Wednesday, June 23, 2021

एक यात्रा भारतीय संस्कृति का ध्वजवाहक कहे जाने वाले अंतरिक्ष वेधशाला यानी भारतीय ज्योतिषी की वेधशाला मेरुदंड या गरुड़ स्तंभ , ध्रुव स्तंभ जिसे आज कुतुब मीनार के नाम से जाना जाता है जो प्राचीन काल में विश्व का एकमात्र प्रमुख एवं प्रसिद्ध ज्योतिषी वेधशाला हुआ करता था- दिल्ली भारतवर्ष.A trip Space observatory called the flag bearer of Indian culture, ie Indian astrologer's observatory Merudand or Garuda pillar, Dhruv pillar which is today known as Qutub Minar, which used to be the world's only major and famous astrological observatory in ancient times - Delhi India.

Ek yatra khajane ki khoje
























   नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं ।दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं मेरुदंड या फिर मेरु स्तंभ राजधानी दिल्ली की यात्रा पर जिसे आज हम सभी मुगल आक्रमणकारियों द्वारा दिए गए परिवर्तित नाम कुतुबमीनार के नाम से जानते हैं।

          तो आइए दोस्तों चलते हैं भारत के सबसे प्राचीन व अति महत्वपूर्ण भारतीय ज्योतिषी की वेधशाला दिल्ली स्थित मेंरु स्तम्भ के प्रांगण में।

       मेरुस्तंभ या गरुड़ स्तंभ
  
 (   परिवर्तित नाम कुतुब मीनार )

           दिल्ली भारतवर्ष

 दोस्तों प्राचीन भारतवर्ष में विभिन्न स्थानों पर अंतरिक्ष का अध्ययन करने के लिए ऐसी अनेक वेधशालाओं का निर्माण किया गया था।दोस्तों आपको जानकर दुख होगा कि बाहर से आए मुस्लिम और बर्बर आक्रमणकारियों ने भारत देश के सभी महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक व पवित्र धार्मिक मंदिरों एवं उनसे जुड़ी भवनों एवं सभी महत्वपूर्ण वेधशालाओं को नष्ट कर दिया था।
           दोस्तों वर्तमान समय में अब केवल भारत की राजधानी दिल्ली स्थित एवं महत्वपूर्ण वेधशाला मेरुदंड यानी में मेरुस्तम्भ भी बचा हुआ है अपने दुर्दशाओं पर आंसू बहाते हुए।
               क्योंकि दोस्तों आज इस प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को भी क्रूर आक्रमणकारियों ने नाम बदलकर अपना नाम या पहचान देने की कोशिश की है। लेकिन दोस्तों वे इस बात को नहीं झुठला सकते हैं कि यह भारतीय संस्कृति का अनमोल धरोहर है। जिसे छुपाना या झूठलाना असंभव है।











    दोस्तों अनेक प्राचीन दस्तावेजों के अध्ययन एवं भारत के कई प्रख्यात विद्वानों ने अपने गहन अध्ययन एवं खोजों द्वारा बताया है कि राजधानी दिल्ली स्थित कुतुब मीनार किसी समय पूरे विश्व की प्रख्यात वेधशाला हुआ करती थी।






  (  वेधशाला का निर्माण काल  )

 दोस्तों इस महान स्तंभ का निर्माण अंतरिक्ष का अध्ययन करने के लिए भारत के महान सम्राट वीर विक्रमादित्य जी के नवरत्नों में प्रख्यात ज्योतिष आचार्य वराहमिहिर  द्वारा सम्राट के सहयोग से किया गया था। साथी दोस्तों राजधानी दिल्ली के निकट ही बसा ग्राम मिहरावली जिसे हम लोग महरोली के नाम से जानते हैं।
आचार्य वराहमिहिर के नाम से ही बताया गया था।

        दोस्तों ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर माना जाता है कि अनुमानतः 2200 वर्ष पूर्व आचार्य वराहमिहिर ने 29 नक्षत्रों नौ ग्रहों एवं ध्रुवतारे को इंगित या बोध कराने के लिए एवं अंतरिक्ष से संबंधित जानकारियों को प्राप्त करने के लिए प्राचीन भारत के और आज के राजधानी दिल्ली स्थित एक बड़े सरोवर के मध्य एक मेरु स्तंभ का निर्माण करवाया था।
      दोस्तों आश्चर्य की बात यह है कि इस अद्भुत मेरु स्तंभ की ऊंचाई प्रसिद्ध मेरु पर्वत की ऊंचाई के अनुपात में ली गई थी।
             दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से 7 ग्रहों के अनुसार 7 मंजिलें और नीचे से ऊपर की ओर 29 नक्षत्रों के संख्या के हिसाब से 29 गवाक्ष यानी रोशनदान बने हुए थे।
              दोस्तों अद्भुत रूप से स्तंभ के निर्माण में स्तंभ के अंदर वाले हिस्से में काले पत्थरों का प्रयोग हुआ है ताकि अंदर वाले हिस्से में बिल्कुल घोर अंधेरा रहे।
              दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से इस स्तंभ का मुख्य दरवाजा उत्तरी ध्रुव की ओर इंगित करता हुआ बना हुआ है।
















दोस्तों प्राचीन भारतीय वास्तुकला या इंजीनियरिंग का कमाल है यह मेरु स्तंभ क्योंकि दोस्तों इस अद्भुत वेधशाला की नींव 16 गज गहरी और ऊंचाई लगभग 84 गज थी। साथ ही दोस्तो  इस स्तंभ का झुकाव 5 अंश दक्षिण की ओर है। दोस्तों आपको जानकर दुख होगा कि अंग्रेजों के शासनकाल में स्तंभ के ऊपरी झुकाव को तुड़वा दिया गया था । जिससे इसकी ऊंचाई 76 गज ही रह गई है।








       (  अद्भुत संयोग )

 दोस्तों मेरू स्तंभ की एक अन्य बहुत ही महत्वपूर्ण विशेषता है ।आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि प्रत्येक वर्ष 21 जून को 12:00 बजे इस स्तंभ की छाया पृथ्वी पर नहीं पड़ती है।दोस्त को छाया नहीं पड़ने का कारण यही है कि प्रत्येक वर्ष 21 जून को सूर्य भूमध्य रेखा से 23.4 डिग्री अक्षांश उत्तर की ओर रहता है।
                             आइए दोस्तों एक रहस्य और देखते हैं दोस्तों राजधानी दिल्ली भूमध्य रेखा से 28 . 5 डिग्री अक्षांश उत्तर की ओर है अतः इन दोनों अक्षांशों में 5 अंश का अंतर है अतः दोस्तों इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए हमारे प्राचीन ज्योतिषा आचार्यों द्वारा ज्योतिषी गणना के अनुसार स्तंभ निर्माण में ऊपरी हिस्से को 5 डिग्री दक्षिण की ओर झुकाव दिया था।
               दोस्तों माना जाता है कि ब्रिटिश शासन काल के दौरान उस समय के इंजीनियरों को इस स्तंभ के टेढ़े होने का कारण समझ में नहीं आ सका था। अतः उन्हें इस स्तंभ के गिरने का खतरा महसूस होने लगा था। अतः दोस्तों उन ब्रिटिश इंजीनियरों ने स्तंभ के भार को कम करने के लिए स्तंभ के ऊपरी खंड को तोड़वा दिया था।   






            दोस्तों अद्भुत रूप से आचार्य वराहमिहिर के इस अलौकिक स्तंभ के चारों और 27 अन्य वेधशालाओं का निर्माण की गई थी जिन्हें 29 मंदिरों का समूह कहा जाता था। जिनमें हिंदू एवं जैन मंदिर भी शामिल थे।















लेकिन दोस्तों आगे चलकर दुर्भाग्यवश इन महत्वपूर्ण मंदिरों को मुस्लिम मुगल  आक्रमणकारी अत्याचारी कुतुबुद्दीन ऐबक ने तुड़वा कर मस्जिद में परिवर्तित करने का प्रयास किया था तथा उस पर अपना नाम खुदवा दिया था।
                दोस्तों सुखद बात यह है कि आक्रमणकारियों द्वारा बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ करने के बावजूद इस महत्वपूर्ण भारतीय सांस्कृतिक धरोहर मेरु स्तंभ के ध्वंसावशेष   अभी भी भारतीय संस्कृति के धरोहर रहे किसी समय के प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण वेधशाला होने का आभास कराती रहती है। साथ ही दोस्तों अपनी अद्भुत विचित्रताओ से खगोल वैज्ञानिकों का
 ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती रहती है।







     धन्यवाद दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।

  माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗

 _________________________

      English translate
      __________________
















 Hello friends, I warmly greet all of you, Mountain Leopard Mahendra. Friends, on today's journey, I am taking you on the journey of Merudand or Meru Pillar capital Delhi, which today we all have changed the name of Qutub Minar given by the Mughal invaders.  know from


 So friends, let's go to India's oldest and most important Indian astrologer's observatory in the courtyard of Mainru Pillar located in Delhi.


 Merustambha or Garuda Pillar















 (   changed name Qutub Minar)


 Delhi Bharatvarsh


 Friends, in ancient India, many such observatories were built to study space at different places. Friends, you will be sad to know that the Muslim and barbaric invaders from outside have destroyed all the important cultural and historical and holy religious temples of India and from them.  Attached buildings and all important observatories were destroyed.

 Friends, in the present time, now only Merustambh is left in the important observatory located in Delhi, the capital of India, shedding tears over its plight.

 Because friends, today this ancient Indian cultural heritage has also been renamed by cruel invaders and tried to give their name or identity.  But friends, they cannot deny that it is a priceless heritage of Indian culture.  Which is impossible to hide or lie.














 Friends, studying many ancient documents and many eminent scholars of India have told through their deep studies and discoveries that Qutub Minar located in the capital Delhi was once a famous observatory of the whole world.








 (  construction period of the observatory  )


 Friends, this great pillar was built by the eminent astrologer Acharya Varahamihira in the Navaratnas of the great emperor of India, Veer Vikramaditya, with the help of the emperor, to study the space.  Friends, the village Mihravali, which is situated near the capital Delhi, is known by the name of Mehroli.

 It was told by the name of Acharya Varahamihira.






 Friends, on the basis of historical documents, it is believed that approximately 2200 years ago, Acharya Varahamihira, to indicate or understand the 29 constellations, nine planets and polar stars and to obtain information related to space, is a place in ancient India and today's capital Delhi.  A Meru pillar was built in the middle of the big lake.








 Friends, the surprising thing is that the height of this wonderful Meru pillar was taken in proportion to the height of the famous Meru mountain.

 Friends, surprisingly, there were 7 floors according to the 7 planets and 29 Gavaksha i.e. skylights were made according to the number of 29 constellations from bottom to top.

 Friends, wonderfully, in the construction of the pillar, black stones have been used in the inner part of the pillar so that the inner part remains absolutely dark.

 Friends, surprisingly, the main door of this pillar is made pointing towards the North Pole.
















 Friends, this Meru pillar is a marvel of ancient Indian architecture or engineering, because friends, the foundation of this wonderful observatory was 16 yards deep and the height was about 84 yards.  Also friends, the inclination of this pillar is 5 degrees towards south.  Friends, you will be sad to know that the upper inclination of the pillar was broken during the British rule.  Due to which its height has remained only 76 yards.








 (wonderful coincidence)


 Friends, there is another very important feature of Meru pillar. You will be surprised to know that every year on 21st June at 12:00, the shadow of this pillar does not fall on the earth. The reason why friend does not get shadow is that every year 21  In June, the Sun is 23.4 degrees north of the equator.

 Come friends let's see a secret and friends, the capital Delhi is 28 from the equator.  5 degree latitude is towards the north, so there is a difference of 5 degrees between these two latitudes, so friends, keeping this fact in mind, according to the astrological calculations by our ancient astrologers, the upper part was tilted towards 5 degree south in the pillar construction.

 Friends, it is believed that during the British rule, the engineers of that time could not understand the reason for the crookedness of this pillar.  So they started feeling the danger of falling of this pillar.  So friends, those British engineers had broken the upper section of the column to reduce the weight of the column.


>




 Friends, wonderfully 27 other observatories were built around this supernatural pillar of Acharya Varahamihira which was called a group of 29 temples.  In which Hindu and Jain temples were also included.















 But friends later, unfortunately, these important temples were demolished by the Muslim Mughal invader tyrant Qutubuddin Aibak and tried to convert it into a mosque and got his name carved on it.






 Friends, the pleasant thing is that despite the massive sabotage by the invaders, the ruins of this important Indian cultural heritage Meru Pillar still give the impression of being a famous and important observatory of some time, which was the heritage of Indian culture.  Along with this, friends of astronomers with their amazing quirks

 Keeps attracting attention.






 Thanks guys that's all for today.


 Mountain Leopard                Mahendra🧗🧗












             Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗






















Saturday, June 19, 2021

एक यात्रा एक ऐसे शिव धाम की जहां से कालांतर में शिव परिवार की मूर्तियां स्वयं अदृश्य हो गई है। भारतवर्ष के अद्भुत अलौकिक एकलिंग्वेश्वर महादेव मंदिर जो प्रत्येक वर्ष सिर्फ 1 दिन के लिए महाशिवरात्रि के दिन वक्त गणों के लिए खोला जाता है- जयपुर राजस्थान भारत. A journey to such a Shiva Dham from where the idols of Shiva family themselves have become invisible over time. India's wonderful supernatural Eklingveshwar Mahadev Temple, which is opened for only 1 day every year on the day of Mahashivratri for the time-Jaipur Rajasthan India.

Ek yatra khajane ki khoje





















  नमस्कार दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं भारतवर्ष के मरुस्थल  कहे जाने वाले राजस्थान के जयपुर शहर की यात्रा पर,  जहां हम देखेंगे पूरे भारत के सबसे चमत्कारी शिव मंदिरों में से एक को। जो अपने अलौकिकता के कारण पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध है। दोस्तों आप यकीन नहीं करोगे इस मंदिर के रहस्य को जिसे आज तक नहीं सुलझाया गया है।
  
 तो आइए दोस्तों चलते हैं एकलिंग्वेश्वर महादेव मंदिर की यात्रा पर।















  एकलिंग्वेश्वर महादेव मंदिर

       जयपुर - राजस्थान

             भारतवर्ष
 दोस्तों प्राचीन एकलिंग्वेश्वर महादेव मंदिर भारतवर्ष के राजस्थान राज्य के जयपुर शहर में स्थित एक प्राचीन शिवालय है। दोस्तों इस प्राचीन शिवालय के भवन यानी मंदिर का निर्माण आमेर जयपुर के "कुशवाहा" राजवंश के महाराजा "सवाई" जयसिंह द्वितीय जी ने अपने देखरेख में करवाया था।
          दोस्तों उस समय के दस्तावेजों में दर्ज है कि मंदिर की नक्काशी जयपुर रियासत काल के प्रसिद्ध वास्तुविद ब्राह्मण विद्याधर जी ने की थी।













☀️ दोस्तों आश्चर्यजनक रूप से यह अलौकिक सिवालय वर्ष में सिर्फ एक ही बार महाशिवरात्रि के दिन खुलता है। ☀️

 दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास और उसकी ऐतिहासिक घटनाओं की अभिव्यक्ति करने वाले अनेकों प्राचीन दिव्य मंदिर मौजूद है। दोस्तों उन्हीं में से एक है जयपुर स्थित अलौकिक एकलिंग्वेश्वर महादेव मंदिर।
          दोस्तों इस प्राचीन मंदिर की दीवारें जहां प्राचीन राजस्थान की गुलाबी नगरी के इतिहास की अनेकों दंतकथाएं अपने अंदर छुपाई हुई है। दोस्तों वही एक और अद्भुत अलौकिकता इसे भारत के अन्य मंदिरों से अलग बनाती है।
                  दोस्तों इस महादेव मंदिर के दरवाजे श्रद्धालुगण के लिए केवल शिवरात्रि के दिन ही खोले जाते हैं दोस्तों एकलिंग्वेश्वर  महादेव को अत्यंत पवित्र और चमत्कारी माना  गया है।दोस्तों ऐतिहासिकता व मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है कि यह प्राचीन मंदिर हमारी सोच से भी ज्यादा पुरानी है यानी दोस्तों जयपुर शहर के बसने से हजारों वर्ष पहले ही इस स्थान पर पवित्र शिवलिंग की स्थापना हो चुकी थी।













 ☀️दोस्तों एकलिंग्वेश्वर मंदिर अपने आप में किसी चमत्कारी घटना से कम नहीं है।☀️
 दोस्तों प्राचीन एक लिंगवे स्वर महादेव मंदिर भगवान भोलेनाथ शिव को समर्पित है दोस्तों जहां मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव चमत्कारी शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं । वहीं दोस्तों आश्चर्य की बात यह है कि बाबा भोलेनाथ के साथ ना तो माता पार्वती , भगवान गणेश और कार्तिकेय जी     भी नहीं मौजूद है ।
            दोस्तों कहां जाता है कि प्रारंभ में भगवान शिव के साथ शिव परिवार की भी स्थापना की गई थी , लेकिन अद्भुत रूप से कुछ समय बाद शिव परिवार की सभी प्रतिमाएं अपने आप गायब हो गई थी।
        जिसके बाद दोस्तों पुनः एक बार शिव परिवार की स्थापना की गई थी , लेकिन पुनः चमत्कारी रूप से शिव परिवार अदृश्य हो गए थे।दोस्तों कहां जाता है कि इन अलौकिक घटनाओं के बाद फिर से शिव परिवार की मूर्तियों को स्थापित करने का साहस किसी में नहीं हुआ । तब से लेकर आज तक भगवान भोलेनाथ अकेले इस प्राचीन मंदिर में विराजमान हैं।







☀️दोस्तों स्थानीय लोगों से पता चलता है कि यहां रियासत काल में राज परिवार की ओर से पूजा अर्चना की जाती थी। तथा श्रावण माह में रुद्राभिषेक व सहस्त्रघाट का आयोजन किया जाता था दोस्तों आज भी मंदिर की रखरखाव की व्यवस्था जयपुर राज परिवार की तरफ से ही किया जाता है।

बस दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।







      धन्यवाद दोस्तों
 
 माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗

_________________________
        English translate
        ___________________

 











 Hello friends, on today's journey, I am taking you on a journey to the city of Jaipur, Rajasthan, which is called the desert of India, where we will see one of the most miraculous Shiva temples in the whole of India.  Which is famous all over India due to its supernatural.  Friends, you will not believe the mystery of this temple which has not been solved till date.





 So friends, let's go on the journey of Ekalingveshwar Mahadev Temple.





 Eklingveshwar Mahadev Temple


 Jaipur, Rajasthan


 Bharatvarsh






 Friends Ancient Eklingveshwar Mahadev Temple is an ancient pagoda located in Jaipur city of Rajasthan state of India.  Friends, the building of this ancient pagoda i.e. temple was built by Maharaja "Sawai" Jai Singh II of "Kushwaha" dynasty of Amer Jaipur under his supervision.






 Friends, it is recorded in the documents of that time that the carving of the temple was done by Brahmin Vidyadhar ji, a famous architect of the princely state of Jaipur.






 ️ Friends, surprisingly this supernatural pagoda opens only once in a year on the day of Mahashivratri.  ️






 Friends, you will be surprised to know that there are many ancient divine temples expressing the ancient history of our India and its historical events.  Friends, one of them is the supernatural Eklingveshwar Mahadev Temple located in Jaipur.

 Friends, the walls of this ancient temple, where many fables of the history of the pink city of ancient Rajasthan are hidden inside themselves.  Friends, another amazing supernaturality makes it different from other temples of India.

 Friends, the doors of this Mahadev temple are opened for the devotees only on the day of Shivratri. Friends, Eklingveshwar, Mahadev is considered to be extremely holy and miraculous. Friends, it is said on the basis of historicity and beliefs that this ancient temple is older than our thinking.  That is, thousands of years before the settlement of Jaipur city, the holy Shivling was established at this place.








 ️Friends Eklingveshwara temple is no less than a miraculous event in itself.️

 Friends, the ancient one Lingaway Swara Mahadev Temple is dedicated to Lord Bholenath Shiva, where Lord Shiva is seated in the form of a miraculous Shivling in the sanctum sanctorum of the temple.  On the other hand, the surprising thing is that neither Mata Parvati, Lord Ganesha and Kartikeya ji are present with Baba Bholenath and at the same time Baba Nandi is also not present, friends.







 Where does friends go that initially Shiva family was also established with Lord Shiva, but after some time amazingly all the idols of Shiva family disappeared on their own.







 After which friends once again the Shiva family was established, but again miraculously the Shiva family had disappeared. Friends, where does it go that after these supernatural events, no one has the courage to install the idols of Shiva family again.  happen .  Since then till today Lord Bholenath is sitting alone in this ancient temple.








 Friends, it is known from the local people that during the princely period, worship was done on behalf of the royal family.  And in the month of Shravan, Rudrabhishek and Sahastraghat were organized, friends, even today the arrangement for the maintenance of the temple is done by the Jaipur royal family only.






 That's all for today guys.



 thanks guys






 Mountain Leopard               Mahendra 🧗🧗



















 





 

Thursday, June 17, 2021

एक यात्रा एक ऐसे अद्भुत अति प्राचीन महादेव मंदिर की जहां शिवलिंग के नीचे स्थापित है बाबा भोलेनाथ द्वारा पांडव पुत्र युधिष्ठिर को दिया गया चमत्कारी मणि । अद्भुत अति प्राचीन मतंगेश्वर महादेव मंदिर -ग्राम खजुराहो मध्य प्रदेश भारत।A visit to such a wonderful very ancient Mahadev temple where is installed under the Shivling The miraculous gem given by Baba Bholenath to the Pandava son Yudhishthira. Amazing very ancient Matangeshwar Mahadev Temple - Village Khajuraho Madhya Pradesh India.

Ek yatra khajane ki khoje

























  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं एक ऐसे अद्भुत महादेव मंदिर की जहां स्थापित है भगवान शिव की अलौकिक शिवलिंग और उस शिवलिंग के नीचे स्थापित है एक चमत्कारी मणि जिसे स्वयं भगवान शिव ने पांडव पुत्र युधिष्ठिर को दिया था।








     मतंगेश्वर महादेव मंदिर

    ग्राम -खजुराहो -मध्य प्रदेश

            भारतवर्ष

 दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारतीय संस्कृति की सबसे रहस्यमई और अलौकिक वस्तुओं में से एक वस्तु है मणि जिसके बारे में असंख्य रहस्यमई कहानियां  , दंतकथाएं और ना जाने कितने लोक कथाएं प्रचलित है।आइए दोस्तों आपको लेकर चलते हैं एक ऐसे ही मंदिर की यात्रा पर जहां मौजूद है असली अलौकिक , चमत्कारी मणि।
              दोस्तों भारत वर्ष के मध्य प्रदेश राज्य के खजुराहो ग्राम में मौजूद है अति प्राचीन मतंगेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण जो अपने अद्भुत वास्तुकला और कामसूत्र पर आधारित मंदिर की दीवारों पर बनाई गई मूर्तियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।







                   दोस्तों मान्यता है कि खजुराहो गांव में मंदिरों का निर्माण केवल पूजा पाठ के उद्देश्य ही नहीं करवाया गया था बल्कि माना जाता है कि इनका उद्देश्य आम लोगों को यौन शिक्षा देने के साथ-साथ तांत्रिक पूजा भी संपन्न करवाने के लिए किया गया था।


















  ( भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह स्थल। )

 दोस्तों यहां के लोगों के बीच एक मान्यता है कि ग्राम खजुराहो स्थित मतंगेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण ही वह स्थान है जहां भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था।
       दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान शिव को समर्पित  अति प्राचीन मतंगेश्वर महादेव मंदिर में हजारों - हजार वर्षों यनी युगो युगो से शिव शंभू भोलेनाथ की पूजा आराधना होते आ रही है।
        दोस्तों मान्यता है कि इस अति प्राचीन महादेव मंदिर में कई चमत्कारी घटनएं घट चुकी है ।दोस्तों जिसकी वजह से हजारों की संख्या में श्रद्धालु गण प्रत्येक वर्ष भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने संपूर्ण भारत से यहां आते हैं।














  (  चमत्कारी "मरकत" "मणि" "शिवलिंग" के नीचे स्थापित है ऐसी मान्यता है। )

 दोस्तों एक प्रचलित दंतकथा के अनुसार माना जाता है कि मंदिर में स्थापित पवित्र शिवलिंग के नीचे एक चमत्कारी मणि मौजूद है जो शिव भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती है।
                      दोस्तों पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ शिव के पास "मरकत" "मणि" मौजूद थी। दोस्तों जिसे उन्होंने "पांडव" भाइयों में सबसे बड़े "युधिष्ठिर" को दे दिया था , उनसे प्रसन्न होकर।दोस्तों कहां जाता है कि आगे चलकर महाराज युधिष्ठिर ने चमत्कारी मणि को "मतंग" ऋषि को सौंप दिया था। जिसके बाद यह चमत्कारी मणि "मतंग" ऋषि ने राजा हर्षवर्मन को दे दिया था। 
                दोस्तों माना जाता है कि "मतंग" ऋषि के पास यह चमत्कारी मणि होने के कारण ही इस मंदिर का नाम मतंगेश्वर महादेव मंदिर पड़ा था।

           दोस्तों ऐसी मान्यता है या कहा जाता है कि "मतंग" ऋषि ने ही महादेव के 18 फीट के शिवलिंग के नीचे सुरक्षा के दृष्टिकोण से चमत्कारी मणि गाड़ दिया था।अतः दोस्तों कहां जा सकता है कि यहां इस मंदिर में अलौकिक मणि और भगवान भोलेनाथ का ही प्रताप है कि यहां भक्तों द्वारा मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है। 
















 (अद्भुत रूप से हर वर्ष बढ़ जाती है शिव लिंग की आकार  )

 दोस्तों इस अति प्राचीन मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण है मंदिर में मौजूद ढाई मीटर ऊंचा शिवलिंग।दोस्तों अति प्राचीन मतंगेश्वर शिव मंदिर में मौजूद शिवलिंग के बारे में माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष "तिल" के बराबर इसकी ऊंचाई बढ़ जाती है।दोस्तों खास बात यह भी है कि मतंगेश्वर महादेव मंदिर खजुराहो के सभी मंदिरों में सबसे पवित्र माना जाता है।

          दोस्तों गौर करने वाली एक और बात है कि खजुराहो में स्थित अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर के स्तंभों और दीवारों पर कामुक मूर्तियां आदि नहीं उकेरी गई है ।

       दोस्तों आज भी मतंगेश्वर महादेव मंदिर खजुराहो के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है जहां प्रतिदिन भक्त गणों का बड़ी संख्या में आना जाना लगा रहता है।
















 ( दोस्तों इस प्राचीन मंदिर का निर्माण चंदेल राजाओं द्वारा 9 वीं सदी में करवाया गया था।  )

 दोस्तों दोस्तों ऐतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि खजुराहो का इतिहास लगभग 1000 वर्ष पुराना है ।दोस्तों खजुराहो शहर चंदेल वंश के शासकों की प्रथम राजधानी हुआ करती थी। दोस्तों चंदेल वंश और खजुराहो के संस्थापक चंद्र बर्मन थे। दोस्तों महाराज चंद्र बर्मन मध्यकाल में बुंदेलखंड में शासन करने वाले राजपूत राजा थे । वह अपने आप को चंद्रवंशी मानते थे।
 
   दोस्तों इस पवित्र शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से भी जाना जाता है।

      दोस्तों आज के लिए बस इतना ही।






         धन्यवाद दोस्तों

 माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
 _________________________       English translate












   Hello friends, I am Mountain Leopard Mahendra, warm greetings to all of you, friends, on today's journey, I am taking you with such a wonderful Mahadev temple where the supernatural Shivling of Lord Shiva is established and a miraculous gem is established under that Shivling.  Lord Shiva himself gave it to Pandava son Yudhishthira.






 Matangeshwar Mahadev Temple


 Village-Khajuraho-Madhya Pradesh


 Bharatvarsh






 Friends, you will be surprised to know that one of the most mysterious and supernatural objects of Indian culture is a gem, about which innumerable mystical stories, fables and not many folk tales are prevalent.  Where exists the real supernatural, miraculous gem.

 Friends, present in Khajuraho village of Madhya Pradesh state of India, the very ancient Matangeshwar Mahadev temple courtyard which is world famous for its amazing architecture and sculptures made on the walls of the temple based on Kamasutra.






 Friends, it is believed that temples were built in Khajuraho village not only for the purpose of worship, but it is believed that their purpose was to give sex education to the common people as well as to conduct tantric worship.














 ( The wedding venue of Lord Shiva and Mother Parvati. )


 Friends, there is a belief among the people here that the Matangeshwar Mahadev temple premises located in village Khajuraho is the place where the marriage of Lord Shiva and Mother Parvati took place.








 Friends, you will be surprised to know that in the very ancient Matangeshwar Mahadev temple dedicated to Lord Shiva, the worship of Shiva Shambhu Bholenath has been worshiping since thousands of years.




 Friends, it is believed that many miraculous events have happened in this very ancient Mahadev temple. Friends, due to which thousands of devotees come here every year from all over India to get the blessings of Lord Shiva.













  (  It is believed that the miraculous "turquoise" "mani" is installed under the "shivalinga". )


 Friends, according to a popular legend, it is believed that a miraculous gem is present under the holy Shivling installed in the temple, which fulfills every wish of Shiva devotees.




 Friends, according to mythology, Lord Bholenath Shiva had "Turkaat" "Mani".  Pleased with the friends whom he gave to "Yudhishthira", the eldest of the "Pandava" brothers.  After which this miraculous gem was given by the sage "Matang" to King Harshvarman.

 Friends, it is believed that the name of this temple was named Matangeshwar Mahadev Temple due to the "Matang" sage having this miraculous gem.






 Friends, there is such a belief or it is said that the "Matang" sage had buried the miraculous gem under the 18 feet Shivling of Mahadev from the point of view of safety.  It is great that every wish sought by the devotees here is fulfilled.













 ( Amazingly the size of Shiva Linga increases every year. )


 Friends, the biggest attraction of this very ancient temple is the two and a half meter high Shivling present in the temple. Friends, the Shivling present in the very ancient Matangeshwar Shiva temple is believed to increase its height every year equal to "sesame".  It is also that Matangeshwar Mahadev Temple is considered to be the holiest of all the temples in Khajuraho.






 Friends, another thing to note is that unlike other temples located in Khajuraho, erotic sculptures etc. have not been carved on the pillars and walls of this temple.


 Friends, even today Matangeshwar Mahadev Temple is one of the most sacred temples of Khajuraho, where a large number of devotees keep visiting every day.













 ( Friends, this ancient temple was built by the Chandela kings in the 9th century.  )


 Friends, historical sources show that the history of Khajuraho is about 1000 years old. Friends, the city of Khajuraho used to be the first capital of the rulers of Chandel dynasty.  The founders of the Chandela dynasty and Khajuraho were Chandra Burman.  Friends Maharaj Chandra Burman was a Rajput king who ruled in Bundelkhand in the medieval period.  He considered himself a Chandravanshi.







 Friends, this holy Shivling is also known as Mrityunjay Mahadev.


 Friends, that's all for today.





 thanks guys


    Mountain Leopard               Mahendra 🧗🧗





























Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗





















 



 

Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...