Monday, February 22, 2021

एक यात्रा शारदा पीठ जम्मू-कश्मीर की - जो वर्तमान में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में मौजूद हैं। visit to Sharda Peeth of Jammu and Kashmir.

Ek yatra khajane ki khoje




































  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं । दोस्तों आइए चलते हैं आज की यात्रा पर "मां शारदा" की उस पवित्र पीठ की यात्रा पर जो आज के वर्तमान में पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाके में स्थित है।








 दोस्तों आइए चलते हैं 1947 के दशक में जब भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ था।दोस्तों तब उस जमाने में भारतवर्ष के जम्मू कश्मीर का क्षेत्रफल 222236 वर्ग किलोमीटर था । जिसमें से चीन और पाकिस्तान ने मिलकर आधे जम्मू कश्मीर पर अपना कब्जा किया हुआ है और हमारे भारतवर्ष के पास केवल 102387 वर्ग किलोमीटर जम्मू कश्मीर का भूमि खंड शेष बचा हुआ है।
                       दोस्तों जम्मू कश्मीर का जो भाग आज हमारे पास नहीं है उनमें से गिलगिट , बालटिस्तान , बजारत , चिल्लास , हाजीपीर आदि हिस्से पर पाकिस्तान का सीधा शासन है। एवं मुजफ्फराबाद , मीरपुर , कोटली और छंब आदि इलाके हालांकि स्वायत्त शासन में हैं। परंतु यह इलाके भी पाक के नियंत्रण में है दोस्तों।













दोस्तों पाकिस्तान के नियंत्रण वाले इसी क्षेत्र जम्मू कश्मीर के मुजफ्फराबाद जिले के सीमा के किनारे पवित्र कृष्ण - गंगा नदी बहती है।दोस्तों जानकर आपको आश्चर्य होगा कि कृष्ण- गंगा नदी वही नदी है जिसमें समुद्र मंथन के पश्चात शेष बचे "अमृत" को "असुरों" से छुपा कर रखा गया था। और उसी के बाद स्वयं भगवान ब्रह्मा जी ने कृष्ण - गंगा नदी के किनारे मां शारदा का मंदिर बनाकर उन्हें वहां स्थापित किया था।दोस्तों हमारे वेद पुराण बताते हैं कि जिस दिन से मां शारदा वहां विराजमान हुई उस दिन से ही सारा जम्मू कश्मीर "नमस्ते शारदा देवी कश्मीरपुरवासनी/ त्वोमहंमप्रार्थये नित्यम विदादानम च देही में" कहते हुए उनकी आराधना करता रहा है एवं दोस्तों उन कश्मीरियों पर मां शारदा की ऐसी कृपा हुई थी "अष्टांग योग" और अष्टांग हृदय लिखने वाले वाग्भट वही जन्मे , नीलमत पुराण वही रची गई ,  चरक संहिता , शिव पुराण , कल्हण की राजतरंगिणी , सारंग देव की संगीत रत्नाकर सब के सब अद्वितीय ग्रंथों की रचना यही की गई थी। दोस्तों उस कश्मीर में जो रामकथा लिखीं गई थी उसी में मंक्केश्वर महादेव का वर्णन सर्वप्रथम स्पष्ट रूप से किया गया था। दोस्तों शैव दार्शनिकों की लंबी परंपरा जम्मू कश्मीर से ही शुरू हुई थी। साथ ही साथ दोस्तों चिकित्सा पद्धति , खगोल शास्त्र , ज्योतिष दर्शन , विधि ,न्याय शास्त्र , पाककला , चित्रकला और भवन शिल्प विधाओ का भी प्रसिद्ध केंद्र था जम्मू कश्मीर क्योंकि उस पर मां शारदा का साक्षात आशीर्वाद प्राप्त था। दोस्तों प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि शारदा पीठ के पास उसने ऐसे ऐसे विद्वान देखें जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती कि कोई इतना भी विद्वान हो सकता है। दोस्तों शारदा पीठ के पास ही एक बहुत बड़ा विद्यापीठ भी था जहां दुनिया भर से विद्यार्थी ज्ञानार्जन करने आते थे। 













 
दोस्तों मां शारदा के उस पवित्र पीठ में न जाने कितने सहस्त्र वर्षों से हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन एक विशाल मेला का आयोजन होता था जहां भारत के कोने कोने से वाग्देवी सरस्वती के उपासक साधना करने आते थे , दोस्तों भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि को शारदा अष्टमी इसलिए कहा जाता था।दोस्तों शारदा तीर्थ श्रीनगर से लगभग  125 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है फिर भी वहां के लोग पैदल मां के दर्शन करने जाया करते थे।









दोस्तों शास्त्रों के अनुसार एक बहुत ही रोचक दंत कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक निम्न जाति के व्यक्ति को भगवान शिव की उपासना से एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। जिसका नाम उस दंपति ने "शांडलि" रखा था।
दोस्तों शांडलि बहुत ही प्रतिभावन था जिससे उनसे जलन भाव रखने के कारण ब्राह्मणों ने उनका यगोपवित संस्कार करने से मना कर दिया था।दोस्तों निराश शांडलि को ऋषि वशिष्ठ ने मां शारदा के दर्शन करने की सलाह दी और उनके सलाह पर जब वे वहां पहुंचे तो मां ने उन्हें दर्शन दिया और उन्हें नाम दिया ऋषि शांडिल्य। दोस्तों जैसा कि आपको पता ही होगा कि आज हिंदुओं के अंदर हर एक जाति में शांडिल्य गोत्र पाया जाता है।










दोस्तों हिंदू धर्म का महिमामंडन करने निकले जगतगुरु शंकराचार्य जब शारदा पीठ पहुंचे तो उन्हें भी मां शारदा ने दर्शन दिए थे और हिंदू धर्म को बचाने का आशीर्वाद दिया था।दोस्तों मां शारदा की कृपा से ही कश्मीर के शासक जैनुल आबेदीन का मन बदल गया था , जब वह उनके दर्शन के लिए वहां गया था। फिर उसने कश्मीर में अपने पिता सिकंदर द्वारा किए गए हर पाप का प्रायश्चित किया था , दोस्तों इतिहास के किताबों में दर्ज हैं कि मां शारदा की उपासना में वो इतना लीन हो जाता था कि उसे दुनिया की कोई खोज खबर नहीं होती थी।  















दोस्तों भारत के कई हिस्सों में जब यगोपवित संस्कार होता है तो बटु को कहा जाता है कि तू शारदा पीठ जाकर ज्ञानार्जन कर और फिर सांकेतिक रूप से वो बटुक शारदा पीठ की दिशा में सात कदम आगे बढ़ता है और फिर कुछ समय पश्चात इस आशय से वह सात कदम पीछे आता है कि अब उसकी शिक्षा पूर्ण हो गई है और वो विद्वान बन कर वहां से लौट रहा है। दोस्तों एक समय ऐसा था जब ये सांकेतिक संस्कार एक दिन वास्तविकता में बदलता था क्योंकि वे बटुक शिक्षा ग्रहण करने मां शारदा पीठ ही जाता था। मगर आज दुर्भाग्य से हमारी "मां शारदा" हमारे पास नहीं है और हम उनके पास जाएं ऐसी कोई व्यवस्था भी नहीं है।दोस्तों अब शायद यगोपवित कि यह रस्म सांकेतिक ही रह जाएगी सदा के लिए। 










दोस्तों हमें शारदा पीठ की मुक्ति चाहिए हमें शारदा पीठ तक जाना है दोस्तों हमें दुनिया को बताना होगा कि शारदा पीठ हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित एक अद्भुत और अलौकिक सबसे प्राचीन शिक्षा केंद्रों में से एक था। अतः दोस्तों आपसे निवेदन है कि शारदा पीठ की यात्रा पर जरूर जाएं और अपने पूर्वजों के इस अद्भुत धरोहर को अपने नजरों से अवश्य देखें। 












               धन्यवाद दोस्तों
              माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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            English translate
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 Hello friends I extend my hearty greetings to all of you mountain leopard Mahendra.  Friends, let's go on the journey of that holy backing of "Maa Sharada" which is located in the present day occupied state of Pakistan.









 Friends, let's go when India became independent from the British in the 1947s. At that time, the area of ​​Jammu and Kashmir in India was 222236 square kilometers.  Out of which China and Pakistan together occupy half of Jammu and Kashmir and our India year only 102387 square kilometers of the remaining land segment of Jammu and Kashmir.

 Friends, the part of Jammu and Kashmir which we do not have today, among them Gilgit, Baltistan, Bazaarrat, Chilas, Hajipir etc., is under direct rule of Pakistan.  And the areas like Muzaffarabad, Mirpur, Kotli and Chamba etc. are under autonomous governance.  But this area is also under the control of Pakistan.














 Friends, the holy Krishna-Ganges river flows along the border of Muzaffarabad district of Jammu and Kashmir under the control of Pakistan. Friends, you will be surprised to know that Krishna-Ganga river is the same river in which the "nectar" remaining after the churning of the sea is called "Asuras".  "Was kept hidden from.  And after that, Lord Brahma himself built a temple of Maa Sarada on the banks of the Krishna-Ganges river and installed them there. Friends, our Ved Purana tells that from the day Maa Sharda was enthroned, the whole of Jammu and Kashmir "Namaste  Sharada Devi has been worshiping her by saying "in Kashmir Purvasani / Tvammahamprathyay Nityam Vidadanam Ch Dehi" and friends, Mother Sharada was blessed with such blessings on those Kashmiris "Ashtanga Yoga" and Vagbhat, who wrote Ashtanga heart, was born the same, Neelmat Purana was composed, Charak  All the unique texts were composed by Samhita, Shiva Purana, Kalhana's Rajatarangini, Sarang Dev's music, Ratnakar.  Friends, Mankeshwar Mahadev was first clearly mentioned in the Ramkatha that was written in Kashmir.  Friends, the long tradition of Shaivite philosophers started from Jammu and Kashmir itself.  At the same time, friends were also famous centers of medical practice, astronomy, astrology, philosophy, law, jurisprudence, culinary arts, painting and building crafts etc. Jammu Kashmir because it was blessed with the blessings of Mother Sharda.  Friends, famous Chinese traveler Xuanzang has written in his travelogue that near the Sharda Peeth he saw such scholars who cannot be imagined that anyone could be so scholar.  Friends, there was also a big school near Sharada Peeth where students from all over the world used to come to learn.
















 Friends, not knowing how many years in the holy bench of Mother Sharada, a huge fair was held every year on the day of Bhadrapad Shukla Paksha Ashtami where worshipers of Vagdevi Saraswati from every corner of India used to come to worship, Friends Ashtami date of Bhadrapad month  It was called Sharada Ashtami because the two Sharada shrine is located at a distance of about 125 km from Srinagar, yet the people used to visit the mother on foot.
















 According to friends scriptures, a very interesting legend is prevalent according to which a low caste person got a son Ratna from the worship of Lord Shiva.  The couple was named "Shandali" by that couple.

 Friends, Shandali was very talented, due to jealousy of him, the Brahmins refused to perform Yagopavit Sanskar. Friends, frustrated Shandali was advised by sage Vasistha to visit Maa Sharada and on his advice, when he reached there, his mother  Gave him darshan and named him sage Shandilya.  Friends, as you may be aware that within Hinduism, the Shandilya gotra is found in every caste.











 Friends, Jagadguru Shankaracharya, who came out to glorify Hinduism, came to Sharada Peeth when he was also seen by mother Sharada and blessed to save Hinduism. It was only by the grace of Mother Sharada that the ruler of Kashmir, Janul Abedin changed his mind,  When he went there to see him.  Then he atoned for every sin committed by his father Alexander in Kashmir, friends are recorded in the history books that he used to become so absorbed in the worship of mother Sharda that he had no news of the world.

















 Friends, in many parts of India, when the Yagopavit ceremony is performed, the Batu is told that you go to Sharda Peeth and enlighten and then symbolically that Batuk moves seven steps towards the Sharada Peetha and then after some time he will  It comes seven steps back that now his education is complete and he is returning from there after becoming a scholar.  Friends, there was a time when this symbolic rite would one day turn into reality because they used to go to mother Sharada Peeth to get education.  But today unfortunately we do not have our "Mother Sharda" and there is no such system for us to go to them. Friends may now rejoice that this ritual will remain symbolic forever.











 Friends, we need the liberation of Sharada Peeth We have to go to Sharada Peeth Friends, we must tell the world that Sharada Peeth was one of the most wonderful and supernatural most ancient education centers established by our ancestors.  Therefore, friends, you are requested to go on a journey of Sharada Peeth and see this amazing heritage of your ancestors from your eyes.




















 Thanks guys

 Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗































 








Sunday, February 21, 2021

यात्रा राजमहल की पहाड़ियों की दोस्तों जब राजमहल की पहाड़ियों को छूता था महासागर 280 करोड़ वर्ष पहले - साहिबगंज झारखंड भारत Visit friends of the palace hills when the ocean used to touch the palaces of the palace 280 million years ago - Sahibganj Jharkhand India

Ek yatra khajane ki khoje















                   पत्थर में रूपांतरित  पत्तियों के जीवाश्म
                   Fossils of metamorphosed leaves into                           stone
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  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूंदोस्तों आज फिर मैं आपको लेकर चल रहा हूं राजमहल की पहाड़ियों पर जो कि झारखंड के साहिबगंज जिले में स्थित है जहां करोड़ों वर्ष पहले महासागर हुआ करता था। 












 दोस्तों जब राजमहल की पहाड़ियों को छूता था महासागर आज से करोड़ों वर्ष पहले 
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 दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि झारखंड के गोड्डा जिले के लल मटिया में स्थित सेल पत्थर व कोयला के नमूनों के 2 वर्ष के अध्ययन के बाद जो तथ्य निकले हैं वह चौंकाने वाले हैं।
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Fossils of metamorphosed leaves into stone
                       पत्थर में रूपांतरित  पत्तियों के जीवाश्म
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 दोस्तों भारत के झारखंड राज्य में स्थित गोड्डा , साहिबगंज , पाकुड़ और दुमका तक राजमहल की पहाड़ियां फैली हुई है। और इन्हीं जिलों में जीवाश्म के रूप में  जैव प्रजातियों के क्रमिक विकास के साक्ष्य बिखरे पड़े हैं। दोस्तों पेड़ -पौधो के यह जवाब करीब 280 करोड़ वर्ष पुराने हैं। दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि तब यहां पर महासागर लहराता था। दोस्तों चौंकिए नहीं लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ पेलियोसाइंस के विज्ञानी डॉक्टर  एस .सुरेश कुमार पिल्लई  एवं उनकी टीम ने शोध में इसे साबित किया है। दोस्तों इन्होंने गोंडवाना बेसिन की राजमहल पहाड़ियों में स्थित है गोड्डा के ललमटिया इलाके में मौजूद कोयला व उसके ऊपरी शैल परतों में मिले जीवाश्मों का अध्ययन कर इसके सबूत तलाशें हैं।







 दोस्तों पेलियोसांइस विज्ञानी डॉक्टर एस .पिल्लई व साहिबगंज डिग्री कॉलेज के भूगर्भ विज्ञानी प्रोफ़ेसर रंजीत सिंह ने बताया कि शैल पर जीवाश्म के रूप में मौजूद पत्तियों , क्यूटिकल्स (पत्तियों के ऊपरी सतह पर वाष्पोत्सर्जन को नियंत्रित करने वाली परत ) , स्टोमेटा ( रंध्र) व परागकण की छाप का अध्ययन किया गया है। दोस्तों अध्ययन से पता चला है कि करोड़ों वर्ष पहले इस इलाके में बहुत ही घना जंगल हुआ करता था। दोस्तो इन जंगलों में जिम्मनोस्पर्म व कोर्डेटेल्स वंश के पेड़ मौजूद थे। दोस्तों यहां इनकी 14 प्रजातियां थी। दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से कार्बनिक और अकार्बनिक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला कि यहां समुंद्र का पानी मौजूद था यानी समुंद्र मौजूद था। जिससे घना जंगल समुद्र के पानी में डूब गया था। जो करोड़ों साल बाद कोयला में बदल गया। दोस्तों यह खोज जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की पत्रिका व इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कोल जियोलॉजी में हाल ही में प्रकाशित किया गया था। दोस्तों 2 वर्ष तक किए गए गहन शोध में यह परिणाम सामने आए हैं। दोस्तों टीम में विज्ञानी आरपी . मैथ्यूज , शैलेश अग्रवाल , मनोज एमसी , श्रीकांत  व संभलपुर विश्वविद्यालय के  के . एस गोस्वामी , मृत्युंजय साहू आदि शामिल थे। दोस्तों निश्चित तौर पर यह शोध कार्य आश्चर्यजनक लगता है कि आज साहिबगंज से समुंद्र कम से कम 400 किलोमीटर दूर स्थित है। दोस्तों है ना आश्चर्यजनक कि कभी साहिबगंज यानी राजमहल का इलाका पूरी तरह से समुद्र में डूबा हुआ था।







 खुल गया राज समुद्री  शैवालों की मौजूदगी का राजमहल की पहाड़ियों में साहिबगंज झारखंड ।
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 दोस्तों कोयले के नमूनों के अध्ययन से समुद्री शैवाल की मौजूदगी के पक्के प्रमाण मिले हैं। अकार्बनिक और कार्बनिक प्रयोगों से साबित हुआ है कि नमूनों में कार्बन - 15 , कार्बन -17 , व कार्बन-19 के योगिकों की मौजूदगी है , जो समुद्री पौधों में मिलते हैं। एवं स्ट्रांशियम और  बेरियम का अनुपात 0.5 से 1 के बीच पाया गया जो खारे जल की मौजूदगी का प्रमाण बताता है। दोस्तों मीठे जल के क्षेत्र में यह मान 0.5 से कम होता है। साथ ही साथ दोस्तों थोरियम व यूरेनियम का मान 7 से 2 के बीच पाया गया है जो की खारे पानी की मौजूदगी को इंगित करता है।एवं दोस्तों 7 से अधिक मान मीठे जल के इलाके की जानकारी देती है दोस्तों इससे साबित होता है कि यहां समुद्री शैवाल समुंद्र की पानी के साथ बहकर आया होगा। दोस्तों अध्ययन से पता चलता है कि सिक्किम की ओर से टेथिस सागर का पानी यहां आया था , तब गोड़वाना लैंड में अंटार्कटिका ,ऑस्ट्रेलिया ,दक्षिण अमेरिका , अफ्रीका एवं भारत एक साथ मौजूद थे एवं आपस में जुड़े हुए थे। जो कालांतर में करोड़ों वर्षों की विकास प्रक्रिया में अलग-अलग महाद्वीपों में बदल गए हैं या अलग हो गए।।




 





 दोस्तों यह शोध कार्य जैव विकास को समझने में मददगार होगा।
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 दोस्तों डॉक्टर एस.सुरेश कुमार पिल्लई कहते हैं कि  पारिस्थितिकी तंत्र के बदलाव, नई प्रजातियों की उत्पत्ति , मौसम परिवर्तन समेत कई गुढ़ विषयों को समझने में मदद करेंगी।  दोस्तों उस समय के पेड़-पौधो  पराग कण , रंध्रों के आकार , मौसम के स्थितियों का आज के वातावरण व जीवों से तुलनात्मक अध्ययन करने पर जैव विकास के अनसुलझे रहस्य उजागर हो पायेंगे। और साथ ही साथ यह अध्ययन भी हो सकेगा कि किस प्रकार मौसम बदलने से हुएं उत्परिवर्तनों से नई प्रजातियां बनी । दोस्तों साफ दिखता है कि जिन पेड़ों से यहां कोयलें का निर्माण हुआ है वैसे ही वृक्षों से आस्ट्रेलिया में भी कोयला का निर्माण हुआ है। अतः साफ पता चलता है कि दोनों महाद्विप  पूर्व में आपस में जुड़े हुए थे , जो बाद में अलग-अलग हिस्सों में बट गया। दोस्तों राजमहल की पहाड़ियां  दुनिया की प्राचीनतम पहाड़ियों में गिनी जाती हैं। दोस्तों यहां मौजूद जीवाश्मों को सहेजने की  जरूरत है क्योंकि ये भारत ही नहीं समूचे विश्व की धरोहर हैं । दोस्तों हमें इनकी  महत्ता को समझनी होगी अन्यथा ये विलुप्त हो जाएंगे। क्योंकि दोस्तों पहाड़ियों में पत्थरों के खनन से ये नष्ट होते जा रहे हैं।
 

                 धन्यवाद दोस्तों

                 माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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          English translate
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  पत्थरों में जीवाश्मों की तलाश करते हुए डॉक्टर एस . सुरेश कुमार पिल्लई राजमहल की पहाड़ियां साहिबगंज झारखंड।
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Doctor S. while searching for fossils in stones  Suresh Kumar Pillai Rajmahal Hills Sahibganj Jharkhand.




 
 
  Hello friends, I would like to give a warm welcome to all of you mountain lepards Mahendra. Today I am taking you again to the hills of Rajmahal, which is located in Sahibganj district of Jharkhand, where the ocean used to be millions of years ago.












 Friends, when the ocean used to touch the palace hills millions of years ago.













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 Friends, you will be surprised to know that the facts which have come out after 2 years of study of cell stone and coal samples located in Lal Matia of Godda district of Jharkhand are shocking.

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 Friends, Rajmahal hills are spread to Godda, Sahibganj, Pakur and Dumka located in the state of Jharkhand, India.  And in these districts there is scattered evidence of the gradual development of bio-species in the form of fossils.  Friends tree - this answer of the Paudho is about 280 million years old.  Friends, you will be surprised to know that the ocean used to sway here.  Friends, don't be surprised, Dr. S. Suresh Kumar Pillai, a scientist at Birbal Sahni Institute of PaleoScience in Lucknow and his team has proved this in research.  Friends, they have located the Rajmahal hills of Gondwana basin in the Lalmatiya area of ​​Godda and studied the fossils found in the coal and its upper rock layers to find evidence of this.








 Friends Paleoceanologist Dr. S. Pillai and Sahibganj degree college geologist Professor Ranjit Singh told that the leaves present in the form of fossils on the shell, cuticles (layer controlling the transpiration on the upper surface of the leaves), stomata (stomata) and pollen.  The impression of has been studied.  Friends study showed that crores of years ago there used to be a very dense forest in this area.  Friends, in these forests there were trees of Zimnosperm and Cordellatus.  Friends, they had 14 species here.  Friends surprisingly, the organic and inorganic study concluded that sea water was present here.  Due to which the dense forest was submerged in the sea water.  Which turned into coal after millions of years.  Friends, this discovery was recently published in the Journal of the Geological Society of India and in the International Journal of Coal Geology.  Friends, these results have been revealed in the deep research conducted for 2 years.  Friends in the team, scientist R.P.  Mathews, Shailesh Aggarwal, Manoj MC, Srikanth and K. Sambalpur University  S. Goswami, Mrityunjay Sahu etc.  Friends, this research work certainly seems surprising that today the sea is at least 400 km from Sahibganj.  Friends, is it not surprising that the area of ​​Sahibganj i.e. Rajmahal was completely submerged in the sea.













 The presence of Raj seaweeds has been revealed in Sahibganj Jharkhand in the palace hills.

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 Friends, studies of coal samples have confirmed the presence of seaweed.  Inorganic and organic experiments have proved that the presence of carbon-15, carbon-17, and carbon-19 compounds in samples is found in marine plants.  And the ratio of strontium and barium was found to be between 0.5 to 1, which indicates the presence of saltwater.  Friends, in the area of ​​fresh water, this value is less than 0.5.  Also, the value of friends thorium and uranium has been found to be between 7 and 2, which indicates the presence of saltwater. And more than 7 values ​​of freshwater area. Friends, this proves that the marine here  The algae must have flowed with sea water.  Friends study shows that the water of Tethys Sea came here from Sikkim, then Antarctica, Australia, South America, Africa and India were present and connected together in Godwana Land.  Over the course of millions of years the development process has changed or separated into different continents.












 Friends, this research work will be helpful in understanding bio-development.

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 Friends, Dr. S. Suresh Kumar Pillai says that changes in the ecosystem, including the origin of new species, weather changes, will help in understanding many deep topics.  Friends, by doing a comparative study of the plants, pollen particles of the time, the size of the stomata, the weather conditions of today's environment and organisms, we will be able to uncover unresolved mysteries of bio-development.  And at the same time it will be possible to study how mutations caused by changing seasons have created a new species.  Friends, it is clear that the trees from which cuckoos have been made here, similarly trees have also produced coal in Australia.  Hence, it is clear that the two Mahadwip were formerly connected, which later got separated into different parts.  Friends, the palace hills are counted among the oldest hills in the world.  Friends, there is a need to save the fossils present here because they are not only the heritage of the whole world.  Friends, we have to understand their importance otherwise they will become extinct.  Because they are being destroyed by the mining of stones in friends hills.

















 Thanks guys


 Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗















Fossils of metamorphosed leaves into stone
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Saturday, February 20, 2021

एक यात्रा श्री महालक्ष्मी , अंबाबाई मंदिर की - कोल्हापुर महाराष्ट्र भारतवर्ष A Visit to Shri Mahalakshmi, Ambabai Temple - Kolhapur Maharashtra India

Ek yatra khajane ki khoje















    















  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मैं आप सभी को लेकर चल रहा हूं 7000 वर्ष पुराने महालक्ष्मी मंदिर की यात्रा पर जो कोल्हापुर महाराष्ट्र में स्थित है।






 दोस्तों माना जाता है कि आज से 7000 वर्ष पहले इस जगह पर मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित की गई थी।दोस्तों माता लक्ष्मी की प्राचीन मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में मौजूद है दोस्तों इस प्राचीन मंदिर का निर्माण चालुक्य शासक कर्ण देव ने सातवीं शताब्दी में करवाया था।  दोस्तों इसके बाद इस मंदिर का पुनः निर्माण शिलहर यादव नाम के एक शासक ने 9 वी शताब्दी में करवाया था। दोस्तों माता महालक्ष्मी मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में मां लक्ष्मी की 40 किलो  की प्रतिमा स्थापित है। जो हो 4 फीट लंबी है।दोस्तों ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि यह प्रतिमा 7000 वर्ष पुरानी है।










 दोस्तों मान्यता है  इस स्थान पर  मां सती के   तीन नेत्र गिरे थे। जिस कारण से यहां भगवती महालक्ष्मी का निवास माना जाता है।। दोस्तों इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि पूरे वर्ष में किसी एक दिन मंदिर में स्थापित माता की प्रतिमा पर सूर्य देव की किरणें सीधे पड़ती है। दोस्तों माना जाता है कि माता महालक्ष्मी अपने पति तिरुपति बालाजी यानी भगवान विष्णु जी से रुठकर  कोल्हापुर आ गई थी। जिस कारण से प्रत्येक वर्ष दीपावली पर तिरुपति बालाजी से आया शाल उन्हें पहनाया जाता है।











 दोस्तों माना जाता है कि किसी भी मनुष्य की तिरुपति बालाजी की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती है जब तक वह मनुष्य यहां आकर माता महालक्ष्मी की पूजा अर्चना ना कर ले। दोस्तों यहां पर माता महालक्ष्मी को अंबाबाई के नाम से भी जाना जाता है एवं दोस्तों मान्यता है कि यहां पर आने वाले हर भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है।












 दोस्तों इस क्षेत्र में एक बहुत ही प्रचलित किवदंती मशहूर है जिसके अनुसार माना जाता है कि प्राचीन समय में इस क्षेत्र में  "केशी" नाम का एक राक्षस हुआ करता था। जिसका एक बेटा था "कोल्हासुर" । माना जाता है कि "कोल्हासुर" ने देवताओं को बहुत परेशान कर रखा था। अतः इसके अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवगणों में देवी से प्रार्थना की थी।तब माता महालक्ष्मी ने दुर्गा का रूप धारण कर अत्याचारी राक्षस "कोल्हासुर" का संहार किया था।माता ने ब्रह्मास्त्र का उपयोग कर कोल्हासुर का सिर धड़ से अलग कर दिया था। पर दोस्तों माना जाता है कि कोल्हापुर ने मरने से पहले माता से एक वरदान मांगा , उसने मांगा कि इस इलाके को "करवीर" और "कोल्हासुर" के नाम से जाना जाए। यही कारण है कि माता को यहां पर "करवीर महालक्ष्मी" के नाम से भी जाना जाता है। दोस्तों  वर्तमान में यह क्षेत्र "कोल्हासुर" से "कोल्हापुर" के नाम से भी जाना जाने लगा है।







 दोस्तों इस मंदिर में दो मुख्य हाल हैं जिसमें पहला "दर्शन मंडप" और दूसरा "कूर्म मंडप" है।दोस्तों "दर्शन मंडप" में ही माता का दिव्य स्वरूप का दर्शन करते हैं श्रद्धालुगण । एवं "कूर्म मंडप" में श्रद्धालु गण पर पवित्र शंख के द्वारा जल का छिड़काव किया जाता है। दोस्तों मंदिर में मौजूद माता की प्राचीन प्रतिमा के चार हाथ हैं जिनमें शंख , चक्र , गदा और कमल का पुष्प धारण किए हुए हैं। दोस्तों माता का दर्शन करना एक अलौकिक अनुभूति प्रदान करती है।











               धन्यवाद दोस्तों

              माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗

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            English translate
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 Hello friends, I heartily greet all of you mountain leopard Mahendra, Friends, today I am taking you all to visit the 7000 year old Mahalakshmi temple which is located in Kolhapur Maharashtra.














 Friends, it is believed that the idol of Goddess Lakshmi was installed at this place 7000 years ago. The ancient temple of Friends Mata Lakshmi is present in Kolhapur district of Maharashtra. Friends, this ancient temple was built by Chalukya ruler Karna Dev in the seventh century.  Was.  Friends, this temple was rebuilt by a ruler named Shilhar Yadav in the 9th century.  A 40 kg statue of Maa Lakshmi is installed in the main womb of the Friends Mata Mahalaxmi temple.  Which is 4 feet long. Two historical evidences show that this statue is 7000 years old.










 Friends believe that at this place three eyes of mother Sati fell.  For this reason, it is believed that Bhagwati Mahalakshmi resides here.  Friends, a specialty of this temple is that the rays of the sun god directly fall on the statue of the mother installed in the temple on any one day of the whole year.  Friends, it is believed that Mata Mahalakshmi came to Kolhapur after getting angry with her husband Tirupati Balaji i.e. Lord Vishnu.  Due to which, the shawl from Tirupati Balaji is worn on Deepawali every year.
















 Friends, it is believed that no man's journey to Tirupati Balaji is complete until the person comes here and offers prayers to Mahal Mahalakshmi.  Friends, Mata Mahalakshmi is also known as Ambabai and friends believe that the wishes of every devotees who visit here are fulfilled.







 Friends, a very popular legend is famous in this region according to which it is believed that in ancient times there used to be a demon named "Keshi" in this area.  Who had a son "Kolhasur".  "Kolhasur" is believed to have upset the gods a lot.  Therefore, being troubled by its atrocities, all the devas prayed to the goddess. Then Mata Mahalakshmi took the form of Durga and killed the tyrannical demon "Kolhasur". The mother beheaded Kolhasur using Brahmastra.  But friends believed that Kolhapur sought a boon from Mata before she died, demanding that the area be known as "Karveer" and "Kolhasur".  That is why Mata is also known as "Karveer Mahalakshmi" here.  Friends, at present the area has also come to be known as "Kolhapur" from "Kolhasur".
















 Friends, there are two main halls in this temple, the first "Darshan Mandap" and the second "Koram Mandap". The devotees see the divine form of Mother in the "Darshan Mandap".  And in the "Kurm Mandap", water is sprayed by the holy conch on the devotees.  Friends: The ancient idol of Mother present in the temple has four hands holding a conch, chakra, mace and lotus flower.  Visiting friends mother gives a supernatural feeling.







 Thanks guys


 Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗




























Mountain leppord Mahendra


























Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...