Saturday, May 15, 2021

एक यात्रा अति प्राचीन कोपेश्वर महादेव मंदिर की जहां भगवान शिव के साथ श्री हरि भगवान विष्णु जी भी लिंग के रूप में विद्यमान हैं -खिद्रपुर महाराष्ट्र भारत A visit to the very ancient Kopeshwar Mahadev Temple where Lord Hari, Lord Vishnu along with Lord Shiva also exists in the form of a linga - Khadarpur Maharashtra India.

Ek yatra khajane ki khoje 





























                                     Ek yatra 🇮🇳






































  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तोंआज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं महाराष्ट्र के एक ऐसे अद्भुत शिव धाम की यात्रा पर जहां दोस्तों मौजूद हैं भगवान  श्री हरि विष्णु भगवान शिव के साथ भगवान शिव के प्रतीकात्मक रूप शिवलिंग के रूप में। यानी दोस्तों इस धाम में एक लिंग भगवान शिव  का प्रतिनिधित्व करता है तो दूसरा लिंग भगवान विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही दोस्तों महाराष्ट्र यह प्राचीन मंदिर अपने अद्भुत बनावट और वास्तु शैली के कारण विश्व प्रसिद्ध है। तो आइए दोस्तों चलते हैं इस अद्भुत और अलौकिक कोपेश्वर शिव मंदिर की यात्रा पर महाराष्ट्र की यात्रा पर।









      प्राचीन कोपेश्वर शिव मंदिर

         खिद्रापूर    महाराष्ट्र

              भारतवर्ष


 नमस्कार दोस्तों महाराष्ट्र के कोल्हापुर के निकट खिद्रपुर में मौजूद है अति प्राचीन कोपेश्वर महादेव मंदिर जो चालुक्य वास्तुकला का अनमोल धरोहर है। दोस्तों यह प्राचीन मंदिर अद्भुत शिल्प कला के अनुपम सौंदर्य को धारण किए हुए हैं। दोस्तों जहां अलौकिक रूप से भगवान विष्णु भगवान शिव के साथ लिंग के रूप में विद्यमान हैं।
                   दोस्तों प्राचीन कोपेश्वर महादेव मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर से 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
                दोस्तों ऐतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि इस अद्भुत और अनोखे शिल्प कला का विकास सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व में चालुक्य  राजवंश के शासनकाल में हुआ था। जो कई राजवंशों के शासनकाल के दौरान विकसित हुई थी। दोस्तों माना जाता है कि महाराष्ट्र के खिद्रपुर क्षेत्र पर सातवाहन राजवंश ,चालुक्यो, राष्ट्रकूट , शीलहरा ,यादव एवं आदिलशाही राजवंशों से होते हुए भोंसले राजवंशों के आधिपत्य रहा था।












दोस्तों इस मंदिर से संबंधित एक बहुत ही मशहूर पौराणिक कथा प्रसिद्ध है।साथ ही दोस्तों आश्चर्य करने वाली बात यह है कि इस मंदिर के द्वार पर बाबा नंदी मौजूद नहीं है जिसके कारण यहां आने वाले श्रद्धालु आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पाते हैं। क्योंकि दोस्तों बाबा नंदी की गैरमौजूदगी कई प्राचीन रहस्य को उजागर करती है।
              दोस्तों प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि महाराज प्रजापति दक्ष के यज्ञ समारोह में भगवान भोलेनाथ को आमंत्रित ना करने के कारण प्रजापति दक्ष कन्या माता सती ने यज्ञ कुंड के अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी थी।जिस कारण से भगवान शिव ने क्रोध में आकर महाराज प्रजापति दक्ष का सिर काट दिया था। और माता सती के शव को अपने गोद में लेकर तांडव करने लगे थे। जिससे पूरे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया था ।तब भगवान विष्णु ने भगवान शिव का क्रोध शांत किया था। और उसी समय  इस प्राचीन मंदिर में भगवान शिव के साथ लिंग के रूप में विद्यमान हुए थे। 

             दोस्तों पुराणों में कई जगह वर्णित है कि जब जब भोलेनाथ क्रोधित हुए तब तब भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांत किया था। दोस्तों यह प्राचीन मंदिर भोलेनाथ के अति क्रोधित होने वाले क्षण का प्रतीक माना जाता है। दोस्तों मानो ऐसा लगता है कि इस मंदिर में वह समय चक्र सदैव के लिए काल के पहिए के रूप में थम गया हो। माता सती का अपने प्राणों से प्रिय प्राणेश्वर भगवान शिव का अपमान , माता सती का अपने आप को बलिदान करना व भगवान शिव का क्रोधित होना , भोलेनाथ को अपने प्राणों से प्रिय अर्धांगिनी माता सती का वियोग , वह सभी क्षण इस मंदिर में  थम सा गया है दोस्तों।
       
          दोस्तों क्रोधित अर्थात कुपित शिव को ही कोपेश्वर कहा गया है ।दोस्तों इसी कारण से इस प्राचीन मंदिर में दो लिंग मौजूद हैं एक भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता हुआ तथा दूसरा लिंग भगवान विष्णु का भोलेनाथ के क्रोध को शांत करते हुए प्रतिनिधित्व कर रहा है।






















दोस्तों आप सभी को पता है कि बाबा नंदी बैल प्रत्येक शिव मंदिर के अभिन्न अंग होते हैं परंतु आश्चर्यजनक रूप से इस मंदिर में बाबा नंदी मौजूद नहीं है दोस्तों पुराणों के अनुसार नंदी बाबा माता सती के साथ उनके पिता महाराज प्रजापति दक्ष के घर गए हुए थे इसलिए नंदी बाबा इस मंदिर में अनुपस्थित हैं।

















दोस्तों इस प्राचीन मंदिर की अद्भुत निर्माण शैली एवं वास्तुकला को देखकर ऐसा लगता है कि यह मंदिर किसी समय काल में महाराष्ट्र का सर्वाधिक संपन्न मंदिर रहा होगा।
              दोस्तों कुछ ऐतिहासिक शिल्पशास्त्र के पुस्तकों में इस प्राचीन मंदिर की वैभव कालीन इतिहास दर्ज है ।जिसका अध्ययन करने से पता चलता है कि यह मंदिर कितना पवित्र और वैभवशाली रहा होगा।
         दोस्तों अद्भुत रूप से मंदिर की दीवारों पर काले बेसाल्ट पत्थरों से नक्काशी की गई है। दोस्तों दीवारों पर नक्काशी की गई मूर्तियों का आकार 1 इंच स लेकर 8 फीट तक है।साथी दोस्तों मंदिर के दीवारों पर भगवान शिव की पूजा करते हुए 18 की संख्या में सुंदर कन्याओं की मूर्तियां भी बनाई गई है ।दोस्तों माना जाता है कि इन 18 कन्याओं की मूर्तियों का निर्माण भगवान शिव के क्रोध को शांत करने के लिए किया गया था। 
      दोस्तों जैसे ही आप इस मंदिर के अंदर प्रवेश करोगे आप का मन एकदम शांत हो जाएगा। और आपको ऐसा महसूस होगा कि जैसे भगवान शिव गहरी समाधि में लीन हो ।दोस्तों यहां का वातावरण आपके मन को एकदम शांत कर देगा। दोस्तों ऐस लगता है कि इस मंदिर में समय आकर एकदम ठहर सा जाता है।
















दोस्तों प्राचीन कोपेश्वर मंदिर को चार भागों में विभाजित किया जाता है। प्रथम- स्वर्ग मंडप , द्वितीय- सभा मंडप , तृतीय अंर्तकलक्ष और चतुर्थ- गर्भ गृह।दोस्तों मंदिर की यह सभी क्षेत्र आपस में परस्पर जुड़े हुए हैं ।जिस कारण से दोस्तों आप स्वर्ग मंडप के केंद्र में खड़े होकर सामने स्थित गर्भ गृह में कोपेश्वर महादेव शिवलिंग को आराम देख सकते हो। दोस्तों मंदिर की बाईं ओर की दीवार पर भगवान ब्रह्मा और दाएं ओर की दीवार पर भगवान विष्णु की नक्काशी दार मूर्ति बनाई गई है।दोस्तों माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा , भगवान विष्णु और भगवान शिव की दिव्य त्रिमूर्ति प्रतीकात्मक रूप से मंदिर की रक्षा करती है।
             दोस्तों मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग और विष्णु लिंग दोनों स्थापित है दोस्तों मान्यता है कि मंदिर में प्रवेश करने पर सर्वप्रथम विष्णु लिंग का दर्शन किया जाता है तत्पश्चात शिवलिंग का दर्शन किया जाता है।साथ ही दोनों लिंगों पर जल और दूध से अभिषेक करने की परंपरा लागू है।माना जाता है कि दोस्तों इन दोनों लिंगों का दर्शन करने से भक्तों गणों की संपूर्ण मनोकामना पूर्ण होती है।





















दोस्तों मंदिर में बनाई गई मूर्तियां अपने निर्माण काल के समय के दौरान एक उन्नत और अच्छी तरह से विकसित संस्कृति की उपस्थिति को इंगित करती है।दोस्तों इन मूर्तियों के चेहरे पर अलग-अलग भाव देखे जा सकते हैं साथ ही मंदिर में दोस्तों विभिन्न प्रकार के जानवरों के साथ फलों को भी नक्काशी किया गया है। जो अद्भुत रूप से कच्चे फल और पके हुए फलो  को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। साथ ही मंदिर के मध्य भाग में भी विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी नक्काशी किया गया है। 
            दोस्तों मध्यकाल में क्रूर आक्रमणकारी बर्बर औरंगजेब के शासनकाल में भी मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई गई थी।फिर भी दोस्तों इस प्राचीन मंदिर की शिल्प कला इतनी सुंदर है कि आप इस मंदिर से अपनी दृष्टि नहीं हटा पाएंगे।
      तो दोस्तों जब भी आप महाराष्ट्र आए तो इस प्राचीन और अद्भुत भगवान शिव के मंदिर का दर्शन जरूर करें।










          धन्यवाद दोस्तों
 माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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        English translate
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 Hello friends, I am a mountain lepard Mahendra, a warm greetings to all of you guys, I am taking you on a journey today, to visit such a wonderful Shiva Dham in Maharashtra where friends are present Lord Shree Hari Vishnu with Lord Shiva, symbolic of Lord Shiva  In the form of Roop Shivalinga.  That is, in this Dham, friends, one gender represents Lord Shiva and the other gender represents Lord Vishnu.  Also friends Maharashtra, this ancient temple is world famous due to its amazing texture and architectural style.  So friends, let's go on a trip to Maharashtra on a visit to this wonderful and supernatural Kopeshwar Shiva temple.









 Ancient Kopeshwar Shiva Temple


 Khidrapur Maharashtra


 India









 Namaskar Friends, there is a very ancient Kopeshwar Mahadev Temple in Khidrapur near Kolhapur, Maharashtra, which is a precious heritage of Chalukya architecture.  Friends, this ancient temple holds the unique beauty of amazing craftsmanship.  Friends where supernaturally Lord Vishnu exists in the form of a linga with Lord Shiva.

 Friends Ancient Kopeshwar Mahadev Temple is located at a distance of 80 km from the city of Kolhapur in Maharashtra.

 Friends historical sources suggest that this amazing and unique craft art was developed during the reign of the Chalukya dynasty in the seventh century BCE.  Which developed during the reign of several dynasties.  Friends, the Khidrapur region of Maharashtra is believed to have been dominated by the Bhonsle dynasties passing through the Satavahana dynasty, Chalukyo, Rashtrakuta, Sheelahara, Yadav and Adilshahi dynasties.

















 Friends, a very famous legend related to this temple is famous. Friends, the surprising thing is that Baba Nandi is not present at the entrance of this temple, due to which the devotees who come here are unable to live without being surprised.  Because the absence of friends Baba Nandi reveals many ancient secrets.

 According to the famous legend, it is believed that Prajapati Daksha Kanya Mata Sati gave her life by jumping into the fire of Yagna Kunda due to not inviting Lord Bholenath in the Yajna ceremony of Maharaj Prajapati Daksha.  I came and cut off the head of Maharaja Prajapati Daksha.  And Mata sati's body was taken to her orgy and began to do orgy.  There was a chaos in the whole universe. Then Lord Vishnu pacified the wrath of Lord Shiva.  And at the same time this ancient temple existed in the form of a linga with Lord Shiva.


 Friends Puranas have described many places that when Bholenath was angry, then Lord Vishnu pacified his anger.  Friends, this ancient temple is considered a symbol of Bholenath's very angry moment.  Friends, it seems that the time cycle in this temple has stopped forever as the wheel of time.  Mother Pranesh, insulting Lord Shiva dear to his life, sacrificing herself to Goddess Sati and being angry with Lord Shiva, Bholenath's disconnection of beloved Ardhangini Mata Sati with her life, all those moments have come to a standstill in this temple.  Friends.






 Friends are furious, that is, Kupit Shiva has been called Kopeshwar. Friends, for this reason, two lingas are present in this ancient temple, one representing Lord Shiva and the other linga representing Lord Vishnu while pacifying the anger of Bholenath.

















 Friends, you all know that Baba Nandi bulls are an integral part of every Shiva temple but surprisingly Baba Nandi is not present in this temple. According to the Puranas, Nandi went to Baba Mata Sati's house with his father Maharaj Prajapati Daksha.  Therefore Nandi Baba is absent in this temple.


















 Friends, looking at the amazing construction style and architecture of this ancient temple, it seems that this temple may have been the most thriving temple in Maharashtra at some point of time.

 Friends, some historical crafts books have recorded the history of the glory of this ancient temple. By studying it, it shows how holy and magnificent this temple must have been.

 Friends, the temple walls are wonderfully carved with black basalt stones.  The sculptures carved on the Friends walls range in size from 1 inch to 8 feet. On the walls of the Sathi Friends temple, idols of 18 beautiful girls have also been made while worshiping Lord Shiva. Friends are believed to be  Statues of girls were constructed to pacify the wrath of Lord Shiva.

 Friends, as soon as you enter inside this temple, your mind will be completely calm.  And you will feel as if Lord Shiva is absorbed in deep samadhi. Friends, the atmosphere here will calm your mind completely.  Friends, it seems that the time in this temple comes to a complete standstill.
















 Friends The ancient Kopeshwar temple is divided into four parts.  First- Swarga Mandapa, Second- Sabha Mandapa, Third Antrakalaksha and Fourth- Garbha Griha. All these areas of the two-temple temple are interlinked. Because of which friends you stand in the center of Swarga Mandapa and Kopeshwar Mahadev in the garbhagriha situated in front.  You can see the lingam relaxed.  Friends on the left wall of the temple, Lord Brahma and Lord Vishnu on the right side of the temple are carved by the idol. Friends, it is believed that the divine trinity of Lord Brahma, Lord Vishnu and Lord Shiva symbolically protects the temple.  .

 Friends, both Shivalinga and Vishnu Linga are installed in the sanctum sanctorum of the temple. Friends believe that Vishnu Linga is first seen on entering the temple and then Shivalinga is seen.  The tradition is applicable. It is believed that by visiting friends both these sexes complete the wishes of the devotees.


















 The sculptures made in the Friends temple indicate the presence of an advanced and well-developed culture during the time of its construction. Friends can see different expressions on the faces of these idols as well as different types of friends in the temple.  Fruits have also been carved with animals.  Which is clearly depicted with amazingly raw fruits and ripe fruits.  Also, in the central part of the temple, statues of various deities have also been carved.

 Friends, the temple was heavily damaged even during the reign of the brutally invading barbaric Aurangzeb in the medieval period. Friends, however, the craftsmanship of this ancient temple is so beautiful that you will not be able to divert your sight from this temple.

 So friends, whenever you come to Maharashtra, you must visit this ancient and wonderful temple of Lord Shiva.







 Thanks guys

 Mountain  Leopard               Mahendra 🧗🧗


















 Mountain Leopard Mahendra 🧗🧗
       
           Ek yatra 🇮🇳

 
 
















          

Wednesday, May 12, 2021

एक यात्रा प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर उड़ीसा की जो कि विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर का प्रतिरूप ही है कोणार्क का सूर्य मंदिर- बयालिश बांटी , पुरी, उड़ीसा भारत A visit to the ancient Gangeswari temple of Orissa which is located at a distance of 14 km from the world famous Konark Sun Temple. It is believed that the ancient Gangeswari temple is a replica of the Sun Temple of Konark - Baylish Banti, Puri, Orissa India.

Ek yatra khajane ki khoje





 















                        माता महिषासुरमर्दिनी
                 प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर
                 Mother                                     Mahishasuramardini

      Ancient Gangeswari Temple














  नमस्कार दोस्तों मैं माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा आप सभी लोगों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज की यात्रा पर मैं आपको लेकर चल रहा हूं भारत के उड़ीसा राज्य में स्थित पूरी जिले में मौजूद प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर । दोस्तों माना जाता है कि प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर विश्व प्रसिद्ध कोणार्क के सूर्य मंदिर से पहले बना था।दोस्तों प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर अपने अद्भुत वास्तु कला निर्माण शैली के कारण  अद्वितीय है। तो आइए दोस्तों चलते हैं प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर की यात्रा पर उड़ीसा के पूरी जिले में स्थित एक छोटे से गांव में।











       प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर

         ग्राम- बयालिश बटी 

       जिला -  पूरी , उड़िसा

                भारतवर्ष







 नमस्कार दोस्तों प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर उड़ीसा के पुरी जिले में गोप के करीब गांव बयालिश बटी में मौजूद है। दोस्तों यह प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर भुवनेश्वर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी और पूरी से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
            दोस्तों ऐतिहासिक दस्तावेजों के अध्ययन से पता चलता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 13 वी सदी के आसपास किया गया था। दोस्तों माना जाता है कि उस समय के महाराज गंगेश्वरी की कुलदेवी इस मंदिर में स्थापित हैं। दोस्तों महाराज गंगेश्वरी के नाम पर हैं इस मंदिर का नाम गंगेश्वरी मंदिर पड़ा है।दोस्तों अति प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर कलिंग वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण पेश करता है।
              दोस्तों हाल ही में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है दोस्तों देखरेख के अभाव में जीर्ण - शीर्ण हो चुके यह प्राचीन मंदिर अब भारतीय पुरातत्व विभाग के निगरानी में है।
        दोस्तों इस प्राचीन मंदिर क नींव लेटराइट पत्थरों का बना हुआ है साथ ही मंदिर के निर्माण में बड़े पैमाने पर बलुआ पत्थर का भी उपयोग किया गया है।






















दोस्तों आप यकीन नहीं करोगे यह प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर पिछले 800 वर्षों से लगातार हवा - पानी  एवं अपक्षय और क्षरण के कारण क्षतिग्रस्त हुआ है। लेकिन आज भी यह मंदिर अपने अद्भुत वास्तुकला को संरक्षित किए हुए हैं।
          दोस्तों इस अति प्राचीन गंधेश्वरी देवी मंदिर में चामुंडा देवी ,
अष्टादिकापालक , नायिका , पशुओं के शिकार करते शिकारी , योद्धा एवं सामाजिक दृश्यों के साथ-साथ कुछ काल्पनिक एवं अद्भुत चित्रो को बहुत ही बारीकी से मंदिर के दीवारों पर उकेरा गया है। साथ ही दोस्तों मंदिर के गर्भ गृह में माता महिषमर्दिनी कि चारों भुजाओं में शस्त्र धारण किए हुए प्राचीन मूर्ति स्थापित है।
                               दोस्तों मंदिर के ही दीवारों पर आश्चर्यचकित करने वाली एक विशेष नक्काशीदार मूर्ति बनाई गई है जिसे मुछालिंडा बुद्ध माना जाता है।दोस्तों भगवान बुद्ध की छवि रखने वाले इस मूर्ति को देखकर इतिहासकार आश्चर्यचकित हो जाते हैं लेकिन दोस्तों कुछ विद्वानों का मानना है कि बौद्ध धर्म का तांत्रिक रूप उड़ीसा में ही उत्पन्न हुआ था जो हिंदू तंत्र विद्या के साथ बहुत ही करीबी का समानताएं रखता है।जिस कारण से दोस्तों इस पूरे क्षेत्र को बौद्ध धर्म , हिंदू धर्म और तंत्रवाद की एकता का केंद्र माना जाता है। इसलिए दोस्तों दीवारों पर बने इन अद्भुत मूर्तियों को देखकर आश्चर्य करने वाली बात नहीं है।


















दोस्तों माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य जी ने नौवीं शताब्दी ईस्वी में उड़िसा का दौरा किया था जिसके परिणाम स्वरुप ही 10 वीं शताब्दी ईस्वी में भगवान विष्णु के नौवें  अवतार के रूप में गौतम बुद्ध को स्वीकार किया गया था।
                दोस्तों अक्सर बियालिस बटी के ग्रामीणों द्वारा उल्लेख किया जाता है कि यह क्षेत्र कोणार्क के महान सूर्य मंदिर से संबंधित रहा है।दोस्तों ऐसा कहा जाता है कि कोणार्क सूर्य मंदिर के मुख्य वास्तुकार सिबेई सामंतराय महापात्र इसी गांव के रहने वाले थे। दोस्तों वे यहीं पर कोणार्क सूर्य मंदिर के 1200 शिल्पकारो , वास्तु कारों एवं पर्यवेक्षकों के साथ मिलकर कोणार्क सूर्य मंदिर की योजना को मृत रूप दिया करते थे। दोस्तों साथ ही यह भी बताया जाता है कि पास में ही बहने वाली पत्थरबुआ नदी के रास्ते ही कोणार्क सूर्य मंदिर में उपयोग होने वाले अधिकांश सामग्रियों को ढोया जाता था , लकड़ी के नाव के जरिए।
            दोस्तों प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर के समीप एक बड़ा तालाब मौजूद है जो अब कीचड़ और गाद से भर गया है जिस कारण से पत्थरबुआ नदी का मार्ग अब पूरी तरह से अवरुद्ध हो गया है।दोस्तों यही नदी किसी जमाने में कोणार्क सूर्य मंदिर तक पहुंचने का सुगम जलमार्ग हुआ करता था।जो प्राचीन गंगेश्वर मंदिर से लगभग 14 किलोमीटर दूर कोणार्क के सूर्य मंदिर के लिए एक प्रमुख जलमार्ग के रूप में कार्य करता था।और मंदिर के पास स्थित यह बड़ा सा जलाशय नदी के मुहाने पर स्थित एक घाट की तरह काम करता था ।
            दोस्तों कुछ विद्वानों का मानना है कि कोणार्क का सूर्य मंदिर का निर्माण करने वाले यहां केवल रुके ही नहीं थे बल्कि मंदिर के निर्माण संबंधी सारी योजनाएं उनके द्वारा यहीं पर बनाए जाते थे। कोणार्क के सूर्य मंदिर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इसी गांव में। दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गंगेश्वरी मंदिर को कोणार्क सूर्य मंदिर का अग्रदूत माना जाता है।दोस्तों एक प्रोटोटाइप नक्शा के रूप में जो संभवत बड़े पैमाने पर कोणार्क सूर्य मंदिर के निर्माण से पहले बनाया गया था। क्योंकि दोस्तों दोनों मंदिरों में काफी समानताएं हैं।

       दोस्तों कुछ भी हो यह प्राचीन गंगेश्वरी मंदिर भारतवर्ष का अनमोल धरोहर है जो आज भी अपने अद्भुत निर्माण शैली का प्रतिनिधित्व कर रही है।








             धन्यवाद दोस्तों

   माउंटेन लैपर्ड महेंद्रा 🧗🧗
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       English translate
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 Hello friends I heartily greet all of you mountain leopard Mahendra Friends, on today's journey I am taking you to the ancient Gangeswari temple in the entire district located in the state of Orissa, India.  Friends, it is believed that the ancient Gangeswari temple was built before the Sun Temple of the world famous Konark. The two ancient Gangeswari temples are unique due to their amazing architectural art style.  So let's go on a journey to the ancient Gangeswari temple in a small village located in the entire district of Odisha.









 Ancient Gangeswari Temple


 Village - Baylish Butte


 District - Puri, Orissa


 India








 Namaskar Friends, the ancient Gangeswari temple is present in the village Baylish Bati, close to Gop, in the Puri district of Odisha.  Friends, this ancient Gangeswari temple is located at a distance of about 60 km from Bhubaneswar and 35 km from Puri.

 Friends, the study of historical documents shows that this ancient temple was built around the 13th century.  Friends, it is believed that the Kuldevi of the then Maharaja Gangeswari is enshrined in this temple.  Friends, named after Maharaja Gangeswari, the temple is named after the Gangeswari temple. The two ancient Gangeswari temples offer a wonderful example of Kalinga architecture.

 Friends, this ancient temple has been renovated by the Archaeological Department of India recently, this old temple which has been dilapidated due to lack of care, is now under the supervision of the Archaeological Department of India.

 Friends, the foundation of this ancient temple is made of laterite stones as well as sandstone has been used extensively in the construction of the temple.


























 Friends, you will not believe this ancient Gangeswari temple has been damaged due to continuous air-water and weathering and erosion for the last 800 years.  But even today, these temples preserve their amazing architecture.

 Friends, in this very ancient Gandheswari Devi temple, Chamunda Devi,

 Ashtadikapalak, heroine, animal hunting hunter, warrior and social scenes, as well as some imaginary and amazing paintings are very closely engraved on the walls of the temple.  Also, in the sanctum sanctorum of the Friends temple, an ancient idol is installed in the four arms of Mother Mahishmardini, holding arms.

 On the walls of the Friends temple itself, a special carved sculpture that is believed to be the Muchhalinda Buddha has been made. Historians are surprised to see this statue bearing the image of Lord Buddha, but friends believe that some scholars believe that Buddhism  The Tantric form originated in Orissa itself, which bears very close similarities with Hindu Tantra lore. For this reason, friends have considered this entire region to be the center of unity of Buddhism, Hinduism and Tantrism.  So friends, it is not surprising to see these amazing sculptures on the walls.





















 Friends believe that Adi Guru Shankaracharya visited Orissa in the ninth century AD as a result of which Gautama Buddha was accepted as the ninth incarnation of Lord Vishnu in the 10th century AD.

 Friends are often mentioned by the villagers of Bialis Bati that this area is related to the great Sun Temple of Konark. Friends, it is said that Sibei Samantarai Mahapatra, the main architect of Konark Sun Temple, was from this village.  Friends, here, along with 1200 craftsmen, architectural cars and observers of Konark Sun Temple, they used to give the plan of Konark Sun Temple dead.  Friends are also told that most of the materials used in the Konark Sun Temple were carried by wooden boat through the nearby Stonabua River.

 Friends, a large pond exists near the ancient Gangeswari temple, which is now filled with mud and silt, due to which the path of the Stonbua river is now completely blocked.  Which served as a major waterway for the Sun Temple of Konark, about 14 km from the ancient Gangeswar temple. And this large reservoir near the temple acted like a ghat at the mouth of the river.  .

 Friends, some scholars believe that the people who built the Sun Temple of Konark did not stay here only, but all the plans for the construction of the temple were made by them here.  It is in this village situated 14 kilometers from the Sun Temple of Konark.  Friends, you will be surprised to know that the Gangeswari temple is considered to be the precursor to the Konark Sun Temple. The two form a prototype map that was probably built before the construction of the massive Konark Sun Temple.  Because friends there are many similarities between the two temples.


 Whatever be the friends, this ancient Gangeswari temple is a precious heritage of India, which is still representing its amazing construction style.








 Thanks guys


 Mountain Leopard              Mahendra 🧗🧗























               Mountain Leopard 🧗🧗  Mahendra

                                 Ek Yatra  🇮🇳
      












Ek yatra khajane ki khoje me

एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग

          ( एक यात्रा माउंटेन लेपर्ड महेन्द्रा के संग )                          www.AdventurSport.com सभी फोटो झारखणड़ के...