकिन दोस्तों आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मंदिर का एक खंभा धरती को छूता ही नहीं है बल्कि आश्चर्यजनक रूप से हवा में झूलता रहता है, और दोस्तों अलौकिक रूप से मंदिर का सारा भार इसी झूलते हुए खंभे पर टिका हुआ है जो विश्व भर के वैज्ञानिकों को सोचने पर मजबूर कर देती है की यह कैसे संभव हो सकता है लेकिन दोस्तों सच्चाई यही है , यह सत्य है , अलौकिक है , और अद्भुत है।




















    आइए दोस्तों चलते हैं थोड़ा समय के पीछे अंग्रेजों के जमाने में उस समय मंदिर के बारे में बताया जाता था कि 70 खंभों वाला यह मंदिर उस एक झूलते हुए खंभे को छोड़कर बाकी के 69 खंभों पर टिका हुआ है। इसीलिए वे लोग सोचते थे कि एक खंभे के हवा में झूलने से कोई फर्क नहीं पड़ता होगा। लेकिन माना जाता है कि अंग्रेजों के शासन काल के दौरान ही ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन मैं भी कुछ इसी तरह की बातें कही थी। और वर्ष  1902  ई. के दौरान हैमिल्टन ने मंदिर के रहस्य को सुलझाने की तमाम कोशिशें की थी। की मंदिर का आधार किस खंभे पर टिका है यह जानने के लिए ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने उस हवा में झूलते खंभे पर हथौड़े से जोरदार प्रहार किया था। जिससे तकरीबन 25 फीट की दूरी पर स्थित खंभों में भी दरारें पड़ गई थी। जिससे हैमिल्टन को समझ में आ गया था कि मंदिर का सारा वजन अद्भुत रूप से इसी झूलते हुए खंभे पर है। और वह नतमस्तक होकर वापस अपने देश लौट गया था।















            दोस्तों दंत कथाओं और ऐतिहासिकता के आधार पर मंदिर के निर्माण को लेकर अलग अलग विचारधारा है।दोस्तों इस मंदिर में एक स्वयंभू शिवलिंग भी मौजूद है जो भगवान शिव के रौद्राअवतार वीरभद्र के अवतार माने जाते हैं।कुछ ऐतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि यह शिवलिंग 15 वी शताब्दी तक खुले आसमान के नीचे विराजमान थे। तब 1538 ईस्वी में दो भाइयों विरूपन्ना  और वीरन्ना ने इस मंदिर का निर्माण किया था।दोस्तों इन दोनों भाइयों का इतिहास मालूम करने पर पता चलता है कि यह दोनों भाई विजय नगर के राजा के अधीन काम किया करते थे।
            लेकिन दोस्तों पौराणिक ग्रंथों के अनुसार माना जाता है कि लोपाक्षी मंदिर परिसर में स्थित वीरभद्र मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्त्य ने करवाया था।
                 दोस्तों लोपाक्षी मंदिर को लेकर एक और कहानी प्रचलित है इस कहानी के अनुसार एक बार वैष्णवगण यानी भगवान विष्णु के भक्त और शैवगण यानी भगवान शिव के भक्तों के बीच एक दूसरे से सर्वश्रेष्ठ होने को लेकर आपस में बहस शुरू हो गई थी। जो कई युगो तक चलती रही जिसे रोकने के लिए अगस्त्य मुनि ने इसी स्थान पर कई युगों तक तप किया और अपने तपोबल के प्रभाव से उस बहस को समाप्त कर दिया। और वैष्णव गण और शैव गणों को यह भी एहसास कराया कि भगवान विष्णु और भगवान शिव एक दूसरे के पूरक हैं।


















     दोस्तों लोपाक्षी मंदिर के पास में ही भगवान विष्णु के एक अद्भुत रूप रघुनाथेश्वर जी का मूर्ति स्थापित है। दोस्तों यहां आप आश्चर्यजनक रूप से देखोगे कि भगवान विष्णु देवाधिदेव  भगवान शिव शंभू के पीठ पर आसन जमाए हुए हैं। यानी दोस्तों यहां पर विष्णु जी को  भगवान शिव शंभू के ऊपर प्रतिष्ठित किया गया है रघुनाथ स्वामी के रूप में इसलिए वे  रघुनाथेश्वर कहलाए। 
                   दोस्तों प्राचीन काल से ही लोपाक्षी मंदिर के इस झूलते हुए खंभे को लेकर एक परंपरा चली आ रही है , माना जाता है कि जो भी भक्तगण या श्रद्धालु लटकते हुए इस खंभे के नीचे से कपड़ा निकाल लेता है उनके जीवन में फिर किसी भी प्रकार का दुःख तकलीफ नहीं  आता है एवं परिवार में सुख शांति और समृद्धि का आगमन होने लगता है। 

     दोस्तों कुछ भी हो यह अति प्राचीन मंदिर वाकई में अलौकिक और अद्भुत है जो अपने रहस्यमई वास्तुशिल्प के कारण विश्व प्रसिद्ध है।


           धन्यवाद दोस्तों

   माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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 Hello friends, I would like to extend my hearty greetings to all of you mountain leopard Mahendra.  Friends, today I am taking you on a journey to a temple which has been a center of curiosity since ancient times.  Yes friends! A temple whose pillars swing in the air, friends. Surprisingly, this ancient 70 pillar temple is challenging science in today's modern era, how our ancestors would have built this temple thousands of years ago.  .











 Ancient Lopakshi or Virbhadra Temple



 Andhra Pradesh


 India


 Friends, you all must be aware that there is no shortage of such temples in our country of India, which are not supernatural, miraculous and full of mysteries. Friends is one such temple in South India, in which even the British have teeth in solving the mysteries.  Had gone.  And they could never know the secret of this temple.  Friends, this temple has been a center of curiosity among the people since time immemorial.  And rarely will we ever be able to solve this mystery.  Friends, this temple is dedicated to Lord Shiva and Lord Vishnu and Lord Veerabhadra.


 Friends: The very ancient Lopakshi temple established in Anantapur district of Andhra Pradesh state of India is wonderfully built on 70 pillars, but friends, you will be surprised to know that one pillar of the temple not only touches the earth but also amazingly swings in the air.  Lives, and friends supernaturally, the entire weight of the temple rests on this swinging pillar that makes scientists all over the world think about how this can be possible but friends this is the truth, this is the truth, the supernatural  Is, and is amazing.











 Let's go back a bit, in the British era, at that time the temple was told that this 70-pillared temple rests on 69 pillars except for one swinging pillar.  That is why those people thought that swinging a pillar in the air would not matter.  But it is believed that it was during the British rule that British engineer Hamilton I also said something similar.  And during the year 1902 AD, Hamilton made all efforts to solve the mystery of the temple.  To know on which pillar the base of the temple rests, the British engineer Hamilton hit the pillar swinging in the air with a hammer.  Due to which there were cracks in the pillars located at a distance of about 25 feet.  From which Hamilton understood that all the weight of the temple is amazingly on this swinging pillar.  And he returned to his homeland after being sullen.











 Friends, there is a different ideology regarding the construction of the temple based on the legend and historicity. Friends, this temple also has a self-styled Shivling which is considered to be the incarnation of Lord Shiva's Raudraavatar Virabhadra. Some historical sources suggest that this Shivling  By the 15th century, they were seated under the open sky.  Then in 1538 AD, two brothers Virupanna and Veeranna built this temple. Friends, after knowing the history of these two brothers, it is known that these two brothers worked under the king of Vijaynagar.

 But according to friends mythological texts, it is believed that the Veerabhadra temple located in the Lopakshi temple complex was built by sage Agastya.

 Friends, another story is prevalent about Lopakshi temple.According to this story, once a debate started between the Vaishnavganas, devotees of Lord Vishnu and the devotees of Lord Shiva, to get the best of each other.  Agastya Muni meditated at this place for many ages and ended the debate with the influence of his Tapobal, which was to last for many Yugos.  And also made Vaishnava gana and Shaiva ganas realize that Lord Vishnu and Lord Shiva are complementary to each other.














 Friends, a statue of Raghunatheshwar Ji, a wonderful form of Lord Vishnu, is installed near the Lopakshi temple.  Friends, here you will see amazingly that Lord Vishnu Devadhidev is sitting on the back of Lord Shiva Shambhu.  That is, here friends, Vishnu has been revered over Lord Shiva Shambhu as Raghunath Swami, hence he is called Raghunatheshwar.

 Friends, a tradition has been going on since ancient times about this swinging pillar of Lopakshi temple, it is believed that any devotee or devotee who removes the cloth from the hanging under this pillar will have any kind of grief in their life again.  There is no problem and happiness, peace and prosperity start coming in the family.


 Whatever be the friends, this very ancient temple is truly supernatural and wonderful, which is world famous due to its mysterious architecture.



 Thanks guys


     Mountain Leopard               Mahendra 🧗🧗










Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

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